diff --git "a/train/pretrain/medicalWiki_hi_text.json" "b/train/pretrain/medicalWiki_hi_text.json" new file mode 100644--- /dev/null +++ "b/train/pretrain/medicalWiki_hi_text.json" @@ -0,0 +1,211 @@ +[ + "Disease: दमा (Asthma)\n\nDescription: \nसूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाने के कारण जब किसी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है तब यह स्थिति दमा रोग कहलाती है, इस रोग में व्यक्ति को खांसी की समस्या भी होती है।\n\nSymptoms: \n- जब दमा रोग से पीड़ित रोगी को दौरा पड़ता है तो उसे सूखी या ऐठनदार खांसी होती है।\n- जब रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है।\n- दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।\n- पीड़ित रोगी को सांस लेनें में बहुत अधिक कठिनाई होती है।\n- यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है।\n- रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।\n- रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।\n- सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।\n- सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।\n- सांस लेने तथा सांस को बाहर छोड़ने में काफी जोर लगाना पड़ता है।\n\nReasons: \n- औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ़ सूख जाने से दमा हो जाता है।\n- खान-पान के गलत तरीके से यह रोग हो सकता है।\n- मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा होने का एक कारण है।\n- खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा हो सकता है।\n- नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करना भी इस रोग का कारण है।\n- खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा हो सकता है।\n- भूख से अधिक भोजन खाने से दमा हो सकता है।\n- मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से यह रोग हो सकता है।\n- फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी, स्नायुमण्डल में कमजोरी तथा नाकड़ा रोग हो जाने के कारण दमा हो जाता है।\n- मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण भी दमा हो सकता है।\n- धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही अन्य पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण यह रोग हो सकता है।\n- मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा हो सकता है।\n- मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से यह रोग हो सकता है।\n- गर्द, धुआं, गंदगी, बदबू, गंदे बिस्तर, पुरानी किताबें और कपड़ों की झाड़, खेतों की झाड़, सख्त सर्दी, बरसात, जुकाम, फ्लू, आदि सूक्ष्म कणों का सांस द्वारा फेफड़ों में जाने से दमा हो सकता है।\n- वातावरण में प्रदूषण से होने वाली एलर्जी\n- इसके अलावा कई लोगों में कुछ निश्चित दवाओं (एस्पिरीन और बेटा- ब्लॉकर्स) के सेवन से भी दमा के रिस्क फैक्टर्स बढ़ सकते हैं।\n- अत्यधिक भावनात्मक अभिव्यक्तियां (जैसे चीखने-चिल्लाने या फिर जोरदार तरीके से हंसना भी) भी कुछ लोगों में दमा की समस्या को बढ़ाकर दौरे की स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं।\n- अस्थमा या एलर्जी का पारिवारिक इतिहास (आनिवांशिक दमा)\n- जन्म के समय कम वजन और समय से पहले बच्चों का जन्म, जन्म के पहले और / या जन्म के बाद तंबाकू के धुएं के संपर्क\n- भीड़, वायुप्रदूषण, धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड्स, तनाव व चिंता, पालतू जानवर के संपर्क में रहना और पेड़-पौधों और फूलों के परागकणों (पौधे के फूलों में पाये जाने वाले सूक्ष्म कणों को परागकण कहते हैं) आदि को शामिल किया जाता है।\n\nTreatments:\n- रोगी को गर्म बिस्तर पर सोना चाहिए। \n- धूम्रपान नहीं करना चाहिए। \n- भोजन में मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। \n- धूल तथा धुंए भरे वातावरण से बचना चाहिए। \n- मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगडों से बचना चाहिए। \n- शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। \n\nHome Remedies:\n- लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।", + "Disease: दमा (Asthma)\n- अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।\n- अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है।\n- दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है।\n- 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।\n- 180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।\n- मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।\n- एक पका केला छिलका लेकर चाकू से लम्बाई में चीरा लगाकर उसमें एक छोटा चम्मच दो ग्राम कपड़ा छान की हुई काली मिर्च भर दें। फिर उसे बगैर छीले ही, केले के वृक्ष के पत्ते में अच्छी तरह लपेट कर डोरे से बांध कर 2-3 घंटे रख दें। बाद में केले के पत्ते सहित उसे आग में इस प्रकार भूने की उपर का पत्ता जले। ठंडा होने पर केले का छिलका निकालकर केला खा लें।\n\n\n", + "Disease: मधुमेह (Diabetes)\n\nDescription: \nमधुमेह या डायबिटीज हाल के सालों में होने वाला सबसे खतरनाक जीवनशैली रोग माना जाता है। हर साल कई हजार लोग इससे प्रभावित होते हैं। आइयें जानें मधुमेह के बारें में जिसे लोग आम बोलचाल की भाषा मे शुगर (Sugar ki Bimari) भी कहते हैं।\n\nSymptoms: \n- अत्यधिक प्यास लगना और बार बार पेशाब आना (Excessive Thirst): यह मधुमेह होने के पुख्ता लक्षण हैं\n- जख्मों का जल्दी नही भरना और बार बार संक्रमण से प्रभावित होना (Slow Healing Sores and Recurrent Infections)\n- थकान महसूस होना (Feeling Lazy): कोशिकाओं में ग्लूकोज़ नही पहुंचने के कारण शरीर को ऊर्जा आपूर्ति पूरी तरह से नही हो पाती है और मधुमेह का रोगी हमेशा थकान महसूस करता है\n- धुंधला दिखना (Blurred Vision): रक्त में अतिरिक्त शुगर की उपस्थिति के कारण आँखों की कोशिकाओं में रक्त आपूर्ति पर असर पड़ता है और धीरे धीरे आँखे प्रभावित होने लगती हैं\n- पैरो और हाथों में झनझनाहट होना (Tingling in Hands & Feet): रक्त में अतिरिक्त शुगर का कारण हमारे तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है\n- मसूड़ों में सूजन (Swollen Gums): मधुमेह के कारण मसूड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है\n- रक्त में अतिरिक्त शुगर की उपस्थिति के कारण गुर्दे रक्त को साफ़ करने के लिए अधिक काम करने लगते हैं और मूत्र के द्वारा अतिरिक्त शुगर को शरीर से बाहर निकलते हैं। इस कारण बार बार पेशाब आता है और अत्यधिक प्यास लगती है\n- वजन कम होना (Weight Loss): हमारे शरीर में जब कोशिकाओं को ग्लूकोज़ नही मिलता तो शरीर, शरीर में उपस्थित वसा तथा मांसपेशिओ से उसकी आपूर्ति करता है जिसके कारण शरीर में जमा वसा और मांसपेशिओ में कमी आती है और वजन बहुत जल्दी कम होने लगता है\n\nTreatments:\nमधुमेह या डायबिटीज से बचाव का सबसे बढ़िया उपाय है इसकी जानकारी रखना और स्वस्थ जीवनशैली अपनाना। डायबिटीज से बचने के कुछ खान उपाय निम्न हैं:\n- प्रतिदिन एक घंटा व्यायाम जरूर करें।\n- अपने घर में प्रतिदिन मधुमेह का टेस्ट करें। रक्त में शुगर की मात्रा का ध्यान रखें।\n- इन्सुलिन इंजेक्शन (Insulin Injetion) को तैयार करना और स्वयं लगाना आना चाहिए।\n- एक इन्सुलिन पम्प (Insulin Pump) साथ रखना।\n- कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) की गिनती को ध्यान में रखना।\n- रक्तचाप (Blood Pressure) कम होने पर मत्वपूर्ण जानकारी का ध्यान रखना\n\n\n", + "Disease: वायरल बुखार (Viral Fever)\n\nDescription: \nवायरस के संक्रमण से होने वाले बुखार को वायरल फीवर (Viral Fever) कहते हैं। वायरल बुखार के वायरस गले में सुप्तावस्था में निष्क्रिय रहते हैं। ठंडे वातावरण के संपर्क में आने, फ्रिज का ठंडा पानी, शीतल पेय पीने आदि से ये वायरस सक्रिय होकर हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित कर देते हैं।\n\nSymptoms: \n- आँखें लाल होना\n- इस बुखार में शरीर का ताप 101 डिग्री से 103 डिग्री या और ज्यादा भी हो जाता है\n- खांसी और जुकाम होना\n- जोड़ों में दर्द और सूजन होना\n- थकान और गले में दर्द होना\n- नाक बहना होना\n- बदन दर्द होना\n- भूख न लगना\n- लेटने के बाद उठने में कमजोरी महसूस करना\n- सिरदर्द होना\n\nReasons: \nवायरल बुखार शरीर के कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) की वजह से होता है। अगर शरीर की प्रतिरक्षण क्षमता या इम्यून सिस्टम मजबूत हो तो यह बीमारी जल्दी नहीं होती। \n\nTreatments:\nवायरल बुखार का उपाय (Treatment of Viral Fever)\n- बुखार अगर 102 डिग्री तक है और कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं।\n- मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। पट्टी रखने के बाद वह गरम हो जाती है इसलिए उसे सिर्फ 1 मिनट तक ही रखें।\n- अगर माथे के साथ - साथ शरीर भी गर्म है तो नॉर्मल पानी में कपड़ा भिगोकर निचोड़ें और उससे पूरे शरीर को पोंछें।\n- मरीज को हर छह घंटे में पैरासिटामॉल (Paracetamol) की एक गोली दे सकते हैं। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें।\n- बच्चों को हर चार घंटे में 10 मिली प्रति किलो वजन के अनुसार दवा दे सकते हैं।\n- दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास ��रूर ले जाएं।\n- साफ - सफाई का पूरा ख्याल रखें। मरीज को वायरल है, तो उससे थोड़ी दूरी बनाए रखें और रोगी के द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें इस्तेमाल न करें।\n- मरीज को पूरा आराम करने दें, खासकर तेज बुखार में। आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है।\n- मरीज छींकने से पहले नाक और मुंह पर रुमाल रखें। इससे वायरल होने पर दूसरों में फैलेगा नहीं।\n- वायरल फीवर में एंटीबॉयटिक दवाओं की कोई भूमिका नहीं होती। वायरल फीवर 5 से 7 दिनों में ठीक हो जाता है। \n- इस रोग का इलाज लक्षणों के आधार पर किया जाता है, रोगी को पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज और इलेक्ट्रोलाइट लेना चाहिए।\n\n\n", + "Disease: खसरा (Measles)\n\nDescription: \nखसरा (Measles), एक अत्यंत संक्रामक बीमारी है। खसरा मीजल्स वायरस (Measles Virus) से फैलता है। इससे ग्रसित रोगी का पहले गला खराब होता है और उसके बाद बुखार आता है।\n\nSymptoms: \n- आंखों में लाली, सूजन, चिपचिपापन, खुजली, पानी निकलना।\n- खांसी और जुकाम होना\n- गले में दर्द रहता है।\n- चार दिन का बुखार, बुखार 40°C(104°F) तक पहुंच सकता है।\n- तीनों सी -खांसी (Cough), बहती हुई नाक (Coryza) और आँख का आना (Conjunctivitis)।\n- बच्चा बार-बार रोता है।\n- शरीर में टूटन, थकान, चिड़चिड़ापन होता है।\n\nReasons: \nअभी तक ज्ञात कारणों के अनुसार मनुष्य के द्वारा ही खसरा एक से दूसरे मनुस्य तक फैलता है। रोगी के कपड़े, बिस्तर, रुमाल आदि इस्तेमाल करने से वायरल फैलने का खतरा बढ़ जाता है।\nखसरा के जोखिम (Risk Factors of Measles or Khasra)\nखसरा में नाक से पानी भी आ सकता है। यदि बीमारी का उचित उपचार न हो, तो फेफड़े में भी इसका संक्रमण हो सकता है। बड़ों में यह संक्रमण वायरल निमोनिया में बदल सकता है। यह दशा रोगी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।\n\nTreatments:\nखसरा से बचाव का सबसे बेहतरीन तरीका है इसके रोगी के संपर्क में ना आना। लेकिन अगर खसरा (Khasra) हो भी जाए तो निम्न उपाय द्वारा इससे बचाव मुमकिन है:\n- प्रभावित बच्चे/रोगी को एकान्त में रखें विशेषकर दाने सूखने व पपड़ी हटने पर।\n- रोज ताजे पानी से, बिना साबुन आराम से नहलाएं, दानों को ज्यादा न रगड़ें।\n- ढीले, सूती, सफेद कपड़े पहनाएं तथा उन्हें रोज बदलें।\n- बुखार की तेजी में सिर पर देशी घी की मालिश व पानी में सूती मोटा कपड़ा भिगोकर रखें।\n- मुख व दांत साफ रखने के लिये गुनगुने पानी में थोड़ी सी लाल दवा (पोटेशियम परमैगनेट) डालकर कुल्ला कराएं।\n- दांतों को अंगुलियों से जोर देकर न साफ कराएं।\n- बिस्तर की सूती चादर को प्रतिदिन बदलें।\n- खाने में सामान्य, हल्का, पचने वाला खाना दें।\n- नमकीन वस्तुएं कम मात्रा में दें, जिससे खुजली न हो।\n- विटामिन युक्त पदार्थ जैसे पालक, गाजर आदि ज्यादा दें।\n- आंखों में सोते समय गुलाब जल डालें। सुबह उठने पर बोरिक पाउडर गुनगुने पानी में डालकर धीमे-धीमे रूई भिगोकर आंखों को धोयें।\n- घर से बाहर न ले जायें, बहुत जरूरी हो तो सूती मोटे कपड़े से ढक कर ही ले जाएं।\n- ध्यान रखे की रोगी का कमरा बहुत ठंडा, गर्म या सीलन वाला न हो।\n- खसरे का अंदेशा होने पर यह आवश्यक है कि किसी योग्य डाक्टर से इलाज कराया जाए। इससे बचने का एकमात्र उपाय बच्चों का टीकाकरण है।\n\n\n", + "Disease: बदहज़मी (Gastric Problem)\n\nDescription: \nपाचनक्रिया के दौरान पेट में गैस का बनना एक सामान्य प्रक्रिया है। शरीर की अन्य प्रक्रियाओं की तरह पेट में गैस का बनना और बाहर निकल जाना भी एक सामान्य प्रक्रिया है।\n\nSymptoms: \n- खट्टी डकारें आना,\n- खाना या खट्टा पानी (एसिड) मुंह में आ जाना,\n- गले से खरखराहट महसूस होना और सांस फूलने की भी शिकायत होना,\n- छाती के निचले भाग में दर्द का महसूस होना और उलटी करने का मन करना,\n- स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाना,\n\nReasons: \n- अनियमित जीवनशैली\n- ज्यादा तनाव\n- ज्यादा तला- भुना भोजन\n- स्मोकिंग, ड्रिंकिंग\n- राजमा, काले चने, सफेद चने, लोबिया, सूखे हरे मटर, पॉपकॉर्न, सूखी मक्कई जैसे अनाज पेट में गैस पैदा कर सकते हैं।\n\nTreatments:\nबदहजमी या गैस्ट्रिक की समस्या से निजात पाने का सबसे अच्छा तरीका है खानपान का ध्यान रखना। डॉक्टरों के अनुसार गैस्ट्रिक से निजात पाने के आसान उपाय निम्न हैं:\n- गैस की बीमारी में उपचार के साथ अपनी जीवनशैली में बदलाव लाकर इससे छुटकारा पाया जा सकता है।\n- गैस्ट्रिक रोगियों को बचाव के लिये कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि रोग ज्यादा न बढ़ पाये।\n- दिन भर में मुख्य आहार 2 बार के स्थान पर 3-4 बार थोड़ी मात्रा में करें।\n- तनाव न लें और जल्दबाजी से बचें, गुस्से पर काबू रखें।\n- व्यायाम और गरम पानी पीने से भी गैस्ट्रिक के रोगियों को आराम मिलता है।  \n\nHome Remedies:\nगैस को चिकित्सीय भाषा में अपच के रूप में जाना जाता है। गैस के लक्षण सूजन, डकार, जलन और मतली हो सकते है। गैस और अपच हमारे पेट में पाचक रस के स्राव से होने वाली समस्याएं हैं। पेट में मौजूद एसिड पेट के अंदर जलन पैदा करना शुरू कर देता है। इसमें व्यक्ति को बेचैनी, सीने और पेट में जलन महसूस होती है।\nगैस की समस्या ज्यादा तैलीय या मसालेदार खाना खाने से होती है, साथ ही यदि पेट खाली है तब भी गैस की समस्या हो सकती है। बहुत ज्यादा चाय या कॉफ़ी पीने वालों को भी गैस की समस्या हो सकती है। गैस की समस्या यदि बढ़ जाए तो समस्या गंभीर हो सकती है इसलिए समय रहते इस पर काबू करना आवश्यक होता है। आइए आपको बताते हैं कुछ घरेलू उपाय जिन्हें अपनाकर आप गैस की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।\n\n\n", + "Disease: गठिया (Gout)\n\nDescription: \nगठिया (Gout) या वातरक्त एक सामान्य रोग है जिसमें रोगी के एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है। इस रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और चुभन जैसी तेज पीड़ा होती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है,जिसका प्रमुख कारण यूरिक एसिड अपचयन (Metabolism) से है।\n\nSymptoms: \n- कभी-कभी पैरों, सिर, टखने, घुटनों, जांघ और जोड़ों में दर्द के साथ-साथ सूजन आना\n- कभी-कभी बुखार की शिकायत\n- किसी अंग का शून्य हो जाना\n- खाया भोजन न पचना\n- जोड़ों को छूने तथा हिलाने में असहनीय दर्द होना\n- शरीर में खून की कमी होजाना आदि गठिया के मुख्य लक्षण हैं\n- शरीर में भारीपन\n\nReasons: \nगठिया रोग को जीवनशैली से जुड़ा रोग माना जाता है। अधिकांश मामलों में इसके मुख्य कारण निम्न होते हैं: \nजीवनशैली (Causes of Gout)\n- 12% रोगियों में गठिया (Gathiya) का मुख्य कारण आहार को माना गया है। शराब , फ्रुक्टोज-युक्त पेय, मांस, मछली के सेवन से गठिया का जोखिम बढ़ता है।\n- चयापचय में आई खराबी\n- मोटापा\nकई रोग भी ऐसे होते हैं जिनकी वजह से गठिया रोग हो जाता है। यह रोग निम्न हैं: \n- गुर्दे की बीमारी\n- मेटाबोलिक सिंड्रोम\n- पॉलीसायथीमिया\n- लेड पॉयजनिंग\n- वृक्कवात\n- हीमोलिटिक एनीमिया\n- सोरायसिस और अंग प्रतिस्थापन (Organ Replacement)\n- मूत्रवर्धक दवाइयां (हाइड्रोक्लोरथायडाइड) का सेवन करने से भी गठिया हो सकता है। \n- नायसिन, एस्पिरिन, साइक्लोस्पोरिन और टेक्रोलिमस आदि दवाइयां भी गठिया रोग का कारण बन सकती हैं। \n\nTreatments:\n- बार-बार पड़ने वाले दौरों (Attack) को रोकने के लिए डॉक्टर की सलाह से यूरिक एसिड कम करने की दवाइयां ले सकते हैं।\n- साथ में दर्द और सूजन कम करने के लिए नॉन-स्टीरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री दवाइयां (NSAIDs), कोलचिसीन और स्टिरॉयड्स भी ले सकते हैं। यह दवाइयां प्रायः 1-2 हफ्ते तक दिये जाते हैं।\n- गठिया के रोगियों को प्रोटीनयुक्त आहार से परहेज करना चाहिए। शरीर में प्रोटीन की कमी को दूर करने के लिए चोकरयुक्त आटे की रोटी तथा छिलके वाली मूंग की दाल खाएं। \n- उबले अनाज, चावल, बाजरा, जौ, गेहूं, चपाती आदि भोजन में सम्मिलित करें।\n- उबली हुई हरी सब्जियां, अंकुरित अनाज, साबूदाना, गिरीदार फल, शहद तथा सभी प्रकार के फल (खट्टे फल एवं केले को छोड़कर) पर्याप्त मात्रा में लें।\n- नियमित टहलें, व्यायाम (क्षमतानुसार) एवं मालिश करें। कब्ज न होने दें। हफ्ते में एक दिन उपवास रखना चाहिए। इससे दर्द में राहत मिलती है।\n\nHome Remedies:\nउम्र बढ़ने पर अक्‍सर लोगों को गठिया की शिकायत होने लगती है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण बॉडी में यूरिक एसिड की अधिकता होना होता है। जब बॉडी में यूरिक एसिड ज्‍यादा हो जाता है तो वह शरीर के जोड़ों में छोटे- छोटे क्रिस्‍टल के रूप में जमा होने लगता है इसी कारण जोड़ों में दर्द और ऐंठन होती है। गठिया को कई स्‍थानों पर आमवत भी कहा जाता है।\n\n\n", + "Disease: पीला बुखार (Yellow Fever)\n\nDescription: \nपीतज्वर या पीला बुखार (Yellow fever) तेजी से होने वाला एक संक्रामक बुखार हैं, जो अचानक शुरू होता है। इस रोग का कारक एक सूक्ष्म विषाणु (Flavivirus) होता है, जिसका संवहन एडीस ईजिप्टिआई (Aedes Aegypti) जाति के मच्छरों द्वारा होता है।\n\nSymptoms: \n- अनिद्रा, काले दस्त, रक्तस्त्राव, पित्तयुक्त मूत्र, रक्तचाप की कमी और नाड़ी की शिथिलता,\n- कमजोरी महसूस होना\n- कॉफी के रंग की मितली आना,\n- घातक अवस्था में मूत्र आना बंद हो जाना।\n- ठंड के साथ बुखार आना,\n- पीलिया हो जाना,\n- शरीर में पीड़ा होना\n- सिर दर्द होना,\n\nReasons: \nपीला बुखार के लक्षण\n- अनिद्रा, काले दस्त, रक्तस्त्राव, पित्तयुक्त मूत्र, रक्तचाप की कमी और नाड़ी की शिथिलता,\n- कमजोरी महसूस होना\n- कॉफी के रंग की मितली आना,\n- घातक अवस्था में मूत्र आना बंद हो जाना।\n- ठंड के साथ बुखार आना,\n- पीलिया हो जाना,\n- शरीर में पीड़ा होना\n- सिर दर्द होना,\n\nTreatments:\nपीतज्वर का एक भी लक्षण नज़र आने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाए। अगर रोगी को तेज बुखार हो और उसका शरीर भी पीला पड़ रहा हो तो बिना समय गंवाएं डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।\n\nHome Remedies:\nयलो फीवर या पीत ज्वर संक्रमण से होने वाली खतरनाक बीमारी है, लेकिन इसके लिए बहुत से इलाज मौजूद हैं जो इस पर काबू पा सकते हैं। पीत ज्वर या पीला बुखार मादा मच्छर के काटने से होता है। पीले बुखार में रोगी का लीवर डैमेज होने या पीलिया होने का खतरा रहता है। साथ ही रोगी को उल्ट��यां भी हो सकती हैं। पीले बुखार से निजात के लिए बहुत से घरेलू नुस्खे भी हैं, जिससे प्राकृतिक तरीके से इसका उपचार किया जा सके।\n1. तुलसी और काली मिर्च (Basil and Black Pepper)\nकाली मिर्च पीले बुखार के इलाज में बहुत कारगर साबित हो रही है। आधा लीटर डिस्टिलड पानी में कुछ तुलसी के पत्ते डालकर उबलने दें। इस पानी में आधा चम्मच काली मिर्च का पाउडर मिलाएं। इस पानी को रंग बदलने तक उबलने दें। यह पानी न केवल पीले बुखार को कम करता है बल्कि आपको तुरंत ऊर्जा भी देता है। इस पानी में तीन चम्मच शहद भी मिलाया जा सकता है। इसे दिन में दो बार पीएं।\n2. प्याज़ (Onion)\nएक कच्चा प्याज लें और दो हिस्सों में काट लें। इसे ओवन में डालकर लगभग 15 मिनट के लिए 400 डिग्री पर सेंक लें। ऐसा करने से प्याज का रस आसानी से निकल जाता है। इस रस में कुछ बूंदे शहद की मिलाएं। इस मित्रण को पीले बुखार से निजात के लिए इस्तेमाल करें।\n3. लहसुन (Garlic)\nबार बार उल्टी होने से डिहाइड्रेशन हो जाता है जिससे शरीर आमतौर पर कमजोर हो जाता है और इससे शरीर की इम्यूनिटी भी घटती है। लहसुन अपने वायरल विरोधी, एंटी बैक्टीरियल और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के लिए जाना जाता है। लहसुन प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के साथ साथ वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण से शरीर की रक्षा करने में सक्रिय भूमिका निभाता है। छह से दस लहसुन की कली लेकर उन्हें कुचल लें। इस लहसुन को आप यूं भी खा सकते हैं या फिर शहद मिलाकर सुबह सुबह खाएं। \n4. नारियल पानी (Coconut Water)\nपीले बुखार में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए नारियल पानी बेहद लाभकारी है। यह शरीर को हाइड्रेट करके अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति करता है। एक दिन में कम से कम तीन से चार बार नारियल पीएं।\n5. गन्ने का रस (Sugarcane Juice)\nडिहाइड्रेशन पीले बुखार का सबसे खतरनाक लक्षण है। ऐसे में गन्ने का रस कमजोर शरीर को स्फूर्ति देता है। गन्ने के रस से निर्जलित शरीर के लिए आवश्यक विटामिन और खनिज की आपूर्ति की जा सकती है। गन्ने का रस शरीर की मांसपेशियों में ग्लूकोज की आपूर्ति करता है। शरीर में आवश्यक प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए दिन में तीन बार गन्ने के रस का इस्तेमाल किया जा सकता है।यह भी पीले बुखार से पीड़ित मरीज की उच्च शरीर के तापमान को कम कर देता है।\n6. जौ का पानी (Barley Water or Jau ka pani)\nजौ एक संपूर्ण अनाज है जिसमें स्वस्थ जीवन शैली के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व है मौज���द हैं। जौ में विटामिन बी 1, बी 2, बी 5, 9 और विटामिन ई होता है। यह पीले बुखार से पीड़ित मरीज की सूजन और शरीर के उच्च तापमान को कम करता है। एक दिन में तीन बार जौ का पानी पीने से पीले बुखार में आराम मिलता है।", + "Disease: पीला बुखार (Yellow Fever)\n7. नींबू और नमक (Lemon and Salt)\nपीले बुखार से पीड़ित व्यक्ति को डिहाइड्रेशन की समस्या हो जाती है। ऐसे में व्यक्ति और ज्यादा थका हुआ लगता है। एक गिलास पानी में नींबू के रस की कुछ बूंदे मिलाकर पीने से भी पीले बुखार में काफी आराम मिलता है। इस नींबू वाले पानी में एक चुटकी नमक भी मिलाएं। यह पानी डिहाइड्रेशन की कमी को पूरा करता है और रोगी को ऊर्जा देता है।\n\n\n", + "Disease: फाइलेरिया (Elephantiasis)\n\nDescription: \nफाइलेरिया रोग, जिसे हाथी पांव या फील पांव भी कहते हैं, (Elephantiasis) में अक्सर हाथ या पैर बहुत ज्यादा सूज जाते हैं। इसके अलावा फाइलेरिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी स्तन आदि या कभी अन्य अंग भी सूज सकते हैं। आम बोलचाल की भाषा में हाथीपांव (HathipaonHathipaon) भी कहा जाता है।\n\nSymptoms: \n- एक या ज़्यादा हाथ व पैरों में (ज़्यादातर पैरों में) सूजन\n- कॅपकॅपी के साथ बुखार आना\n- गले में सूजन आना\n- गुप्तांग एवं जॉघो के बीच गिल्ठी होना तथा दर्द रहना\n- पुरूषों के अंडकोष में सूजन (हाइड्रोसिल) होना\n- पैरों व हाथों की लसिका वाहिकाएं लाल हो जाती हैं\n\nReasons: \n- जिन क्षेत्रों में फाइलेरिया आम बात होती है उन क्षेत्रों में ज्यादा समय तक रहने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ​\n\nTreatments:\nफाइलेरिया से बचाव (Treatment of Elephantiasis)\n- मच्छरों से बचाव फाइलेरिया (Hathipaon) को रोकने का एक प्रमुख उपाय है। क्यूलेक्स मच्छर जिसके कारण फाइलेरिया का संक्रमण फैलता है आम तौर पर शाम और सुबह के वक्त काटता है। \n- किसी ऐसे क्षेत्र में जहां फाइलेरिया फैला हुआ है वहां खुद को मच्छर के काटने से बचाना चाहिए। \n- ऐसे कपड़े पहनें जिनसे पाँव और बांह पूरी तरह से ढक जाएं।\n- आवश्यकता पड़े तो पेर्मेथ्रिन युक्त (पेर्मेथ्रिन एक आम सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशक होता है) कपड़ों का उपयोग करें। बाजार में पेर्मेथ्रिन युक्त कपड़े मिलते हैं।\n- मच्छरों को मारने के लिए कीट स्प्रे का छिड़काव करें।\n- इलाज बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाना चाहिए।\n\nHome Remedies:\nएलीफेंटिटिस यानि श्लीपद ज्वर एक परजीवी के कारण फैलती है जो कि मच्छर के काटने से शरीर के अंदर प्रवेश करता है�� इस बीमारी से मरीज के पैर हाथी के पैरों की तरह फूल जाते हैं। इस रोग के होने से न केवल शारीरिक विकलांगता हो सकती है बल्कि मरीजों की मानसिक और आर्थिक स्थिति भी बिगड़ सकती है। \nएलीफेंटिटिस को लसीका फाइलेरिया भी कहा जाता है क्योंकि फाइलेरिया शरीर की लसिका प्रणाली को प्रभावित करता है। यह रोग मनुष्यों के हाथ- पैरों के साथ ही जननांगों को भी प्रभावित करता है। फाइलेरिया के उपचार के लिए यहां हम आपको कुछ घरेलू और आयुर्वेदिक नुस्खे बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आप निश्चय ही लाभ उठा पाएंगे।\n1. लौंग (Laung or Clove)- लौंग फाइलेरिया के उपचार के लिए बहुत प्रभावी घरेलू नुस्खा है। लौंग में मौजूद एंजाइम परजीवी के पनपते ही उसे खत्म कर देते हैं और बहुत ही प्रभावी तरीके से परजीवी को रक्त से नष्ट कर देते हैं। रोगी लौंग से तैयार चाय का सेवन कर सकते हैं।\n2. काले अखरोट का तेल (Black walnut oil)- काले अखरोट के तेल को एक कप गर्म पानी में तीन से चार बूंदे डालकर पिएं। इस मित्रण को दिन में दो बार पिया जा सकता है। अखरोट के अंदर मौजूद गुणों से खून में मौजूद कीड़ों की संख्या कम होने लगती है और धीरे धीरे एकदम खत्म हो जाती है। जल्द परिणाम के लिए कम से कम छह हफ्ते प्रतिदिन इस उपाय को करें।\n3. भोजन (Food)- फाइलेरिया के इलाज के लिए अपने रोज के खाने में कुछ आहार जैसे लहसुन, अनानास, मीठे आलू, शकरकंदी, गाजर और खुबानी आदि शामिल करें। इनमें विटामिन ए होता है और बैक्टरीरिया को मारने के लिए विशेष गुण भी होते हैं। \n4. आंवला (Amla)- आंवला में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें एन्थेलमिंथिंक (Anthelmintic) भी होता है जो कि घाव को जल्दी भरने में बेहद लाभप्रद है। आंवला को रोज खाने से इंफेक्शन दूर रहता है।\n5. अश्वगंधा (Ashwagandha)- अश्वगंधा शिलाजीत का मुख्य हिस्सा है, जिसके आयुर्वेद में बहुत से उपयोग हैं। अश्वगंधा को फाइलेरिया के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।\n6. ब्राह्मी (Brahmi)- ब्राह्मी पुराने समय से ही बहुत सी बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है। फाइलेरिया के इलाज के लिए ब्राह्मी को पीसकर उसका लेप लगाया जाता है। रोजाना ऐसा करने से रोगी सूजन कम हो जाती है।\n7. अदरक (Ginger)- फाइलेरिया से निजात के लिए सूखे अदरक का पाउडर या सोंठ का रोज गरम पानी से सेवन करें। इसके सेवन से शरीर में मौजूद परजीवी नष्ट होते हैं और मरीज को जल्दी ठीक होने में मदद मिलत��� है। ", + "Disease: फाइलेरिया (Elephantiasis)\n8. शंखपुष्पी (Shankhpushpi)- फाइलेरिया के उपचार के लिए शंखपुष्पी की जड़ को गरम पानी के साथ पीसकर पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाएं। इससे सूजन कम होने में मदद मिलेगी।\n9. कुल्ठी (Kulthi)- कुल्ठी या हॉर्स ग्राम (Horse Gram) में चींटियों द्वारा निकाली गई मिट्टी और अंडे की सफेदी मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। इस लेप को प्रतिदिन प्रभावित स्थान पर लगाएं, सूजन से आराम मिलेगा।\n10. अगर (Agarwood)- अगर को पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार करें। इस लेप को प्रतिदिन 20 मिनट के लिए दिन में दो बार प्रभावित स्थान पर लगाएं। इससे घाव जल्दी भरते हैं और सूजन कम होती है। घाव में मौजूद बैक्टीरिया भी मर जाते हैं।\n11. रॉक साल्ट (Rock Salt)- शंखपुष्पी और सौंठ के पाउडर में रॉक साल्ट मिलाकर, एक एक चुटकी रोज दो बार गरम पानी के साथ लें।\n\n\n", + "Disease: अपच (Indigestion)\n\nDescription: \nखाना इंसान के लिए बेहद जरूरी है। खाने से हमें ताकत मिलती है। इंसान जो खाता है उसे पेट पचाता है। अगर पेट की पाचन क्रिया रुक जाए तो यह गंभीर समस्या का कारण बन जाती है।\n\nSymptoms: \n- अपच होने पर भूख नहीं लगती\n- कभी-कभी रोगी को घबराहट भी हो जाती है\n- खट्टी-खट्टी डकारें आती हैं\n- छाती में तेज़ जलन होती है\n- जी मिचलाता है\n- जीभ पर मैल जम जाना, पेट फूलना आदि भी अजीर्ण रोग के प्रमुख लक्षण हैं\n- नींद भी नहीं आती और कभी-कभी दस्त भी होता है\n- पेट फूल जाता है, जी मिचलाता है और कब्ज की शिकायत हो जाती है\n- पेट में गैस बनना\n- पेट में भारीपन महसूस होता है\n- भोजन हजम नहीं होता\n- मुंह में बार बार पानी भर जाता है तथा पेट में हर समय हल्का-हल्का दर्द होता रहता है\n- रोगी को पसीना अधिक आता है\n- सांस में दुर्गंध निकलना\n\nReasons: \n- अल्सर (Ulcer)\n- गर्ड\n- पेट के कैंसर\n- गैस्ट्रोपॉरेसिस (Gastroparesis यह अक्सर मधुमेह रोगियों में होता है)\n- पेट का संक्रमण \n- चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम\n- पुरानी अग्न्याशयशोथ (Chronic Pancreatitis)\n- थायराइड रोग (Thyroid)\n\nTreatments:\nअपच से बचने का सबसे आसान तरीका है खान-पान संबंधित आदतों पर काबू रखना। इसके अलावा डॉक्टर जिन बातों पर ध्यान देने को कहते हैं वह बातें निम्न हैं:\n- मिर्च, मसाले, गरिष्ठ भोजन, मछली, शराब, अंडा, आदि का सेवन न करें। \n- हरी सब्जियां जैसे - मूली, पालक, मेथी, लौकी, तोर, परवल आदि का सेवन करें। \n- रेशे वाली चीजें अधिक मात्रा में खाएं। \n- चोकर वाले आटे की रोटी खाएं। \n- रात्रि के भोजन के ब��द थोड़ा बहुत जरूर टहलें।\n- धूम्रपान छोड़ दें। \n- मादक पेय पदार्थों से बचें। \n- यदि अजीर्ण पुराना हो तो गेहूं की दलिया, मूंग की दाल, छाछ, पतली रोटी आदि के सिवाय और कुछ न खाएं।  \n- दिन में चार-पांच गिलास पानी जरूर पिएं|  जाड़े की ऋतु में गुनगुना पानी पी सकते हैं। \n- फ्रिज में रखा भोजन, साग-सब्जी, दाल आदि न खाएं। सदैव ताजा तथा पौष्टिक भोजन करें। \n- मन में क्रोध, ईर्ष्या, तनाव, आदि नकारात्मक विचारों को बिलकुल न आने दें। मन के विचारों का सीधा प्रभाव पेट पर पड़ता है। \n\nHome Remedies:\nइनडाइजेशन या अपच की समस्या को चिकित्सीय भाषा में डायसेप्सिया (Dyspepsia) कहा जाता है। अपच की समस्या पेट में भोजन को पचाने वाले रसों के स्त्रवित न होने से होती है। यह समस्या खासकर बहुत तेज मसाले वाला खाना या बहुत तैलीय खाना खाने से होती है। यदि आप भूख से ज्यादा खा लेते हैं तब भी आपको अपच की समस्या हो सकती है। \nअपच के दौरान व्यक्ति को बहुत ज्यादा गैस, उल्टी, पेट में दर्द, सीने या पेट में जलन आदि समस्याएं हो सकती हैं। अपच से राहत के लिए कुछ घरेलू उपाय लाभकारी साबित होते हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही प्रभावी घरेलू नुस्खों के बारे में-\n1. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)\nसेब के सिरके में यूं तो एसिडिक गुण होते हैं लेकिन यह एसिड से राहत देने में भी प्रभावी है। अपच से राहत के लिए एक चम्मच कच्चे और अनफिल्टर्ड सेब के सिरके को एक कप पानी में मिलाएं। इसके बाद इसमें एक चम्मच कच्चा शहद मिलाएं। इस पेय को दिन में दो से तीन बार पीएं। अपच से राहत मिलेगी।\n2. सौंफ (Saunf)\nअपच से बचाव के लिए सौंफ भी बेहद गुणकारी है। बहुत मसालेदार और वसा वाले खाने से होने वाली अपच को बेहद जल्दी ठीक कर देती है। अपच से बचाव के लिए सौंफ के दानों को तवे पर हल्का सा गर्म करें और उसका पाउडर बना लें। पानी के साथ इस पाउडर को दिन में दो बार लें। सौंफ के दानों से तैयार चाय या सौंफ को यूं ही मुंह में डालकर चबाने से भी अपच से राहत मिलती है। साथ ही यह माउथ फ्रेशनर की तरह काम भी करती है।\n3. अदरक (Ginger)\nअदरक में मौजूद पाचन रस और एंजाइम खाने को पचाने में बेहद लाभकारी हैं। अपच से राहत के लिए अदरक के छोटे छाटे टुकड़ों पर नमक डालकर उन्हें यूं ही चबाया जा सकता है। इसके अलावा दो चम्मच अदरक के रस में नींबू का रस, थोड़ा सा काला और थोड़ा सा सफेद नमक मिलाकर बिना पानी के पीने से बेहद राहत मिलती है। ", + "Disease: अपच (Indigestion)\nइसके अलावा अदरक के रस और शहद को गुनगुने पानी के साथ भी लिया जा सकता है। अदरक की चाय भी बेहद लाभकारी होती है। इतना ही नहीं खाना बनाने में अदरक का प्रयोग मसाले के तौर पर करने से भी अदरक बेहद लाभ देता है।\n4. बेकिंग सोडा (Baking Soda)\nअपच से बचने के लिए बेकिंग सोडा सबसे आसान घरेलू उपाय है। आधे गिलास पानी में थोडा़ सा बेकिंग सोडा मिलाकर इस पानी को पीएं। इससे तुरंत राहत मिलती है।\n5. अजवायन (Ajwain)\nअजवायन पेट को दुरूस्त रखने और खाने को पचाने के साथ ही पेट दर्द से भी राहत देती है। सौंठ और अजवायन को मिलाकर पाउडर बनाएं। एक चम्मच पाउडर में काली मिर्च मिलाएं और गर्म पानी के साथ पीएं। इस पेय को दिन में एक या दो बार पी सकते हैं। अजवायन के दानों को मुंह में रखकर चबाने से भी आराम मिलता है।\n6. हर्बल चाय (Herbal Tea)\nपुदीना या कैमोमाइल की हर्बल या ग्रीन टी भी पाचन शक्ति को दुरूस्त रखती है। खाना खाने के बाद एक कप हर्बल टी पीने से खाना जल्दी पचता है और पेट में वसा भी जमा नहीं होती। ऐसे में आपका वजन भी ठीक रहता है। लेकिन खाने के बाद सामान्य चाय या कॉफी से बचना चाहिए। \n7. नमकीन छाछ (Salted Buttermilk)\nखाने के साथ नमकीन छाछ का इस्तेमाल भी आपकी पाचन शक्ति को बढ़ाता है। रात के समय दही की जगह छाछ में काला नमक और भुना हुआ जीरा डालकर पीएं। पेट में जलन से भी राहत मिलेगी। इतना ही नहीं सुबह नाश्ते में और दोपहर के खाने में भी छाछ का इस्तेमाल सर्वोत्तम है। गर्मियों के दिनों में यह पेट के साथ ही पूरे शरीर के लिए भी फायदेमंद है।\n\n\n", + "Disease: घुटनों का दर्द (Knee Pain)\n\nDescription: \nघुटना शरीर का सबसे बड़ा तथा जटिल जोड़ है। यह एक सायनोवियल जोड़ (Sinovial Joint) का उदाहरण हैं। इस जोड़ में मुख्यत चार हड्डियों, लगभग 15 मांसपेशियों के अलावा एक और महत्त्वपूर्ण चीज़ होती है जिसे कारटीलेज (Cartilage) कहते हैं।\n\nSymptoms: \n- घुटने का दर्द बाएं, दाएं या दोनों घुटनों में हो सकता है।\n- घुटने में सूजन हो जाती है और चलते समय घुटने में दर्द होता है।\n- घुटने सख्त हो जाते हैं, उनमें चटखन होती है और कभी-कभी घुटनों में सूजन भी आ जाती है।\n- घुटनों में दर्द होना।\n- मांसपेशियों की कमजोरी तथा जकड़न से जोड़ एक तरफ को झुक जाता है, टांगे टेढ़ी होने लगती हैं व उनका एलाइनमेंट बिगड़ जाता है, जिससे जोड़ों के घिसने की प्रक्रिया काफी तेज हो जाती है तथा रोगी की चाल दर्दभरी तथा बेढंगी हो जाती है।\n- रोगी को बैठने के प���्चात् उठकर खड़े होने में काफी तकलीफ होती है।\n- समय गुजरने के साथ-साथ यह तीव्र तथा भयंकर दर्द का रूप ले लेता है।\n- हवा चलने, ठंड लगने, ठंडी चीजें खाने, जाड़ा, गरमी, बरसात आदि के मौसम में यह रोग बढ़ जाता है।\n\nReasons: \n- अर्थराइटिस- रीयूमेटाइड, आस्टियोअर्थराइटिस और गाउट सहित अथवा संबंधित ऊतक विकार\n- बरसाइटिस- घुटने पर बार-बार दबाव से सूजन (जैसे लंबे समय के लिए घुटने के बल बैठना, घुटने का अधिक उपयोग करना अथवा घुटने में चोट)\n- टेन्टीनाइटिस- आपके घुटने में सामने की ओर दर्द जो सीढ़ियों अथवा चढ़ाव पर चढ़ते और उतरते समय बढ़ जाता है। यह धावकों, स्कॉयर और साइकिल चलाने वालों को होता है।\n- बेकर्स सिस्ट- घुटने के पीछे पानी से भरा सूजन जिसके साथ अर्थराइटिस जैसे अन्य कारणों से सूजन भी हो सकती है। यदि सिस्ट फट जाती है तो आपके घुटने के पीछे का दर्द नीचे आपकी पिंडली तक जा सकता है।\n- घिसा हुआ कारटिलेज घुटने के जोड़ के अंदर की ओर अथवा बाहर की ओर दर्द पैदा कर सकता है। \n- घिसा हुआ लिगामेंट (ए सी एल टियर)- घुटने में दर्द और अस्थायित्व उत्पन्न कर सकता है।\n- नीकैप (Knee Cap) का विस्थापन। \n- झटका लगना अथवा मोच- अचानक अथवा अप्राकृतिक ढंग से मुड़ जाने के कारण लिगामेंट में मामूली चोट। \n- जोड़ में संक्रमण (इंफेक्शन)। \n- घुटने की चोट- आपके घुटने में रक्त स्राव हो सकता है जिससे दर्द अधिक होता है |\n- श्रोणि विकार (Pelvic Disorder)- यह दर्द उत्पन्न कर सकता है जो घुटने में महसूस होता है। उदाहरण के लिए इलियोटिबियल बैंड सिंड्रोम एक ऐसी चोट है जो आपके श्रोणि से आपके घुटने के बाहर तक जाती है।\n- मोटापा, जिसके कारण घुटनों पर अधिक बोझ पड़ता है, जिससे घुटने का कार्टिलेज घिस जाता है। हड्डी के सिरों पर पड़ने वाला अधिक दबाव इस दर्द को और अधिक बढ़ा देता है।\n\nTreatments:\n​​घुटनों के दर्द से निजात पाने का सबसे बेहतर उपाय इससे बचना माना जाता है। डॉक्टरों के अनुसार स्वस्थ जीवनशैली और वजन को नियंत्रण में रखकर इस बीमारी से आसानी से बचा जा सकता है। घुटनों के दर्द से बचाव के कुछ अन्य उपाय निम्न हैं:\n- अपना वजन नियंत्रित रखें। \n- स्विमिंग करना सबसे फायदेमंद है। \n- दौड़ने से ज्यादा चलना अच्छा रहता है। \n- जांघ की मांसपेशियों से संबंधित व्यायाम करें।\n- फल व सब्जियों का भरपूर सेवन करें। इनमें एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं। \n- घुटनों को मोड़कर नहीं बैठन��� चाहिए।  पेट को साफ रखें तथा कब्ज न होने दें। \n- घुटनों के नीचे अथवा बीच में एक तकिया रखकर सोएं।\n- दिन में कम से कम 2 बार बर्फ लगाएं।\n- डॉक्टर से समय-समय पर जांच कराते रहें। \n\nHome Remedies:\nघुटनों के दर्द की सबसे बड़ी वजह है ओवरवेट होना। अगर आपके शरीर का वजन ज्यादा है तो जाहिर है आपका भार सहने में आपके घुटनों को तकलीफ होगी। इसके अलावा फिजिकल एक्टिविटी कम होने, कैल्शियम की कमी होने या अर्थराइटिस (arthritis) होने से भी घुटनों में दर्द रहता है। मांसपेशियों में तनाव रहने या किसी चोट की वजह से भी घुटनों का दर्द आपको परेशान कर सकता है। \nआइए जानें कुछ घरेलू उपाय, जिन्हें अपनाकर आप घुटनों के दर्द से राहत पा सकते हैं।\n1. ठंडा सेक (Cold fomentation)", + "Disease: घुटनों का दर्द (Knee Pain)\nघुटनों के दर्द से राहत के लिए ठंडा सेक दिया जा सकता है। यह सबसे आसान और प्रभावी तरीकों में से एक है। घुटनों को ठंडा सेक देने से यह रक्त वाहिकाओं को कसता है जिससे रक्त प्रवाह कम होता है और सूजन भी घटती है। \nकैसे करें-\nएक पतली तौलिया में बर्फ के टुकड़े लपेट लें। 10 से 20 मिनट के लिए दर्द प्रभावित घुटने के हिस्से को सेकें। आपका दर्द धीरे धीरे दूर हो जाएगा। इस उपाय को रोजाना दो या तीन बार कर सकते हैं।\n2. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)\nसेब का सिरका भी घुटने के दर्द को कम करने में सहायक है। ये घुटने के जोड़ के भीतर खनिज इकठ्ठा करता है और हानिकारक विषाक्त पदार्थों को नष्ट करता है।\nकैसे करें- \nदो कप फ़िल्टर्ड पानी में दो चम्मच सेब का सिरका मिलाएं। दिनभर में यह घोल पीएं। पूरी तरह ठीक होने तक रोजाना इस टॉनिक का सेवन करें।\nबाल्टी में गर्म पानी डालकर उसमें दो कप सेब का सिरका मिलाकर 30 मिनट के लिए पानी में प्रभावित घुटने भिगाकर बैठ जाएं। इससे घुटनों के दर्द में काफी राहत मिलेगी।\nएक चम्मच सेब का सिरका और जैतून के तेल को बराबर भागों में मिलाकर घुटनों की मालिश करें, फायदा होगा।\n3. लाल मिर्च (Red Chilli)\nलाल मिर्च के इस्तेमाल से घुटनों के दर्द में भी राहत मिलती है, इसमें मौजूद केपसाइसिन दर्द निवारक की तरह काम करता है।\nकैसे करें- \nएक से डेढ़ कप तेल में दो बड़े चम्मच लाल मिर्च पाउडर डालकर एक पेस्ट तैयार करें। कम से कम एक सप्ताह तक हर दिन दो बार यह पेस्ट घुटनों पर लगाएं। घुटनों के दर्द से राहत मिलेगी।\nएक कप सेब के सिरके में एक चौथाई या आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर डालकर मित्रण त��यार करें। इस मित्रण को घुटनों पर लगाने से दर्द और सूजन कम हो जाती है। जब तक घुटनों दर्द से राहत न हो तब तक हर दिन इस पेस्ट को 20 मिनट के लिए घुटनों पर लगा सकते हैं। \n4. अदरक (Ginger)\nघुटने का दर्द मांसपेशियों में तनाव की वजह से हो या गठिया के कारण, अदरक दोनों ही स्थिति में बेहद लाभप्रद है। इसमें एंटी़फ्लेमेबल गुण होते हैं जो घुटने की सूजन और दर्द को कम कर देते हैं।\nकैसे करें-\nएक कप पानी में थोड़ा सा अदरक का टुकड़ा लेकर 10 मिनट उबाल लें। इसके बाद इसको ठंडा करके इसमें थोड़ा सा नींबू का रस और शहद मिलाएं। इस घोल को रोज पीएं। आप चाहें तो अदरक के तेल से घुटनों की मालिश भी कर सकते हैं। \n5. हल्दी (Haldi)\nहल्दी घुटने के दर्द को दूर करने के लिए एक प्रभावी और प्राकृतिक उपचार है। हल्दी में मौजूद कुरक्यूमिन एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है और दर्द कम करने में मदद करता है।\nकैसे करें-\nएक कप पानी में अदरक और हल्दी को थोड़ा थोड़ा मिलाकर 10 मिनट के लिए इसे उबाल लें। इसके बाद इसको गुनगुना होने के बाद शहद मिलाएं। दिन में दो बार इसे पीएं।\nएक गिलास दूध में हल्दी डालकर उबालें और उसमें शहद मिलाकर पीएं। इससे भी घुटनों का दर्द ठीक होता है।\nनोट: \n* हल्दी रक्त को पतला करती है, ऐसे में खून पतला (Blood Thinning) करने की दवा लेने वालों के लिए यह ठीक नहीं।\n* शहद को बहुत गरम पानी या दूध में नहीं मिलाना चाहिए।\n6. नींबू (Lemon)\nनींबू भी गठिया की वजह से घुटने के दर्द के लिए एक घरेलू लाभकारी उपाय है। नींबू में पाया जाने वाला साइट्रिक एसिड (citric acid) गठिया में यूरिक एसिड क्रिस्टल को घुलाता है।\nकैसे करें-\nएक नींबू छोटे-छोटे टुकड़ों में काटें। इन टुकड़ों को सूती कपड़े में डालकर गर्म तिल के तेल में डुबाएं। इसके बाद पांच से 10 मिनट के लिए प्रभावित घुटने पर कपड़ा रखें। एक दिन में दो बार ऐसा करने से दर्द पूरी तरह चला जाता है।\nएक गिलास पानी में नींबू निचाड़कर पीने से भी लाभ होता है।\n\n\n", + "Disease: कुष्ठरोग (Leprosy)\n\nDescription: \nकुष्ठरोग (Leprosy) माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium Leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium Lepromatosis) जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी (Chronic Disease) है। यह मुख्य रूप से मानव त्वचा (Skin), ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका (Mucous Membrane of Upper respiratory Track) , परिधीय तंत्रिकाओं (Peripheral Nerves), आंखों और शरीर के कुछ अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करती है। यदि कुष्ठरोग (Kushth Rog) का उचित समय पर उपचार न किया जाये तो यह रोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है।\n\nSymptoms: \n- चेहरे पर, नितंबों पर, शरीर के अन्‍य हिस्‍सों की दूसरी ओर बहुत सारे, नरम एवं जिनकी परिभाषा न बताई जाए ऐसे लाल व स्‍पर्शक्षम या स्‍पर्शहीन धब्‍बे हो जाना।\n- त्‍वचा के रंग तथा गठन में परिवर्तन दिखाई देना ।\n- त्‍वचा पर एक रंगहीन दाग जो थोड़ा या पूरी तरह स्‍पर्शहीन हो या उस दाग पर किसी चुभन का अनुभव नहीं होना।\n- समान्यत त्‍वचा पर पाये जाने वाले पीले या ताम्र रंग के धब्‍बे जो सुन्‍न हों या\n- हाथ और पैरों का सुन्‍न हो जाना।\n\nReasons: \n- माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium lepromatosis) जीवाणु\n\nTreatments:\n- सरकारी अस्पताल द्वारा रिहाइशी इलाकों में मौजूद स्वास्थ केंद्रों में नि:शुल्क इलाज उपलब्ध है। \n- अगर शरीर पर एक से पांच धब्बे हो तो छह माह तक दवाई लेनी चाहिए। \n- 6 से 12 धब्बे हो तो 12 माह या इससे अधिक समत तक दवाई लेने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है। \n\nHome Remedies:\nलेप्रेसी (Leprosy) यानि कुष्ठ रोग से व्यक्ति न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी प्रभावित होता है। कुष्ठ रोगियों के प्रति दूसरे लोगों के असामान्य रवैये से यह रोगी निराश हो जाते हैं। कुष्ठ रोग शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। जिस हिस्से पर भी कुष्ठ रोग का प्रभाव होता है वहां की त्वचा देखने में संकरी सी नजर आती है और वह हिस्सा सामान्य तरह से काम नहीं करता।\nकई बार कुष्ठ रोग से प्रभावित त्वचा सूज जाती है और उस स्थान पर लाल चकत्ते भी पड़ सकते हैं। इसके अलावा प्रभावित हिस्से पर फफोले जैसी त्वचा भी उभर सकती है। कुल मिलाकर कुष्ठ रोगी बेहद परेशानी महसूस करते हैं। कुष्ठ रोग के उपचार के लिए कुछ घरेलू नुस्खे हैं, जिन्हें अपनाकर काफी हद तक कुष्ठ रोग को ठीक किया जा सकता है-\nहल्दी (Turmeric)\nहल्दी में हाइडेकोटायल होता है। हल्दी को पट्टी पर लगाकर प्रभावी स्थान पर बांधा जा सकता है। हल्दी से त्वचा की सूजन, रंजकता आदि कम हो जाती है क्योंकि यह मरहम का काम करती है।\nनीम (Neem)\nनीम की पत्तियों की पीसकर लेप के रूप में प्रयोग करें। नीम में बैक्टीरिया से छुटकारा पाने के लिए उत्तम एंटीसेप्टिक एजेंट होता है। पत्तियों के लेप को एक दिन में कम से कम दो बार प्रभावित स्थान पर लगाएं। बेहतर परिणाम के लिए नीम के पेस्ट में क���ली मिर्च का पाउडर मिलाएं। इसके अलावा नीम के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से नहाने से भी आराम मिलता है।\nएरोमाथेरेपी (Aromatherapy)\nकुष्ठ रोग के इलाज के लिए एरोमाथेरेपी भी ली जा सकती है। इस थेरेपी में विभिन्न गुणकारी तेलों का इस्तेमाल होता है जो कि शरीर के लिए टॉनिक की तरह काम करता है और एंटसेप्टिक एजेंट के रूप में भी शरीर को फायदा पहुंचाते हैं।\nमंडूकपर्णी या गोटू कोला (Gotu kola or Centella Asiatica)\nमंडूकपर्णी या गोटू कोला को प्रयोग बहुत की त्वचा संबंधी बिमारियों से निजात के लिए प्रयोग किया जाता है। शरीर के घाव, जलन आदि के उपचार के लिए भी गोटू कोला का इस्तेमाल होता है। गोटू कोला को सिर दर्द और बुखार के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। गोटू कोला के पत्तों को पानी में तब तक उबालें जब तक पानी आधा न हो जाए। इसके बाद इस पानी को छानकर इसका तीन चौथाई हिस्सा रोजाना दिन में तीन बार पीएं। कुष्ठ रोग में लाभ होगा।\nराइजोम्स (Risomes)\nराइजोम्स में एंटीफंगल गुण होते हैं। राइजोम्स का स्वाद कड़वा और तेज होता है और बहुत तेज महक भी होती है। कच्ची राइजोम्स को कुष्ठ रोग के उपचार के लिए इस्तेमाल करें।\nबाबची (Babchi)", + "Disease: कुष्ठरोग (Leprosy)\nकुष्ठ रोग के इलाज के लिए बाबची सबसे असरकारक जड़ी-बूटी मानी जाती है। बाबची के बीजों का पाउडर बनाकर कुष्ठ रोग के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा बाबची के पत्तों का पेस्ट बनाकर भी प्रभावित स्थान पर लगाने से कुष्ठ रोग में आराम मिलता है। इससे सूजन कम होती है और व्यक्ति का रोग ठीक होने की प्रक्रिया भी तेज होती है।\nव्हीट ग्रास (Wheat Grass)\nव्हीट ग्रास कुष्ठ रोग के इलाज के लिए एक चमत्कारी प्रॉडक्ट है। इसके इस्तेमाल से एक रात में ही रोग में आराम महसूस किया जा सकता है तथा तीन महीने के लगातार इस्तेमाल से लगभग कुष्ठ को ठीक किया जा सकता है। व्हीट ग्रास को पेस्ट बनाकर प्रभावित स्थान पर लगाया जा सकता है।\nकालमोगरा का तेल (Kalmogra Oil)\nयह तेल भी कुष्ठ रोग के इलाज में बेहद लाभकारी है। कालमोगरा के तेल में नींबू की कुछ बूंदे मिलाकर प्रभावित स्थान पर मालिश करने से बेहद लाभ होता है। इसके तेल में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जो कि घाव को तेजी से भरते हैं और बैक्टीरिया को खत्म करते हैं।\n\n\n", + "Disease: अग्नाशयशोथ (Pancreatitis)\n\nDescription: \nअग्न्याशयशोथ (Pancreatitis) अग्न्याशय (Pancreas) में सूजन होना है। अग्न्याशय पेट के पीछे उ��र गुहा में स्थित एक अंग है, अग्न्याशय सामान्य रूप से छोटी आंत में पाचन एंजाइमों को छोड़ता है। अगर यह पाचक एंजाइम छोटी आंत में पहुँचने से पहले ही सक्रिय हो जाते है तो यह अग्न्याशय को नुकसान पहुँचा सकते हैं।\n\nSymptoms: \n- आमतौर पर, ह्रदय की गति और साँसों की दर दोनों बढ़ जाते हैं।\n- पेट (उदर) के ऊपरी हिस्से में तेज दर्द होना\n- बुखार और दस्त\n- मतली और उल्टी\n\nReasons: \nअग्नाशयशोथ के कारण (Pancreatitis Causes)\n- अग्नाशयशोथ अकसर पेट की समस्याओं के कारण होता है। इसके कुछ अहम कारण निम्न हैं: \n- शराब का अधिक सेवन (सबसे आम कारण)\n- पित्त नलिकाओं में बाधाएं\n- सर्जरी \n- कुछ विशेष दवाइयाँ लेना\n- अज्ञात कारण (लगभग 15 % मामलों)\n- ऊंचा रक्त में ट्राइग्लिसराइड के स्तर (hypertriglyceridemia)\n- संक्रमण (बैक्टीरियल, वायरल, फफूंद, या परजीवी)\n- एचआईवी संक्रमण\n- अग्न्याशय की जन्मजात असामान्यता\n- ईआरसीपी की उलझन (इंडोस्कोपिक प्रतिगामी Cholangiopancreatography)\n- आनुवंशिकता\n- एस्ट्रोजेन\n- सल्फोनामाइड्स\n- टेट्रासाइक्लिन\n- थियाजाइड्स\n- अग्नाशय के कैंसर\nहाइपरलिपिडेमिया (रक्त वसा का उच्च स्तर)\nअति कैल्शियम रक्तता (रक्त में कैल्शियम के उच्च सामग्री)\n\nTreatments:\n- अग्नाशयशोथ का उपचार अग्नाशयशोथ (Pancreatitis) की गंभीरता पर निर्भर करता है।\n- साफ-सफाई से रहें। \n- गंदे पानी के संपर्क में आने से बचना होगा।\n- अग्नाशयशोथ के होने का आभस होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाए। \n\n\n", + "Disease: माइग्रेन (Migraine)\n\nDescription: \nमाइग्रेन सर में होने वाले सबसे तेज दर्दों में से एक है। इसकी वजह से सर और कान के पीछे के हिस्से में असहनीय दर्द का अनुभव होता है।\n\nSymptoms: \n- अगर आपका वजन, बगैर कोशिश किये हुये, पिछले 2 महीनों में, 5 किलोग्राम से अधिक घट गया है\n- अगर सिर में दर्द होता है और बार-बार पेशाब आता है तो समझ लें कि आप माईग्रेन से पीडि़त हैं।\n- ऐसा भी पाया गया है कि जब माईग्रेन का दर्द होता है तो व्‍यक्ति को चॉकलेट खाने की प्रबल इच्छा होती है, उसे लगता है कि चॉकलेट खाकर उसके सिर का दर्द ठीक हो जाएगा।\n- दिन भर बेवजह जम्‍हाई आना भी माईग्रेन का लक्षण है।\n- फोटोफोबिया (प्रकाश के प्रति अतिरिक्त संवेदनशीलता),\n- फोनोफोबिया (ध्वनि के प्रति अतिरिक्त संवेदनशीलता),\n- माइग्रेन सिरदर्द से पीड़ित एक तिहाई लोगों को ऑरा (Aura) के माध्यम से इसका पूर्वाभास हो जाता है, ऑरा किसी भी वस्‍तु या व्‍यक्ति के आसपास उसी आकार में रोशनी का दिखना, माईग���रेन का सबसे पहला लक्षण होता है। ऐसा अहसास दर्द के दौरान 5 मिनट से 1 घंटे तक रहता है।\n- माइग्रेन से ग्रस्‍त हैं लोगों में साइनस के लक्षण भी नजर आते हैं। भयंकर सिरदर्द के साथ आंखों से पानी निकलेगा या नाक जाम होगी।\n- माईग्रेन का दर्द होने पर नींद सही से नहीं आती है। थकान महसूस होती है पर नींद नहीं आती।\n- माईग्रेन के दौरान पीड़ित की भावनाएं बहुत तेजी से बदलती हैं। वह कभी ज्‍यादा उग्र और कभी ज्‍यादा शांत हो जाते है।\n- माईग्रेन में दर्द के दौरान आंखों में भी भयानक दर्द होता है। पलकें झपकाने में भी भयानक जलन होती है।\n- सरदर्द के साथ मितली, उल्टी आना,\n- सिर में एक साइड ही दर्द शुरू होता है।\n- सिर में दर्द इतना ज्‍यादा बढ़ जाता है कि गर्दन भी दुखने लगती है।\n\nReasons: \nमाइग्रेन अकसर तनाव के कारण होता है। लेकिन कई अन्य वजहें भी है जिनकी वजह से माइग्रेन हो सकता है जैसे: \nमाइग्रेन होने के संभावित कारण (Causes and Reason of Migraine Pain)\n- तनाव के कारण माइग्रेन का दर्द सबसे ज्यादा होता है।\n- जो लोग दिन - रात काम में लगे रहते है या पढ़ते रहते है, उन्हें माइग्रेन की समस्या सबसे ज्यादा होती है।\n- तेज धूप या ठंडी हवा में भी माइग्रेन का दर्द उठता है।\n- माइग्रेन का दर्द, तापमान बढ़ने, अधिक नमी वाले स्थानों पर ज्यादा जल्दी होता है।\n- हाल ही में हुए कई अध्ययनों में पता चला है कि जो लोग कैफीन की ज्यादा मात्रा लेते है उन्हें भी माइग्रेन की समस्या हो सकती है।\n- लम्बे समय तक तेज म्यूजिक सुनने से भी माइग्रेन का अटैक पड़ जाता है जिससे उठने वाला दर्द 72 घंटे तक होता है।\n- रिएक्टिव हाइपोग्लाइसीमिया (Reactive Hypoglycemia) से भी माइग्रेन की समस्या हो सकती है।\n- एक दिन में नौ घंटे से ज्यादा नींद लेने पर भी माइग्रेन की समस्या हो सकती है।\n- घंटों तक खाली पेट रहने के कारण गैस की समस्या और सिर में दर्द होने लगता है।\n\nTreatments:\n- माइग्रेन का सिरदर्द कम करने के लिए एक सबसे सरल उपचार है अपने सिर पर आइस पैक रखें। आइस पैक मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद करता है और दर्द को कम कर देता है। प्रभावित क्षेत्र, कनपटी और गर्दन पर प्रभावी राहत के लिए आइस पैक को धीरे-धीरे रगड़ें।\n- माइग्रेन (Migraine) में अगर सिर, गर्दन और कंधों की मालिश की जाए तो यह इस दर्द से राहत दिलाने में बहुत मददगार साबित होता है। इसके लिए हल्की खुशबू वाले तेल का प्रयोग किया जा सकता है।\n- एक तौलिये को गर्म पानी में डुबाकर,उस गर्म तौलिये से दर्द वाले हिस्सों की मालिश करें।\n- कुछ लोगों को ठंडे पानी से की गई इसी तरह की मालिश से भी आराम मिलता है। इसके लिए आप बर्फ के टुकड़ों का उपयोग भी कर सकते हैं।\n- माइग्रेन या कलस्टर सिरदर्द अटैक के दौरान लोग अक्सर सेक्स करने से बचते हैं लेकिन हालिया अध्ययन में जर्मनी के शोधकर्ताओं ने पाया कि माइग्रेन से पीड़ित 60 फीसदी और कलस्टर सिरदर्द (सिर के एक तरफ दर्द) से पीड़ित 37 फीसदी लोगों ने स्वीकार किया कि दर्द से राहत पाने में सेक्स ने उनकी मदद की है। यह अध्ययन 'सिफाल्जिया' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.\n\nHome Remedies:", + "Disease: माइग्रेन (Migraine)\nमाइग्रेन भी एक तरह का सिर दर्द है जो कि सिर के किसी एक हिस्से में बहुत तेजी से होता है। व्यक्ति को सिर दर्द होने पर कई बार उल्टी करने जैसा भी महसूस होता है। इस तरह के सिर दर्द में आंखे लाल हो जाती हैं कई बार सूज भी जाती हैं। लेकिन चिंता की बात नहीं है क्योंकि माइग्रेन के लिए बहुत से घरेलू नुस्खे मौजूद हैं जो कि माइग्रेन से दर्द से राहत देने में कारगर हैं। आइए जानते हैं एसे ही घरेलू उत्पादों और उनके प्रभावों के बारे में-\n1- लैवेंडर ऑयल (Lavender Oil)\nलैवेंडर ऑयल सामान्य सिर दर्द और माइग्रेन दर्द के लिए एक उपयोगी घरेलू उपाय है। लैवेंडर तेल की खुशबू माइग्रेन में बेहद प्रभावी होती है। गर्म पानी में कुछ बूंदे लैवेंडर ऑयल की डालकर उसे सूंघने से बेहद आराम मिलता है। लैवेंडर ऑयल का प्रयोग कभी भी मौखिक रूप से नहीं करना चाहिए।\n2- पेपरमिंट तेल (Peppermint Oil)\nपुदीना सिर के तनाव को कम करने में माहिर औषधि है। इसके तेल की तेज महक शरीर में रक्त प्रवाह को नियंत्रित करती है। माइग्रेन या सामान्य सिर दर्द भी अक्सर रक्त प्रवााह के कम होने से होता है ऐसे में पेपरमिंट ऑयल रक्त प्रवाह को कम करके सिर दर्द को ठीक करता है। इस तेल की हल्की मात्रा डायरेक्ट माथे पर लगा सकते हैं। ज्यादा न लगाएं अन्यथा जलन भी महसूस हो सकती है।\n3- तुलसी का तेल (Basil or Tulsi)\nतुलसी के प्राकृतिक गुणों को सभी जानते हैं लकिन आपको बता दें कि तुलसी माइग्रेन में भी बेहद प्रभावी है। तुलसी का तेल का इस्तेमाल माइग्रेन के दर्द में काफी आराम देता है। तुलसी का तेल मांसपेशियों को आराम देता है जिससे सिर का तनाव कम होता है और दर्द से राहत मिलती है।\n4- फिक्स आहार (Dedicated Diet)\nसिर दर्द को कम करने और माइग्रेन के दर्द से राहत के लिए अपने आहार में कुछ करने होंगे। माइग्रेन के दर्द से प्रभावित लोगों को साधारण मक्खन की जगह पीनट बटर यानि मूंगफली से बना मक्खन इस्तेमाल करना चाहिए। एवोकैडो, केला और खट्टे फल आदि का इस्तेमाल करना चाहिए।\n5- सिर की मालिश (Oil Massage)\nसिर के दर्द को कम करने के लिए मालिश भी एक बहुत प्रभावी तरीका है। एक्सपर्ट्स की मानें तो सिर के पीछे के हिस्से की मालिश करने से माइग्रेन से बहुत राहत मिलती है। इसके साथ ही हाथ पैरों की मालिश भी की जानी चाहिए। मालिश करने से भी रक्त संचार तेज होता है।\n6- अदरक (Ginger)\nअदरक सिरदर्द दौरान जी मिचलाने और उल्टी की अनुभूति होने वाले लक्षणों से राहत देता है।इसके साथ ही अदरक से सूजन और दर्द भी कम होते हैं। अदरक में मौजूद एंटी फ्लेमेबल गुण पेरशानी पैदा करने वाले लक्षणों को रोकते हैं। अदरक के छोटे से टुकड़े को धोकर, छीलकर उसे पानी में उबालकर, ठंडज्ञ कर लें। इस पानी में शहद और नींबू की कुछ बूंदें मिलाकर पीने से बेहद लाभ मिलता है।\n7- कॉफ़ी (Coffee)\nकई लोगों को तेज माइग्रेन के दर्द में कॉफी पीने से भी तुरंत राहत हो जाती है। कॉफी में मौजूद कैफीन माइग्रेन टिृगर की तरह काम करता है और एडेनोसाइन के प्रभाव को कम कर देता है। हालांकि बहुत ज्यादा कैफीनयुक्त पदार्थ भी सेहत के लिए नुकसानदायक होते हैं लेकिन एक कप कॉफी आपके स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाती है।\n8- धनिया (Coriander or Dhania)\nधनिया खाने को पचाने और स्वादिष्ट बनाने के लिए बेहरीन मसाले के रूप में जाना जाता है, लेकिन प्राचीन काल से धनिये का प्रयोग माइग्रेन और सिर दर्द की दवा के रूप में भी किया जाता है। माइग्रेन में धनिया के बीजों से तैयार की गई चाय बेह लाभकारी होती है। धनिया के कुछ बीजों को गर्म पानी में 10 मिनट उबालें, उसके बाद इसमें स्वादानुसार चीनी मिलाकर पिएं। धनिया वाली चाय माइग्रेन के दर्द के साथ-साथ सामान्य सिर दर्द में भी लाभकारी है।\n\n\n", + "Disease: निमोनिया (Pneumonia)\n\nDescription: \nकिसी एक बीमारी से हमारे देश में इतनी मौतें नहीं होतीं जितनी निमोनिया (Pneumonia ) से होती हैं। निमोनिया से बचाव और इसका इलाज बेहद सुगम है लेकिन अकसर लोगों के पास इसके जुड़ी जानकारी नहीं होती। जानिए निमोनिया के विषय में सभी बातें।\n\nSymptoms: \n- छोटे या नवजात बच्चों में कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देता है।\n- बच्चे देखने से बीमार लगें तो उन्हें निमोनिया हो सकता है।\n- सर्दी, हाई फीवर, कफ, कंपकपी, शरीर में दर्द, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द।\n\nReasons: \nनिमोनिया के कारण (Pneumonia Causes)\n- बैक्टीरिया\n- वायरस\n- फंगस\n- इसके अतिरिक्त कुछ रसायनों और फेफड़े में लगी चोट के कारण भी निमोनिया होता है।\n\nTreatments:\n- रोगी को एक स्वच्छ कमरे में रखें। इस बात का ध्यान रखे कि रोगी के कमरे में सूर्य का प्रकाश अवश्य आये।\n- शरीर, खासकर छाती और पैरों, को गर्म रखने के लिए कमरे को गर्म रखें तथा रोगी को अच्छी तरह से ढकें।\n- सीने में दर्द और बेचैनी से राहत पाने के लिए, एक चम्मच लहसुन का रस ले सकते हैं ।\n- तुलसी भी निमोनिया में बहुत उपयोगी है। तुलसी के कुछ ताजे पत्तों का रस लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर मिला लें और यह रस हर छह घंटे के अंतराल पर दें ।\n- अधिकांशतः: निमोनिया (Pneumonia) का इलाज, डॉक्टर की देख रेख में, बिना अस्पताल में दाखिल हुए हो सकता है।\n- आमतौर पर, मौखिक एंटीबायोटिक दवाओं, आराम, तरल पेय पदार्थ, और घर पर देखभाल पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए पर्याप्त हैं। \n\nHome Remedies:\nभारत वर्ष में निमोनिया (Pneumonia), किसी अन्य बीमारी के मुकाबले, मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। \nनिमोनिया मूलतः फेफड़ो (Lungs) में संक्रमण होने से होता है। \nपहले से बीमार लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) पहले से ही कमजोर होती है इसलिए स्वस्थ लोगों के मुकाबले उन्हें निमोनिया होने की संभावना अधिक होती है। \nनिमोनिया के घरेलू उपचार (Home Remedies For Pneumonia)\n- हल्दी, काली मिर्च, मेथी और अदरक जैसे प्रतिदिन उपयोग में आने वाले खाद्य प्रदार्थ फेफड़ों के लिए फायदेमंद होते हैं। \n- तिल के बीज भी निमोनिया के उपचार में सहायक होते हैं। 300 मिलीलीटर पानी में 15 ग्राम तिल के बीज, एक चुटकी साधारण नमक, एक चम्मच\n- अलसी और एक चम्मच शहद मिलकर प्रतिदिन उपयोग करने से फेफड़ों से कफ बाहर निकलता है। \n- ताजा अदरक का रस लेने या अदरक को चूसने से भी निमोनिया में आराम मिलता है। \n- थोड़े से गुनगुने पानी के साथ शहद लेना भी लाभदायक रहता है। \n- गर्म तारपीन तेल का और कपूर के मिश्रण से छाती पर मालिश करने से निमोनिया से राहत मिलती है। \n- रोगी का कमरा स्वच्छ, और गर्म होना चाहिए। कमरे में सूर्य की रौशनी अवश्य आनी चाहिये। \n- रोगी के शरीर को गर्म रखें, विशेषकर छाती और पैरों को। \n- तुलसी भी निमोनिया में बहुत उपयोगी है। तुलसी के कुछ ताजे पत्तों का रस, एक चुट���ी काली मिर्च में मिलकर रख लें और हर छ घंटे के बाद दें। \n\n\n", + "Disease: एनोरेक्सिया (Anorexia)\n\nDescription: \nभूख न लगने को मेडिकल भाषा में एनोरेक्सिया (Anorexia) या अरुचि रोग कहते हैं। एनोरेक्सिया (Anorexia) या अरुचि रोग में रोगी को भूख नहीं लगती, यदि जबरदस्ती भोजन किया भी जाय तो वह अरुचिकर लगता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति 1 या 2 ग्रास से ज्यादा नहीं खा पाता और उसे बिना कुछ खाये -पिये ही खट्टी डकारें आने लगती हैं।\n\nSymptoms: \n- कम खाने पर भी पेट भरा प्रतीत होना\n- किसी कार्य को करने की इच्छा नहीं होना\n- खाना खाने की इच्छा न होना\n- खून की कमी होना\n- चेहरा कांतिहीन एवं काला पड़ जाना\n- ज्यादा प्यास लगना\n- थोडी सा काम करने पर थकान होना\n- मानसिक अशांति से ग्रस्त होना\n- मुँह में गरमी एवं मुँह से बदबू आना\n- शरीर के वजन में दिन-ब-दिन कमी होते जाना\n- सूखी डकारें आना\n- हृदय के समीप लगातार जलन होना\n\nReasons: \nएनोरेक्सिया के शारीरिक कारणों (Physical Reason of Hunger Disorder): \n- पाचन तंत्र में गड़बड़ी होने के कारण जीभ में किसी भी प्रकार का स्वाद न होना\n- बुखार होना, विषम ज्वर (मलेरिया) के बाद\n- जिगर तथा आमाशय की खराबी\n- पेट साफ न रहना यानी कब्ज होना\n- अनियमित ढंग से आहार करना\n- देर तक जागना, सुबह देर से उठना\n- भोजन का स्वादिष्ट न होना\n- भूख कम करने वाले आहार का सेवन\n- चाय-कॉफी का अधिक सेवन करना, आदि\n\nTreatments:\n- गेहूं के चोकर में सेंधा नमक और अजवायन मिलाकर रोटी बनाकर खाने से भूख तेज होती है।\n- एक सेब या सेब के रस के प्रतिदिन सेवन से खून साफ होता है और भूख भी लगती है।\n- एक गिलास पानी में जीरा, हींग, पुदीना, कालीमिर्च और नमक डालकर पीने से अरुचि दूर होती है।\n- प्रतिदिन मेथी में छौंकी गई दाल या सब्ज़ी के सेवन से भूख बढ़ती है।\n- नींबू को काटकर इसमें सेंधा नमक डालकर भोजन से पहले चूसने से कब्ज दूर होकर पाचनक्रिया तेज हो जाती है।\n\nHome Remedies:\nभोजन में अरुचि को एनोरेक्सिया (Anorexia Nervosa) भी कहते हैं। कई लोगों को अपने वजन और फिटनेस की इतनी चिंता हो जाती है कि वो हार्श डायटिंग करने लगते हैं और फिर शुरु हो जाती है एनोरेक्सिया की बीमारी। इसमें शरीर का वजन काफी कम हो जाता है। शरीर में हड्डी और मांसपेशियों पर की जमी वसा लगातार भूखे रहने से जलने लगती है और शरीर में सिर्फ हड्डी का ढ़ांचा ही शेष रह जाता है।\nएनोरेक्सिया की बीमारी खासकर मॉडलिंग और फैशन इंडस्ट्री में काम कर रही कम उम्र की लड़कियों में ज��यादा होता है, क्योंकि उन्हें स्मार्ट और फिट दिखने के लिए 'जीरो फीगर' जैसी काया बनानी पड़ती है। लेकिन बाद में यही जीरो फीगर उनके लिए जानलेवा बन जाती है।\nएनोरेक्सिया बीमारी के बाद न आपको भूख लगती है और न ही किसी चीज में रुचि। इस बीमारी के बाद आप खुद को भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और शारीरिक रुप से इतना असुरक्षित महसूस करने लगते हैं कि आपमें खुदकुशी करने तक की भावना प्रबल हो जाती है।\nएनोरेक्सिया का यदि सही समय पर इलाज नहीं हो तो इसके काफी गंभीर परिणाम होते हैं, मसलन- हार्ट की बीमारी, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन, जानलेवा एनीमिया, किडनी खराब होने से जान तक जा सकती है। अक्सर कई लोगों को पता ही नहीं चलता है कि उन्हें एनोरेक्सिया की बीमारी है। अगर यह पता चल जाए तो कई घरेलू उपचार और मनौवैज्ञानिक उपचार से इसका इलाज संभव है। खासकर घरेलू उपचार से मरीजों में खाने के प्रति रुचि तो पैदा की ही जाती है।\nएनोरेक्सिया के घरेलू उपचार (Home Remedies for Anorexia)\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन भूख जगाने की सबसे कारगर घरेलू उपाय है। इसे खाने के बाद एक खास तरह के एंजाइम का स्राव होता है जो भूख जगाता है और पाचन क्रिया को मजबूत करता है। रोज सुबह कच्चे लहसुन के तीन और चार दाने एक कप पानी के साथ खा लें। अगर कच्चा लहसुन खाने में कड़वा लगता है तो उसे उबाल कर उसमें नमक और नींबू के रस मिला कर भी खा सकते हैं।\nअदरक (Ginger)\nभूख जगाने के लिए आप आधा चम्मच कटे हुए अदरक काला नमक के साथ खाना खाने से आधा घंटे पहले खाएं, काफी काम करेगा। इसे इस्तेमाल करें। आप खाने को ना नहीं कर सकते हैं इसे लेने के बाद। आप अदरक के चाय का भी सेवन कर सकती हैं।\nसंतरा (Orange)", + "Disease: एनोरेक्सिया (Anorexia)\nसंतरों में भी भूख जगाने की क्षमता होती है। संतरा न सिर्फ आपके पाचन तंत्र को ठीक करता है बल्कि इससे कब्ज भी दूर होता है। इसे जब मन करे चार-छह फांक छीलकर खाते रहें। इसे काले नमक, नींबू के रस के साथ भी खा सकती हैं या फिर जूस भी पी सकते हैं।\nमिंट (Mint)\nमिंट भूख लगाने की कुदरती दवा है। एनोरेक्सिया के इलाज में इसे आजमाया जा सकता है। इसके स्वाद और खास सुगंध के कारण भूख की इच्छा जगती है। इसे खाने से डिप्रेशन और तनाव भी कम होगी। दो चम्मच मिंट के पत्ते से निकाले जूस रोज सुबह पीएं या फिर मिंट से बनी चाय भी पी सकती हैं।\nलेमन बाम (Lemon Balm)\nयह नर्व टॉनिक की तरह काम करता है और इ��से भूख भी लगती है। इसे खाने से तनाव कम होता है और नींद भी अच्छी आती है। एक चम्मच लेमन बाम की सूखी पत्तियों को एक कप गर्म पानी में डालें और इसे थोड़ी देर ढ़ंक दें। ठंढा होने पर इसे चाय की तरह पीएं। काफी काम करेगा।\nहर्बल चाय (Herbal Tea)\nहर्बल चाय या ग्रीन टी और कई तरह के जड़ी-बूटियों को मिला कर बनी चाय पीने से भूख जगती है। तनाव और डिप्रेशन कम होती है। एनोरेक्सिया में हर्बल टी पीने की सलाह दी जाती है।\nमसाज (Massage)\nमसाज थेरेपी सिर्फ तनाव और डिप्रेशन ही नहीं दूर करती है बल्कि इससे भूख भी लगती है। मेडिकल जर्नल में एनोरेक्सिया के इलाज में मसाज थेरेपी को भी मेडीसिन के रुप में शामिल किया गया है। किसी स्पा में जाकर हर्बल मसाज ट्रेंड मसाजर से लें, काफी फायदा करेगा।\nयोग (Yoga)\nएनोरेक्सिया बीमारी से पैदा हुई भावनात्मक असुरक्षा को दूर भगाता है योग। योग में ऐसे कई आसन हैं खासकर- कपोतआसन(कबूतर के समान), शलभआसन। इसे करने से आप बहुत जल्द ठीक हो सकती हैं।\nएक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर (Acupuncture and Acupressure)\nएक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर दोनों की मदद से एनोरेक्सिया से लड़ी जा सकती है। इसे आजमाने से आपको अच्छा अनुभव होगा और रिलैक्स महसूस करेंगे। किसी खास नर्व पर एक्यूपंक्चर या एक्यूप्रेशर करने से भूख भी लगने लगती है।\nध्यान (Meditation)\nमन की अशांति एनोरेक्सिया का खास लक्षण है। इसे भगाने के लिए सुबह-शाम ध्यान करें। मन और आत्मा को शांति मिलेगी और मन में सकारात्मक विचार आएंगे।\nऔर भी हैं कई टिप्स (Some more tips)\nनियमित रुप में ग्रुप थेरेपी में शामिल हो।\nअपना एक डाइट प्लान बनाएं और इस पर अमल करें, इससे भागे नहीं।\nसुबह निश्चित रुप से नाश्ता करें, इसे अपनी आदत में शामिल करें।\nहरी सब्जियों और हरे साग के सूप बना कर पीएं।\nभूख जगाने के लिए मसालेदार भोजन खाना शुरु करें।\n\n\n", + "Disease: दर्द (Pain)\n\nDescription: \nदर्द या पीड़ा (About Pain in Hindi)\n\nReasons: \nदर्द के कई कारण होते हैं जैसे चोट लगना, पूरानी बीमारी आदि। दर्द (dard) के कुछ विशेष कारण निम्न हैं: \n- कैंसर\n- कान में संक्रमण\n- अचानक बीमारी\n- मांसपेशी की चोट\n- जलना\n- पुराना दर्द पूर्व की किसी चोट या शारीरिक नुकसान में भी होता है\n\nTreatments:\n​दर्द होने पर सबसे आसान उपाय लोग दर्द निवारक लेना समझते हैं। कई बार दर्द निवारक भी पूर्ण रूप से दर्द खत्म नहीं कर पाता। दर्द की स्थिति में कुछ निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं।\n- दर्द ��े निदान एवं उपचार (Diagnosis and Treatment) का उद्देश्य रोगी की कार्यप्रणाली में सुधार करना है जिससे वे अपने दैनिक काम कर सकें।\n- चोट या जोड़ों के दर्द में राहत के लिए ठंडा या गर्म सेंक करना आसान उपाय माना जाता है।\n- ठंडा सेंक - बर्फ हमारे शरीर की रक्त वाहिकाओं को सिकोड़ देती है। जिससे हमें दर्द व जलन से हमें छुटकारा मिलने के साथ ही चोट ठीक हो जाती है। ठंडा सेंक केवल ताजा चोट के समय ही करना चाहिए। यदि चोट लगे 6-7 घंटे हो चुके हैं तो ठंडे सेंक से बचना चाहिए। लील पड़ने से रोकने व जोड़ों में खून को इकट्ठा होने से रोकने के लिए ठंडा सेंक किया जाता है।\n- गर्म सेंक - गर्मी से नसों में रक्त प्रवाह तेज हो जाता है जिससे अकड़ी हुई मांसपेशियां ढीली होने लगती हैं और दर्द में आराम मिलता है।\n- गर्म पानी का सेंक बहुत अधिक सर्दी के मौसम में करना फायदेमंद होता है। गर्मी के मौसम में गर्म सेंक नहीं करना चाहिए। सर्दी के मौसम में जोड़ों पर स्थित नसें सिकुड़ने लगती हैं। ऐसे में गर्म पानी के सेंक से दर्द पैदा करने वाले ऊत्तक और नसें खुल जाती हैं।\n- गंभीर चोटों में गर्म सेंक न लें। यह चोट में हो रही जलन को और बढ़ा सकता है। ऐसे में उस चोट को ठीक होने में ज्यादा समय भी लग सकता है\n\nHome Remedies:\nदर्द से निजात पाने के लिए हमेशा पेन किलर दवा खाना ठीक नहीं हैं। पेन किलर दवाओं के स्ट्रिप पर भी लिखा होता है कि इसके ओवरडोज सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं। दर्द निवारक दवाओं के ओवरडोज से लीवर और किडनी पर बुरा असर पड़ता है और अधिक सेवन से लीवर और किडनी खराब हो सकती है।\nदर्द में ज्यादातर प्रयास करना चाहिए कि हम कुदरती और घरेलू उपाय से ही इसे कम करें। दर्द से निजात के लिए कुदरत में ऐसी नायाब जड़ी-बूटी और औषधियां है जो दर्द को न सिर्फ कम करती है बल्कि जड़ से ही खत्म कर देती हैं।\nदर्द के घरेलू इलाज (Home Remedies for Pain)\nकमर दर्द (Pain in Waist)\nरात में 60 ग्राम गेंहू के दाने पानी में भिगो दें। सुबह में भीगे हुए गेंहू के साथ 30 ग्राम खसखस तथा 30 ग्राम धनिया मिलाकर बारीक पीस लें। इस चटनी के दूध में पका ले और खीर बना लें। इस खीर को लगातार दो महीने तक खाने से कमर दर्द का नाश हो जाता है। केवल खसखस औऱ मिश्री को बराबर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें और इसे रोज खाएं, कमर दर्द गायब हो जाएगी।\nकमर दर्द में तारपीन के तेल की मालिश भी बहुत लाभदायक होती है।\nकमर दर्द और गठि��ा में नित्य सुबह अखरोट की गिरियों को अच्छी तरह चबाकर खाने से भी काफी लाभ होता है।\nघुटनों का दर्द (Knee Pain)\nसुबह के समय मेथीदाना का बारीक चूर्ण एक या दो चम्मच पानी के साथ लें, घुटनों का दर्द खत्म हो जाएगा।\nमछली के तेल (क़ॉड लीवर ऑयल) भी घुटनों के दर्द में काफी असरदार है।\nसुबह भूखे पेट अखरोट की गिरियां खाएं। दर्द से निजात मिलेगा।\nघुटनों का दर्द, जोड़ों का दर्द हड्डियों को घिसने के काण होती है। इसमें विजयसार की लकड़ी के विधिवत इस्तेमाल से काफी आराम मिलता है।\nएक कच्चा लहसुन खाली पेट पानी के साथ खाएं, दर्द से निजात मिलेगा।\nअश्वगंधा और सौंठ को कूटकर इसके चूर्ण को खाएं, काफी आराम मिलेगा।\nगठिया (Arthritis Pain)\nबथुआ साग के ताजा पत्तों का रस 15 ग्राम प्रतिदिन पीने से गठिया दूर होता है। इस रस में नमक-चीनी आदि कुछ न मिलाएं। सुबह खाली पेट लें और शाम में भी।\nबथुआ का साग बना के भी खा सकते हैं और इसके पराठे भी बना कर खा सकते हैं।\nनागौरी असगंध की जड और खांड दोनों लगभग बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर कपड़े से छान कर बारीक चूर्ण बना लें । इसे सुबह-शाम गर्म दूध के साथ खाएं। गठिये के दर्द से राहत मिलेगी।", + "Disease: दर्द (Pain)\nकच्चे लहसुन का सेवन करें।\nबारीक असगंधा का चूर्ण दो भाग, सौंठ का चूर्ण एक भाग और पिसी हुई मिश्री तीन भाग मिला कर रख लें। इसे दो चम्मच सुबह-शाम गर्म दूध या पानी के साथ खाएं, दर्द गायब हो जाएगा।\nहर प्रकार के बदन का दर्द (All type of Pain)\nलहसुन की चार कलियां छीलकर तीस ग्राम सरसों के तेल में डाल दें। उसमें थोड़ी अजवायन मिला कर धीमी आंच पर पकाएं। लहसुन और अजवायन काली पड़ने पर तेल उतार कर थोड़ा ठंढा कर छान लें। इस हल्के गर्म तेल की मालिश से हर प्रकार का बदन दर्द छू-मंतर हो जाता है।\nलगभग 10 ग्राम कपूर और 200 ग्राम सरसों का तेल- दोनों को शीशी में मिला कर कार्क से बंद कर दें। शीशी को धूप में रख दें। जब दोनों मिलकर एकरस हो जाएं तब इस तेल की मालिश से वात विकार, नसों का दर्द, पीठ और कमर का दर्द, हिप-शूल, मांसपेशियों का दर्द समेत बदन के सभी तरह के दर्द से छुटकारा मिल जाता है।\nपेट दर्द (Abdominal Pain)\nअजवायन का चूर्ण छह भाग और काला नमक (पिसा हुआ) एक भाग लेकर मिला लें। इसमें से दो ग्राम गर्म पानी के साथ लें तो पेट दर्द में तुरंत आराम मिलेगा।\nअमृतधारा की दो-तीन बूंदे बताशे या खांड के पानी में डालकर पीने से पेट दर्द खत्म होता है।\nदो-तीन चम्मच ठंढे पानी में दो-तीन बूंद अमृतधारा सुबह-शाम भोजन के बाद लेने से दस्त, आंव, मरोड़ और पेचिश के दर्द में आराम मिलता है।\nगले का दर्द (Pain in Throat)\nफूली फिटकरी दो ग्राम (आधा चम्मच) 250 मिली पानी में डाल कर दिन में दो-तीन बार गरारा करें। इससे गले की सूजन औऱ दर्द दूर होती है। यह संभव नहीं है तो केवल नमक और एख ग्लास गर्म पानी में डाल कर गरारे करने से भी दर्द कम होती है।\nदांत का दर्द (Pain in Teeth and Gum)\nसरसों के तेल की कुछ बूंदों में एक चुटकी सैंधा नमक के साथ एक चुटकी पिसी हुई हल्दी मिला ली जाए और गाढ़ा लेप (पेस्ट) बनाकर दांतो व मसूड़ों की मालिश रोजाना सबुह-शाम की जाए तो दांतो के दर्द के साथ कई तकलीफें दूर हो जाएंगी।\nभीतरी चोट या हड्डी टूटने पर दर्द (Internal Pain and Inflamation)\n200 ग्राम उबलते हुए दूध में आधा चम्मच हल्दी मिला कर दो-तीन बार उबाल दें। इस हल्दी और दूध के गुनगुने मिश्रण को पीने से चोट का दर्द व सूजन कम होती है।\nयदि किसी जगह चोट के कारण सूजन हो या दर्द हो तो वहां पिसा हुआ सेंधा नमक या साधारण नमक की पोटली को गर्म कर सेंकने से सूजन और दर्द कम होती है।\nजहां चोट लगी है, मोच आई है या सूजन है वहां हल्दी का चूर्ण और चूना मिला कर लगा दिया जाए तो फौरन दर्द ठीक हो जाती है और सूजन भी कम हो जाती है।\n\n\n", + "Disease: अनिद्रा (Insomnia)\n\nDescription: \nअच्छी नींद अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रुरी भी है। ऐसा कहा जाता है \"If you cannot sleep, you cannot heal\", यानि अगर आप सोएंगे नहीं तो आप सही नहीं हो पाएंगे। नींद शरीर के लिए आराम करने का सबसे बेहतरीन तरीका है। आइएं समझें अपनी नींद को करीब से।\n\nReasons: \nअनिद्रा की मुख्य वजह टेंशन और तनाव को माना जाता है। लेकिन अनिद्रा के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं जो शारीरिक या मानसिक या दोनों तरह के हो सकते हैं। आइयें जानें अनिद्रा की कुछ खास वजहों को: \n\nTreatments:\nनींद आने की समस्या से निजात पाने के लिए अकसर लोग नींद की गोलियों का सेवन करते हैं जो सही चीज नहीं मानी जाती। नींद ना आने (Sleep Disorder) की एक मुख्य वजह तनाव भी हो सकता है। अच्छी नींद पाने के लिए कुछ उपाय निम्न हैं:\n- शारीरिक परिश्रम शरीर को थकाता है और आराम की जरूरत बढ़ाता है। अतः नियमित खेलकूद या टहलना हमारे लिए लाभदायक है, इससे शरीर चुस्त रहता है और थकान होने के कारण नींद अच्छी आती है।\n- बिस्तर एवं शयन कक्ष आरामदायक हो, बहुत ठंडा या गरम न हो। इस बात का ध्यान रखें कि गद्दा आपके लिए उपयुक्त हो। \n- सोने से पहले धीमा संगीत भी शरीर को आराम देता है और सोने में मदद देता है। \n- सोते समय सिर के नीचे छोटा तकिया रखें। एक तकिया अपने घुटनों के नीचे और दूसरा अपने घुटने और जांघ के बीच रखें। इससे शरीर का वजन निचले हिस्से की ओर आएगा और आप आराम से सो सकेंगे।\n- सोने से एक घंटा पहले कमरे की लाइट हल्की कर लें।\n- सोते समय अच्छी और सकारात्मक बातें सोचें।\n- रात में सोने से पहले दूध पिएं, जिससे अच्छी नींद आएगी। चाय-कॉफी की मात्रा को सीमित करें और दिन भर में दो-तीन बार से ज्यादा इनका सेवन न करें।\n- समय पर सोने और जागने की आदत डालें।\n- अच्छे दोस्त बनाएं। अकेलेपन से दूर रहें।\n- यदि कोई चीज़ आपको परेशान कर रही है और आप उसके बारे में सही तरीके से नहीं सोच पा रहे हों तो अपनी समस्या को सोने से पहले कागज़ पर लिख लें और स्वयं से कहें कि कल आप इस समस्या से निपटेंगे। \n- अगर आप सो नहीं पाते हैं तो उठ जाएं और कुछ ऐसा करें जिससे आपको हल्का महसूस हो, जैसे – पढ़ना, टीवी देखना या हल्का संगीत सुनना और जब आप थकान महसूस करें तो फिर से सोने जाएं। \n\nHome Remedies:\nअगर सोना आपके लिए जरुरी काम बन जाए तो समझिए कुछ गड़बड़ी है। अनिदा आम कामकाजी भारतीयों की शिकायत बनती जा रही है। इंसोमेनिया कोई बीमारी नहीं बल्कि खराब जीवनशैली से उत्पन्न हुई नींद संबंधी समस्या है। इंसोमेंनिया अगर लंबे समय तक रहे तो यह गंभीर बीमारी का रुप ले सकती है।\nडॉक्टर कहते हैं कि बेहतर स्वास्थ्य और जिंदगी के लिए एक आम इंसान को 7 से 8 घंटे अवश्य सोना चाहिए। लेकिन नौकर-धंधे का प्रेशर, व्यस्त दिनचर्या और आगे भागने की होड़ में हम नींद को ही भूल जाते हैं। बाद में जब नींद काफी सताने लगती है तो हम स्लीपिंग पिल्स (Sleeping Pills) लेने लगते हैं। लेकिन स्लीपिंग पिल्स लेने से बेहतर है कि हम कुछ ऐसे आसान घरेलू इलाज करें जिससे शरीर की थकावट दूर हो और हमें बेहतर नींद मिल सके।\nअनिदा को भगाने के घरेलू इलाज (Home Remedies for Insomenia)\nहरी साग और सब्जी ज्यादा मात्रा में खाएं (Eat green vegetables more)\nहरी साग और सब्जी शरीर के लिए ही नहीं नींद के लिए भी जरुरी है। खासकर जिन सागों के पत्ते बड़े हों और उसमें लिसलिसापन हो तो यह नींद आने में काफी मदद करता है। पोरो और पालक के साग नियमित रुप से खाएं, इससे बेहतर नींद आएगी।\nमैग्नीशियम और कैल्शियम (Magnesium and calcium)\nमैग्नीशियम और कैल्शियम दोनों को ही नींद बढ़���ने वाली केमिकल कही जाती है। जब यह दोनों साथ में ली जाए तो और असरदार होती है। मैग्नीशियम खाने से दिल की बीमारी का खतरा भी कम हो जाता है। रात में 200 Mg मैग्नीशियम(ज्यादा मात्रा न लें, डायरिया हो सकता है) और 600 mg कैल्शियम निश्चित रुप से खाएं, बेहतर नींद आएगी।\nजंगली सलाद पत्ता या काहू (Wild Lettuce)", + "Disease: अनिद्रा (Insomnia)\nअगर आपको टेशन, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द की शिकायत रहती होगी तो आप जंगली सलाद पत्ता को जरुर जानते होंगें। यह शरीर की थकावट, डिप्रेशन और अनिदा में भी काफी असरदार होती है। सोने से पहले इसे पैरों में 30 से 120 मिली ग्राम लगा लें, थकावट गायब हो जाएगी और चैन की नींद आ जाएगी।\nहॉप्स (Hops)\nयह एक प्रकार का जंगली पौधा है जिसके फल का उपयोग शराब (बीयर) बनाने के काम में आता है। अनिदा, टेंशन और डिप्रेथन के मरीजों को इसके फल का रस पिलाई जाती है ताकि उन्हें आराम की नींद आ सके।\nएरोमाथेरेपी (Aromatherapy)\nसुगंध का मस्तिष्क से गहरा संबध है। बहुत सारे लोग अपने बेड पर तकिए के नीचे चमेली के फूल रख कर सोते हैं। कई लोग अपने बालकनी में रजनीगंधा या इसी तरह के सुगंधित फूलों के पौधे लगा कर रखते हैं ताकि इसके सुगंध से रात में बेहतर नींद आ सके। लेवेंडर के फूल भी काफी असरदार होते हैं अनिदा के मरीजों के लिए। तकिए के नीचे इसके फूल रख देने से सुगंध पूरे कमरे में फैल जाती है और नींद बेहतर आती है।\nयोग और ध्यान (Yoga or meditation)\nयोग और ध्यान को नियमित अभ्यास में लाएं। योग में ज्यादा कठिन आसन नहीं करने हैं, साधारण आसन जिससे मन को शांति मिले वही करें। बेड पर जाने, पहले 5 से 10 मिनट ध्यान करें। ध्यान के दौरान कहीं भटके नहीं और मन को सिर्फ अपनी सांस पर एकाग्र करें। रात में बेहतर नींद आएगी।\nएल- थियानीन (L-theanine)\nग्रीन टी में एल –थियानिन नामक एमीनो एसिड पाई जाती है। इसे दिन में पीने से चुस्ती और ताजगी छाई रहती है मन में और रात में पीने से गहरी नींद आती है।\n\n\n", + "Disease: हर्निया (Hernia)\n\nDescription: \nहर्निया (Hernia) में पेट की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और उसी कमजोर जगह से आंतें बाहर निकल आती हैं। यह समस्या पुरुषों व महिलाओं दोनों में हो सकती है, किन्तु पुरुषों में अधिक पाई जाती है। अधिकाँश मामलों में पुरुषों में हर्निया कमर के भाग में होता है। यह कमर की मांसपेशियों में कमज़ोरी आने पर होता है।\n\nSymptoms: \n- किसी भारी वस्तु के उठाने पर पेट में सूजन का उभर आना,\n- पेट की चर्बी या आँतों का बाहर की ओर निकलना,\n- पेट के निचले भाग में उभार या सूजन महसूस होना\n- पेट में फुलावट, दर्द और भारीपन,\n- मल-मूत्र त्यागने में परेशानी\n- लंबे समय तक खड़े रहने या बैठने में दर्द महसूस होना,\n\nReasons: \n- पैदाइशी तौर पर\n- बढ़ती उम्र\n- चोट लगना\n- पुराना ऑपरेशन\n- भारी वजन उठाना\n- पुरानी खाँसी\n- मोटापा (Obesity)\n- कब्ज\n- पेशाब में रुकावट\n- गर्भावस्था\n- पेट की मांसपेशियों की कमजोरी\n- पेट की मांसपेशियों में विकार\n- आनुवंशिकता (Hereditiary)\n\nTreatments:\nहर्निया का इलाज (Treatment of Hernia)\n- हर्निया का एकमात्र सफल और कारगर उपाय ओपन और लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के रूप में उपलब्ध है।\n- 90 प्रतिशत मामलों में हर्निया दोबारा नहीं होता, लेकिन दस प्रतिशत लोगों में ऑपरेशन के बाद फिर से हर्निया की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसलिए डॉक्टर के निर्देशानुसार सावधानी बरतें और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से मुलाकात करने में न हिचकें।\n\nHome Remedies:\nपेट की मांसपेशिया या कहें पेट की दीवार कमजोर हो जाने से जब आंत बाहर निकल आती है तो उसे हर्निया कहते हैं। वहां एक उभार हो जाता है, जिसे आसानी से देखा जा सकता है। लंबे समय से खांसते रहने या लगातार भारी सामान उठाने से भी पेट की मांसपेशिया कमजोर हो जाती है। ऐसी स्थिति में हर्निया की संभावना बढ़ जाती है। इसके कोई खास लक्षण नहीं होते हैं लेकिन कुछ लोग सूजन और दर्द का अनुभव करते हैं, जो खड़े होने पर और मांसपेशियों में खिंचाव होने या कुछ भारी सामान उठाने पर बढ़ सकता है।\nहर्निया की समस्या जन्मजात भी हो सकती है। इसे कॉनजेनाइटल हर्निया कहते हैं। हर्निया एक वक्त के बाद किसी को भी हो सकता है और बिना सर्जरी के ठीक भी नहीं हो सकता। इसमें पेट की त्वचा के नीचे एक असामान्य उभार आ जाता है, जो नाभि के नीचे होता है। आंत का एक हिस्सा पेट की मांसपेशियों के एक कमजोर हिस्से से बाहर आ जाता है। इसके अलावा इंगुइंल हर्निया, फेमोरल हर्निया, एपिगास्त्रिक हर्निया, एम्ब्लाइकल हर्निया भी होता है, जो बहुत कम दिखता है।\nहर्निया के घरेलू इलाज (Home Remedies for Hernia)\nअगर हर्निया बड़ी हो, उसमें सूजन हो और काफी दर्द हो रहा हो तो बिना सर्जरी के इसका इलाज संभव नहीं है। लोकिन हर्निया के लक्षण पता लगने पर आप उसे घरेलू इलाज से कम कर सकते हैं। हालांकि, इन घरेलू उपायों से सिर्फ प्राथमिक इलाज ही संभव है और इसे आजमाने पर कभी उल्टे प���िणाम भी हो सकते हैं। इसलिए घरेलू इलाज आजमाने से पहले डॉक्टर से जरुर संपर्क कर लें।\nमुलैठी (Licorice)\nकफ, खांसी में मुलैठी तो रामबाण की तरह काम करता है और आजमाय हुआ भी है। हर्निया के इलाज में भी अब यह कारगर साबित होने लगा है, खासकर पेट में जब हर्निया निकलने के बाद रेखाएं पड़ जाती है तब इसे आजमाएं।\nअदरक के जड़ (Ginger Root)\nअदरक की जड़ पेट में गैस्ट्रिक एसिड और बाइल जूस से हुए नुकसान से सुरक्षा करता है। यह हर्निया से हुए दर्द में भी काम करता है।\nबबूने का फूल (Chamomile)\nपेट में हर्निया आने से एसिडिटी और गैस काफी बनने लगती है। इस स्थिति मेंम बबूने के फूल के सेवन से काफी आराम मिलता है। यह पाचन तंत्र को ठीक करता है और एसिड बनने की प्रक्रिया को कम करता है।\nमार्श मैलो (Marshmallow)\nयह एक जंगली औषधि है जो काफी मीठी होती है। इसके जड़ के काफी औषधीय गुण हैं। यह पाचन को ठीक करता है और पेट-आंत में एसिड बनने की प्रक्रिया को कम करता है। हर्निया में भी यह काफी आराम पहुंचाता है।\nहावथोर्निया (Hawthornia)\nयह एक हर्बल सप्लीमेंट है जो पेट की मांसपेशियों को मजबूत बनाती है और पेट के अंदर के अंगों की सुरक्षा करती है। यह हर्निया को निकलने से रोकने में काफी कारगर है। हावथोर्निया में Citrus Seed, Hawthorn और Fennel मिली होती है।", + "Disease: हर्निया (Hernia)\nएक्यूपंक्चर (Acupuncture)\nहर्निया के दर्द में एक्यूपंक्चर काफी आराम पहुंचाता है। खास नर्व पर दबाव से हर्निया का दर्द कम होता है।\nबर्फ (Ice)\nबर्फ से हर्निया वाले जगह दबाने पर काफी आराम मिलता है और सूजन भी कम होती है। यह सबसे ज्यादा प्रचलन में है।\nहर्निया में इन चीजों को नहीं करें (Don’ts in Hernia)\nप्रभावित जगह को कभी भी गर्म कपड़े या किसी भी गर्म पदार्थ से सेंक नहीं दें।\nहर्निया में कसरत करने से परहेज करें।\nहर्निया में ज्यादा तंग और टाइट कपड़ें नहीं पहनें।\nबेड पर अपने तकिए को 6 इंच उपर रखें, ताकि पेट में सोते समय एसिड और गैस नहीं बन पाए।\nएक ही बार ज्यादा मत खाएं, थोड़ी-थोड़ी देर पर हल्का भोजन लें।\nखाने के तुरंत बाद झुकें नहीं।\nशराब पीना पूरी तरह बंद कर दें।\n\n\n", + "Disease: स्पोंडिलोसिस (Spondylosis)\n\nDescription: \nस्पोंडिलोसिस या स्पॉन्डिलाइटिस, आर्थराइटिस का ही एक रूप है। यह समस्या मुख्यत: मेरु दंड (Spine) को प्रभावित करती है।\n\nSymptoms: \n- अगर स्पाइनल कोर्ड दब गई है तो ब्लेडर (Bladder) या बाउल (Bowl) पर नियंत्रण खत्म हो सकता है।\n- इस रोग का दर्द हाथ की ���ंगलियों से सिर तक हो सकता है।\n- उंगलियां सुन्न हो जाती हैं।\n- कंधे, कमर के निचले हिस्से और पैरों के ऊपरी हिस्से में कमजोरी और कड़ापन आ जाता है।\n- कभी-कभी छाती में दर्द हो सकता है।\n- कशेरुकाओं (Vertebra) के बीच की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है।\n- गर्दन से कंधों और वहां से होता हुआ यह दर्द हाथों, सिर के निचले हिस्से और पीठ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच सकता है।\n- छींकना, खांसना और गर्दन की दूसरी गतिविधियां इन लक्षणों को और गंभीर बना सकती हैं।\n- दर्द के अलावा संवेदन शून्यता और कमजोरी महसूस हो सकती है।\n- शारीरिक संतुलन गड़बड़ा सकता है।\n- सबसे पहले दिखाई देने वाले लक्षणों में से एक गर्दन या पीठ में दर्द और उनका कड़ा हो जाना है।\n- समय बीतने के साथ दर्द का गंभीर हो जाना।\n- स्पोंडिलोसिस की समस्या होने पर यह सिर्फ जोड़ो तक ही सीमित नहीं रहती। समस्या गंभीर होने पर बुखार, थकान, उल्टी होना, चक्कर आना और भूख की कमी जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।\n\nReasons: \n- आनुवंशिक कारण\n- उम्र का बढ़ना\n- भोजन में पोषक तत्वों, कैल्शियम और विटामिन डी की कमी के कारण हड्डियों का कमजोर हो जाना\n- बैठने या खड़े रहने का गलत तरीका\n- लंबे समय तक ड्राइविंग करना\n- शारीरिक श्रम का अभाव\n- मसालेदार ठंडी या बासी चीजों को खाना\n- विलासिता पूर्ण जीवनशैली\n- महिलाओं में लगातार माहवारी का असंतुलन\n- उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों में क्षय या विकार पैदा होना\n- अक्सर फ्रैक्चर के बाद भी हड्डियों में क्षय की स्थिति होने लगती है।\n\nTreatments:\nस्पोंडिलोसिस का इलाज (Treatment of Spondylosis)\n- जीवनशैली में बदलाव लाएं।\n- पौष्टिक भोजन खाएं, विशेषकर ऐसा भोजन जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो।\n- चाय और कैफीन का सेवन कम करें।\n- पैदल चलने की कोशिश करें। इससे बोन मास (Bone Mass) बढ़ता है। शारीरिक रूप से सक्रिय (Active) रहें।\n- नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।\n- हमेशा आरामदायक बिस्तर पर सोएं। इस बात का ध्यान रखें कि बिस्तर न तो बहुत सख्त हो और न ही बहुत नर्म।\n- स्पोंडिलोसिस से पीड़ित लोग गर्दन के नीचे बड़ा तकिया न रखें। उन्हें पैरों के नीचे भी तकिया नहीं रखना चाहिए।\n- ऐसी मेज और कुर्सी का प्रयोग करें, जिन पर आपको झुक कर न बैठना पड़े। हमेशा कमर सीधी करके बैठें। \n- धूम्रपान न करें और तंबाकू न चबाएं।\n\nHome Remedies:\nसर्वाइकल स्पांडलाइसिस (Cervical Spondolysis) उम्र बढ़ने के साथ गर्दन के जोड़ की हड्डी-उपा��्थि के घिसने के कारण होती है। यह गर्दन के हड्डी के डिस्क पलटने, लिगामेंट में फ्रैक्चर से भी हो सकता है। इसमें काफी असहनीय दर्द और पीड़ा होती है। गर्दन काफी भारी और कड़ा महसूस होने लगती है। कंधे से लेकर गर्दन और सिर तक में दर्द होती है।\nबांहों की मांसपेशियों से लेकर हाथों की उंगलियों तक में दर्द की संवेदनशीलता महसूस की जाती है। 60 के बाद यह किसी को भी हो सकता है। हालांकि खराब जीवनशैली, बैठने-खड़ा होने के गलत पोस्चर और अनुवांशिक कारणों से यह कभी भी अटैक कर सकता है। आइए जानते हैं स्पांडलाइसिस से लड़ने के घरेलू इलाज।\nनियमित व्यायाम (Regular Exercise)\nअगर आप नियमित रुप से गर्दन और बांह की कसरत करते रहें तो स्पांडलाइसिस के दर्द से आऱाम मिलेगा। अपने सिर को दाएं-बांए और उपर-नीचे घुमाते रहें। अपने गर्दन को दाएं और बांए कंधे पर बारी-बारी से झुकाएं। दस मिनट तक यह व्यायाम रोजाना 2 से 3 बार करें। काफी आराम मिलेगा। आप हल्के एरोबिक्स जैसे स्वीमिंग भी आधे घंटे तक रोज कर सकते हैं, इससे गर्दन की स्पांडलाइसिस में आराम मिलेगा।\nगर्म और ठंडे पानी की पट्टी (Hot and cold compress)", + "Disease: स्पोंडिलोसिस (Spondylosis)\nगर्दन के प्रभावित क्षेत्र जहां दर्द हो और कड़ापन महसूस होता हो वहां पहले गर्म पानी और बाद में ठंडे पानी की पट्टी से दबाव डालें। गर्म पानी की पट्टी से ब्लड सर्कुलेशन तेज होगा और मांसपेशियों का खिंचाव कम होगा और दर्द से राहत मिलेगी। ठंडे पानी का पट्टी से सूजन कम होगा। गर्म पानी की पट्टी 2 से 3 मिनट तक रखें और ठंडे पानी की पट्टी 1 मिनट। इसे 15 मिनट पर दोबारा करें।\nसेंधा नमक की पट्टी या स्नान (Epsom salt bath)\nनियमित रुप से सेंधा नमक की पट्टी या इससे स्नान करने से स्पांडलाइसिस के दर्द में काफी आराम मिलता है। सेंधा नमक में मैग्नीशियम की मात्रा ज्यादा होने से यह शरीर के पीएच स्तर को नियंत्रित करता है और गर्दन की अकड़ और कड़ेपन को कम करता है। आधे ग्लास पानी में दो चम्मच सेंधा नमक मिला कर पेस्ट बना लें और उसे गर्दन के प्रभावित क्षेत्र में लगाएं, थोड़ी देर के बाद काफी राहत मिलेगी। या गुनगुने पानी में दो कप सेंधा नमक डाल कर रोजाना स्नान करें, काफी फायदा मिलेगा।\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन में दर्द निवारक गुण होता है और यह सूजन को भी कम करता है। सुबह खाली पेट पानी के साथ कच्चा लहसुन नियमित खाएं, काफी फायदा होगा। तेल में लहसुन को पका ���र गर्दन में मालिश भी किया जा सकता है, इससे दर्द में काफी राहत मिलेगी।\nहल्दी (Turmeric)\nहल्दी असहनीय दर्द को चूसने में सबसे कारगर साबित हुई है। इतना ही नहीं यह मांसपेशियों के खिचांव को भी ठीक करता है। एक ग्लास गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी डाल कर पीएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।\nतिल के बीज (Sesame Seeds)\nतिल में कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, विटामिन के और डी काफी मात्रा में पाई जाती है जो हमारे हड्डी और मांसपेशियों के सेहत के लिए काफी जरुरी है। स्पांडलाइसिस के दर्द में भी तिल काफी कारगर है। तिल के गर्म तेल से गर्दन की हल्की मालिश 5 से 10 मिनट तक करें, फिर वहां गर्म पानी की पट्टी डालें, काफी आराम मिलेगा और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।\nऔर भी हैं कई टिप्स (Some more tips)\nसुबह शाम भोजन के बाद थोड़ी मात्रा में हरीताकी खाएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ कम होगी।\nशारीरिक श्रम कम करें या इससे परहेज ही कर लें। भारी सामान एकदम नहीं उठाएं\nरात में चैन की नींद सोने का प्रयास करें।\nहमेशा हल्के और मुलायम तकिए पर सोएं, तकिए को बदलें नहीं। \nसही पोस्चर में बैठे और खड़ा रहें।\nतला-भुना और मसालेदार खानों से परहेज करें।\nसलाद और हरी सब्जी का सेवन ज्यादा करें।\nशराब और धूम्रपान को बाय-बाय करें।\nप्रोटीन, विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस जिसमें ज्यादा हो वैसे ही भोजन करें।\nसर्वाइकल कॉलर गर्दन में लगा कर ऑफिस या दुकान जाएं।\n\n\n", + "Disease: लीवर कैंसर (Liver Cancer)\n\nDescription: \nलीवर कैंसर (Liver Cancer)\n\nSymptoms: \n- अचानक से वजन में कमी आना।\n- असामान्य थकान महसूस होन।\n- पीठ के ऊपरी हिस्से में, दायें कंधे के जोड़ (शोल्डर ब्लेड) के आसपास पीड़ा होना।\n- पीलिया होना।\n- पेट (Abdomen) के ऊपरी दाएँ हिस्से में असहजता का अहसास (Uncomfortable Feeling) होना।\n- पेट के दाएँ हिस्से में, पंजर (Rib Cage) के नीचे एक कठोर गांठ का महसूस होना।\n- पेट में सूजन होना।\n- भूख की कमी और/या मितली आना।\n\nReasons: \n- ज्यादा व लगातार शराब पीना,\n- विशेष रूप से हैपेटाइटिस बी और डी के साथ वायरल हैपेटाइटिस,\n- परजीवी (Parasite) द्वारा संक्रमण जैसे लीवर फ्लूक,\n- चिरकालिक हैपेटाइटिस बी इंफ़ेक्शन,\n- चिरकालिक हैपेटाइटिस सी इंफ़ेक्शन,\n- हैपेटाइटिस बी और लीवर कैंसर दोनों का पारिवारिक इतिहास होना,\n- लीवर का सिरोसिस (Cirrhosis),\n- स्थूलता (Obesity),\n\nTreatments:\nकैंसर पाए जाने के बाद लोग अकसर परेशान हो जाते हैं। कैंसर के नि���ान और उपचार के दौरान एवं उसके बाद व्यावहारिक और भावनात्मक सहायता बहुत महत्वपूर्ण होती है।\n\nHome Remedies:\nभारत में जिन बीमारियों से सर्वाधिक मौतें हो रही हैं उसमें लीवर कैंसर का पांचवा स्थान है। आंकड़े बताते हैं कि दस में से दो लोग लीवर की बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। लीवर कैंसर को हेपाटोसेलुलर कारसिनोमा (hepatocellular carcinoma) कहा जाता है।\nचालीस के बाद अगर जीवन शैली में सेहत की चिंता करते हुए बदलाव नहीं किया जाता है तो लीवर की बीमारी 60 के बाद गंभीर हो जाती है। क्रॉनिक हेपाटाइटिस सी और जॉंडिस में लीवर कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है। प्रारंभिक अवस्था में ऐसे कोई खास लक्षण नहीं हैं जिससे लीवर कैंसर की पहचान की जा सके।\nहालांकि, पेट की उपरी और बांए भाग में अगर दर्द हो, पेट असमान्य ढंग से फूला हो, लीवर बड़ा हो गया हो, भूख नहीं लग रही हो, वजन कम हो रहा हो, उल्टी आ रही हो, आंख और त्वचा का रंग काफी पीला हो गया हो तो ये लीवर कैंसर के संकेत हो सकते हैं।\nलीवर कैंसर जांच में पता चल जाने के बाद अगर वो प्रारंभिक अवस्था में हैं तो घरेलू उपचार से उसे नियंत्रित किया जा सकता है, मगर अगर मर्ज पुरानी है तो घरेलू उपचार से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता है। परहेज और पथ्य से ही लीवर को सेहतमंद बनाया जाता है। डाइट या खान-पान ही इसके घरेलू उपचार हैं। आइए जानते हैं लीवर को सेहतमंद बनाने के घरेलू उपचार।\nलीवर कैंसर के घरेलू उपचार (Home Remedies for Liver Cancer)\nडाइट या खान-पान की आदत (Diet and Food Habbit)\nलीवर को स्वच्छ और शुद्ध पानी की जरुरत होती है। पानी लीवर को साफ और सेहतमंद रखता है। पानी खूब पीएं। रेड मीट और अल्कोहल लीवर का दुश्मन है इससे तौबा करें। ज्यादा कैलोरी वाले भोजन करें , क्योंकि लीवर कैंसर में भूख कम लगती है, इसलिए जब खाने का मन करे तो जिस भोजन में कैलोरी की मात्रा ज्यादा हो वही खाएं। लीवर कैंसर के मरीजों की डाइट में फल, सब्जी के साथ लहसुन, मौसमी, ग्रीन टी, एवाकाडो, हल्दी, अखरोट, पपीता समेत ऐसे सभी फल और सब्जी शामिल हो जो लीवर को सेहतमंद बनाती है।\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन में काफी मात्रा में सल्फर कंपाउड पाया जाता है जो लीवर एंजाइम को सक्रिय करता है और शरीर से विषैले रस और पदार्थ को निकालने का काम करता है। यह लीवर को बचाने का काम करता है। रोज सुबह खाली पेट पानी के साथ अगर लहसुन खाया जाए तो यह लीवर के लिए काफी सेहतमंद होता है।\nमौसमी (Grapefruit)\nमौ��मी में काफी मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। यह लीवर को साफ करता है। इसमें लीवर को साफ करने वाले एंजाइम होते हैं जो लीवर को विषैले पदार्थ से सुरक्षा करते हैं। इसमें एक खास केमिसल कंपाउड Flavonoid पाया जाता है जो लीवर में फैट जमा नहीं होने देता है और इसे जलाता रहता है।\nग्रीन टी (Green Tea)\nग्रीन टी में एक खास एंटी ऑक्सीडेंट Catechins पाया जाता है जो लीवर में फैट जमा नहीं होने देता है और इससे लीवर सही ढंग से काम करता रहता है।\nएवाकाडो (Avocado)", + "Disease: लीवर कैंसर (Liver Cancer)\nएवाकाडो में केमिकल कंपाउंड Glutathione काफी मात्रा में पाया जाता है जो लीवर को सेहतमंद बनाती है और विषाक्त चीजों से सुरक्षा करती है। एक मेडिकल रिसर्च में बताया गया है कि लगातार 30 दिनों तक एक एवाकाडो खाने से फैटी और बीमार लीवर ठीक हो जाती है।\nहल्दी (Tumeric)\nलीवर के सेहत के लिए हल्दी का सेवन बहुत जरुरी है। यह न सिर्फ लीवर की विषाक्त चीजों से सुरक्षा करती है बल्कि लीवर की नष्ट हुई कोशिकाओं का निर्माण भी करती है।\nकाली तुलसी (Black Tulsi)\nकाली तुलसी के सेवन से लीवर कैंसर के वृद्धि रुक जाती है। आयुर्वेद में लीवर कैंसर की चिकित्सा में काली तुलसी की विशेष चर्चा की गई है। काली तुलसी के 30 पत्तों को दही में मथकर बनाए गए मठ्ठे के साथ पी जाएं। सुबह-शाम इसे आजमाने से बेहतर परिणाम आते हैं।\n\n\n", + "Disease: कमर दर्द (Back Pain)\n\nDescription: \nस्लिप डिस्क या कमर दर्द (Back Pain) कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह एक तरह से शरीर की यांत्रिक असफलता (Mechanical Failure) है। कमर दर्द के सबसे महत्त्वपूर्ण कारण रीढ़ से या मेरुदंड (Spinal Cord) से जुड़े होते हैं। स्पाइनल कॉर्ड या रीढ़ की हड्डी स्पाइन वर्टिब्रा (Vertebrae) से मिलकर बनती है जिस पर शरीर का पूरा वजन टिका होता है। यह सिर के निचले हिस्से से शुरू होकर टेल बोन (Tail Bone) तक होती है। हमारी रीढ़ की हड्डी में हर दो वर्टिब्रा (Vertebrae) के बीच में एक डिस्क होती है जो झटका सहने का यानि शाक एब्जार्वर (Shock Absorber) का काम करती है। आगे-पीछे, दायें-बायें घूमने से डिस्क का फैलाव होता है। गलत तरीके से काम करने, पढ़ने, उठने-बैठने या झुकने से डिस्क पर लगातार जोर पड़ता है। इससे मेरुदंड की नसों (Nerves) पर दबाव आ जाता है जो कमर में लगातार होने वाले दर्द का कारण बनता है। इस डिस्क के घिस जाने से इसमें सूजन आ जाती है, और यह उभरकर बाहर निकल आती है। इसके बाद यह रीढ़ की हड्डी से पैरों तक जाने वाली नसों पर दबाव डालती है। नसें दबने के कारण यह दर्द पैरों तक भी जा सकता है। इसमें पैर सुन्न हो जाने का खतरा रहता है। दर्द इतना कष्टदायक होता है कि मरीज अपने दैनिक कार्य करने तक में असमर्थ हो जाता है। कमर दर्द ( Peeth Ka Dard) अब लोगों के लिए एक कष्टदायक समस्या बनी हुई है। आज हर उम्र के लोग इससे परेशान हैं और दुनिया भर में इसके सरल व सहज इलाज की खोज जारी है। दिनभर बैठे कर काम करने से यह समस्या और भी बढ़ जाती है। कमर दर्द अगर नीचे की तरफ बढ़ने लगे और तेज हो जाए, तो जल्द से जल्द डॉक्टर को दिखाएं। कभी-कभी दर्द कुछ मिनट ही होता है और कभी-कभी यह घंटों तक रहता है। 30 से 50 वर्ष की आयुवर्ग के लोग इसकी चपेट में अधिक आते हैं। वे महिला और पुरुष इसके अधिक शिकार होते हैं, जिन्हें अपने काम की वजह से बार-बार उठना, बैठना, झुकना या सामान उतारना, रखना होता है।\n\nSymptoms: \n- चलने-फिरने, झुकने या सामान्य काम करने में भी दर्द का अनुभव होना, झुकने या खांसने पर शरीर में करंट सा अनुभव होना।\n- नसों पर दबाव के कारण कमर दर्द, पैरों में दर्द या पैरों, एडी या पैर की अंगुलियों का सुन्न होना,\n- पैर के अंगूठे या पंजे में कमजोरी,\n- रीढ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द,\n- समस्या बढने पर पेशाब और मल त्यागने में परेशानी,\n- स्पाइनल कॉर्ड के बीच में दबाव पडने से कई बार हिप या थाईज के आसपास सुन्न महसूस करना,\n\nReasons: \n- गलत पोश्चर (Posture),\n- लेटकर या झुककर पढ़ना या काम करना,\n- कंप्यूटर के आगे बैठे रहना,\n- अचानक झुकना,\n- वजन उठाना,\n- झटका लगना,\n- गलत तरीके से उठना-बैठना,\n- अनियमित दिनचर्या,\n- सुस्त जीवनशैली,\n- शारीरिक गतिविधियां कम होना,\n- गिरना,\n- फिसलना,\n- दुर्घटना में चोट लगना,\n- देर तक ड्राइविंग करना,\n- उम्र बढने के साथ-साथ हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और इससे डिस्क पर जोर पड़ने लगता है,\n- कमर की हड्डियों या रीढ़ की हड्डी में जन्मजात विकृति या संक्रमण,\n- पैरों में कोई जन्मजात खराबी या बाद में कोई विकार पैदा होना।\n\nTreatments:\n- कमर दर्द के ज्यादातर मरीजों को आराम करने और फिजियोथेरेपी से राहत मिल जाती है। \n- स्लिप डिस्क या कमर दर्द की समस्या होने पर दो से तीन हफ्ते तक पूरा आराम करना चाहिए। \n- दर्द कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दर्द-निवारक दवाएं, मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाली दवाएं लें। \n- जीवनशैली बदलें। \n- वजन नियंत्रित रखें। वजन बढ़ने और खासतौर पर पेट के आसपास चर्बी बढ़ने से रीढ़ की हड्���ी पर सीधा प्रभाव पड़ता है। \n- नियमित रूप से पैदल चलें। यह सर्वोत्तम व्यायाम है। \n- शारीरिक श्रम से जी न चुराएं। शारीरिक श्रम से मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं। \n- अधिक समय तक स्टूल या कुर्सी पर झुककर न बैठें। कुर्सी पर बैठते समय पैर सीधे रखें न कि एक पर एक चढ़ाकर। \n- अचानक झटके के साथ न उठें-बैठें। एक सी मुद्रा में न तो अधिक देर तक बैठे रहें और न ही खड़े रहें। ", + "Disease: कमर दर्द (Back Pain)\n- किसी भी सामान को उठाने या रखने में जल्दबाजी न करें। भारी सामान को उठाकर रखने की बजाय धकेल कर रखना चाहिए। जमीन से कोई सामान उठाना हो तो झुकें नहीं, बल्कि किसी छोटे स्टूल पर बैठें या घुटनों के बल नीचे बैठें और सामान उठाएं। \n- कमर झुका कर काम न करें। अपनी पीठ को हमेशा सीधा रखें। \n- ऊँची एड़ी के जूते-चप्पल के बजाय साधारण जूते-चप्पल पहनें। \n- सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते समय सावधानी बरतें। \n- यदि कहीं पर अधिक समय तक खड़ा रहना हो तो अपनी स्थिति को बदलते रहें। \n- दायें-बायें या पीछे देखने के लिए गर्दन को ज्यादा घुमाने के बजाय शरीर को घुमाएं। \n- देर तक ड्राइविंग करनी हो तो गर्दन और पीठ के लिए तकिया रखें। ड्राइविंग सीट को कुछ आगे की ओर रखें, ताकि पीठ सीधी रहे। \n- अधिक ऊँचा या मोटा तकिया न लगाएँ। साधारण तकिए का इस्तेमाल बेहतर होता है। \n- अत्यधिक मुलायम और सख्त गद्दे पर न सोएं। स्प्रिंगदार गद्दों या ढीले निवाड़ वाले पलंग पर सोने से भी बचें। \n- पेट के बल या उलटे होकर न सोएं। \n- परंपरागत तरीकों से आराम न पहुंचे तो सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। लेकिन सर्जरी होगी या नहीं, यह निर्णय पूरी तरह विशेषज्ञ का होता है। \n\nHome Remedies:\nकमर की मांसपेशियों का असंतुलित होना ही कमर दर्द का कारण होता है। कमर दर्द सही तरह से न उठने-बैठने, सोने या कमर पर क्षमता से अधिक दबाव पड़ने से होता है। लगभग 80 % लोग कभी न कभी कमर दर्द से परेशान होते हैं। कमर दर्द नया भी हो सकता है और पुराना भी हो सकता है। सतही तौर पर देखने पर कमर में होने वाला दर्द भले ही एक सामान्य सी स्थिति लगती है, लेकिन इसे नज़रअंदाज करने से समस्या काफी बढ़ सकती है।\nजानिए कमर दर्द दूर करने के घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Back Pain):\n1. घुटने मोड़ें (Band knee)- नीचे रखी कोई वस्तु उठाते वक्त पहले अपने घुटने मोड़ें फिर उस वस्तु को उठाएं। ऐसा करने से कमर पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा और कम तकलीफ होगी।\n2. लहसुन (Garlic)- भोजन में लह���ुन का पर्याप्त उपयोग करें। लहसुन कमर दर्द का अच्छा उपचार माना गया है। लहसुन के प्रयोग से पुराने से पुराना कमर दर्द भी ठीक होने लगता है।\n3. गूगुल (Benzoin)- गूगुल कमर दर्द में बेहद राहत देता है। कमर दर्द में उपचार के लिए गूगुल की आधा चम्मच गरम पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें। ऐसा करने से कमर दर्द में आराम मिलता है।\n4. मसाला चाय (Tea)- चाय बनाने में 5 कालीमिर्च के दाने, 5 लौंग पीसकर और थोड़़ा सा सूखे अदरक का पाउडर डालें। दिन मे दो बार इस तरह की मसाला चाय पीएं। मसाला चाय पीते रहने से कमर दर्द में लाभ होता है।\n5. सख्त बिस्तर (Tough Bedding)- सख्त बिस्तर पर सोने से भी कमर दर्द में बेहद आराम मिलता है। ऐसा करने से कमर समतल रहती है और पूरी कमर पर समान दबाव पड़ता है। औंधे मुंह पेट के बल सोना भी हानिकारक है।\n6. दालचीनी (Cinnamon)- 2 ग्राम दालचीनी का पाउडर एक चम्मच शहद में मिलाकर दिन में दो बार लेते रहने से कमरदर्द में राहत मिलती है।\n7. शरीर को गर्म रखें (Warm Body)- कमर दर्द पुराना हो तो शरीर को गर्म रखें और गरम वस्तुएं खाएं। ऐसा करने से कमर दर्द में बेहद राहत मिलती है। सर्दियों में दर्द ज्यादा हो तो ध्यान रखें कि दर्द वाला हिस्सा हवा के संपर्क में न आए।\n8. बर्फ की सिकाई (Ice Foment)- दर्द वाली जगह पर बर्फ का प्रयोग करना भी लाभकारी उपाय है। इससे भीतरी सूजन भी समाप्त होगी। कुछ रोज बर्फ़ का उपयोग करने के बाद गरम सिकाई प्रारंभ कर देने से अनुकूल परिणाम आते हैं।\n9. पौष्टिक भोजन (Proper Nutrition)- भोजन मे टमाटर, गोभी, चुकंदर, खीरा, ककड़ी, पालक, गाजर, फ़लों का प्रचुर मात्रा में उपयोग करें।\n10. भाप की सिकाई (Steam Foment)- नमक मिले गरम पानी में एक तौलिया डालकर निचोड़ लें। पेट के बल लेटकर दर्द के स्थान पर तौलिये द्वारा भाप लेने से कमर दर्द में राहत मिलती है।\n11. मालिश (Massage)- रोज सुबह सरसों या नारियल के तेल में लहसुन की तीन-चार कलियाँ डालकर (जब तक लहसुन की कलियाँ काली न हो जायें) गर्म कर लें फिर ठंडा कर प्रभावित जगह पर मालिश करें।", + "Disease: कमर दर्द (Back Pain)\n12. नमक (Salt)- कढ़ाई में दो-तीन चम्मच नमक डालकर इसे अच्छे से सेक लें। थोड़े मोटे सूती कपड़े में यह गरम नमक डालकर पोटली बांध लें। कमर पर इसके द्वारा सेक करें।\n\n\n", + "Disease: सीने में दर्द (Chest Pain)\n\nDescription: \nसीने में दर्द ( Chest Pain) की बात आते ही हम दिल के दौरे (Heart Attack) की बात सोचने लगते हैं, मगर सीने में दर्द कई कारणों से हो सकता है। फेफड़े, मांसपेशियाँ, पसली, या नसों में भी कोई समस्या उत्पन्न होने पर सीने में दर्द होता है। किसी-किसी परिस्थिति में यह दर्द भयानक रूप धारण कर लेता है जो मृत्यु तक का कारण बन जाता है। लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि खुद ही रोग की पहचान न करें और सीने में दर्द को नजरअंदाज न करें, तुरन्त चिकित्सक के पास जायें।\n\nSymptoms: \n- सीने का दर्द स्वयं कई रोगों का लक्षण है।\n\nReasons: \nएनजाइना (Angina) : हृदय (Heart) के कारण जब सीने में दर्द होता है तब चिकित्सा शास्त्र के अनुसार इसको एनजाइना कहते हैं। एनजाइना से ग्रस्त रोगी को सीने में दर्द कुछ ही देर तक होता है या परिस्थिति बिगड़ जाने पर दर्द की अवधि बढ़ जाती है। साधारणतः यह दर्द कंधे, बाँह, पीठ, पेट के ऊपरी भाग में होता है। एनजाइना में धमनियों के सिकुड़ जाने के कारण रक्त का हृदय में आवागमन बाधित हो जाता है। जब धमनियों में रक्त का थक्का जमने लगता है तब साँस लेने में मुश्किल होने लगती है और सीने में दर्द शुरू हो जाता है। अगर परिस्थिति को संभाला नहीं गया तो मृत्यु तक हो सकती है। एनजाइना का दर्द साधारणतः आनुवंशिकता के कारण, मधुमेह, हाई कोलेस्ट्रॉल, पहले से हृदय संबंधित रोग से ग्रस्त होने के कारण होता है।\nउच्च रक्तचाप: जो धमनियाँ रक्त को फेफड़ों तक ले जाती है उसमें जब रक्त का चाप बढ़ जाता है तब सीने में दर्द होता है और इस अवस्था को उच्च रक्तचाप (Pulmonary Hypertension) कहते हैं।\nएसिडिटी (Acidity): यह साधारणत गैस्ट्रो इसोफेगल रिफ्ल्क्स डिज़ीज़ (गर्ड) (भाटा रोग) के कारण होता है।\nफेफड़ों में रोग (Lung Disease) : जब रक्त धमनियों में थक्का जमने लगता है तब फेफड़ों के टिशु या ऊतकों में रक्त का प्रवाह रुकने लगता है, ऐसा होने से बेचैनी होने लगती है और साँस लेने में मुश्किल होता है, जो बाद में दर्द का कारण बनता है।\nडर के कारण (Fear Psycosis): कभी-कभी दिल में दर्द अत्यधिक डर, अचानक कोई सदमा, दिल की धड़कन के बढ़ने, अत्यधिक पसीना और साँस में तकलीफ के कारण भी होता है।\nतनाव: तनाव के कारण दिल की धड़कन तेज हो जाती है, साँस लेने में तकलीफ होने लगती है और रक्त चाप बढ़ जाने के कारण भी हृदय में रक्त संचार की गति को नुकसान पहुँचता है, इन सब कारणों से भी सीने में दर्द होता है।\n\nTreatments:\n- सीने में दर्द (Chest Pain) का सीधा संबंध हमारे अनियोजित और अस्वस्थ खान-पान से है। खान पान में सुधार के साथ साथ हमें नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।\n- जो व्यायाम शरीर के लिए उपयुक्त हो उस व्यायाम को जरूर करें, जैसे- तेज कदमों से चलना, सीढ़ियाँ चढ़ना, बैडमिंटन या टेनिस खेलना आदि।\n- आहार में फाइबर की मात्रा को बढ़ाएं और कैलोरी की मात्रा को कम करें।\n- खाने में नमक की मात्रा को कम करें और अगर हो सके तो बिलकुल छोड़ दें।\n- धूम्रपान हृदय संबंधी बीमारी को बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाता है। अतः इसको छोड़ना फायदेमंद है।\n\nHome Remedies:\nसीने में दर्द (Chest Pain) हमेशा हार्ट अटैक का मामला नहीं होता। सीने या छाती में दर्द के और भी कई कारण हो सकते हैं। एसीडिटी, सर्दी, कफ, तनाव, गैस, बदहजमी और धूम्रपान से भी छाती में दर्द होती है। वैसे जब कभी भी छाती में दर्द हो तो तत्काल ड़ॉक्टर से संपर्क करना चाहिए ताकि हार्ट अटैक की शंका को दूर किया जा सके।\nहार्ट अटैक में छाती की दर्द को एंजाइना कहते हैं जो कोरोनरी आर्टरी में रक्त के प्रवाह की प्रक्रिया बाधित होने या बलगम की वजह से उत्पन्न अवरोध के कारण होता है। बहरहाल छाती के दर्द को कभी भी नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए भले ही वह गैस या एसिडिटी का दर्द ही क्यों न हो। अगर आप यह पता लगा लेते हैं कि दर्द हार्ट अटैक की नहीं बल्कि अन्य वजह से है तो इसके घरेलू इलाज आप कर सकते हैं।\nछाती दर्द के घरेलू इलाज (Home Remedies for Chest Pain)\nलहसुन (Garlic)", + "Disease: सीने में दर्द (Chest Pain)\nलहसुन को वंडर मेडिसीन कहा गया है जो हर तरह की बिमारियों में रामबाण का काम करता है। सेहत के लिए तो रामबाण है ही हार्ट के लिए तो सबसे ज्यादा लाभकारी है। लहसुन में कई तरह के विटामिन, मिनरल्स-कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, थियामिन, राइबोफ्लाविन, नियासिन और विटामिन सी का खजाना है। इसके अलावा इसमें सल्फर, आयोडीन और क्लोरीन की मात्रा भी पाई जाती है।\nलहसुन के एक या दो कली अगर आप रोज सुबह खाली पेट खा रहे हैं तो यह न सिर्फ आपके कोलेस्ट्रोल को कम करेगा बल्कि हृदय की धमनी के दीवार पर फैट की परत को बनने से भी रोकेगा। नतीजा आपके हार्ट में ऑक्सीजन और रक्त का प्रवाह सुचारू रहेगा। अगर छाती में दर्द की शिकायत गैस से भी है तो यह काफी कारगर होती है। लहसून का सेवन कई तरीकों से किया जा सकता है। कच्चा लहसून खाना ज्यादा असरदार होता है।\nअदरक (Ginger)\nअदरक के कई औषधीय गुण हैं। अगर आपको गैस या एसीडिटी से हार्टबर्न हो रहा है, छाती में दर्द हो रहा हो तो अदऱक की चाय आजमा सकते हैं। यह छाती के दर्द के साथ , कफ, खांसी समेत कई बिमार���यों के इलाज में काम आता है।\nहल्दी (Turmeric)\nहल्दी में दर्द निवारक गुण होते हैं। एंटी इंफ्लामेट्री दवा के रुप में इसे आयुर्वेद और चाइनीज मेडिसीन में भी इस्तेमाल किया जाता है। हल्दी में पाए जाने वाले खास कंपाउड Curcumin में दर्द को चूसने वाले गुण होते हैं। यह दिल की सेहत के लिए भी गुणकारी है। हल्दी को सबसे ज्यादा लोग गर्म दूध में डालकर पीते हैं। दर्द वाले स्थान पर हल्दी का लेप भी लगाया जाता है।\nतुलसी (Holy Basil)\nतुलसी में सिर्फ एंटी बैक्टीरियल गुण ही नहीं बल्कि एंटी इंफ्लामेट्री गुण भी होते हैं। इसके अलावा तुलसी में ऐसे कई कंपाउड पाए जाते हैं जो दिल के सेहत के लिए भी गुणकारी है। तुलसी में Eugenol पाया जाता है जो दिल के सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। तुलसी के पत्ते लोग चबा कर खाते हैं और कई लोग चाय और काढ़ा बना कर पीते हैं। अगर छाती में दर्द है तो तुलसी-अदरक का काढ़ा बना कर उसमें शहद की बूंदे डाल कर पी लीजिए काफी फायदा करेगा।\n\n\n", + "Disease: फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer)\n\nDescription: \nमाना कि मानव शरीर में कोशिकाओं का विकास एक नियंत्रित प्रणाली के रूप में होता है लेकिन कुछ कोशिकाओं का एक ऐसा समूह होता है जो कि अनियंत्रित रूप से बढ़ता है और विकसित होता है। इन कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाएं कहते हैं। ये दो प्रकार की होती है जिन्हें बिनाइन ट्यूमर (Benign Tumour) और मेलिगनेन्ट ट्यूमर (Malignant Tumour) कहा जाता है।\n\nSymptoms: \n- अंगुलियों और अंगूठों के सिरों का बढ़ जाना (डिजिटल क्लतबिंग)\n- आवाज का फटना\n- कुछ मामलों में निमोनिया होना\n- खांसी में खून का आना (हेमोप्टाइसिस),\n- थकान (कमजोरी) महसूस होना\n- निरंतर खांसी बने रहना,\n- वजन में कमी या भूख न लगना, निगलने में कठिनाई होना\n- विशेषकर नाखूनों के आसपास की त्वुचा का बढ़ना पैरानियोप्लावस्टिक फिनोमिना जैसे कि स्तनों में वृद्धि\n- शरीर की रासायनिक संरचना में असामान्यताएं होना\n- सांस लेने में कठिनाई या घरघराहट होना\n- सिर में दर्द या दौरा पड़ना, चेहरे, गर्दन या ऊपरी अंगों में सूजन आना\n- सीने, कंधे या बांह में दर्द रहना\n- हड्डियों में दर्द रहना\n\nReasons: \n- फेफड़े के कैंसर का खतरा उन सब को हो सकता है जो धूम्रपान करते हैं। अगर आप सिगरेट, पाइप, बीड़ी व सिगार का धुंआ फेफड़े तक ना भी ले जाएं, तो भी इनसे गले व मुंह का कैंसर (Cancer) फैलने का खतरा होता है। धूम्रपान बंद करके इस खतरे को कम किया जा सकता है।\n- धूम्रपान करने वालों के आसपास मौजूद होते हैं या धुएं के वातावरण में काम करते हैं, उन्हें भी फेफड़े के कैंसर का खतरा है। इसका सबसे ज्यादा डर छोटे बच्चों को होता है।\n- एस्बेस्टस (Asbestos), यूरेनियम (Uranium) , आर्सेनिक (Arsenic) व पेट्रोल (Petrol) की रिफाइनरी या कारखाने में काम करते हैं।\n- जिन्हें ट्यूबरक्यूलोसिस (Tuberclosis) हो, उन्हें भी इसका खतरा रहता है। इसके अलावा रेडिओ एक्टिव गैस रेडॉन की वजह से भी फेफड़े का कैंसर होता है।\n\nTreatments:\nकैंसर पाए जाने के बाद लोग अकसर परेशान हो जाते हैं। कैंसर (Cancer) के निदान और उपचार के दौरान और उसके पश्चात व्यावहारिक और भावनात्मक सहायता बहुत महत्वपूर्ण होती है। परिवार के सदस्यों, स्वास्थ्य पेशेवरों या विशेष सहायता सेवाओं के माध्यम से यह सहायता उपलब्ध हो सकती है।\n\nHome Remedies:\nफेफड़े के कैंसर (Lungs Cancer) के इलाज के क्रम में कई मरीजों को सांस लेने में परेशानी होती है या सांस ही नहीं ले पाते हैं। इसमें सांस की नली जो फेफड़े को ऑक्सीजन पहुंचाती है, वो ही जाम हो जाती है। ऐसी स्थति में मरीजों को अलग से ऑक्सीजन नाक के द्वारा दिया जाता है और इससे मरीज काफी आराम महसूस करते हैं। लेकिन यह उपाय हमेशा के लिए नहीं हैं।\nलंग्स कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। धूम्रपान और नशे के अत्यधिक सेवन से फेफड़े में जब टार की मात्रा काफी बढ़ जाती है तो फेफड़े का कैंसर (Lungs Cancer) होता है। अगर टीबी का इलाज सही से नहीं होता है या टीबी की दवाई का कोर्स मरीज आधे में ही छोड़ देता है तो फेफड़े के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।\nलंग्स कैंसर का इलाज कीमोथेरेपी या फिर सर्जरी ही है, मगर लंग्स कैंसर के बाद भी अगर मरीज अपने खान-पान में बदलाव लाए और नशे की आदत को छोड़ दे तो काफी हद तक मरीज एक बेहतर जिंदगी जी सकता है।\nफेफड़े के कैंसर के घरेलू इलाज (Home remedies For Lung Cancer)\nखान-पान (Diet)\nफेफड़े के कैंसर के मरीजों के लिए सेहतमंद भोजन कच्ची सब्जी, और कच्चे फल होते हैं। साबुत अनाज खाना भी ठीक रहता है। सलाद का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना फायदेमंद रहता है। ऐसे मरीजों को हमेशा साफ और स्वच्छ पानी पीना चाहिए। फेफड़े के कैंसर में बादाम नहीं खाना चाहिए। दोपहर में खट्टे फल या साइट्रस फ्रूटस (Citrus Fruits) के जूस पीने चाहिए।\nचीनी और रेड मीट को बोलो ना (Say Big No to Sugar and Red Meat)\nचीनी और रेड मीट को बिल्कुल ना कह दें। इसे खाने से कैंसर की कोशिकाओं में वृद्धि होने लगती है।\n��शा और धूम्रपान को करो बाय (Quit Smoking and Alcohol)\nफेफड़े कैंसर के मरीजों के लिए सिगरेट-बीड़ी धूंकना जानलेवा हो जाएगा। शराब पीने या धूम्रपान करने से मरीज की स्थिति और बिगड़ सकती है।\nविटामिन डी (Vitamin D)", + "Disease: फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer)\nफेफड़े कैंसर के मरीजों के लिए विटामिन डी लेना काफी जरुरी है। इससे फेफड़े की मांसपेशियों में मजबूती आती है। धूप स्नान करना और सूर्य की रोशनी के संपर्क में रहना विटामिन डी लेने का सबसे बड़ा जरिया है।\nग्रीन टी (Green Tea)\nग्रीन टी में एंटी ऑक्सीडेंट होता है जो फेफड़े के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है। दिन में दो कप ग्रीन टी लेने से काफी फायदा होगा। ग्रीन टी में थोड़ा शहद मिला दें तो और बेहतर।\nनोनी (Noni)\nयह एक ट्रापिकल फूड है जो फेफड़े के कैंसर में काफी असरदार होता है। इसे खाया भी जाता है और इसके जूस भी पीए जा सकते हैं।\nरेस्वेराट्रोल (Resveratrol)\nयह रेड वाइन में पाया जाता है और फेफड़े के कैंसर में इसका सेवन काफी असर करता है। रात में डिनर के साथ एक पैग रेड वाइन लेना फेफड़े के सेहत के लिए काफी फायदेमंद है।\nसीवीड (Seaweed)\nयह एक समुद्री सब्जी है जिसमें घाव को भरने की जबरदस्त क्षमता होती है। नेचुरोपैथी में इसे आजमाकर यह साबित हो चुका है कि कैंसर के इलाज में यह काफी कारगर और असरदार है। इसमें काफी मात्रा में मिनरल्स और ट्रेस एलिमेंट पाए जाते हैं।\nअलसी बीज के तेल (Flaxseed Oil)\nयह फेफड़े कैंसर के इलाज में काफी असरदार है। अलसी बीज के तेल का सेवन कभी भी नहीं रोकना चाहिए। रोजाना इसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेते रहें।\nसमुद्री और देशी छोटी मछलियां (Sea and local small fish)\nपोखर-तालाब में पाई जाने वाली छोटी मछलियां जैसे- रेवा, चेचड़ा, टेंगड़ा, सिंही- कब्बे और मांगुर मछलियों के साथ समुद्री मछली जैसे Prawn नियमित रुप से खाना चाहिए। इन मछलियों में काफी मात्रा में प्रोटीन और कॉड ऑयल पाया जाता है जो फेफड़े कैंसर मरीजों के लिए काफी असरदार है।\n\n\n", + "Disease: थकान (Fatigue)\n\nDescription: \nथकान एक सामान्य अवस्था है, अधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम करने से शरीर में थकान आ जाती है और शरीर सुस्त हो जाता है। थकान, कमजोरी से अलग है। आराम करने पर थकान चली जाती है जबकि कमजोरी बनी रह सकती है।\n\nSymptoms: \n- कमजोरी महसूस होना\n- किसी काम में मन न लगना\n- नकरात्मक सोच का बढ़ना\n- हर समय नींद आना\n\nReasons: \n- शारीरिक स्तर पर इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे एनीमिया, थ��इराइड, शुगर और कोलेस्ट्रॉल का बड़ा हुआ स्तर।\n- शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cell) की कमी से एनीमिया की दिक्कत होती है, जिसका एक प्रमुख लक्षण है थकान। आजकल महिलाओं में यह समस्या अधिक पाई जाती है जिससे बचाव के लिए आयरन (Iron) से भरपूर डाइट फायदेमंद होती है।\n- हाइपोथायराइड और मधुमेह (Diabetes) की स्थिति में शरीर में मेटाबॉलिज्म (Metabolism) सही तरीके से काम नहीं करता जिसके कारण कोशिकाओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है, इसलिए शरीर की ऊर्जा तेजी से खत्म हो जाती है और आप जल्दी थक जाते हैं।\n- यह हल्के बुखार की वजह से भी हो सकता है जो इंफेक्शन का नतीजा होता है।\n- बहुत ज्यादा शुगर या रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे चावल, मैदा आदि खाना, लम्बे अंतराल पर खाना खाना और सही तरह का भोजन न खाने से भी आदमी थकान महसूस करता है।\n- मानसिक स्तर पर होने वाली थकान का अर्थ है कि आप तनावग्रस्त हैं।\n- अवसाद (Depression) की स्थिति में भी बहुत अधिक थकान, सिरदर्द और कमजोरी महसूस होती है। अवसाद की वजह से थकावट होना आज की जीवनशैली में बहुत सामान्य है। \n- अगर आप दो-तीन हफ्तों तक हर समय थकान महसूस करते हैं तो मनोचिकित्सक से परामर्श उचित होगा।\n- दिन में कई बार चाय-कॉफी का सेवन करने वाले लोगों को थकान जल्दी होती है। कैफीन वाली चीजों के अधिक सेवन से ब्लड प्रेशर और धड़कन की गति तेज होती है जिससे थकान जल्दी होती है।\n- गर्मियों में शरीर में पानी की कमी यानि डिहाइड्रेशन भी आपको जल्दी थका सकती है। इसलिए शरीर में पानी की कमी न होने दें।\n- आजकल कंपनियों में रात की शिफ्ट या अलग-अलग शिफ्ट में काम करने का चलन बढ़ गया है। कई बार इससे बॉडी क्लॉक पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और हर समय थकावट महसूस होती है। इससे बचाव के लिए दिन में सोने का एक नियत समय तय करें जिससे आपका शरीर अभ्यस्त हो सके और सोकर उठने के बाद आप तरोताजा महसूस करें।\n- खान-पान और अपनी जीवनशैली पर ध्यान देने की खास जरूरत है। जरूरी नहीं कि हर बार थकान का कारण कोई शारीरिक समस्या हो, कई बार थकान का कारण मानसिक भी होता है।\n\nTreatments:\nथकान दूर भगाने का सबसे बेहतर उपाय होता है आराम करना। इसके साथ कुछ अन्य उपाय अपना कर भी आप थकान को दूर भगा सकते हैं। यह उपाय निम्न हैं:\n- रात में अच्छी व भरपूर नींद लेना, थकान को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। 7-8 घंटे की नींद जरूर लें ताकि अगले दिन के लिए आपको पर्याप्त ऊर्जा मिले।\n- जब भी थकान महसूस हो तो 15-20 मिनट की झपकी जरूर लें। नींद पूरी न होने से वजन भी बढ़ता है और थकान भी जल्दी होती है। \n- थकान अधिक होने पर हाथ पांव ढीले छोड़कर, आंखें बंद कर पलंग पर लेट जाइए। ऐसे में मांसपेशियों का तनाव दूर होता है।\n- हँसी वास्तव में सबसे अच्छी दवा है। पुराने दोस्तों से मुलाकात करें, हास्य फिल्में देखें...कोई भी चीज़- जिससे आप खुलकर हँस सकें। जिन लोगों को प्यार करते हैं उनके साथ वक्त गुजारें।\n- मन को अच्छा लगने वाला संगीत सुनें, इससे तनाव दूर होता है।\n- दिन भर थोड़ा-थोड़ा पानी या कोई भी तरल पदार्थ पीते रहें। पानी शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालकर शारीरिक प्रणाली में नई ऊर्जा भरता है। शर्बत, फलों का रस, छाछ व नारियल पानी आदि पीना चाहिए।  \n- दिन भर के सतत ऊर्जा प्रवाह के लिए बहुत सारी हरी सब्जियाँ खायें। खाने में फल, नट्स, अंडा और फिश भी शामिल करें। \n- ज्यादा कॉफी और चाय न पियें, भले ही आपको उनसे राहत मिलती है। यह सिर्फ अस्थायी राहत होती है। \n- सक्रिय रहें, आलस छोड़ें।\n- नियमित कसरत करें। \n\nHome Remedies:", + "Disease: थकान (Fatigue)\nथकावट-आलस्य से आप जिंदगी से निराश महसूस करते हैं। हमेशा गुस्से में हारे हुए इंसान की तरह व्यवहार करते है। आप भी चाहते हैं कि एक अच्छे नस्ल के घोड़े की तरह रेस लगाएं, लेकिन आपको महसूस होता है कि आपके पांव कीचड़ में फंसे हुए हैं। आप इच्छाशक्ति भी करते हैं लेकिन वो काम नहीं करता। मानसिक और शारीरिक थकावट वैसे तो सामान्य बीमारी है , मगर कुछ गंभीर बीमारी में भी ऐसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।\nथकावट कई कारणों से होती है। मुख्य तौर पर खराब जीवनशैली, नींद में कमी, कुपोषण, फ्लू, मोटापा, एलर्जी, एनीमिया, अल्कोहल का सेवन, थायराइड, हार्ट की बीमारी समेत कैंसर, डायबिटीज और एडस जैसी गंभीर बीमारी में भी थकावट का अनुभव होता है।\nथकावट का कोई खास चिकित्सकीय इलाज नहीं है बस आपको अपने जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाना होगा। खाने की आदत, पीने की आदत में बदलाव के साथ व्यायाम-योग और ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा। हमेशा सकारात्मक सोचना होगा।\nथकावट को भगाने के क्विक घरेलू इलाज (Quick Home remedies for fatigue)\nपिपरमिंट तेल के कुछ बूंदों को टिसू पेपर या रुमाल पर डालकर नाक के पास रखें और तेज सांस ले। काफी तरोताजा महसूस करेंगे। अगर आपके पास थोड़ा समय है तो नहाने के टब में कुछ बुंदे पिपरमिंट तेल के और कुछ बूंदे मेंहदी के तेल के डाल कर स्नान करें। काफी स्फूर्ति मिलेगी।\nसुबह-शाम नियमित योग करें। खासकर पीठ के बल लेट कर पैर को सिर से उंचा करना और फिर उसे धीरे-धीरे नीचे करना। घुटनों को नाक में सटाना। ये कुछ ऐसे व्यायाम हैं जिससे आप तरोताजा महसूस करते हैं। योग में भ्रामरी भी काफी फायदेमंद रहता है।\nसुबह बेहतर और पोषण से भरा नाश्ता करें और दिन भर में हल्का भोजन और शाम को हेल्दी स्नैक्स लेते रहें। यह दिन में दो टाइम भरपेट और भारी भोजन खाने से ज्यादा बेहतर है। प्रयास करें कि आप अपने भोजन के साइज को 300 कैलोरी पर लिमिट कर इसका रुटीन बना लें। इससे आपका ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रहेगा और थकावट भी नहीं होगी।\nभोजन में हमेशा हाइ-फाइबर वाले फूड्स ही खाएं। क्योंकि इसमें कंपलेक्स कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। जैसे कि समूचे-साबुत अनाज चावल और साबूत गेंहू की रोटी, दाल- दलिया और सब्जी-सलाद। इससे ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रहता है और थकावट नहीं होती है।\nअधिक वसा वाले भोजन खाना कम करें। इससे मोटापा बढ़ती है और शरीर में हमेशा थकावट महसूस होती है।\nबिना छीले हुए आलू के स्लाइस काट कर इसे रात भर पानी में भींगने छोड़ दें। सुबह इस जूस को पी लें। इसमें काफी मात्रा में पोटाशियम रहती है जो शरीर में मिनरल्स की कमी को दूर करती है। मिनरल्स के सेवन से शरीर की मांसपेशिया काफी सक्रिय रहती है और आप थकावट नहीं महसूस करते हैं।\nदिन में एक बार पालक खाना थकावट को भगाने की सबसे पुराना घरेलू भलाज है। पालक में पोटाशियम के साथ आइरन और विटामिन बी ग्रुप के कई विटामिन पाए जाते हैं, जो शरीर को उर्जा और स्फूर्ति देती है।\nचैन की नींद सेहत के लिए सबसे जरुरी है। मानसिक और शारीरिक थकावट की सबसे बड़ी वजह नींद में कमी ही है। कम से कम एक एक मनुष्य को आठ घंटा बेहतर स्वास्थ्य के लिए सोना चाहिए। नींद में कमी है या गड़बड़ी है तो ध्यान-योग करें और हमेशा सकारात्मक सोचें। योग में एक आसन है- शवासन, उसे आजमाएं। काफी फायदा होगा।\nसप्लीमेंट के तौर पर मानसिक औऱ शारीरिक थकावट को भगाने के लिए गिनसेंग, मैग्नीशियम और गिन्कगो भी ले सकते हैं।\n\n\n", + "Disease: खून का थक्का (Blood Clotting)\n\nDescription: \nशरीर में खून का थक्का (Blood Clotting) बनने और उसके घुलने की प्रक्रिया सहज रूप में चलती रहती है। हमारे प्लाज्मा में मौजूद प्���ेटलेट्स और प्रोटीन, चोट की जगह पर रक्त के थक्के का निर्माण करके रक्त के बहाव को रोकते हैं। अगर ऐसा न हो तो चोट लगने पर शरीर में खून का बहाव रोकना कठिन हो जाए। आमतौर पर चोट के ठीक होने पर रक्त का थक्का अपने आप घुल जाता है। पर जब इस प्रक्रिया में अड़चन आती है तो खून का थक्का बना ही रह जाता है।\n\nSymptoms: \n- घबराहट होना\n- पसीना आना\n- सिर चकराना\n\nReasons: \nखून का थक्का केवल चोट लगने के कारण ही बनता। इसके कई अन्य कारण भी होते हैं जैसे \nखून का थक्का बनने के कारण (Causes of Blood Clotting)\n- अगर आप गर्भ निरोधक गोली (Oral Contraceptive Pills) लेते हैं।\n- अगर आपको मोटापा है।\n- अगर आपको मेनोपोज (menopause) हो चुका है।\n- समाचार पत्र 'द मिरर' के अनुसार एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जो लोग लगातार 10 घंटे तक काम करते हैं और इस दौरान कोई विराम नहीं लेते तो उनमें खून का थक्का जमने का खतरा दोगुना हो जाता है। यह अध्ययन 21-30 साल आयु सीमा के लोगों पर किया गया। अध्ययन में शामिल 75 फीसदी लोगों ने माना कि वे काम के दौरान विराम नहीं लेते।\n\nTreatments:\nखून का थक्का बनने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह करें। यह बीमारी बेहद खतरनाक हो सकती है इसलिए पहले अच्छी तरह जांच कराने के बाद ही उपचार शुरु करें।\n\nHome Remedies:\nरक्त का थक्का जमना रक्तनलिका के बंद हो जाने से होता है और अगर तत्काल इसका इलाज नहीं किया गया तो यह जानलेवा हो जाता है। मोटे लोगों में ब्लड क्लॉट होने का खतरा ज्यादा रहता है, लेकिन कई और रोग-परिस्थितियों में रक्त का थक्का जमता है जो काफी खतरनाक होता है।\nबिना सर्जरी के ब्लड क्लॉटिंग का कोई इलाज ही नहीं है और कभी-कभी तो शरीर के उस हिस्से या अंग में छेद कर या काट कर इसका इलाज किया जाता है। खासकर सिर में चोट लगने के बाद अगर ब्लड क्ल़ॉट होती है तो यह काफी गंभीर हो जाती है , जिसमें मरीज को ब्रेन हेमरेज का खतरा रहता है और मौत तक हो सकती है।\nध्यान रहे कि ब्लड क्लॉटिग होने के बाद कोई घरेलू उपचार काम नहीं करता है। हालांकि, ब्लड क्लॉट न हो या जिन लोगों इसका खतरा ज्यादा है उनके लिए कई घरेलू उपचार हैं।\nब्लड क्लॉटिंग से ब़चने के घरेलू इलाज (Home remedies to prevent from Blood clotting)\nस्किम्ड मिल्क या छाली उतारा हुआ दूध (Skimmed milk)\nस्किम्ड मिल्क या छाली उतारे दूध में फैट यानि वसा नहीं होती और इसमें कैल्शियम भी रहता है, जिससे रक्त की नलिका में फैट जमा होने का खतरा नहीं रहता है और कैल्शियम से ब्लड के प्लेटलेट्स सह��� ढ़ंग से काम करते हैं। रक्त नलिका में फैट जमा नहीं होने से रक्त का प्रवाह सही ढ़ंग से होता है।\nमोटापा कम करें (Loose obesity)\nकाफी वसा युक्त भोजन करने से मोटापा बढ़ता है और इसका नतीजा होता है कि रक्त नलिका के दीवार पर फैट की परत जम जाती है। अगर रक्त नलिका के मुंह की चौड़ाई कम हुई तो रक्त के प्रवाह में कठिनाई होगी और नतीजा ब्लड क्लॉट होगा। बल्ड क्लॉट होने से दिल का दौरा पड़ सकता है और ब्रेन हैमरेज का खतरा रहता है।\nनियमित व्यायाम करें (Exercise Regularly)\nनियमित रुप से व्यायाम करने से शरीर में फैली सभी रक्त नलिकाओं में रक्त का संचरण सही ढ़ंग से होता है।\nधूम्रपान से करें तौबा (Avoid Smoking)\nधूम्रपान करने से ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड में बदलता है और इससे रक्त नलिका की मांसपेशियां कमजोर होती है नतीजा ब्लड क्लॉटिंग की संभावना बढ़ जाती है।\nप्याज और लहसुन का सेवन (Eating onion and garlic)\nप्याज और लहसुन खाने से शरीर में फाइब्रिन की कमी होती है और इसके परिणांस्वरुप प्लेटलेट्स सही ढ़ंग से बनते हैं और ब्लड की क्लॉटिंग नहीं होती है।\nहाइड्रोथेरेपी (Hydrotherepy)\nब्लड क्लॉट वाले स्थान पर अगर गर्म औऱ ठंडे पानी का पैक लगातार दिया जाए तो संभव है वहां रक्त का संचरण हो सकता है।\nमसाज (Massage)\nअगर आप नियमित रुप से शरीर की मसाज करवाते हैं तो शरीर में रक्त का प्रवाह सुचारु ढ़ंग से होता है। रक्त की नलिकाएं भी ब्लॉक नहीं होती है औऱ ब्लड क्लॉट का खतरा कम रहता है।\n\n\n", + "Disease: मांसपेशियों में दर्द (Muscle Pain)\n\nDescription: \nआज की व्यस्त और भाग-दौड़ भरी जिंदगी में मांसपेशियों में दर्द (Muscle Pain) एक आम समस्या है। युवाओं में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। यह दर्द कुछ लोगों को कभी-कभी सताता है, जबकि ज्यादातर लोग इससे स्थायी रूप से परेशान रहते हैं। मांसपेशियों का दर्द किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है।\n\nSymptoms: \n- शारीरिक कमजोरी खास कर मांसपेशियों की, नींद न आना\n\nReasons: \n- अनियमित जीवन शैली और गलत खान-पान इस समस्या का सबसे बड़ा कारण है। \n- शारीरिक परिश्रम या कठोर श्रम के कारण तनाव, थकान या मांसपेशियों में चोट, इन्फ्लूएंजा, लाइम डिसीज, मलेरिया, डेंगू, मांसपेशी का फोड़ा तथा संक्रमण की वजह से भी दर्द हो सकता है। \n- इलेक्ट्रोलाइट का असंतुलन जैसे-पोटैशियम या कैल्शियम की मात्रा बहुत कम होना भी इसका कारण हो सकता है।\n\nTreatments:\nमांसपेशियों में दर्द होने पर सेंक और मालिश से आराम मिलता है। अगर इससे भी आराम ना मिले तो निम्न उपाय अपनाने चाहिए:\n- मांसपेशियों में दर्द हो तो थोड़ी चहलकदमी करें । \n- गहरी सांस लें और दोनों हाथों को सीधा ऊपर उठाएं। यह प्रक्रिया कई बार दोहराएं। ऐसा करने से मांसपेशियों में रक्त प्रवाह में सुधार होता है, जिससे आप रिलैक्स महसूस करेंगे। \n- भोजन में दूध, ताज़ा फल, सब्जियां आदि पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। \n- एक-दो घंटे तक कार्य करने के बाद थोड़ा आराम करें तथा टहलें। \n- एक ही स्थिति में लंबे समय तक बैठकर काम न करें। \n- मोटापे को नियंत्रित करें। \n- दिनचर्या सुधारें और दवाओं के उपयोग की जगह व्यायाम करें। \n- शराब तथा सिगरेट के सेवन से बचें।  \n- अत्यधिक तनाव और मांसपेशियों पर अधिक जोर डालने वाले कार्य न करें। \n- फास्ट फूड का सेवन कम से कम करें। \n- जिम में प्रशिक्षित ट्रेनर की देख रेख में ही व्यायाम करें। \n- कोल्ड ड्रिंक का कम से कम सेवन करें, यह आपके शरीर के कैल्शियम को ठीक से पचने नहीं देता है। \n- खूब पानी पिएं, कैफीन उत्पादों और अल्कोहल के सेवन से बचें, क्योंकि इससे डिहाइड्रेशन (Dehydration) हो सकता है। \n- भारी-भरकम शारीरिक गतिविधियों के बाद मांसपेशियों को प्रोटीन की जरूरत होती है, ताकि शरीर में एनर्जी का स्तर बना रहे। ऐसे में प्रोटीनयुक्त नेचुरल खाद्य उत्पादों का सेवन करना चाहिए।\n\nHome Remedies:\nजब कभी भी हम क्षमता से अधिक काम करते हैं या ज्यादा आलस करते हैं, दोनों ही परिस्थितियों में मांसपेशियों में दर्द (muscle pain) हो सकता है। इसके अलावा व्यायाम गलत तरीके से करने या व्यायाम के शुरूआत में, ब्लड फ्लो से संबंधित समस्या होने, कैल्शियम (Calcium), मैग्नीशियम (Magnesium) और पोटेशियम (Potassium) की कमी होने, डिहाइड्रेशन आदि के कारण भी मांसपेशियों में तनाव और खिंचाव संभव है।\nमसलपेन लिगमेन्ट (Ligament, ऊतक जो कि दो या दो से ज्यादा हड्डियों को आपस में जोड़ते हैं) की चोट है। मांसपेशियों में दर्द तब होता है जब इन ऊतकों पर ज्यादा जोर पड़ता है। यहां हम आपको कुछ घरेलू नुस्खों से मांसपेशियों के दर्द का इलाज बताएंगे लेकिन असहनीय हो और ज्यादा पीड़ा हो रही हो तो डॉक्टर के पास जाना ही बेहतर उपाय है। कुछ घरेलू नुस्खे निम्न हैं-\n1. एप्सम सॉल्ट (Epsom salt)\nगर्म पानी की एक बाल्टी में या टब में एक कप एप्सम नमक डाल कर प्रभावित स्थान को इस पानी में तकरीबन 15 मिनट के लिए डुबा कर रखें। एक हफ्ते में इस प्रक्रिया क��� दो से तीन बार कर सकते हैं। लेकिन हृदय से संबंधित, शुगर या उच्च रक्तचाप (high blood pressure) की समस्या से पीड़ित व्यक्ति इस विधि को न करें।\n2. गर्म और ठंडा सेक (Hot and cold fomentation)\nगर्म पानी से नहाने से मांसपेशियों की सिकाई होती है और उन्हें आराम भी मिलता है। इस तरह से मांसपेशियों की अकड़न भी दूर होती है। लेकिन इसके उलट यदि सूजन महसूस हो रही हो तो बर्फ के टुकड़ों को पतले कपड़े में लपेटकर उससे सिकाई करनी चाहिए।\n3. मैग्नीशियम युक्त खाना (Magnesium rich food)", + "Disease: मांसपेशियों में दर्द (Muscle Pain)\nमैग्नीशियम की कम मात्रा से भी मांसपेशियों में दर्द और खिंचाव हो सकता है। इसके लिए खाने में कद्दू के बीज (pumpkin seeds), काली बीन्स (black beans), सूरजमुखी के बीज (sunflower seeds), बादाम और काजू को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। जिससे शरीर को प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम मिल सके।\n4. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)\nसेब के सिरके की कुछ मात्रा एक गिलास पानी में मिलाकर पीने से मसल्स के दर्द से राहत मिलती है। इसके अलावा यदि इस तरह पीना कठिन लगे तो एक गिलास पानी में दो चम्मच सिरका, एक चम्मच शहद और कुछ पत्तियां पुदीने की मिलाकर भी पी जा सकती हैं।\n5. ऑयल (Oil)\nमसल पेन में राहत के लिए कैमोमाइल, पेपरमिंट, लेवेंडर आदि तेल में एक या दो चम्मच, नारियल या ऑलिव ऑयल मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए।\n6. चेरी जूस (Cherry juice)\nमसल पेन से राहत के लिए चेरी जूस भी पीना चाहिए। चेरी जूस पीने से मसल्स का खिंचाव कम होता है साथ ही यह मांसपेशियों को राहत भी देता है।\n7. मसाज (Massage)\nमसाज करने से शरीर का रक्तसंचार बेहतर होता है जो कि दर्द को तेजी से ठीक करने में मदद करता है। यदि मसाज करने के लिए अच्छे तेलों का प्रयोग किया जाए तो असर दोगुना हो जाता है।\n8. मिर्च (Chilli)\nमिर्च में मौजूद कैप्सेसिन (capsaicin) भी दर्द की खास दवा है। बाजार में मिर्च से तैयार कई तरह की दर्द निवारक क्रीम मिलती हैं, लेकिन इन्हें आप घर भी तैयार कर सकते हैं। इसके लिए नारियल या जैतून के तेल को गरम करके इसमें एक बड़ा चम्मच लाल मिर्च मिलाकर इसे ठंडा करें। इसके बाद इसमें एलोवेरा जेल मिलाएं। इस तरह से तैयार उत्पाद को यदि प्रभावित स्थान पर लगाकर हल्के हाथ से मालिश की जाए तो बेहद आराम मिलता है।\n9. आराम (Rest)\nकई बार कुछ न करके सिर्फ आराम करना भी शरीर को बहुत लाभ दे सकता है। यदि शरीर में अकड़न महसूस हो तो कम से कम दो दिन आपको शरीर को पूरी तरह आराम देना चाहिए। इससे शरीर हल्का महसूस करता है और तनाव कम होता है जिसका सीधा असर मांसपेशियों पर भी पड़ता है।\n\n\n", + "Disease: प्रोस्टेट कैंसर (Prostate Cancer)\n\nDescription: \nप्रोस्टेट कैंसर पुरुषों को होता है। ये कैंसर शुरूआती दौर में पता चल जाए, तो आसानी से ठीक किया जा सकता है।\n\nSymptoms: \n- कूल्हे (हिप्स), जांघ की हड्डियां (थाईज) व पीठ में लगातार दर्द होना\n- पेशाब करते समय दर्द व जलन होना\n- पेशाब करने में दिक्कत होना\n- बार बार पेशाब जाना, खासकर रात में\n- वीर्य या मूत्र में खून आना\n- सेक्स के दौरान वीर्य निकलते वक्त दर्द होना\n- सेक्स के समय लिंग में कठोरता ना आना\n\nReasons: \n- बढ़ती उम्र: प्रोस्टेट कैंसर 40 की उम्र के बाद सबसे ज्यादा होता है। उम्र बढ़ने के साथ ही प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ने लगता है, जो कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है। 50 साल की उम्र पार कर रहे लोगों में यह बहुत तेजी से फैलता है। प्रोस्टेट कैंसर (Prostate Cancer) के हर 3 में से 2 मरीजों की उम्र 65 या उससे ज्यादा होती है।\n- आनुवांशिक बीमारी: प्रोस्टेट कैंसर आनुवंशिक भी होता है। घर में अगर किसी भी व्यक्ति या रिश्तेदार को प्रोस्टेट कैंसर होता है तो बच्चों में इसकी होने की संभावना ज्यादा होती है।\n- खानपान: आधुनिक जीवनशैली में खान-पान भी प्रोस्टेट कैंसर के फैलने का प्रमुख कारण बन गया है। जो आदमी लाल मांस (रेड मीट) या फिर ज्यादा वसायुक्त डेयरी उत्पादों का प्रयोग करते हैं, उनमें प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है। जंक फूड का सेवन भी प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है।\n- धूम्रपान : धूम्रपान करने से मुॅंह और फेफड़े का कैंसर तो होता है, लेकिन धूम्रपान प्रोस्टेट कैंसर को भी बढ़ाता है। \n\nTreatments:\nप्रोस्टेट कैंसर का बचाव (Treatment of Prostate Cancer)\n\nHome Remedies:\nप्रोस्टेट कैंसर (Prostate cancer) बुहत ज्यादा सुनने में नही आता लेकिन यह एक खतरनाक बीमारी है। हालांकि इसका इलाज संभव है। एक उम्र के बाद आदमियों में प्रोस्टेट स्वभाविक रूप से बढ़ जाते हैं। 50 की उम्र के बाद लगभग 40 फीसदी पुरूषों में प्रोस्टेट कैंसर की संभावनाएं हो जाती हैं।\nहालांकि यह जानलेवा हो ऐसा नहीं है लेकिन एक स्थिति के बाद यह खतरनाक भी हो जाता है। यह जितने ज्यादा बढ़ते हैं इनमें कैंसर का खतरा भी उतना ही होता है क्योंकि प्रोस्टेट के अंदर मौजूद सेल्स (जो कैंसर का बढ़ावा देते हैं) भी प्रोस्टेट के साइज के अनुसार बढ़ने लगते हैं। इसके लिए कई घरेलू इलाज भी हैं, जिन्हें अपनाकर हम प्रोस्टेट कैंसर से बचाव कर सकते हैं।\n1. अदरक (Ginger)- अदरक की जड़ प्रोस्टेट कैंसर से बचाव के लिए बेहद प्रभावी है। अदरक में एंटीफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीप्रोलिफिरेटिव (antiproliferative) गुण होते हैं जो कैंसर को बढ़ावा देने वाले सेल्स को खत्म कर देते हैं। ऐसे में अदरक खाना प्रोस्टेट कैंसर से बचाव और आराम दोनों दे सकता है।\n2. खूब पेय पदार्थ पीएं (Drink lots of fluid)- ध्यान रहे कि आपको डिहाइड्रेशन न होने पाए। इसके लिए न केवल पानी खूब पीना है बल्कि अन्य हेल्दी पेय भी आपकी बहुत सहायता कर सकते हैं। सब्जियों और फलों के जूस के साथ ही हेल्दी सूप भी बेहद फायदेमंद हैं।\n3. टमाटर (Tomato)- टमाटर में एक्टिव तत्व लाइकोपीन (lycopene) होता है जिसके कारण टमाटर में एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) की मात्रा भी ज्यादा होती है। यह तत्व कैंसर को फैलने और बढ़ने से भी रोकता है। उपचार के लिए कच्चा टमाटर या टमाटर की सॉस, चटनी, कैचअप या सलाद और सब्जी के रूप में भी खाया जा सकता है।\n4. अनार (Pomegranate)- रिसर्च में भी साबित हो चुका है कि प्रोस्टेट कैंसर से बचाने में अनार बेहद फायदेमंद हैं। यह ओवर आल कैंसर से भी बचाव करता है। अनार में मौजूद तत्व कैंसर को पैदा करने वाले सेल्स को मार देते हैं जिससे कैंसर नहीं होता। अनार के दानों को यूं ही खाया जा सकता है या अनार का जूस निकालकर भी पीया जा सकता है।", + "Disease: प्रोस्टेट कैंसर (Prostate Cancer)\n5. कद्दू के बीज (Pumpkin seeds)- कद्दू के बीज ड्यूरेटिक (diuretic) रूप से कार्य करते हैं जो कि कई बीमारियों में लाभकारी हैं। खासकर मूत्र और प्रोस्टेट से संबंधित रोगों में बेहद लाभकारी हैं। कद्दू के बीजों में बहुत सा जिंक (zinc) होता है जो कि इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है, जिससे प्रोस्टेट कैंसर से तेजी से रिकवरी संभव होती है। उपचार के लिए कद्दू के बीजों को इकट्ठा करके उन्हें कच्चा ही खाएं। इसके अलावा इन बीजों की चाय बनाकर भी पी सकते हैं। इस चाय को लाभ होने तक रोजाना पीएं।\n6. सोया (Soya)- सोया में सायटोस्ट्रोजन (phytoestrogen) होता है जो कि टेस्टोस्टीरोन (testosterone) का स्त्राव तेज करता है। इस कारण प्रोस्टेट ग्लैंड में रक्त संचार तेज होता है जिससे कैंसर पैदा करने वाले सेल्स की संख्या घटती चली जाती है।\n7. विटामिन डी (Vitamin D)- विटामिन डी की उचित मात्रा होने से प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा नहीं रहता। यह न केवल प्रोस्टेट कैंसर से रक्���ा करता है बल्कि होने के बाद इससे उपचार भी संभव है। फोर्टिफाइड (fortified) दालें और ठंडे पानी में रहने वाली मछलियां विटामिन डी की अच्छी स्त्रोत होती हैं। इसके साथ ही आप विटामिन डी 3 के सप्लीमेंट भी ले सकते हैं।\n8. ग्रीन टी (Green tea)- ग्रीन टी एक ऐसी हर्ब है जिसमें बहुत से गुण होते हैं और यह प्रोस्टेट कैंसर के उपचार में भी सहायक है। ग्रीन टी में पोलीफिनोल्स (polifenoles) उचित मात्रा में होते हैं जो कैंसर पैदा करने वाले सेल्स को मार देते हैं।\n9. फैटी फिश (Fatty fish)- फैटी फिश ओमेगा 3 की अच्छी स्त्रोत होती है, जो कि कैंसर से बचाव में सहायक है। इसके अलावा फ्लैक् सीड भी ओमगा 3 के अच्छे स्त्रोत होते हैं। शरीर में ओमेगा 3 की मात्रा बढ़ाने के लिए फिश ऑयल के कैप्सूल सप्लीमेंट के रूप में भी लिए जा सकते हैं।\n\n\n", + "Disease: हैपेटाइटिस (Hepatitis)\n\nDescription: \nलिवर शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। वह भोजन पचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर में होने वाली चयापचय क्रियाओं (Metabolic Process) में लिवर (Liver) विशेष सहायता करता है।\n\nSymptoms: \n- अत्यधिक कमजोरी व थकान\n- आंख, जीभ, मूत्र व त्वचा में पीलापन\n- पाचन समस्याओं जैसे उल्टी\n- भूख में कमी\n- चिड़चिड़ापन\n\nReasons: \nहैपेटाइटिस को सामान्यत: पानी से होनी वाली बीमारी माना जाता है जो पूरी तरह गलत है। डॉक्टरों के अनुसार निम्न कारणों से भी हैपेटाइटिस हो सकता है: \nहैपेटाइटिस के कारण (Causes of Hepatitis)\n- आनुवांशिक,\n- कुपोषण,\n- शराब,\n- फैटी लीवर\n\nTreatments:\nहैपेटाइटिस से बचाव के लिए साफ-सफाई बेहद आवश्यक है। खाने और पीने में हमेशा साफ चीजों के प्रयोग से इससे बचा जा सकता है। हैपेटाइटिस से बचाव के अन्य उपाय निम्न हैं:\n- लिवर को स्वस्थ रखने के लिए साफ-सुथरा भोजन और साफ पानी जरूरी है।\n- बाहर का खाना खाने से बचें, लेकिन खाना भी पड़े तो साफ-सफाई देखकर ही खाएं।\n- हैपेटाइटिस ए (Hepatitis A Vaccine) का टीका जरूर लगवाना चाहिए।\n- किसी दूसरे की सुई, रेजर और टूथब्रश इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।\n- रक्त चढ़ाने पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि नई सुई हो और रक्त संक्रमित न हो।\n- अधिक तेल, घी, हल्दी और मिर्च मसाले का भोजन न करें।\n- हरी पत्तीदार सब्जियां खाएं, मौसमी और गन्ने का रस पिएं।\n- नारियल पानी, चावल, दही या छाछ, उबले आलू और छैने वाला रसगुल्ला खाएं।\n- पीला बुखार\n- लीवर कैंसर \n\nHome Remedies:\nहेपेटाइटिस रोग, लीवर में सूजन और जलन (inflammation) के कारण होता है। लीवर शरीर को स्वस���थ रखने में महत्वपूर्ण कार्य करता है। पोषक तत्वों को स्टोरेज करने के साथ ही शरीर में ऊर्जा के संचार को कंट्रोल करना और कोलेस्ट्रॉल आदि का निर्माण भी लीवर ही करता है। लीवर यानि गुर्दे में परेशानी तब आती है जब हानिकारक पेय या भोजन अधिक मात्रा में खाया जाता है। शराब या अन्य नशीले पदार्थ लीवर पर बुरा असर डालते हैं। इससे इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है। कई बार यह आनुवंशिक समस्या भी हो सकती है।\nहेपेटाइटिस के लक्षणों में पेट के दायीं ओर के हिस्से में भारीपन लगता है, पीलिया हो सकता है, थकावट महसूस होती है तथा खुजली होती है। हेपेटाइटिस का उपचार घरेलू सामग्री से भी संभव है लेकिन स्थिति अगर काबू में न आए तो चिकित्सक के पास जाना ही ठीक होता है। आइए आपको बताते हैं हेपेटाइटिस के उपचार के लिए कुछ घरेलू उपायों के बारे में-\n1. अजवायन और जीरा (Ajwain aur jeera)\nएक चम्मच अजवायन और एक चम्मच जीरा पीसकर पाउडर बना लें। इसमें एक चुटकी नमक मिलाएं। इस चूरन को रोजाना दो बार खाएं। इससे इम्यूनिटी बढ़ेगी और हेपेटाइटिस में आराम होगा।\n2. लिकोरिस पाउडर और शहद (Liquorice powder and honey)\nएक बड़ा चम्मच लिकोरिस पाउडर में दो चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन खाएं। हेपेटाइटिस के उपचार में यह भी बेहद फायदेमंद है। इसके साथ ही लिकोरिस की जड़ को पानी में उबालकर उसकी चाय भी बनाई जा सकती है।\n3. लहसुन (Garlic)\nलहसुन रक्त को साफ करता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है ऐसे में रोजाना सुबह खाली पेट लहसुन की एक से दो कली चबाएं। साथ ही खाना बनाने में भी लहसुन का प्रयोग मसाले के रूप में जरूर करें।\n4. हल्दी (Haldi)\nहल्दी इनफ्लेमेंटरी (inflammatory) गुणों से भरपूर होती है। हल्दी का इस्तेमाल भी हेपेटाइटिस से रक्षा कर सकता है। हल्दी को दूध में डालकर पीने से भी बहुत लाभ होता है। हालांकि पीलिया होने में हल्दी लेने की मनाही होती है।\n5. काली गाजर (Black carrot)\nकाली गाजर के भी बहुत फायदे हैं। विटामिन से भरपूर काली गाजर से खून की कमी पूरी होती है तथा रक्त संचार सुधरता है। हेपेटाइटिस में भी गाजर को सलाद के रूप में खाने से बहुत फायदे होते हैं।\n6. ग्रीन टी (Green tea)\nग्रीन टी यानि हर्बल चाय गुणों से भरपूर होती है। ग्रीन टी में एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) होते हैं जो शरीर के साथ ही मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखते हैं। हेपेटाइटिस के उपचार और बचाव के लिए ग्रीन टी को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।\n7. आंवला (Amla)", + "Disease: हैपेटाइटिस (Hepatitis)\nआंवला विटामिन सी से भरपूर होता है जो लीवर को हर तरह से फायदा पहुंचाता है। आंवला का प्रयोग च्यवनप्राश में भी किया जाता है जिससे इम्यूनिटी बढ़े और पाचन शक्ति मजबूत हो। ऐसे में आंवला का प्रयोग दैनिक आहार में भी किया जा सकता है। आंवला जूस, चटनी, अचार आदि को दैनिक आहार में शामिल करें।\n8. अलसी के बीज (Flax seed)\nअलसी के बीज शरीर में हार्मोन का संतुलन दोनों बनाए रखते हैं और उन्हें रक्त में सही तरीके से भेजने का काम भी करते हैं। फ्लैक्स सीड में सायटोकांस्टीट्यूएंट्स (phytoconstituents) होते हैं जो कि हार्मोन की बाइंडिंग का काम करते हैं और लीवर पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ने देते। फ्लैक्स सीड को यूं ही टोस्ट के ऊपर, सलाद मे या दाल आदि में डालकर खाया जा सकता है। यह लीवर को मजबूत बनाने में सहायक है जिससे हेपेटाइटिस रोग से बचाव होता है।\n\n\n", + "Disease: पीले दाँत (Yellow Teeth)\n\nDescription: \nदांत सिर्फ हमें भोजन चबाने में ही मदद नहीं करते, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करते हैं। साफ, स्वस्थ व सुंदर दांत चेहरे का आकर्षण होते हैं। लेकिन अगर दांत पीले हो तो यह शर्मिंदगी का भी कारण बन सकते हैं।\n\nSymptoms: \n- पीले दाँत\n\nReasons: \nदांतों में पीलापन आना हमारे गलत रहन-सहन के कारण तो कई बार साफ-सफाई ना रखने के कारण होता है। कुछ अन्य कारण भी हैं जिनके कारण दांत पीले होते हैं, जैसे: \nपीले दांतों का मुख्य कारण (Causes of Yellow teeth in Hindi)\n- तंबाकू, गुटका, शराब आदि के ज्यादा सेवन करने से दांत पीले हो सकते हैं। \n- कुछ लोगों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ दांतों पर प्लैक की परत चढ़ती जाती है। इससे भी दांत पीले दिखने लगते हैं। \n- ज्यादा मात्र में चाय, कॉफी और कोल्ड ड्रिंक का सेवन करने से भी दांत पीले होने लगते हैं। \n- फ्लोरोसिस : देश के कई शहरों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण दांतों का रंग बदरंग हो जाता है। उनमें ऊपर पीले एवं सफेद चिकत्ते दिखाई पड़ते हैं। \n\nTreatments:\nअगर दांतों को साफ करने के बाद भी दांतों से पीलापन ना जाए तो निम्न उपचार अपनाने चाहिए:\n- व्हाइट्नर, शाइनर और विशेष केमिकल्स के जरिये दांतों की चमक आसानी से लौटाई जा सकती है।\n- डेंटल ब्लीचिंग से दांतों का पीलापन, पीले-लाल धब्बे, गुटका, तंबाकू आदि के दाग आसानी से खत्म किए जा सकते हैं।\n- पीले दांतों को सफेद करने का घरेलू उपचार, बेकिंग सोडा है। गरम पानी में बेकिंग सोडा मिला कर उससे कुल्ला (Gargle) करें। जब मुंह से पानी बाहर निकालें तब अपने दांतों को उंगलियों से रगड़ें, इससे दांत चमक जाएंगे।\n- दांतों को स्वस्थ रखने के लिए फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट और मुलायम ब्रश से दिन में दो बार दांत साफ करने की आदत डालें।\n- इसके साथ जीभ की सफाई भी करें, क्योंकि बैक्टीरिया ज्यादातर यहीं पनपते हैं।\n- दिन में एक बार फ्लॉस भी करें। इससे दांतों के बीच फंसे भोजन के टुकड़े निकल जाते हैं।\n- अधिक गर्म चीजें न खाएं।\n- ज्यादा कड़क ब्रिसल वाले ब्रश से दांत साफ न करें।\n- माँसाहारी खाना खाने के बाद कुल्ला जरूर करें। इससे दांतों में फंसे रेशे भी निकल जाएंगे और गंध भी।\n- दांतों में तकलीफ न हो, तब भी साल में एक बार दांतों का चेकअप जरूर कराएं।\n- कुछ भी खाने-पीने के बाद साफ पानी से कुल्ला करें।\n- ज्यादा पुराना ब्रश मसूड़ों और दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए हर तीन महीने में ब्रश बदल लें।\n\nHome Remedies:\nसफेद और चमकते दांत किसी की भी पर्सनेलिटी में निखार ला सकते हैं। बहुत से लोग पीले दांतों के कारण लोगों के सामने हंसने से बचते हैं या मुंह पर हाथ रखकर हंसते हैं। दांत ज्यादातर उम्र के कारण, दांतों की ठीक से सफाई न होने के कारण, बहुत ज्यादा चाय या कॉफी पीने के कारण अथवा तंबाकू और सिगरेट पीने के कारण पीले हो जाते हैं।\nकभी कभी किसी बीमारी के कारण भी दांत पीले हो जाते हैं। हालांकि पीले दांतों को सफेद बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। थोड़ी सी मेहनत से आप पीले दांतों को सफेद बना सकते हैं। आइए आपको कुछ घरेलू नुस्खे बताते हैं जो आपके दांतो की सफेदी और चमक को बनाए रखेंगे।\n1. बेकिंग सोडा- (Baking Soda)\nबेकिंग सोडा दांतों को सफेद बनाने का सबसे आसान तरीका है। यह दांतों से प्लाक को खत्म करके दांतों की सफेदी और चमक बनाए रखता है।\nकैसे उपयोग करें\n- रोज ब्रश करते समय अपने पेस्ट में थोड़ा सा बेकिंग पाउडर डालें और ब्रश करें। दांतों की सफेदी लौट आएगी।\n- एक कप पानी में बेकिंग सोडा और हाइड्रोजन पर ऑक्साइड (hydrogen peroxide) मिलाकर माउथ वॉश (mouthwash) की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है।\n2. संतरे का छिलका- (Peel of Orange)\nसंतरे के छिलके से रोज दांतों की सफाई करने से कुछ ही दिनों में पीले दांत चमकने लगेंगे।\nकैसे उपयोग करें\n- रोज रात को सोते समय संतरे के छिलके को दांतों पर रगड़ें। संतरे के छिलके में विटामिन सी (vitamin c) औ��� कैल्शियम के साथ माइक्रोऑर्गेनिज्म (micro organism) होता है जो दांतों की मजबूती और चमक बनाए रखता है।\n3. स्ट्रॉबेरी- (Strawberry)\nस्ट्रॉबेरी में भी विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है जो कि दांतों को सफेद बनाने में सहायक है।", + "Disease: पीले दाँत (Yellow Teeth)\nकैसे उपयोग करें\n- स्ट्रॉबेरी के कुछ टुकड़ों को पीसकर, इस लेप को दांतों पर लगाकर मसाज करें। इसे दिन में दो बार करने से कुछ ही दिनों में पीले दांत सफेद होने लगते हैं।\n- बेकिंग सोडा और स्ट्रॉबेरी के पल्प को मिलाकर भी दांतों पर रगड़ने से दांतों का पीलापन खत्म होता है।\n4. नींबू- (Lemon)\nनींबू के प्राकृतिक ब्लीचिंग (natural bleach) के गुण दांतों पर भी असर दिखाते हैं। पीले दांतों के लिए नींबू के छिलके को दांतों पर रगड़ा जा सकता है, या नींबू के पानी से गरारे भी किए जा सकते हैं।\nकैसे उपयोग करें\n- नींबू के साथ नमक मिलाकर दांतों की मसाज करें।\n- दो हफ्तों तक रोजाना दो बार करने से दांत चमकने लगेंगे।\n5. नमक- (Salt)\nनमक को पुराने समय से ही दांतो की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह दांतों के खोए मिनरल्स लौटाता है जिससे दांतों का सफेद रंग बना रहता है।\nकैसे उपयोग करें\n- रोजाना सुबह टूथपेस्ट की तरह नमक को दांतों की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। नमक को चारकोल में मिलाकर भी दांतों की सफाई की जा सकती है जिससे दांत सफेद होते हैं।\n- नमक और बेकिंग पाउडर मिलाकर भी मंजन तैयार किया जा सकता है।\n6. तुलसी- (Basil)\nतुलसी में भी दांतों को सफेद बनाने का गुण होता है। इसके साथ ही तुलसी पायरिया आदि से भी दांतों की रक्षा करती है।\nकैसे उपयोग करें\n- तुलसी के पत्तों को सुखाकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को रोजाना इस्तेमाल करने वाले टूथपेस्ट में मिलाकर दांतों की सफाई करें।\n- तुलसी के पत्तों का पेस्ट बनाकर उसमें सरसों का तेल (mustard oil) मिलाएं। इस पेस्ट से दांतों की सफाई करने पर भी बहुत फायदा होता है।\n7. सेब- (Apple)\nसेब को डाइट में शामिल करने से भी दांतों की सफेदी लौटाई जा सकती है। सेब की क्रंचीनेस दांतों को प्राकृतिक तौर पर स्क्रब करती है। रोजाना एक या दो सेब जरूर खाएं और खूब चबा चबा कर खाएं। इसी तरह गाजर और खीरा भी कच्चा खाने से दांत सफेद तथा मजबूत बनते हैं।\n\n\n", + "Disease: टी. बी. (Tuberculosis)\n\nDescription: \nट्यूबरक्युलोसिस (Tuberculosis) मायकोबेक्टिरियम ट्यूबरक्युलोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है। टी.बी. रोग को अन्य कई नाम से जाना जाता है, जैसे तपेदिक, क्षय रोग तथा यक्ष्मा।\n\nSymptoms: \n- अगर आपका वजन, बगैर कोशिश किये हुये, पिछले 2 महीनों में, 5 किलोग्राम से अधिक घट गया है\n- अगर आपको खांसी में खून आता है\n- अगर आपको खांसी में बलगम आता है\n- अगर आपको तीन हफ्ते से अधिक से खांसी है\n- अगर आपको भूख कम लगती है\n- अगर आपको रात में अधिक पसीना आता है\n- अगर आपने अपने बलगम का कभी टी बी का जांच करवाया है, जिसे पोज़िटिव कहा गया हो\n\nReasons: \nटीबी कई कारणों से फैलता है लेकिन इसके प्रमुख कारणों में अपर्याप्त व अपौष्टिक भोजन, कम जगह में अधिक लोगों का रहना, गंदगी, गाय का कच्चा दूध पीना आदि हैं। इसके अन्य कारण निम्न हैं: \nटीबी के कारण (Causes of Tuberculosis)\n- टी बी के मरीज के जहां-जहां थूकने से इसके विषाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके उसे रोगी बना देते हैं।\n- कपड़ा मिल में काम करने वाले श्रमिक या रेशे-रोए के संपर्क में रहने वाले लोग,\n- बुनकर, धूल के संपर्क में रहने वाले लोग तथा अंधेरी कोठरियों या चालों में रहने वाले लोग भी इस रोग का शिकार हो जाते हैं।\n- मदिरापान, धूम्रपान तथा रोगग्रस्त पशु का मांस खाने वाले लोग भी टीबी का शिकार हो सकते हैं।\n- असावधानीवश रोगी का खून अन्य किसी रोग के शरीर में चढ़ाने से वह व्यक्ति रोगग्रस्त हो जाता है। \n\nTreatments:\nटीबी का उपचार (Treatment of Tuberculosis in Hindi)\n- यदि तीन अथवा अधिक सप्ताह से खाँसी हो रही हो तो कफ़ की दो बार जाँच कराएं। ये जाँच सरकारी कफ़ सूक्ष्मदर्शी केन्द्रों पर नि:शुल्क की जाती है।\n- सभी दवाओं को नियमित रूप से, बताई गई पूरी अवधि तक लें।\n- खाँसते या छींकते समय रूमाल का प्रयोग करें।\n\nHome Remedies:\nटीबी यानि ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis), एक प्रकार का इंफेक्शन होता है जो कि मायकोइक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (mycobacterium tuberculosis) बैक्टीरिया के कारण फैलता है। टीबी अधिकतर फेफेफड़ों में होती है लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। टीबी के मरीज के कफ में खून आना टीबी का आम लक्षण है इसके अलावा सांसों का तेज चलना, वजन का कम होना, बुखार होना, किडनी और सीने में दर्द होना आदि भी ट्यूबरकुलोसिस के लक्षण हैं।\nवैसे तो टीबी से पूरी तरह निजात के लिए चिकित्सक से परामर्श आवश्यक है लेकिन कुछ घरेलू उपचारों के द्वारा भी टीबी को ठीक करने की प्रक्रिया तेज की जा सकती है। आइए आपको बताते हैं टीबी के उपचार के लिए कुछ घरेलू नुस्खे-\n1. लहसुन (Garlic)- लहसुन में सल्फ्यूरिक एसिड (sulphuric acid) प्रचुर मात्रा में होता है जो कि टीबी के कीटाणुओं को मारने में सक्षम है। इसके साथ ही लहसुन में एलीसिन (allicin) और एजोइनी (agoeni) भी होते हैं जो कि टीबी के पनपने वाले कीटाणुओं का खत्म करने का काम करते हैं। इतना ही नहीं लहसुन के एंटीबैक्टीरियल गुण इम्यूनिटी को भी बढ़ाते हैं।\nकैसे करें उपयोग\nआधी चम्मच लहसुन, एक कप दूध और चार कप पानी को एक साथ मिलाकर उबालें। इसे तब तक उबालें जब तक यह मिश्रण एक चौथाई रह जाए। इस मिश्रण को दिन में तीन बार पीएं।\nगरम दूध में लहसुन का रस मिलाकर भी पीया जा सकता है। इसके बाद पानी न पीएं।\nगरम दूध में लहसुन को उबालें। इसके बाद लहसुन को चबाकर बचे हुए दूध को पी लें।\n2. केला (Banana)- केला पोषक तत्वों और कैल्शियम का बहुत अच्छा स्त्रोत है। यह टीबी के मरीज का इम्यून सिस्टम बढा़ने में सहायक है। इसके साथ ही बुखार और कफ से भी राहत देता है।\nकैसे करें उपयोग\nएक पके हुए केले को एक कप नारियल के पानी में मसलकर मिलाएं। इसके बाद इसमें दही और शहद मिलाएं। इसे दिन में दो बार खाएं।\nकच्चे केले का जूस बनाकर रोजाना पीएं।\nकेले के तने का जूस बनाकर भी पीया जा सकता है।\n3. आंवला (Amla)- आंवला में एंटीफ्लेमेटरी (anti inflammatory) और एंटीबैक्टीरियल (antibacterial) गुण होते हैं। जो शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत करके शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।\nकैसे करें उपयोग\nआंवला के बीज निकालकर, जूस बनाएं और इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह सुबह पीएं।", + "Disease: टी. बी. (Tuberculosis)\n4. संतरा (Orange)- संतरे में भी जरूरी मिनरल्स (minerals) और कंपाउंड (compound) होते हैं। संतरे में मौजूद सलाइन (salain) शरीर को इंफेक्शन से बचाता है साथ ही इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।\nकैसे करें उपयोग\nताजा संतरे के रस में थोड़ा सा नमक और शहद मिलाकर रोजाना सुबह शाम पीएं। संतरे को छीलकर उसकी स्लाइस पर भी नमक छिड़क कर खाया जा सकता है।\n5. शरीफा (Custard apple)- टीबी के उपचार के लिए शरीफा भी बेहद फायदेमंद है। शरीफे का पल्प निकालकर इसे खाना चाहिए।\nकैसे करें उपयोग\nदो शरीफों का पल्प निकालकर उसे पानी में उबाल लें, इसके साथ पच्चीस किशमिश (kishmish) को भी उबाल लें। जब पानी एक तिहाई रह जाए तब इसे छानकर इसमें पाउडर शुगर मिलाएं। इस पेय में इलायची और दालचीनी मिलाकर दिन में दो बार पीएं।\n6. काली मिर्च (Black pepper)- काली मिर्च फेफड़ों (lungs) की सफाई का काम करती है। जिससे टीबी के दौरान होने वाले सीने के दर्द से राहत ��िलती है। इसके साथ ही यह टीबी के कीटाणुओं को मारने का काम भी करती है।\nकैसे करें उपयोग\nमक्खन में आठ से दस काली मिर्च फ्राई करें। इसमें एक चुटकी हींग मिलाएं और पाउडर बना लें। इस मिश्रण को तीन बराबर भागों में बांट लें। कुछ कुछ घंटे के अंतराल पर इसकी एक एक डोज खाएं।\n7. अखरोट (Walnut)- अखरोट टीबी के मरीजों को ताकत देता है, उनकी इम्यूनिटी बढ़ाता है और जल्दी ठीक होने में भी मदद करता है।\nकैसे करें उपयोग\nअखरोट के पाउडर में कुछ कली लहसुन की मिलाकर कुचल लें। इसमें क्लेरीफाइड मक्खन (clarified butter) मिलाकर खाएं।\nअखरोट को यूं भी खाया जा सकता है या इसके पाउडर को सलाद में डालकर खाएं।\n8. पुदीना (Mint)- पुदीना में मौजूद एंटीबैक्टीरियल (antibacterial) गुणों के कारण इसमें भी टीबी के रोग को ठीक करने का अद्भुत गुण होता है।\nकैसे करें उपयोग\nएक चम्मच पुदीने के रस में दो चम्मच शहद मिलाएं, इसके साथ ही इस घोल में माल्ट विनेगर (malt vinegar) और आधा कप गाजर का जूस मिलाएं। इस घोल को कुछ कुछ घंटों पर पूरे दिन पीएं।\n\n\n", + "Disease: फ्रोज़न शोल्डर (Frozen Shoulder)\n\nDescription: \nकंधे का दर्द एक बहुत ही आम शिकायत है। ऐसा माना जाता है कि कंधों के आसपास जोड़ों में सूजन आने के कारण यह दर्द होता है। ऐसे दर्द में कभी-कभार कंधे सुन्न भी पड़ जाते हैं। यह स्थिति कई बार महीनों तक रह जाती है।\n\nSymptoms: \n- कंधों का सुन्न पड़ जाना\n- कंधों को घुमाने में असमर्थता महसूस होना\n- रात में कंधों में तीव्र दर्द होना\n\nReasons: \n- डायबिटीज के मरीजों में, हृदय समस्या से ग्रसित लोगों में पार्किसन बीमारी के मरीजों में हो सकती है।\n- गर्दन में होने वाली सर्वाइकल डिस्क की समस्या भी ऐसे दर्द का कारण हो सकती है।\n- वो मरीज, जिन्हें कंधों पर किसी प्रकार की चोट लगी हो या कंधों की किसी प्रकार की सर्जरी हुई है, उनमें फ्रोजन शोल्डर की आशंका अधिक होती है। \n\nTreatments:\nकंधों की जकड़न में अकसर मालिश या सेंक से आराम मिलता है। अगर इससे आराम नहीं मिलता है तो निम्न उपाय अपनाने चाहिए:\n- दर्द को अनदेखा न करें। यह लगातार हो तो डॉक्टर को दिखाएं।\n- सामान्य कंधों के दर्द में दर्द निवारक दवाओं से ही राहत मिल जाती है। ऐसा दर्द कंधों में सूजन के कारण होता है, इसलिए सूजन कम करने वाली दवाएं भी राहत पहुंचा सकती हैं। लेकिन दर्द की दवाओं का प्रयोग केवल आपात स्थिति में ही करें।\n- कंधों को गर्म या ठंडा सेक दें।\n- दर्द से जल्द आराम के लिए ए��्यूपंक्चर चिकित्सा का सहारा ले सकते हैं।\n- फ्रोजन शोल्डर की चिकित्सा का सबसे अच्छा उपाय फिजियोथेरेपी (Physiotherapy) माना जाता है। फिजियोथेरेपी में कंधों में खिंचाव उत्पन्न कर कंधों को दोबारा गतिमान बनाना होता है। ऐसा करने के लिए कंधों के विभिन्न बिंदुओं को व्यायाम द्वारा धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लाने का प्रयास किया जाता है।\n- फ्रोजन शोल्डर (Frozen Shoulder) की चिकित्सा समय पर नहीं की गई तो मरीज को पूरा जीवन इस समस्या के साथ बिताना पड़ सकता है।  \n\n\n", + "Disease: सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (Cervical Sypondolysis)\n\nDescription: \nउम्र के साथ हड्डियों में घिसाव व बदलाव आ जाता है। यह गर्दन की हड्डियों में भी होता है। हड्डियों में घिसाव, अन्तर हो जाने या इनके जोड़ वाले भाग की मांसपेशियों में सूजन से गर्दन का दर्द यानि सर्वाइकल स्पांडाइलोसिस (Cervical Spondolysis) होता है। यह सब गर्दन की उस हड्डी में होता है जिसे सरवाइकल स्पाइन कहते हैं। रीढ़ की हड्डी का गर्दन वाला यह भाग मेरुदण्ड (Spine) की सात कशेरूकाओं (Vertebrae) एवं उनके मध्य की डिस्क से बनता है। गर्दन की 85 प्रतिशत गतिविधियाँ ऊपर की दो कशेरूकाओं के कारण होती है। गर्दन के दर्द से होने वाली परेशानी इसमें बाधा पहुंचाती हैं। सरवाइकल स्पांडाइलोसिस पहले 40 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को होता था किन्तु वर्तमान समय की जीवनचर्या एवं आजीविका ने बच्चे और बड़ों सभी को गर्दन में दर्द का मरीज बना दिया है।\n\nSymptoms: \n- गरदन में अकड़न,\n- गर्दन घुमाने में चट की आवाज आना\n- गर्दन घुमाने में दिक्कत\n- चक्कर आना\n- दर्द व भारीपन\n- नसों में खिंचाव से हाथों में कंपन आदि लक्षण दिखते है\n- सिर के पीछे भाग में दर्द\n- हाथों का सुन्न पड़ जाना, जान न रहना\n\nReasons: \n- सोते समय मोटे तकिए का उपयोग इसका एक कारण है।\n- बैठने की गलत स्थिति के कारण, लंबे समय तक एक जैसी स्थिति में बैठना। कंप्यूटर पर ज्यादा देर तक काम करने वाले व्यक्ति, दंत चिकित्सक, वाहन चालक, हेलमेट धारक आदि को यह अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा होता है।\n- विद्यार्थी एवं ऐसे व्यक्ति जो भारी बैग पीठ या कंधे पर लटकाए रहते हैं, वे इससे पीड़ित होते हैं।\n- किसी चोट या फ्रैक्चर के कारण यह दर्द होता है।\n- कुछ अन्य रोगों में भी यह दर्द प्रकट होता है।\n- एक जैसी स्थिति में लगातार टीवी, कंप्यूटर, वीडियो गेम आदि के उपयोग से होता है।\n\nTreatments:\n- गर्दन एवं कंधे का व्यायाम नियमित करें।\n- सही स्��िति में बैठें।\n- पैर जमीन पर एवं पीठ कुर्सी के पृष्ठ भाग पर सीधी रखें।\n- झुककर या एक जैसी स्थिति में लगातार काम न करें।\n- बीच-बीच में कंधे, गर्दन को घुमाएं।\n- मोटे तकिए व मसनद का उपयोग कम या बंद कर दें।\n- गर्दन के दर्द वाले भाग की गर्म कपड़े से सिकाई करने या बर्फ घिसने से दर्द ठीक हो जाता है, फिर भी दर्द बना रहे तो हड्डी रोग विशेषज्ञ से मिलें और उपचार लाभ लें।\n\nHome Remedies:\nसर्वाइकल स्पांडलाइटिस (cervical spondylosis) को गर्दन की गठिया (neck arthritis) के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में गर्दन के जोड़ में दर्द की शिकायत रहती है। यह जोड़ कार्टिलेज, ऊतक और सर्वाइकल स्पाइन में जुड़े रहते हैं। \nसर्वाइकल स्पांडलाइटिस अधिकतर उम्र बढ़ने के साथ होने लगता है लेकिन कई दफा गर्दन पर दबाव पड़ने, बैठने-उठने के गलत पोश्चर से, धूम्रपान करने, वजन के बहुत ज्यादा होने, जेनेटिक कारणों और आलसी रहन सहन से भी शुरू हो सकता है। हालांकि कुछ घरेलू उपाय अपनाकर सर्वाइकल स्पोन्डीलोयसिस का उपचार संभव है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही उपचारों के बारे में-\n1. नियमित व्यायाम (Daily excersise)- नियमित व्यायाम न करना भी सर्वाइकल स्पांडलाइटिस होने का बड़ा कारण है। नियमित व्यायाम से गर्दन के दर्द को कम किया जा सकता है। \n(यदि किसी भी तरह के व्यायाम से दर्द बढ़ जाए तो व्यायाम को छोड़ दें)\n2. गर्म और ठंडी सिकाई (Hot and cold fomentation)- गर्दन दर्द से निजात के लिए गर्दन की गर्म और ठंडी सिकाई करने से भी बहुत आराम मिलता है। गर्म सिकाई करने से रक्त संचार बेहतर होता है वहीं ठंडी सिकाई से सूजन और चुभन कम होती है।\nकैसे करें उपचार-\nगर्म सिकाई के लिए गर्म पानी की बोतल को तौलिया में लपेट कर गर्दन की सिकाई करें।\nठंडी सिकाई करने के लिए बर्फ (ice) के टुकड़ों को तौलिया में लपेटकर, उस तौलिया से सिकाई करें।\nसिकाई करते वक्त कम से कम दो से तीन मिनट तक गर्दन की लगातार सिकाई होनी चाहिए।\n15 से 20 मिनट में दोबारा दोहराएं। इस विधि को आराम होने तक दिन में दो बार करें।\n3. लहसुन (Garlic)- यदि सर्वाइकल स्पांडलाइटिस के लक्षण नजर आएं तो लहसुन का इस्तेमाल बेहद अच्छे परिणाम दे सकता है। इसके औषधीय गुण गर्दन के दर्द, सूजन और जलन को ठीक करते हैं। \nकैसे करें उपचार-", + "Disease: सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (Cervical Sypondolysis)\nलहसुन की दो कली हर सुबह खाली पेट पानी के साथ खाएं।\nखाना बनाने वाले किसी भी तेल में लहसुन की कुछ कलियां डाल कर भून ले��। इस तेल को गुनगुना होने तक ठंडा करें और प्रभावित हिस्से की मालिश करें। इस विधि को दिन में दो बार किया जा सकता है।\n4. हल्दी (Haldi)- हल्दी के औषधीय गुण किसी से छिपे नहीं है लेकिन अच्छी बात यह भी है कि यह सर्वाइकल स्पांडलाइटिस के दर्द में भी उतनी ही प्रभावी है। हल्दी रक्त संचार तेज करके गर्दन के दर्द से आराम देती है और गर्दन की अकड़न को भी कम करती है।\nकैसे करें उपचार-\nएक चम्मच हल्दी को दूध में डालकर उबालें और ठंडा होने पर इसमें शहद मिलाएं, इसे दिन में दो बार पीएं।\n5. तिल (sesame seed)- सर्वाइकल स्पांडलाइटिस के उपचार के लिए आयुर्वेद की बेस्ट औषधि है तिल। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैग्नीज, कॉपर, जिंक, फॉस्फोरस और विटामिन के (vitamin k) तथा डी (vitamin d) प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसी कारण यह हड्डियों के साथ साथ पूरे शरीर के लिए फायदेमंद है।\nकैसे करें उपचार-\nतिल के तेल को गुनगुना करके लगभग 10 मिनट प्रभावित हिस्से की मसाज करें। इस क्रिया को दिनभर में तीन से चार बार करें।\nगरम सीसम के तेल में कुछ बूंदे लेवेंडर के तेल की डालकर भी मसाज की जा सकती है।\nतिल को हल्का सा भूनकर रोज सुबह चबाएं। इसके अलावा गरम दूध में भुने हुए तिल डालकर भी पीया जा सकता है। एक दिन में लगभग दो गिलास दूध पीएं।\n6. अदरक (Ginger)- सर्वाइकल स्पांडलाइटिस के इलाज के लिए अदरक भी बेहतरीन प्रभाव दिखाता है। यह रक्त संचार (blood circulation) को तेज करता है जिससे गर्दन के दर्द से राहत मिलती है।\nकैसे करें उपचार-\nएक दिन में लगभग तीन कप अदरक की चाय पीएं। अदरक की चाय बनाने के लिए पानी में अदरक उबालें और ठंडा करके इसमें शहद मिलाएं। इस पेय को पीएं।\nप्रभावित हिस्से की अदरक के तेल से मसाज भी की जा सकती है।\n7. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)- सेब साइडर सिरका भी सर्वाइकल स्पांडलाइटिस से राहत देने में बहुत अच्छा असर दिखाती है। यह गर्दन के दर्द और सूजन से राहत देता है।\nकैसे करें उपचार-\nकिसी कपड़े को से साइडर सिरका में भिगोकर प्रभावित स्थान पर लपेटें और कुछ घंटों के लिए छोड़ दें। दिन में दो बार इस विधि को करें।\nदो कप सेब के सिरके को गुनगुने पानी में डालकर नहाया भी जा सकता है। \nएक गिलास पानी में कच्चा सेब का सिरका और शहद मिलाकर पीने से भी लाभ होता है।\n\n\n", + "Disease: वाकविकार (Dyslexia)\n\nDescription: \nडिस्लेक्सिया कोई बीमारी नहीं है और न ही यह कोई मानसिक अयोग्यता है। डिस्लेक्सिया (Dyslexia) पढ़ने-लिख��े से संबंधी एक विकार है, जिसमें बच्चों को शब्दों को पहचानने, पढ़ने, याद करने और बोलने में परेशानी आती है। वे कुछ अक्षरों और शब्दों को उल्टा पढ़ते हैं और कुछ अक्षरों का उच्चारण भी नहीं कर पाते। उनकी पढ़ने की रफ्तार और बच्चों की अपेक्षा काफी कम होती है ।\n\nSymptoms: \n- अगर आपका बच्चा इनमें से एक या दो परेशानियों से गुजर रहा है और वो स्थायी समस्या नहीं हों तो थोड़ी मदद से ही बच्चे को राहत मिल सकती है, चाहे वो घर पर की गई मदद हो या कक्षा में\n- उच्चारण साफ नहीं होना\n- उत्तेजित रहना\n- कविता वाले शब्दों में दिक्कत\n- काफी थका होना या एकाग्रता (एक चीज़ पर ध्यान लगाने) में कमी\n- गिनती, शब्द, दिन और महीनों के नाम समझने में दिक्कत\n- दाएं और बांए में अंतर समझने में दिक्कत होना\n- दिशा और निर्देश समझने में परेशानी\n- दूसरे बच्चों के मुकाबले देर से बोलना शुरु करना\n- नंबरों के क्रम और गणित के चिन्हों में उलझन\n- नई चीजें सीखने में देरी\n- पढ़ाई के दौरान शब्दों की गलतियां लगातार करना\n- प्राइमरी पढ़ाई के दौरान लक्षण पढ़ने\n- बातचीत करने में दिक्कत\n- बिना सोच विचार के कार्य करना या किसी कार्य को करने योजना नहीं बनाना\n- यदि घर पर आप अपने बच्चे के व्यवहार के बारे में सतर्क हैं तो शिक्षकों से जानकारी लीजिए कि क्या स्कूल में भी वो ऐसा ही व्यवहार करता है.\n- लोगों से बोलचाल करने में दिक्कत, अपने आसपास की चीजों के प्रति असंवेदनशीलता जिसके कारण दुर्घटना की संभावना बनी रहती है\n- वर्णमाला और संख्या को सीखने में दिक्कत होना\n- शब्दों और ध्वनि के मेल को काफी देर से समझना\n- शब्दों का मतलब समझने में देरी, ज्यादातर सही शब्दों को नहीं पकड़ पाना\n- शब्दों की पहचान में दिक्कत जैसे (b/d), उल्टे (m/w), मिलते जुलते (felt/left) और वैकल्पिक (house/home) शब्द\n- समय के बारे में याद रखने की कमी\n- स्कूल से पहले के लक्षण\n\nReasons: \n- वंशानुगत (Herediatary), यह तंत्रिका तंत्र (Nervous System) की समस्या है, जो जन्म पूर्व कारकों पर निर्भर करती हैं। \n- माता के संतुलित आहार की कमी, धूम्रपान का सेवन भी इसके कारण हो सकते हैं।\n- बच्चों में कुपोषण भी इसका एक बड़ा कारण है।\n\nTreatments:\n- कुछ केस में बच्चे के जन्म से पहले ही डिस्लेक्सिया का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में डॉक्टर उन गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार लेने की सलाह के साथ साथ कुछ विशेष दवाओं से संबंधित सलाह देते हैं।\n- जिन मामलों में जन्म के बाद डिस्लेक्सिया का पता लगता है, उन बच्चों को ज्यादा समय देकर संभाला जा सकता है। इन बच्चों की समझ धीमी होती है, इसलिए इन्हें ज्यादा समय देने की आवश्यकता होती है।\n- डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के साथ अपना पढ़ने का अपना तरीका बदलें, चीजों को आसान करके बताएं, तोड़-तोड़कर समझाएं। चित्रों और कहानियों का सहारा लें। जिन अक्षरों को पहचानने और लिखने में समस्या होती है, उन्हें बार-बार लिखवाए।\n- वोकेशनल ट्रेनिंग कराएं।\n\n\n", + "Disease: पित्ताशय की पथरी (Gallstones)\n\nDescription: \nपित्ताशय (Gall Bladder) पित्त (Bile) भंडारण के लिए एक छोटी सी थैली है (पित्त जिगर द्वारा उत्पादित एक पाचक रस है जो खाने में मौजूद वसा के टूटने में प्रयोग किया जाता है)। पित्ताशय में वसायुक्त खाद्य पदार्थों की मात्र अधिक होने से पित्ताशय की पथरी (कोलेस्ट्रॉल, पित्त वर्णक और कैल्शियम लवण से बना छोटा सा पत्थर) का निर्माण होता है।\n\nSymptoms: \n- दर्द छाती, कंधे, गर्दन में भी फैल सकता है\n- पेट और पीठ में अचानक दर्द उठना\n- वसायुक्त भोजन खाने के बाद पेट के दर्द में तेजी आना, पीलिया, बुखार\n\nReasons: \n- पित्त में कोलेस्ट्रॉल की अत्यधिकता (Over Saturation)\n- पित्त में लेसिथिन\n- और पित्त लवण की कम आपूर्ति (Undersupply)।  \n\nTreatments:\nपित्ताशय की पथरी किसी भी समस्याओं का कारण नहीं है लेकिन यदि पित्ताशय की पथरी संक्रमण पैदा कर रहा है तो आपरेशन जरूरी है।\n\nHome Remedies:\nअस्सी फीसदी पित्त की थैली की पथरी कोलेस्ट्रॉल (cholestrol) के जमने या सख्त होने के कारण होती है। पित्त की पथरी के कारण पेट में असहनीय दर्द होता है, कई बार उल्टी (vomit) भी हो सकती है। रोगी का खाना पचने में दिक्कत होने लगती है जिससे पेट में अपच (indigestion) और भारीपन रहता है।\nपित्त की थैली में पथरी होने के बारे में यही कहा जाता है कि बिना ऑपरेशन के इसे निकालना मुश्किल है। ऐसे में यदि आपको गॉल ब्लेडर स्टोन की शिकायत है तो जाहिर है आपने भी ऑपरेशन का विचार बनाया होगा, लेकिन ऑपरेशन से पहले कुछ घरेलू उपाय अपनाकर देखें, संभव है कि पथरी गल जाए। कुछ घरेलू उपाय न केवल पथरी को गला देंगे बल्कि पाचन को दुरूस्त करके दर्द को भी ठीक कर देंगे। आइए जानते हैं, ऐसे ही घरेलू उपायों के बारे में।\n1. सेब का जूस और सेब का सिरका (Apple and Apple cider vinegar)- सेब में पित्त की पथरी को गलाने का गुण होता है, लेकिन इसे जूस के रूप में सेब के सिरके के साथ लेने पर यह ज्यादा असरकारी होता है��� सेब में मौजूद मैलिक एसिड (mallic acid) पथरी को गलाने में मदद करता है तथा सेब का सिरका लिवर में कोलेस्ट्रॉल नहीं बनने देता, जो पथरी बनने के लिए जिम्मेदार होता है। यह घोल न केवल पथरी को गलाता है बल्कि दोबारा बनने से भी रोकता है और दर्द से भी राहत देता है।\nउपचार के लिए- एक गिलास सेब के जूस में, एक चम्मच सेब का सिरका मिलाएं। इस जूस को रोजाना दिन भर में दो बार पीएं।\n2. नाशपाती का जूस (Pear juice)- नाशपाती के आकार की पित्त की थैली को नाशपाती द्वारा ही साफ किया जाना संभव है। नाशपाती में मौजूद पैक्टिन (pectene) कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) को बनने और जमने से रोकता है। यूं भी नाशपाती गुणों की खान है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।\nउपचार- एक गिलास गरम पानी में, एक गिलास नाशपाती का जूस और दो चम्मच शहद (honey) मिलाकर पीएं। इस जूस को एक दिन में तीन बार पीना चाहिए।\n3. चुकंदर, खीरा और गाजर का जूस (Beetroot, Cucumber and carrot juice)- जूस थेरेपी को पित्त की थैली के इलाज के लिए घरेलू उपचारों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। चुकंदर न केवल शरीर का मजबूती देता है बल्कि गॉल ब्लेडर को साफ भी करता है साथ ही लिवर के कोलोन (colon) को भी साफ करता है। खीरा में मौजूद ज्यादा पानी की मात्रा लिवर और गॉल ब्लेडर दोनों को डिटॉक्सीफाई (detoxify) करती है। गाजर में भी विटामिन सी और उच्च पोषक तत्व (high nutrient) होने के कारण यही गुण होते हैं।\nउपचार- एक चुकंदर, एक खीरा और चार गाजर को लेकर जूस तैयार करें। इस जूस को प्रतिदिन दो बार पीना है। जूस में प्रत्येक सामग्री की मात्रा बराबर होनी चाहिए, इसलिए सब्जी या फल के साइज के हिसाब से मात्रा घटाई या बढ़ाई जा सकती है।\n4. पुदीना (Mint)- पुदीना को पाचन के लिए सबसे अच्छी घरेलू औषधि (home remedy) माना जाता है जो पित्त वाहिका तथा पाचन से संबंधित अन्य रसों को बढ़ाता है। पुदीना में तारपीन (terpenes) भी होता है जो कि पथरी को गलाने में सहायक माना जाता है। पुदीने की पत्तियों से बनी चाय गॉल ब्लेडर स्टोन से राहत दे सकती है।", + "Disease: पित्ताशय की पथरी (Gallstones)\nउपचार- पानी को गरम करें, इसमें ताजी या सूखी पुदीने के पत्तियों को उबालें। हल्का गुनगुना रहने पर पानी को छानकर इसमें शहद मिलाएं और पी लें। इस चाय को दिन में दो बार पीया जा सकता है।\n5. खान-पान और दिनचर्या में बदलाव (Changes in diet and daily activity)\nरोजाना 8 से 10 गिलास पानी जरूर पीएं। चाहे प्यास न भी लगी हो।\nवसायुक्त या तेज मसाले वाले खाने से बचें���\nप्रतिदिन कॉफी जरूर पीएं। बहुत ज्यादा भी नहीं लेकिन दिन में एक से दो कप काफी हैं। कॉफी भी पित्त वाहिका को बढ़ाती है जिससे पित्त की थैली में पथरी नहीं होती।\nअपने खाने में विटामिन सी की मात्रा बढाएं। दिनभर में जितना ज्यादा संभव हो विटामिन सी से भरपूर चीजें खाएं।\nहल्दी, सौंठ, काली मिर्च और हींग को खाने में जरूर शामिल करें।\n\n\n", + "Disease: रेबीज (Rabies)\n\nDescription: \nरेबीज़ एक न्यूरो इनवेसिव (Neuro-Invasive) वायरल बीमारी है। रेबीज़ का वायरस तंत्रिका तंत्र यानि सेंट्रल नर्वस सिस्टम (Central Nervous System) पर अटैक करता है, जिससे पीड़ित व्यक्ति सामान्य नहीं रह पाता।\n\nSymptoms: \n- गले की मांस पेशियों में खिंचाव पैदा हो जाता है\n- पीड़ित व्यक्ति कुत्ते की तरह भौंकने भी लगता है\n- बेचैनी, आंशिक पक्षाघात, भ्रम, अनिद्रा और निगलने में कठिनाई आदि कुछ अन्य लक्षण हैं\n- रेबीज का शिकार बने जानवरों का दिमागी संतुलन बिगड़ने लगता है\n- रेबीज हो जाने पर मरीज पानी से डरने लगता है\n\nReasons: \nरेबीज पशुओं के काटने के कारण होता है। पालतू जानवर, कुत्ते, बिल्ली या चमकादड़ के काटने से सबसे अधिक रेबीज़ होता है। \n\nTreatments:\nरेबीज से बचाव के लिए जरूरी है इसके बारें में जानकारी होना। रेबीज़ (Rabies) अकसर पशुओं के काटने के कारण होता है, साथ ही ऐसे में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह सिर्फ काटने ही नहीं छिलने के कारण भी होता है। रेबीज़ होने पर निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:\n- पशुओं के काटने पर काटे गए स्थान को पानी व साबुन से अच्छी तरह धो देना चाहिए।\n- धोने के बाद काटे गए स्थान पर अच्छी तरह से टिंचर या पोवोडीन आयोडिन लगाना चाहिए। ऐसा करने से कुत्ते या अन्य पशुओं की लार में पाए जाने वाले कीटाणु सिरोटाइपवन लायसा वायरस की ग्यालकोप्रोटिन की परतें घुल जाती हैं। इससे रोग की मार एक बड़े हद तक कम हो जाती है, जो रोगी के बचाव में सहायक होती है।\n- इसके तुरंत बाद रोगी को टिटेनस का इंजेक्शन लगवाकर चिकित्सालय में ले जाना चाहिए। यहाँ चिकित्सक की सलाह से काटे गए स्थान पर कार्बोलिक एसिड लगाया जाता है, जिससे अधिकतम कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।\n- इसके बाद चिकित्सक की सलाह पर आवश्यकतानुसार इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जो तीन या दस दिन की अवधि के होते हैं।\n- तत्पश्चात आवश्यकतानुसार निश्चित दिनों पर बुस्टर डोज भी दिए जाने का प्रावधान है, जो चिकित्सक के विवेक व काटे गए पशु की जीवित या मृत होने ��ी अवस्था पर निर्भर करते हैं।\n- इंजेक्शन लगाने की क्रमबद्धता में लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।\n- इस रोग का प्रकोप पशु के काटने के तीन दिन के बाद व तीन वर्ष के भीतर कभी भी हो सकता है। \n\nHome Remedies:\nरैबीज वायरस से फैलने वाली बीमारी है जो कि मनुष्य के दिमाग और स्पाइनल कोर्ड (spinal cord) को प्रभावित करती है। यदि रैबीज के लक्षण उभरने से पहले इसका इलाज न किया जाए तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। ऐसे जानवर जो इस वायरस से अफेक्टेड (affected) होते हैं, उनके सलाइवा (salaiva) या दिमागी ऊतकों (brain membrane) से यह वायरस दूसरे लोगों में फैल जाता है। यह बीमारी मनुष्यों के साथ ही अन्य अन्य स्तनधारियों में भी हो सकती है।\nजानवरों के काटने, चाटने, खरोंच लगाने या किसी जख्म को चाटने से भी रैबीज फैल सकती है। ऐसे में किसी भी जानवर के संपर्क में आने से पहले सावधान रहना चाहिए तथा सभी पालतू जानवरों को जरूरी टीके अवश्य लगवाने चाहिए। आइए आपको बताते हैं ऐसे उपाय, जिन्हें अपनाकर रैबीज से बचा जा सकता है।\n1. पानी और साबुन (water and soap)\nयदि किसी जानवर के संपर्क में आने पर आपको लगता है कि रैबीज इंफेक्टेड था, तो सबसे पहले प्रभावित हिस्से को पानी और फिर साबुन से अच्छी तरह धोएं। यदि जानवर ने काटा हो या आपके जख्म पर खरोंचा हो तो बिल्कुल भी लापरवाही न करें। साबुन और पानी से धोने के बाद तुरंत चिकित्सक से मिलें।\n2. अखरोट (walnut)\nअखरोट में कुत्ते द्वारा होने वाली रैबीज के जहर को मारने की क्षमता होती है। उपचार के लिए अखरोट, प्याज और नमक की बराबर मात्रा लेकर पीस लें। इस मित्रण में थोडा़ शहद मिलाएं। प्रभावित हिस्से या घाव पर यह लेप लगाएं।\n3. लेवेंडर (lavander)\nजानवर के काटने के स्थान पर या रैबीज प्रभावित हिस्से पर लेवेंडर को पीस कर लेप लगाने से भी इंफेक्शन से बचा जा सकता है।\n4. लहसुन (garlic)\nलहसुन में प्राकृतिक तौर पर एंटीबायेटिक (antibiotic) गुण होते हैं। रैबीज के घाव को जल्दी भरने के लिए दिन में तीन बार लहसुन की कली चबाएं।\n5. जीरा (cumin)", + "Disease: रेबीज (Rabies)\nकुत्ते के काटने से फैलने वाली रैबीज पर जीरा भी काफी असर दिखाता है। दो बड़े चम्मच जीरा को पीसकर उसमें बीस काली मिर्च पीसकर मिलाएं। दोनों पाउडर में पानी मिलाकर लेप बनाएं और प्रभावित हिस्से पर लगाएं। इससे भी घाव जल्दी भरने में मदद मिलेगी।\n6. विटामिन सी (vitamin c)\nयदि आप रैबीज से इंफेक्टेड हैं तो अपने आहार में विटामिन सी की म��त्रा बढ़ाएं। इसके लिए अमरूद (guawa), लाल मिर्च (red pepper), कीवी (kiwi), फूल गोभी (cauli flower), संतरा और नींबू आदि लें। विटामिन सी सप्लीमेंट भी ले सकते हैं।\n7. विटामिन बी (vitamin b)\nरैबीज के इंफेक्शन से बचने को विटामिन बी भी बहुत लाभकारी है। रैबीज के उपचार के लिए अपने आहार में ऐसे भोजन को शामिल करें जिसमें विटामिन बी प्रचुर मात्रा में हो। ऐसे खाद्य पदार्थों के लिए आप बंदगोभी (cabbage), टमाटर, रस्पबैरी, तरबूज, अनानास (pine apple) और पालक आदि ले सकते हैं। इसके अलावा विटामिन बी के सप्लीमेंट लेना भी फायदेमंद होता है।\nनोट- यह सभी उपचार घरेलू हैं। इनमें से कुछ उपचार जानवर के काटने के तुरंत बाद डॉक्टर के पास पहुंचने की देरी की अवस्था में पहले किए जा सकते हैं, ताकि इंफेक्शन ज्यादा न बढ़े या अवस्था घातक न हो। साथ ही कुछ उपचार इलाज के दौरान लगातार किए जा सकते हैं। लेकिन रैबीज होने की स्थिति में चिकित्सक के पास जाना जरूरी है, घरेलू उपचार अतिरिक्त लाभ के लिए हैं।\n\n\n", + "Disease: जुकाम (Common Cold)\n\nDescription: \nजुकाम विषाणुओं (वायरस) द्वारा फैलाया जाने वाले संक्रमण है जो खासकर हमारे सांस प्रणाली के आगे वाले हिस्से को प्रभावित करता है। जुकाम शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का परिचायक है।\n\nSymptoms: \n- आँख से पानी बहना\n- कान में दर्द होना\n- गले में दर्द होना\n- नाक से पानी बहना\n- सरदर्द होना\n- हरारत महसूस होना\n\nReasons: \n- हवा में मौजूद बैक्टीरिया या वायरस जब कभी सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं, तो एलर्जी हो जाती है। नतीजा यह होता है कि पानी या बलगम नाक से बाहर आने लगते हैं।\n- हमारे गले में दो तरह के बैक्टीरिया मौजूद होते हैं - कुछ अच्छे और कुछ बुरे। कभी-कभी सर्दी-गर्मी बढ़ने, एकदम ठंडा-गर्म खाने, ठंडे से गर्म व गर्म से ठंडे माहौल में जाने, ठंडा पानी ज्यादा पीने या बारिश में भीगने से गले के बुरे बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। ये बैक्टीरिया ही गले में इन्फेक्शन कर देते हैं और जुकाम (Jukam) की वजह बनते हैं। \n\nTreatments:\nजुकाम एक स्वभाविक क्रिया मानी जाती है। अगर कुछेक दिन में यह अपने आप ठीक हो जाए तो इसे बीमारी नहीं माना जाता लेकिन अधिक दिन रहने पर इसका उपचार कराना जरूरी होता है। जुकाम के कुछ खास उपाय निम्न हैं:\n- साधारण जुकाम अपने आप पांच दिन में ठीक हो जाता है।\n- अगर बलगम सफेद हो तो यह एलर्जी की निशानी है। यह साधारण जुकाम होता है।\n- जुकाम को पांच दिन से ज्यादा हो ��ाएं या साथ में खांसी, बलगम, बदन दर्द व बुखार भी हो, तो समझना चाहिए कि आम जुकाम नहीं है।\n- अगर बलगम पीला हो हो व सांस की दिक्कत के साथ बुखार भी हो तो बैक्टीरियल इंफेक्शन होता है।\n- ऐसे में डॉक्टर के पास जाना चाहिए।\n- अगर कफ़ के साथ खून भी आए तो चिंताजनक बात है। यह टी.बी. का लक्षण हो सकता है। ऐसे में तुरन्त डॉक्टर से परामर्श लें।  \n\nHome Remedies:\nजुकाम संक्रमण (Infection) का एक प्रकार है जो कि वायरस के विभिन्न प्रकार के कारणों से हो सकता है। सिर दर्द, नाक बहना, खांसी, तेज बुखार, आँखों में जलन, गले में खराश (Sore throat) और शरीर में दर्द (Body pain) आदि सामान्य जुकाम के कुछ लक्षण हैं। जुकाम से राहत के लिए कई घरेलू उपचार हैं जो कि जुकाम की समस्या से राहत दे सकते हैं।\n यह घरेलू उपचार किसी भी दुष्प्रभाव के बिना सर्दी के विभिन्न लक्षणों से प्रभावी राहत प्रदान करते हैं।\n1. लहसुन (Garlic)\n - लहसुन का जीवाणुरोधी और एंटीवायरल (antiviral) गुण सर्दी के लक्षणों से छुटकारा प्राप्त करने में बहुत सहायक होता है। लहसुन प्रतिरक्षा प्रणाली (immunity) के लिए अच्छा है और श्वसन मार्ग (respiratory process) को खोलने में मदद करता है।\nकैसे करें उपयोग\n- एक कप पानी में लहसुन की कली, दो चम्मच नींबू का रस, एक चम्मच शहद, और आधा चम्मच लाल मिर्च या लाल मिर्च पाउडर मिलाएं। इसे तब तक रोज खाएं जब तक सर्दी जुकाम से आराम ना हो।\n- एक कप पानी में 4-5 कटे हुए लहसुन की कली उबाल लें और एक चम्मच शहद डालें। इसे दिन में दो से तीन बार सेवन करें।\n2. शहद (Honey)\n - शहद में मौजूद एंजाइम (enzyme) में, उच्च मात्रा में बैक्टीरिया और वायरस को मारने के गुण होते हैं। शहद से गले का सूखापन दूर होता है और जुका्म जल्दी ठीक हो जाता है।\nकैसे करें उपयोग\n- सबसे सरल उपाय घर पर एक चम्मच नींबू का रस और दो चम्मच शहद मिलाएं। ठंडक और गले में खराश से राहत पाने के लिए हर दो घंटे में लें।\n यदि आप चाहें, तो एक चम्मच कच्चा शहद भी खा सकते हैं।\n3. मसाला चाय (Masala chai)\n - किचन में रखे मसालों से बनी चाय जुकाम में बहुत जल्दी राहत देती है।\nकैसे करें उपयोग \n - एक चौथाई कप सूखा भुने हुए धनिया बीज पीसकर इसमें आधा चम्मच जीरा और सौंफ के बीज और एक चौथाई चम्मच मेथी के बीज मिलाएं। अब एक कप पानी उबाल लें और इसमें आधा चम्मच तैयार मसाला और आधा चम्मच मिश्री डालें। तीन से चार मिनट उबालें। इसके बाद दूध डालें और गरम गरम पीएं।\n4. अदरक (ginger) \n - अदरक अपने एंटीवायरल, ��स्पेक्टरेन्ट (expectorant) गुणों के कारण सर्दी से राहत देता है।\nकैसे करें उपयोग\n- कच्चा अदरक खाने या एक दिन में अदरक की चाय कई बार पीने से लाभ होता है। अदरक की चाय के प्रभाव को बढ़ाने के लिए, चाय में नींबू का रस और शहद मिलाएं।", + "Disease: जुकाम (Common Cold)\n- अदरक, लौंग और नमक का एक पेस्ट तैयार करें। आधा चम्मच खा सकते हैं।\n- नाक बह रही हो तो बराबर मात्र में सूखा अदरक पाउडर (Dry ginger powder) मक्खन या घी और गुड़ (jaggary) मिलाकर छोटी छोटी गोली बनाएं। सुबह रोजाना खाली पेट एक गोली खाएं।\n5. लाल प्याज का सीरप (Syrup of red onion) \n - घर के बने लाल प्याज सीरप से भी सर्दी से पीड़ित लोगों को राहत मिलती है।\nकैसे करें उपयोग\n- 2-3 लाल प्याज को बारीक गोल टुकड़ों में काट लें। एक बर्तन में प्याज का एक टुकड़ा रखें और कच्चा शहद मिलाएं। जब तक बर्तन भर न जाए तब तक प्रक्रिया को दोहराएं। कटोरे को ढक कर रखें और 12 से 15 घंटे के लिए छोड़ दें। प्याज सीरप की तरह मोटी परत में जम जाएगा।\n6. चिकन का सूप (Chicken soup)\n - चिकन सूप कई में कई आवश्यक पोषक तत्व विटामिन हैं जो आम सर्दी के लक्षणों के उपचार में मदद करते हैं। चिकन सूप के उच्च एंटीऑक्सीडेंट गुण जुकाम को ठीक करने की प्रक्रिया में तेजी लाते हैं। सर्वोत्तम परिणामों के लिए, जैविक सब्जियों और चिकन का उपयोग कर, घर का बना चिकन सूप तैयार करें।\n\n\n", + "Disease: बुखार (Fever)\n\nDescription: \nबुखार आना एक बेहद आम बीमारी होती है। विज्ञान के अनुसार यह बुखार रोग नहीं बल्कि रोग का लक्षण होता है। जानिएं बुखार के बारें में विस्तार से:\n\nReasons: \n- श्वसन संस्थान वाले बुखार जैसे की जुकाम, फ्लू, गले की सूजन, श्वासनली शोथ, न्यूमोनिया, टी.बी. आदि।\n- त्वचा के संक्रमण (Infection) से होने वाले बुखार जैसे की जख्म में पीप होना, फोड़े या दाने वाले बुखार।\n- मच्छर या पिस्सू से होने वाले बुखार जैसे की मलेरिया (Malaria Fever), फायलेरिया (Flaria), डेंगू (Dengue), चिकुनगुन्या (Chickengunia), मस्तिष्क ज्वर (Meningitis), प्लेग (Plague), आदि। इन सभी बुखारों में पहले कंपकंपी होती है।\n- पाचन संस्थान के बुखार जैसे दस्त या पेचिश, पीलीया, टायफॉईड आदि। पेचिश में खून और बलगम गिरता है। टायफाईड खून के जॉंच से ही पता चलता है।\n- प्रजनन और मूत्र संस्थान के बुखार - इसमें पेशाब के समय जलन होती है।\n- अन्य संक्रामक बुखार जैसे की ब्रुसेलॉसीस, एड्स, तपेदिक के कुछ प्रकार, जोड़ों का बुखार। असंक्रामक बुखारों में जैसे लू लगना और ऍलर्जी से होने व��ले बुखार।\n\nTreatments:\nबुखार आने पर रोगी के शरीर का तापमान देखना चाहिए और अगर तापमान अधिक हो तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। बुखार (Bukhar) आने के दौरान रोगी को निम्न सामान्य उपचार भी दिया जा सकता है:\n- रोगी को खूब सारा स्वच्छ एवं उबला हुआ पानी पिलाएं, शरीर को पर्याप्त कैलोरी देने के लिए ग्लूकोज, फलों का रस आदि दें।\n- आसानी से पचने वाला खाना जैसे चावल की कांजी, साबूदाने की खीर या खिचड़ी, जौ का पानी आदि देना चाहिये।\n- रोगी को अच्छे हवादार कमरे में रखना चाहिये।\n- स्वच्छ एवं मुलायम वस्त्र पहनाएं। \n- यदि ज्वर 39.5 डिग्री से. या 103.0 फैरेनहाइट से अधिक हो या फिर 48 घंटों से अधिक समय हो गया हो तो डॉक्टर से परामर्श लें।\n\nHome Remedies:\nजब भी शरीर का तापमान सामान्य से ज्यादा होता है तो यह बुखार कहलाता है। कई बार मौसम में परिवर्तन या संक्रमण के कारण बुखार हो जाता है। बच्चों में इम्यूनिटी कमजोर होने, कान में इंफेक्शन होने या पेशाब में इंफेक्शन होने पर भी बुखार होता है । इतना ही नहीं साफ- सफाई का अभाव होने से भी बुखार होने की संभावना रहती है।\nबुखार के सामान्य लक्षणों में सिर दर्द (Headache), मांसपेशियों में दर्द (Muscle pain) , डिहाड्रेशन (Dehydration) , कई दफा कंपकपी (Shivring) तो कई बार पसीना आना और कमजोरी हो सकते हैं। यूं तो बुखार कुछ दिन में ठीक हो जाता है लेकिन फिर भी कुछ घरेलू उपायों का अपनाकर आप जल्दी ठीक हो सकते हैं। घरेलू उपायों के बाद भी यदि बुखार न उतर रहा हो या बढ़ रहा हो तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।\nबुखार के लिए घरेलू उपचार (Home Remedies for Fever)\nठंडा पानी (Cold Water)\nकिसी कपड़े को ठंडे पानी में भिगोकर शरीर को पोंछे। इसके अलावा ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रखने से भी लाभ होता हे और शरीर का तापमान कम होता है। कपड़े को समय-समय पर बदलते रहना चाहिए। सामान्य बुखार के लिए यह बेहद अच्छी प्रक्रिया है जो तापमान को बढ़ने नहीं देती।\nतुलसी (Basil)\nतुलसी बुखार में शरीर के तापमान को कम करने में बहुत सहायक है। यह हर्ब बाजार में मौजूद अन्य एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) की तरह ही कार्य करती है और प्रभावी भी है।\nबुखार को ठीक करने के लिए तुलसी की बीस पत्ती और एक चम्मच कसा हुआ अदरक लेकर एक कप पानी में उबालें। ठंडा करके इसमें शहद मिलाएं और पी लें। इस विधि को दिन में दो बार करें।\nतुलसी की पत्ती और काली मिर्च पाउडर को मिलाकर भी चाय बनाई जा सकती है जिससे शरीर का तापमान कम होता है। इस चाय को दिन में दो से तीन बार पी सकते हैं।\nसेब साइडर सिरका (Apple Cider Vinegar)\nसेब साइडर सिरका भी बुखार के लिए बेहद सस्ती और प्रभावी दवा है। सेब साइडर सिरका बुखार को तेजी से कम करता है क्योंकि इसमें मौजूद एसिड गर्माहट को शरीर की त्वचा से बाहर कर देता है। साथ ही इसमें मौजूद मिनरल शरीर को बुखार से दूर भी रखते हैं।", + "Disease: बुखार (Fever)\nकिसी कपड़े को एक भाग सिरका और दो भाग पानी लेकर उसमें भिगोएं। अतिरिक्त पानी को निचोड़ दें और इस पट्टी को माथे और पेट पर रखें। एक पट्टी पैर के तलवों पर भी रखी जा सकती है। जैसे ही कपड़ा गरम हो जाए, दोबारा सोल्यूशन में डुबाएं और प्रक्रिया को दोहराएं।\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन की गर्म तासीर भी शरीर में पसीना लाकर, शरीर का तापमान कम कर सकती है। यह शरीर से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को भी बाहर निकालने में सहायक है। इतना ही नहीं लहसुन एंटीफंगल (antifungal) और एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरा है जो शरीर को इम्यूनिटी (Immunity) देता है।\nलहसुन की एक कली को पीसकर गरम पानी में मिलाएं। 10 मिनट ढक कर रखें। पानी को छान लें और घूंट-घूंट करके धीरे-धीरे पीएं। एक दिन में इस पेय को दो बार पीएं। अगले ही दिन आप बुखार से राहत महसूस करेंगे।\nदो चम्मच ओेलिव ऑयल (Olive Oil) में दो कली लहसुन की डालकर भूनें। इस तेल को ठंडा करके पैर के तलवों में लगाएं।\nकिशमिश (Raisin)\nकिशमिश शरीर के इंफेक्शन से लड़ने और बुखार से राहत देने की क्षमता रखती है। किशमिश में फीनोलिक सायेटोन्यूट्रीयेंट (Phenolic Phytonutrients) और एंटीऑक्सीडेंट (Antioxident) गुण होते हैं।\nआधे कप पानी में एक घंटे के लिए 25 किशमिश भिगााएं, जब तक कि किशमिश नरम हो जाएं। किशमिश को पानी के अंदर ही मसल दें और पानी को छानकर अलग कर लें। इस जूस में आधे नींबू का रस मिलाएं। मित्रण को एक दिन में दो बार पीएं।\nअदरक (Ginger)\nअदरक में शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के गुण होते हैं। यूं भी अदरक प्राकृतिक रूप से एंटी वायरल (Anti Viral) और एंटीबैक्टीरियल (Anti Becterial) एजेंट से भरपूर होता है।\nपानी में अदरक डालकर उबालें और उसे ठंडा करके छानकर उसमें, शहद मिलाकर पी लें। इस तरह से बनी चाय को दिन में तीन से चार बार पिया जा सकता है।\nडेढ़ चम्मच अदरक का रस, एक चम्मच नींबू का रस (Lemon Juice) और एक बड़ी चम्मच शहद मिलाकर इस मिक्सचर को पिएं। इस मित्रण को भी दिन में तीन से चार बर लिया जा सकता है।\n\n\n", + "Disease: गले में खराश (Sore Throat)\n\nDescription: \nमौसम बद���ते ही गले में खराश होना आम बात है। सामान्य शब्दों में गले में खराश, गले का संक्रमण (Infection) है। आमतौर पर गले का संक्रमण (Infection) वायरस या बैक्टीरिया के कारण होता है।\n\nSymptoms: \n- 100.5 ड्रिगी F या 38 ड्रिगी सेल्सियस से अधिक बुख़ार होना\n- गर्दन में सूजन होना\n- गले में दर्द होना\n- निगलने में कठिनाई होना\n- पेट में दर्द होना\n- भूख न लगना होना\n- मितली या उलटी होना\n- शरीर में पीड़ा होना\n- सांस लेने में कठिनाई होना\n\nReasons: \n- बदलता मौसम में अकसर खराश की समस्या का सामना करना पड़ता है। \n- कभी कभी खाने पीने की चीज़ों के विपरीत प्रभाव के कारण भी गले में संक्रमण हो सकता है। \n- इसके अलावा गले में खराश की समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है।\n- ठंडे, खट्टे, एवं तले हुए खाद्य पदार्थों को खाने के कारण भी गले में सक्रमण हो सकता है।\n\nTreatments:\nगले की खराश का इलाज (Treatment of Sore Throat)\n- नमक के गुनगुने पानी से गरारे करें। इससे गले में आराम मिलेगा।\n- अदरक, इलायची और काली मिर्च वाली चाय गले की खराश (Sore Throat) में आराम पहुंचाती है।\n- कम मसाले वाला भोजन लें।\n- फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं, न ही अन्य ठंडी चीजें खाएं। \n\nHome Remedies:\nसामान्यतः गले की अंदरूनी परत में संक्रमण के कारण गले में खराश होती है। इसके अलावा कभी कभी मौसम में अचानक बदलाव होने की वजह से गले में खराश होती है और कई बार टोंसिल (tonsil) या गले में किसी तरह के इंफेक्शन के कारण भी खराश हो सकती है। वैसे तो गले की खराश तीन चार दिन में ठीक हो जाती है, लेकिन कुछ घरेलू उपायों से गले की खराश में जल्दी राहत मिलती है। आइए जानें गले की खराश दूर करने के घरेलू उपाय\n1. गरम पानी और नमक के गरारे (Gargle of warm water and salt)- जब गले में खराश होती है तो श्लेष्मा झिल्ली (mucous membrane) की कोशिकाओं में सूजन हो जाती है। नमक इस सूजन (swelling) को कम करता है जिससे दर्द में राहत मिलती है। उपचार के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में एक बड़ा चम्मच नमक मिलाकर घोल लें और इस पानी से गरारे करें। इस प्रक्रिया को दिन में तीन बार करें।\n2. लहसुन (Garlic)- लहसुन इंफेक्शन (infection) पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार देता है। इसलिए गले की खराश में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन में मौजूद एलीसिन (allicin) जीवाणुओं को मारने के साथ ही गले की सूजन और दर्द को भी कम करता है। उपचार के लिए गालों के दोनों तरफ लहसुन की एक एक कली रखकर धीरे धीरे चूसते रहें। जैसे जैसे लहसुन का रस गले में जाएगा वैसे वैसे आराम मिलता रहेगा। लहसुन का रस निकालने के लिए बीच बीच में दांतों से कुचलते रहें।\n3. भाप लेना (Steaming)- कई बार गले के सूखने के कारण भी गले में इंफेक्शन की शिकायत होती है। ऐसे में किसी बड़े बर्तन में गरम पानी करके तौलिया से मुंह ढककर भाप लें। ऐसा करने से भी गले की सिकाई होगी और गले का इंफेक्शन भी खत्म होगा। इस क्रिया को दिन में दो बार किया जा सकता है।\n4. लाल मिर्च (Red chilli)- गले की खराश को ठीक करने के लिए लाल मिर्च भी बेहद फायदेमंद है। उपचार के लिए एक कप गरम पानी में एक चम्मच लाल मिर्च और एक चम्मच शहद मिलाकर पीएं।\n5. बेकिंग सोडा (Baking soda)- गले की खराश दूर करने के लिए बेकिंग सोडा की चाय बेहद फायदेमंद है। कारण, बेकिंग सोडा में एंटी बैक्टीरियल (antibacterial) गुण होते हैं जो कि जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इसके लिए एक गिलास गरम पानी में बेकिंग सोडा और नमक मिलाकर दिन में तीन बार गरारे करें।\n6. लौंग (Laung or Clove)- लौंग का इस्तेमाल उपचार के लिए सदियों से होता आ रहा है। गले की खराश के उपचार के लिए लौंग को मुंह में रखकर धीरे धीरे चबाना चाहिए। लौंग एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर होती है जो गले के इंफेक्शन और सूजन को दूर करती है।\n7. अदरक (Ginger)- अदरक भी गले की खराश की बेहद अच्छी दवा है। अदरक में मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण गले के इंफेक्शन और दर्द से राहत देते हैं। गले की खराश के उपचार के लिए एक कप पानी में अदरक डाल कर उबालें। इसके बाद इसे हल्का गुनगुना करके इसमें शहद मिलाएं। इस पेय को दिन में दो से तीन बार पीएं। गले की खराश से आराम मिलेगा।", + "Disease: गले में खराश (Sore Throat)\n8. मसाला चाय (Masala Chay)- लौंग, तुलसी (basil), अदरक और काली मिर्च (black pepper) को पानी में डालकर उबालें, इसके बाद इसमें चाय पत्ती डालकर चाय बनाएं। इस चाय को गरम गरम ही पीएं। यह भी गले के लिए बेहद लाभदायक उपाय है जिससे गले में तुरंत आराम मिलता है।\n\n\n", + "Disease: उबकाई (Nausea)\n\nDescription: \nउबकाई आना उल्टी होने का एहसास मात्र है। कुछ लोगों को मितली ज्यादा आती है। विशेषकर यात्रा के समय कुछ लोगों को उबकाई की समस्या होती है। इसे मोशन सिक्नेस (Motion Sickness) भी कहते हैं। यह गाडी से यात्रा के दौरान या या नाव से यात्रा के दौरान (Sea Sickness) विशेष रूप से महसूस किया जाता है।\n\nSymptoms: \n- दिल की धड़कन बढ़ जाती है\n- पसीना आने लगता है\n- पेट में गड़बड़ी का एहसास होने लगता है\n\nReasons: \nयात्रा के दौरान मितली आना बेहद सामान्य बात है लेकिन कई वजहों से यह अगर लगातार आए तो एक समस्या हो सकती है। मितली निम्न कारणों से भी आती है:\nमितली और उल्टी के सामान्य कारण (Reason of Nausea)\n- ऐंटी बायोटिक (Anti Biotic) दवाईयों के कारण अक्सर पेट में गड़बड़ी हो जाती है जो मितली या उल्टी का कारण बन जाता है।\n- कुछ लोगों को यात्रा के दौरान मितली, उल्टी का अनुभव होता है। इसके लिये इसकी दवॉंए आधा घंटा पूर्व लेकर ही चले।\n- बदहजमी से, अम्लता (Acidity), शराब आदि से भी मितली की समस्या हो सकती है।\n- गर्भावस्था में पहले तिमाही में मितली या उल्टी की समस्या (nausea during pregnancy) होती है। यह अपने आप रुक जाती है। मितली और उल्टी की समस्या गर्भधारण के समय शरीर में हार्मोनल बदलाव के कारण होता है। शरीर में विटामिन बी6 की कमी से भी गर्भवती महिला को उल्टी होने की समस्या हो सकती है।\n- फूड एलर्जी और फूड असहिष्णुता (Food Intolerance)\n- माइग्रेन में सिर के भीतर किसी भी प्रकार के दबाव से सेरीब्रो-स्पाइनल फ्लूइड (Cerebro-Spinal Fluid) प्रभावित होता है जिसके कारण मितली या उल्टी की समस्या उत्पन्न होती है।\n- पित्ताशय (Gall Bladder) और पाचक ग्रंथि (Pancreas) में सूजन होने पर पेट के ऊपरी भाग में दर्द होता है और मितली और उल्टी होने लगती है।\n- कभी कभी ऍक्सिडेंट या गंदगी बदबू के कारण भी मितली आ सकती है।\n- तनाव, भय और बेचैनी के कारण शरीर की क्रिया में असंतुलन पैदा हो जाता है, जो पेट में गड़बड़ी का कारण बन जाता है। जिसके फलस्वरूप मितली, उल्टी, दस्त, कब्ज आदि समस्याएं होने लगती हैं।\n\nTreatments:\nयात्रा के दौरान मितली से बचने का सबसे उपयोगी तरीका होता है थोड़ा-थोड़ा खाना खायें। इसके अलावा कुछ अन्य उपाय निम्न है:\n- गर्भवती महिलायें को जिन महक वाली वाले चीजों से मतली हो रही हैं उनको न खायें।\n- थोड़े-थोड़े मात्रा में खायें।\n- दो मील के बीच में ठंडा पेय, जल पीयें।\n- उलटी करने का प्रयास करें। उलटी करने पर आराम मिलेगा होगा ।\n- आप जहाँ भी हो ताजा हवा आनी चाहिए।\n- ढीला-ढाला कपड़ा पहने।\n- ज़रूरत से ज़्यादा पानी नहीं पीना चाहिए।\n- अगर स्थिति गंभिर हो जाय तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।\n\nHome Remedies:\nमतली या जी मिचलाने की परेशानी मोशन सिकनेस (Motion sickness), पेट के फ्लू (Stomach flu) या फिर आपके द्वारा खाए गए खाने के इंफेक्शन से होती है। कभी कभार मतली किसी गंभीर बीमारी जैसे हार्ट अटैक, कैंसर या कीमोथेरेपी लेने के दौरान भी हो सकती है। आइए जानें कुछ ऐसे घरेलू उपचार जो मतली या जी मिचलाने की परेशा��ी से आपको राहत देंगे।\n1. अदरक (Ginger)\nअदरक जी मिचलाने या उल्टी में राहत देने के लिए सर्वोत्तम औषधि है। इसके उपचार के लिए अदरक की चाय या अदरक को यूं ही चबाना भी लाभदायक हो सकता है। हालांकि गर्भावस्था (Pregnancy) में अदरक इस्तेमाल की मनाही होती है। साथ ही दो साल से कम उम्र के बच्चों को भी अदरक नहीं दी जानी चाहिए।\n2. नींबू (Lemon)\nनींबू भी जी मिचलाने की समस्या से राहत देता है। नींबू में विटामिन सी उच्च मात्रा में होता है जो कि पेट के लिए बेहद फायदेमंद है। उपचार के लिए एक गिलास पानी में एक नींबू निचोड़कर पीएं। साथ ही नींबू को सूंघने से भी काफी फायदा होता है।\n3. पुदीना (Mint)\nपुदीना में एंटी बैक्टीरियल गुण (Antibacterial) होते हैं साथ ही यह इम्यनिटी को भी बढ़ाता है। मतली या जी मिचलाने की समस्या से राहत के लिए पुदीने की पत्तियां चबाई जा सकती हैं। इसके अलावा पुदीने की चाय (Mint tea) बनाकर पीना या कैंडी खाना भी लाभप्रद होता है।\n4. दूध-ब्रेड (Milk and bread)", + "Disease: उबकाई (Nausea)\nमतली से राहत के लिए दूध ब्रेड खाना भी लाभप्रद होता है। उपचार के लिए ब्रेड पर बिना नमक वाला मक्खन (Without salt) लगाकर , एक गिलास गरम दूध में इस ब्रेड को तोड़कर डालें और धीरे धीरे खाएं। लेकिन पेट में फ्लू या गैस हो तो दूध न लें।\n5. शहद (Honey)\nशहद कई बीमारियों की उच्च दवा है। शहद में भी एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं और शहद भी इम्यूनिटी बढ़ाने का कार्य करता है। उपचार के लिए एक गिलास पानी में सेब का सिरका मिलाकर (Apple cider vinegar) उसमें थोड़ा शहद डालकर पीने से जी मिचलाने की समस्या से राहत मिलती है।\n6. चावल का पानी (Rice water)\nअधपके चावल से निकले मांड को पीने से मतली से बहुत राहत मिलती है। इस मांड को हल्का गुनगुना ही पीना चाहिए।\n7. जीरा (Cumin)\nएक गिलास छाछ या दही में जीरा को भूनकर डालें। इस मिश्रण को पी लें। इससे जी मिचलाने की समस्या ठीक हो जाती है।\n8. बेकिंग सोडा (Baking soda)\nगर्म पानी में डेढ़ चम्मच बेकिंग सोडा डालकर पीने से मतली में बहुत राहत मिलती है। गर्भवती महिलाओं को यह उपचार नहीं करना चाहिए।\n9. प्याज (Onion)\nएक प्याज का जूस निकालकर इसमें एक चम्मच अदरक को कद्दूकस करके मिलाएं। प्याज में एंटी बैक्टीरियल (Antibacterial) गुण होते हैं। जिसके कारण यह पेट के लिए बेहद फायदमंद है। इसमें मतली को ठीक करने के प्राकृतिक गुण होते हैं।\n10. ठंडी सिकाई (Cold Fomentation)\nइसके लिए एक कपड़े को या छोटी तौलिया को एकदम ठंडे पानी या बर्फ के पा���ी (Ice water) में कुछ घंटों के लिए रखें। इसके बाद इस तौलिया को प्रभावित व्यक्ति की गर्दन पर लपेटें। यदि व्यक्ति लेटा है तो गर्दन के पीछे रखें और यदि बैठा है तो गर्दन के सामने। ऐसा करने से भी उल्टी और जी मिचलाने की समस्या में बहुत राहत मिलती है।\n\n\n", + "Disease: अफारा (Flatulence)\n\nDescription: \nखान-पान में अनियमितता और मैदा या सुपरफाइन आटे से बने खाद्य प्रदार्थ खाने के कारण हमारे पेट में बहुत गैस पैदा होने लगती है। अगर यह गैस स्वाभाविक तरीके से पेट से बाहर निकल जाये तो तकलीफ नहीं होती मगर जब यह गैस नही निकलती है तो पेट फूल जाता है और अफारे (Gas) की स्थिति बन जाती है, तब बड़ी तकलीफ होती है। \n\nSymptoms: \n- अफारा जैसा महसूस होना\n- खाना खाने के बाद पेट ज्यादा भारी लगना\n- छाती में जलन होना\n- जी मिचलाना\n- डकारें आना\n- पेट में दर्द होना\n- पेट में भारीपन महसूस होता है\n- पेट से गैस पास होना\n\nReasons: \n- खानपान : सुपरफाइन आटे (Packed Aata) की रोटी आसानी से नहीं पचती। यह वायु पैदा करती हैं।\n- शराब पीने से भी पेट में गैस बनती है।\n- मिर्च-मसाला या तली-भुनी चीजें ज्यादा खाने से।\n- फलियां (Beans), राजमा, छोले, लोबिया, मोठ, उड़द की दाल, फास्ट फूड, ब्रेड और किसी-किसी को दूध या भूख से ज्यादा खाने से।\n- खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक लेने से। इसमें गैसीय तत्व होते हैं।\n- तला या बासी खाना।\n- तनाव, देर से सोना और सुबह देर से जागना जैसी खराब जीवनशैली आदतों के कारण भी समस्या हो सकती है।\n- भूखे रहने से, खाली पेट भी गैस (Pet me Gas) बनने का प्रमुख कारण है। समय असमय खाना खाने से भी गैस संबंधी समस्या हो सकती है।\n- लीवर में सूजन, गॉल ब्लेडर में स्टोन, फैटी लीवर, अल्सर जैसे रोगों में भी पेट में गैस की समस्या होती है।\n- मोटापे, डायबीटीज, अस्थमा आदि के रोगियों को अकसर गैस की समस्या देखने को मिलती है।\n- बच्चों के पेट में कीड़ों की वजह से अफारा हो सकता है।\n- अक्सर पेनकिलर खाने से भी अफारा हो सकता है।\n- कब्ज, अतिसार, खाना न पचने व उलटी की वजह से भी अफारा या पेट में गैस की समस्या हो सकती है।\n\nTreatments:\nपेट में गैस की समस्या से निजात पाने का सबसे बढ़िया तरीका है खान-पान सही रखना। अगर खान-पान सही हो तो इस बीमारी से कोई परेशानी नहीं होती है। इसके साथ ही निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए:\n- भोजन पचेगा, पेट साफ रहेगा तो गैस कम बनेगी।\n- सुपरफाइन आटे की रोटी आसानी से नहीं पचती, वायु पैदा करती हैं। अतः मोटे चो��र युक्त आटे की रोटी खाएं। यह जल्दी पचेगी और वायु पैदा नहीं होगी और अफारा जैसी तकलीफें नहीं होंगी।\n- हरे साग जैसे बथुआ, पालक, सरसों का साग खाएं। खीरा, ककड़ी, गाजर, चुकंदर भी इस रोग को शांत रखते हैं। इन्हें कच्चा खाना चाहिये।\n- नारियल का पानी दिन में तीन बार पियें। इससे सारा कष्ट मिट जाएगा।\n- स्किन कैंसर\n- सोरायसिस\n\n\n", + "Disease: चिकनगुनिया (Chikungunya)\n\nDescription: \nचिकनगुनिया बुखार (Chikungunya) एक वायरस बुखार है जो एडीज मच्छर एइजिप्टी के काटने के कारण होता है। चिकनगुनिया और डेंगू के लक्षण लगभग एक समान होते हैं।​ इस बुखार का नाम चिकनगुनिया स्वाहिली भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है ''ऐसा जो मुड़ जाता है'' और यह रोग से होने वाले जोड़ों के दर्द के लक्षणों के परिणामस्वरूप रोगी के झुके हुए शरीर को देखते हुए प्रचलित हुआ है।\n\nSymptoms: \n- उल्‍टी होना\n- एक से तीन दिन तक बुखार के साथ जोड़ों में दर्द और सूजन होना\n- कंपकपी और ठंड के साथ बुखार का अचानक बढ़ना\n- सरदर्द होना\n\nTreatments:\nचिकनगुनिया होने पर डॉक्टर की सलाह लेना सबसे जरूरी है। साथ ही चिकनगुनिया से पीड़ित रोगी को निम्न उपाय अपनाने चाहिए:\n- अधिक से अधिक पानी पीएं, हो सके तो गुनगुना पानी पीएं।\n- ज्यादा से ज्यादा आराम करें।\n- चिकनगुनिया के दौरान जोड़ों में बहुत दर्द होता है जिसके लिए डाॅक्टर की सलाह पर ही दर्द निवारक (Pain Killer) लें।\n- दूध से बने उत्पाद, दूध-दही या अन्य चीजों का सेवन करें।\n- रोगी को नीम के पत्तों को पीस कर उसका रस निकालकर दें।\n- रोगी के कपड़ों एवं उसके बिस्तर की साफ-सफाई पर खास ध्यान दें।\n- करेला व पपीता और गिलोय के पत्तों का रस काफी फायदेमंद माना जाता है। \n- नारियल पानी पीने से शरीर में होने वाली पानी की कमी दूर होती है और लीवर को आराम मिलता है। \n- ऐस्प्रिन बुखार होने पर कभी ना लें, इससे काफी समस्या हो सकती है। \n- बच्चों का खास ख्याल रखें। \n- बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी पकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।\n- बच्चे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।\n- बच्चों घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें। मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी - शर्ट न पहनाएं। रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।\n- अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगा���ार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।\n- आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ - पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है, खासकर बच्चों में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।\n\nHome Remedies:\nचिकनगुनिया (Chikungunya) एक तरह का वायरल बुखार है जो कि मच्छरों के कारण फैलता है। चिकनगुनिया अल्फावायरस (alphavirus) के कारण होता है जो मच्छरों के काटने के दौरान मनुष्यों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।\nचिकनगुनिया में जोड़ों में दर्द (Joint Pain), सिर दर्द (Headache), उल्टी (Vomit) और जी मिचलाने (Nausea) के लक्षण उभर सकते हैं जबकि कुछ लोगों में मसूड़ों और नाक से खून (Blood from gums and nose) भी आ जाता है। मच्छर काटने के लगभग बारह दिन में चिकनगुनिया के लक्षण उभरते हैं। चिकनगुनिया के उपचार के लिए बहुत से घरेलू नुस्खे हैं जिन्हें अपनाकर चिकनगुनिया से खुद को बचाया जा सकता है।\n1. पपीते की पत्ती (Papaya Leaf)\nपपीते की पत्ती न केवल डेंगू बल्कि चिकनगुनिया में भी उतनी ही प्रभावी है। बुखार में शरीर के प्लेटलेट्स (platelates) तेजी से गिरते हैं, जिन्हें पपीते की पत्तियां तेजी से बढ़ाती हैं। मात्र तीन घंटे में पपीते की पत्तियां शरीर में रक्त के प्लेटलेट्स को बढ़ा देती हैं। उपचार के लिए पपीते की पत्तियों से डंठल को अलग करें और केवल पत्ती को पीसकर उसका जूस निकाल लें। दो चम्मच जूस दिन में तीन बार लें।\n2. तुलसी और अजवायन (Tulsi and Ajwain)\nतुलसी और अजवायन भी चिकनगुनिया के उपचार के लिए बेहद अच्छी घरेलू औषधि हैं। उपचार के लिए अजवायन, किशमिश, तुलसी और नीम की सूखी पत्तियां लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें। इस पेय को बिना छानें दिन में तीन बार पीएं।\n3. लहसुन और सजवायन की फली (Garlic and drum stick)", + "Disease: चिकनगुनिया (Chikungunya)\nलहसुन और सजवायन की फली चिकनगुनिया के इलाज के लिए बहुत बढ़िया है। चिकनगुनिया में जोड़ों में काफी दर्द होता है, ऐसे में शरीर की मालिश किया जाना बेहद जरूरी है। इसके लिए किसी भी तेल में लहसुन और सजवायन की फली मिलाकर तेल गरम करें और इस तेल से रोगी की मालिश करें।\n4. लौंग (Laung or clove)\nदर्द वाले जोड़ों पर लहसुन को पी���कर उसमें लौंग का तेल मिलाकर, कपड़े की सहायता से जोड़ों पर बांध दें। इससे भी चिकनगुनिया के मरीजों को जोड़ों के दर्द से आराम मिलेगा, और शरीर का तापमान (body temprature) भी नियंत्रित होगा।\n5. एप्सम साल्ट (Epsom salt)\nएप्सम साल्ट की कुछ मात्रा गरम पानी में डालकर उस पानी से नहाएं। इस पानी में नीम की पत्तियां भी मिलाएं। ऐसा करने से भी दर्द से राहत मिलेगी और तापमान नियंत्रित होगा।\n6. अंगूर (Grapes)\nअंगूर को गाय के गुनगुने दूध के साथ पीने पर चिकनगुनिया के वायरस मरते हैं लेकिन ध्यान रहे अंगूर बीजरहित हों।\n7. गाजर (Carrot)\nकच्ची गाजर खाना भी चिकनगुनिया के उपचार में बेहद फायदेमंद है। यह रोगी की प्रतिरोधक क्षमता (immunity power) को बढ़ाती है साथ ही जोड़ों के दर्द से भी राहत देती है।\n\n\n", + "Disease: आत्मविमोह (Autism)\n\nDescription: \nऑटिज़्म (Autism) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला एक मानसिक रोग है जो मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करता है। जिन बच्चों में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा असामान्य होता है।\n\nReasons: \n- मस्तिष्क की गतिविधियों में असामान्यता होना\n- मस्तिष्क के रसायनों में असामान्यता\n- आनुवंशिक आधार\n- परिणाम बताते हैं कि कम अंतराल पर हुई गर्भावस्थाओं से जन्म लेने वाले बच्चों में ऑटिज़्म विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है\n\nTreatments:\nशुरुआती संज्ञानात्मक (Cognitive) या व्यवहारी हस्तक्षेप, ऑटिज़्म से प्रभावित बच्चों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऑटिज़्म को एक बीमारी की बजाय एक स्थिति के नजरिये से देखना चाहिए।\n- खेल-खेल में नए शब्दों का प्रयोग करें\n- खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाएँ\n- बारी-बारी से खेलने की आदत डालें\n- धीरे-धीरे खेल में लोगो की संख्या को बढ़ते जायें\n- छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें\n- साधारण भाषा का प्रयोग करें\n- रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दो को जोड़ कर बोलना सिखांए\n- पहले समझना तथा फिर बोलना सिखांए\n- यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे शाबाशी दें तथा बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करें\n- बच्चे को अपनी जरूरतों को बोलने का मौका दें\n- यदि बच्चा बिल्कुल बोल नही पाए तो उसे तस्वीर की तरफ़ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाएं\n- बच्चे को घर के अलावा अन्य लोगों से नियमित रूप से मिलने का मौका दें\n- बच्चे को तनाव मुक्त स्थानों जैसे पार्क आदि में ले कर जायें\n- अन्य लोगों को बच्चे से बात करने के लिए प्रेरित करें\n- बच्चे के साथ धीरे-धीरे कम समय से बढ़ाते हुए अधिक समय के लिए नज़र मिला कर बात करने की कोशिश करे\n- तथा उसके किसी भी प्रयत्न को प्रोत्साहित करना न भूलें\n- यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे कुछ ऐसी गतिविधियों में लगाएं जो उसे व्यस्त रखें ताकि वे व्यवहार दोहरा न सके\n- गलत व्यवहार दोहराने पर बच्चे को कुछ ऐसा काम करवांए जो उसे पसंद नही है\n- यदि बच्चा कुछ देर गलत व्यवहार न करे तो उसे तुरंत प्रोत्साहित करें\n- प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी, चमकीली तथा ध्यान खीचनें वाली चीजों का इस्तेमाल करें\n- बच्चे को अपनी शक्ति को इस्तेमाल करने के लिए सही मार्ग दिखाएँ जैसे की उसे तेज व्यायाम, दौड़, तथा बाहरी खेलों में लगाएं\n- यदि परेशानी अधिक हो तो मनोचिकित्सक के द्वारा दी गई दवा का उपयोग भी किया जा सकता है\n\n\n", + "Disease: खून की कमी (Anemia)\n\nDescription: \nएनीमिया क्या है (About Anemia in Hindi)\n\nSymptoms: \n- आंखें पीली हो जाना\n- कमजोरी और थकावट महसूस होना\n- चक्कर आना\n- छाती में दर्द होना एवं सीने में ऐठन होना\n- त्वचा व नाखूनों का पीला होना\n- माइल्ड (Mild) यानी हल्के एनीमिया में लक्षण कम नज़र आते हैं, लंबे समय से हुए एनीमिया के कई लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं\n- लेट के उठने पर आँखों के सामने अन्धेरा छा जाना\n- सांस फूलना\n- सिर दर्द रहना\n- हाथों और पैरों का ठंडा होना\n- हृदय की धड़कन तेज या असामान्य होना\n\nReasons: \n- किडनी कैंसर: किडनी से इरायथ्रोपोयॅटीन (Erythropoietin) नाम के हारमोन का उत्पादन होता है जो अस्थिमज्जा (Bone Marrow) को रेड-ब्लड सेल के निर्माण में मदद करता है, जिन लोगों को किडनी का कैंसर होता है उनके शरीर मेँ इरायथ्रोपोयॅटीन (Erythropoieti) हारमोन का निर्माण नहीं होता है और इसकी वजह से रेड-ब्लड सेल्स का बनना भी कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को एनीमिया हो जाता है ।\n- अल्पाहार या कुपोषण: रेड-ब्लड सेल्स के निर्माण के लिए कई प्रकार के विटामिन व मिनरल्स की जरूरत होती है, इनकी कमी से रेड- ब्लड सेल्स का निर्माण भी कम हो जाता है और फलस्वरूप हीमोग्लोबिन भी कम बनता है और अंततः व्यक्ति एनीमिया का शिकार बन सकता है। कुपोषण महिलाओं में आम समस्या है और गर्भवती महिलाओं में कुपोषण की समस्या के कारण एनीमिया की परेशानी हो सकती है।\n- हीमोग्लोबिन के जीन में बदलाव: इस प्रकार के एनीमिया को सीकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia) कहते हैं । असामान्य हीमोग्लोबिन के कारण रेड ब्लड सेल्स सीकल यानी हंसिये के आकार के हो जाते हैं, सीकल सेल एनीमिया के कई प्रकार होते हैं जिनका असर अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरीके से होता है।\n- ​थैलैसीमीया: थैलैसीमीया आनुवांशिक एनीमिया होता है,इस प्रकार के एनीमिया में हीमोग्लोबिन अपेक्षित मात्रा में बनने के बजाय कम या ज्यादा बनने लगता है।\n- वायरल इंफेक्शन, केमोथेरपी: वायरल इंफेक्शन, केमोथेरपी और कुछ दवाएं लेने से भी अस्थिमज्जा (Bone Marrow ) बुरी तरह से प्रभावित होती है इससे ब्लड सेल्स का निर्माण बिल्कुल कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं, इस प्रकार के एनीमिया को अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anaemia) कहते हैं।\n- हीमोलायटिक एनीमिया (Hemolytic Anaemia): सामान्य रेड-ब्लड सेल्स का आकार इसके ठीक से काम करने के लिए काफी अहम होता है , कई कारणों से रेड-ब्लड सेल नष्ट हो जाते हैं जिस अवस्था को हीमोलायटिीस कहते हैं, ऐसी स्थिति में रेड-ब्लड सेल्स ठीक तरीके से काम नहीं कर पाते हैं, हीमोलायटिस की स्थिति कई कारणों से पैदा हो सकती हैं, कारण आनुवांशिक और रेड-ब्लड सेल्स का अति निर्माण हो सकता है इसके अलावा कई अवस्था में सामान्य रेड-ब्लड सेल्स में भी हीमोलायटिक एनीमिया हो सकता है।\n- विटामीन बी-12 की कमी: शरीर में विटामीन बी-12 की कमी से परनीसीयस एनीमिया होने की संभावना होती है। परनीसीयस एनीमिया ज़्यादातर शुद्ध शाकाहारी व्यक्तियों को और लंबे व़क्त से शराब का सेवन करने वालों को होता है। \n- रक्तस्राव से होने वाला एनीमिया: माहवारी के दिनों में अत्यधिक स्राव, किसी चोट या घाव से स्राव, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल अल्सर, कोलन कैंसर इत्यादि में धीरे-धीरे ख़ून लगातार रिसने से एनीमिया हो सकता है। \n- लंबे समय से बीमार होने पर: किसी भी प्रकार की दीर्घकालिक बीमारी से एनीमिया हो सकता है। \n\nTreatments:\nएनीमिया से बचाव का सबसे बेहतरीन उपाय है पौष्टिक आहार लेना। इसके साथ ही निम्न बिंदूओं पर ध्यान देकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है:\n- एनीमिया ज्यादातर पौष्टिक आहार लेने से ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ प्रकार के एनीमिया में अलग-अलग तरह से उपचार कराने पड़ते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है डॉक्टरी परामर्श।\n- साधारण तौर पर युवाओं में एनीमिया का उपचार बहुत आसानी से हो जाता है, जबकि वयस्क में एनीमिया की शिकायत जल्दी से दूर नहीं हो पाती है।\n- खून की कमी दूर करने के लिए सबसे पहले खाने में हरी सब्जियां (पालक, मेथी), फल व सलाद की मात्रा बढ़ानी चाहिए।", + "Disease: खून की कमी (Anemia)\n- चुकंदर आयरन का अच्छा स्त्रोत है। इसको रोज खाने में सलाद या सब्जी के तौर पर शामिल करने से शरीर में खून की कमी नहीं होती।\n- हरी पत्तेदार सब्जी जैसे पालक, ब्रोकोली, पत्तागोभी, गोभी, शलजम और शकरकंद जैसी सब्जियां सेहत के लिए बहुत अच्छी होती हैं। इनके सेवन से वजन कम होने के साथ खून भी बढ़ता है और पेट भी ठीक रहता है।\n- सूखे मेवे जैसे खजूर, बादाम और किशमिश का खूब प्रयोग करना चाहिए। इसमें आयरन की पर्याप्त मात्रा होती है।\n- फल जैसे खजूर, तरबूज, सेब, अंगूर, किशमिश और अनार खाने से खून बढ़ता है। अनार खाना एनीमिया (Fruits in Anemia) में काफी फायदा करता है।\n- आयरन की गोलियां या आयरन सुक्रोच के इंजेक्शन, विटामिन बी-12 की गोली या इंजेक्शन डॉक्टरी सलाह से लें।\n\nHome Remedies:\nमनुष्यों के शरीर में लोहे की कुल मात्रा शरीर के वजन के मुताबिक 3 से 5 ग्राम होती है। यदि यह मात्रा इस संख्या से कम हो जाती है तो शरीर में हीमोग्लोबिन बनना कम हो जाता है और शरीर में खून की कमी हो जाती है। इसका एक नुकसान यह भी है कि शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन की आवाजाही (Oxygen circulation) कम हो जाती है जिससे शरीर का पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती और व्यक्ति एनीमिया से ग्रस्त हो जाता है।\nइसके साथ ही यदि शरीर में फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 की कमी है तब भी व्यक्ति एनीमिया से ग्रस्त हो सकता है। पुरूषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा एनीमिक पाई जाती हैं। शरीर का जल्दी थकना, चक्कर आना, त्वचा में पीलापन, लगातार रहने वाला सिर दर्द आदि कुछ एनीमिया के लक्षणों में शामिल हैं। आइए आपको बताते हैं, एनीमिया से राहत पाने के घरेलू उपाय (Home remedies for anemia)\n1. पालक (Spinach)\nपालक में भरपूर लौह तथा विटामिन बी 12 होता है। इसके साथ ही पालक फोलिक एसिड (Folic Acid) का भी उच्च स्त्रोत है। ऐसे में पालक खाने से खून की कमी पूरी होती है। उपचार के लिए पालक का सूप बनाकर, या पालक का साग आदि को अपने रोज के खाने में शामिल करना चाहिए।\n2. अनार (Pomegranate)\nअनार शरीर में हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) को बहुत तेजी से बढ़ाता है। अनार में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की उच्च मात्रा होती है। इसमें आयरन और कैल्शियम भी होता है। यह खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा को तेजी स�� बढ़ाकर रक्त संचार को ठीक रखता है। एनीमिया के उपचार के लिए सुबह खाली पेट अनार खाएं और रोजाना अनार का जूस पीएं।\n3. चुकंदर और सेब का रस (Beetroot and Apple Juice)\nचुकंदर में फोलिक एसिड उच्च मात्रा में होता है जबकि सेब में लौह तत्व होते हैं, ऐसे में दोनों ही एनीमिया की कमी को दूर करते हैं। उपचार के लिए एक कप चुकंदर के रस और एक कप सेब के रस में एक से दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार पीएं।\n4. टमाटर (Tomato)\nशरीर के लिए बहुत ज्यादा आयरन की मात्रा लेने के साथ ही यह भी जरूरी है कि आयरन को आपका शरीर सोखे। इसमें टमाटर अहम भूमिका निभाता है। रोजाना एक से दो कच्चे टमाटर जरूर खाएं। एक गिलास टमाटर का रस भी रोज पीएं और खाना बनाने और सलाद में भी टमाटर का भरपूर उपयोग करें।\n5. खजूर (Dates)\nखजूर भी आयरन बहुत अच्छा स्त्रोत है। सौ ग्राम खजूर में 90 मिलीग्राम आयरन की मात्रा होती है। दो खजूर को एक कप दूध में रात भर के लिए छोड़ दें। इन खजूर को सुबह खाली पेट चबा चबाकर खाएं। बचे हुए दूध को भी पी लें। खजूर को गरम पानी में दो या तीन घंटों के लिए भिगाकर उस पानी को पीना भी फायदेमंद होता है। जिन लोगों को लेक्टोज (lectose) से एलर्जी है और दूध नहीं ले सकते, उनके लिए यह बेहतर तरीका है।\n6. किशमिश (Kishmish)\nकिशमिश भी एनीमिया की बेहद अच्छी घरेलू दवा है। किशमिश में आयरन, प्रोटीन, फाइबर, सोडियम जैसे उच्च पोषक तत्व होते हैं। उपचार के लिए एक कप पानी में 10 से 15 किशमिश रातभर के लिए भिगा दें। सुबह इन किशमिश को शहद मिलाकर खा लें और बचे हुए पानी को पी लें।\n7. शहद (Honey)\nशहद भी लौह और विटामिन बी 12 का उच्च स्त्रोत है। शहद को रोजाना खाने से भी शरीर में एनीमिया की कमी पूरी होती है। शहद को फलों में मिलाकर, दूध में डालकर या चीनी की जगह शहद इस्तेमाल करके भी रक्त की कमी पूरी की जा सकती है।\n\n\n", + "Disease: डिमेंशिया (Dementia)\n\nDescription: \nडिमेंशिया (Dementia) व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली बीमारी होती है। अल्जाइमर्स की बीमारी (Alziehmers Disease) और वस्क्युलर डिमेंशिया (Vascular Dementia) इसके सबसे आम प्रकार (Common Type) हैं।\n\nSymptoms: \n- अपने आप में गुमसुम रहना, मेल-जोल बंद कर देना, चुप्पी साधना\n- कपडे उलटे पहनना, साफ़-सुथरा न रह पाना\n- किसी बात को या प्रश्न को दोहराना, जिद्द करना, तर्क न समझ पाना\n- किसी वस्तु का चित्र देखकर यह न समझ पाना कि यह क्या है\n- कुछ काम शुरू करना, फिर भूल जाना कि क्या करना चाहते थे, और बहुत कोशिश के बाद भ��� याद न कर पाना\n- चीज़ों को गलत, अनुचित जगह पर रख छोडना (जैसे कि घडी को, या ऑफिस फाइल को फ्रिज में रख देना)\n- छोटी छोटी समस्याओं को भी न सुलझा पाना\n- छोटी-छोटी बात पर, या बिना कारण ही बौखला जाना, चिल्लाना, रोना, इत्यादि\n- डिमेंशिया से प्रभावित व्यक्ति में, रोग के बढ़ने के साथ ज्यादा और अधिक गंभीर लक्षण नज़र आते हैं। (याद रखें कि हर व्यक्ति में अलग अलग लक्षण नज़र आते हैं)\n- नंबर जोड़ने और घटाने में दिक्कत, गिनती करने में दिक्कत\n- बोलते या लिखते हुए गलत शब्द का प्रयोग करना, या शब्दों के अर्थ न समझ पाना\n- बड़ी रकम को फालतू की स्कीम में डाल देना, पैसे से सम्बंधित अजीब निर्णय लेना, लापरवाही या गैरजिम्मेदारी दिखाना\n- यह भूल जाना कि तारीख क्या है, कौनसा महीना है, साल कौनसा है, व्यक्ति किस घर में हैं, किस शहर में हैं, किस देश में\n\nReasons: \n​डिमेंशिया कई कारणों से हो सकता है लेकिन इसका मुख्य कारण आनुवांशिक ही माना जाता है। साथ ही बढ़ती उम्र में इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना भी बढ़ जाती है। इसके अहम कारक निम्न हैं: \nडिमेंशिया के प्रमुख कारण (Causes of Dementia ​in Hindi)\n- आनुवांशिक: अगर परिवार में कोई भी इस बीमारी से पीड़ित हो, तो खतरे की संभावना ब़ढ जाती है\n- बढ़ती उम्र में इस बीमारी के खतरे बढ़ जाते हैं। \n- उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों को डिमेंशिया के प्रति सचेत रहना चाहिए। \n- मधुमेह और मोटापे को भी इसका मुख्य कारण माना जाता है। \n- ज़्यादा जंक फूड खाने से और आधुनिक जीवनशैली से शरीर से जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते जिस कारण डिमेंशिया (Dementia) होने की संभावना बढ़ जाती है। \n\nTreatments:\nडिमेंशिया से बचाव और इसका इलाज दोनों ही संभव है। जरूरी है तो केवल सही समय पर इसकी जानकारी होना। डिमेंशिया के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है:\n- डिमेंशिया का व्यक्ति और परिवार पर क्या असर पड़ेगा, यह समझें और स्वीकारें।\n- देखभाल कई वर्षों तक चल सकती है, इसलिए यह जानना जरूरी है कि रोगी की देखभाल के अलावा और क्या क्या जिम्मेदारियां निभानी हैं और देखभाल के लिए समय और पैसे का इंतजाम किस प्रकार करेंगे।\n- इसलिए अपनी जिंदगी में उसी प्रकार से बदलाव लाएं ताकि रोगी की देखभाल के साथ साथ आप अपनी अन्य जिम्मेदारियां भी निभा सकें। इसके लिए जो भी सीखना है, वह सीखें, और खुशी खुशी अपने कर्तव्य का निर्वाह करें। \n\nHome Remedies:\nडिमेंशिया या याददाश्त का जाना सभी के लिए चिंता का कारण हो सकता है। हम सभी अपने दिमाग को स्वस्थ रखना चाहते हैं। डिमेंशिया के मरीज की याददाश्त (memmory) जाने के साथ ही उसके व्यवहार में भी परिवर्तन होता है जिससे न केवल मरीज बल्कि परिवार के अन्य सदस्य भी प्रभावित होते हैं। आइए जानें डिमेंशिया से बचने के लिए कुछ घरेलू उपचार-\n1. चीनी को अवॉइड करें (Avoid sugar)\nसबसे पहले अपने खाने से मीठा (sweet), कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) तथा रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट (refined carbohydrate) सभी को अलग कर दें। जब तक कि आपका वजन नियंत्रित नहीं हो जाता है, कार्बोहाइड्ट वाली चीजों को खाने से बचें। बहुत अधिक चीनी खो से भी दिमागी ऊतक (brain membrane) कमजोर होते हैं जिसका असर याद्दाश्त (memmory) पर पड़ता है।\n2. हल्दी (Haldi)\nहल्दी में मौजूद तत्व करक्यूमिन (curcumin) डिमेंशिया से सुरक्षा प्रदान करता है। हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) तत्व भी होते हैं जो दिमागी विकास के लिए जरूरी हैं। ऐसे में भोजन में हल्दी का इस्तेमाल जरूर करें।\n3. नारियल तेल (Coconut oil)", + "Disease: डिमेंशिया (Dementia)\nनारियल तेल में खाना बनाने से भी डिमेंशिया का उपचार संभव है। नारियल तेल में वसा की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं होती और यह दिमाग को भी तेज करता है।\n4. सलमन मछली और अंडा (Salmon fish and egg)\nठंडे पानी (cold water) में रहने वाली मछली सलमन और अंडे की जर्दी (egg yolk) दोनों ही दिमाग को तेज बनाती हैं। ऐसे में भोजन में दोनों को शामिल किया जाना बेहद जरूरी है। एक दिन में दो अंडे जरूर खाएं।\n5. अदरक (Ginger)\nअदरक भी डिमेंशिया से बचाव के लिए बेहद फायदेमंद है। अदरक की चाय (ginger tea), खाने में अदरक का प्रयोग या सूखा अदरक (dry ginger), किसी भी रूप में अदरक खाना डिमेंशिया में बेहद लाभदायक है।\n6. ग्रीन टी (Green tea)\nग्रीन टी भी अच्छे स्वास्थ्य व अच्छे दिमागी विकास के लिए बेहद जरूरी है। ग्रीन टी पीने से शरीर में ऑक्सीजन (Oxygen) का संचार होता है और जमी हुई वसा (Saturated fat) दूर होती है। इससे याद्दाश्त बढ़ती है और भूलने की समस्या दूर होती है।\n7. बादाम (Almond)\nबादाम भी तेज दिमाग के लिए फायदेमंद होता है। बादाम के तेल में वसा होती है जिसे खाने से चर्बी नहीं बढ़ती और दिमाग को अन्य पोषक तत्व (nutrient) भी मिलते हैं, जिससे न केवल शरीर बल्कि दिमाग भी स्वस्थ होता है।\n\n\n", + "Disease: टाइफाइड (Typhoid)\n\nDescription: \nटाइफाइड या आंत जवर एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में रोगी को तेज बुखार के साथ उलटी और दस्त आदि की समस्या होती है। टाइफाइड (Typhoid) एक जानलेवा बीमारी मानी जाती है। आइएं जानें इसके विषय में अधिक जानकारी।\n\nSymptoms: \n- कब्ज या दस्त होना\n- कभी-कभी शौच में खून का आना\n- बुखार शुरू में हल्का, पर धीरे-धीरे तेज होता जाता है\n- भूख कम लगना और उल्टियां आना\n- रोग की गंभीर स्थिति में बेहोशी भी आ सकती है\n- सिर-दर्द और बदन-दर्द\n- सूखी खांसी आना और पेट में दर्द\n\nReasons: \nमाना जाता है कि टाइफाइड अधिकातर गंदगी के कारण फैलता है। शौच के बाद संक्रमित व्यक्ति द्वारा हाथ ठीक से न धोना और भोजन बनाना या भोजन को छूना भी रोग फैला सकता है। कुछ अन्य कारण निम्न हैं: \n- उन क्षेत्रों में काम करना या यात्रा करना जहां यह बीमारी है।\n- गलत जीवन-शैली के कारण शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र का कमजोर होना।\n- पीने के पानी का जीवाणु से प्रदूषित होना।\n- शौच के बाद साफ-सफाई का ध्यान ना रखना। \n\nTreatments:\nटाइफाइड का उपचार (Treatment of Typhoid in Hindi)\n- डॉक्टर के परामर्श से ब्लड टेस्ट के बाद ही डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही चिकित्सा कराएं।\n- टाइफाइड की दवा को बीच में न छोड़ें। बुखार में पेरासीटामोल का इस्तेमाल करें।\n- रोगी के शरीर में पानी की कमी न होने पाए, इसके लिए रोगी को पानी और अन्य तरल पदार्थ पर्याप्त मात्रा में दें। \n- रोगी के आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। \n\nHome Remedies:\nटाइफाइड का बुखार पाचन तंत्र और बल्डस्ट्रीम (blood stream) में बैक्टीरिया के इंफेक्शन के कारण होता है। सलोमोनेला टाइफी (salomonela typhi) नाम का यह बैक्टीरिया (bacteria) पानी, किसी पेय या खाने के साथ हमारे शरीर के अंदर प्रवेश करता है और पाचन तंत्र में जाकर यह बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं। यह बैक्टीरिया शरीर के भीतर एक जगह से दूसरी जगह जैसे, लिवर, स्पलीन, गॉलब्लेडर आदि जगहों पर घूमते रहते हैं।\nटाइफाइड का बुखार अधिकांशत दूषित पानी (polluted water) पीने से होता है। टाइफाइड के लक्षणों में सिर में दर्द (headache), पेट में दर्द (pain in stomach) और बुखार का होना है लेकिन टाइफाइड के बिगड़ने पर उल्टी (Vomiting), डायरिया (diarrhea), मल में खून आना (blood in stool), लिवर का बढ़ना (enlargement of liver) आदि भी हो सकते हैं। टाइफाइड में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए तथा इसका कोर्स पूरा किया जाना भी जरूरी है क्योंकि इसके दोबारा होने के चांसेस भी रहते है। टाइफाइड से निजात के लिए यहां हम आपको कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में बताएंगे जिन्हें अपनाकर आप टाइफाइड से राहत पा सकते हैं।\n1. ठंडा पानी (Cold water)\nकिसी कपड़े को ठंडे पानी में भिगोकर शरीर को पोंछे। इसके अलावा ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रखने से भी लाभ होता हे और शरीर का तापमान कम होता है। कपड़े को समय समय पर बदलते रहना चाहिए। सामान्य बुखार के लिए यह बेहद अच्छी प्रक्रिया है जो तापमान को बढ़ने नहीं देती।\nनोट- इसके लिए बर्फ या बर्फ के पानी की इस्तेमाल न करके, ताजे पानी का इस्तेमाल करें।\n2. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)\nसेब का सिरका भी बुखार के लिए बेहद सस्ती और प्रभावी दवा है। इससे बुखार को तेजी से दूर होता है क्योंकि इसमें मौजूद एसिड गर्माहट को शरीर की त्वचा से बाहर कर देता है। साथ ही इसमें मौजूद मिनरल शरीर को बुखार से दूर भी रखते हैं।\nकैसे करें उपयोग\nकिसी कपड़े को एक भाग सिरका और दो भाग पानी लेकर उसमें भिगोएं। अतिरिक्त पानी को निचोड़ दें और इस पट्टी को माथे और पेट पर रखें। एक पट्टी पैर के तलवों पर भी रखी जा सकती है। जैसे ही कपड़ा गरम हो जाए, दोबारा घोल में डुबाएं और प्रक्रिया को दोहराएं।\n4. लहसुन (Garlic)\nलहसुन की गर्म तासीर भी शरीर में पसीना लाकर, शरीर का तापमान कम कर सकती है। यह शरीर से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को भी बाहर निकालने में सहायक है। इतना ही नहीं लहसुन एंटीफंगल (antifungal) और एंटीबैक्टीरियल (Antibacterial) गुणों से भरा है जो शरीर को इम्यूनिटी (Immunity) देता है।\nकैसे करें उपयोग", + "Disease: टाइफाइड (Typhoid)\nलहसुन की एक कली को पीसकर गरम पानी में मिलाएं। 10 मिनट ढक कर रखें। पानी को छान लें और घूंट घूंट करके धीरे धीरे पीएं। एक दिन में इस पेय को दो बार पीएं। अगले ही दिन आप बुखार से राहत महसूस करेंगे।\nदो चम्मच ऑलिव ऑयल (olive oil) में दो कली लहसुन की डालकर भूनें। इस तेल को ठंडा करके पैर के तलवों (sole of feet) में लगाएं।\n5. तुलसी (Basil)\nतुलसी भी टाइफाइड के बुखार के लिए उत्तम औषधि है। इसके एंटीबैक्टीरियल (Antibacterial) और एंटीबायोटिक (Antibiotic) गुण बैक्टीरिया को खत्म करते है, जिससे बुखार जल्दी भी ठीक होता है।\nकैसे करें उपयोग\nपुदीने की बीस पत्तियों में एक छोटी चम्मच अदरक (Ginger) को कद्दूकस करके एक कप पानी में उबाल लें। इस पानी को गुनगुना रहने तक इंतजार करें। इसके बाद इसे छानकर इसमें शहद मिलाकर पीएं। इस पेय को दिन दो से तीन बार ले सकते हैं।\n6. लौंग (Laung or clove)\nलौंग में टाइफाइड को ठीक करने के गुण होते हैं। लौंग के तेल में एंटीबैक्टीरियल (Antibacterial) गुण होते हैं जो कि बैक्टीरिया को मार देते हैं।\nकैसे करें उपयोग\nआठ कप पानी में 5 से 7 लौंग डाल��र उबाल लें। जब पानी आधा रह जाए इसे छान लें। इस पानी को पूरा दिन पीएं। इस उपचार को एक हफ्ते लगातार करें।\n\n\n", + "Disease: जूँ (Lice)\n\nDescription: \nजूं (Head Lice) तिल के आकार की एक छोटी परजीवी है जो मनुष्य के शरीर में पैदा हो जाती हैं। सामान्यत: यह बालों में पाये जाते हैं। ये बड़ी तेजी से चल सकती हैं। इस कारण बालों के बीच इन्हें खोजना कठिन हो जाता है। ये सभी उम्र तथा प्रजातियों के लोगों को संक्रमित करती हैं।\n\nSymptoms: \n- सिर में खुजली होना\n\nReasons: \nजुएं तेजी से, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैल सकती हैं। यह बेहद तेजी से चलती हैं। जुओं के फैलने के कुछ कारण निम्न हैं: \nजुएं फैलने के कारण (Cause of Head Lices in Hindi)\n- हैट, स्कार्फ, कंघी, ब्रश, हेयर क्लिप अथवा बैरेट, हेयर बैंड, हेलमेट अथवा कपड़ों, का अदल-बदलकर इस्तेमाल करते हैं।\n- एक ही बिस्तर, पलंग अथवा कालीन का प्रयोग करते/करती हैं।\n- बहुत निकट रहकर खेलते हैं।\n- ऐसे अलमारी अथवा लॉकर में रखी गई, वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, जिन में जुएं अथवा उनके अंडे मौजूद होते हैं।\n\nTreatments:\nकैसे रोके जूं को फैलने से (Treatment of Head Lice in Hindi)\n- सामान्य शैम्पू से बाल साफ करें। कंडीशनर का प्रयोग न करें। इसके कारण जुओं की दवा का प्रभाव समाप्त हो सकता है।\n- गर्म पानी से बाल धोकर उन्हें तौलिये से सुखा लें। इस तौलिये का दुबारा प्रयोग तब तक न करें, जब तक यह धो न लिया जाए।\n- बालों पर सफेद सिरका लगाएं - यह उस ‘गोंद’ को ढीला करने में सहायक होता है, जो ‘लीखों’ को बालों से चिपकाए हुए है।\n- बालों को महीन कंघी से साफ करें, जिससे ये अंडे निकल आएं। बालों को इधर-उधर करके कंघी करना उपयोगी हो सकता है।\n- सभी अंडों का हटाया जाना आवश्यक है। इसमें 2 अथवा 3 घंटे या अधिक समय लग सकता हैं, तथा यदि कंघी काम नहीं करती है तो आपको हाथों सं अंडे चुनने पड़ सकते हैं।\n- परिवार में जितने लोगों को जूँएं हैं सब का उपचार एक साथ हो। \n- कपड़े बिस्तर आदि धूप में रखें या गर्म पानी में धोएं। \n- रूसी\n- रूसी\n- बालों का झड़ना\n\nHome Remedies:\nजूँ एक छोटा परजीवी (parasite) है जो बालों की जड़ों और बालों के निचले हिस्से पर चिपके रहते हैं, जहां यह सिर की त्वचा से खून को पीकर जिंदा रहते हैं। बच्चों में जूँ होने की समस्या आम है। यदि आप जूँ वाले किसी व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो यह आपको भी हो सकते हैं। साथ ही इंफेक्टेड व्यक्ति का सामान जैसे कंघी और कपड़े आदि इस्तेमाल करने से भी जूँ होने ���ी संभावना रहती है।\nसिर में जूँ होने का सबसे आम लक्षण है सिर में खुजली होना और सिर की त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ना। यह बहुत तेजी से बढ़ते हैं इसलिए इन्हें जल्दी खत्म करना बहुत मुश्किल होता है। कुछ घरेलू उपचार के द्वारा जूँ से निजात पाई जा सकती है। आइए आपको बताएं ऐसे ही कुछ घरेलू उपचार के बारे में-\n1. लहसुन (Garlic)- लहसुन की तेज महक जुओं का दम घोटती है और उन्हें मार देती है।\nकैसे करें उपयोग\nआठ से दस लहसुन की कलियों को पीसकर इसमें नींबू का रस मिलाएं और बालों की जड़ों में लगाएं। आधे घंटे बाद बालों को गरम पानी से धो लें।\nलहसुन की कलियों को पीसकर, उसमें खाने वाला तेल मिलाएं। इसके बाद इसमें शैंपू या कंडीशनर में मिलाकर बालों में लगाएं। आधे घंटे के लिए बालों को यूं ही छोड़ दें और धो दें।\n2. बेबी ऑयल (Baby oil)- बेबी ऑयल में कपड़े धोने वाला डिटरजेंट और कुछ सिरका मिलाकर बालों में लगाने से भी जूँ का इलाज संभव है। बेबी ऑयल भी जूँ का दम घोंट देता है जिससे वह मर जाती हैं।\nकैसे करें उपयोग\nबेबी ऑयल को बालों में लगाकर, पतले दांतों वाली कंघी से बाल काढ़ें। जूँ गिरनी शुरू हो जाएंगी। इसके बाद बालों को डिटरजेंट और गरम पानी से धो लें। सोने जाने से पहले बालों में सिरका लगाएं और बालों को शावर कैप से ढक लें और पूरी रात यूं ही छोड़ दें। सुबह सामान्य शैंपू से बाल धो लें। शैंपू के बाद कंडीशनर करें।\n3. ऑलिव ऑयल (Olive oil)- ऑलिव ऑयल भी जूँ मारने में बहुत प्रभावी है।\nकैसे करें उपयोग\nबालों में किसी भी प्रकार का ऑलिव ऑयल सोने से पहले लगाएं। शावर कैप लगाकर रात भर तेल को बालों में यूं ही छोड़ दें। सुबह में बालों को कंघी करें, जूँ बाहर निकल आएंगी। इसके बाद बालों को शैंपू कर लें।", + "Disease: जूँ (Lice)\nआधा कप ऑलिव ऑयल में आधा कप कंडीशनर मिलाकर इसमें कुछ लिक्विड साबुन मिलाएं। इसे बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटा छोड़ दें और बाल धो लें और कंघी करके जूँ बाहर निकाल दें। इसे एक हफ्ते बाद दोबारा दोहराएं।\n4. नमक (Salt)- नमक भी जूँ निकालने में बेहद असरकारी है।\nकैसे करें उपयोग\nएक चौथाई कप नमक में इतना ही सिरका मिलाकर इस घोल को बालों में स्प्रे करें। स्प्रे किए हुए गीले बालों पर शावर कैप पहनें और दो घंटे यूं ही छोड़ दें। इसके बाद बाल धो लें और बालों पर कंडीशनर करें। हर तीसरे दिन इस प्रक्रिया को दोहराएं।\n5. पेट्रोलियम जेली (Petrolium jelly)- पेट्रोलियम जेली रेंगने वाले (roaming around) जुओं को तुरंत मार देती है।\nकैसे करें उपयोग\nसोने से पहले बालों की जड़ों में पेट्रोलियम जेली लगाएं। इसके बाद कपड़े से बालों को बांध कर सो जाएं। सुबह बेबी ऑयल से जेली हटाएं और कंघी करके जूँ को बाहर निकालें।\n6. नारियल का तेल (Coconut oil)\nनारियल का तेल रेंगने वाले जुओं पर असर दिखाता है साथ ही इनकी संख्या को बढ़ने से रोकता है।\nकैसे करें उपयोग\nसबसे पहले बालों को सेब के सिरके (Apple cider vinegar) से धोएं। बालों को पूरी रह सुखाकर जड़ों में नारियल का तेल लगाएं। छह से आठ घंटों के लिए बालों को यूं ही छोड़ दें। इसके बाद बालों को शैंपू करके कंघी करें और जूँ निकालें।\n7. सफेद सिरका (White vinegar)\nसफेद सिरके में मौजूद एसीटिक एसिड जूँ को मारता है। यह जूं को मारने का सुरक्षित और सस्ता तरीका है। किसी तेल में सफेद सिरका मिलाकर बालों में लगाकर कुछ घंटे छोड़ दें और फिर शैंपू करें।\n\n\n", + "Disease: कब्ज (Constipation)\n\nDescription: \nकब्ज एक बेहद आम बीमारी बन चुकी है। मल त्याग एक प्राकृतिक क्रिया है। लेकिन जब मल त्याग करने में अगर परेशानी आती है तो उस समस्या को कब्ज (Kabj) कहते हैं। अनियमित खानपान और गलत जीवनशैली के कारण यह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है।\n\nSymptoms: \n- ऐंठन हो, दर्द हो, पेट फूल जाए या मतली हो\n- ऐसा महसूस हो कि आपकी अँतड़ियां पूरी तरह से खाली नहीं हुई हो\n- मल त्याग के लिए ज़ोर लगाना पड़े\n\nReasons: \n- ऐसे आहार जिनमें चर्बी और शक्कर ज्यादा हों और रेशे कम हों। \n- काफी मात्रा में तरल पदार्थ न लेना। \n- निष्क्रिय रहना। \n- जब आप को मल त्याग की इच्छा हो तब शौचालय न जाना।\n\nTreatments:\nकैसे दूर करें कब्ज़ (Treatment of Constipation in Hindi)\n- दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए। गुनगुने या गरम पानी से आपकी आँतों को आसानी से काम करने में मदद मिल सकती है।\n- ब्रैन सिरियल, होल ग्रेन ब्रेड, कच्ची सब्जियां, ताजे या सुखाये हुए फल, सूखा मेवा और पॉपकॉर्न जैसी अधिक रेशे वाली चीजें खाइए। रेशे शरीर से मल को निकलने में मदद करते हैं।\n- चीज़, चॉकलेट और अण्कडें आदि कम खाना चाहिए क्योंकि इनसे कब्ज (Kabj) बढ़ सकती है।\n- मल को नरम करने के लिए आलू बुखारे या सेब का रस पीजिए।\n- अपनी आँतों को ठीक से काम करने में मदद करने के लिए कसरत कीजिए।\n- कब्ज में पैदल चलने से लाभ होता है।\n- जब आप को मल त्याग करने की इच्छा हो, शौचालय जाएं।\n- एनीमा का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लें।\n\nHome Remedies:\n- एक चुटकी काला नमक गुनगुने पानी में डालें और उसे सुबह खाली पेट पीकर 15 मिनट तक चहलकदमी करें, कब्ज़ में अवश्य ही राहत मिलेगी।\n- अपने भोजन में मोटे अनाज (Bran) का समावेश करें। मौसम के अनुसार उपलब्ध सलाद को शामिल करने से कब्ज और पेट की दूसरी तमाम समस्याओं से स्थाई रूप से छुटकारा पाया जा सकता है।\n- अलसी के बीज (Flaxseed) का सेवन भी कब्ज़ से आराम दिलाता है। अलसी के बीज को सुबह कॉर्नफ्लेक्स (Cornflax) के साथ मिलाकर खा सकते हैं या फिर मुट्ठी भर अलसी के बीज को गर्म पानी के साथ सुबह खा सकते हैं।\n- किशमिश फाइबर(Fiber) से भरपूर होती है और प्राकृतिक जुलाब की तरह काम करती है। १०-१२-किशमिश को रात में पानी में भिगोकर रख दें और सुबह खाली पेट खाएं। गर्भावस्था (Pregnancy) में महिलाओ को अक्सर कब्ज़ की शिकायत रहती है, गर्भवती महिलाओं (Pregnant Females)के लिए यह बहुत लाभकारी उपाय है।\n- अमरूद (Gauva) भी कब्ज़ में बहुत राहत पहुँचाता है। इसके गूदे और बीज में फाइबर की उचित मात्रा होता है। इसके सेवन से खाना जल्दी पच जाता है और एसिडिटी (Acidity) से भी राहत मिलती है, साथ ही पेट भी साफ हो जाता है।\n- एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू (Lime) और नमक (Salt) मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से भी कब्ज़ में काफी आराम मिलता है।\n\n\n", + "Disease: उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)\n\nDescription: \nहाई ब्लड प्रेशर या उच्च रक्तचाप की समस्या आजकल बेहद आम होती जा रही है। उच्च रक्तचाप के दौरान मरीज के शरीर में रक्त का प्रवाह बेहद तेज हो जाता है। इस स्थिति में आपके हृदय को अधिक काम करना पड़ता है। आइये जानें इससे जुड़ी अन्य बातें:\n\nSymptoms: \n- उल्टी होने की शिकायत और चिडचिडापन\n- कम मेहनत करने पर साँस फूलना, थकावट रहना\n- चक्कर आना\n- टांगों में दर्द\n- तनाव होना\n- नाक से खून आना\n- नींद न आना\n- लगातार सिरदर्द होना, सिर चकराना\n- सांस लेने में कठिनाई\n- सिर के पीछे व गर्दन में दर्द\n- हृदय की धड़कन तेज रहना\n- हृदय क्षेत्र में पीड़ा महसूस करना\n\nReasons: \nउच्च रक्तचाप के होने में बहुत सारे फैक्टर्स अहम भूमिका निभाते हैं जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है आसीन जीवनशैली। शारीरिक श्रम की कमी के कारण भी कई बार यह बीमारी लोगों को परेशान करती है। उच्च रक्तचाप के कई अन्य कारण निम्न हैं: \nउच्च रक्तचाप के कारण (Reason for High Blood Pressure)\n- धूम्रपान\n- मोटापा\n- निष्क्रियता\n- नमक का ज्यादा सेवन\n- शराब पीना\n- तनाव\n- बढ़ती उम्र\n- आनुवंशिकता\n- पारिवारिक इतिहास\n- पुरानी किडनी की बीमारी\n- थाइरोइड डिसऑर्डर \n\nTreatments:\nरक्तचाप (Blood Pressure) बढ़ने पर किस तरह अपना ध्यान रखना इसकी जानकारी होना बेहद जरूरी है। साथ ही समय-समय पर डॉक्टरी जांच इस बीमारी से बचाने में बहुत कारगर होती है। उच्च रक्तचाप से बचने के कुछ प्रमुख उपाय निम्न हैं:\n- प्रतिदिन एक घंटा हल्का या तेज किसी प्रकार का व्यायाम जरूर करें।\n- खाने में हाई फाईबर वाले चीजें लेनी चाहिए। \n- खुद को एक्टिव रखने का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए। \n- समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। \n\nHome Remedies:\nउच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) यूं तो जीवनशैली से संबंधित एक सामान्य बीमारी है लेकिन यही कई अन्य बड़ी बिमारियों की शुरूवात या वजह भी है। कई बार उच्च रक्तचाप से व्यक्ति की मृत्यु तक संभव है।\nदिल की बिमारियां (Heart Disease), एनजाइना (Engina) और स्ट्रोक (Stroke) आदि सभी समस्याएं उच्च रक्तचाप के कारण होती हैं यहां तक की कई बार शुगर के लिए भी उच्च रक्तचाप जिम्मेदार होता है।\nहालांकि यदि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए तो कई घरेलू उपायों से भी उच्च रक्तचाप को ठीक किया जाना संभव है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही घरेलू उपचारों के बारे में।\nउच्च रक्तचाप के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for High Blood Pressure)\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन को खाली पेट सुबह कच्चा ही खाएं। लहसुन में रक्त को पतला करने के गुण होते हैं जो कि रक्त का थक्का जमने से भी रोकता है। चिकित्सक से परामर्श लेकर लहसुन कर प्रयोग शुरू कर सकते हैं।\nशहजन की फली (Drum Sticks)\nशहजन में प्रोटीन, विटामिन और अन्य पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो कि शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद जरूरी हैं। शहजन का उपयोग करने का आसान तरीका है कि इसकी फलियों को दाल के साथ बनाकर खाया जाए। इससे भी उच्च रक्तचाप नॉर्मल होता है।\nआंवला (Indian Gooseberry)\nआंवला में विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है जो कि शरीर से कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) की मात्रा को कम करती है। इससे दिल स्वस्थ रहता है और उच्च रक्त चाप नियंत्रित।\nमूली (Radish)\nरसोईघर में प्रयोग होने वाली आम सब्जी है मूली, लेकिन इसमें उच्च रक्त्चाप को नियंत्रित करने के गुण होते हैं। मूली को सलाद के रूप में कच्चा या दही के साथ मिलाकर खाया जा सकता है।\nतिल (Sesame)\nतिल डायस्टोलिक और सिस्टोलिक (Diastolic and Systolic) , दोनों तरह के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। तिल के तेल में सिसमिन (Sesamin) और सिसमिनॉल (Sesaminol) दोनों होते हैं जो कि शरीर के तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं।\nति��� का खाने में प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है। तिल के लड्डू या तिल का पाउडर सलाद या दाल सब्जी में ऊपर से छिड़ककर खाने से लाभ होता है।\nअलसी के बीज (Flex Seed)", + "Disease: उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)\nअलसी के बीज ओमेगा-3 फैटी एसिड में से एक है जिससे इसमें अल्फा लिनोलेनिक एसिड (Alfa Linolenic Acid) नामक यौगिक की उच्च मात्रा होती है। यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के साथ ही केलॉस्ट्रॉल की मात्रा भी घटाता है जिससे हृदय भी स्वस्थ बनता है।\n\n\n", + "Disease: दांत का दर्द (Toothache)\n\nDescription: \nदांत हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। बात मुस्कुराने की हो या कुछ खाने की बिना दांत सब बेकार है। लेकिन किसी भी कारण यदि दांतों में दर्द हो जाए तो व्यक्ति बैचेन हो जाता है। दांतों का दर्द यूं तो एक आम समस्या है, लेकिन इसका दर्द असहनीय होता है।\n\nSymptoms: \n- चबाने में दर्द होना\n- बुखार, सिरदर्द\n- सांस लेने में कठिनाई\n\nReasons: \nदांतों में दर्द के कई कारण हो सकते हैं। दांतों की ठीक से सफाई न करना, दांतों में कैविटी होना या अत्यधिक मीठा खाना। इसके साथ ही चाय काफी ज्यादा पीना। इसके साथ ही कुछ अन्य कारण भी हैं जैसे: \nदांतों में दर्द का कारण (Causes of Tooth Pain)\n1. मसूड़ों में इंफेक्शन- यदि किसी भी कारण से मसूड़ों में इंफेक्शन है तो यह दांत दर्द का कारण हो सकता है। इसके कारण टूथ इनेमल (Tooth Enamel) की समस्या भी होती है। इससे दांतों में ठंडा गर्म लगना, मुंह का स्वाद बिगड़ना, गर्दन की ग्लैंड में सूजन आना, मसूड़ों में सूजन आनाआदि समस्याएं आ सकती हैं।\n2. कैविटीज- इसके कारण दांतों की ऊपरी परत नष्ट हो जाती है। कॉर्बोहाईड्रेट वाला खाना जिसमें ब्रेड, सोडा केक या कैंडी आदि दांतों पर चिपक जाए और अच्छी तरह से साफ न हो तो कैविटी (Cavity) हो सकती है जिसका परिणाम होता है दांतों में दर्द।\n3. दांत में कीड़ा- इससे दांत पूरी तरह खोखला हो जाता है और उनमें खाना भर जाता है। जो कि दर्द का कारण बनता है। दर्द के कारण दांत काम नहीं करता और उन पर एक प्रकार की गंदगी जमने लगती है।\n4. टूटे दांत- कुछ खाते वक्त या किसी अन्य कारण से यदि दांत टूट गए हैं तो ऐसे दांतों में दर्द की शिकायत अक्सर रहती है। ऐसे दांतों के इनेमल कमजोर हो जाती है जिससे ये सेंसिटिव हो जाते हैं।\n5. फिलिंग- यदि दांतों में फिलिंग (Tooth Filling) कराई गई हो तो यह भी कई बार यह दांत दर्द का कारण हो सकती है।\n\nTreatments:\n​दांत दर्द होने पर ठंडे पानी से कुल्ला करना फायदेमंद होता है लेकिन अगर इससे पूर्ण आराम नहीं मिल पाए तो निम्न उपाय करने चाहिए:\n- कोई पेनकिलर लें।\n- आइस पैक या टॉवेल में आइस लपेटकर उसे गालों पर कुछ देर के लिए रखें। अगर गालों में सूज़न आ जाए और दर्द हो तो फ्रोज़ेन पीज़ को आइसपैक की जगह लगाएँ। ये चेहरे के आकार के अनुसार बदल सकते हैं।\n- अगर दो दिनों में दर्द नहीं जाता तो डेन्टिस्ट (Dentist) के पास जाएँ। हो सकता हैं ज़्यादा कॅविटी या क्रैक की वजह से दर्द हो।\n- दांत का डॉक्टर आपके मुंह की जांच करेगा और एक्स-रे लेगा। फिर दांत का डॉक्टर दांत को ठीक करेगा या निकाल देगा। आपको दर्द निवारक दवाएं या एंटीबायोटिक लेने के लिए कहा जा सकता है। डॉक्टर की बताई गई दवाएं लें।\n\nHome Remedies:\nदांतों का दर्द वैसे तो एक सामान्य समस्या है, लेकिन इसका दर्द असहनीय होता है। यदि आपको भी कभी दांत में दर्द हो तो घबराएं नहीं, कुछ घरेलू उपाय अपनाकर आप इस तकलीफ से बच सकते हैं।\n\n1. लौंग- यदि दांत में दर्द हो तो लौंग का तेल रूई में भिगोकर दांत पर लगाइए। कोशिश कीजिए कि तेल मसूड़ों पर न लगे क्योंकि इससे हल्की जलन महसूस हो सकती है।\n2. एल्कोहल- जी हां आपने ठीक पढ़ा एल्कोहल। एक सिप एल्कोहल से कुल्ला करने पर भी दर्द में आराम मिलता है। इससे दर्द वाला हिस्सा सुन्न हो जाता है। लेकिन स्थाई यह इलाज नहीं है।\n3. विक्स- विक्स को अपने चेहरे के उस हिस्से की तरफ लगाइए जिस तरफ दांत में दर्द हो। इसके बाद चेहरे को ढंक लें। इससे दर्द में आराम मिलता है।\n4. आइस- बर्फ के टुकड़े से सिकाई करने पर भी दांत दर्द में बेहद आराम मिलता है।\n5. काली मिर्च- काली मिर्च के पाउडर को मसूड़ों पर रगड़ने से भी दर्द का हिस्सा सुन्न हो जाता है और दर्द में आराम मिलता है।\n6. कच्ची प्याज- कच्ची प्याज को 3 मिनट तक दर्द वाले हिस्से पर रगड़ें, इससे भी दर्द में बहुत आराम मिलता है।\n7. लहसुन- लहसुन की कली को चबाकर उसके रस को लार के साथ मिलकार कुल्ला करें। कुछ ही सेकेंड में दर्द में आराम मिलेगा।\n8. वनीला अर्क- वनीला अर्क की कुछ बूंदे रूई में लेकर दर्द वाले हिस्से पर लगाएं। दांत दर्द में आराम मिलेगा। ", + "Disease: दांत का दर्द (Toothache)\n9. गेहूं के पौधे का रस- अंकुरित गेहूं के पौधे का रस भी कुल्ले के रूप में प्रयोग कर दांत दर्द से बचा जा सकता है। यह मसूड़ों के विषम पदार्थों को निकालकर जीवाणुओं की वृद्धि को रोकता है।\n10. पैरॉक्���ाइड- दांतों में दर्द होने पर पैरॉक्साइड से कुल्ला करें। लेकिन ध्यान रहे इसे कभी निगलें नहीं। इससे भी दांत दर्द में आराम मिलता है।\n\n\n", + "Disease: डेंगू (Dengue)\n\nDescription: \nडेंगू, मादा एडीज (Female Aedes) मच्छर के काटने से होता है। ये मच्छर दिन में, खासकर सुबह काटते हैं। मरीज में अगर जटिल तरह के डेंगू का एक भी लक्षण दिखाई दे तो उसे जल्दी - से - जल्दी डॉक्टर के पास ले जाएं। डीएचएफ ( DHF - Dengue Hemorrhagic Fever) और डीएसएस (DSS - Dengue Shock Syndrome) बुखार डेंगू के दो प्रकार हैं जिनमें प्लेटलेट्स (Platelets) काफी कम हो जाते हैं, जिसके कारण शरीर के जरूरी अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है।\n\nSymptoms: \n- उल्टी व शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं\n- कमजोरी हो जाती है और चक्कर आते हैं\n- डेंगू बुखार के लक्षण आम बुखार से थोड़े अलग होते हैं\n- डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS) के मरीजों में साधारण डेंगू बुखार और डेंगू हैमरेजिक बुखार के लक्षणें के साथ-साथ बेचैनी महसूस हो\n- डेंगू हेमोरेजिक बुखार में उपरोक्त लक्षणों के अलावा प्लेटलेट्स की कमी से शरीर में कहीं से भी खून बहना शुरू हो सकता है, जैसे नाक से, दाँतों व मसूड़ों से, खून की उल्टी व मल में खून आना आदि\n- थकावट व कमजोरी है\n- नाड़ी कभी तेज और कभी धीरे चलनेलगती है और रक्त चाप (Blood Pressure) एकदम कम हो जाता है\n- बुखार बहुत तेज होता है\n- सिरदर्द, कमर व जोड़ों में दर्द होता है\n- हल्की खाँसी व गले में खराश महसूस होती है\n\nReasons: \n- खाली बर्तनों को उलटा करके रखें।\n- पक्षियों के खाने- पीने के बर्तनों को हर रोज साफ करें।\n- अगर घर में कूलर है तो उसका पानी दो या तीन दिन बाद अवश्य बदलें।\n- घर में स्थित हौदियों, टैंकरों में पानी को साफ रखने के लिए उसमें क्लोरीन की दो चार गोलियां डाल दें।\n- घर के आस- पास या छत पर पड़े बेकार टायर, ट्यूब, टूटे हुए मटके, खाली डिब्बों आदि में बरसात का पानी इकठ्ठा न होने दें।\n- पार्क में जाते समय या ऐसी जगह जाते समय जहां मच्छरों के काटने का खतरा हो, वहां पूरी  बाजू के कपड़े पहनने चाहिए ताकि मच्छर ना काटें। \n- मच्छरों से बचने के लिए क्रीम, मच्छरदानी और अन्य उपायों का इस्तेमाल करना चाहिए। \n\nTreatments:\nडेंगू से बचाव का सबसे बेहतरीन उपाय है गंदगी का जमा ना होने देना। अगर मादा एडीज मच्छर पनपेंगे ही तो डेंगू होने की आशंका भी बेहद कम होगी। डेंगू होने पर निम्न उपाय करने चाहिए:\n- साधारण डेंगू बुखार का इलाज घर पर ही हो सकता है। मरीज को पूरा आराम क���ने दें। उसे हर छह घंटे में पैरासिटामोल (Paracetamol) दें और बार- बार पानी और तरल चीजें ( नीबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि ) पिलाएं।\n- बच्चों का खास ख्याल रखें।\n- बुखार कम होने के बाद भी एक-दो दिन में एक बार प्लेटलेट्स काउंट टेस्ट जरूर कराएं। डेंगू में मरीज के रक्तचाप, खासकर ऊपर और नीचे के रक्तचाप के अंतर पर लगातार निगरानी ( दिन में 3-4 बार ) रखना जरूरी है। दोनों रक्तचाप के बीच का फर्क 20 डिग्री या उससे कम हो जाए तो स्थिति खतरनाक हो सकती है। रक्तचाप गिरने से मरीज बेहोश हो सकता है।\n- बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम (Immune System of Kids) कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी पकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।\n- बच्चे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।\n- बच्चों घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें।\n- मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी - शर्ट न पहनाएं।\n- रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।\n- अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।\n- आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ - पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है, खासकर बच्चों में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।\n- बच्चे को डेंगू हो तो उसे अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें डीहाइड्रेशन (पानी की कमी) भी जल्दी होता है।\n\nHome Remedies:", + "Disease: डेंगू (Dengue)\nडेंगू एडीज मच्छर (Adeej Mosquito) द्वारा फैलने वाली बीमारी है जो कि हाल के समय में तेजी से बढ़ रही है। डेंगू के बारे में सबसे खास बात यह है कि इसके मच्छर दिन के समय काटते हैं तथा यह मच्छर साफ पानी (Clean Water) में पनपते हैं। डेंगू के दौरान रोगी के जोड़ों में तेज दर्द (Pain in Joints) होता है तथा सिर में भी दर्द (Headache) काफी तेज होता है। बड़ों के मुकाबले यह बच्चों में ज्यादा तेजी फैलता है।\nडेंगू के दौरान यदि तुरंत उपचार न किया जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है, क्योंकि डेंगू बुखार में प्लेटलेट्स (Platelates) का स्तर बहुत तेजी से नीचे गिरता है जिससे कई बार अंदरूनी रक्त्स्त्राव (Internal Bleeding) होने की संभावना भी रहती है।\nडेंगू से बचाव के लिए कुछ घरेलू उपाय भी हैं जिन्हें अपनाकर डेंगू से बचाव संभव है। आइए आपको भी बताते हैं कि कौन से घरेलू उपाय आपको डेंगू से बचा सकते हैं-\nडेंगू के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Dengue)\nधनिया पत्ती (Coriander Leaves)\nडेंगू के बुखार से राहत के लिए धनिया पत्ती के जूस को टॉनिक के रूप में पिया जा सकता है। यह बुखार को कम करता है।\nआंवला (Indian Gooseberry)\nआंवला में विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है जिससे कि शरीर में एब्जॉर्ब करने की क्षमता बढ़ती है। इससे शरीर ज्यादा लौह तत्व एब्जॉर्ब कर पाता है जो कि डेंगू के बुखार को ठीक करने के लिए जरूरी है।\nतुलसी (Basil)\nतुलसी के पत्तों को गरम पानी में उबालकर छानकर, रोगी को पीने को दें। तुलसी की यह चाय डेंगू रोगी को बेहद आराम पहुंचाती है। यह चाय दिनभर में तीन से चार बार ली जा सकती है।\nपपीते की पत्ती (Papaya Leaves)\nपपीते की पत्तियां, डेंगू के बुखाार के लिए सबसे असरकारी दवा कही जाती है। पपीते की पत्तियों में मौजूद पपेन एंजाइम (papain enjymes) शरीर की पाचन शक्ति को ठीक करता है, साथ ही शरीर में प्राटीन को घोलने का काम करता है। डेंगू के उपचार के लिए पपीते की पत्तियों का जूस निकाल कर एक एक चम्मच करके रोगी को दें। इस जूस से प्लेटलेट्स की मात्रा तेजी से बढ़ती है।\nबकरी का दूध (Goat Milk)\nडेंगू बुखार के लिए एक और बुहत प्रभावशाली दवा है बकरी का दूध। बहुत कम होचुकी प्लेटलेट्स को भी बकरी का दूध तुरंत बढ़ाने की क्षमता रखता है। डेंगू के उपचार के लिए रोगी को बकरी का कच्चा दूध थोड़ा-थोड़ा करके पिलाएं, इससे प्लेटलेट्स बढ़ेंगे और जोड़ों के दर्द में भी आराम मिलेगा।\nचिरायता (Chirayta)\nचिरायता में बुखार को ठीक करने के गुण होते हैं। डेंगू के बुखार को भी चिरायता के इस्तेमाल से ठीक किया जा सकता है।\nधतूरा (Dhatura)\nधतूरे की पत्तियों में डेंगू के बुखार को ठीक करने के गुण होते हैं, लेकिन इसकी खुराक 2 डेसीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।\nमेथी के पत्ते (Fenugreek Leaves)\nमेथी के पत्ते भी डेंगू के बुखार को ठीक कर सकते हैं। मेथी के पत्तों को पानी में उबालकर हर्बल चाय के रूप में इसका पयोग किया जा सकता है। मेथी से शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे डेंगू के वायरस भी खत्म होते हैं।\nअनार और काले अ��गूर (Pomegranate and Black Grapes)\nडेंगू बुखार में रक्त की कमी को पूरा करने और प्लेटलेट्स के स्तर को बढ़ाने के लिए अनार और काले अंगूर का रस पीना चाहिए।\nसंतरे का जूस (Orange juice)\nविटामिन सी से भरपूर संतरा, पाचन शक्ती को बढ़ावा देता है साथ ही शरीर का इम्यूनिटी भी बढ़ाता है। ऐसे में डेंगू रोगी को जल्द से जल्द स्वस्थ होने के लिए संतरे के रस का सेवन करना चाहिए।\n\n\n", + "Disease: मलेरिया (Malaria)\n\nDescription: \nमलेरिया बुखार के कारण प्रतिवर्ष की कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं। गंदे पानी में पनपने वाले मच्छरों के काटने से फैलनी वाली इस बीमारी के विषय में जानकारी बेहद कारगर है। आइए जानें मलेरिया के बारें में:\n\nSymptoms: \n- उल्टी आना होना\n- एनीमिया होना\n- ठंड लगकर बुखार चढऩा\n- दर्द और ऐंठन होना\n- पसीना आना\n- मलेरिया बुखार 10-15 दिन रहता है\n- ये बुखार चढ़ता-उतरता रहता है\n\nReasons: \n- आसपान मौजूद पानी को समय पर ना बदलना\n- रहने के स्थान के आसपास गंदगी होना\n- पानी का जमाव होना\n- मच्छरों के अंडों का जमा होना \n\nTreatments:\nमलेरिया का प्राथमिक उपचार (Treatment of Malaria in Hindi)\n- मलेरिया में क्लोरोक्विन जैसी एंटी-मलेरियल दवा (Chloroquine- Anti malarial medicine) दी जाती है। इन दवाओं के साइड - इफेक्ट्स हो सकते हैं, इसलिए इन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना न लें।\n- मरीज को पूरा आराम करने दें। उसे हर छह घंटे में पैरासिटामोल (Paracetamol in Malaria) दें और बार- बार पानी और तरल चीजें ( नीबू पानी , छाछ , नारियल पानी आदि ) पिलाएं।\n- मलेरिया बुखार के दौरान बच्चों का खास ख्याल रखें।\n- बच्चे नाजुक होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए बीमारी उन्हें जल्दी पकड़ लेती है। ऐसे में उनकी बीमारी को नजरअंदाज न करें।\n- बच्चे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए इन्फेक्शन होने और मच्छरों से काटे जाने का खतरा उनमें ज्यादा होता है।\n- बच्चों घर से बाहर पूरे कपड़े पहनाकर भेजें। \n- मच्छरों के मौसम में बच्चों को निकर व टी - शर्ट न पहनाएं। \n- रात में मच्छर भगाने की क्रीम लगाएं।\n- अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो , लगातार सोए जा रहा हो , बेचैन हो , उसे तेज बुखार हो , शरीर पर चकत्ते (Rashes) हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।\n- आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ - पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट को छूकर और रेक्टल टेम्प्रेचर लेकर उनका बुखार चेक किया जाता है। बगल से तापमान लेना सही तरीका नहीं है , खासकर बच्चों में। अगर बगल से तापमान लेना ही है तो जो रीडिंग आए, उसमें 1 डिग्री जोड़ दें। उसे ही सही रीडिंग माना जाएगा।\n\nHome Remedies:\nमलेरिया बुखार के दौरान तेज सिर दर्द (Headache), जोर की ठंड के साथ कंप कंपी (Shivring) होना, मांसपेशियों मे भयंकर दर्द होना (Muscle pain) और बेहद कमजोरी जैसे लक्षण महसूस होते हैं। बुखार उतरते समय पसीना होता है। शरीर का तापमान 104 डिग्री से भी ज्यादा हो सकता है। जी घबराना और पित्त की कड़वी उल्टी होना और प्रतिदिन निश्चित समय पर बुखार चढ़ना भी मलेरिया का प्रमुख लक्षण है।\n \nजानिए मलेरिया से राहत के घरेलू उपाय (Home Remedies for Malaria)\n1. चूना (Chuna)- तीन ग्राम चूना लें, इसे 60 मिली पानी में घोलें। एक नींबू इसमें निचोड़ें। मलेरिया बुखार की संभावना होने पर यह मिश्रण पीएं। यह नुस्खा प्रतिदिन लेने से बुखार से राहत मिलती है।\n2. चिरायता- (Chirata)- चिरायता मलेरिया बुखार की सबसे असरदायक औषधि मानी गई है। एक पाव गरम पानी में 15 ग्राम चिरायता मिलाएं, कुछ लौंग और दालचीनी भी मिला दें। इस पानी के इस्तेमाल से भी मलेरिया बुखार उतरने लगता है।\n3. नींबू (Lemon)- गरम पानी में नींबू का रस मिलाकर पीने से बुखार की तीव्रता घटने लगती है।\n4. फिटकरी (Alum)- थोडी सी फ़िटकरी तवे पर भूनकर चूर्ण बना लें। आधा चम्मच पाउडर बुखार आने के 3 घंटे पहले पानी से पीएं। बाद में हर दूसरे घंटे पर यह दवा लेते रहने से बुखार खत्म होता है।\n5. तुलसी पत्ता (Basil leaves)- जब बुखार न हो, 10 ग्राम तुलसी के पत्तों के रस में आधा चम्मच काली मिर्च का पाउडर मिलाकर चाट लें। इससे मलेरिया बुखार खत्म हो जाता है।\n6. शहद (Honey)- एक गिलास पानी लें। इसमें एक चम्मच दालचीनी, एक चम्मच शहद और आधा चम्मच काली मिर्च का पाउडर मिलाकर गर्म करें। ठंडा होने पर पीएं, यह अत्यंत लाभकारी नुस्खा है।\n7. धतूरा (Dhatoora)- धतूरा की नई कोपल 2 नग लेकर गुड़ के साथ अच्छी तरह मिलाकर इसकी गोली बना लें। इन्हें दिन में 2 बार लेने से मलेरिया खत्म हो जाता है।", + "Disease: मलेरिया (Malaria)\n8. अन्न न खाएं (Avoid solid food)- मलेरिया होने पर अन्न न खाएं। केवल फल और पानी लेते रहें। ऐसा करने से बुखार से जल्दी लाभ मिलता है।\n9. अदरक (Ginger)- एक गिलास पानी में 10 ग्राम अदरक और 10 ग्राम मुनक्का डालकर इतना उबालें कि आधा रह जाय। ठंडा होने पर पीएं।\n10. अमरूद (Guava)- एक बड़ा अमरुद गरम राख में भून लें। यह अमरूद खाना भी, मलेरिया रोगी के लिए लाभकारी है।\n11. ठंडी पट्��ी रखें (Cold compress)- तेज बुखार की हालत में माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखने से तापमान नीचे आ जाता है। ठंडे पानी में गीला किया टावेल सारे शरीर पर लपेटने से तुरंत लाभ मिलता है।\n12. प्याज का रस (Onion juice)- प्याज का रस मलेरिया में लाभकारी है। 5 मिली रस में 4 काली मिर्च का पाउडर मिलाकर दिन में 3 बार पीने से लाभ होता है।\n13. जामुन (Black berry)- जामुन के पेड़ की छाल सुखाकर पीस लें। 5 ग्राम चूर्ण, गुड़ के साथ दिन में 3 बार लेने से मलेरिया से राहत मिलती है।\n\n\n", + "Disease: छींकना (Sneezing)\n\nDescription: \nछींक को एक सामान्य क्रिया माना जाता है। छींक प्रायः तब आती है जब हमारी नाक के अंदर की झिल्ली किसी बाहरी पदार्थ के घुस जाने से परेशानी महसूस करती है। हमारी नाक में म्यूकस झिल्ली होती है जिसके उत्तक (Tissues) और कोशिकायें (Cells) बहुत संवेदनशील होते हैं।\n\nReasons: \n- सामान्यत: ठंड में जुकाम होना ही छींक की वजह होती है। \n- धूप में ज्यादा रहना भी छींक का कारण बन सकता है, जी हां तेज धूप से छींक की नसें सक्रिय हो जाती हैं जिससे बिना मौसम के धूप में चलते वक्त भी छींक आ जाती है।\n- सेक्स भी छींकने का कारण हो सकता है। सेक्स के दौरान पैरासिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जाता है जिससे सेक्स के बाद कई बार कुछ लोगों को बहुत छींक आती है।\n- थ्रेडिंग करवाते समय या उसके बाद छींक आती है। दरअसल, भौहों के ठीक नीचे जो नस होती है वह श्वास नली से जुड़ी होती है। इससे जुड़ी किसी भी गतिविधि की प्रतिक्रिया के रूप में छींक आती है।\n- कई बार तेज रोशनी देखने से आंख के रेटिना और दिमाग को जोड़ने वाली ऑप्टिक वेन (Optic Vein) उत्तेजित हो जाती है। इस वजह से भी हमें छींक आ जाती है।\n\nTreatments:\nअधिक छींक से बचने के उपाय (Remedies for Sneezing in Hindi)\n\nHome Remedies:\nछींकना (Sneezing), भले ही आपको परेशान करता हो लेकिन, यह वास्तव में आपको कई तरह की एलर्जी से बचाने की स्वभाविक प्रक्रिया है। छींकने से शरीर के अंदर मौजूद कई हानिकारक एलर्जी वाले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे छींकने की प्रक्रिया एक सुरक्षा तंत्र की तरह काम करती है।\nछींक आने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- धुआं, धूल-मिट्टी, सब्जी का तेज छौंक या किसी चीज की तेज गंध। इसके अलावा ठंड के मौसम में, नमी या तापमान में गिरावट, किसी खाने से एलर्जी या किसी दवा से रिएक्शन।\nवजह चाहें जो भी हो, एक दो या तीन छींक आना तो सामान्य है लेकिन यदि आपको एक साथ कई छींकें आती हैं, इतनी कि आप परेशान हो जाते हैं और यह रोज की ही बात है, तो फिर इस बारे में आपको सावधानी की ख़ास जरूरत है।\nछींकने की समस्या से निजात के लिए हम आपको कुछ घरेलू उपाय बताने जा रहे हैं जिससे आपको छींकने से राहत मिलेगी।\nछींकने की समस्या से राहत के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Sneezing)\nपेपरमिंट तेल (Peppermint Oil)\nयदि जुकाम या नाक में किसी परेशानी के वजह से आपको छींक आ रही हैं तो इसके निदान के लिए पेपरमिंट तेल बढ़िया उपाय है। पेपरमिंट तेल में जीवाणुरोधी (Anti-becterial) गुण होते हैं। उपचार के लिए किसी बड़े बर्तन में पानी को उबालकर उसमें पेपरमिंट तेल की 5 बूंदें डालें। एक तौलिये से सिर को ढक कर इस पानी की भाप लें। इस विधि से आपको छींक आने से राहत मिलेगी।\nसौंफ की चाय (Fennel Tea)\nसौंफ छींकने से राहत के साथ ही कई सांस संबंधी संक्रमण से लड़ने की क्षमता रखती है। सौंफ में भी कई एंटीबायोटिक (Anti-biotic) और एंटी वायरल (Anti-viral) गुण होते हैं। उपचार के लिए एक कप पानी उबालकर उसमें दो चम्मच सौंफ को कुचलकर डालें। तकरीबन दस मिनट पानी को कवर करके रख दें और उसके बाद छानकर पीएं। इस तरह की चाय को दिन में दो बार पीएं।\nकाली मिर्च (Black Pepper)\nगुनगुने पानी में आधा चम्मच काली मिर्च डालकर यह मिश्रण दिन में दो से तीन बार पीएं। काली मिर्च का पाउडर डालकर गरारे भी किए जा सकते हैं। इसके अलावा सूप आदि में भी काली मिर्च डालकर पीना, लाभदायक होता है।\nअदरक (Ginger)\nअदरक छींकने की समस्या के साथ ही विभिन्न तरह के वायरल और नाक की अन्य समस्याओं के लिए बेहद पुराना और असरदायक उपाय है। एक कप पानी में थोडा़ सा अदरक डालकर उबालें। इसे गुनगुना रहने पर शहद मिलकार पीएं। इसके अलावा कच्चा अदरक या अदरक की चाय भी पी जा सकती है।\nकैमोमाइल चाय (Chamomile Tea)\nयदि एलर्जी के कारण छींकें आती हैं तो कैमोमाइल चाय का एक प्याला आपको बड़ी राहत दे सकता है। कैमोमाइल एलर्जी को तुरंत खत्म करके आपको राहत देता है। एक कप उबलते पानी में कैमोमाइल के सूखे फूल कुछ मिनट उबालें। इसे गुनगुना रहने पर इसमें शहद मिलाएं और पीएं। इस चाय को दिन में दो बार पिया जा सकता है।\nलहसुन (Garlic)", + "Disease: छींकना (Sneezing)\nलहसुन में एंटीबायोटिक और एंटीवायरल गुण होते हैं, जो कि श्वसन संबंधी संक्रमण (Respiratory Infection) को ठीक करते हैं। यदि सर्दी के आम संक्रमण की वजह से छींके आ रही हैं तो लहसुन आपको बहुत आराम दे सकता है। उपचार के लिए पांच से छह लहसुन की कलियों को पीसक��� पेस्ट बनाएं और इसे सूंघें। दाल सब्जी बनाने में भी लहसुन का प्रयोग करें साथ ही सूप बनाने में भी लहसुन की उच्च मात्रा डालें।\nअजवायन (Carom Seed Oil)\nअजवायन की पत्ती के तेल में जीवाणओं से लड़ने की तेज क्षमता होती है जो कि एलर्जी को ठीक करने में मदद करती है। उपचार के लिए अजवायन के तेल की दो से तीन बूंद रोजाना इसतेमाल करने से साइनस की समस्या से भी निजात संभव है।\nमेथी के बीज (Fenugreek Seed)\nएक कप पानी में मेथी के दो से तीन छोटे चम्मच बीज उबाल लें। जब पानी उबलकर आधा हो जाए तब इस पानी को घूंट-घूंट करके पीएं। इस पानी को एक दिन में दो से तीन बार पिया जा सकता है।\n\n\n", + "Disease: हाइपोथाइराइड (Hypothyroid)\n\nDescription: \nहाइपोथाइराइड एक चयापचय विकार (Metabolic Disorder) है। थाइराइड ग्रंथि के कार्य के सभी पहलुओ, जैसे आयोडीन को थाइराइड हार्मोन में बदलने के लिए ग्रंथि में आयोडीन के संग्रह कार्य को उत्तेजित करने तथा हार्मोन के निर्माण और रक्त परिसंचरण में उसके प्रवाह को टीएसएच (TSH) हार्मोन प्रभावित करता है। मूलतः यह बीमारी खान पान और जीवन शैली से संबंधित है।\n\nSymptoms: \n- इसकी अधिकता होने पर अवटु अतिक्रियता हो जाती है जिसमें नेत्रोत्सेधी गलगण्ड हो जाता है।\n- कमजोरी महसूस होना (Weakness in Body)\n- ठण्ड का सहन नही होना (Intolerance Cold)\n- त्वचा का शुष्क होना (Dry Skin)\n- पेशियों और जोड़ो में दर्द होना, (Pain in the Joints and Muscles)\n- बालों का झड़ना (Baldness)\n- रक्ताल्पता (Anemia) होना\n- स्त्रियों में मासिक रक्तस्त्राव (Extra Discharge During Menses) का अधिक होना\n- बुद्धि की कमी हो जाती है\n- सुनाई कम देता है\n- वजन का बढ़ना\n\nReasons: \nहाइपोथाइराइड की मुख्य वजह हमारी जीवनशैली मानी जाती है। आसीन जीवन शैली और जंक फूड के अधिक इस्तेमाल को अधिकांश डॉक्टर इसकी वजह मानते हैं। \n\nTreatments:\n​हाइपो थायरॉयड से बचने के लिए सबसे जरूरी है स्वस्थ्य और क्रियाशील जीवनशैली अपनाना। इसके साथ ही निम्न बातों का भी ध्यान रखना जरूरी है:\n- व्यायाम (Exercise): प्रतिदिन एक घंटा हल्का या तेज किसी भी प्रकार का व्यायाम जरूर करें।\n- हाइपोथयरॉइड के कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए और डॉक्टर से विमर्श करके हाइपोथयरॉइड की दवाई शुरू करनी चहिये।\n\nHome Remedies:\nजब थायरॉइड ग्लैंड जरूरत के मुताबिक थायरॉइड हार्मोन स्त्रावित नहीं करती तो यह रोग हायपोथायरॉइड कहलाता है। इसे मेडिकल के क्षेत्र में हायपोथायरॉइडिज्म भी कहा जाता है।\nहायपोथायरॉइडिज्म म���ं रोगी को थकान, सर्दी, कब्ज, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, अचानक से वजन बढ़ना, अवसाद, रूखे और झड़ते बाल और नाखुन, आदि समस्याएं पनपने लगती हैं।\nकुछ घरेलू उपचार की मदद से हायपोथायरॉइडिज्म से निजात पायी जा सकती है, आइए आपको भी बताते हैं ऐसे ही कुछ घरेलू उपचारों के बारे में।\nहायपोथायरॉइड से बचाव के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Hyopothyroid)\nनारियल तेल (Coconut Oil)\nनारियल तेल में जरूरी फैटी एसिड होते हैं, जो थायरॉइड को नियंत्रित करते हैं। उपचार के लिए रोजाना बनाए जाने वाले खाने में नारियल के तेल का इस्तोल करें। संभव हो तो रोजाना एक गिलास दूध में नारियल तेल को मिलाकर पिएं।\nसेब का सिरका (Apple Cider Vinegar)\nसेब का सिरका भी थायरॉइड की समस्या से निजात दिला सकता है। इसके डिटॉक्सीफिकेशन (Detoxification) के गुण अल्कालाइन (Alkaline) के संतुलन को बनाकर वजन को घटाते हैं और हार्मोन्स को स्तर ठीक करते हैं। इतना ही नही, सेब का सिरका कोलेस्ट्रॉल को भी नियंत्रित करता है। एक गिलास गुनगुने पानी में दो चम्मच सेब का सिरका मिलाकर पीएं। इस पेय में आवश्यकता अनुसार शहद मिला सकते हैं।\nविटामिन डी (Vitamin D)\nविटामिन डी थायरॉइड की समस्या से निपटने के लिए बहुत जरूरी है। इसके लिए रोज कम से कम 15 मिनट धूप में जरूर बैठें। इससे शरीर में कैल्शियम की मात्रा भी बढ़ती है।\nअदरक (Ginger)\nअदरक, जिंक, पोटेशियम, और मैग्नीशियम का अच्छा स्त्रोत है। इसके लिए अदरक की हर्बल चाय को दिनचर्या में शामिल करें। चाय बनाने के लिए उबलते पानी में कुछ टुकड़े अदरक के डालें। अच्छी तरह से उबल जाए तो कुछ देर ठंडा करें। गुनगुना रह जाए तब इसमें शहद मिलाएं और अदरक की इस चाय को पीएं। इस चाय को दिन में दो से तीन बार पिया जा सकता है।\nमछली का तेल (Fish Oil)\nमछली का तेल थायरॉइड हार्मोन के स्तर को बढ़ाता है। साथ ही, यह स्वस्थ थायरॉइड फंक्शन को भी बनाए रखता है। मछली के तेल में ओमेगा-3 फैटी एसिड काफी अधिक होता है जो कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता हैं। डॉक्टर की सलाह से मछली के तेल के सप्लीमेंट लिए जा सकते हैं।\nआयोडीन की मात्रा बढाएं (Increase Iodine)", + "Disease: हाइपोथाइराइड (Hypothyroid)\nआयोडीन की ऑर्गेनिक इनटेक भी हायपोथायरॉइडिज्म में राहत का काम करती है। आयोडीन के ऑर्गेनिक स्रोतों में प्याज, ओट, टमाटर, लहसुन, बंदगोभी, अनानास और स्ट्रॉबेरी, आदि शामिल हैं। इन खाद्य पदार्थों को रोज के भोजन में शाम���ल करें।\nकाले अखरोट (Black Wallnut)\nकाले अखरोट मिनरल, जैसे कि आयोडीन और मैगनीज के उच्च स्रोत होते हैं। यह मिनरल थाइरॉइड ग्लैंड को समुचित रूप से काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। काले अखरोट को भी रोज खाया जा सकता है।\nतनाव से दूर रहें (Avoid Stress)\nयदि आप थायरॉइड संबंधी किसी भी परेशानी से ग्रसित हैं तो तनाव बिल्कुल न लें। ऐसा कोई भी कार्य न करें, जो आपको इरीटेट करता हो और आपके तनाव को बढ़ाता हो क्योंकि तनाव से आपकी स्थिति और भी बिगड़ सकती है।\nहाई कैलोरी फूड से बचें (Avoid High Calorie Food)\nबिस्कुट, मिठाईयां, केक और इसी प्रकार के अन्य खाने की चीजें जो हाई कैलोरीयुक्त होती हैं, उन्हें एकदम अवॉइड करें। इसके साथ ही खाने से सफेद चावल, मैदा, तला हुआ खाना आदि से भी पहरेज करें। इतना ही नहीं चाय और कॉफी की मात्रा भी घटाएं, जिससे हायपोथायरॉइडिज्म में आराम हो।\n\n\n", + "Disease: ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)\n\nDescription: \nऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) एक ऐसी शांत प्रकृति की बीमारी है जिसके लक्षण सामान्यत: जल्दी से दिखाई नहीं देते हैं। शरीर में कैल्शियम (Calcium) की कमी होना ऑस्टियोपोरोसिस का प्रमुख कारण है।\n\nSymptoms: \n- अगर बहुत जल्दी थक जाते हों\n- खासकर सुबह के वक्त कमर में फैला हुआ दर्द हो\n- शरीर में बार-बार दर्द होता हो\n- समस्या बढ़ने पर छोटी-सी चोट फ्रैक्चर की वजह हो सकती है\n\nReasons: \n- वंशानुगत - अगर पारिवारिक इतिहास हो तो इस बीमारी के होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।\n- डाइट- ऐसी डाइट लेना जिसमें जिसमें प्रोटीन और कैल्शियम की कमी हो वह भी ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) को बढ़ावा देती है।\n- डायबीटीज, थाइराइड जैसी बीमारियों की दवाई कैल्शियम का अधिक अवशोषण (Absorption) करती है, यह चीज भी कई बार बीमारी को बुलावा देती है। \n- छोटे बच्चों का बहुत ज्यादा सॉफ्ट डिंक्स पीना भी एक कारण है। \n- आरामपसंद- जिनकी दिनचर्या ज्यादा क्रियाशील ना हो, उनको भी इस बीमारी से खतरा होता है। \n- सिगरेट/ शराब सेवन- नशायुक्त व्यक्तियों में कैल्शियम ग्रहण करने की क्षमता कम होती है। ऐसे लोगों को भी यह रोग हो सकता है। \n- वजन- जो अत्यधिक दुबले होते हैं उन्हें भी इस बीमारी से बचकर रहना चाहिए। \n- बढ़ती उम्र - 50 वर्ष से अधिक के पुरुष व महिला को इसका जोखिम अधिक होता है। \n- दवाइयों का सेवन- ऐसी बीमारियाँ जहाँ मरीज को स्टेराइड व हार्मोन की दवाइयाँ लेनी पड़े, उन दवाइयों के कारण भी कई बार यह बीमारी सामने आ जाती है��� \n\nTreatments:\nऑस्टियोपोरोसिस से बचाव का सबसे बढिया तरीका सही डाइट लेना होता है। इसके लिए निम्न बिंदूओं पर ध्यान देना आवश्यक है।\n- भोजन में कैल्शियम के अलावा विटामिन, प्रोटीनयुक्त चीजों खानी चाहिए।\n- दूध, दही, पनीर व अंडे का सेवन करना चाहिए।\n- नियमित व्यायाम करना चाहिए।\n- सुबह की धूप का सेवन लाभदायक होता है।\n- शराब और किसी अन्य नशे से दूर रहना चाहिए। \n\nHome Remedies:\nऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) हड्डियों में होने वाली समस्या है, जिसमें हड्डियों का बीएमडी (Bone Mineral Density) लेवल कम हो जाता है, जिससे हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां पतली या खोखली होकर कमजोर हो जाती हैं।\nहमारी हड्डियां कई तरह के मिनरल से मिलकर बनी होती हैं, जो कि उम्र के साथ कम होने लगते हैं। कई बार तो हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि मामूली सी चोट से भी टूट जाती हैं।\nऑस्टियोपोरोसिस प्रोटीन, विटामिन डी और कैल्शियम की कमी की वजह से होता है और महिलाएं इसकी ज्यादा रोगी मिलती हैं।\nआइए आपको बताते हैं कि किस तरह घरेलू उपायों को अपनाकर आप ऑस्टियोपोरोसिस से बच सकती हैं।\nऑस्टियोपोरोसिस के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Osteoporosis)\nप्रून्स (Prunes)\nप्रून्स यानि सूखे प्लम, खाने से हड्डियों की कमजोरी दूर होती है। प्रून्स में मौजूद पोलीफिनोल्स (Polyphenols) हड्डियों को हुए नुकसान की भरपाई करता है। इतना ही नहीं प्रून्स में बोरान (Boron) और तांबा (Copper) जैसे खनिज होते हैं जो कि हड्डियों के लिए जरूरी खनिजों में शामिल हैं।\nसेब (Apple)\nसेब में पोलीफिनोल्स (Polyphenols) और फ्लेवनोइड्स (Flavonoids) के साथ ही एंटी ऑक्सीडेंट भी होता है जो कि हड्डियों की सूजन को कम करके उनके घनत्व को बढ़ाता है। इसलिए रोज एक सेब खाने की आदत बनाएं।\nनारियल का तेल (Coconut Oil)\nएक्सपर्ट की मानें तो अपने आहार नारियल तेल को शामिल करने से हड्डियों का घनत्व बढ़ता है। साथ ही एस्ट्रोजन की कमी भी पूरी होती है। नारियल के तेल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट यौगिक हड्डियों के ढांचे को सुरक्षित रखते हैं।\nबादाम का दूध (Almond Milk)\nबादाम के दूध में कैल्श्यिम की उच्च मात्रा होती है। इसलिए बादाम का दूध ऑस्टियोपोरोसिस के बेहद अच्छा उपचार है। बादाम के दूध में हड्डियों के लिए जरूरी तत्व मैग्नीशियम, मैगनीज और पौटेशियम भी शामिल होते हैं। ऐसे में रोज एक गिलास बादाम वाला दूध नियमित रूप से पीएं।\nतिल के बीज (Sesame Seeds)", + "Disease: ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)\nअपने भोजन में तिल के बीज शामिल करने से हड्डियों की कमजोरी दूर होती है। तिल में भी कैल्शियम की उच्च मात्रा होती है, जो कि हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए सबसे जरूरी पोषक तत्व है। इसके साथ ही तिल में मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, मैंगनीज, तांबा (Copper), जस्ता (Zinc) और विटामिन डी भी होता है। उपचार के लिए एक मुट्ठी भुने हुए तिल चबा कर दूध पीएं। इसके अलावा खाने बनाने में भी भुने हुए तिलों को ऊपर से डालकर खाया जा सकता है।\nअनानास (Pine Apple)\nअनानास में ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिए जरूरी मैंगनीज शामिल है। मैंगनीज की कमी से हड्डियों का घनत्व कम और हड्डियां पतली हो सकती हैं, ऐसे में अनानास खाने से मैंगनीज की कमी पूरी होती है। उपचार के लिए हर रोज खाना खाने से पहले एक कप अनानास को खाएं। इसके साथ ही अनानास का जूस भी पिया जा सकता है।\nधनिया के बीज (Coriander Seed)\nधनिया के पत्ते और बीज दोनों में ही मैग्नीशियम, आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम और मैंगनीज आदि पोषक तत्व होते हैं। धनिया के बीजों को गरम पानी में उबालकर कुछ देर ढक कर रखें उसके बाद गुनगुना रहने पर उसमे शहद मिलाकर पीएं। खाने के छौंक में भी धनिया के बीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है। हरे धनिया का इस्तेमाल भी खाना बनाने और चटनी के रूप में करना चाहिए।\n\n\n", + "Disease: ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer)\n\nDescription: \nमानव शरीर के अवयव और ऊतक कोशिकाओं (सेल) से बने होते हैं। कैंसर इन कोशिकाओं का एक रोग है। ब्रेस्ट कैंसर दुनिया में तेजी से फैलने वाली खतरनाक बीमारियों में से एक है। ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) या स्तन कैंसर की अधिकतर रोगी महिलाएं होती हैं। पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है, लेकिन इसकी संभावना बहुत कम होती है।\n\nSymptoms: \n- स्तनों के बारे में जान लेने का सरल तरीका है T L C यानि T - TOUCH Your Breasts (अपने स्तनों को छुएं) क्या आपको कुछ असामान्य लगता है? क्या आप स्तन में, छाती के ऊपरी हिस्से में, या बगलो में कोई गाँठ (Lump) महसूस करती हैं? क्या आपको स्तनों के ऊपर कोई परत महसूस होती है जो हटती नहीं? क्या स्तनों में साधारण सा दर्द है। L - LOOK for changes (कुछ बदलाव तो नही लगता) क्या स्तनों के आकर या बनावट ( shape or texture) में कोई बदलाव है? क्या स्तनों के आकर या आकृति (size or shape) में कोई बदलाव है (कोई एक स्तन दूसरे के मुकाबले छोटा या बड़ा हैं)? स्तनों की त्वचा की बनावट में कोई बदलाव जैसे फ़टी फ़टी सी या कोई गड्डा स��� पड़ जाना? रंग में बदलाव जैसे की निप्पल्स के आसपास सुर्ख लाल रंग.हो जाना? क्या निप्पल की दिशा सही है, कहीं वह अंदर की तरफ तो नही मुड़ गया है? किसी भी निप्पल से तरल पदार्ध का रिसना? निप्पल के आस पास किसी प्रदार्थ का रिसना या पपड़ी का जमना? C - CHECK any unusual findings with your doctor (कुछ असामान्य सा महसूस हो तो तुरंत ही डॉक्टर से सलाह लें) क्या आपको कुछ असामान्य या अलग सा महसूस हो रहा है? अगर ऐसा है तो तुरंत ही डॉक्टर से सलाह लें। समय समय पर अपने स्तनों की जांच स्वयं करते रहें ऐसा करने से आप उनमे सामान्य तौर पर आने वाले बदलावों और असामान्य बदलाव के बारे में जान जायेंगे, अक्सर मासिक धर्म (Menses) के समय स्तनों में कुछ बदलाव अवश्य आता है। लक्षणों के उभरने का इंतज़ार न करें, नियमित रूप से स्तनों की जांच करवाएं। यह सर्वविदित है कि रोकथाम इलाज़ से बेहतर है\n\nReasons: \nब्रेस्ट कैंसर के कारण (Reason for Breast Cancer)\nकई लोग मानते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर अनुवांशिक होता है जो पूरी तरह सही तथ्य नहीं है। स्तन या ब्रेस्ट कैंसर के कुछ अहम कारण निम्न हैं: \n- आयु-स्तन कैंसर होने का जोखिम आयु के साथ बढ़ता है।\n- यदि आपको पहले कैंसर या स्तन का कोई अन्य रोग हुआ हो।\n- पारिवारिक इतिहास - केवल 5–10% स्तन कैंसर ही अनुवांशिक रूप से प्राप्त जीन के कारण होते हैं।\nस्तन कैंसर का खतरा किन महिलाओं को ज्यादा होता है?\n- अधिक उम्र की महिलाएं।\n- जिन महिलाओं की मां, बहन या बेटी को स्तन कैंसर हुआ हो\n- जन्म के समय से ही क्रोमोज़ोम (गुणसूत्रो) में बदलाव हो।\n- महिला जिसे बच्चे ना हुए हों, या 30 साल की उम्र के बाद बच्चे हुए हों।\n- जिसे 12 साल की उम्र से पहले ही पीरियड्स शुरु हो गए हों।\n- जिस महिला को 50 साल की उम्र के बाद मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति) हुई हो।\n- जिस महिला की स्तन के ऊतक काफी घने हों। आपकी मेमोग्राफी करके डॉक्टर ये जानकारी दे सकते है।\n- जो महिला गर्भ निरोधक गोलियों का लंबे अर्से से इस्तेमाल कर रही हो।\n- जो महिला दिन में 2 से 5 बार शराब का सेवन करती हो।\n- जिस महिला को मेनोपॉज के बाद ज्यादा मोटापा आ गया हो।\n- जिस महिला ने हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी इस्तेमाल की हो।\n- जो महिलाएं अपने बच्चों को स्तनपान नहीं करवातीं।\nहार्मोन संबंधी कारक\nएस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोजन नामक हार्मोन से लंबे समय तक सम्पर्क में आने से आपका स्तन कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है।\nजीवनशैली संबंधी कारक\nलम्बे समय तक प्रतिदिन दो पेग से ज्यादा शराब पीना तथा धूम्रपान से आपका स्तन कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है| वजन ज्यादा होना भी स्तन कैंसर का कारण बन सकता है।\n\nTreatments:\n- अगर आपको थोड़ा सा भी संशय हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लीजिये।\n- छोटे स्तन\n\nHome Remedies:", + "Disease: ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer)\nस्तन कैंसर (Breast cancer), सबसे आम कैंसर में से एक है। स्तन कैंसर एक कांप्लेक्स बीमारी (Complex disease) है जिसके होने के लिए कई फैक्टर, जैसे आनुवांशिक (Heredity), खान-पान और जीवन शैली जिम्मेदार होते हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले समय में स्तन कैंसर से पीड़ित रोगियों की संख्या और भी तेजी से बढ़गी। हालांकि जीवन शैली में बदलाव करके स्तन कैंसर से काफी हद तक बचा जा सकता है।\n \nजानिए स्तन कैंसर से बचाव के घरेलू उपचार (Home Remedies for Breast Cancer):\n1. ग्रीन टी (Green tea)- एक गिलास पानी में हर्बल ग्रीन टी को आधा होने तक उबालें और फिर उसे पीएं। यह फायदेमंद होती है और इससे स्तन कैंसर का खतरा काफी कम हो जाता है।\n2. अंगूर और अनार का जूस (Grapes and pomegranate juice)- रोजाना अंगूर या अनार का जूस पीने से स्तन कैंसर से बचा जा सकता है। इन दोनों फलों के जूस में कैंसर के सेल्स को मारने की क्षमता होती है, जिससे स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है।\n3. लहसुन (Garlic)- लहसुन में फ्लेवोन्स (flavons) और फ्लेवोनोल्स (flavonols) जैसे एंटी बैक्टीरियल तत्व होते हैं। रोज लहसुन का सेवन करने से स्तन कैंसर की संभावना को रोका जा सकता है।\n4. हल्दी (Turmeric)- हल्दी में करक्यूमिन (curcumin) नाम का तत्व होता है जो कि विभिन्न तरह के कैंसर को ठीक करने में सक्षम है। हल्दी के सेवन से कैंसर सेल बढ़ने की संभावना कम होती है तथा कैंसर ठीक होता है।\n5. टमाटर (Tomato)- टमाटर खाने से भी महिलाएं स्तन कैंसर से बची रह सकती हैं। टमाटर में लायकोपीन (lycopene) होता है जो कि एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है और कैंसर को बढ़ने से रोकता है।\n6. पालक (Spinach)- पालक में एंटीऑक्सीडेंट ल्यूटिन (lutin) होता है जो कैंसर से बचाने में सहायक है। हफ्ते में दो से तीन बार पालक खाना चाहिए जिससे स्तन कैंसर से बचा जा सकता है।\n7. ब्रोकली (Broccoli)- ब्रोकली में कैंसर से लड़ने वाले तत्व, इंडोल-3-कार्बिनोल (indole-3-carbinol) होता है जो कि स्तन कैंसर के सेल्स की ग्रोथ को कम कर देते हैं। ब्रोकली के नियमित सेवन से कैंसर से बचा जा सकता है। ब्रोकली के साथ पत्ता गोभी और गोभी को मिलाकर खाना चाहिए।\n8. अखरोट (Wallnut)- अखरोट में बहुत से पोषक तत्व होते हैं जो स्तन कैंसर की ग्रोथ को कम कर देते हैं इसलिए अखरोट का रोजाना सेवन करना चाहिए।\n9. ब्लूबेरी (Blueberries)- ब्लूबेरी विटामिन और मिनरल से भरपूर होती हैं। इनमें एंटीऑक्सीडेंट एलेजिक भी होते हैं जो स्तन कैंसर से बचाव करते हैं। ब्लूबैरी के साथ स्ट्रॉबेरी और ब्लैकबेरी भी बेहद फायदेमंद होती है।\n\n\n", + "Disease: सिरदर्द (Headache)\n\nDescription: \nसिरदर्द एक आम समस्या है। सिर के किसी भी हिस्से में दर्द हो सकता है और यह दर्द केवल लक्षण होता है जो कि सिर की किसी बीमारी को दर्शाता है। कई बार बहुत ज्यादा तनाव लेने, थकावट होने, भूखे रहने, गर्मी तेज होने या किसी आम शारीरिक समस्या जैसे कि बुखार या जुकाम के कारण भी सिर दर्द हो सकता है।\n\nSymptoms: \n- उच्च रक्त चाप होना\n- कब्ज या दस्त होना\n- ज्यादा शराब पीना\n- तनावग्रस्त होना\n- पेट ठीक न होना\n\nReasons: \nसिर दर्द के कारण- (Cause of Headache)\nसिर का दर्द, दिमाग में रक्त कोशिकाओं (blood vessels) और शिराओं (nerves) के आपस में टकराने से होता है। दर्द के समय रक्त कोशिका की एक निश्चित सिरा और सिर की मांसपेशियां सक्रिय होती हैं और दिमाग को दर्द का सिग्नल भेजती हैं। जिससे सिर दर्द महसूस होता है।\nसिर दर्द के अन्य कारण (Other Reasons of headache)\n1. जब व्यक्ति किसी चीज को लेकर खुद पर दबाव महसूस करता है या किसी स्थिति या परिस्थिति को लेकर असमंजस में होता है। ऐसे में उसका मन अशांत हो जाता है और दिमाग पर ज्यादा गहरा प्रभाव पड़ता है जिसके कारण तनाव होता है और सिर दर्द होने लगता है।\n2. दिमाग की रक्त वाहिनियों में बदलाव होने से होने वाले दर्द को माइग्रेन का दर्द कहा जाता है। इस तरह के सिर दर्द में सिर के किसी एक हिस्से में चुभन भरा दर्द होता है और दर्द के साथ जी मिचलाने, गैस और उल्टी जैसी समस्याएं भी होती हैं। इतना ही नहीं व्यक्ति फोटोफोबिया (रोशनी से परेशानी) और फोनोफोबिया (शोर से परेशानी) से भी परेशानी महसूस करता है। पर्याप्त नींद न लेने, भूखे रहने या कम पानी पीने से माइग्रेन हो सकता है।\n3. कुछ महिलाएं हार्मोन में बदलाव के दौरान गंभीर सिर दर्द महसूस करती हैं। यह स्थिति मोनोपोज, मासिक स्त्राव, ओवेल्यूशन आदि के दौरान भी हो सकती है। मासिक स्त्राव में उतारा चढ़ाव से भी इस तरह का सिर दर्द बना रह सकता है।\n4. कुछ खास तरह की दवाइयों का ज्यादा दिन तक लेने के कारण रिबाउंड सिरदर्द की समस्या हो हो सकती है। कई बीमारियां ऐसी होती हैं जिन���ें दवाईयां लंबे समय तक चलती हैं, ऐसे में यह मस्तिष्क को प्रभावित कर सकती हैं। इस तरह का सिर दर्द दवाएं बंद होने के साथ खुद ही बंद हो जाता है।\n5. दांत दर्द से भी सिर की नसें प्रभावित होती हैं। दांत और सिर की नसें जबड़े पर जाकर मिलती हैं जिससे दांत और सिर एक दूसरें को कनेक्ट करते हैं। जिससे दांत में किसी भी तरह की तकलीफ होने से सिर में दर्द होने लगता है।\n6. चाय और कॉफी के आदि लोगों को यदि समय पर चाय न मिले तो भी उन्हें सिर दर्द की शिकायत हो सकती है।\n7. कुछ लोगों को सुबह उठते ही सिरदर्द की शिकायत होती है जबकि कुछ देर बाद यह अपने आप ठीक हो जाता है। कई बार रात में अच्छी नींद न लेने या भूखे पेट सोने के कारण सुबह सुबह सिर दर्द हो सकता है।\n8. आंखों में किसी तरह की समस्या होने, आंख कमजोर होने, चश्मा न पहनने या कांटेक्ट लैंस में गड़बड़ी होने से सिर दर्द हो सकता है। ऐसी कोई भी समस्या जिससे आंखों पर तनाव पड़ता हो, सिर दर्द होने की वजह हो सकता है। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति सिर दर्द से परेशान है तो उसे अपनी आंखों को भी जरूर चैक कराना चाहिए।\n9. कुछ लोगों को आइसक्रीम या बहुत ठंडी चीजों को खाने से भी सिर दर्द की शिकायत हो सकती है। आइसक्रीम या बहुत ठंडी चीजें खाने के बाद माथे के बीच में भारीपन महसूस होता है जिससे सिर दर्द शुरू हो जाता है। इस तरह का दर्द आइसक्रीम खाने के तुरंत बार शुरू हो जाता है।\n\nTreatments:\nसिर दर्द से राहत के लिए टिप्स- (Tips to Prevent Headache)\n\nHome Remedies:\nआजकल की तेज भागती जिंदगी और व्यस्त जीवनशैली में तनाव और सरदर्द एक आम बीमारी हो गई है। सरदर्द के कई कारण होते हैं। सिर में रक्त पहुंचाने वाली नाड़ियों में संकुचन, स्नायु तंत्र की असमान्य गतिविधि, ज्यादा धूम्रपान करना, ज्यादा अल्कोहल लेना, शरीर में पानी की कमी, ज्यादा देर तक बेवजह सोना, दर्द निवारक दवाओं का ज्यादा सेवन करना, सर्दी-जुकाम, बुखार समेत ऐसे कई वजह हैं, जिससे सरदर्द होती है।", + "Disease: सिरदर्द (Headache)\nयहां यह जानना जरुरी है कि सामान्य सरदर्द और माइग्रेन के सरदर्द में अंतर है। माइग्रेन में सरदर्द काफी परेशानी वाला होता है और यह एक गंभीर बीमारी भी है। सरदर्द या किसी भी तरह के सरदर्द में जल्दी एलोपैथिक दर्द निवारक दवा खाना सेहत के लिए नुकसानदेह होता है, क्योंकि ज्यादा पेन किलर खाने से किडनी और लिवर डैमेज होते हैं।\nएलोपैथिक दवाओं से बेहतर है कि हम ऐ���े कुछ घरेलू उपचार को आजमाएं, जिससे सरदर्द में न सिर्फ आराम मिलता है बल्कि यह जड़ से खत्म भी होता है, बिना कोई साइड इफेक्ट।\nसरदर्द के घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Headache)\nसरसों तेल (Mustard Oil)\nसरदर्द में सरसों तेल काफी असरदार होता है। माथे के जिस हिस्से में दर्द हो रहा हो उस तरफ वाले नाक में सरसों के तेल की कुछ बूंदें डाल दीजिए और उसके बाद जोर से सांसों को ऊपर की तरफ खींचिए। इससे सरदर्द से काफी राहत मिलेगी। ध्यान रहे सरदर्द होने पर बिस्तर पर लेटकर दर्द वाले हिस्से को बेड के नीचे लटका कर नाक में तेल लेना चाहिए।\nदालचीनी (Cinamon)\nदालचीनी को पानी के साथ महीन पीसकर माथे पर पतला लेप लगाने से सरदर्द में काफी राहत मिलती है। लेप सूख जाने पर उसे हटा लीजिए। तीन-चार बार लेप लगाने पर सरदर्द होना बंद हो जाता है।\nपुष्कर मूल (Pushkar Mool)\nपुष्कर मूल एक कुदरती जड़ी बूटी है। इसे चंदन की तरह घिसकर लेप बना लें और सिर पर लगाएं। इसके लेप को माथे पर लगाने से सरदर्द में काफी राहत मिलता है।\nमुलेठी (Mulethi)\nमुलेठी सरदर्द में काफी काम करता है। मुलेठी को पीसकर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण को नाक के पास ले जाकर सूंघें। इससे सरदर्द छू-मंतर हो जाएगी।\nसौंफ-पीपल-मुलेठी (Saunf, Peepal and Mulethi)\nपीपल के पत्ते, सोंठ, मुलैठी और सौंफ सबको पीसकर चूर्ण बना लीजिए। उसके बाद इस चूर्ण में एक चम्मुच पानी मिलाकर गाढा लेप बना बना लीजिए। इस लेप को माथे पर लगाइए। सरदर्द खत्म हो जाएगा।\nमसालेदार चाय (Spicy Tea)\nमसालेदार चाय सरदर्द के लिए एक रामबाण की तरह काम करता है। इसे घर में भी आसानी से बनाया जा सकता है। यह एक उत्‍तेजक पेय पदार्थ है जो दिमाग को सचेत करता है। चाय में थोड़ी अदरख, लौंग और इलाइची मिला कर उबाल दें। हो गया गरमागरम मसालेदार चाय तैयार। मसालेदार चाय को गरमागरम ही पीना चाहिए। इससे आपका सरदर्द तो गायब होगा ही साथ में आप तरोताज़ा भी महसूस करेंगे।\nतेल मालिश (Oil massage)\nसरदर्द में तेल की मालिश बहुत असरदार होती है। मालिश से सिर की रक्त धमनियों में रक्त प्रवाह सही से होने लगता है और सरदर्द तुरंत छू-मंतर हो जाती है। ध्यान रहे सिर की मालिश हर्बल तेल से ही करें और सरदर्द होने पर तेल को हल्का गर्म कर लेना चाहिए ताकि यह जल्दी असर करे।\nनींबू पानी (Lemon Water)\nकाफी मात्रा में शराब पीने से अक्सर लोगों को हैंगओवर हो जाता है। हैंगओवर में काफी तेज सरदर्द होता है। ऐसी स्थिति ��ें नींबू पानी काफी काम करता है। शराब ज्यादा पीने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है और नींबू पानी पीने से शरीर में पानी की कमी भी दूर होती है और सरदर्द भी ठीक होता है।\n\n\n", + "Disease: ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)\n\nDescription: \nजब श्वासनली तथा इसकी शाखाओं में संक्रमण या एलर्जी के कारण सूजन आने के कारण श्वास संबंधी समस्या होती है तो उस स्थिति को ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) कहते हैं। यह सर्दियों की एक आम समस्या है।\n\nSymptoms: \n- खांसी के साथ बहुत गाढ़ा व हरे रंग का बलगम आना\n- नाक बहना या बंद होना\n- बदन दर्द होना\n- बार-बार छाती में जलन\n- बुखार या ठंड लगना\n- लगातार काफी देर होना\n- सांस फूलना\n- सांस लेते समय छाती में घरघराहट की आवाज होना\n\nReasons: \n- सीने में स्थित श्वांस नली और उसकी शाखाओं में बार-बार होने वाला इंफेक्शन।\n- न्यूमोनिया भी ब्रोंकाइटिस का मुख्य कारण होती है।\n- टी.बी. का इंफेक्शन भी इसका एक प्रमुख कारण होता है। अगर शुरुआत में ही टी.बी. इंफेक्शन का समुचित इलाज हो जाए तो ब्रोंकाइटिस से बचा जा सकता है।\n- कुछ लोगों में यह रोग जन्मजात होता है।\n- इसके अलावा ऐंटीट्रिप्सिन नामक एंजाइम की कमी, रयूमेटाइड ऑर्थराइटिस और अन्य आटोइम्यून बीमारियां भी ब्रोंकाइटिस का कारण बनती हैं।\n- बैक्टीरिया या विषाणु का संक्रमण भी ब्रोंकाइटिस का कारण हो सकता हैं।\n- धूम्रपान और वायु प्रदूषण के कारण भी यह बीमारी हो सकती है। \n- वायु में किसी चीज से एलर्जी जैसे पराग कण इत्यादि भी ब्रोंकाइटिस का कारण हो सकते हैं।\n\nTreatments:\nब्रोंकाइटिस से बचाव के लिए शरीर को ठंडी से बचाना चाहिए। साथ ही निम्न बातों का भी ख्याल रखना चाहिए:\n- धूम्रपान छोड़ दें। \n- वायु प्रदूषण, व धूल से बचें। \n- सर्दी और फ्लू से करें बचाव। \n- बलगम पतला रखने के लिए खूब पानी पिएं। \n- सोते समय सिर बिस्तर से ऊंचा रखने के लिए तकिए का प्रयोग करें।\n- यदि बुखार बढ़ जाए और ठंड लगने लगे तो तुरंत किसी चिकित्सक से संपर्क करें। \n\nHome Remedies:\nब्रोंकाइटिस नाक और फेफड़े के बीच सांस लेने वाली नली में सूजन के वजह से होती है। यह प्राय वाइरल इंफेक्शन से होता है। गले में खिचखिच, कांटो जैसी चुभन और दर्द होना इसके लक्षण हैं। मौसम में बदलाव और एलर्जी से भी ब्रोंकाइटिस की शिकायत होती है। इसमें कभी-कभी बुखार की भी शिकायत होती है।\nब्रोंकाइटिस में खराश या दर्द होने से खाना खाने, पानी पीने या थूक निगलने तक में त��लीफ होती है। इससे निजात पाने के लिए डॉक्टर की मदद लेने से बेहतर है कि कुछ घरेलू इलाज किए जाने चाहिए जो काफी असरदार भी होता है।\nब्रोंकाइटिस में खराश के घरेलू इलाज(Home remedies for Bronchitis)\nशहद (Honey)\nशहद में एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल गुण होता है। गले में खराश होने पर शहद या शहद वाली चाय पीने से सूजन कम होती है और गले को काफी आराम मिलती है। गले में खराश में यह काफी फायदेमंद होता है।\nअदरक (Ginger)\nसर्दी, कफ और गले की खराश में अदरक गले को काफी आराम पहुंचाता है। अदरक में एंटी इंफ्लामेट्री गुण होता है। अदरक का रस, अदरक की चाय पीने या अदरक चूसने से गले की सूजन, खराश में काफी आराम मिलता है।\nहर्बल चाय (Herbal Tea)\nकाली मिर्च, तुलसी व लौंग से बनी चाय पीने से गले में खराश से निजात मिलती है। इन कुदरती जड़ी-बूटियों से बनी गर्म चाय की चुस्कियों से गले को काफी राहत मिलती है। वैसे हर्बल चाय कई बीमारियों में भी काम आता है। \nहल्दी (Turmeric)\nथोड़ी सी हल्दी डालकर दूध में उबाल लें। दूध तब तक उबालें जब तक हल्दी पक ना जाएं. फिर इसे कप में लेकर चाय की चुस्कियां लेते हुए पिएं। इससे गले के दर्द में और खराश में काफी राहत मिलेगी।\nगरारा (Gargil)\nगले में खराश की शिकायत होने पर गर्म पानी में नमक डालकर गरारे करें। नमक मिला गर्म पानी आपके गले में इंफेक्शन की वजह से आई सूजन को कम करता है और आराम पहुंचाता है। बेहतर होगा कि जल्दी राहत के लिए आप हर तीन घंटे में गरारे करें।\nतरल पदार्थ (Liquid)\nआप थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ गर्म तरल पदार्थ लेते रहें। कुछ भी नहीं तो आप थोड़ी-थोड़ी देर में गर्म पानी पीते रहें। इससे आपके गले की सिकाई होगी और आपको आराम मिलेगा।\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन में एंटी-बायोटिक और एंटी वायरल गुण होते हैं। गले की सूजन और खराश में यह काफी असरदार होता है। लहसुन के दो-तीन टुकड़े को पानी के साथ चबा कर सुबह खाएं या फिर दूध में उबाल कर भी पी सकते हैं।\nयूकिलिप्टस तेल (Eucalyptus Oil)", + "Disease: ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)\nगले की खराश में भाप लेना काफी फायदेमंद होता है। गर्म पानी में अगर यूकिलिप्टस के तेल को मिला कर भाप लें तो यह काफी असरदार होता है। गले की सूजन और खराश को कम करता है।\n\n\n", + "Disease: इबोला विषाणु रोग (EVD) (Ebola)\n\nDescription: \nइबोला वायरस रोग या इबोला हेमोराहैजिक बुखार इबोला विषाणु के कारण होता है। इबोला विषाणु रोग (EVD) या इबोला हेमोराहैजिक बुखार (EHF) में शरीर में नसों ��े खून बाहर आना शुरू हो जाता है, जिससे शरीर के अंदर रक्तस्राव शुरू हो जाता है और इससे 90% रोगियों की मृत्यु हो जाती है।\n\nSymptoms: \n- आरंभिक लक्षण में ज्वर, फुन्सी, सर दर्द, मिचली, उल्टी और पेट में दर्द, पूरे शरीर में गठिया का दर्द, गले में दर्द, दस्त सकता है\n- इस रोग का इंक्यूबेशन पिरीयड (Incubation Period) एक हफ्ते का होता है। उसके बाद रोगी में आरंभिक लक्षण नजर आते हैं\n- जननांग में सूजन होती है\n- त्वचा में दर्द का अनुभव होता है\n- नेत्रश्लेष्मलाशोथ (कंजेंगवाइटिस) है\n- पूरे शरीर पर फुंशियों नजर आने लगती हैं\n- मुँह का तालु लाल हो जाता है\n- मुँह, कान, नाक से रक्तस्राव होता है\n- रोग के विकसित अवस्था में यह लक्षण भी नजर आते है\n\nReasons: \nइबोला से बचाव का सबसे बेहतर और एकमात्र उपाय है इससे प्रभावित रोगी के सम्पर्क में आने से बचना। किसी रोगी के संपर्क में आने से यह रोग और तेजी से फैलता है। \n\nTreatments:\n​इबोला का अभी तक कोई ठोस इलाज नहीं मिला है। बचाव ही इस बीमारी का सबसे बेहतरीन उपाय माना जाता है। अभी तक इबोला से पीडितों के केस में निम्न कदम उठाए जाते हैं:\n- इस बीमारी के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है; संक्रमित लोगों की सहायता की कोशिशों में उन्हें ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी (पीने के लिए थोड़ा-सा मीठा और नमकीन पानी देना) या इंट्रावेनस फ्लुड्स देना शामिल है।\n- अक्सर इस वायरस के संक्रमित होने वाले 50% से 90% तक लोग मौत के शिकार हो जाते हैं।\n- इसके लिए टीका विकसित करने के प्रयास जारी हैं; हालांकि अभी तक ऐसा कोई टीका मौजूद नहीं है।\n\n\n", + "Disease: लू लगना (Heat Stroke)\n\nDescription: \nगर्मी में सबसे बड़ी समस्या होती है लू लगना। अंग्रेजी भाषा में इसे हीट स्ट्रोक (Heat Stroke) और सनस्ट्रोक (Sun Stroke) भी कहते हैं। गर्मी में उच्च तापमान में ज्यादा देर तक रहने से या गर्म हवा के झोंकों से संपर्क में आने पर लू (Loo) लगने का डर अधिक होता है।\n\nSymptoms: \n- आँखें भी जलती हैं\n- इससे अचानक बेहोशी व अंततः रोगी की मौत भी हो सकती है\n- बुखार काफी बढ़ जाता है\n- ब्लडप्रेशर भी लो हो जाता है और लिवर - किडनी में सोडियम पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में बेहोशी भी आ सकती है। इसके अलावा लो बीपी , ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक की स्थिति भी बन सकती है\n- लू लगने पर शरीर में गर्मी , खुश्की , सिरदर्द , कमजोरी , शरीर टूटना , बार - बार मुंह सूख.ना , उलटी , चक्कर , तेज बुखार सांस लेने में तकलीफ , दस्त और कई बार निढाल य��� बेहोशी जैसे लक्षण नजर आते हैं। लू लगने पर पसीना नहीं आता\n- शरीर का तापमान एकदम बढ़ जाता है। अक्सर बुखार बहुत ज्यादा मसलन 105 या 106 डिग्री फॉरनहाइट तक पहुंच जाता है\n- हाथ और पैरों के तलुओं में जलन-सी होती रहती है\n\nReasons: \nलू लगना के कारण (Heat Stroke Causes)\nलू लगने के जोखिम (Risk Factors of Heat Storkes)\nलू लगने के कारण दिमाग और आंतरिक अंगों को क्षति पहुंच सकती है। वैसे तो लू का शिकार अक्सर पचास से ऊपर की उम्र के लोग होते हैं लेकिन कई स्वस्थ खिलाड़ी भी इसका शिकार आसानी से हो जाते हैं। कम उम्र के लोगों में सेंट्रल नर्वस सिस्टम विकसित हो रहा होता है तो ज्यादा उम्र के लोगों में दूषित होता है, जिसके कारण इन दोनों को ही लू का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।\nलू लगने के दौरान व्यक्ति को शरीर में पानी की कमी यानि डीहाइड्रैशन की शिकायत भी होने लगती है। हीट स्ट्रोक का तुरंत इलाज ना कराने पर मस्तिष्क, हृदय, गुर्दे और मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है। कई स्थितियों में मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है।\nगर्मी में विभिन्न दवाइयों का सेवन करने वाले व्यक्तियों को भी लू लगने का डर होता है। ऐसी दवाएं जो रक्त धमनियों (ब्लड वेसल्स) को संकीर्ण करें, एड्रेनालाईन के रास्ते में अवरुद्ध पैदा कर रक्तचाप को नियंत्रित करें, शरीर से सोडियम और पानी को बाहर निकालें और एंटीडिप्रसेंट्स हों, लू लगने के खतरे को और बढ़ाती हैं।\n\nTreatments:\nलू लगने पर प्राथमिक उपचार (First Aid for Heat Strokes in Hindi)\n- आहत व्यक्ति को पहले छांव में ला कर हवा का इंतजाम करें। गर्मी के कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है। छाया में लाने से शरीर का तापमान सामान्य आना शुरु हो जाता है।\n- उसको नमक शक्कर और पानी का घोल मुँह से पिलायें, उसके कपड़े निकालकर सिर्फ अंदरूनी वस्त्र रखें। शरीर पर हल्का सा गर्म पानी छिड़कें।\n- गीली चादर में लपेटकर तापमान कम करने का प्रयास करें।\n- हाथ पैर की मालिश करें जिससे रक्त संचरण प्रभावित होता है।\n- संभव हो तो बर्फ के टुकड़े कपड़े में लपेटकर गर्दन, बगलों और जांघों पर रखे। इससे गर्मी जल्दी निकलती है।\n- धूप में घर से बाहर निकलें तो छतरी का इस्तेमाल करें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में ना खड़े हों।\n- नींबू पानी, आम पना, छाछ, लस्सी, नारियल पानी, बेल या नींबू का शर्बत, खस का शर्बत जैसे तरल पदार्थ पीते रहें।\n- ढीले और सूती कपड़े पहनें।\n- खाली पेट बाहर ना जाएं और थोड़ी थोड़ी देर प�� पानी पीते रहें।\n- गर्मी से एकदम ठंडे कमरे में ना जाएं।\n- दिन में दो बार नहाएं।\n- हरी सब्जियों का सेवन अधिक करें।\n- खीरा, ककड़ी, लौकी, तौरी जरूर खाएं।\n- ठंडे वातानुकूलित कमरे में रहें।\n- इमली के गूदे को हाथ पैरों पर मलें।\n- शरीर का तापमान तेज होने पर सिर पर ठंडी पट्टी रखें।\n- घर से बाहर निकलते समय जेब में कटा प्याज रखें।\n\nHome Remedies:", + "Disease: लू लगना (Heat Stroke)\nअगर तुरंत इलाज न हो तो हीट स्ट्रोक यानि लू लगना जानलेवा भी हो सकता है। ज्यादा गर्मी से शरीर में थकावट महसूस होना और लू लगना (हीट स्ट्रोक) दोनों में अंतर है। हीट स्ट्रोक या लू लगना गंभीर स्थिति है। तेज धूप या तेज तापमान में काफी देर तक सनलाइट के संपर्क में रहने से शरीर का तापक्रम 37 डिग्री सेल्सियस (सामान्य) से कहीं अधिक हो जाता है। अगर शरीर का तापक्रम 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है, जिसमें शरीर के कई महत्वपूर्ण अंग डैमेज हो जाते हैं।\nतेज सिरदर्द, सांस तेजी से लेना, दिल की धड़कन तेज होना, त्वचा लाल हो जाना, चक्कर आना, उल्टी, काफी पसीना आना जैसे लक्षण जब दिखने लगे तो समझ जाइए कि यह हीट स्ट्रोक या लू का अटैक है। हीट स्ट्रोक या लू लगने के बाद मरीज को तुरंत मेडिकल केयर में रखना चाहिए।\nवैसे लू से बचने के कई घरेलू इलाज हैं, लेकिन लू लगने के बाद अगर शरीर का तापक्रम 104 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा है और शरीर में पानी की कमी है तो बिना अस्पताल में भर्ती किए इसका कोई इलाज नहीं है। गर्मी में हीट स्ट्रोक या लू से बचने के कई घरेलू इलाज हैं।\nप्याज का जूस (Onion Juice)\nहीट स्ट्रोक का सबसे कारगर और असरदार घरेलू इलाज है प्याज। आयुर्वेद में यह सबसे ज्यादा अजमाया हुआ नुस्ख़ा है। कच्चे प्याज के रस को कान के नीचे और छाती पर लगाने से शरीर का तापक्रम कम होता है। कच्चे प्याज के जूस में जीरा पाउडर और शहद की बूंद डालकर पीना भी काफी फायदेमंद होता है लू में। गर्मी के महीने में लू से बचने के लिए एक टोटका यह भी है कि आप प्याज के एक टुकड़े को जेब में लेकर बाहर निकलें।\nकच्चे आम का पना (Unripe mango juice)\nकच्चे आम का जूस रामबाण है लू से बचाव में। कच्चे आम को उबाल कर या पका कर उसका गूदा निकाल लिया जाता है और फिर पानी के साथ गुड़, सौंफ, पुदीना और जीरा मिला कर पीएं। काफी असरदार होता है यह। शरीर का तापमान भी कम करता है और काफी ठंडक पहुंचाता है। कच्चे आम के गुदे का लेप भी शरीर पर लगाए जाते हैं।\nइमली और गुड़ का देसी कोल्ड ड्रिंक (Tamarind Drink)\nइमली में इलेक्ट्रोलाइट्स और मिनरल्स की मात्रा काफी होती है। गर्मी में यह शरीर में इलेकट्रोलाइट्स की कमी को दूर करता है। इमली को मथ कर पानी में गुड़ के साथ घोल कर पीएं। लू में यह काफी असरदार है। राजस्थान सहित देश के कई हिस्सों में गुड़ और इमली को पानी में मिला कर पिया जाता है ताकि गर्मी सिर न चढ़े।\nनींबू पानी (Lemon juice)\nजहां ऊंचे पारे के साथ पसीना भी बहुत आता है, वहां पानी पीने के अलावा कुछ ताजगी दे सकता है तो वह है नींबू पानी। नींबू में विटामिन सी और इलेक्ट्रोलाइट्स पाए जाते हैं जो हमें हीट स्ट्रोक्स से बचाते हैं।\nनारियल पानी (Coconut water)\nगर्मियों के लिए हेल्दी पेय है नारियल पानी। कैलोरी भी नहीं और ताजगी 100 फीसदी। यह शरीर के तापमान को भी कम करता है।\nदही की लस्सी (Lassi)\nदोपहर में अगर धूप में बाहर निकलना हो तो दही की लस्सी या छाछ पीकर निकलें। ऐसा करने से धूप का असर कम पड़ेगा और लू से बचाव भी होगा। छाछ में हल्का सा नमक, चुटकी भर चीनी और धनिया पुदीना डाल कर हल्का सा ठंडा कर लें, बस बढ़िया कोल्ड ड्रिंक हो गया तैयार।\nचंदन का लेप (Sandalwood Paste)\nचंदन के पाउडर को पानी में घोलकर पेस्ट बना कर सिर और पूरे बदन में लगाएं, काफी शीतलता मिलेगी और शरीर का तापमान भी कम होगा।\nधनिया पत्ता और पिपरमिंट का जूस (Juice of Coriander and Mint Leaves)\nधनिया पत्ता और पिपरमिंट के पत्ते का जूस निकाल कर इसमें थोड़ा चीनी मिला कर पी लें। हीट स्ट्रोक के लिए यह एक असरदार घरेलू इलाज है। इससे शरीर में शीतलता महसूस होगी और शरीर का तापमान भी कम होगा।\nऐलोवेरा जूस (Aloe Vera Juice)\nऐलोवेरा में सिर्फ एंटी बैक्टीरियल गुण ही नहीं होते हैं, बल्कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को भी मजबूत करता है। लू लगने पर इसके जूस पीने से शरीर मेंम न सिर्फ ठंडक पहुंचती है बल्कि यह रोग से लड़ने की ताकत भी देता है।\n\n\n", + "Disease: छोटे स्तन (Small Breast)\n\nDescription: \nअधिकतर महिलाएं छोटे या बड़े स्तनों की समस्या को लेकर परेशान रहती हैं। सुदृढ़ और पुष्ट स्तन (Breast) स्त्री की सुन्दरता में चार चाँद लगाते हैं।\n\nReasons: \nमहिलाओं में छोटे स्तन की मुख्य समस्या आहार की कमी को माना जाता है। इनके अलावा कुछ कारण निम्न हैं: \n- संतुलित पौष्टिक आहार न लेना\n- व्यायाम न करना\n- हार्मोनल समस्या \n- ग्रोथ इयर यानि युवावस्था में तनाव लेना \n\nTreatments:\nछो���े स्तनों की समस्या को कैसे करें दूर (Tips to Increase Breast Size In Hindi)\nछोटे स्तनों की समस्या को दूर करने के कई उपाय होते हैं लेकिन सबसे अहम है युवास्था की दहलीज पर सही खान-पान और तनाव ना लेना। स्मॉल ब्रेस्ट की समस्या से निजात पाने के कुछ उपयोगी उपाय निम्न हैं: \nखान पान (Diet to increase Breast Size)\nस्तन छोटे रह जाने पर उन्हें बड़ा करने के लिए विटामिन युक्त संतुलित पौष्टिक आहार लें।\nछोटे स्तनों के लिए व्यायाम (Excercise for Small Breats)\nतैरना, रस्सी कूटना, रॉड पकड़कर झूलना स्तन के संतुलित विकास के लिए व्यायाम है।\nपानी से बढ़ाएं स्तन (Use of Water to Increase Breats)\nस्तनों पर ठंडे पानी की बौछारें दें। इससे स्तनों (Stan) की कोशिकाओं में रक्त संचार अच्छी तरह होगा और स्तनों का विकास सही ढंग से होगा।\nसथा ही नहाते समय स्तनों को गुनगुने पानी से धोएं। इसके तुरंत बाद ठंडे पानी से धोएं। ऐसा पांच-छह बार करें। तापमान के जल्दी से बदलने से स्तनों की कोशिकाओं में तेजी से रक्त संचार होता है और स्तन विकसित होते हैं।\nछोटे स्तनों के लिए मसाज (Massage for Small Breast)\nरात को सोते समय बादाम या जैतून के तेल की स्तनों पर मालिश करें। बादाम या जैतून के तेल में पाए जाने वाले विटामिन ए, ई, कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम और एमिनो एसिड स्तनों को पुष्ट बनाते हैं, उनका विकास करते हैं। साथ ही मालिश से स्तनों में सही प्रकार से रक्त का संचालन होता है। \nअंदर धंसे हुए निप्पल के लिए (Remedies for Sore Nipples in Hindi)\nकिसी-किसी महिला के स्तनों के निप्पल अंदर की तरफ रह जाते हैं। ऐसी स्थिति में प्लास्टिक की एक बोतल में गरम पानी भरें। फिर इसे खाली कर दें। बोतल में भाप रह जाएगी। अब बोतल के मुंह में निप्पल को डालकर, बोतल को इस तरह से दबाकर रखें, जिससे बाहर की हवा अंदर न जा सके। जैसे-जैसे बोतल की भाप ठंडी होती जाएगी, वैसे-वैसे निप्पल बाहर की ओर खिंचता जाएगा। बोतल ठंडी होने पर हटा दें। पांच-छह बार ऐसा करें। यह उपाय नियमित करने से अंदर की ओर धंसे निप्पल बाहर निकल आते हैं। हालांकि ऐसी किसी भी प्रयोग से पहले डॉक्टर से अवश्य सलाह लें। \n\n\n", + "Disease: बालों का झड़ना (Hair Fall)\n\nDescription: \nसामान्यतः प्रतिदिन हमारे लगभग 50 से 100 बाल हर दिन टूटते-झड़ते हैं। यदि इससे ज्यादा बाल झड़ते (Hair Fall) हैं, तो यह चिंता का विषय है। बाल झड़ने के पीछे तनाव, इन्फेक्शन, हार्मोन्स का असंतुलन, पोषक पदार्थों की कमी, दवाओं के साइड इफेक्ट्स, लापरवाही बरतना या बालों की सही देखभाल न करना, घटिया साबुन और शैंपू का प्रयोग आदि कई कारण हो सकते हैं।\n\nSymptoms: \n- कंघी करते हैं और बालों का गुच्छा आपके हाथों में होता है\n- बाल आपके कपड़ों के साथ भी चिपके होते हैं\n- बालों में हाथ डालते हैं, तो आपके बाल हाथ में आ जाते हैं\n\nReasons: \nबालों के झड़ने के कई कारण होते हैं जैसे मां-बाप से लगी बीमारी, डैंड्रफ, तनाव आदि। डॉक्टरों के अनुसार अधिक मात्रा में बाल झड़ने के मुख्य कारण निम्न माने जाते हैं: ​\n- पुरुष हार्मोन\n- वंशानुगत गंजापन:​ अगर पेरेंट्स या ग्रैंड पेरेट्स में से किसी को बालों के झड़ने या गंजेपन की समस्या है, तो बच्चों में भी ऐसा होने की आशंका ज्यादा होगी।\n- बढ़ती हुई आयु में भी बालों का झड़ना आम बात होती है। \n- इंफेक्शन और डैंड्रफ फंगल इंफेक्शन से बाल झड़ सकते हैं। \n- हालांकि थोड़ी-बहुत डैंड्रफ होना सामान्य है, खासकर मौसम बदलने पर, गर्मियों और बरसात की शुरूआत में, लेकिन ज्यादा होने पर यह बालों की जड़ों को कमजोर कर देती है। यह ड्राई और मॉइश्चर, दोनों रूप में हो सकती है। इससे बचाव के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें।\n- प्रदूषण और तनाव, बालों को गंवाने की अहम वजह है।\n- मानसून सीज़न में अकसर बाल झड़ने की समस्या आ जाती है। \n- असंतुलित भोजन करने से शरीर को आवश्यक पोषण नहीं मिलता जो कई बार बाल झड़ने का कारण बनता है। \n- कोई शारीरिक बीमारी जैसे थाइरॉयड के होने पर भी बाल झड़ने की समस्या देखने को मिलती है। \n- अनियमित जीवनशैली और सौंदर्य प्रसाधनों का अनुचित इस्तेमाल करना भी बाल झडने की समस्या को न्यौता देते हैं। \n\nTreatments:\n​कैसे रोकें बालों का झड़ना (Hair Fall Remedies in Hindi)\n- बालों को झड़ने से रोकने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनायें।\n- तनाव कम कर, उचित आहार लेकर भी झड़ते बालों से निजात पाया जा सकता है। \n- बाल संवारने की उचित तकनीक अपनाकर और यदि संभव हो तो बालों को झड़ने से रोकने वाली दवाइयों का उपयोग कर बालों के झड़ने की समस्या को रोका जा सकता है।\n- किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए बालों की सफाई पर ध्यान देना चाहिए। झड़ते बालों की समस्या से रहने के लिए दूसरों के ब्रश, कंघी, टोपी आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए। \n- कई बार दवाइयों की सहायता से वंशानुगत गंजेपन के कुछ मामलों को भी रोका जा सकता है। ऐसी दवाइयां डॉक्टर की सलाह से ही लें। \n- रूसी\n- जूँ\n\nHome Remedies:\nकाले-घने और लंबे बालों का राज है पोषण��� बालों की जड़ों को मिलने वाला पोषण। बालों को पोषण कलर, डाय या शैंपू से नहीं बल्कि जड़ी-बूटियों से धोने या कुदरती तेल लगाने से मिलता है। बाल झरने के तो वैसे कई कारण होते हैं। लेकिन मुख्य रुप से पेट की गड़बड़ी, तनाव, अनिंद्रा और खराब जीवनशैली है। दवाओं के साइड इफेक्ट खासकर कैंसर के इलाज के दौरान कीमोथेरेपी और प्रसव के दौरान भी बाल झड़ते-गिरते हैं।\nआइए जानते हैं, कुछ ऐसे घरेलू उपचारों के बारे में जिसे इस्तेमाल करने से न सिर्फ बालों का झड़ना-गिरना बंद होता है बल्कि बालों में कुदरती चमक भी आती है।\nबाल का झड़ना रोकने के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Hair fall)\nमेंहदी और आंवला (Rosemary and Amla)\nमेंहदी और आंवला की बराबर मात्रा लेकर शाम को पानी में भींगने के लिए छोड़ दें। रात भर भींगने के बाद सुबह इससे बालों को धोएं। इसे लगातार आजमाने बाल झड़ने रुक जाते हैं और बाल काले, मुलायम और लंबे भी होते हैं।\nशंखपुष्पी (Shankpushpi)\nशंखपुष्पी से बने तेल रोजाना नियमित रूप से बालों में लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं। इसके तेल से मालिश करने से बालों की जड़ों को पोषण मिलता है और बाल झड़ने बंद हो जाते हैं।\nशहद और अंडा (Honey and Egg)", + "Disease: बालों का झड़ना (Hair Fall)\nशहद से बालों की जड़ों को उचित पोषण मिलता है। अगर शहद के साथ अंडे की जर्दी मिला दे तो इसका असर दोगुना हो जाता है। बालों की जड़ यानि स्कैल्प को इससे जरुरी प्रोटीन केराटिन मिलता है और बालों का झड़ना-गिरना बंद हो जाता है। \nभृंगराज (Bhringraj)\nभृंगराज बालों के लिए वंडर मेडिसीन के रुप में जाना जाता है। इसके औषधीय गुणों से बालों को काफी फायदा पहुंचता है। रोजाना भृंगराज के तेल से बालों की मालिश करने से बाल न सिर्फ काले और घने होते हैं बल्कि बालों का टूटना भी रुक जाता है। इसे लगाने से बालों में रुसी को भी कम होती है।\nशिकाकाई (Shikakai)\nशिकाकाई और आंवले को अच्छी तरह से कूट लें। दोनों को रात भर पानी में भीगने के लिए छोड़ दें। सुबह इस पानी को मसलकर छान लें और इससे बालों की मालिश करें। शिकाकाई और आंवले से बाल कभी सफेद नहीं होते व जिनके बाल सफेद हों तो वे भी काले हो जाते हैं। बालों का झड़ना-गिरना भी बंद हो जाता है।\nनारियल तेल, ऑलिव ऑयल और नींबू का रस (Coconut oil, Olive Oil and Lemon Juice)\nनारियल तेल और ऑलिव ऑयल की बराबर मात्रा लेकर इसमें नींबू की कुछ बूंदे मिला कर बालों की मालिश करें। मालिश के बाद फिर गर्म त���लिए से सिर को 3 मिनट के लिए ढक लें। यह करने से बालों का झड़ना बंद होता है और बाल काला भी होता है।\nमेथी (Methi)\nमेथी के बीजों में बालों को पोषण देने वाले सभी जरुरी तत्व मौजूद रहते हैं,जो बालों की जड़ को मजबूती प्रदान करता है। मेथी दानों को पीसकर चूर्ण बना लें। चूर्ण में पानी मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें और इस पेस्ट को बालों में लगाएं। इसे लगाने से बालों का झड़ना-गिरना कम होगा और बाल काले, घने और लंबे होंगे। डैंड्रफ की परेशानी भी खत्म होगी। \nअमरबेल (Amarbel)\nअमरबेल बालों के लिए टॉनिक की तरह काम करता है। अमरबेल को पानी में उबाल कर रख लें। जब पानी आधा हो जाए और अमरबेल पानी में पूरी तरह मिल जाए तो तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोएं। इससे बालों का झड़ना-गिरना रुक जाएगा। बाल लंबे, काले और घने भी होंगे। \nत्रिफला (Trifala)\nत्रिफला चूर्ण में लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम खाने से बालों का झड़ना बंद हो जाता है और बालों में कुदरती रंग भी आती है।\n\n\n", + "Disease: मिरगी (Epilepsy)\n\nDescription: \nमिरगी एक ऐसा रोग है, जिसमें व्यक्ति अचानक जमीन पर गिर कर प्रायः अर्द्ध मूर्छितावस्था में रहता है। रोगी को इसका पूर्वाभास भी नहीं होता, कि उसे मिरगी (Epilepsy) का दौरा पड़ने वाला है।\n\nSymptoms: \n- इन्हें तीन अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। प्रथम अवस्था-सारा शरीर तन जाता है। यह अवस्था 30 सेकंड से अधिक नहीं होती, मरीज अपनी जीभ को दांतों से चबा सकता है। कई मरीजों को कपड़ों में पेशाब या पाखाना भी हो जाता है। द्वितीय अवस्था- यह अधिक उग्र होती है, दो से पांच मिनटों तक बनी रहने वाली इस अवस्था के दौरान मरीज को तेल झटके आते हैं। उसके मुंह से झाग निकलकर बाहर बहने लगता है, होंठ और चेहरा नीले पड़े जाते हैं। तृतीय अवस्था-झटके आना बंद हो जाता है। मरीज या तो होश में आ जाता है या वह फिर ऐसी अवस्था में रहता है।\n\nReasons: \nमिरगी के दौरे मुख्यत: दिमागी कमजोरी के कारण आते हैं। यह कमजोरी अनुवांशिक या किसी अन्य कारण से भी हो सकती है। मिरगी के दौरे (Mirgi ke Daure) पड़ने के कुछ अहम कारण निम्न हैं: \nमिरगी के दौरों का कारण (Reason for Epilepsy in Hindi) \n- यह रोग सामान्यत: मस्तिष्क की कमजोरी के कारण होता है। \n- मस्तिष्क में रक्तस्राव होना या खून का थक्का जम जाने (स्ट्रोक) के कारण भी मिरगी के दौरे आते हैं। \n- सिर में चोट लगने या मस्तिष्क संक्रमण के कारण \n- गर्भावस्था की जटिलताओं की वजह से माता को गर्भावस्था में हुए दिमागी संक्रमण\n- दिमाग में कोई गांठ \n- दिमागी बुखार\n- दिमाग में किसी वजह से सूजन या विषैले पदार्थ का दिमाग में पहुँचना \n- अत्यधिक तेज बुखार\n- खसरा या गलसूजा\n- निम्न रक्तचाप के कारण भी मिरगी की बीमारी हो सकती है।\n\nTreatments:\nमिरगी के मरीज को दौरा आता है जिस दौरान उसके शरीर की गतिविधियां सामान्य नहीं रहती। इस दौरान अगर मरीज को सही उपचार ना मिले तो स्थिति चिंताजनक हो सकती है। मिरगी का दौरा आने पर निम्न उपाय अपनाने चाहिए:\n- मरीज को जमीन पर या समतल स्थान पर लिटा दें। \n- उसके आसपास से तेज, नुकीली या चुभने वाली वस्तुओं को हटा दें। \n- झटकों को आने दिया जाये। जैसे ही झटके बंद हो जायें, मरीज को विश्राम की स्थिति में लिटा दें और उसकी गर्दन एक ओर मोड़ दें ताकि मुंह में जमा लार और झाग बाहर निकल जाए। \n- याद रखिये, झटकों के दौरान मरीज में मुंह में कुछ न रखिये, अक्सर मरीज को दांतों पर दांत कसते देख लोग उसके मुंह में चम्मच या अन्य वस्तु रख देते हैं। मगर ऐसा करना खतरनाक सिद्ध हो सकता है क्योंकि ऐसा वस्तु टूटकर सांस के रास्ते में जा सकती है या मरीज के दांत टूट सकते हैं।\n- कसे हुए या बाधा उत्पन्न करने वाले वस्त्रों को निकाल दें। \n- इस बीच चिकित्सक से संपर्क कर या तो उसे वहीं बुला लें या फिर मरीज को अस्पताल ले जाएं। \n\nHome Remedies:\nइपीलेप्सी यानि मिरगी मस्तिष्क की एक बीमारी है। यह मस्तिष्क और स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल नहीं होने के कारण होता है। मिरगी होने के और भी कई कारण होते हैं मसलन- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग के होने से भी मिरगी के दौरे आते हैं।\nस्नायु संबंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रामक ज्वर से भी मिरगी की बीमारी होती है। इसमें मरीज को दौरा आता है। मिरगी के मरीज इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। लेकिन उन्हें जीवन से परेशान नहीं होना चाहिए। अगर जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव किए जाए और कुछ घरेलू इलाज नियमित रुप से आजमाया जाए तो मिरगी के मरीज भी बेहतर जिंदगी जी सकते हैं।\nमिरगी रोग के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Epilepsy)\nबकरी का दूध और मेंहदी (Goat’s Milk and Rosemery)\nबकरी का दूध मिरगी के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होता है। पाव भर बकरी के दूध में 50 ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर रोज सवेरे दो ���फ्ता तक पीने से मिरगी के दौरे बंद हो जाते हैं।\nतुलसी के पत्तियां (Basil Leaves)", + "Disease: मिरगी (Epilepsy)\nतुलसी कई बीमारियों में रामबाण की तरह कम करता है। तुलसी में काफी मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो मस्तिष्क में फ्री रेडिकल्स को ठीक करते हैं। मस्तिष्क की किसी भी प्रकार की बीमारी में अगर रोजाना तुलसी के 20 पत्तियां चबाकर खाया जाए तो यह काफी असरदार होता है।\nब्राह्मी बूटी (Brahmni Leaves)\nब्राह्मी के पत्ते हमारे घरों के आसपास खासकर जहां मिट्टी होते हैं, वहां उगते हैं। यह आकार में गोल और घुमावदार होता है। इसे रोज खाली पेट चबा कर खाने से न सिर्फ याददाश्त मजबूत होती है, बल्कि मिरगी के दौरे को भी यह कम करता है।\nअंगूर का रस (Grapes Juice)\nमिरगी के मरीजों के लिए अंगूर का रस काफी फायदेमंद होता है। लगभग आधा किलो अंगूर का रस निकालकर सवेरे खाली पेट पीना चाहिए। इसे छह महीने तक आजमाने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।\nमिट्टी का लेप (Soil Bath)\nमिट्टी को पानी में गीला करके मरीज के पूरे शरीर लेप लगा दें। एक घंटे बाद नहा लें। इससे मिरगी के दौरे कम आएगे और मरीज थोड़ा बेहतर महसूस करेगा। यह इलाज काफी कारगर है।\nकद्दू (Petha)\nमिरगी के मरीजों के लिए कद्दू या पेठा सबसे कारगर घरेलू इलाज है। पेठे की सब्जी भी बनाई जाती है और आप इसकी सब्जी का भी सेवन कर सकते हैं, लेकिन इसका जूस रोज़ाना पीने से काफी फायदा होता है।\n\n\n", + "Disease: कद बढ़ाना (Height Gain)\n\nDescription: \nबच्चोँ में शारीरिक विकास एक आम प्रक्रिया होती है। बच्चों की लम्बाई या कद (Height) का सामान्य रूप में बढ़ना इसी विकास का महत्वपूर्ण सूचक है। लंबाई का बढ़ना यूं तो आनुवांशिक होता है लेकिन कई बार पोषण की कमी या कुछ अन्य कारणों से बच्चों की लंबाई बहुत कम रह जाती है।\n\nSymptoms: \n- आयु अनुसार कद कम होना\n\nReasons: \n- अनुवांशिक : बच्चों की लंबाई माता और पिता की लंबाई पर भी निर्भर करती है। अमेरिका के टफ्ट्स विश्वविद्यालय के एक शोध में ऐसा पाया गया किसी व्यक्ति के कद का निर्धारण करने में 60 से 80 प्रतिशत योगदान हमारी जीन्स (Genes) का और 20 से 40 प्रतिशत हमारे खाने पीने, खासकर पौष्टिक चीजों और वातावरण का होता है।\n- आहार और पोषण: यदि उचित आहार और पोषण के बाद भी बच्चों की लंबाई न बढ़ रही हो तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर बच्चों के विकास की ग्रोथ चार्ट द्वारा अन्य बच्चों एवं उनके अभिभावकों से तुलना करते हैं और अगर आव��्यक हो तो ग्रोथ हार्मोन के प्रयोग का सुझाव भी देते हैं। ग्रोथ हार्मोन द्वारा बच्चों की लंबाई 20-25 सेंटीमीटर तक बढ़ जाती है। ग्रोथ हार्मोन केवल डॉक्टर के सुझाव से ही लें । \n- हैवी वेटलिफ्टिंग: छोटी उम्र में हैवी वेटलिफ्टिंग से भी लंबाई का बढ़ना रूक जाता है। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों को छोटी-उम्र में ज्यादा भारी सामान ना उठाना पड़े। \n\nTreatments:\n- बच्चें के शारीरिक विकास पर पूरी तरह नजर रखें। अगर कोई परेशानी हो तो जल्द से जल्द डॉक्टर से सलाह लें। \n- पौष्टिक आहार लें: आहार में प्राकृतिक प्रोटीन की मात्र आपके वजन के अनुसार होनी चाहिए यानि प्रति किलोग्राम वजन पर 1 ग्राम प्रोटीन हमें दिन में अवश्य लेना चाहिए।\n- कुछ योग आसान भी लम्बाई बढ़ाने में लाभदायक सिद्ध होते है। \n\nHome Remedies:\nऊंचा कद हर कोई पाना चाहता है लेकिन हर किसी की लंबाई अच्छी हो, ऐसा मुमकिन नहीं होता है। अच्छी लंबाई से जहां, शारीरिक बनावट अच्छी लगती है वहीं व्यक्ति का आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है। व्यक्ति की लंबाई यूं तो अनुवांशिक कारणों पर निर्भर करती है लेकिन कई बार अन्य कारणों से भी लंबाई कम हो सकती है।\n \nआइए जानें लंबाई बढ़ाने के लिए घरेलू उपाय (Home remedies for Height Gain)\n1. अश्वगंधा (Ashwagandha)- अश्वगंधा लंबाई बढ़ाने में सहायक है। अश्वगंधा में मिनरल होते हैं जो कि लंबाई बढ़ाने में सहायक होते हैं। दो चम्मच अश्वगंधा चूर्ण को एक गिलास गर्म गाय के दूध के साथ लें। स्वाद के अनुसार दूध में चीनी या गुड़ मिलाया जा सकता है। 45 दिन तक रोजाना सोने से पहले यह उपाय करने से लंबाई बढ़ने लगती है।\n2. दूध (Milk)- दूध में उच्च मात्रा में कैल्शियम, विटामिन ए और प्रोटीन होता है जो लंबाई बढ़ाने में सहायक होता है।\n3. शरीर को खींचें (Stretch your body)- शरीर को खींचने वाले व्यायाम करने से प्राकृतिक रूप से लंबाई बढ़ने लगती है। शरीर को खींचने के लिए घुटनों को मोड़े बिना पैर के अंगूठों को छूने का प्रयास करें। पंजों पर चलें और इसी तरह के अन्य व्यायाम करें।\n4. योगा (Yoga)- लंबाई बढ़ाने के लिए योगा भी बेहद असरकारी होता है। योगा करने से तनाव भी कम होता है जो कि शरीर की लंबाई बढ़ाने में सहायक है।\n5. भरपूर नींद (Sound sleep)- शरीर के अच्छे विकास के लिए भरपूर नींद भी बेहद जरूरी है। अच्छी नींद सोने से ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन (Human growth hormone) अच्छी मात्रा में निकलता है जिससे व्यक्ति की लंबाई बढ़ने लगती है।\n6. संतुलित खान-पान (Proper diet)- पोषक तत्वों से युक्त खान-पान भी व्यक्ति की लंबाई बढ़ाने में सहायक होता है। शरीर को भरपूर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल मिलते हैं जिससे व्यक्ति की लंबाई बढ़ती है।\nबेहतर शारीरिक विकास के लिए सही पोश्चर बनाना भी बेहद जरूरी है। सीधे और तनकर बैठना, चलना और कंधों को तानकर रखने से भी लंबाई पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।\n\n\n", + "Disease: गुर्दे की पथरी (Kidney Stone)\n\nDescription: \nपेट के निचले हिस्से में या मुत्राशय में तेज दर्द पथरी की निशानी हो सकती है। यह एक ऐसी समस्या है जो किसी भी इंसान को हो सकती है। गुर्दे की पथरी में जो दर्द होता है वह बेहद असहनीय हो जाता है। इस बीमारी को समझना और इससे दूर रहने के उपाय जानना बेहद आवश्यक है।\n\nSymptoms: \n- गुर्दे की पथरी के ज्यादातर रोगी पीठ से पेट की तरफ आते भयंकर दर्द की शिकायत करते हैं\n- दर्द के साथ जी मिचलाने तथा उल्टी होने की शिकायत भी हो सकती है\n- दर्द बाजू, श्रोणि, उरू मूल, गुप्तांगो तक बढ़ सकता है, यह दर्द कुछ मिनटो या घंटो तक बना रहता है तथा बीच-बीच में आराम मिलता है\n- पथरी के लक्षण और चिन्ह पेशाब के पत्थरों का आकार जगह, साइज और पेशाब के बहाव में अवरोध के पैमाने पर निर्भर करता है\n- पीठ के निचले हिस्से में अथवा पेट के निचले भाग में अचानक तेज दर्द, जो पेट व जांघ के संधि क्षेत्र तक जाता है\n- यदि मूत्र संबंधी प्रणाली के किसी भाग में संक्रमण है तो इसके लक्षणों में बुखार, कंपकंपी, पसीना आना, पेशाब आने के साथ-साथ दर्द होना आदि भी शामिल हो सकते हैं ; बार बार और एकदम से पेशाब आना, रुक रुक कर पेशाब आना, रात में अधिक पेशाब आना, मूत्र में रक्त भी आ सकता है। अंडकोशों में दर्द, पेशाब का रंग असामान्य होना\n- यह दर्द रह-रह कर उठता है और कुछ मिनटो से कई घंटो तक बना रहता है इसे ”रीलन क्रोनिन” कहते हैं\n- यह रोग का प्रमुख लक्षण है, इसमें मूत्रवाहक नली की पथरी में दर्दो पीठ के निचले हिस्से से उठकर जांघों की ओर जाता है\n\nReasons: \nगुर्दे की पथरी के कारण (Reason of Kidney Stone)\nपेशाब की पथरी पेशाब में उपस्थित लवणों व खनिजों के जमाव से बनती हैं। जब लवणों और खनिजों की परतें विभिन्न जगहों पर जमा होती जाती हैं तो इन महीन पत्थरों का आकार बढ़ता जाता है। ये सभी लवण और खनिज खाने की चीजों व पानी से शरीर में आए होते है। कुछ सब्जियां जैसे पालक, अरबी के पत्ते और टमाटरों में बहुत अधिक लवण होते हैं।\nजमीनी पानी में भी काफी सारे लवण होते हैं। कुएँ या बोरवेल का पानी भी पथरी बनने का कारण होता है। ये लवण धीरे-धीरे करके शरीर में जमा हो जाते हैं और पत्थर बना लेते हैं। \nफॉस्फेट और कॉर्बोनेट के पत्थरों की सतह मुलायम होती है और ऑक्जेलेट के पत्थरों की खुरदुरी । इस कारण से ऑक्जेलेट के पत्थरों के कारण खून भी निकल सकता है।\nगुर्दे की पथरी के कारण (Causes of Kidney Stone)\nपथरी एक आम बीमारी है जो अकसर गलत-खानपान के कारण भी हो जाती है। इस बीमारी के कुछ मुख्य कारण निम्न हैं: \n- हर दिन पानी की पर्याप्त मात्रा का सेवन न करना\n- कैफीन और शराब का अधिक उपयोग करना\n- मूत्र मार्ग में संक्रमण होना\n\nTreatments:\n​- पथरी के मरीज को दिन में कम से कम 5-6 लीटर पानी पीना चाहिये। पथरी होने पर पर्याप्त जल पीयें ताकि 2 से 2.5 लीटर मूत्र रोज बने। अधिक मात्रा में मूत्र बनने पर छोटी पथरी मूत्र के साथ निकल जाती है\n- आहार में प्रोटीन, नाइट्रोजन तथा सोडियम की मात्रा कम हो। \n- ऐसा भोजन करें जिनमें आक्जेलेट् की मात्रा अधिक हो; जैसे चाकलेट, सोयाबीन, मूंगफली, पालक, आदि के साथ कोल्ड ड्रिंक्स से दूर रहें। \n- नारंगी आदि का रस (जूस) लेने से पथरी का खतरा कम होता है। \n- डॉक्टर पथरी के मरीजों को अंगूर और करेला आदि भी खाने की सलाह देते हैं। \n\nHome Remedies:\nकिडनी में स्टोन यानि पत्थर होना (जिसे पथरी भी कहते हैं) अब एक कॉमन बीमारी हो गई है। पेशाब में यूरिक एसिड, फॉस्फोरस, कैल्शियम और ऑक्जेलिक एसिड जैसे केमिकल के बढ़ने की वजह से किडनी में पत्थर या पथरी होता है। विटामिन डी के अत्यधिक सेवन, शरीर में मिनरल्स की मात्रा में असंतुलन, डिहाइड्रेशन या फिर असंतुलित डायट से भी किडनी में स्टोन होता है।\nपेशाब अगर काफी गाढ़ा हो रहा हो तो यह किडनी में पत्थर होने का लक्षण है। पथरी होने पर काफी असहनीय दर्द होता है। पेशाब करने में भी काफी दर्द होता है। वैसे तो पथरी होने पर सर्जरी की जाती है, मगर इसके कई घरेलू इलाज भी हैं।\nकिडनी में पथरी के लिए घरेलू उपचार (Home Remedies for Kidney Stone)\nकुर्थी दाल (Kurthi Daal)", + "Disease: गुर्दे की पथरी (Kidney Stone)\nपथरी को गलाने में कुर्थी दाल काफी असरदार होता है। कुर्थी दाल को पका कर भी खा सकते हैं, लेकिन कुर्थी दाल का पानी पीना सबसे कारगर होता है।\nनारियल पानी (Coconut Water)\nकिडनी के सेहत के लिए नारियल काफी फायदेमंद है। नारियल पानी पथरी को गलाता है। पथरी होने पर नारियल पानी सुबह पीना चा��िए।\nहरी इलाइची (Green Cardamom)\nहरी इलाइची के भी बड़े औषधीय गुण हैं। इलाइची का सेवन किडनी के बीमारी में काफी फायदेमंद होता है। हरी इलायची, खरबूजे के बीज की गरी और मिश्री को पानी में मिलाकर पीने से किडनी की पथरी निकल जाती है।\nजामुन (Blackberry)\nजामुन डाइबिटीज समेत कई बीमारियों में रामबाण का काम करता है। पथरी के इलाज में भी यह काफी असरदार है।\nआंवला (Amla)\nआंवला सिर्फ केश कांति बढ़ाने में ही काम नहीं आता है। इसके कई औषधीय गुण भी हैं। किडनी के पथरी को गलाने में यह काफी कारगर है। आंवले का चूर्ण मूली के साथ खाने से पथरी गल जाती है।\nजीरा (Cumin seeds)\nजीरे की तासीर सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। हर भारतीय के घर में मसाले के रुप में उपयोग किए जाने वाले जीरे के काफी औषधीय गुण हैं। जीरा को चीनी के साथ पीसकर ठंडे पानी के साथ पीने से किडनी के पथरी गलते हैं।\nसहजन (Moringa Oleifera)\nसहजन ही एकमात्र ऐसी सब्जी है जिसमें प्रचुर मात्रा में एंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं। चिकनपॉक्स, मिजल्स समेत कई तरह की वाइरल बीमारियों से बचाने का काम करती है सहजन। इसके सेवन से किडनी की पथरी भी गलती है।\n\n\n", + "Disease: पेनिस का साइज (Size Of Normal Penis)\n\nDescription: \nबीस से चालीस साल की उम्र के ज्यादातर पुरुष, अपने पेनिस की साइज (Penis Size) को लेकर शंका में रहते हैं कि कहीं उनके लिंग (Ling) का साइज छोटा तो नही है। इसके कारण उनमें हीन भावना आम समस्या है। इस विषय में पुरुष अपने डॉक्टर से भी खुलकर बात नही करते हैं। यह एक तरह की सेक्स समस्या (Sex Problem) है। अधिकतर पुरुषो का लिंग का साइज सामान्य होता है। हालांकि, लिंग के साइज को लेकर लोगों में भ्रांतियां (Misconceptions) ज्यादा है।\n\nTreatments:\nपेनिस (Penis) में अगर रक्त संचार सही रहे तो लिंग का आकर बड़ा प्रतीत होता है। कुछ सामान्य बातों को अपनी रोज़ाना की जिंदगी में शामिल करके रंक्त संचार को बढ़ाया जा सकता है-\n- नियमित व्यायाम\n- उचित आहार लें\n- सब्जियां और फल\n- तनाव रहित जीवनशैली\n- योग आसान \n- पेनिस पंप - आमतौर पर माना जाता है कि पेनिस पंप पेनिस की साइज को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। हालांकि इसका हमेशा प्रयोग खतरनाक हो सकता है क्योंकि इससे नसों को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है।\n\n\n", + "Disease: रूसी (Dandruff)\n\nDescription: \nआजकल रूसी या डैंड्रफ (Dandruff) की समस्या बहुत आम हो चुकी है। यह हमारे सिर की त्वचा में स्थित मृत कोशिकाओं से पैदा होती है। डैंड्रफ की वजह से बाल झड़ना तथा खुजली जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। रुसी के विषय में मिथ्य (Myths of Dandruff in Hindi) आमतौर पर लोगों का मानना है की रूसी तभी होती है, जब हमारे सिर की त्वचा रूखी होती है। लेकिन ऐसा नहीं है। रूसी होने का कारण है, यीस्ट, जो कि सिर की मृत त्वचा को और सिर में जमे हुए तेल को खा कर जीती है। रूसी की वजह से हमारे सिर की त्वचा की कोशिकाएं जल्दी-जल्दी झड़ने लगती है और हमें लगता है कि हमारे सर में रूसी हो गई है। \n\nSymptoms: \n- अगर आपको तीन हफ्ते से अधिक से खांसी है\n- कब्ज और ख़राब पेट : कुछ अध्ययनों से यह पता चलता है कि कब्ज और ख़राब पेट होने की वजह से भी रुसी होती है\n- डैंड्रफ से सिर में खुजली रहती है और बाल गिरने लगते हैं। यह ज्यादातर सर्दियों में होती है\n- बालों का गिरना : आमतौर पर हमारे रोज़ 20 से 50 बाल गिरते हैं। सर में रुसी होने से भी बाल झड़ते हैं, अगर इससे ज्यादा बाल झड़ते है तो रुसी भी कारण हो सकती है\n- सर की सूखी त्वचा : सर की सूखी त्वचा रुसी होने का एक प्रमुख कारण है\n- सर में खुजली: जब रुसी होना शुरू होती है तो सबसे पहले सर में खुजली होना शुरू हो जाती है\n\nReasons: \nबालों में रुसी होने की मुख्य वजह (Top Reason For Dandruff In Hindi)\nबालों की सही देखभाल ना करना, सही डाइट ना लेना या अन्य कई वजहें होती हैं जिनकी वजह से सर में रुसी (Rusi) हो सकती है। इन प्रमुख वजहों में से कुछ निम्न हैं: \n1. मौसम में बदलाव- अत्यधिक गर्म या अत्यधिक ठंडा मौसम दोनों ही सिर की त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं। जिस तरह मौसम का उतार चढ़ाव हमारे शरीर को प्रभावित करता है उसी प्रकार सिर की त्वचा को भी, जिसका नतीजा डैंड्रफ हो सकता है।\n2. हाइजीन- बालों की ठीक से सफाई न करने या सिर से संबंधित उपकरणों को साफ न रखने जैसे कंघी, तौलिया, हेयर ब्रश आदि इसके साथ ही किसी और के द्वारा इस्तेमाल किए गए कंघी या तौलिया को इस्तेमाल करने से भी रूसी होने की समस्या हो सकती है।\n3. सही डाइट- शरीर में पोषक तत्वों का सही संतुलन न होने से भी स्कैल्प से रूसी नुमा पपड़ी उतरने लगती है। डाइट में दाल, दूध, ताज़ा फल और हरी सब्जियों (Diet for Dandruff) का इस्तेमाल जरूरी है। इसके अलावा बालों में सही मात्रा में तेल न लगाने से भी डैंड्रफ शुरू हो जाता है।\n4. ऑयल ग्लैंड का बंद होना- कई बार किसी बीमारी या हार्मोनल असंतुलन के कारण ऑयल ग्लैंड बंद हो जाते हैं जिससे रूसी होने लगती है।\n5. संक्रमण- बालों की स्टाइलिंग के लिए केमिकल का प्��योग, हेयर कलर का इस्तेमाल, बालों को नेचुरल रूप से न सूखने देना, गीले बालों को ही बांध लेना आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिससे डैंड्रफ (Rusi) होने लगता है। इससे बालों में खुजली शुरू होती है और धीरे धीरे समस्या बढ़ती जाती है।\n6. हेयर कलर- हेयर कलर में अमोनिया होता है जो कि स्कैल्प पर रूसी को जन्म देता है। हेयर कलर का इस्तेमाल एक्सपर्ट से राय लेकर ही करना चाहिए और अच्छे किस्म के हेयर कलर का इस्तेमाल करना चाहिए।\n7. पसीना और धूल- गर्मियों के दिनों में सिर की त्वचा पर जमा पसीना जब धूल के संपर्क में आता है तो स्कैल्प पर गंदगी जमा होना शुरू हो जाती है। जो कि धीरे धीरे डैंड्रफ का कारण बन जाती है। \n8. एलर्जी- कई बार हम जो तेल, शैंपू, हेयर स्टाइलिंग प्रॉडक्ट या हेयर कलर इस्तेमाल कर रहे होते हैं वह हमें सूट नहीं करता, नतीजा एलर्जी हो जाती है जो डैंड्रफ होने का बड़ा कारण है।\n\nTreatments:\nप्राथमिक स्तर पर रुसी की देखभाल (First Level Treatment in Hindi)\n- अपने सर की सतह को रुखा होने से बचाने के लिए सर और बालों में नियमित रूप से तेल लगायें।\n- बालों को नियमित रूप से धोये, ऐसे करने से यह साफ रहेंगे और किसी प्रकार की समस्या के आसार कम होंगे।  \n- बालों को संक्रमण से बचाने के लिए दूसरों की कंघी आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। \n- जूँ\n- बालों का झड़ना\n- जूँ\n\nHome Remedies:\nबालों में रुसी होने की मुख्य वजह (Top Reason For Dandruff In Hindi)", + "Disease: रूसी (Dandruff)\nबालों की सही देखभाल ना करना, सही डाइट ना लेना या अन्य कई वजहें होती हैं जिनकी वजह से सर में रुसी (Rusi) हो सकती है। इन प्रमुख वजहों में से कुछ निम्न हैं: \n1. मौसम में बदलाव- अत्यधिक गर्म या अत्यधिक ठंडा मौसम दोनों ही सिर की त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं। जिस तरह मौसम का उतार चढ़ाव हमारे शरीर को प्रभावित करता है उसी प्रकार सिर की त्वचा को भी, जिसका नतीजा डैंड्रफ हो सकता है।\n2. हाइजीन- बालों की ठीक से सफाई न करने या सिर से संबंधित उपकरणों को साफ न रखने जैसे कंघी, तौलिया, हेयर ब्रश आदि इसके साथ ही किसी और के द्वारा इस्तेमाल किए गए कंघी या तौलिया को इस्तेमाल करने से भी रूसी होने की समस्या हो सकती है।\n3. सही डाइट- शरीर में पोषक तत्वों का सही संतुलन न होने से भी स्कैल्प से रूसी नुमा पपड़ी उतरने लगती है। डाइट में दाल, दूध, ताज़ा फल और हरी सब्जियों (Diet for Dandruff) का इस्तेमाल जरूरी है। इसके अलावा बालों में सही मात्रा में तेल न लगाने से भी डैंड्रफ ���ुरू हो जाता है।\n4. ऑयल ग्लैंड का बंद होना- कई बार किसी बीमारी या हार्मोनल असंतुलन के कारण ऑयल ग्लैंड बंद हो जाते हैं जिससे रूसी होने लगती है।\n5. संक्रमण- बालों की स्टाइलिंग के लिए केमिकल का प्रयोग, हेयर कलर का इस्तेमाल, बालों को नेचुरल रूप से न सूखने देना, गीले बालों को ही बांध लेना आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिससे डैंड्रफ (Rusi) होने लगता है। इससे बालों में खुजली शुरू होती है और धीरे धीरे समस्या बढ़ती जाती है।\n6. हेयर कलर- हेयर कलर में अमोनिया होता है जो कि स्कैल्प पर रूसी को जन्म देता है। हेयर कलर का इस्तेमाल एक्सपर्ट से राय लेकर ही करना चाहिए और अच्छे किस्म के हेयर कलर का इस्तेमाल करना चाहिए।\n7. पसीना और धूल- गर्मियों के दिनों में सिर की त्वचा पर जमा पसीना जब धूल के संपर्क में आता है तो स्कैल्प पर गंदगी जमा होना शुरू हो जाती है। जो कि धीरे धीरे डैंड्रफ का कारण बन जाती है। \n8. एलर्जी- कई बार हम जो तेल, शैंपू, हेयर स्टाइलिंग प्रॉडक्ट या हेयर कलर इस्तेमाल कर रहे होते हैं वह हमें सूट नहीं करता, नतीजा एलर्जी हो जाती है जो डैंड्रफ होने का बड़ा कारण है।\n\n\n", + "Disease: हार्ट अटैक (Heart Attack)\n\nDescription: \nहार्ट अटैक या हृदय आघात हाल के सालों में सर्वाधिक होने वाली लाइफस्टाइल बीमारी है। हृदय में ब्लॉकेज के कारण होने वाली इस बीमारी से दुनियाभर में कई लोग पीड़ित हैं और कई जान गंवा चुके हैं। हार्ट अटैक (Heart Attack) के पचास प्रतिशत मरीजों की अस्पताल पहुँचने से पहले ही मृत्यु हो जाती है। हर साल भारत में 30 लाख लोगों की मौत दिल की बीमारी से होती है।\n\nSymptoms: \n- छाती में दर्द होना एवं सीने में ऐठन होना\n- त्वचा पर चिपचिपाहट, उनींदापन, सीने में जलन महसूस होना\n- पसीना आना एवं सांस फूलना\n- महिलाओ में हार्ट अटैक अाने पर कुछ अन्य लक्षण भी देखे सकते है\n- मितली आना, उल्टी होना\n- हाथों, कंधों, कमर या जबड़े में दर्द होना\n- असामान्य रूप से थकान होना\n\nReasons: \nहार्ट अटैक होने के कारणों में आसीन जीवन शैली (Sedentary Lifestyle) सबसे बड़ी वजह है। शारीरिक परिश्रम की कमी के कारण शरीर में खून का संचार शरीर में सही ढ़ंग से नहीं हो पाता। इसके अलावा हार्ट अटैक (Heart Attack) के कुछ कारण निम्न हैं: \nहार्ट अटैक के कारण (Causes of Heart Attack in Hindi)\n- कोलेस्ट्रोल का बढ़ना\n- उच्च रक्तचाप\n- डायबिटीज\n- मोटापा\n- तनाव \n- असंतुलित आहार\n- व्यायाम या शारीरिक श्रम में कमी\n\nTreatments:\n- हार्ट अटैक होने पर रोगी को लिटा दें और जितना हो सके उसके आसपास खुला वातावरण रखें। \n- रोगी के कपड़ो को ढीला कर दें। \n- संयम बरतते हुए हथेलियों से रोगी की छाती पर तेज और जोर से दबाव डालें। हर दबाव के बाद छाती में मौजूद कम्प्रेशन को रिलीज करने का प्रयास करें। \n- इस प्रकिया को 25 -30 बार दोहराएं। \n- इससे रोगी की धड़कनें फिर से लौट आएंगी। \n- बिना विलम्ब किये एम्बुलेंस को बुलाए। \n- डॉक्टर से फोन पर संपर्क कर डॉक्टर की सलाह का सही तरीके से पालन करें। \n- उच्च रक्तचाप\n- हार्ट ब्लॉकेज\n\nHome Remedies:\nहार्ट अटैक से बचाव के कुछ घरेलू उपाय (Home remedies for Heart attack)\n- पानी में नींबू का रस मिलाकर रोज पीएं।\n- फलों में अमरूद, अन्नास, मौसमी, लीची और सेब का इस्तेमाल करें।\n- सब्जियों में अरबी और चौलाई जरूर खाएं।\n- खाने में दही जरूर खायें।\n- दिल को मजबूत करने के लिए देसी घी में गुड़ मिलाकर खाएं।\n\n\n", + "Disease: सोरायसिस (Psoriasis)\n\nDescription: \nसोरायसिस त्वचा की ऊपरी सतह का चर्म रोग है जिससे त्वचा में कोशिकाओं (Cells) की तादाद बढने लगती है और त्वचा के ऊपर मोटी परत जम जाती है। सोरायसिस की बीमारी में सामान्यतः त्वचा पर लाल रंग की सतह उभरकर आती है। यह खोपड़ी (Scalp), हाथ-पाँव अथवा हाथ की हथेलियों, पाँव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। सोरियासिस रोग (Psoriasis) संक्रामक किस्म का रोग नहीं है। रोगी के संपर्क से अन्य लोगों को कोई खतरा नहीं है।\n\nSymptoms: \n- आंखों में जलन\n- चलने-फिरने में दिक्कत आना\n- जोड़ों में दर्द\n- शरीर में लाल रंग के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं\n\nReasons: \nसोरायसिस रोग (A type of Skin Infection) के मुख्य कारण दो ही माने जाते हैं एक आनु्‌वंशिक और दूसरा पर्यावरण। \nमुख्य कारण (Main Causes of Psoriasis)\nआनुवांशिक: डॉक्टर मानते हैं कि सोरायसिस आनुवांशिक कारणों से भी आ सकता है। \nपर्यावरण: लगातार कैमिक्लस और प्रदूषण के संपर्क में रहने कारण भी सोरायसिस हो सकता है। यह बीमारी सर्दियों में अधिक होती है। ज्यादा देर धूप में रहने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है।\n\nTreatments:\nसोरायसिस से बचाव और उपचार का पहला केन्द्र है त्वचा की देखभाल करना। सोरायसिस होने पर निम्न उपाय भी फायदेमंद होते हैं:\n- सोरायसिस के लक्षण दिखने पर विशेषज्ञ चिकित्सक से सलाह लें तथा उसके बताए निर्देशों का पालन करें । \n- सोरायसिस के रोगियों को तनावमुक्त रहना चाहिए। क्योंकि तनाव सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करत�� है। \n- त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली न हो। \n- रोग की तीव्रता न होने पर साधारणतः क्रीम इत्यादि से ही रोग नियंत्रण में रहता है। लेकिन कभी-कभी मुँह से ली जाने वाली एंटीसोरिक और सिमटोमेटिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। आजकल अल्ट्रावायलेट लाइट से उपचार की विधि भी अत्यधिक उपयोगी और लाभदायक हो रही है। \n- स्किन कैंसर\n- अफारा\n\nHome Remedies:\nचर्म रोगों में सोरायसिस सबसे क्रॉनिक और गंभीर बीमारी है। यह रक्त में अशुद्धि और त्वचा के ज्यादा शुष्क होने की वजह से होता है। सोरायसिस से पीड़ित मरीज जिंदगी में भावनात्मक स्तर पर काफी नाकारात्मक महसूस करने लगते हैं। उन्हें अपने हाथ-पैर या जिस किसी भी अंग की त्वचा में सोरायसिस है उसको लेकर हमेशा एक शर्मिंदगी की भावना मन में रहती है। कई मरीज तो बाहर जाना तक बंद कर देते हैं। जबकि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। बेहतर देखभाल और बेहतर इलाज से संभव है आप इस बीमारी के रहते भी बेहतर अनुभव कर सकते हैं।\nसोरायसिस में त्वचा में तेज खुजलाहट, नोचने का मन और कभी-कभी दर्द भी होती है। त्वचा ज्यादा शुष्क होने पर कभी-कभी लाल चकते और फ्लैक्स भी निकल आते हैं। जो सूखने पर पपड़ी की तरह झड़ने लगती है। सोरायसिस का कोई ठोस इलाज नहीं है, कुछ घरेलू उपचार करने से इसके लक्षण जरुर कम हो जाते हैं लेकिन हमेशा के लिए इससे छुटकारा नहीं मिलता है।\nसोरायसिस के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home remedies for Psoriasis)\nगुनगुने पानी में स्नान (Bath in Lukewarm Water)\nतेल, ओटमील, सेंधा नमक गुनगुने पानी में मिला कर बाथ टब में 15 मिनट बैठ जाए। निकलने के बाद पूरे बदन में मॉस्चराइजर लगा ले। इससे स्किन का ड्राइनेस कम होगा और त्वचा पर पपड़ी भी नहीं जमेगी।\nमॉस्चराइजर (Moisturizer)\nसोरायसिस में त्वचा तुरंत-तुरंत शुष्क हो जाती है और इससे खुजली और नोचने की प्रवृति भी जल्दी-जल्दी होने लगती है। इससे बचने के लिए त्वचा में हमेशा नमी बनाए रखें। त्वचा को जल्दी शुष्क ही नहीं होने दें। पूरे बदन में मॉस्चराइजर का लेप हमेशा लगा कर रखें।\nकुटकी चिरौता (Kutki Chirauta)\nरक्त अशुद्धि से होने वाली सभी बीमारियों के लिए कुटकी चिरौता रामबाण है। यह पीने में काफी कड़वा होता है और पीने के साथ उल्टी या मितली जैसा भी होने लगता है, लेकिन यह काफी असरदार है।", + "Disease: सोरायसिस (Psoriasis)\nचार ग्राम चिरौता और चार ग्राम कुटकी लेकर शीशे या चीनी के बर्तन ��ें आधा ग्लास पानी डाल कर भींगने के लिए रात भर छोड़ दें। सुबह रात को भिगोया हुआ चिरौता और कुटकी का पानी निथार कर कपड़े से छानकर पी लें और पीने के बाद 3-4 घंटे तक कुछ खांए नहीं। लगातार चार हफ्ते तक कुटकी-चिरौता पीने से सोरायसिस, फोड़े-फुंसी से लेकर पेट के कीड़े तक नष्ट हो जाते हैं। यह रक्त को साफ करता है।\n\n\n", + "Disease: स्वाइन फ्लू (Swine Flu)\n\nDescription: \nस्वाइन फ्लू या H1N1 (H1N1 Flu) एक संक्रमण है, जो इन्फ्लूएंजा ए वायरस (Influenza Virus​) के कारण होता है। आमतौर पर यह बीमारी सूअरों में होती है, इसलिए इसे स्वाइन फ्लू कहा जाता है, लेकिन कई बार सूअर के सीधे संपर्क में आने पर यह मनुष्य में भी फैल जाती है। यह बहुत जल्दी फैलने वाला रोग है। इससे बचने के लिए संक्रमित लोगों से दूर रहना चाहिए।\n\nSymptoms: \n- H1N1 के रोगियों को बहुत ज्यादा थकान महसूस होती है।\n- H1N1 में पीड़ित व्यक्ति मांसपेशियां में दर्द, अकड़न और पीड़ाओं की तीव्रता बहुत अधिक महसूस करता है।\n- H1N1 से पीड़ित 80% रोगियों को ठंड बहुत लगती है।\n- H1N1 से पीड़ित व्यक्ति सूखी खांसी, बहती नाक से परेशान रहता है।\n- लगभग 80% H1N1 मामलों में रोगी बुखार से तपता रहता है। बुखार में शरीर का तापमान 101 डिग्री तक पहुंच जाता है। दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ता है।\n- लगातार सर में दर्द होना H1N1 का एक आम लक्षण है तथा यह लक्षण 80% मरीजों में मौजूद होता है।\n\nReasons: \nमाना जाता है कि स्वाइन फ्लू अधिकतर सूअरों के करीब रहने वाले लोगों में तेजी से फैलता है। हालांकि कई अन्य कारक भी है जो स्वाइन फ्लू के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन इनमें से सबसे महत्वपूर्ण कारण है सूअरों का संपर्क। कुछ अन्य कारक निम्न हैं: \nस्वाइन फ्लू के कारण (Causes of Swine Flu)\n- संक्रमित सूअरों के साथ रहने वाले व्यक्ति स्वाइन फ्लू की चपेट में आ सकते हैं तथा आगे चलकर वे व्यक्ति अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।\n- बीमारी के होने का खतरा बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और दिल, किडनी, डायबिटीज से ग्रस्त लोगों में अधिक रहता है। जिनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, वे भी स्वाइन फ्लू का शिकार हो सकते हैं।\n- यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि सही तरह से पके हुए रेड मीट से स्वाइन फ्लू नहीं होता लेकिन अगर पकाने में असावधानी बरती जाए तो कुछ समस्याएं अवश्य आ सकती हैं।\n\nTreatments:\nस्वाइन से बचाव का सबसे बेहतरीन तरीका है इससे बचकर रहना। संक्रमित रोगी से दूर रहकर इ��� बीमारी से आसानी से बचा जा सकता है। कुच अन्य उपाय निम्न हैं:\n- संक्रमित लोगों से दूर रहना ही इस बीमारी का बचाव है। \n- साफ-सफाई का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। \n- खांसते या छींकते समय रुमाल का प्रयोग करें। \n- गंदे हाथों से आंख, नाक या मुंह छूने से बचें और बाहर खाने से परहेज करें। \n- बीमार लोगों से नज़दीकी संपर्क रखने से बचें\n- अस्पताल या अन्य किसी सार्वजनिक स्थान पर जाने से पहले मास्क पहनें। \n- संक्रमित व्यक्ति के पास जाना अगर जरूरी हो तो मास्क के साथ-साथ दस्ताने भी पहनें। इससे आप बीमारी से सुरक्षित रह सकते हैं।\n- स्वाइन फ्लू से बचने के लिए भारत में स्वाइन फ्लू वैक्सीन मौजूद है। स्वाइन फ्लू की वैक्सीन एक साल तक इस बीमारी से आपकी रक्षा करती है।\n- स्वाइन फ्लू के लक्षण नज़र आने पर मरीज को तुरन्त अस्पताल में भर्ती करा दें ताकि उसका सही इलाज हो सके।\n- यदि आप इन्फ़्लुएन्ज़ा से पीड़ित हों तो आप अन्य लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए उनसे दूर रहें।\n\nHome Remedies:\nस्वाइन फ्लू ने पहले मैक्सिको में अपना पांव पसारा, उसके बाद पूरे अमेरिका और भारतीय उप महाद्वीप में फैलते हुए महामारी का रुप ले लिया। अंग्रेजी में एक कहावत है न – “Prevention is better than cure”। स्वाइन फ्लू में भी बचाव ही एक मात्र इलाज है। स्वाइन फ्लू का वायरस सीधे श्वास नली पर आक्रमण करता है और यह खतरनाक रुप से संक्रामक हो जाता है।\nखास कर H1N1 वाइरस जो कि जानलेवा भी है और काफी संक्रामक भी। यह बच्चे, जवान और बूढ़े किसी पर भी अटैक कर सकता है और काफी तेजी से फैलता है। मौसमी सर्दी-कफ और खांसी में छींकने-खांसने के दौरान इसके वायरस हवा में तैरने लगते हैं। इसके वायरस दरवाजे, सिंक, खिड़की, कपड़े, रूमाल, तौलिया या कहीं पर भी हो सकते हैं। इसके संपर्क में आते ही कोई भी संक्रमण का शिकार हो सकता है।", + "Disease: स्वाइन फ्लू (Swine Flu)\nजरुरी नहीं है कि H1N1 वायरस के संक्रमण के तुरंत बाद कोई बीमार पड़ जाए। सात दिन के बाद भी इसके लक्षण दिखाई देते हैं और मरीज बीमार पड़ने लगता है। बच्चों में 10 दिन के बाद भी लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इसके लक्षण सीजनल फ्लू की तरह ही होते हैं, मसलन- कफ, बुखार, गला सूखना, नाक बहना, छींक आना, सिरदर्द, बदन दर्द, कंपकंपी के साथ बुखार आना और बदन में अकड़न होना।\nस्वाइन फ्लू में निमोनिया का खतरा रहता है और श्वसन प्रणाली नाकाम होने का डर रहता है जोकि जानलेवा है। स��वाइन फ्लू पिछले साल भारत में महामारी की तरह पांव पसारा, खासकर गुजरात, राजस्थान में इससे कई लोगों की मौत भी हुई।\nमगर इससे घबराने की जरुरत नहीं है। अगर आप इससे बचाव के लिए तुरंत उपाय करना शुरु कर देते हैं तो यह उतना खतरनाक नहीं हो सकता है।\nस्वाइन फ्लू के इलाज के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Swine Flu - H1N1)\nतुलसी (Basil)\nतुलसी में रोग प्रतिरोधी क्षमता को मजबूत करने की शक्ति होती है और किसी भी तरह के फ्लू में यह रामबाण की तरह काम करता है। यह गले और फेफड़े को किसी भी तरह के संक्रमण से बचाता है। सुबह खाली पेट 5-10 तुलसी के पत्ते को अच्छी तरह से धो कर चबा लें। चाय और काढ़े में भी तुलसी का सेवन कर सकते हैं।\nगिलोय (Tinospora Cordifolia)\nगिलोय का पौधा आसानी से हर जगह मिल जाता है। गिलोय के पौधे का तना काटकर उसे अच्छी तरह से छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। गिलोय के तना के टुकड़े और पांच-छह तुलसी के पत्तों को पानी में उबाल लें। अब इसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या काला नमक मिला लें और इसे गरमा-गरम काढ़े की तरह पी लें। यह आपके रोग से लड़ने की क्षमता को तो मजबूत करेगा ही, संक्रमण से भी रक्षा करेगा।\nकपूर (Camphor)\nस्वाइन फ्लू से बचाव के लिए कपूर काफी कारगर है। वयस्क महीने में एक बार या दो बार फ्लू के सीजन में इसका सेवन कर सकता है। जवान लोग तो इसे पानी के साथ भी खा सकते हैं लेकिन बच्चों को केले में कपूर मथ कर खाने देना चाहिए। बच्चे सीधे कपूर नहीं खा सकते। ध्यान रहे कपूर का सेवन हर रोज न करें। फ्लू के सीजन में एक या दो बार ही इसका सेवन काफी है।\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन तो वैसे भी हर मर्ज की दवा है। इससे इम्यूनिटी मजबूत होती है और संक्रमण का खतरा कम रहता है। रोज सुबह खाली पेट लहसुन की दो डली कच्चा ही पानी के साथ खाएं, काफी फायदा करेगा।\nहल्दी-दूध (Turmeric with Milk)\nहल्दी में कई तरह के गुण होते हैं। दर्द निवारक के साथ-साथ यह कफ-खांसी-सर्दी में तो असर करता ही है, रोग प्रतिरोधी क्षमता को भी मजबूत करता है। रोज रात को गर्म दूध में हल्दी डाल कर पीने से फ्लू और संक्रमण का खतरा कम रहता है।\nसाफ-सफाई (Hygine)\nवायरल संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है और वायरस कहीं भी हो सकता है। किसी भी चीज को छूने या कहीं बाहर जाने के बाद तुरंत पानी और एंटी सेप्टिक लोशन या लिक्विड से हाथ पैर धोने के बाद ही कुछ खाना-पीना चाहिए। सीजनल फ्लू के महीनों में नाक पर मास्क या रुमाल लगा कर बाहर निकलन�� चाहिए।\n\n\n", + "Disease: स्किन कैंसर (Skin Cancer)\n\nDescription: \nत्वचा की कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि को स्किन कैंसर (Skin Cancer) कहते हैं जो प्राय: शरीर के उस अंग की त्वचा में होता है जहां सूर्य की किरणें सीधे पड़ती है। जैसे चेहरा, होंठ, गर्दन, बांह, हाथ और महिलाओं की पैर की त्वचा पर।\n\nSymptoms: \n- एक्जिमा यानी खाज भी लंबे समय तक रहे। खासतौर पर अगर यह कोहनी, हथेली या घुटनों पर दिखे तो इसे लेकर लापरवाही न बरतें।\n- तिल में बदलाव हो, रंग बदलने लगे और इस पर खुजली हो या फिर खून निकले\n- माथा, गाल, ठुड्डी और आंखों के आस-पास की त्वचा लाल हो और उसमें खूब जलन हो\n- रैशेज, तिल या बर्थ मार्क्स के आकार या रंग में बदलाव\n- स्किन पर धब्बे अगर छह हफ्तों से ज्यादा रहें\n- स्किन रोजेशिया यानि बहुत अधिक लाली और जलन\n\nReasons: \nस्किन कैंसर का कारण (Causes of Skin Cancer)\nधूप में ज्यादा रहने से होता है स्किन कैंसर (Effects of Sunrays)\nज्यादातर मामलों में स्किन कैंसर सूर्य की पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आने से होता है क्योंकि सूर्य की पराबैंगनी किरणें स्किन सेल के डीएनए को काफी नुकसान पहुंचाता है जिससे त्वचा की कोशिका असामान्य रुप से विभाजित होने लगती है।\nसनबर्न और टैनिंग (Sunburn)\nसूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों में ज्यादा देर तक रहने पर सनबर्न और टैनिंग का खतरा रहता है। स्किन पर टैनिंग होने से स्किन सेल के डीएनए को काफी नुकसान पहुंचता है, जिससे स्किन कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।\n\nTreatments:\nस्किन कैंसर का इलाज (Treatment of Skin Cancer)\n- कुष्ठरोग\n- सोरायसिस\n- अफारा\n\nHome Remedies:\nजब त्वचा के सेल्स एब्नॉर्मल तरीके से बढ़ना शुरू कर देते हैं तो त्वचा का कैंसर होता है। स्किन कैंसर का बड़ा कारण आपके द्वारा प्रयुक्त किए जा रहे सौंदर्य उत्पाद, खासकर संस्क्रीन, हो सकते हैं। संस्क्रीन (सन क्रीम) में धूप से बचने के लिए कई टॉक्सिक केमीकल भरे होते हैं जो त्वचा को जरूरी विटामिन डी भी नहीं लेने देते।\nकई बार न्यूट्रीशनल डेफिशियेंसी (Nutritional Defficiency) भी त्वचा के कैंसर का कारण होती है। त्वचा के कैंसर से कई घरेलू नुस्ख़ों को आजमाकर बचाव संभव है।\nत्वचा के कैंसर से बचाव के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Skin Cancer)\nकाली रस्पबेरी के बीजों का तेल (Black Raspberry Seed Oil)\nरस्पबेरी के बीज एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होते हैं, जिससे इनमें कैंसर से बचाव की ताकत होती है। काली रस्पबेरी न केवल कैंसर को रोकती है बल्कि यह सीधे तौर पर ���ैंसर पैदा करने वाली जड़ पर प्रभाव डालती है। साथ ही कैंसर से लड़ने के लिए व्यक्ति की इम्यूनिटी (immunity) भी बढ़ाती है।\nहल्दी (Turmeric)\nहल्दी में मौजूद करक्यूमिन (Curcumin) तत्व कैंसर के सेल्स को मारने में प्रभावी है साथ ही कैंसर को होने से भी रोकता है। खासकर ब्रेस्ट कैंसर, पेट का कैंसर और त्वचा कैंसर में हल्दी अधिक प्रभावी है।\nकुछ चीजों को अवॉइड करे (Necessary Precautions)\nत्वचा कैंसर से प्रभावित होने पर किसी भी ऐसे खाने से बचना चाहिए जो शरीर में इन्फ्लेमेशन को बढ़ाए, क्योंकि कैंसर एसिडिक और टॉक्सिक माहौल में ज्यादा फैलता है। ऐसे में ज्यादा तले और मसाले वाले खाने से दूर रहें। साथ ही फास्ट फूड, आर्टिफिशियल शुगर, कॉर्न सीरप, ऐसा खाना जिसमें ज्यादा फैटी एसिड हो, मीट और ट्रांस फैट आदि वाले खाने से बचना चाहिए।\nविटामिन डी (Vitamin D)\nकैंसर से बचाव के लिए विटामिन डी बेहद जरूरी है। इसके लिए कुछ देर धूप में बैठें। धूप में बैठना संभव न हो तो, विटामिन डी 3 सप्लीमेंट के रूप में लिया जा सकता है। विटामिन डी से शरीर की इम्यूनिटी पावर बढ़ती है और शरीर कैंसर से लड़ने के लिए शक्तिशाली बनता है।\nबैंगनी बैंगन\nकैंसर से बचाव में बैंगन भी बेहद लाभप्रद है। इतना ही नहीं सोलानासे (Solanaceae) परिवार की अन्य सब्जियां जैसे- टमाटर, आलू, शिमला मिर्च, आदि भी कैंसर से बचाव में उतनी ही प्रभावी हैं। बैंगन में मौजूद सोलासोडाइन राहमनोसाइल ग्लाइकोसाइड (Solasodine Rhamnosyl Glycosides) का प्रयोग तो आयुर्वेद में भी त्वचा के कैंसर की क्रीम बनाने में किया जाता है।\n\n\n", + "Disease: मुंहासे (Pimples)\n\nDescription: \nत्वचा के रोम कूप यानि छिद्र और तैलीय ग्रंथि के बंद होने की वजह से चेहरे पर पिंपल्स (Pimples) निकलते हैं। इन्हें मुहांसे भी कहते हैं। यह कोई बीमारी नहीं है। आम तौर पर युवावस्था में लड़के-लड़कियों के चेहरे पर पिंपल्स ज्यादा निकलते हैं क्योंकि इसी उम्र में शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं।\n\nReasons: \nग्रोथ इयर्स में अकसर मुहांसे हो जाते हैं लेकिन अगर मुहांसे अधिक हो तो यह चिंता का विषय होता है। मुहांसो (Muhanse) की समस्या निम्न वजहों के कारण भी हो सकती है: ​\n- किशोरआयु के लड़के-लड़कियों में सेक्स हार्मोन एंड्रोजेन के स्राव की गति तेज होने से। \n- ज्यादा मात्रा में जंक फूड और तेल में फ्राई किया हुआ भोजन खाने से। \n- आनुवांशिक कारणों से भी चेहरे पर पिंपल्स निकलते हैं। \n- कॉस्मेटिक्स का चेहरे पर ���्यादा इस्तेमाल। कॉस्मेटिक्स लगाने के बाद क्लींजिंग नहीं करने से भी चेहरे पर पिंपल्स (Pimples) निकल आते हैं।\n- मृत त्वचा कोशिका के दबाव और इन कोशिकाओं में बैक्टीरिया तेजी से बढ़ने के कारण पिंपल्स निकल आते हैं। \n- पिंपल्स की दूसरी बड़ी वजह जीवनशैली और फूड हैबिट भी है। ज्यादा वसा यानि तेल में फ्राई किया हुआ खाना खाने, चॉकलेट के सेवन से चेहरे पर पिंपल्स निकलने की संभावना रहती है।\n\nTreatments:\nपिंपल्स होने पर क्या न करें (Treatment of Pimples)\n- अपने चेहरे को बार-बार न छुएं\n- बालों को चेहरे और माथे पर गिरने न दें\n- मेकअप से त्वचा के छिद्र बंद हो जाते हैं इसलिए मेकअप से परहेज बरतें और त्वचा को सांस लेने दें\n- पिंपल्स को कभी भी दबाने या उसके अंदर के पस निकालने की कोशिश न करें, ऐसा करने पर गंभीर घाव हो सकते हैं\n- चेहरे को दिन में दो बार से ज्यादा न धोएं। चेहरे को ज्यादा धोने पर त्वचा की तैलीय ग्रंथि ज्यादा सक्रिय हो जाती है और त्वचा से तेल का स्राव ज्यादा होने लगता है\nपिंपल्स होने पर ऐसे करें उपचार (Tips to remove Pimples)\nसंतरे और नींबू के छिलके \nचेहरे पर साबुन लगाने की बजाय संतरे के छिलके का पाउडर या फिर ताजा संतरे या नींबू के छिलकों को लगाएं। इससे पिंपल्स की समस्या से छुटकारा मिलेगा।\nएलोवेरा जूस\nपिंपल्स वाली जगह पर एलोवेरा का जूस लगाएं। यह त्वचा को मुलायम बनाने के साथ-साथ पिंपल्स को भी कम करेगा।\nलहसुन\nलहसुन पिंपल्स की इलाज में रामबाण का काम करता है। लहसुन के एक दाने को पिंपल्स वाली जगह पर धीरे-धीरे लगाएं। अगर लहसुन न हो तो इसके पेस्ट को चेहरे पर लगाएं। आधा घंटा बाद चेहरा धो लें। काफी फायदा होगा।\nकच्चा पपीता\nकच्चे पपीते के जूस और उसके छिलके को कॉटन के कपड़े में लपेट कर मुंहासों वाली जगह पर लगाएं। काफी असर दिखेगा।\nमिंट के पत्ते और जूस\nमिंट के पत्ते और इसके जूस लगाने से भी मुंहासे दूर होते हैं। रात को सोते समय लगातार दो हफ्ते तक इसे चेहरे पर आजमाएं। काफी असर दिखेगा।\nशहद और नींबू का रस\nशहद और नींबू का रस भी पिंपल्स के इलाज में काफी कारगर है। शहद में नींबू का रस मिला कर पिंपल्स वाली जगह पर लगाएं। पिंपल्स खत्म हो जाएंगे।\nस्टीम बाथ और आइस पैक\nथोड़े गुनगुने पानी में नहाने के बाद चेहरे पर धीरे-धीरे बर्फ की मालिश करें। इससे त्वचा के छिद्र खुलते हैं।\n \nHome Remedies:\nत्वचा में उपस्थित तेल ग्रंथियों (oil glands) द्वारा अतिरिक्त सीबम (sebum) का स्त्राव होने के कारण मुंहासे निकल आते हैं। इस दौरान तेल ग्रंथियां बैक्टीरिया से संक्रमित भी हो जाती हैं जिनसे मुंहासे फूलकर लाल हो जाते हैं और कई बार उनमें मवाद भी भर जाता है। मुंहासे ज्यादतर चेहरे, कंधे, गर्दन और पीठ पर निकलते हैं।\nवैसे तो बाजार में मुंहासों से निपटने के लिए कई तरह की क्रीम, लोशन और चेहरे को धोने (face wash) के उत्पाद मौजूद हैं लेकिन इनका असर अधिक या लंबे समय तक नहीं होता है। इन उत्पादों का प्रयोग बंद करते ही समस्या फिर से पनपने लगती है।\nमुंहासों के लिए कई ऐसे घरेलू नुस्खे मौजूद हैं, जो त्वचा के लिए भी नुकसानदायक नहीं है साथ ही मुंहासों को जड़ से समाप्त करेंगे। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही घरेलू नुस्खों के बारे में-\nमुंहासों से निपटने के लिए घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Pimples)\nबर्फ (Ice)", + "Disease: मुंहासे (Pimples)\nबर्फ मुंहासों की सूजन और लालिमा को जल्द से जल्द ठीक करने का गुण रखती है। बर्फ प्रभावित क्षेत्र में रक्त परिसंचरण (blood circulation) दुरूस्त करती है जिससे त्वचा के कस जाते हैं और त्वचा पर मौजूद गंदगी और तेल साफ हो जाता है। उपचार के लिए किसी पतले कपड़े में बर्फ का टुकड़ा लेकर प्रभावित स्थान की सिकाई करें।\nनींबू (Lemon)\nनींबू में मौजूद विटामिन सी मुंहासों को जल्दी सूखने में मदद करता है। उपचार के लिए रूई को नींबू के रस में भिगोकर प्रभावित स्थान पर लगाएं या दालचीनी पाउडर में नींबू के रस की कुछ बूंदे मिलाकर रात में प्रभावित स्थान पर लगाकर सो जाएं। सुबह गुनगुने पानी से चेहरा साफ करें।\nटूथपेस्ट (Toothpaste)\nमुंहासों के इलाज में टूथपेस्ट भी बहुत कारगार उपाय है। लेकिन इसके लिए साधारण टूथपेस्ट का ही इस्तेमाल करना चाहिए। जेल वाले टूथपेस्ट का इस्तेमाल करने से बचें। बर्फ से मुंहासों को सेक कर, प्रभावित स्थान पर आधे घंटे के लिए टूथपेस्ट लगाकर छोड़ दें।\nस्टीम (Steam)\nस्टीम लेने से भी चेहरे के मुंहासे खत्म होते हैं। जब चेहरे पर भाप ली जाती है तो रोम छिद्र खुल जाते हैं, जिससे त्वचा खुल कर सांस लेती है और इस पर मौजूद गंदगी और तेल साफ हो जाते हैं। इतना ही नहीं पोर्स में मौजूद बैक्टीरिया भी स्टीम लेने से खत्म हो जाते हैं।\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन एक एंटीसेप्टिक, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीवायरल एजेंट है। लहसुन में मौजूद सल्फर (Sulphar) भी मुंहासों को जल्दी ठीक करने के लिए उपयोगी है। उपचार के लिए लहस��न की कली को दो टुकड़ों में काटकर मुंहसों पर रगड़ें और पांच मिनट के लिए छोड़ दें। उसके बाद चेहरा धो लें।\nबेकिंग सोडा (Baking Soda)\nबेकिंग सोडा चेहरे का अतिरिक्त तेल, गंदगी और मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाने में मदद करता है। नींबू के रस के साथ बेकिंग पाउडर लेकर मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को मुंहासों पर लगाएं और सूखने तक छोड़ दें। इस मिश्रण को लगाने से जलन महसूस हो सकती है इसलिए इसे बहुत देर त्वचा पर नहीं रखना चाहिए।\nशहद (Honey)\nशहद भी मुंहासों को जल्द से जल्द ठीक करने का गुण रखता है साथ ही, यह एंटीबायोटिक दवाओं का भी एक स्त्रोत है, इसलिए इसमें बैक्टीरिया को मारने की भी क्षमता होती है। उपचार के लिए रूई में थोड़ा सा शहद लेकर प्रभावित स्थान पर लगाएं और तकरीबन आधे घंटे के लिए छोड़ दें। शहद में दालीचीनी का पाउडर मिलाकर भी लगाया जा सकता है।\nखीरा (Cucumber)\nखीरा में मौजूद पोटेशियम के कारण खीरा लगाने से त्वचा को ठंडक मिलती है। खीरा में विटामिन ए, ई और सी भी मौजूद होते हैं। उपचार के खीरा को पीसकर, उसे चेहरे पर लेप की तरह लगाएं। तकरीबन 15 मिनट बाद चेहरा धो लें। इससे चेहरे के पोर्स की सफाई होगी साथ ही त्वचा के बैक्टीरिया भी खत्म होंगे।\nपपीता (Papaya)\nपपीता, एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन ए का उच्च स्त्रोत है। पपीते में मौजूद एंजाइम चेहरे पर मौजूद मुंहासों की सूजन को कम करके चेहरे को चिकना बनाते हैं। उपचार के लिए पपीते को क्रश करके चेहरे पर फेस मास्क की तरह लगाएं और तकरीबन 15 मिनट बाद चेहरा धो दें। इसके अलावा पपीते में शहद मिलाकर भी चेहरे पर लगाया जा सकता है।\nदालचीनी पाउडर (Cinnamon Powder)\nदालचीनी पाउडर भी मुंहासों के इलाज के लिए बेहद अच्छी घरेलू दवा है। दालचीनी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। दालचीनी को सेब के सिरका के साथ मिलाकर मुंहासों पर लगाने से मुंहासे ठीक होते हैं। दालचीनी के साथ शहद मिलाकर भी चेहरे पर लगाया जा सकता है।\n\n\n", + "Disease: गंजापन (Baldness)\n\nDescription: \nपुरुषों में गंजापन (Baldness) एक आम समस्या है। दरअसल गंजापन एक परिस्थिति है जिसमें पुरुषों के सिर पर या तो कहीं बाल नहीं होते हैं या फिर कम बाल होते हैं। गंजापन को चिकित्सकीय भाषा में एलिपिसिया (Alopecia) कहते हैं।\n\nSymptoms: \n- कंघी करते हैं और बालों का गुच्छा आपके हाथों में होता है\n- तनाव होना\n- बाल आपके कपड़ों के साथ भी चिपके होते हैं\n- बालों का गिरना : आमतौर पर हमारे रोज़ 20 से 50 ��ाल गिरते हैं। सर में रुसी होने से भी बाल झड़ते हैं, अगर इससे ज्यादा बाल झड़ते है तो रुसी भी कारण हो सकती है\n- बालों का झड़ना (Baldness)\n- बालों में हाथ डालते हैं, तो आपके बाल हाथ में आ जाते हैं\n\nReasons: \nगंजापन मुख्य तौर पर बालों की जड़ों (Hair Follicles) के अवरुद्ध हो जाने या बंद हो जाने के कारण होता है। पुरुषों में गंजेपन की शिकायत सबसे ज्यादा होती है। इसकी कई वजहे हैं:-\n- हार्मोनल बदलाव\n- एजिंग\n- आनुवांशिकता\n- शरीर में आइरन व प्रोटीन की कमी\n- वजन का तेजी से घटना\n- ज्यादा मात्रा में विटामिन ए का सेवन\n- बालों की जड़ों में संक्रमण\n- ट्रॉमा\n- गर्भनिरोधक गोलियों का ज्यादा सेवन\n- दवाओं के साइड इफेक्ट\n- तनाव\n- महिलाओं में प्रसव के दौरान\n- महिलाओं में मेनोपॉज के दौरान\n- कैंसर के इलाज कीमोथेरेपी के बाद\n- टाइट हेयर स्टाइल\n- थायराइड की बीमारी\n- बालों में डाय, कलर और केराटिन हेयर ट्रीटमेंट से\n- डायट में बदलाव करने से\n- लंबी और गंभीर बीमारी से\n- एनीमिया होने पर\n- एनाबोलिक steroids गोली खाने से\n\nTreatments:\nगंजापन के सामान्य उपचार (General Treatments for Baldness)\n- बालों के लिए दही कंडीशनर का काम करता है। यह बालों के गंजेपन को दूर करने में काफी काम करता है।\n- प्याज में मौजूद सल्फर सिर में रक्त के प्रवाह को तेज करता है। जिससे गंजपन की बीमारी ठीक हो सकती है।\n- चुकंदर के पत्तों को मेंहदी के पत्तों के साथ ग्राइंडर में पीस कर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को सिर पर लगा गुनगुने पानी से धोने से काफी असर दिखेगा।\n- गंजेपन से लड़ने के लिए नींबू के रस को कई तरह के तेलों में मिला कर लगाएं और सिर की मालिश करें।\n- मेंथी के बीज को कूट कर पेस्ट बना लें और सिर में जहां बाल नहीं है वहां लगा लें। एक घंटा तक पेस्ट लगा हुआ छोड़ दें। बाद में सिर को पानी से धो लें। काफी असर होगा।\n- रात में सोते समय बालों की मालिश नारियल तेल से दस मिनट तक करें।\n- गंजापन के इलाज के लिए ऐलोवेरा जेल को सिर में लगाएं और अच्छी तरह से सिर की मसाज करें।\n- अरहर की दाल को पीस कर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को सिर के प्रभावित क्षेत्र में लगाएं, जल्द ही असर दिखने लगेगा।\n- गंजेपन से बचने के लिए अरंडी के तेल को सिर में लगा कर अच्छी तरह से मसाज करें।\n- बालों का झड़ना\n\nHome Remedies:\nबालों के झड़ने को रोकने के लिए तो हम-आप लाखों जतन करते हैं, मगर गंजापन को अंतिम नियति मान कर कोई उपाय करना ही छोड़ देते हैं। हम मानते हैं कि इसक�� एक ही उपाय है – हेयर ट्रासप्लांट या फिर सर्जरी।\nआपको इतनी जल्दी निराश होने की जरुरत नहीं है। हेयर ट्रासप्लांट या फिर सर्जरी में लाखों रुपये खर्च करने से बेहतर है कि अगर आप कुछ घरेलू और कुदरती नुस्खों (Herbal and Home Remedies for Baldness) को आजमाएंगे तो संभव है रेगिस्तान में भी दरख्त उग आएं।\nआइए जानते हैं उन कुदरती उपायों के बारे में जिससे गंजापन को काफी हद तक कम किया जा सकता है।\n1. अरंडी का तेल (Castor Oil)\nअरंडी का तेल गंजापन को दूर करने का सबसे कारगर दवा है। यह एक आद्रर्क यानि मॉस्चराइजिंग एजेंट की तरह काम करता है। यह बाल और त्वचा की कई और समस्याओं में काम करता है। गंजेपन को भगाने के लिए आपको बस और कुछ नहीं अपने हथेली पर थोड़ा अरंडी का तेल लें और इसे सिर में लगा कर अच्छी तरह से मसाज करें। यह आपके बालों की जड़ों को पोषण देगा और बहुत जल्द आपके सिर पर बाल उगने लगेंगे।\n2. अरहर की दाल (Toor Daal)\nगंजेपन की इलाज के लिए अरहर की दाल भी बेस्ट है। अरहर की दाल को पीस कर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को सिर के प्रभावित क्षेत्र में लगाएं, जल्द ही असर दिखने लगेगा।\n3. ऐलोवेरा जेल (Aloe Vera Gel)", + "Disease: गंजापन (Baldness)\nऐलो वेरा एक हर्बल पौधा है और यह बाल और त्वचा के लिए काफी ही प्रभावकारी दवा है। ऐलो वेरा जेल बालों के ग्रोथ में काफी काम करता है। गंजापन के इलाज के लिए कुछ नहीं बस ऐलोवेरा जेल को सिर में लगाएं और अच्छी तरह से सिर की मसाज करें। जल्द ही असर दिखने लगेगा। यह बालों की जड़ में बंद हुए छिद्र को खोल देता है।\n4. नारियल तेल (Coconut Oil)\nनारियल तेल बालों की जड़ों को पोषण देता है। रात में सोते समय बालों की मालिश नारियल तेल से दस मिनट तक करें। यह hair follicles को बढ़ने में मदद करेगा। सुबह उठ कर बालों को धो लें। आप नारियल तेल में नींबू का रस भी मिला सकते हैं।\n5. काली मिर्च (Black Pepper)\nकाली मिर्च गंजापन के इलाज में काफी फायदेमंद है। काली मिर्च और नींबू के बीज को मिला कर कूट लें और फिर उसका गाढ़ा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को बालों की जड़ों पर फैला कर लगा लें। काफी असर होगा।\n6. मेंथी के बीज (Methee)\nमेंथी के बीज भी गंजेपन को दूर करने में काफी कारगर होते हैं। मेंथी के बीज को कूट कर पेस्ट बना लें और सिर में जहां बाल नहीं है वहां लगा लें। एक घंटा तक पेस्ट लगा हुआ छोड़ दें। बाद में सिर को पानी से धो लें। काफी असर होगा।\n7. नींबू (Lemon)\nनींबू बहुत सारे बालों की परेशानी में काम आता ह��। मसलन, बालों के झड़ने-गिरने में, रुसी को खत्म करने में, ड्राई हेयर में। गंजेपन से लड़ने के लिए नींबू के रस को कई तरह के तेलों में मिला कर लगाएं और सिर की मालिश करें तो काफी असर दिखेगा।\n8. चुकंदर के पत्ते (Beetroot Leaves)\nचुकंदर के पत्ते गंजेपन को दूर करने की अचूक दवा है। चुकंदर के पत्ते को पानी में उबाल लें। जब वह काफी मुलायम हो जाए तो उसमें मेंहदी के पत्ते मिला दें और फिर इसे ग्राइंडर मशीन में पीस कर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को सिर पर लगा कर कुछ देर के लिए छोड़ दें। बाद में गुनगुने पानी से सिर धो लें। काफी असर दिखेगा।\n9. प्याज (Onion)\nप्याज में मौजूद सल्फर सिर में रक्त के प्रवाह को तेज करता है। जिससे गंजपन की बीमारी ठीक हो सकती है। कुछ नही बस प्याज को काट कर उसका जूस निकाल लें और उसमें कुछ शहद मिला लें। और फिर इसे बालों की जड़ों पर लगा लें। यह बालों की जड़ में रक्त संचार को तो बढ़ाएगा ही साथ ही फंगस और बैक्टीरिया को भी मारेगा।\n10. दही (Curd)\nबालों के लिए दही कंडीशनर का काम करता है। यह बालों के गंजेपन को दूर करने में काफी काम करता है। बालों को झड़ने-गिरने से भी रोकता है। बालों में दही का मास्क लगाएं काफी बेहतर नतीजे आएंगे।\n\n\n", + "Disease: डीहाइड्रेशन (Dehydration)\n\nDescription: \nडीहाइड्रेशन यानि निर्जलीकरण। मनुष्य शरीर में पानी के कम हो जाने की अवस्था को डीहाइड्रेशन (Dehydration) कहते हैं। वैज्ञानिक भाषा में डीहाइड्रेशन को हाइपोहाइड्रैशन (Hypohydration) कहते हैं। शरीर में पानी की कमी (Pani ki Kami) के कारण शरीर से खनिज पदार्थ जैसे कि नमक और शक्कर कम हो जाते हैं। डीहाइड्रेशन के दौरान, शरीर की कोशिकाओं से पानी सूखता रहता है जिसके कारण शरीर के कार्य करने का संतुलन असामान्य हो जाता है।\n\nSymptoms: \n- घबराहट या कंपकंपी\n- कब्ज\n- चक्कर आना\n- मुंह का बार बार सूख जाना\n- सूखी त्वचा\n- प्यास ना बुझना\n- सिर में दर्द\n- सुस्ती\n- मांसपेशियों में ऐंठन\n- कमज़ोरी\n\nReasons: \n- शरीर में पानी की गंभीर समस्या कई बार जानलेवा भी हो सकती है।\n- शरीर से पांच प्रतिशत द्रव खत्म होने पर कमज़ोरी, प्यास, उबकाई, चिड़चिड़ापन होता है।\n- शरीर से दस प्रतिशत द्रव खत्म होने पर सिर दर्द, चक्कर और अंगों में सनसनाहट पैदा हो सकती है। शरीर की त्वचा नीली पड़ने लगती है और शरीर कमज़ोर हो जाता है।\n- शरीर से पंद्रह प्रतिशत द्रव खत्म होने पर देखने और सुनने की शक्ति पर असर पड़ता है। जीभ में सूजन हो जाती है और खाना निगलने में दिक्कत होती है।\n- शरीर से पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा द्रव खत्म होने पर इंसान की मृत्यु भी हो सकती है।\n- दस्त के कारण शरीर में हुए डीहाइड्रेशन से मनुष्य की मृत्यु के आसार ज्यादा होते हैं। गंभीर डीहाइड्रेशन (Pani ki Kami) की वजह से मनुष्य का ब्रेन डैमेज यानि उसके मस्तिष्क को हानि भी पहुंच सकती है। साथ ही हाइपोवोलेमिक शॉक का खतरा भी रहता है जिसमें शरीर के कई अंगों को हानि पहुंच सकती है।\n- यदि आपको चक्कर आ रहे हैं, या आप किसी भी कार्य को करने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं तो ऐसे समय में डॉक्टर को दिखाना बेहद आवश्यक होता है। दो दिन से ज्यादा कब्ज या बुखार रहने पर तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें।\n\nTreatments:\nडीहाइड्रेशन के उपाय (Treatment for Dehydration)\n- जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं।\n- नवजात बच्चों में डीहाइड्रेशन के उपचार (pani ki kami ka ilaj) के लिए बच्चे को मां का दूध व पानी पिलाते रहें। पानी में ओआरएस का घोल मिलाकर पिलाएं।\n- ज्यादा भागदौड़ वाला काम ना करें और जितना हो सके आराम करें।\n- धूप में घर से बाहर ना निकलें और ठंडी जगह पर बैठे रहें।\n- दूध, कॉफी, फ्रूट जूस जैसे पदार्थों का सेवन करने से बचें।\n- इलेक्ट्रोलाइट्स से युक्त स्पोर्ट्स ड्रिंक्स का सेवन अवश्य करें।\n\nHome Remedies:\nआपके शरीर की हर कोशिका ठीक ढंग से काम करे इसके लिए ऑक्सीजन (Oxygen) के साथ साथ पानी की भी आवश्यकता होती है। जब शरीर में पानी की कमी होती है तो यह स्थिति डिहाइड्रेशन या निर्जलीकरण कहलाती है।\nमुंह सूखा लगे, होंठों पर पपड़ी जम जाए, थकान हो, टॉयलेट कम जाना हो, चक्कर आएं तो इन्हें डिहाइड्रेशन के प्रारंभिक लक्षण समझकर, पेय पदार्थ अधिक मात्रा में लेना शुरू कर देना चाहिए।\nडिहाइड्रेशन की समस्या को गंभीरता से न लेने पर इसके घातक परिणाम हो सकते हैं।\nआइए आपको बताते हैं कि डिहाइड्रेशन की समस्या को घरेलू नुस्खों से किस तरह ठीक किया जा सकता है।\nडिहाइड्रेशन के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Dehydration)\nपानी पीने की मात्रा बढ़ाएं (Increase Water Intake)\nडिहाइड्रेशन से निपटने का सबसे पहला कदम है कि पानी की मात्रा बढाएं। पूरे दिन में तकरीबन दस गिलास पानी पीना बहुत जरूरी है। यदि आपको प्यास न भी लग रही हो तब भी पानी जरूर पिएं। सादा पानी पीना अच्छा न लग रहा हो तो पानी में नींबू या इलेक्ट्रॉल आदि डालकर भी पानी पिया जा सकता है।\nदही (Yogurt or Curd)\nउल्टी, दस्त आदि क��� कारण हुए डिहाइड्रेशन के लिए दही एक अच्छा उपचार है। यह इलेक्ट्रोलाइट्स (Electrolytes) का भी अच्छा स्त्रोत होती है, इसलिए पेट के लिए फायदेमंद होती है और आसानी से पच भी जाती है। उपचार के लिए दही को सादा या दही में काला नमक और भुना जीरा डालकर भी खाया जा सकता है।\nरसीले फल और सब्जियां (Watery Fruit and Vagetable)", + "Disease: डीहाइड्रेशन (Dehydration)\nयदि डिहाइड्रेशन की शुरूआत है तो रसीले फल और सब्जियों के सेवन से भी आराम संभव है। इन फल और सब्जियों में तरबूज, खरबूज, अंगूर, संतरा, स्ट्रॉबेरी, खीरा, ककड़ी, पपीता मूली, पालक, तोरी और टमाटर आदि हैं।\nकेला (Banana)\nशरीर में डिहाइड्रेशन की शिकायत पोटैशियम जैसे खनिज की कमी के कारण होती है। केले में पोटैशियम भरपूर होता है, ऐसे में यह शरीर की डिहाइड्रेशन की समस्या से निपटने का आसान उपाय है। उपचार के लिए दिन में दो केले खाए जा सकते हैं या केले की स्मूथी बनाकर भी पी जा सकती है।\nनारियल पानी (Coconut Water)\nनारियल पानी का एक गिलास डिहाइड्रेशन से निपटने में काफी कारगर है। नारियल पानी में उच्च इलेक्ट्रोलाइट्स होते हैं जो कि नारियल पानी को हाइड्रेटिंग पेय बनाते हैं। इसमें चीनी की अपेक्षा कैलोरी भी बहुत कम होती है।\nछाछ (Butter Milk)\nयदि आप दिनभर धूप में काम करते हैं या आपको किन्हीं कारणों से अधिक पसीना आता है तो भी आपको डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। इस तरह की समस्या से निपटने के लिए छाछ एक प्रभावी नुस्खा है। उपचार के लिए दिन में एक से दो गिलास छाछ पिएं।\nसूप (Soup)\nडिहाइड्रेशन से निपटने में सब्जियों के सूप भी प्रभावी असर दिखाते हैं। इसके लिए सूप में अजवायन, मूली और तोरी जैसी सब्जियां डालकर सूप तैयार करें। दिन भर में कम से कम एक बार सूप जरूर पिएं।\nनींबू पानी (Lemon water)\nनींबू पानी न सिर्फ शरीर को हाइडे्रट रखता है बल्कि शरीर के टॉक्सिन भी बाहर निकालता है। नींबू पानी पीने से ताजगी का एहसास होता है। नींबू पानी बनाने के लिए चीनी की जगह शहद का इस्तेमाल करें और एक चुटकी काली मिर्च भी डालें।\nजौ का पानी (Barley Water)\nजौ का पानी भी शरीर को हाइड्रेट रखने का अच्छा उपाय है। जौ के पानी से डिहाइड्रेशन के दौरान शरीर में हुई पोषक तत्वों की कमी की भरपाई होती है। यी आसानी से पच जाता है और शरीर को ठंडा रखता है। उपचार के लिए 4 कप पानी में एक कप जौ भिगा दें। उसके बाद इस पानी को लगभग 45 मिनट ढककर उबालें। जब अच्छी तरह उबल जाए तो इ�� पानी को छानकर गुनगुना रहने तक ठंडा करें और इसमें शहद मिलाकर पिएं। स्वाद बढ़ाने के लिए नींबू का रस भी मिलाया जा सकता है।\n\n\n", + "Disease: घमौरियां (Prickly Heat)\n\nDescription: \nघमौरियों को अंग्रेजी में प्रिकली हीट (Prickly Heat) कहते हैं। गर्मियों के मौसम में घमौरियां होना आम बात है। गर्मी के मौसम में शरीर से पसीना अधिक मात्रा में बहता है। यदि समय रहते इस पसीने को साफ़ ना किया जाए तो यह शरीर की त्वचा में ही सूख जाता है जिसके कारण पसीने की ग्रंथियां बंद हो जाती हैं और शरीर में घमौरी होने लगती हैं।\n\nSymptoms: \n- शरीर में खुजली होना\n- शरीर में जलन या कांटे सी चुभन महसूस होना\n- शरीर पर लाल-गुलाबी, छोटे दानों का उभरना\n- अधिक पसीना आना\n- कपड़ों से चुभन होना\n- थकावट महसूस होना\n\nReasons: \nघमौरी के दौरान शरीर में खुजली, हल्की सूजन और चुभन महसूस होने लगती है। घमौरी के दाने धूप के सीधे संपर्क में आने से बढ़ जाते हैं। आमतौर पर घमौरी कुछ दिनों में अपने आप सही हो जाती है लेकिन कुछ लोगों में यह हफ्तों और महीनों तक के लिए हो सकती है। इसलिए एक हफ्ते तक घमौरी के ठीक ना होने पर डॉक्टर से जरूर परामर्श लेना चाहिए। \nघमौरी (Prickly Heat) के कारण लोगों में थकावट (Heat Exhaustion) और धूप में चिड़चिड़ाहट की शिकायत भी होती है। घमौरी के कारण लू लगना का खतरा भी पैदा हो सकता है।\nघमौरियां भी कई प्रकार की होती हैं जैसे मिलिएरिया क्रिस्टलाइन (Miliaria Crystallina), मिलिएरिया रूब्रा (Miliaria Rubra) और मिलिएरिया प्रॉफंडा (Miliaria Profunda)। मिलिएरिया प्रॉफुंडा में सबसे अधिक खतरा रहता है और इसे वाइल्डफायर (Wildfire Rash) भी कहते हैं।\n\nTreatments:\nघमौरियों से बचाव का सबसे बेहतर उपाय होता है गर्मी से बचकर रहना। इसके अलावा घमौरियों (Ghamoriyan) से बचाव के कुछ अहम उपाय निम्न हैं:\n- सिंथेटिक फैब्रिक से बने वस्त्रों को ना पहनें।\n- सूती और ढीले ढाले कपड़े पहनें।\n- खूब पानी पिएं और नहाएं।\n- बाहर से घर लौटने के कुछ देर बाद स्नान करें।\n- शरीर के हिस्सों को ताज़ा हवा लगने दें।\n- मसालेदार भोजन से बचें। सादा भोजन ही खाएं।\n- बारिश के पानी से स्नान करने से शरीर पर निकली फुंसियां और दानें दूर होते हैं।\n- रोजाना सुबह नीम की चार-पांच पत्तियां चबाएं।\n- शरीर पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाएं।\n- नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर इस पानी से स्नान करें।\n- नारियल के तेल में कपूर मिलाकर इस तेल से पूरे शरीर की मालिश करें।\n- कैलामाइन लोशन का प्रयोग करें।\n- गीले शरीर पर पाऊडर ना लगाएं। जरूरत से ज्यादा पाऊडर का प्रयोग करने से भी बचें।\n\nHome Remedies:\nगर्मियों में घमौरियों की समस्या आम है। ज्यादा पसीना आने या गर्मी में रहने पर बड़ों, बच्चों, यहां तक कि नवजातों (Infants) में भी घमौरी की समस्या हो जाती है। घमौरी होने पर छोटे-छोटे चुभने वाले दानें पीठ, गर्दन तथा शरीर के अन्य हिस्सों पर निकल आते हैं।\nकई बार बैक्टीरियल इंफेक्शन (Bacterial Infection) और शरीर का वजन ज्यादा होने से भी घमौरी निकलने की समस्या होती रहती है। यूं तो मौसम में बदलाव होते ही घमौरी की समस्या खुद ब खुद ठीक हो जाती है लेकिन कई दफा समस्या इतनी बढ़ जाती है कि मौसम में बदलाव होने तक का समय काटना भी मुश्किल होता है। ऐसे में कुछ घरेलू उपचारों से घमौरियों से निजात संभव है।\nघमौरियों से राहत के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Prickley Heat)\nओटमील (Oatmeal)\nघमौरियों से निजात के लिए ओटमील बहुत बढ़िया नुस्खा है। ओटमील से घमौरियों में होने वाली जलन (inflammation), चुभन और खुजली (itching) से राहत मिलती है। उपचार के लिए ठंडे पानी से भरे हुए टब में एक कप ओटमील डालें। जब तक पानी दूधिया रंग हो तब तक इंतजार करें और इस पानी में तकरीबन आधा घंटा बैठें। इस उपाय को हर रोज दो बार करें।\nठंडा उपचार (Cold Compress)\nघमौरी प्रभावित स्थान पर ठंडी सिकाई करने से भी तुरंत आराम मिलता है। बर्फ के कुछ टुकड़ों को कपड़े में लपेटकर प्रभावित स्थान पर सिकाई करें। लगातार तकरीबन 10 मिनट तक ऐसा करें। हर चार से छह घंटे पर ऐसा करें। इससे घमौरियां ठीक हो जाएंगी।\nचंदन का पाउडर (Sandalwood Powder)", + "Disease: घमौरियां (Prickly Heat)\nचंदन के पाउडर की ठंडक भी घमौरियों से निजात दिलाने में प्रभावी है। उपचार के लिए चंदन के पाउडर में पानी मिलाकर, लेप बनाएं और प्रभावित स्थान पर लगाएं। इसके अलावा पाउडर की तरह चंदन पाउडर को घमौरियों पर छिड़का भी जा सकता है।\nबेकिंग पाउडर (Baking Powder)\nबेकिंग पाउडर भी घमौरियों से राहत देने का अच्छा उपाय है। यह मृत त्वचा को हटाकर, गंदगी को साफ करता है जो कि खुजली और जलन का कारण होते हैं। उपचार के लिए एक कप ठंडे पानी में एक चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर उसमें एक साफ कपड़ा भिगाकर निचोड़ लें। इस कपड़े को प्रभावित स्थान पर तकरीबन 10 मिनट तक रखें। एक हफ्ते तक हर रोज 5 से 6 बार ऐसा करें।\nमुल्तानी मिट्टी (Fuller’s Earth)\nमुल्तानी मिट्टी भी घमौरी से निजात दिलाने का एक अच्छा घरेलू नुस्खा है। मुल्��ानी मिट्टी घमौरी की जलन से निजात दिलाती है और खुजली भी मिटाती है। उपचार के लिए 5 चम्मच मुल्तानी मिट्टी में गुलाब जल मिलाकर लेप बनाएं और इस लेप को प्रभावित स्थान पर लगाएं। इस उपाय को प्रतिदिन एक बार करें।\nएलोवेरा (Aloevera)\nएलोवेरा भी घमौरी से निजात के लिए बेहद अच्छा स्त्रोत है। एलोवेरा के जाते पत्तों का गूदा लेकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। तकरीबन 20 मिनट लगा रहने दें और उसके बाद धो दें। प्रतिदिन दो बार ऐसा करने से घमौरियां ठीक हो जाएंगी।\nबेसन (Gram Flour)\nबेसन शरीर का तेल सोख लेता है जिससे घमौरी के दाने जल्दी सूख जाते हैं। यह मृत त्वचा को भी साफ करता है और जलन से राहत देता है। उपचार के लिए बेसन की कुछ मात्रा में पानी मिलाकर लेप बनाएं। इस लेप को प्रभावित स्थान पर 10 से 15 मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें। इस उपाय को हर रोज एक बार करें। एक सप्ताह में घमोरियां ठीक हो जाएंगी।\nकच्चे आम (Raw Mango)\nकच्चा आम शरीर की गर्मी को ठंडा करने में बेहद प्रभावशाली हैं। ऐसे में कच्चे आम का पना (एक प्रकार का पेय) बनाकर पीने से गर्मी में राहत मिलती है। पना बनाने के लिए कच्चे आम को उबालकर उसका गूदा अलग करें और ठंडे पानी में मिला लें। इस पानी में स्वादानुसार चीनी, काला नमक और भुना जीरा मिलाएं। इसे हर रोज दो बार पीएं।\nखीरा (Cucumber)\nखीरे में शरीर को ठंडा रखने का गुण होते हैं जो कि घमौरी से भी बचाते हैं। उपचार के लिए खीरे के पतले-पतले टुकड़े काटकर नींबू मिले हुए ठंडे पानी में कुछ देर भिगाकर रखें। इसके बाद इन टुकड़ों को प्रभावित स्थान पर कुछ देर रखें। ऐसा करने से भी घमौरियां जल्दी ठीक हो जाती हैं और खुजली तथा जलन से भी राहत मिलती है।\n\n\n", + "Disease: स्कर्वी (Scurvy)\n\nDescription: \nयह रोग भोजन में विटामिन सी (Vitamin C) जिसे एस्कोर्बिक एसिड (Ascorbic acid) भी कहा जाता है, की कमी से होता है। मनुष्यों में कोलाजेन के बनने और आयरन के अवशोषण के लिए विटामिन सी की आवश्यकता होती है जो कि हमें विभिन्न फलों और सब्जियों से मिलते हैं, लेकिन विटामिन सी की कमी होने से शरीर में रक्त की भी कमी हो जाती है।\n\nSymptoms: \n- मसूड़ों में खून आना\n- सूखे और दो मुंहें बाल\n- पैरालायसिस जैसा महसूस करना\n- वजन का न बढ़ना\n- स्किन डिस्ऑर्डर\n\nReasons: \nस्कर्वी के कारण (Reasons of Scurvy)\nस्कर्वी का पहला कारण भोजन में पर्याप्त विटामिन सी (Deficiency of Vitamin C) का न होना या शरीर को पर्याप्त विटामिन सी न मिलना है। इसके अलावा शरीर पर पर्याप्त ध्यान न देना या सम्पूर्ण भोजन न करने की वजह से भी यह रोग हो सकता है।\nविटामिन सी की कमी सबसे पहले समुद्र के जरिये व्यापार करने वाले व्यापारियों में देखने को मिला था जो लंबे समय तक घर से बाहर रहते थे और उन्हें प्रॉपर खाना नहीं मिल पाता था। विटामिन सी पानी में घुलनशील है यानि शरीर न तो इसे बनाता है और न ही स्टोर करके रखता है इसलिए बेहतर स्वास्थ्य के लिए समय समय पर इसका शरीर में पहुंचना जरूरी है। अन्य कारण जिनसे स्कर्वी रोग हो सकता है, निम्नलिखित हैं-\n- बच्चों को गाय का दूध ठीक तरह से उबालकर न पिलाने से भी स्कर्वी हो सकता है। \n- खाने में फल और सब्जियों की प्रचुर मात्रा न होने पर विटामीन सी शरीर को नहीं मिल पाता। \n- धूम्रपान या शराब का ज्यादा सेवन करने पर भी इस रोग से खतरा रहता है। \n- गर्भवती होने के दौरान खाने पीने का ध्यान न रखने पर भी स्कर्वी हो सकता है। \n\nTreatments:\nस्कर्वी का उपचार (Treatment of Scurvy)\nकी जांच करेगा और रोग से संबंधित कुछ सवाल पूछेगा। यह बहुत जरूरी है कि डॉक्टर द्वारा बताए गए दिशा निर्देशों का पालन किया जाए और बताई गई दवाओं को भी नियमित समय पर खाया जाए। \nइसके उपचार के दौरान आपके शरीर में विटामिन सी की मात्रा को नॉर्मल किया जाता है। आपके लिए विटामिन सी की प्रचुर मात्रा से संबंधित जानकारी डॉक्टर, आपकी उम्र, जेंडर और आपके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर देगा। इसी के अनुसार आपको अपना डाइट चार्ट बनाना होगा।\nबहुत सी चीजें हैं जिनका ध्यान रखकर स्कर्वी होने से बचा जा सकता है या स्कर्वी होने के खतरे को कम किया जा सकता है।\n-ध्यान रहे कि डाइट में विटामिन सी की प्रचुर मात्रा हो जिसमें, बेरी, खटटे रसीले फल जैसे नींबू, मौसमी, संतरा आदि , हरी मिर्च, हरी पत्तेदार सब्जियां, तरबूज और खरबूज आदि शामिल हों।\n-डाइट में कई तरह के पौष्टिक चीजें शामिल होनी चाहिए, जिससे शरीर को संपूर्ण विटामिन मिल सकें।\n-धूम्रपान को छोड़ना\n\nHome Remedies:\nस्कर्वी रोग विटामिन सी से जुड़ा हुआ है। विटामिन सी (एस्कोर्बिक एसिड or Ascorbic Acid) की कमी होने पर स्कर्वी रोग होता है। स्कर्वी रोग होने का दूसरा कारण है तंत्रिका में तनाव यानि कि नर्वस टेंशन।\nस्कर्वी रोग में मसूडों से खून आना, थकावट और शरीर में कमजोरी होना आदि कुछ लक्षण नजर आते हैं। आइए जानते हैं कौन से घरेलू नुस्खों से स्कर्वी रोग से निजात पाई जा सकती है।\nस्कर्वी से बचाव के लिए घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Scurvy)\nहरी मिर्च (Green Chillie)\nहरी मिर्च में विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है। हरी मिर्च खाना स्कर्वी रोग से बचने का सबसे अच्छा उपाय है। स्कर्वी के लिए लाल मिर्च का प्रयोग न करें क्योंकि लाल मिर्च हरी मिर्च के समान प्रभावी नहीं है।\nकीवी (Kiwi)\nकीवी में भी विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है। कीवी को सलाद के रूप में इस्तेमाल करके विटामिन सी की भरपाई की जा सकती है।\nआंवला (Indian Gooseberry)\nआंवला में भी विटामिन सी होता है। आंवला की सूखी कैंडी या आंवला का रस भी स्कर्वी रोग में फायदा देता है। इतना ही नहीं आंवले का मुरब्बा खाना भी स्कर्वी रोग के उपचार में लाभदायक है।\nअमचूर पाउडर (Dry Mango Powder)\nकच्चे आम को सुखाकर, उसे पीसकर पाउडर बना लें। यह अमचूर पाउडर खाने से पहले, हर रोज एक छोटी चम्मच खाएं। यह भी शरीर में विटामिन सी की कमी को पूरा करता है।\nस्ट्रॉबेरी (Strawberry)", + "Disease: स्कर्वी (Scurvy)\nस्ट्रॉबेरी विटामिन सी का उच्च स्त्रोत होती है। स्ट्रॉबेरी को सलाद, स्मूदी आदि किसी भी रूप में खाना स्कर्वी रोग में फायदा देता है।\nसंतरा (Orange)\nसंतरा में एस्कॉर्बिक एसिड की उच्च मात्रा होती है। रोजाना सुबह संतरे का एक गिलास जूस पिएं। इससे शरीर में विटामिन सी की कमी तो पूरी होगी ही साथ ही अन्य पोषक तत्व भी मिलेंगे, जो शरीर को स्वस्थ बनाएंगे।\nनींबू (Lemon)\nनींबू में विटामिन सी अधिक मात्रा में होता है। ऐसे में रोजाना नींबू का पानी पीना शरीर में विटामिन सी की कमी को पूरा करता है। स्वाद के लिए नींबू के साथ शहद भी मिलाया जा सकता है, लेकिन नींबू पानी में चीनी मिलाकर न पिएं।\nपपीता (Papaya)\nस्कर्वी रोग के उपचार में पपीता भी बेहद प्रभावी फल है। पपीता रोज खाने से भी शरीर में विटामिन सी की कमी पूरी होती है और स्कर्वी रोग से बचाव होता है।\nअजवायन के फूल (Thyme)\nस्कर्वी के उपचार के लिए अजवायन के फूल भी बेहद प्रभावी हैं। अजवायन के फूल में भी उच्च मात्रा में विटामिन सी मौजूद होता है। अजवायन के फूल को घरेलू नुस्खों के अलावा कई आयुर्वेदिक दवाओं में भी प्रयोग किया जाता है।\nबेल (Wooden Apple)\nबेलफल में साइट्रिक एसिड और ओक्जेलिक की उच्च मात्रा होती है। बेलफल का शरबत बनाकर या इसका गूदा निकालकर खाने से विटामिन सी की कमी को पूरी होती है, जिससे स्कर्वी रोग से बचाव होता है।\nब्रोकली (Broccli)\nलगभग100 ग्राम ब्रोकली में 89 मिलीग्राम विटामिन सी की मात्रा पाई जाती है। ऐसे में अपने खाने में ब्रोकली का इस्तेमाल भी विटामिन सी की कमी को पूरा करके शरीर को स्कर्वी रोग से बचाता है।\nशिमला मिर्च (Bel Pepper)\nशिमला मिर्च में भी विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है। पीली शिमला मिर्च में सबसे अधिक विटामिन सी पाया जाता है, इसके बाद क्रमश लाल और हरी शिमला मिर्च में।\nपार्सले (Parsley)\nधनिया की तरह पार्सेले में भी विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है। स्कर्वी रोग से बचाव के लिए पार्सेले का प्रयोग भी घरेलू उपचार के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है।\n\n\n", + "Disease: बेरीबेरी (Beriberi)\n\nDescription: \nबेरीबेरी (Beriberi) विटामिन बी 1 की कमी से होने वाला रोग है। ये हमारे शरीर के बहुत से हिस्सों जैसे मांसपेशियां, हृदय और पाचन शक्ति आदि को प्रभावित करता है। दक्षिण पूर्व एशिया के वे हिस्से जहाँ का मुख्य भोजन चावल है, वहां के लोग इससे काफी संख्या में पीड़ित हैं।\n\nSymptoms: \n- बोलने में तकलीफ होना\n- मानसिक रूप से कंफ्यूज रहना\n- हाथ या पैरों में सुन्नपन लगना\n\nReasons: \nबेरी बेरी रोग के कारण (Reasons of Berberi)\nबेरीबेरी रोग का प्रमुख कारण तो विटामिन बी 1 की कमी का होना ही है। जो लोग प्रचुर मात्रा में विटामिनयुक्त भोजन करते हैं उनमें यह बीमारी कम होती है। \nअन्य कारण(Other Reason of Beriberi)\n- शराब के कारण भी संभव है कि आपका शरीर विटामिन बी 1 को अवशोषित (Absorb) न कर पा रहा हो। ऐसी अवस्था में बेरीबेरी रोग हो जाता है। - डॉक्टर मानते हैं कि जेनेटिक कारणों से भी शरीर में विटामिन बी 1 की कमी हो जाती है। \n- गर्भवती महिला और कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसमें हाइपरथायरोडिज्म (Hyperthyroidism) यानि कि थायरॉइड ग्लैंड के ओवर एक्टिव वाले व्यक्ति को विटामिन बी 1 की अतिरिक्त मात्रा की जरूरत होती है।\n- कुछ बीमारियां जैसे लिवर डिजीज, शरीर में विटामिन बी 1 को अवशोषित नहीं होने देतीं। ऐसे समय में भी बेरीबेरी के होने का खतरा रहता है। \n- किडनी डायलिसिस भी बेरीबेरी रोग होने का रिस्क बढ़ा देती है।\n\nTreatments:\nबेरीबेरी का उपचार और बचाव (Treatment of Beriberi)\nबेरीबेरी का इलाज थायमिनीन सप्लीमेंट (Thiamine Supplement) से किया जाता है। जिसमें चिकित्सक ब्लड टेस्ट करवाता है जिससे यह पता चलता है कि शरीर विटामिन को कितनी अच्छी तरह से अवशोषित कर रहा है। डॉक्टर आपको थायमिनीन बेस्ड खास तरह के भोजन को लेने के बारे में भी दिशा निर्देश देगा जिसमें आपको अनाज, अंडा, मीट, बीट, सूखे मेवे, टमाटर और संतरे का जूस आदि लेने की सलाह दी जाएगी।\nचावल, अधपका और कच्चा मीट आदि विटामिन बी 1 को आपके शरीर में अवशोषित न करने के लिए समस्या बन सकते हैं। बेरीबेरी रोग से बचने के लिए पौष्टिक और बैलेंस डाइट लेनी चाहिए जिसमें थायमिनीन की उचित मात्रा हो।\nगर्भवती और बच्चों को दूध पिला रही मांओं को भी समय-समय पर शरीर में विटामिन की जाँच कराते रहना चाहिए। साथ ही ऐसे व्यक्ति जो एल्कोहल का सेवन ज्यादा करते हैं उन्हें भी समय समय पर विटामिन की कमी की जांच करवाते रहना चाहिए।\n\nHome Remedies:\nबेरीबेरी रोग विटामिन बी1 की कमी के कारण होता है। विटामिन बी 1 थिअमिन (thiamine) के नाम से भी जाना जाता है जो कि शरीर में मौजूद कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) को ग्लूकोज (Glucose) में परिवर्तित करने के लिए बेहद जरूरी है।\nथिअमिन की कमी से शरीर में ग्लूकोज की कमी हो जाती है जिससे शरीर में ऊर्जा की कमी होती है और शरीर पूरी तरह कार्य नहीं कर पाता न ही शरीर का विकास हो पाता है। बेरीबेरी में पैरों में सुन्नपन (Numbness) की शिकायत हो जाती है।\nसाथ ही, जी मिचलाना और बेहोशी की अवस्थाएं भी बन जाती हैं। जोड़ सुचारू रूप से काम नहीं करते और कई दफा दिमागी कमजोरी भी संभव है। बेरीबेरी रोग में कई घरेलू उपचार प्रभावी हैं।\nआइए जानते हैं ऐसी ही कुछ घरेलू खाद्य सामग्रियों के बारे में जो बेरीबेरी में लाभप्रद हैं।\nबेरीबेरी से बचाव के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Beriberi)\nबादाम (Almond)\nबादाम में आवश्यक थिअमिन होता है जो कि बेरीबेरी रोग से बचाव के लिए बेहद आवश्यक है। ऐसे में रोजाना बादाम खाया जाना अति आवश्यक है। बादाम में सभी जरूरी मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं जो कि शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। उपचार के लिए रोजाना रात में तकरीबन 15 बादाम पानी में भिगा दें और सुबह उन्हें छीलकर धीरे धीरे चबाकर खाएं।\nसूरजमुखी के बीज (Sunflower Seed)", + "Disease: बेरीबेरी (Beriberi)\nसूरजमुखी के बीजों में सेलेनियम (Selenium), टैनिन (Tannis) और ओमेगा 3 फैटी एसिड जैसे यौगिक होते हैं, जिसके कारण यह एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भी भरपूर होते हैं। सूरजमुखी के इन बीजों में विटामिन बी 1, बी 5 और बी 6 भी मौजूद होते हैं। सूरजमुखी के बीज का स्वाद अखरोट जैसा होता है, इसलिए इसे यूं भी चबाया जा सकता है। रोजाना एक बड़ी चम्मच सूरजमुखी के बीजों को चबाना चाहिए।\nफली या बीन्स (Beans)\nबीन्स में बेहद पोषक तत्व होते हैं। बी��्स में प्रोटीन, कैल्शियम, खनिज और थिअमिन भी होती है जो कि हड्डियों और मांसपेशियों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। पूरे दिन में दो बार बीन्स की सब्जी जरूर खाएं।\nआलू (Potato)\nआलू भी पोषक तत्वों से युक्त खाद्य पदार्थ है। इसमें फाइटोकेमीकल्स (phytochemicals), आयरन (iron), पोटेशियम (potessium) , तांबा (copper), विटामिन सी, विटामिन बी 1 और विटामिन बी 6 की उच्च मात्रा होती है। ज्यादा लाभ के लिए आलू को बेक करके खाना चाहिए। बेरीबेरी रोग में रोजाना दो आलू भून (baked) कर जरूर खाएं।\nब्राउन राइस-भूरा चावल (Brown Rice)\nब्राउन राइस यूं तो गरीबों का खाना माना जाता है। लेकिन सफेद चावल की तुलना में ब्राउन राइस में कहीं अधिक पोषक तत्व होते हैं जो शरीर के लिए लाभदयक होते हैं। ब्राउन राइस में थिअमिन भी उच्च मात्रा में होता है। बेरीबेरी रोग से बचने के लिए रोजाना दो कटोरे ब्राउन राइस खाना आवश्यक है।\n\n\n", + "Disease: इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (Erectile Dysfunctions)\n\nDescription: \nसंभोग के समय लिंग में इरेक्शन अथवा तनाव खत्म हो जाने को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (Erectile Dysfunctions) अर्थात स्तंभनदोष कहा जाता है। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के कई प्रकार हो सकते हैं जैसे- कई लोगों में सेक्स के बारे में कल्पना करने भर से ही इरेक्शन हो जाता है, जबकि कुछ लोगों को यह रतिक्रिया के दौरान भी बिलकुल भी नहीं होता।\n\nReasons: \nइरेक्टाइल डिस्फंक्शन के कारण (Causes of Erectile Dysfunctions)\nकुछ लोगों का मानना है कि इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का ताल्लुक उम्र बढ़ने होता है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं हैं। ईडी हाइपरटेंशन, डायबिटीज व अवसाद आदि के कारण भी होता है। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन शारीरिक और मानसिक कारणों से भी हो सकता है।\nयदि इरेक्शन संभोग के अलावा किसी विशेष समय जैसे सुबह सोकर उठने पर, पेशाब करते समय, हस्तमैथुन के दौरान या सेक्स के बारे में सोचने पर होता है तो ये मानसिक कारणों की वजह से हो सकता है।\nध्यान रहे कि तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन्स का स्तर बढ़ या बिगड़ जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कॉर्टिसोल प्रमुख हार्मोन होते हैं। इनकी वजह से शरीर में कई अनचाहे बदलाव होते हैं और नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली बिगड़ जाती है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ने लगता है।\nहालांकि मात्र 10 प्रतिशत मामलों में ही ईडी का संबंध मानसिक स्थिति से होता है, जबकि अधिकतर मामलों में यह हार्मोनल कारणों या फिर डायबिटीज व ब्लड प्रेशर आदि रोगों के कारण होता है।\nइरेक्टाइल डिस्फंक्शन के शारीरिक कारण (Physical Causes of Erectile Dysfunctions)\nडॉक्टरों के अनुसार इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लगभग 90 प्रतिशत मामलों में कारण शारीरिक होते हैं, बाकी 10 प्रतिशत मामलों में ही इसके कारण मानसिक होते हैं। इसके कई अन्य कारण निम्न हैं: \n* शराब, स्मोकिंग, शुगर और तनाव इसके बड़े कराण होते हैं।\n* हॉर्मोंन में विसंगति इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की एक बड़ी वजह होती है।\n* लिंग के सख्त होने पर उसमें रक्त का बहाव होता है। जब कभी लिंग में रक्त के बहाव में कमी आती है तो वह ठीक से सख्त नहीं हो पाता और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं।\n* न्यूरॉलजी से जुड़ी समस्याएं (नर्वस सिस्टम में आई किसी कमी) भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का कारण हो सकती हैं।\n\nTreatments:\nइरेक्टाइल डिस्फंक्शन का उपचार (Treatment of Erectile Dysfunctions)\n\nHome Remedies:\nयूं तो इस समस्या के उपचार की शुरुआत खान-पान में सुधार व व्यायाम, ध्यान व योग आदि करने से की जाती है, लेकिन यदि इससे कोई लाभ नजर न आए तो इसके चिकित्सकीय उपचार किये जाते हैं। ट्रीटमेंट डॉक्टर ईडी का उपचार करने से पहले इस समस्या के कारण का पता लगाता है। इसके लिए कई तरह के टेस्ट भी किए जाते हैं। और फिर निम्न उपचार माध्यमों की मदद ली जा सकती है -\nहॉर्मोन थेरपी (Hormones Therapy)\nअगर इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का कारण हॉर्मोन की कमी या गड़बड़ी है तो हॉर्मोन थेरपी की मदद से इसे दो से 2 से 3 महीनों के भीतर इसे ठीक कर दिया जाता है। इस ट्रीटमेंट का कोई खास साइड इफेक्ट भी नहीं होता है।\nब्लड सप्लाई (Blood Supply)\nलिंग में धमनियों में किसी प्रकार की रुकावट की वजह से रक्त के प्रवाह में कमी आ जाती है, तो ऐेसे में दवाओं की मदद से इस ब्लॉकेज को खत्म किया जाता है। इससे लिंग में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है और उसमें ठीक से तनाव आने लगता है।\nवैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा (Vaccum Pump, Injection Therapy and Viagra)\nवैक्यूम पंप, इंजेक्शन थेरपी और वायग्रा जैसे इलाज के माध्यमों की मदद से भी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन से निजात पायी जा सकती है। हालांकि कुछ डॉक्टरों का मानना है कि वैक्यूम पंप और इंजेक्शन थेरपी अब पुराने जमाने की चीजें हो चुकी हैं।\nसेक्स थेरपी (Sex Therapy)\nजैसा का हम बात कर चुके हैंकि ईडी के कुछ मामलों में समस्या शारीरिक न होकर मानसिक होती है। ऐसे मामलों में सेक्स थेरपी की मदद से रोगी को सेक्स संबंध�� विस्तृत जानकारी दी जाती है, जिससे वह अपने दैनिक व दांपत्य जीवन में सुधार करके इस समस्या से बच सकता है।\nब्लड प्रेशर या हृदय समस्याओं से बचाव (Blood Pressure and Heart Problems)", + "Disease: इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (Erectile Dysfunctions)\nलिंग के सख्त होने का मुख्य कारण उसमें रक्त का ठीक प्रकार से बहाव होता है। लेकिन जब कभी भी लिंग में खून के बहाव में कमी आती है, तो वह पूरी तरह सख्त नहीं हो पाता है और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या शुरू हो जाती है। ब्लड प्रेशर या हृदय संबंधी समस्याओं होने पर यह ज्यादा होता है इसलिए इन समस्याओं से बचना चाहिए।\nतनाव से बचें (Avoid Stress)\nतनाव के कारण भी इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या होती है। इसलिए इरेक्टाइल डिस्फंक्शन से बचने के लिए तनाव मुक्त रहें। योग, ध्यान व एक्सरसाइज करें और खान-पान में सुधार लाएं।\n\n\n", + "Disease: शीघ्रपतन या प्रीमेच्‍योर इजैकुलेशन (Premature Ejaculation)\n\nDescription: \nप्रीमेच्‍योर इजैकुलेशन (Premature Ejaculation) अर्थात शीघ्रपतन पुरुषों को होने वाली एक प्रकार की यौन समस्या है। इस समस्या में सेक्स के दौरान चरम या कामोताप (Orgasm) से पूर्व ही वीर्य स्खलित (Ejaculate) हो जाता है। शीघ्र पतन का सेक्स लाइफ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। क्या है शीघ्रपतन (Details of Premature Ejaculation in Hindi) अच्छे यौंन संबंधों के लिए जरूरी है कि दोनों ही पार्टनर संतुष्ट हो पाएं और चरम को प्राप्त करें, लेकिन शीघ्र पतन (Sighra Patan) की समस्या के चलते पुरुष समय से पहले ही स्खलित हो जाता है और महिला साथी को यौन संतुष्टि नहीं मिल पाती। मेडिकल साइंस की भाषा में कहा जाए तो, इंटरकोर्स आरम्भ होने के 60 सेकंड के अंदर ही अगर पुरूष का वीर्य-स्खलित हो जाए तो इसे शीघ्रपतन (Premature Ejaculation) कहा जाता है। \n\nReasons: \nशीघ्रपतन या प्रीमेच्‍योर इजैकुलेशन शीघ्रपतन के कारण (Causes of Premature Ejaculation)\nशीघ्रपतन के कई कारण जैसे- गलत तरीके से हस्तमैथुन, तनाव या चिंता, मस्तिष्कीय रसायनों का असुंतलन या खराब खान-पान व जीवनशैली आदि हो सकते हैं। हालांकि शीघ्रपतन (Shighrapatan ) का इलाज संभव है, कुछ बातों का ध्यान रखकर शीघ्रपतन की समस्या से निजात पाई जा सकती है और दांपत्य जीवन को दोबारा खुशहाल बनाया जा सकता है।\nशीघ्रपतन के कई अन्य कारण हो सकते हैं जैसे - बढ़ती उम्र तथा प्रोस्‍टेट की समस्‍या आदि। साथ ही डर, असुरक्षा, छुपकर सेक्स, शारीरिक व मानसिक परेशानी भी इस समस्या का एक कारण हो सकती है। इसके कारणों की सही जानकारी ह���ना जरूरी होता है।\nशीघ्रपतन के जोखिम (Risks of Premature Ejaculation)\nशीघ्रपतन का रोगी स्‍वभाव में चिड़चिड़ा हो जाता है, उसे सिरदर्द व तनाव जैसी शा‍रीरिक समस्‍याएं भी हो सकती हैं। कई बार देखा जाता है कि शीघ्रपतन से ग्रसित व्यक्ति की कुछ समय के बाद सेक्स में अरूचि भी होने लगती है व शारीरिक दुर्बलता भी हो सकती है।\nशीघ्रपतन का इलाज समय पर न किए जाने अथवा इसका ठीक प्रकार से इलाज न किए जाने पर रोग गंभीर रूप ले सकता है।\nशीघ्रपतन (Premature Ejaculation ) के किसी भी स्तर पर पुरुष अपनी स्खलन क्रिया को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं, जिस कारण वे अपने उत्थान को बनाने में असफल (Erectile Dysfunction) रहते हैं और उस वक्त वीर्य को स्खलित होने से रोक नहीं पाते जब वीर्यपात नहीं करना चाहिए।\n\nTreatments:", + "Disease: शीघ्रपतन या प्रीमेच्‍योर इजैकुलेशन (Premature Ejaculation)\nशीघ्रपतन या प्रीमेच्‍योर इजैकुलेशन के उपाय (Remedies of Premature Ejaculation in Hindi) शीघ्रपतन के कारण, प्रकार व स्तर के आधार पर इसका उपचार भी अलग-अलग हो सकता है। योग व एक्सरसाइज, कुछ विटामिन व जड़ी-बूटियों, आदि की मदद से इस समस्या को दूर किया जा सकता है। संसर्ग के बीच-बीच में ऊर्जा देने वाले तरल, जैसे ग्लूकोज, जूस, दूध, आदि का सेवन करने से भी आराम मिलता है । शीघ्रपतन का देसी उपचार (Home Remedies of Premature Ejaculation) कई लोग मानते हैं कि शीघ्रपतन (Premature Ejaculation​) के देसी उपचार के तौर पर कौंच के बीज, सफेद मूसली और अश्वगंधा के बीजों को बराबर मात्रा में मिश्री के साथ मिलाकर बारीक चूर्ण बना कर एक चम्मच चूर्ण सुबह और शाम एक कप दूध के साथ लेने से शीघ्रपतन और वीर्य की कमी आदि समस्याएं दूर होती हैं। शहद और अदरक का साथ सेवन करने से भी शीघ्रपतन (Shighrapatan) की समस्‍या दूर होती है। लहसुन भी इस समस्या को दूर करने में सहायक होता है। इसके लिये दिन में कच्‍ची लहसुन की चार कलियां चबाएं। इसके नियमित सेवन से पेट की समस्‍या के साथ-साथ शीघ्रपतन की समस्‍या भी दूर होती है। सौंफ को भी प्राकृतिक कामोत्‍तेजक के नाम से जाना जाता है। सौंफ के सेवन से कामेच्‍छा बढ़ती है और शीघ्रपतन की समस्‍या भी दूर होती है। योग व व्यायाम (Exercises for Premature Ejaculation) नियमित योग व व्यायाम से भी इस समस्या को दूर किया जा सकता है। इसके लिये आप केगल व्‍यायाम कर सकते हैं। इसके अलावा योग में योग की अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करें। इससे आप सेक्स का समय बढ़ा सकते हैं। वज्रोली मुद्रा से भी इजैकुलेशन के समय को बढ़ाया जा सकता है। अगर बार-बार संभोग करते समय स्खलन साथी और आप दोनों की इच्छा से पहले हो रहा हो तो डॉक्टर के सामने खुलकर अपनी समस्‍या को बताएं और अपने पार्टनर से भी इस बारे में खुलकर बात करें। इस समस्‍या का उपचार पूरी तरह से संभव है। \n\n\n", + "Disease: पिलाग्रा (Pellagra)\n\nDescription: \nपिलाग्रा विटामिन बी 3 की कमी से होने वाली बीमारी है। यह शरीर में नियासिन या ट्राईपटोफन की कमी या ल्यूसिन (Leucine) की अधिक मात्रा होने से होता है। यह बीमारी शरीर के प्रोटीन मेटाबोलिज्म को भी अव्यवस्थित कर देती है जिस कारण कई बीमारियां होती हैं जैसे कार्सीनॉइड सिंड्रोम (Carcinoid Syndrome)।\n\nSymptoms: \n- बालों का गिरना : आमतौर पर हमारे रोज़ 20 से 50 बाल गिरते हैं। सर में रुसी होने से भी बाल झड़ते हैं, अगर इससे ज्यादा बाल झड़ते है तो रुसी भी कारण हो सकती है\n- शरीर में लाल रंग के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं\n- इनसोमनिया\n- मानसिक रूप से कंफ्यूज रहना\n- नर्व डैमेज\n- धूप के प्रति अतिसंवेदनशील होना\n- सूजन - मुँह में छाले होना\n- कमज़ोरी\n\nReasons: \nपिलाग्रा होने के कई कारण हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं: \nपिलाग्रा के कारण (Causes of Pellagra)\n* नियासिन (Niacin) यानि विटामिन B3 की कमी के लिए जिम्मेदार हैं, फलस्वरूप अधिकांश पैथोलॉजी में एनएडी (NAD) का प्रोडक्शन भी बढ़ा है।\n* दूसरा कारण है जरूरी एमिनो एसिड यानि ट्राईपटोफन (Tryptophan) की कमी, जो मीट, मछली, अण्डों और मूंगफली में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसे हमारा शरीर खुद ही नियासिन में परिवर्तित कर लेता है।\n* तीसरा कारण है शरीर में ल्युसिन (Leucine) की अधिकता जो कि क्विनोलिनेट फोस्फोरिबोसिल ट्रांस्फरस (Quinolinate Phosphoribosyl Transferase i.e. QPRT) और नियासिन को निकोटिनामाइड मोनोनुक्लेओटाइड (Nicotinamide Mononucleotide) में बदल देती है।\nदवाइयों के कारण पिलाग्रा (Medicine Causing Peelagra)\nबहुत सी दवाएं भी पिलाग्रा (Pellagra) की वजह बनती हैं इनमे एंटीबायोटिक भी शामिल हैं। इसके साथ ही यह भी संभव है कि शरीर किन्हीं कारणों से नियासिन को शरीर में अवशोषित नहीं कर पा रहा हो। ऐसे में बेहतर होता है चिकित्सक से मिलकर इस संबंध में परामर्श किया जाए और डॉक्टर द्वारा बताए गए दिशानिर्देशों का पालन किया जाए।\nपिलाग्रा के अन्य कारक (Reason of Pellagra)\nयदि पिलाग्रा का इलाज समय पर ना हो तो 4 से 5 सालों में मरीज की मौत भी हो सकती है। कई कारक ऐसे भी हैं जो पिलाग्रा के रिस्क को बढ़ा सकते हैं, जैसे: \n* ज्यादा शराब पीना\n* एनोरेक्सिया न��्वोसा (Anorexia Nervosa) नामक बीमारी से पीड़ित होना\n* पाचन संबंधी बीमारी होना\n* खाने में ट्राईपटोफन (Tryptophan) की कम मात्रा लेना\n\nTreatments:\nडॉक्टरों के अनुसार अगर सामान्य खान-पान पर अगर ध्यान दिया जाए तो भी पिलाग्रा से बचा बचा जा सकता है। पिलाग्रा के रिस्क को कम करने के लिए निम्न बातों का ख्याल रखा जा सकता है: \nपिलाग्रा से बचाव (Treatment of Pellagra)\n* खाने में नियासिन (niacin) यानि विटामिन बी3 की मात्रा बढ़ाने से पिलाग्रा से बचा जा सकता है।\n* लाल मीट, मछली, पॉल्ट्री, फोर्टिफाइड ब्रेड, दाल और मूंगफली आदि में नियासिन की भरपूर मात्रा होती है।\n* यदि आप विटामिन विटामिन बी3 की कम मात्रा खाते हैं या किसी बीमारी के कारण आपका शरीर नियासिन अवशोषित नहीं कर पाता है तो तुरंत चिकित्सक से मिलें। इसके लिए आप नियासिन सप्लीमेंट या मल्टीविटामिन या मिनरल सप्लीमेंट भी ले सकते हैं।\nइन सप्लिमेंट में कम से कम 20 मिलीग्राम नियासिन होना चाहिये। यूँ भी हर रोज एक पुरुष को 16 मिलीग्राम और महिला को 14 मिलीग्राम नियासिन की जरूरत होती है।\n* टृायप्टोफन से भरपूर भोजन नियासिन के बनने में बड़ा रोल अदा करता है| इसके लिए आप समुद्री खाना, मीट, अंडा, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि खा सकते हैं। इसके अलावा दालें, मछली, दूध और यीस्ट को भी अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं।\n* एल्कोहल का इस्तेमाल न करें और एक हेल्दी डाइट प्लान (Healthy Diet Plan) बनाएं।\n\n\n", + "Disease: रिकेट्स (Rickets)\n\nDescription: \nसूखा रोग यानि रिकेट्स (Rickets), विटामिन डी की कमी से होता है। यह बच्चों में होने वाला रोग है जिसमें बच्चों की हड्डियां मुलायम हो जाती हैं। कई बार हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि साधारण दबाव से भी टूट जाती हैं। इसी कारण बच्चों के पैर टेढ़े और स्पाइन असामान्य होकर मुड़ जाती है। इस प्रकार के रोग को बड़ों में अस्थि-मृदुता (Osteomalacia) कहा जाता है।\n\nSymptoms: \n- हड्डियों में दर्द\n\nReasons: \nरिकेट्स बीमारी का एक मुख्य कारन विटामिन डी की कमी (Deficiency of Vitamin D) है। आहारनली से कैल्शियम और फास्फोरस के शोषण में सहायता के लिए विटामिन डी जरूरी होता है। बच्चों की हड्डियों में मजबूती के लिए भी कैल्शियम और फास्फोरस की जरूरत होती है, ऐसे में जब शरीर के रक्त में कैल्शियम और फास्फोरस की कमी महसूस होती है तो रक्त इसकी पूर्ति हड्डियों से करता है और अपना संतुलन बनाता है। नतीजतन हड्डियां मुलायम और हड्डियों की संरचना कमजोर हो जाती है।\nरिकेट्स के कारण (Causes of Rickets in Hindi)\nसूरज की रोशनी ना मिलना (Sun Light)- सन लाइट विटामिन डी का प्रमुख स्त्रोत है। लेकिन आजकल के माहौल में बच्चे घर के बाहर खेलना पसंद नहीं करते। माता पिता भी बच्चे को इंडोर एक्टिविटी में लगाना ही पसंद करते हैं। ऐसे में बच्चों को सूरज की रोशनी से पर्याप्त विटामिन डी नही मिल पाता।\nखाना (Food)- बच्चों को पौष्टिक खान पान ना मिल पाने के कारण भी विटामिन डी की कमी झेलनी पड़ती है। मछली का तेल, अंडे की जर्दी और दूध आदि में भी विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में होता है। अगर बच्चें की डाइट प्लान में यह चीजें ना हों तो उसे रिकेट्स (Rickets) का खतरा हो सकता है। \n\nTreatments:\nरिकेट्स (Rickets) के कारण ना सिर्फ शारीरिक दुर्बलता आती है बल्कि कई बार इस रोग के कारण बच्चों में अपंगता भी देखने को मिलती है। इस बीमारी से बचने के लिए कुछ आसान उपाय निम्न हैं: \nरिकेट्स से बचने के उपाय (Treatment of Rickets in Hindi)\n* बच्चों को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी का सेवन कराएं। \n* कुछ देर धूप में रहना भी जरूरी है इसलिये बच्चों को भी सन बाथ दें।\n* खाने पीने पर भी विशेष ध्यान दें। विटामिन सप्लिमेंट लिए जा सकते है साथ ही अंडे की जर्दी, मछली औए दूध का प्रचुर मात्रा में सेवन करें।\n* इसके साथ ही चिकित्सक से भी परामर्श लें। चिकित्सक बच्चे की हड्डियों को दबाकर उनकी नकारात्मकता को देखते हैं।\n* सूखा रोग की परिस्थिति को एक्स रे द्वारा भी जाना जा सकता है। साथ ही यूरिन और रक्त की जांच द्वारा भी बीमारी और उसमें हो रहे सुधार का पता लगाया जा सकता है।\n\n \n", + "Disease: घेंघा (Goiter)\n\nDescription: \nघेंघा यानि गोइटर (Goiter) रोग थॉयराइड ग्लैंड के असामान्य तरीके से बढ़ने के कारण होता है। घेंघा रोग अस्थाई भी हो सकता है जो कि समय के साथ खुद ही ठीक हो जाता है लेकिन कुछ कारणों में यह गंभीर होता है जिसे चिकित्सकीय सलाह की जरूरत होती है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।\n\nSymptoms: \n- कफज घेंघा होने पर जहां पैदा होता है उस स्थान की खाल के रंग जैसा ही होता है।\n- कफज घेंघा होने पर भारी, थोड़े दर्द वाला, छूने में ठंडा, आकार में बड़ा तथा ज्यादा खुजली वाला होता है।\n- मेदज घेंघा होने पर खुजली वाला, बदबूदार, पीले रंग की, छूने में मुलायम तथा बिना दर्द का होता है।\n- मेदज घेंघा होने पर रोगी का मुंह तेल की तरह चिकना होता है तथा उसके गले से हर समय घुर्र-घुर्र जैसी आवाज निकलती रहती है।\n- वातज घेंघा होने पर ग���्दन में सूजन और सुई के चुभने जैसा दर्द\n- वातज घेंघा होने पर गला और तालु सूखा रहता है\n\nReasons: \nघेंघा बहुत अधिक हाइपरथाइरॉडिज्म (hyperthyroidism) हार्मोन के स्त्रावित होने या हाइपोथाइरोडिज्म (hypothyroidism) के बहुत कम स्त्रावित होने या एकदम सामान्य होने पर भी हो सकता है। घेंघा रोग होने का मतलब है कि थॉयराइड ग्लैंड एब्नॉर्मल तरीके से बढ़ रही है। घेंघा रोग के विषय में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी निम्न है: \nघेंघा के विषय में जानकारी (Information of Goiters in Hindi)\n* खाने में आयोडीन की कमी से भी घेंघा रोग होता है।\n* घेंघा रोग में दूध से बने हुई पदार्थ, ईख के पदार्थ, खट्टी-मीठी चीजें, भारी तथा देर में पचने वाली चीजें, ज्यादा मीठी खाने वाली चीजें, मोटापा बढ़ाने वाला भोजन और ज्यादा रस वाले पदार्थ हानिकारक हैं। ऐसी चीजें घेंघा को बढ़ाने का काम करती हैं। \n* घेंघा रोग में पुराना लाल चावल खाने से, पुराना घी, मूंग, परवल, करेला, तथा पुष्टिकारक (शक्ति देने वाला) और जल्दी पचने वाला भोजन करने से लाभ मिलता है। साथ ही आयोडिन की सही मात्रा भी खाने में लेना आवश्यक है। \n\nTreatments:\nघेंघा रोग का इलाज बेहद आसान है। लेकिन इसकी जानकारी होना भी आवश्यक है। घेंघा रोग में कुछ जरूरी और असरदार उपाय निम्न हैं:\nघेंघा का उपचार (Treatment of Goiter in Hindi)\n1. नमक- खाने में हमेशा आयोडीन वाला नमक खाने से घेंघा रोग में बहुत लाभ मिलता है।\n2. करजनी- गूंजा या करजनी की जड़ और बीज से निकाला हुआ तेल लगाने से और नाक में डालने से गलग्रंथि और गले की गांठ में लाभ होता है।\n3. अपराजिता- सफेद अपराजिता की जड़ के एक से दो ग्राम चूर्ण को घी में मिश्रित कर पीने से अथवा कटु फल के चूर्ण को गले के अन्दर घर्षण करने से घेंघा रोग शांत होता है।\n4. पीपल- पीपल और थूहर का लेप करने से मेदज घेंघा (मोटापे की वजह से गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।\n5. देवदारू- देवदारू और इन्द्रायण को एक साथ पीसकर लेप करने से कफज घेंघा ठीक हो जाती है।\n6. अरंडी- अरंडी की जड़ को पीसकर चावल के पानी में मिलाकर सुबह-शाम लेप करने से घेंघा रोग ठीक हो जाता है।\n7. समुद्रफल- समुद्रफल, सहजन के बीज और दशमूल की सारी औषधियों को सिल पर पीसकर हल्का-हल्का गर्म लेप करने से वातज गलगंड यानि घेंघा (गैस की वजह से गले की गांठे) रोग ठीक हो जाता है।\n8. अमलतास- अमलतास की जड़ को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर गलगंड (घेंघा) तथा गंडमाला (गले की गांठे) पर लेप करने से दोनों रोग ���ीक हो जाते हैं।\n9. लौकी- लौकी के पके हुए फल में पानी भरकर एक सप्ताह तक रखे रहने दें। उसके बाद पीने से घेंघा रोग समाप्त हो जाता है।\n10. लाल अरंडी- लाल अरंडी की जड़ को पीसकर चावलों के पानी में मिलाकर लेप करने से घेंघा रोग ठीक हो जाता है।\n11. सूरजमुखी- सूरजमुखी की जड़ और लहसुन दोनों को पीसकर, टिकिया बनाकर गले पर बांधने से घेंघा फूट जाता है और बहकर साफ हो जाता है मगर इससे दर्द बहुत होता है।\n\n\n", + "Disease: मोटापा (Obesity)\n\nDescription: \nशरीर के अंदर असामान्य रूप से जमा वसा ही ओबेसिटी (Obesity) है। सामान्यतौर पर व्यक्ति की लंबाई के अनुपात में यदि शारीरिक वजन ज्यादा हो तो उसे मोटापा (Motapa) माना जाता है लेकिन ओबेस लोगों के शरीर पर फैट मोटे लोगों की तुलना में कहीं अधिक होता है, जो न केवल शरीर को बेडौल बनाता है बल्कि कई तरह की अन्य शारीरिक समस्याओं का कारण भी बनता है।\n\nReasons: \nबहुत से ऐसे कारण होते हैं जो कि प्रत्यक्ष (directly) या अप्रत्यक्ष (indirectly) रूप से ओबेसिटी की वजह होते हैं। व्यवहार या रहन-सहन, आस-पास का माहौल और कई दफा जेनेटिक कारणों से व्यक्ति ओबेस हो सकता है। \nमोटापे के कारण (Causes of Obesity)\nरहन-सहन (Lifestyle)\nआज की तेज रफ्तार जिंदगी में लोग आसानी से अस्वस्थ लाइफ स्टाइल को अपना लेते हैं। न खान-पान पर ही ध्यान दे पाते हैं और न ही शारीरिक मेहनत ही कोई रह गई है, ऐसे में मोटापा आसानी से लोगों को अपनी चपेट में ले लेता है।\nलोगों के खाने में फास्ट फूड बढ़ा है जो कि ज्यादातर मैदा और तरह तरह के रिफाइनरी तेलों से बना होता है, इस तरह लोग ज्यादा कैलोरी कंज्यूम करते हैं लेकिन इसके उलट शारीरिक मेहनत उतनी नही रह गई है जिसके कारण भी शरीर में वसा जमा होने लगती है और व्यक्ति ओबेस हो जाता है।\nवातावरण या माहौल (Environment)\nमाहौल या आसापास के वातावरण का भी शरीर के स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अब पहले की तरह सीढ़ियां चढ़ना, उतरना, पैदल चलना आदि नहीं रह गया। अब लोग छोटी से छोटी दूरी भी कार और बाइक से तय करना चाहते हैं। एक फ्लोर चढ़ने के लिए भी लिफ्ट का इस्तेमाल करते हैं।\nइसके अलावा ताजा खाना खाने की परंपरा भी कम होती जा रही है। डिब्बा बंद खाना या फ्रिज में रखा हुआ खाना, खाने की आदतें भी शरीर पर अच्छा प्रभाव नहीं डालतीं।\nजेनेटिक कारण (Genetic Reason)\nविज्ञान कहता है कि कुछ जेनेटिक कारण भी मोटापे की वजह होते हैं। जींस में कई तरह के डिस्ऑर्डर (disorder) भी ओबेसिटी को जन्म देते हैं। इसके अलावा यदि माता-पिता ओबेस हैं तो संभव है कि बच्चे भी ओबेस हो जाएं। ऐसे में शुरू से ही बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सतर्कता बरतनी चाहिए।\nखाने पीने की आदतें (Eating and Drinking Habit)\nआपकी खाने पीने की आदतें भी आपके शरीर को मोटा बना सकती हैं। एक बार में बहुत सारा खाना या बिल्कुल न खाना, दोनों ही परिस्थितियां शरीर के लिए ठीक नहीं। कई लोग मोटापे से बचने के लिए सुबह का नाश्ता नहीं करते, जबकि ऐसा करने से मोटापा और भी बढ़ता है।\n\nTreatments:\nकुछ लोगों को खाने का कोई समय निर्धारित नहीं होता। असमय खाने-पीने की आदतें भी मोटापे को बढ़ाती हैं। समय से खाना और एक साथ खाने की जगह छोटे पोर्शन में कई बार खाना शरीर के लिए ज्यादा बेहतर होता है।\n- खाने में फल (fruit) और सब्जियां (vagetables) ज्यादा लें।\n- एक साथ ज्यादा खाने की जगह छोटे छोटे मील बनाकर खाएं। \n- सेचुरेटेड फैट, ट्रांस फेट और और रिफाइंड शुगर से दूर रहें।\n- जो भी खाएं उसकी कैलोरी को नोटिस करें। \n- रोजाना व्यायाम (exercise) जरूर करें, जॉगिंग और रनिंग को इसका हिस्सा बनाएं। \n- तैराकी (swimming) भी मोटापे से बचने का अच्छा उपाय है। \n- रस्सी कूदें (skip rope)। \n\nHome Remedies:\nमोटापा (Obesity) न केवल आपकी पर्सनेलिटी को बिगाड़ता है बल्कि कई रोगों को भी न्योता देता है। आज की फास्ट जिंदगी में अधिकांश लोग मोटापे से परेशान हैं। मोटापे के कारण ही ब्लड प्रेशर, हृदय संबंधी बीमारियां, तनाव और ऐसी ही अन्य समस्याएं शरीर को घेर लेती हैं, नतीजा आप समय से पहले ही बूढ़े भी नजर आने लगते हैं।\nकई लोग तो मोटापे से इतने परेशान होते हैं कि उनमें आत्मविश्वास खत्म हो जाता है। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं, कुछ घरेलू नुस्ख़े ऐसे हैं, जिन्हें अपनाकर आप खुद को स्लिम ट्रिम बना सकते हैं।\nहालांकि कोई भी उपाय रातों-रात आपको दुबला नहीं कर सकता, इसलिए संयम रखें और बताए गए नुस्खों को अपनाएं। इससे आप दो से तीन महीनों में ही अपना वजन कम कर सकते हैं।\nमोटापा या वजन कम करने के घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Obesity)\nशहद और अदरक का रस (Honey and Ginger Juice)", + "Disease: मोटापा (Obesity)\nशहद और अदरक को मिलाकर खाने से वजन तेजी से कम होता है। शहद में फ्रक्टोज की उच्च मात्रा होती है जहां अतिरिक्त वसा को जलाने का काम करती है वहीं अदरक भी शरीर की वसा को पिघलाने का काम करता है और प्राकृतिक भूख लगने की क्रिया को बनाए रखता है।\nउपचार के लिए दो बडे़ चम्मच अदरक के रस में, तीन बड़े ���म्मच शहद मिलाकर पिएं। इस मिश्रण को एक दिन में दो बार पिएं। ऐसा करने से एक माह में ही आपको वजन में फर्क दिखाई देगा।\nशहद और दालचीनी (Honey and Cinnamon Powder)\nयह एक ऐसा मिश्रण है जिसे करने पर मोटे से मोटा आदमी भी पतला हो सकता है, वो भी बिना डाइटिंग और व्यायाम के। उपचार के लिए एक गिलास पानी में दालचीनी का एक बड़ा चम्मच पाउडर डालकर तकरीबन पन्द्रह मिनट उबालें। जब यह गुनगुना रह जाए तब इसे छानकर अलग करें और इसमें एक बड़ी चम्मच शहद मिलाकर पिएं। यह मिश्रण सुबह खाली पेट और रात को सोने से पहले पिएं। एक महीने से पहले ही आप खुद को हल्का महसूस करने लगेंगे।\nनींबू, शहद और काली मिर्च (Lemon, Honey and Black Pepper)\nनींबू, शहद और काली मिर्च का मिश्रण वजन घटाने के लिए अपनाए जाने वाले सबसे आसान तरीकों में से एक है। नींबू में पेक्टिन फाइबर होता है जो शरीर में वसा को जमा होने से रोकता है और शरीर की पीएच वेल्यू को बनाए रखता है।\nकाली मिर्च में पिपराइन होता है जो कि नई वसा कोशिकाओं को जमने से रोकता है। उपचार के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में एक छोटी चम्मच शहद, एक छोटी चम्मच काली मिर्च और चार बड़ी चम्मच नींबू का रस मिलाएं। हर रोज सुबह-सुबह इस तरह के पानी को पीने से जल्द ही वजन कम होने लगेगा।\nबेर की पत्ती (Indian Plum Leaves)\nबेर की पत्तियों में वसा को काटने की शक्ति होती है। उपचार के लिए बेर की पत्तियों को रातभर पानी में भिगाकर सुबह सुबह चबाकर खाएं। ऐसा करने से एक महीने में वजन कम होने लगेगा।\nसेब का सिरका (Apple Cider Vinegar)\nसेब का सिरका भी वजन घटाने में असरकारक है। नींबू की तरह सेब के सिरका में भी पेक्टिन फाइबर होता है जो कि पेट को लंबे समय तक भरा रखता है और वसा को जमने नहीं देता। उपचार के लिए एक बोतल पानी मे एक छोटी चम्मच सेब का सिरका और एक छोटी चम्मच नींबू का रस मिलाएं। इस पानी को रोजाना पिएं। कुछ ही समय में वजन कम होने लगेगा।\nगरम पानी (Warm Water)\nगरम पानी से वजन कम करना सबसे आसान तरीकों में से एक है। दिन की शुरूआत गुनगुने पानी से करें और जब खाना खाने के आधे घंटे बाद भी नींबू का रस मिलाकर गरम पानी पिएं। ऐसा करने से खुद ब खुद वजन कम होने लगेगा।\nरात के खाने को कहें ना (Say no to late night dinner)\nवजन कम करने का एक और आसान तरीका है कि रात को खाना न खाएं, खासकर यदि आपको देर रात को खाना खाने की आदत है तो। कोशिश करें कि रात का खाना 8 बजे तक खा लें, यदि ऐसा करना संभव नहीं है तो खाने की ���गह सलाद और लिक्विड चीजें लें लेकिन ठोस आहार न लें। ऐसा करने से भी तेजी से वजन कम होता है।\nपत्ता गोभी (Cabbage)\nस्वस्थ्य तरीके से वजन कम करने का तरीका है बंदगोभी। पत्ता गोभी फाइबर से युक्त और कैलोरी में कम होती है। पत्ता गोभी में टार्टरिक एसिड (Tartaric Acid) होता है जो शरीर में मौजूद कार्बोहाइडड्रेट और शुगर को वसा में परिवर्तित नहीं होने देता। उपचार के लिए सलाद में जितना संभव हो पत्ता गोभी खाएं। पत्ता गोभी की बिना मसाले की सब्जी भी बनाकर खाना लाभदायक है।\n\n\n", + "Disease: डार्क सर्कल - आखों के नीचे के काले घेरे (Dark Circle)\n\nDescription: \nकिसी ने सच ही कहा है कि आंखें बिना बोले भी बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसे में आंखों के नीचे के काले घेरे या डार्क सर्कल भी आपके स्वास्थ्य को बयां करते हैं। आंखों के नीचे काले घेरों की समस्या बढ़ती जा रही है। केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरूष और टीनेज बच्चों में भी डार्क सर्कल की समस्या हो रही है। कई बार आंखों के नीचे के काले घेरे किसी बीमारी के कारण हो सकते हैं लेकिन कई बार ऐसा अस्वस्थ जीवनचर्या के कारण भी होता है। डार्क सर्कल (Dark Circle) न केवल आंखों की खूबसूरती को कम कर देते हैं बल्कि इससे चेहरा भी बीमार नजर आता है। आंखों के नीचे की त्वचा बहुत पतली होती है जिससे नसें नजर आती हैं। जब इन नसों में रक्त का बहाव तेजी से होता है तो यह बाहर से गहरी नजर आती हैं जिसके कारण काले घेरे (Aankhon ke Kale Ghere) नजर आते हैं। कुछ लोगों में आंखें अंदर की ओर धंसी हुई होती है, ऐसे लोगों में भी डार्क सर्कल नजर आते हैं। यदि आपकी आंखों के नीचे सूजन या बदरंग त्वचा दिखाई दे जो समय के साथ बढ़ रही हो तो चिकित्सक को जरूर दिखाएं। समस्या किस कारण से है, यह पता लगाने के बाद डॉक्टर आसानी से काले घेरों का इलाज कर सकता है। \n\nSymptoms: \n- आंखों के नीचे काले घेरे,\n- आंखों के नीचे सूजन या बदरंग त्वचा\n\nReasons: \n- शरीर में पानी की कमी होना\n- दूषण में ज्यादा रहना\n- रात को देर से सोने की आदत\n- पानी प्रचुर मात्रा में न पीना\n- संतुलित भोजन की कमी\n- अधिक धूम्रपान करने या अन्य नशीली आदतों से\n- कैफीन का ज्यादा मात्रा में उपयोग\n- डिहाइड्रेशन\n\nTreatments:\nठंडी सिकाई- (Cold Compress) आंखों की ठंडी सिकाई करने से भी समस्या का हल संभव है। किसी कपड़े में बर्फ के टुकड़े को रखकर आंख की सिकाई की जा सकती है। ज्\nयादा तकिये (Extra Pillow) आंखों के नीचे की त्वचा फूल रही हो तो सिर के नीचे अतिरिक्�� तकिये लगाकर सिर को उठाकर सोएं। ऐसा करने से नीचे की पलकों में जमा आई फ्लड फैलेगा और आंखों के नीचे फूला हुआ हिस्सा सामान्य होकर डार्क सर्कल भी कम होंगे। \nज्यादा सोएं (Sleep Extra) आंखों के नीचे के काले घेरों (Aankhon ke Kale Ghere) से निपटने के लिए देर रात तक जागना छोड़ दें। समय से सोएं और आप जितना सोते हैं उससे ज्यादा नींद लें। ऐसा करने से भी काले घेरे कम होंगे। \n\nHome Remedies:\nसमस्या बढ़ने पर लेज ट्रीटमेंट या केमीकल पील थेरेपी की जा सकती है लेकिन कई बार केवल घरेलू नुस्खों से भी डार्क सर्कल को हटाया जा सकता है। हालांकि ज्यादातर मामलों में आंखों के नीचे के काले घेरों के लिए डॉक्टर की मदद की जरूरत नहीं पड़ती।\nटमाटर- (tamato)\nटमाटर डार्क सर्कल को ठीक करने का आसान तरीका है। यह आंखों के काले घेरों को ठीक करके त्वचा को मुलायम और लचीली बनाता है। उपचार के लिए एक चम्मच टमाटर के रस में एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर आंखों के नीचे लगाएं। लगभग 10 मिनट तक लगा रहने दें और उसके बाद पानी से धो दें। हफ्ते में दो बार इस प्रक्रिया को दोहराएं। ज्यादा फायदे के लिए हर रोज नींबू का रस और पुदीना मिलाकर टमाटर का जूस भी पिया जा सकता है।\nकच्चा आलू- (raw potato)\nकच्चे आलू को कूद्दूकस करके उसका रस निकाल लें। इस रस में रूई के कुछ टुकड़े भिगाकर आंखों के ऊपर रखें। रूई इतनी बड़ी होनी चाहिए कि पूरी आंख ढक जाए। इसे 10 मिनट तक लगाकर रखें और सके बाद ठंडे पानी से धो दें।\nठंडे टी बैग- (cold te bag)\nग्रीन टी या कैमोमाइल के टी बैग को पानी में भिगाकर फ्रिज में ठंडा होने के लिए रखें। जब यह ठंडे हो जाएं तो इन्हें आंखों के ऊपर रखें। इस प्रक्रिया को रोजाना करें। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में आंखों के नीचे के काले घेरे खत्म हो जाएंगे।\nठंडा दूध- (cold milk)\nठंडे दूध में रूई को भिगाकर आंखों के ऊपर रखें। तकरीबन 10 मिनट बाद ठंडे पानी से आंखों को धो दें। दूध से भी त्वचा मुलायम, साफ और लचीली बनती है।\nसंतरे का रस- (orange juice)\nसंतरे के रस में ग्लिसरीन की कुछ बूंदे मिलाकर आंखों के आस-पास लगाएं। ऐसा करने से डार्क सर्कल भी हटेंगे और आंखों को प्राकृतिक ग्लो भी मिलेगा।\nयोगा- (yoga)", + "Disease: डार्क सर्कल - आखों के नीचे के काले घेरे (Dark Circle)\nडार्क सर्कल का मुख्य कारण तनाव माना जाता है या अनहेल्दी लाइफस्टाइल। ऐसे में नियमित योग करने से शारीरिक और मानसिक सुकून मिलता है। योग करने से मन शांत रहता है जिससे काले ��ेरे होने के चांसेस कम हो जाते हैं। योग करने से शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से कार्य करने लगते हैं।\n\n\n", + "Disease: इचिंग या खुजली (Itching)\n\nDescription: \nत्वचा के किसी भी हिस्से में त्वचा को खुरचने की अनुभूति होना ही खुजली है। खुजली में एक शरीर में एक तरह का सेनसेशन होता है जो कि त्वचा को नोंचने (Scratch) या खुजलाने पर मजबूर कर देता है।\n\nSymptoms: \n- खसरा जैसी बीमारी होने के छह सप्ताह के अंदर दस्त होना\n\nReasons: \n- गर्मियों में पसीना आता रहता है। बाहर से घर लौटने पर सारा शरीर पसीने से भीगा होता है, लेकिन पंखे व कूलर की ठंडी हवा से कुछ देर में पसीना सूख जाता है। शरीर पर पसीना सूख जाने से खुजली होने लगती है।\n- कई-कई दिन तक स्नान नहीं करने, त्वचा पर धूल-मिट्टी जमने से खुजली की उत्पत्ति होती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार खुजली कोई स्वतंत्र रोग नहीं। दूसरे रोगों के कारण त्वचा शुष्क हो जाने से खुजली होती है।\n- रक्त दूषित होने पर फोड़े-फुंसियां निकलती हैं तो खुजली होती है। \n- उदर में कृमियों के विषक्रमण से खुजली होती है। \n- मूत्र त्याग के बाद स्वच्छ जल से योनि को साफ नहीं किया जाए तो जीवाणुओं के संक्रमण से खुजली होती है। \n- कुछ स्त्री-पुरुष के सिर के बालों में जुए उत्पन्न होती हैं तो तीव्र खुजली होती है।\n- एक्जिमा व दाद में भी बहुत खुजली होती है। \n- मधुमेह रोग मे जननांगों के आस-पास तीव्र खुजली होती है।\n- शीत ऋतु में शीतल वायु के प्रकोप से जब त्वचा शुष्क होकर फटने लगती है तो बहुत खुजली होती है।\n- ग्रीष्म ऋतु में धूप में चलने-फिरने से घमोरियां निकलने पर खुजली होती है। एलर्जी के कारण भी तीव्र खुजली होती है।\n\nTreatments:\nखुजली से निजात के टिप्स तथा उपाय (Remedie of Itching)\n- खुजली से निजात के लिए अधिक फल-सब्जियों का सेवन करें।\n- सर्दियों में अधिक शीतल वायु के संपर्क से खुजली होने पर प्रतिदिन स्नान से पहले सरसों व तिल के तेल से मालिश करें।\n- चमेली के तेल में नीबू का रस मिलाकर मालिश करने के बाद नहाएं।\n- नीम के पेड़ पर पकी निबौली खाने से खुजली की समस्या नष्ट होती है।\n- टमाटर का रस सुबह और शाम को पीने से खुजली खत्म होती है।\n- रक्त दूषित होने पर खुजली की विकृति होने पर नीम के कोमल गुलाबी पत्ते 6 ग्राम, काली मिर्च के 10 दाने पीसकर जल के साथ सेवन करें।\n- नीम के पत्तों को पानी में उबालकर, छानकर नहाने से खुजली खत्म होती है।\n- नारियल के तेल में कर्पू��� मिलाकर मालिश करने से खुजली खत्म करती हैं।\n- अजवायन को पानी में उबालकर, छानकर पीने से खुजली खत्म होती है।\n- कच्चे हरे चनों का प्रतिदिन सेवन करें। चने उपलब्ध ना होने पर अंकुरित चनों का सेवन करें।\n- लहसुन को तेल में पकाकर, उस तेल को छानकर मालिश करने से खुजली नष्ट होती है।\n- उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।\n- चाय, कॉफी, शराब, सिरका व अचार का सेवन न करें।\n- मांस, मछली, अंडे न खाएं।\n- चाइनीज और फास्ट फूड का सेवन न करें।\n- दूषित जल व बाजार में खुली रखी चीजें न खाएं।\n- घी, तेल व मक्खन से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।\n- दूषित जल से न नहाएं।\n- पसीने से दूषित कपड़े न पहनें।\n\nHome Remedies:\nइंफेक्शन (Infection), एलर्जी (Allergy), किसी कीड़े के काटने से (Insect Bite), त्वचा के शुष्क होने से (Dry Skin), धूप मेुं बहुत ज्यादा रहने आदि कारणों से शरीर में खुजली की समस्या हो सकती है। खुजली से निजात के लिए बाजार में कई तरह की क्रीम मौजूद हैं लेकिन इनका फायदा भी केवल इस्तेमाल करने भर तक होता है। उसके बाद स्थिति जस की तस हो जाती है।\nआइए जानें खुजली से निजात के घरेलू नुस्खे (Home remedies for Itching)\n1. नारियल का तेल (Coconut oil)- त्वचा के शुष्क होने या किसी कीड़े के काटने से, खुजली किसी भी कारण से हो, नारियल का तेल बेहद फायदेमंद होता है। नारियल के तेल को खुजली वाले स्थान पर लगाकर हल्के हाथ से मालिश करें। इतना ही नहीं नारियल तेल को पूरे शरीर पर भी लगाया जा सकता है।\n2. पेट्रोलियम जैली (Petroleum jelly)- यदि त्वचा बेहद संवेदनशील (sensitive skin) है तो खुजली से निजात के लिए पेट्रोलियम जैली बेहद अच्छा उपाय है। इसमें कोई भी रसायन नहीं होता और त्वचा पर बेहद प्रभावी भी होती है। इसके इस्तेमाल से न केवल खुजली बल्कि त्वचा की अन्य समस्याएं भी हल हो जाती हैं।", + "Disease: इचिंग या खुजली (Itching)\n3. नींबू (Lemon)- नींबू में विटामिन सी (vitamin c) उच्च मात्रा में पाया जाता है। खुजली से निजात के लिए नींबू बेहद अच्छे उपायों में से एक है। नींबू में मौजूद वोलाटाइल (volatile) त्वचा की सूजन और जलन को दूर करते हैं। प्रभावित त्वचा पर नींबू के रस को रूई की सहायता से लगाया जा सकता है।\n4. बेकिंग सोडा (Baking soda)- तीन हिस्से बेकिंग सोडा में एक हिस्सा पानी मिलाकर एक पेस्ट बनायें। इस पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाने से खुजली की समस्या से राहत मिलती है। लेकिन त्वचा कटी-फटी हो तो बेकिंग सोडा लगाने से बच���ा चाहिए।\n5. तुलसी (Basil)- तुलसी में थायमॉल, यूजीनॉल और कैंफर उच्च मात्रा में होते हैं जो खुजली और जलन से राहत देते हैं। तुलसी की कुछ पत्तियों को अच्छी प्रकार धोकर, प्रभावित स्थान पर रगड़ने से खुजली और जलन से राहत मिलती है।\n6. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)- सेब के सिरके का इस्तेमाल रूसी से निजात के लिए किया जाता है, उसी प्रकार खुजली में भी यह लाभदायक है। सेब के सिरका में एंटीसेप्टिक और एंटीफंगल गुण होते हैं जो कि त्वचा संबंधी समस्याओं से निजात दिलाते हैं। सेब के सिरका में रूई को भिगाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से खुजली की समस्या से राहत मिलती है।\n7. एलोवेरा (Aloevera)- एलोवरा मॉइश्चराइजर से भरपूर होता है जिससे रूखी त्वचा से होने वाली खुजली में यह असरकारी है। एलोवेरा जेल प्रभावित त्वचा पर लगाने से खुजली, जलन और सूजन दूर होती है। त्वचा पर एलोवेरा लगाने के लिए इसकी एक पत्ती को चाकू से बीच से चीर कर उसके अंदर से जैली को बाहर निकालें और शरीर पर हल्के हाथों से मसाज करें।\n8. नीम (Neem)- नीम की पत्तियों को पानी में डालकर उबालें। इसके बाद इस पानी को गुनगुना रहने पर नहायें। नीम में प्राकृतिक तौर पर एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जो खुजली को दूर करते हैं। इसके अलावा यदि रक्त में किसी प्रकार की अशुद्धि के कारण खुजली होती है तो सुबह सुबह नीम के छोटे या कच्चे पत्ते चबायें। निबौरी चबाने से भी रक्त साफ होकर खुजली दूर होती है।\n\n\n", + "Disease: गले में दर्द (Throat Ache)\n\nDescription: \nगले में दर्द (Throat ache) सामान्य सर्दी का संकेत भी हो सकता है और वोकल कोर्ड में इंफेक्शन या स्ट्रेप थ्रोट (strep throat) जैसी किसी गंभीर समस्या का लक्षण भी। इसमें गले में चुभन या छिला हुआ महसूस होता है और कुछ खाने में दिक्कत महसूस होती है।\n\nSymptoms: \n- गले के साथ कनपटी तक दर्द होना\n- गले में दर्द होना\n- निगलने में कठिनाई होना\n- हल्की खाँसी व गले में खराश महसूस होती है\n- जबड़ा खोलने में परेशानी होना\n- कई बार कान में भी दिक्कत होना\n- गले में चुभन होना\n\nReasons: \n1. सामान्य सर्दी जो वायरल इंफेक्शन से हो सकती है।\n2. आवाज वाली ग्रंथियों लैरींगाइटिस (Laryngitis) में इंफेक्शन होना।\n3. टांसिल में इंफेक्शन होने से।\n4. टांसिल के आस-पास के ऊतकों में संक्रमण होने से।\n5. धूम्रपान, प्रदूषण, जोर से चिल्लाने के कारण।\n6. नाक की जगह गले से सांस लेने के कारण ।\n7. गले में किसी तरह की कोई चोट लगने से।\n\nTreatments:\nगले में दर्द के टिप्स (Treatment of Throat Ache)\n- गुनगुने पानी में नमक डालक कर गरारे करें। \n- गरम पानी की भाप लें। \n- गले की सिकाई करें। \n- तुलसी और लौंग जैसे घरेलू उपायों को गले के दर्द (Gale me Dard) से राहत के लिए इस्तेमाल करें। \n- गले में दर्द हो तो ज्यादा बोलें या चिल्लाएं नहीं। \n- गर्म पेय जैसे चाय, कॉफी और सूप पीएं। \n- धूम्रपान न करें। \n- झूठा खाना या झूठे बर्तनों में खाना न खाएं। \n- धूल, प्रदूषण, धुएं आदि से दूर रहें। \nगले के दर्द में इन बातों का रखें ध्यान (Precautions for Throat Ache)\n- लिंफ नोड यानि की जबड़े के नीचे के हिस्से में सूजन आई हो तो विशेष ध्यान दें। \n- गला अचानक दर्द करने लगे और बुखार आ जाए तो भी विशेष ध्यान देना चाहिए। \n- एक सप्ताह से अधिक समय तक भी समस्या बनी रहे तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। \n- निगलने में दिक्कत सामान्य है लेकिन यदि पानी भी नहीं पी पा रहे तो सचेत रहें। \n- गले के साथ बाहरी हिस्से भी दर्द करने लगे या सांस लेने में परेशानी हो रही हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। \n- जोड़ों में या कान में दर्द हो तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। \n- बलगम में खून आ रहा हो तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। \n\n\n", + "Disease: ज्वाइंट पेन- जोड़ों में दर्द (Joint Pain)\n\nDescription: \nज्वाइंट पेन- जोड़ों में दर्द\n\nSymptoms: \n- जोड़ों को मोड़ने में परेशानी होना\n- जोड़ों का लाल होना\n- जोड़ों में खिंचाव महसूस होना\n- जोड़ों पर कठोरता होना\n- चलने- फिरने में दिक्कत होना\n- जोड़ों में अकड़न आना\n- जोड़ों में सूजन और दर्द\n- जोड़ों में कमजोरी होना\n\nReasons: \nकारण (cause of joint pain)\n- उम्र बढ़ने के साथ\n- हड्डियों में रक्त की आपूर्ति में रूकावट आना\n- रक्त का कैंसर होना\n- हड्डियों में मिनरल यानि की खनिज की कमी होना\n- जोड़ों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ना\n- जोड़ों में इंफेक्शन होना\n- हड्डियों का टूटना\n- मोच आना या चोट लगना\n- हड्डियों में ट्यूमर आदि की शिकायत होना\n- अर्थराइटिस\n- बर्साइटिस\n- ऑस्टियोकोंड्राइटिस\n- कार्टिलेज का फटना\n- कार्टिलेज का घिस जाना\n\nTreatments:\nजोड़ों के दर्द से राहत के लिए टिप्स (Tips to prevent joint pain)\n1. गतिशील रहें (Keep moving)\nजोड़ों के दर्द से राहत के लिए गतिशील रहें, यानि जोड़ों की मूवमेंट होती रहनी चाहिए। लंबे समय तक एक ही स्थिति में रहने से भी जोड़ों में कठोरता महसूस होती है।\n2. जोड़ों को चोट से बचाएं (Prevent joints from injury)\nजोड़ों पर लगी चोट, हड्डी को तोड़ भी सकती है, इसलिए जोड़ों को चोट से बचाकर रखें। जब भी कोई ऐसा खेल खेलें जिसमें जोड़ों पर चोट लगने का डर हो, तो ज्वाइंट सेफ्टी पेड्स (Joint safety pads) पहनें। टेनिस और गोल्फ खेलते समय भी ब्रेसेस (braces) पहनें।\n3. वजन को नियंत्रित रखें (Maintain your weight)\nयदि आपका वजन नियंत्रण में रहेगा तो आपके जोड़ भी स्वास्थ्य रहेंगे। शरीर का ज्यादा वजन घुटनों और कमर पर अधिक दबाव डालता है, जिससे कार्टिलेज (cartilage) के टूटने का डर रहता है। ऐसे में वजन को नियंत्रण में रखना बेहद जरूरी है।\n4. स्ट्रेचिंग ज्यादा न करें (Do not stretch more)\nव्यायाम करते समय स्ट्रेचिंग करने की भी सलाह दी जाती है, लेकिन स्ट्रेचिंग केवल हफ्ते में तीन बार करें। स्ट्रेचिंग को एकदम शुरू करने की जगह, इससे पहले वार्म अप व्यायाम (warm up exercise) करें।\n5. दूध पीएं (Drink milk)\nजोड़ों को मजबूत रखने के लिए दूध जरूर पीएं। दूध से हड्डियों को कैल्श्यिम और विटामिन डी मिलता है जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। यदि दूध पसंद न हो तो दूध से बने अन्य खाद्य पदार्थ जैसे पनीर, दही आदि भी खाए जा सकते हैं।\n6. सही पोश्चर बनाए रखें (Maintain right posture)\nजोड़ों के दर्द से राहत के लिए सही पोश्चर में उठना, बैठना और चलना बेहद जरूरी है। सही पोश्चर गर्दन से लेकर घुटनों तक के जोड़ों की रक्षा करता है।\n7. व्यायाम (Exercise)\nजोड़ों के स्वास्थ्य के लिए व्यायाम को दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। तैराकी (swimming) भी जोड़ों के दर्द से राहत के लिए अच्छा व्यायाम होती है।\n\nHome Remedies:\nजोड़ों का दर्द (Joint Pain) शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है, घुटने, कंधे या कमर। कई बार गठिया जोड़ों के दर्द का कारण होता है जो कई बार तनाव लेने, प्रभावित हिस्सों पर ज्यादा दबाव पड़ने, मोच आने या किसी अन्य प्रकार की चोट लगने के कारण भी ऐसा हो सकता है।\nजोड़ों के दर्द में प्रभावित हिस्सा लाल हो सकता है और वहां सूजन भी आ सकती है। आइए हम आपको बताते हैं कि कौन से घरेलू उपाय अपनाकर आप जोड़ों के दर्द में राहत पा सकते हैं।\nजोड़ों के दर्द के लिए घरेलू उपचार (Home Remedies for Joint Pain)\nमालिश (Massage)\nमालिश से शरीर के दर्द में बेहद आराम मिलता है, यही प्रक्रिया जोड़ों के दर्द में भी लागू होती है। नारियल, जैतून, सरसों या लहसुन के तेल से प्रभावित हिस्से की मालिश करें। हल्के हाथों से दबाव देते हुए दर्द वाले हिस्से को मलें। ऐसा करने से दर्द से राहत मिलेगी।\nगर्म और ठंडी सिकाई (Cold and Hot Compress)\nजोड़ों के दर्द से निजात के लिए गर्म और ठंडी सिकाई करने से भी बहुत आराम मिलता है। गर्म सिक��ई करने से रक्त संचार बेहतर होता है वहीं ठंडी सिकाई से सूजन और चुभन कम होती है।", + "Disease: ज्वाइंट पेन- जोड़ों में दर्द (Joint Pain)\nगर्म सिकाई के लिए गर्म पानी की बोतल को तौलिया में लपेट कर गर्दन की सिकाई करें। जबकि, ठंडी सिकाई करने के लिए बर्फ के टुकड़ों को तौलिया में लपेटकर, उस तौलिया से सिकाई करें। सिकाई करते वक्त कम से कम दो से तीन मिनट तक गर्दन की लगातार सिकाई होनी चाहिए। यह पूरी प्रक्रिया 15 से 20 मिनट में दोहराएं। इस विधि को आराम होने तक दिन में दो बार करें।\nलहसुन (Garlic)\nयदि जोड़ों में दर्द है तो लहसुन का इस्तेमाल बेहद अच्छे परिणाम दे सकता है। इसके औषधीय गुण गर्दन के दर्द, सूजन और जलन को ठीक करते हैं। लहसुन की दो कली हर सुबह खाली पेट पानी के साथ खाएं। खाना बनाने वाले किसी भी तेल में लहसुन की कुछ कलियां डाल कर भून लें। इस तेल को गुनगुना होने तक ठंडा करें और प्रभावित हिस्से की मालिश करें। इस विधि को दिन में दो बार किया जा सकता है।\nहल्दी (Turmeric)\nहल्दी के औषधीय गुण किसी से छिपे नहीं है लेकिन अच्छी बात यह भी है कि यह जोड़ों के दर्द में भी उतनी ही प्रभावी है। हल्दी रक्त संचार तेज करके जोड़ों के दर्द से आराम देती है और गर्दन की अकड़न को भी कम करती है।\nअदरक (Ginger)\nजोड़ों के दर्द के इलाज के लिए अदरक भी बेहतरीन प्रभाव दिखाता है। यह हर्ब भी गुणों से भरपूर है जो कि रक्त संचार को तेज करती है जिससे गर्दन के दर्द से राहत मिलती है। एक दिन में लगभग तीन कप अदरक की चाय पिएं। अदरक की चाय बनाने के लिए पानी में अदरक उबालें और ठंडा करके इसमें शहद मिलाएं। इस पेय को पिएं। प्रभावित हिस्से की अदरक के तेल से मसाज भी की जा सकती है।\nसेब साइडर सिरका (Apple Cider Vinegar)\nसेब का सिरका भी जोड़ों के दर्द से राहत देने में बहुत अच्छा असर दिखाता है। यह जोड़ों के दर्द और सूजन से राहत देता है। किसी कपड़े को सेब के सिरके में भिगोकर दर्द वाले स्थान पर लपेंटें और कुछ घंटों के लिए छोड़ दें। दिन में दो बार इस विधि को करें। दो कप सेब साइडर सिरका को गुनगुने पानी में डालकर नहाया भी जा सकता है। एक गिलास पानी में कच्चा सेब साइडर सिरका और शहद मिलाकर पीने से भी लाभ होता है।\nलाल मिर्च पाउडर (Red Chillie Powder)\nलाल मिर्च पाउडर भी जोड़ों के दर्द से राहत देने में बहुत प्रभावी है। उपचार के लिए एक कप नारियल के तेल को गरम करके, उसमें दो बड़े चम्मच लाल मिर्च पाउडर मिलाएं। इस मिश्रण से प्रभावित हिस्से पर लगाकर तकरीबन 20 मिनट के लिए छोड़ दें। ज्यादा आराम के लिए इस मिश्रण को प्रतिदिन दर्द वाले हिस्से पर लगाएं।\n\n\n", + "Disease: लूज मोशन- दस्त (Loose Motion)\n\nDescription: \nशौच एकदम पतला हो और बार- बार जाना पड़ रहा हो, तो यह दस्त है। दस्त होने पर शौच में पानी का भाग ज्यादा होता है। कई बार शौच जाते समय पेट में दर्द (Pain) या ऐंठन (Crumping) भी महसूस होती है।\n\nSymptoms: \n- कभी-कभी शौच में खून का आना\n- ज्यादा प्यास लगना\n- पीठ के निचले हिस्से में अथवा पेट के निचले भाग में अचानक तेज दर्द, जो पेट व जांघ के संधि क्षेत्र तक जाता है\n- पेट में गड़बड़ी का एहसास होने लगता है\n- पेट में सूजन होना।\n- बुखार या ठंड लगना\n\nReasons: \nदस्त के कारण- (Causes of loose motion)\nदस्त, आंतों में ज्यादा द्रव के जमा होने से होते हैं। कई बार आंतों द्वारा तरल पदार्थ को ठीक तरह से अवशोषित (absorb) न कर पाने या आंतों से मल के तेजी से निकलने के कारण भी ऐसा होता है।\nदस्त होने की दो स्थितियां हो सकती हैं, जिसमें से एक में सामान्य से कुछ ज्यादा बार शौच जाते हैं जबकि दूसरी स्थिति में लगातार छह- सात या उससे ज्यादा बार शौच जाते हैं। यह शौच हर बार एकदम पतली होती है। यह दस्त, पाचन संबंधी समस्या के कारण हाते हैं। जीवाणुओं द्वारा संक्रमण तथा टॉक्सिन आदि फैलाने से दस्त होने शुरू हो जाते हैं। कई बार तनाव या किसी प्रकार के डर के कारण भी दस्त शुरू हो सकते हैं। ऐसे दस्त को क्रोनिक या जीर्ण दस्त कहते हैं।\nकुछ अन्य कारण निम्न हैं-\n- बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के कारण\n- कुछ एंटीबायोटिक दवाओं के कारण\n- किसी तरह के पेट के रोग या सिंड्रोम के कारण\n- फूड इंफेक्शन के कारण\n- ज्यादा खा लेने से\n- किसी तरह की कोई एलर्जी के कारण\n- बहुत ज्यादा शराब पीने से\n- ज्यादा मात्रा में चाय-कॉफी पीने से\n- मिठाई ज्यादा खाने से\n\nTreatments:\n- खाने से पहले हाथों को अच्छी तरह धोएं\n- अपने खाने- पीने की चीजों में तुरंत बदलाव करें\n- चाय, कॉफी और दूध से बने पदार्थ न खाएं\n- नारियल पानी, नींबू पानी और छाछ आदि ज्यादा से ज्यादा लें\n- अधपका खाना, मीट आदि न खाएं\n- यदि किसी को दस्त हैं तो, उससे हाथ मिलाने या छूने के बाद तुरंत हाथ अच्छी तरह धोकर और सुखाकर ही कुछ खाएं\n\nHome Remedies:\nलूज मोशन या दस्त शरीर को कमजोर बना देते हैं। इससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिससे शरीर के जरूरी खनिज भी शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इस कारण व्यक्ति को कमज���री महसूस होती।\nदस्त की शिकायत कई कारणों से हो सकती है जैसे- बासी खाना खाने, किसी खाने से एलर्जी होने, किसी तरह का तनाव होने, दूषित पानी या खाना खाने, शराब आदि ज्यादा पीने से या कभी कभी कुछ दवाईयों के सेवन से भी।\nआइए हम आपको बताते हैं कि घरेलू नुस्खों की सहायता से किस तरह से आप लूज मोशन की समस्या से राहत पा सकते हैं।\nदस्त के उपचार के लिए घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Loose Motion)\nसरसों के बीज (Mustard Seeds)\nसरसों के बीज लूज मोशन रोकने में कारगर होते हैं। उपचार के लिए थोड़े से पानी में सरसों के बीज डालकर एक घंटे के लिए अलग रख दें। इसके बाद इस पानी को टॉनिक की तरह पिएं। लूज मोशन से राहत मिलेगी।\nनींबू पानी (Lemonade)\nनींबू का रस पेट साफ करने में सहायक है। उपचार के लिए एक गिलास पानी में थोड़ी चीनी, थोड़ा नमक और एक नींबू का रस मिलाकर पिएं। इससे शरीर में पानी की कमी नहीं होगी और लूज मोशन भी रूक जाएंगे।\nअनार (Pomegranate)\nलूज मोशन के उपचार के लिए अनार को चबाकर खाएं। यदि दाने चबाना पसंद न हो तो अनार का ताजा रस निकालकर भी पिया जा सकता है। इससे भी दस्त रूक जाते हैं।\nमेथी (Fenugreek Seeds)\nमेथी जीवाणुरोधी होती है जो कि लूज मोशन रोकने में सहायक है। उपचार के लिए एक से दो चम्मच मेथी के दाने लेकर इनका पाउडर बना लें। इस पाउडर को एक गिलास पानी में डालकर पिएं।\nसाबूदाना (Sago)\nसाबूदाना पेट दर्द के साथ ही पाचन शक्ति को बढ़ावा देकर लूज मोशन रोकने में सहायता करता है। उपचार के लिए तीन से चार घंटों के लिए साबूदाना को पानी में भिगा दें। इसके बाद इस पानी को दिनभर में चार से पांच बार पिएं।\nदूध को कहें ना (No milk or milk product)\nजब तक आप लूज मोशन से परेशान हैं, दूध या दूध से बने पदार्थों का सेवन न करें। आपकी आंत (intestine), दूध या दूध से बने पदार्थों को पचा नहीं पाएगी, नतीजा समस्या और भी बढ़ सकती है।", + "Disease: लूज मोशन- दस्त (Loose Motion)\nकच्चा पपीता (Raw Papaya)\nकच्चा पपीता लूज मोशन से राहत देता है साथ ही पेट की मरोड़ और पेट दर्द से भी निजात दिलाता है। उपचार के लिए, पपीते को कद्दूकस करके तीन कप पानी में डालें। इस पानी को लगभग दस मिनट तक उबालें। यही पानी आपको दिन में तीन से चार बार पीना है। ऐसा करने से दस्त रूक जाएंगे।\nसौंठ (Dry Ginger Powder)\nअदरक का पाउडर या सौंठ पाचन शक्ति को बढ़ाता है और पेट दर्द से राहत देता है। उपचार के लिए, एक कप छाछ में आधी चम्मच सौंठ मिलाएं और दिन में कम से कम तीन से चार बार पिएं।\nलौ���ी का रस (Bottle Guard Juice)\nलौकी का रस, शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता इसलिए लूज मोशन से पीड़ित व्यक्ति को लौकी का रस देना फायदेमंद होता है।\nउपचार के लिए एक ताजा लौकी को छीलकर, धोकर छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें और मिक्सी में डालकर पीस लें। इसके बाद इसे छानकर रस को किसी बर्तन में निकाल लें। लौकी के जूस को स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें काली मिर्च और काला नमक मिलाया जा सकता है।\nस्टार्च युक्त खाना (Starch Rich Food)\nलूज मोशन से परेशान हैं तो स्टार्च युक्त खाना खाएं। यह खाना आसानी से पच जाता है और पेट में भारी नहीं लगता। स्टार्चयुक्त खाने में गीला सफेद चावल, उबले आलू और गाजर आदि खाई जा सकती है।\nचाय पत्ती (Tea)\nलूज मोशन से तुरंत राहत चाहते हैं तो चाय पत्ती को पीसकर, एक चम्मच चाय पत्ती को खाकर पानी पिएं। इससे लूज मोशन रूक जाएंगे। नवजात (infant) और छोटे बच्चों को चाय पत्ती को पानी में घोलकर वह पानी एक या दो चम्मच करके पिलाया जा सकता है। इससे भी दस्त रूक जाएंगे।\n\n\n", + "Disease: पेट दर्द (Stomach Ache)\n\nDescription: \nपेट दर्द में दर्द छाती और पेल्विक रीजन (pelvic region) के बीच उभरता है। यह दर्द तेज, हल्का, चुभनवाला और मरोड़ वाला हो सकता है। पेट में किसी भी हिस्से में कोई भी तकलीफ होने पर पेट दर्द हो सकता है। वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन (bacterial infection) जो पेट और आंतों को प्रभावित करते हैं, के कारण भी पेट दर्द हो सकता है। पेट दर्द आम समस्या है लेकिन कई बार पेट का दर्द किसी गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है।\n\nSymptoms: \n- किसी कारणवश शौच न जा पाना\n- पेट का निचला हिस्सा सख्त होना\n- पेट का फूलना\n- पेट पर कोई चोट लगना\n- पेट में गैस बनना\n- बार-बार पेशाब जाना\n- डिहाइड्रेशन\n- बुखार\n- उल्टी\n\nReasons: \nपेट दर्द के कारण (Cause of Stomach Ache)\nपेट का दर्द कई कारणों से हो सकता है। गले, आंत या रक्त के कारण बैक्टीरिया पेट में पहुंच जाते हैं जिससे पाचन क्रिया प्रभावित होती है और पेट दर्द होता है। इसी तरह के इंफेक्शन के कारण डायरिया और कब्ज (Constipation) भी हो सकता है। महिलाओं में मासिक स्त्राव (Menstruation) के कारण भी पेट दर्द की समस्या हो सकती है।\nपेट में दर्द किस हिस्से में है, इस स्थिति को देखते हुए भी निम्न कारण भी हो सकते हैं:\n- अपच\n- कब्ज\n- मासिक धर्म (Pain in Periods)\n- खाने से एलर्जी\n- गैस\n- अल्सर\n- पित्त की थैली में पथरी\n- हार्निया\n- किडनी में पथरी\n- यूरीनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन (Urinary Tract Infection)\n- अपेंडिक्स (Appendix)\n- पेल्व��क इन्फ्लेमैट्री डिजीज (Pelvic Inflammatory Disease)\n\nTreatments:\nपेट दर्द से राहत के लिए टिप्स (Tips to Prevent Stomach Ache)\n- खाना संतुलित और ज्यादा फाइबर वाला खाएं\n- पानी ज्यादा से ज्यादा पीएं\n- ऐसा खाना कम खाएं जो गैस का कारण हो\n- रोजाना व्यायाम जरूर करें\n- खाना खाकर तुरंत सोएं नहीं बल्कि कुछ देर टहलें\n- पेट की सिकाई करने से भी आराम होता है\nपेट दर्द में ध्यान देने योग बातें (Precautions for Stomach Pain)\n- यदि दर्द अचानक और तेज हो\n- पेट का दर्द जो पेट से होते हुए सीने, कधों और गर्दन की ओर बढ़ रहा हो\n- खून की उल्टी हो रही हो\n- पेट में सूजन या सख्तपन आ गया हो\n- सांसें जल्दी जल्दी चल रही हों, यानि फूल रही हों\n- बेहोशी छा रही हो\n- तेज बुखार हो\n\nHome Remedies:\nपेट का दर्द एक आम समस्या है। गैस, बदहजमी (Indigestion), पेट में सूजन (Swelling in Stomach), ऐंठन (Cramps), उल्टी (Vomiting), आदि प्रकार की समस्याएं होने पर पेट दर्द की शिकायत शुरू हो जाती है।\nहालांकि कई दफा पेट में पथरी (Stone), हार्निया (Hernia) या संक्रमण (Infection) आदि होने पर भी पेट दर्द होता है। इतना ही नहीं कई बार जरूरत से ज्यादा खा लेने पर (Ovar Eating) भी पेट दर्द की समस्या होती है।\nहम आपको कुछ घरेलू नुस्ख़े बता रहे हैं, जिन्हें आजमाकर आप पेट दर्द से राहत पा सकते हैं। फिर भी यदि पेट दर्द की समस्या लगातार बनी रहे तो चिकित्सक को दिखाना जरूरी होता है, पर घरेलू नुस्खों से सामान्य पेट दर्द को चुटकियों में ठीक किया जा सकता है।\nपेट दर्द के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Stomach Ache)\nसेब का सिरका (Apple Cider Vinegar)\nसेब के सिरके में यूं तो एसिडिक गुण होते हैं लेकिन यह एसिड से राहत देने में भी प्रभावी है। पेट दर्द से राहत के लिए एक चम्मच कच्चे और अनफिल्टर्ड सेब का सिरका को एक कप पानी में मिलाएं। इसके बाद इसमें एक चम्मच कच्चा शहद मिलाएं। इस पेय को दिन में दो से तीन बार पिएं। पेट दर्द से बेहद राहत मिलेगी।\nसौंफ (Fennel)\nपेट दर्द से बचाव के लिए सौंफ भी बेहद गुणकारी है। बहुत मसालेदार और वसा वाले खाने से होने वाली अपच को बेहद जल्दी ठीक कर देती है। सौंफ में वोलाटाइल तेल (volatile oil) होता है जो कि जी मिचलाने को भी कंट्रोल करता है।\nपेट दर्द से बचाव के लिए सौंफ के दानों को तवे पर हल्का सा गर्म करें और उसका पाउडर बना लें। पानी के साथ इस पाउडर को दिन में दो बार लें। सौंफ के दानों से तैयार चाय या सौंफ को यूं ही मुंह में डालकर चबाने से भी अपच से राहत मिलती है। साथ ही यह माउथ फ्रेशनर की तरह काम भी करती ह���।\nअदरक (Ginger)", + "Disease: पेट दर्द (Stomach Ache)\nअदरक में पाचन रस और एंजाइम समाहित होते हैं जो कि खाने को पचाने में बेहद लाभकारी हैं। पेट दर्द से राहत के लिए अदरक के छोटे छाटे टुकड़ों पर नमक डालकर उन्हें यूं ही चबाया जा सकता है।\nइसके अलावा दो चम्मच अदरक के रस में नींबू का रस, ओर थोड़ा सा काला और थोड़ा सा सफेद नमक मिलाकर बिना पानी के पीने से बेहद राहत मिलती है। अदरक के रस और शहद को गुनगुने पानी के साथ भी लिया जा सकता है। अदरक की चाय भी बेहद लाभकारी होती है। इतना ही नहीं खाना बनाने में अदरक का प्रयोग मसाले के तौर पर करने से भी अदरक बेहद लाभ देता है।\nबेकिंग सोडा और नींबू (Baking Soda and Lemon)\nपेट दर्द से राहत के लिए बेकिंग सोडा सबसे आसान घरेलू उपाय है। आधे गिलास पानी में थोडा़ सा बेकिंग सोडा मिलाकर, इसमें नींबू मिलाएं। इस पानी को पिएं। इससे तुरंत राहत मिलती है।\nअजवायन (Carom Seed)\nअजवायन पेट को दुरूस्त रखने और खाने को पचाने के साथ ही पेट दर्द से भी राहत देती है। सौंठ और अजवायन को मिलाकर पाउडर बनाएं। इस पाउडर की एक चम्मच में काली मिर्च मिलाएं और गर्म पानी के साथ पिएं। इस पेय को दिन में एक या दो बार पी सकते हैं। अजवायन के दानों को यूं भी मुंह में रखकर चबाया जा सकता है।\nपुदीना और कैमोमाइल (Mint and Chamomile)\nपुदीना या कैमोमाइल की हर्बल या ग्रीन टी भी पाचन शक्ति को दुरूस्त रखती है। खाना खाने के बाद एक कप हर्बल टी पीने से खाना जल्दी पचता है और पेट में वसा भी जमा नहीं होती। ऐसे में आपका वजन भी मेंन्टेन रहता है। लेकिन खाने के बाद सामान्य चाय या कॉफी से बचना चाहिए।\nदही (Curd)\nखाने के साथ नमकीन दही का इस्तेमाल भी आपकी पाचन शक्ति को बढ़ाता है और पेट दर्द से राहत देता है। रात के समय दही की जगह छाछ में काला नमक और भुना हुआ जीरा डालकर पिएं। पेट में जलन से भी राहत मिलेगी।\nइतना ही नहीं सुबह नाश्ते में और दोपहर के खाने में भी दही का इस्तेमाल सर्वोत्तम है। खासकर गर्मियों के दिनों में यह पेट के साथ ही पूरे शरीर के लिए भी फायदेमंद है।\nगर्म सेंक (Warm Compress)\nगर्म सेंक से पेट का दर्द तुरंत ठीक हो जाता है। ऐसा करने से पाचन क्रिया को गति मिलती है और भोजन ठीक से पचता है जिससे पेट दर्द से राहत मिलती है। गर्म सेंक के लिए हीटिंग पैड या बोतल में गरम पानी भरकर भी सिकाई की जा सकती है।\n\n\n", + "Disease: तनाव- स्ट्रैस (Stress)\n\nDescription: \nकिसी बात से परेशान, आहत या दुखी होकर, व्य���्ति का मन से गहन उदास होना ही तनाव है। तनाव मन से संबंधित है। तनाव (Stress) एक तरह का द्वंद है जो संतुलन और सामंजस्य न बैठा पाने के कारण होता है। जो व्यक्ति तनाव से ग्रसित होता है उसका मन अशांत हो जाता है, भावनाएं स्थिर नहीं रह पातीं। सही और गलत का फैसला करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में संबंधित व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्थितियां दिन-प्रतिदिन खराब होती जाती हैं।\n\nSymptoms: \n- कोई मुझे पसंद नहीं करता, ऐसी भावनाएं होना\n- नाखुन काटते रहना या एक ही जगह टकटकी लगा कर देखते रहना\n- नींद न आना\n- या तो बहुत भूख लगना या बिल्कुल भूख न लगना\n- लगातार सर्दी से परेशान रहना\n- हमेशा दुखी महसूस करना या बहुत खुशी की बातों पर भी खुश न होना\n- ज्यादा गुस्सा और निराश होना\n- लोगों के साथ खुद को असहज महसूस करना\n- लगातार सिर दर्द और पीठ दर्द\n- दूसरों को नजरअंदाज करना\n- किसी एक चीज पर ध्यान न लग पाना\n- मन में हमेशा नकारात्मक विचार आना\n- पेट खराब होना या पेट में अल्सर होना\n- मन में आत्महत्या जैसे ख्याल आना\n- बहुत ज्यादा सोना या बिल्कुल न सोना\n\nReasons: \nतनाव के कारण (Cause of stress)\nजब कोई व्यक्ति खुद पर दबाव महसूस करता है तब व्यक्ति के शरीर से कुछ खास केमिकल निकलते हैं जो शरीर को ज्यादा ऊर्जा और ताकत देते हैं जिससे आप खुद को सहज महसूस कर सकें। जब खुद को असहज या डरा हुआ महसूस करते हैं तब यह केमिकल उल्टा असर दिखाने लगते हैं। तनाव परिस्थिति पर निर्भर करता है, कोई व्यक्ति साधारण बात पर भी तनाव ले लेता है जबकि कोई व्यक्ति बिल्कुल भी तनाव नहीं लेता। कोई बड़ी- बड़ी बात भी नहीं सोचता जबकि कोई कई छोटी-छोटी बातों को एक साथ सोचता रहता है।\nसामान्य बाहरी कारण (Common External Reasons)\n- जीवन में कोई बड़ा नकारात्मक बदलाव\n- स्कूल या कॉलेज में किसी भी तरह का कोई दबाव\n- रिश्तों में दरार\n- आर्थिक तंगी\n- काम का ज्यादा बोझ\n- बच्चे और परिवार की स्थिति ठीक न होना\nसामान्य कारण (Common Reasons of Stress)\n- बहुत दूर का सोचते रहना\n- खुद से नकारात्मक बातें करते रहना\n- खुद में कमी ढूंढते रहना\n- खुद में आत्मविश्वास की कमी होना\n\nTreatments:\nतनाव दूर करने के टिप्स (Tips to Prevent Stress)\n- किसी भी प्रकार का नशा न करें।\n- भरपूर नींद और आराम जरूर करें।\n- खुद के ऊपर दबाव महसूस न करें।\n- मन को व्यवस्थित तथा मजबूत करने के लिए पुस्तकें ज्यादा पढ़ें।\n- दूसरों को भी सुनना सीखें।\n- गुस्से पर काबू रखें।\n- कुछ समय न��कालकर अपनी पसंद की चीजें भी करें।\n- अपने अंदर के बच्चे को मरने न दें। कभी कभी बच्चों की तरह खेलना भी जरूरी है।\n\nHome Remedies:\nभागदौड़ भरी दिनचर्या में अधिकांश लोग, तनाव (Stress) से ग्रसित हैं। तनाव से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्थिति भी प्रभावित होती है। इतना ही नहीं तनाव के कारण व्यक्ति के व्यवहार में भी परिवर्तन होते रहते हैं जिससे संबंधित व्यक्ति के साथ उससे जुड़े अन्य लोग भी प्रभावित होते हैं। तनाव से व्यक्ति की याददाश्त, सीखने की क्षमता (Learning ability), तथा कार्य करने की क्षमता (Working ability) भी प्रभावित होती है।\nआइए आपको बताते हैं तनाव से बचाव के लिए घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Stress):\n1. ग्रीन टी (Green tea)- ग्रीन टी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट (Anti Oxidents) शरीर तथा दिमाग को शांत करते हैं तथा मूड में सकारात्मक बदलाव लाते हैं। ग्रीन टी में मौजूद थियानीन (Theanine) सतर्कता और ध्यान बढ़ाता है। यदि किसी को ग्रीन टी पसंद न हो तो ब्लैक टी भी पी जा सकती है।\n2. संतरा (Orange)- संतरा में विटामिन सी उच्च मात्रा में पाया जाता है जो कि इम्यूनिटी (immunity) को बढ़ाने में सहायक है। संतरे में विटामिन ए और बी के साथ अन्य स्वास्थ्य वर्धक मिनरल भी पाये जाते हैं। तनाव से राहत के लिए रोजाना संतरे का एक गिलास ताजा जूस पीएं।\n3. दूध (Milk)- एक गिलास दूध शरीर को भरपूर एंटीऑक्सीडेंट और जरूरी पोषक तत्व देता है। यह सभी पोषक तत्व व्यक्ति को तनाव से लड़ने की शक्ति देते हैं और चित्त को शांत रखते हैं। रोजाना सुबह नाश्ते में तथा रात को सोने से पहले एक गिलास गरम दूध पीना तनाव से राहत देता है।", + "Disease: तनाव- स्ट्रैस (Stress)\n4. बादाम (Almond)- बादाम में विटामिन बी, ई, मैग्नीशियम, जिंक, सेलेनियम (selenium) तथा अन्य स्वास्थ्य वर्धक वसा पाई जाती है। जिस कारण यह तनाव से राहत देते हैं। बादाम को भून कर या कच्चा भी खाया जा सकता है। यदि ऐसे खाना संभव न हो तो बादाम का पाउडर बनाकर, दूध के साथ खाया जा सकता है।\n5. पालक (Spinach)- पालक में भरपूर मात्रा में विटामिन ए, बी और सी से भरपूर होती हैं। इनमें मिनरल (minerals) भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं जो तनाव से लड़ने की शक्ति देते हैं। एक कप पालक रोजाना खाने से शरीर और दिमाग दोनों को राहत मिलती है। पालक का सूप बनाकर, सब्जी, सलाद या ऑमलेट आदि में डालकर खाया जा सकता है।\n6. डार्क चॉकलेट (Dark chocolate)- स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक डार्क चॉकलेट खाना तनाव से बचने का बेहद आसान और स्वादिष्ट तरीका है। डार्क चॉकलेट खाने से शरीर में फील गुड हार्मोन (feel good hormone) का स्त्राव होता है जिसके कारण व्यक्ति खुशी महसूस करता है और तनाव से राहत मिलती है।\n7. जामुन (Blue berries)- जामुन में उच्च मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जिससे तनाव घटता है। जामुन को रोजाना खाने से तनाव, इन्सोमनिया (insomnia) और अन्य तरह के मूड डिस्ऑर्डर (mood disorder) से राहत मिलती है। जामुन को सलाद आदि में मिलाकर खाया जा सकता है। तनाव से राहत के लिए जामुन का जूस भी पीया जा सकता है।\n\n\n", + "Disease: दुबलापन (Leanness Or Weight Gain)\n\nDescription: \nदुबलापन (Leanness)\n\nSymptoms: \n- किसी भी कार्य को पूरा करने से पहले ही छोड़ देना। काम करने में मन न लगना\n- किसी भी मौसम को सह न पाने की शक्ति, जैसे कि सर्दी में ज्यादा सर्दी लगना और गर्मी में ज्यादा गर्मी लगना\n- गले की हड्डियां भी उभरी हुई नजर आना\n- घुटने, कोहनी आदि हिस्से उभरकर बाहर आना\n- चिड़चिड़ापन और हताश रहना\n- चेहरा पतला और धंसा हुआ नजर आना\n- जल्दी थक जाना\n- त्वचा रूखी तथा बेजान नजर आना\n- मल-मूत्र का कम मात्रा में विसर्जन\n- लंबाई के अनुपात में वजन का कम होना\n- शरीर के वसा वाले हिस्सों, जैसे कि नितंब आदि पर भी वसा का न होना\n- शरीर इतना पतला कि हड्डियां नजर आएं\n\nReasons: \nदुबलेपन के कारण (Cause of Leanness)\nजठराग्नि (ravenoisness) का धीमी गति से कार्य करना दुबलेपन का कारण होता है। दुबले लोगों में आहार रस का निर्माण कम मात्रा में होता है, इस कारण शरीर में रक्त, मांस, मेद, हड्डियों, मज्जा आदि को संपूर्ण पोषण नहीं मिल पाता जिससे शरीर दुबला रहता है।\nदुबले होने के अन्य कारण (Other Reason & Causes of leanness)\n- यदि पाचन शक्ति ठीक से काम न कर रही हो\n- मानसिक चिंता ज्यादा हो\n- व्यक्ति में हार्मोन असंतुलित हों\n- चयापचयी क्रिया में गड़बड़ी हो\n- बहुत ज्यादा व्यायाम या बिल्कुल व्यायाम न करना\n- शरीर में किसी तरह का कोई रोग हो, जैसे शुगर आदि\n- शरीर में खून की कमी हो\n- पेट में कीड़े हों\n\nTreatments:\n- ऐसा खाना खाएं जो जल्दी पच जाए\n- एक ही बार में ज्यादा भोजन की जगह बार-बार थोड़ा थोड़ा खाएं\n- नींद पूरी लें\n- शरीर को वसा (fatty) देने वाले खाद्य पदार्थ ज्यादा खाएं\n- रोजाना दूध जरूर पीएं\n- भोजन में देसी घी का इस्तेमाल करें\n- शराब या अन्य किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहें\n- मौसमी फल, सब्जियां और सूखे मेवे (dry fruits) रोज के खाने में शामिल करें\n\nHome Remedies:\nयूं तो आजकल हर कोई दुबला होने की चाहत रखता है लेकिन बहुत से लोग ऐसे भ�� हैं जो अपने दुबलेपन से निजात चाहते हैं। कुछ लोग इतने दुबले होते हैं कि लोग उनका मजाक बनाते हैं, लेकिन बहुत प्रयासों के बाद भी यह लोग वजन नहीं बढ़ा पाते हैं।\nआइए हम आपको कुछ ऐसे घरेलू नुस्खों के बारे में बताते हैं जिनसे आपका शरीर न सिर्फ भरेगा बल्कि चुस्त-दुरूस्त भी होगा।\nवजन बढ़ाने के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Leanness or Weight Gain)\nदूध और केला (Milk and Banana)\nकेला में पोटैशियम और कार्बोहाइड्रेट की उच्च मात्रा होती है जो शरीर को तुरंत ऊर्जा देती है। रोजाना सुबह एक गिलास गर्म दूध के साथ एक केला खाने से वजन बढ़ता है। दूध में चीनी भी मिलाएं।\nमूंगफली का मक्खन (Peanut Butter)\nमूंगफली के मक्खन में उच्च कैलोरी और पौष्टिक तत्व होते हैं। आम मक्खन की जगह नाश्ते में मूंगफली का मक्खन खाने से भी वजन बढ़ता है। इस मक्खन को फलों के साथ मिलाकर भी खाया जा सकता है।\nमेवा (Dry Fruit)\nमूंगफली, बादाम, काजू, अखरोट, किशमिश और अंजीर जैसे मेवों को भूनकर खाने से भी वजन बढ़ने में मदद मिलती है। सभी मेवे वसा, फाइबर, विटामिन और खनिज से भरे होते हैं जो कि वजन को संतुलित बनाते हैं। वजन को बढ़ाने के लिए हर रोज हर रोज दूध में सूखे मेवे उबालकर पिएं।\nआलू (Potato)\nआलू भी कार्बोहाइड्रेट से भरा होता है। आलू को यदि मक्खन में तलकर खाया जाए तो वजन बढ़ाने में सहायक है। आलू के चिप्स और फ्रैंच फ्राइज खाने वाले लोगों का वजन भी तेजी से बढ़ता है।\nदोपहर में सोना (Nap in Afternoon)\nदोपहर के सोने से भी वजन बढ़ता है। दोपहर को खाने के बाद तकरीबन 45 मिनट से एक घंटे की नींद लें। ऐसा करने से भी वजन बढ़ेगा।\nव्यायाम (Excersise)\nरोजाना व्यायाम करने से आपकी भूख खुलती है। जिससे आप भोजन की अच्छी मात्रा खाते हैं जो कि वजन बढ़ाने में सहायक है।\n\n\n", + "Disease: एसिडिटी या अम्लपित्त (Acidity)\n\nDescription: \nएसिडिटी (Acidity)\n\nSymptoms: \n- कभी-कभी छाती में दर्द हो सकता है।\n- खट्टी डकारें आना,\n- खाना या खट्टा पानी (एसिड) मुंह में आ जाना,\n- छाती में जलन होना\n- पेट में गैस बनना\n- मतली और उल्टी\n\nReasons: \nकारण (Cause of Acidity)\nहम जो भी खाते हैं, उसका पाचन (Digestion) बेहद जरूरी होता है। भोजन के पाचन के लिए आमाशय में कई तरह के पाचन रसायनों का स्त्राव होता है जैसे कि हाइड्रोक्लोरिक एसिड (Hydrochloric acid) और पेप्सिन (Pepsin)।\nसामान्य रूप से यह दोनों एसिड आमाशय में ही रहते हैं और खाने की नली के बीच में नहीं आते क्योंकि आमाशय और खाने की नली के बीच में मांसपेशियां होती हैं जो कि संक��चनशीलता के कारण आमाशय और भोजन नली का रास्ता बंद रखती हैं। यह रास्ता तब ही खुलता है जब हम कुछ खाते या पीते हैं लेकिन कभी- कभी किसी विकृति के कारण यह रास्ता अपने आप खुल जाता है जिससे आमाशय में मौजूद हाइड्रोक्लोरिक एसिड और पेप्सिन खाने की नली में आ जाते हैं। जब यह क्रिया बार बार होने लगती है तो व्यक्ति को एसिडिटी की समस्या हो जाती है जिसके बढ़ने पर अल्सर तक हो सकता है।\nएसिडिटी के अन्य कारण निम्न हैं (Other Reason & Causes of Acidity)\n- खान-पान में अनियमितता\n- खाने को ठीक से न चबाना\n- पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना\n- मसालेदार खाना ज्यादा खाना\n- धूम्रपान और शराब का ज्यादा सेवन\n\nTreatments:\n- पानी ज्यादा से ज्यादा से पीएं\n- चाय-कॉफी कम से कम पीएं\n- कोल्डड्रिंक या अन्य आर्टिफिशियल पेय न लें\n- खाना समय से खाएं और खाकर कुछ देर टहलें, तुरंत सोएं नहीं\n- ज्यादा तला-भुना या मसालेदार खाना न खाएं\n- भोजन बनाने में हींग का प्रयोग करें\n\nHome Remedies:\nपेट में पाचन रस की ज्यादा या कम मात्रा निकलने पर एसिडिटी की परेशानी होती है। एसिडिटी होने पर पेट में दर्द (Stomach Pain), गैस (Gas), मुंह से बदबू (Mouth Odour) और जी मिचलाने (Nausea) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। जो लोग अक्सर एसिडिटी से परेशान रहते हैं उनके लिए समस्या गंभीर हो सकती है। एसिडिटी मसालेदार खाना खाने, अनियमित खाने (Irregular Eating) की आदतें या बहुत ज्यादा स्ट्रेस लेने से भी होती है।\nइतना ही नहीं ज्यादा शराब पीने और चाय-कॉफी पीने वालों को भी एसिडिटी की दिक्कत होती है। आइए आपको बताते हैं कि कौन से घरेलू नुस्खे अपनाकर आप आसानी से एसिडिटी से राहत पा सकते हैं।\nएसिडिटी से बचाव के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Acidity)\nतुलसी के पत्ते (Basil Leaves)\nतुलसी के पत्ते आपको तुरंत एसिडिटी, गैस और उल्टी से राहत दे सकते हैं। उपचार के लिए कुछ तुलसी के पत्ते चबा कर खाएं। इसके अलावा तुलसी के कुछ पत्ते पानी में उबालकर, उस पानी को छान लें। गुनगुना रहने पर शहद मिलाकर पिएं। यह भी एसिडिटी के लिए अच्छा उपाय है।\nदालचीनी (Cinnamon)\nदालचीनी एक प्राकृतिक एंटासिड (Antacid) है जो पाचन शक्ति के लिए बेहद अच्छी है और गैस को दूर रखती है। उपचार के लिए एक कप पानी में आधा चम्मच दालीचीनी पाउडर डालकर उबालें। इस पानी को एक दिन में दो से तीन बार पिएं। इसके अलावा सूप या सलाद में भी दालचीनी पाउडर डालकर खाया जा सकता है।\nछाछ (Buttermilk)\nछाछ पीने से भी एसिडिटी में बहुत राहत ��िलती है। छाछ में पेट की अम्लता को संतुलित करने के लिए लैक्टिक एसिड होता है। उपचार के लिए मेथी के दानों को पानी के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को एक गिलास छाछ में मिलाकर पिएं। इससे पेट का दर्द भी ठीक होगा और गैस से भी राहत मिलेगी। साथ ही, एसिडिटी भी खत्म होगी। स्वाद बढ़ाने और बेहतर परिणाम के लिए इस छाछ में काला नमक और काली मिर्च भी मिलाई जा सकती है।\nसेब का सिरका (Apple Cider Vinegar)\nसेब का सिरका भी एसिडिटी को ठीक करने का आसान तरीका है। उपचार के लिए एक कप पानी में दो चम्मच कच्चा सेब का सिरका मिलाकर दिन में दो बार पिएं। खाना खाने से पहले भी इसे पिया जा सकता है।\nलौंग (Cloves)\nलौंग खाने से पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पेट की अम्लता कम होती है और एसिडिटी से राहत मिलती है। राहत के लिए खाने के बाद दो से तीन लौंग को मुंह में रखकर हल्का हल्का चबाकर चूसें।\nजीरा (Cumin)", + "Disease: एसिडिटी या अम्लपित्त (Acidity)\nजीरा भी एक बेहतरीन एसिड न्यूट्रालाइजर (Acid Neutralizer) है जो एसिडिटी को कम करता है। इसके साथ ही पाचन शक्ति को बढ़ाकर पेट दर्द से भी राहत देता है। उपचार के लिए जीरा को भूनकर उसका पाउडर बनाएं। इस पाउडर को खाना खाने के बाद एक गिलास पानी में मिलाकर पिएं। जीरा पाउडर को छाछ में मिलाकर भी पिया जा सकता है।\nअदरक (Ginger)\nअदरक में पेट की अम्लता से लड़ने के गुण होते हैं जो एसिडिटी से राहत देते हैं। उपचार के लिए खाने के बाद अदरक का एक छोटा टुकड़ा मुंह में रखकर चबाएं। या फिर एक कप पानी में अदरक को कुचलकर डालें और उबालें। इस पानी को छनकर पिएं।\nगुड़ (Jaggery)\nगुड़ में पाचन के लिए बेहद अच्छी खाद्य सामग्री है साथ ही गुड़ खाने से पेट की अम्लता भी कम होती है जिससे एसिडिटी से राहत मिलती है। उपचार के लिए हर रोज खाने के बाद एक टुकड़ा गुड़ का खाएं। हालांकि यह उपाय शुगर रोगियों के लिए ठीक नहीं है।\nठंडा दूध (Cold Milk)\nदूध पेट में एसिड के निर्माण को रोकता है साथ ही गैस्ट्रिक एसिड को स्थिर करके एसिडिटी की समस्या होने से बचाता है। हालांकि एसिडिटी की समस्या होने पर सिर्फ ठंडा दूध ही पीना चाहिए। गरम दूध उतना लाभकारी नहीं होता।\nसौंफ (Fennel)\nसौंफ खाने को पचाने में सहायता करती है और गैस को दूर रखती है। हर रोज खाना खाने के बाद सौंफ को मुंह में रखकर चबाएं। सौंफ के साथ मिश्री भी मिलाई जा सकती है। ऐसा करने से एसिडिटी से राहत मिलती है।\n\n\n", + "Disease: एलर्जी (Allergy)\n\nDescription: \nएलर्जी (Allergy)\nकिसी भी चीज के प्रति अतिसंवेदनशील होना ही एलर्जी है, जिसे स्वास्थ्य की भाषा में एटोपी (atopy) भी कहते हैं। एलर्जी किसी से भी हो सकती है, मौसम में बदलाव से, किसी खाने की चीज से, पालतु जानवर से, धूल से, धुएं से, सौंदर्य प्रसाधनों से या दवाओं आदि से।\nएलर्जी में शरीर का इम्यून सिस्टम कुछ खास चीजों को स्वीकार नहीं कर पाता। इन चीजों के प्रति इम्यूनिटी अयोग्य तरह से प्रतिक्रिया देती है। इम्यूनिटी द्वारा दी जाने वाली प्रतिक्रिया ही एलर्जी होती है। यूं देखा जाए तो अधिकतर एलर्जी खतरनाक नहीं होती लेकिन कभी कभी समस्या गंभीर हो जाती है।\nएलर्जी को रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए एलर्जी पैदा करने वाले कारणों से पूरी तरह दूर रहना होगा। यूं तो एलर्जी फैलने वाली बीमारी नहीं है फिर भी यदि किसी को नाक बहने और आंखों से पानी आने वाली एलर्जी हो तो उससे संपर्क बनाकर रखने में ही बेहतरी है। संभव हो तो उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए सामान को भी इस्तेमाल न करें।\n\nSymptoms: \n- आंख में खुजली होना और आंख का लाल हो जाना\n- आंख से पानी आना\n- एग्जिमा और गर्मियों में बुखार\n- गले में खुजली होना\n- त्वचा पर खुजली होना\n- त्वचा पर पित्त उठना\n- त्वचा पर लाल चकत्ते और दाने होना\n- नाक के अंदर बार- बार दाने निकलना\n- नाक में बार-बार खुजली होना\n- नाक से पानी आना\n\nReasons: \nएलर्जी के कारण- (cause of allergy)\n1. धूल (Dust)\nधूल के कण बहुत छोटे जीव होते हैं जो हमारे- आस पास की ज्यादातर वस्तुओं पर रहते हैं। यह कण उच्च आद्रता में पनपते हैं जो मृत त्वचा, बैक्टीरिया और फंगस आदि से अपना खाना प्राप्त करते हैं।\n2. कीट (Insect)\nकीटों से एलर्जी वाले लोगों को कीटों के काटने से डंक लगने से त्वचा एकदम लाल होकर फूल जाती है। इतना ही नहीं उन्हें उल्टी, चक्कर आना और बुखार भी हो सकता है।\n3. खाना (Food)\nकुछ लोगों को रोजमर्रा में खायी जाने वाली चीजों से भी एलर्जी होती है, जैसे मूंगफली, दूध और अंडा आदि। खाद्य पदार्थ से एलर्जी वाले लोगों को खाने के बाद जी मिचलाने, शरीर में खुजली होने या दाने निकलने की समस्या हो सकती है।\n4. रबड़ (Latex)\nरबड़ से बना कोई भी उत्पाद, एलर्जी का कारण हो सकता है। कुछ लोगों को रबड़ से बने उत्पाद भी नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे दस्ताने, कंडोम, मेडिकल उपकरण आदि के इस्तेमाल से जलन, नाक बहना, छींकना, सांस की घबराहट और खुजली की समस्याएं हो स���ती हैं।\n5. खुशबू (Fragrance)\nअच्छी खुशबू भले अच्छी लगती हो लेकिन यह भी कुछ लोगों की एलर्जी का कारण हो सकती है। परफ्यूम, खुशबू वाली मोमबत्तियां, कई तरह के ब्यूटी प्रॉडक्ट आदि की खुशबू से सिर दर्द, जी मिचलाने और नाक की एलर्जी हो सकती है।\n6. जानवर (Pets)\nपालतु जानवर भी कई लोगों की एलर्जी का कारण होते हैं। जानवरों के बाल, उनके मुंह से निकलने वाली लार, रूसी आदि से कई गंभीर परेशानियां हो सकती हैं।\n7. घास (Grass)\nकई बार घास, पेड़ और फूल भी एलर्जी का कारण होते हैं। यह सब मौसमी एलर्जी का कारण होते हैं, जिनसे खुजली, आंखों में जलन, लगातार छींक आना और खुजली आदि की समस्या हो सकती है।\n\nTreatments:\nएलर्जी से निजात पाने के लिए उपाय (Tips to Prevent Allergy)\n- धूल, धुंआ और गंदगी से बचकर रहें।\n- कुछ दवाओं जैसे एस्पिरीन, निमुसलाइड आदि के सेवन में सावधानी बरतें।\n- खट्टी चीजों, जैसे अचार आदि का इस्तेमाल कम करें।\n- ऐसे खाद्य पदार्थ जिन्हें खाने से एलर्जी है, उन्हें न खाएं।\n- गंदगी से एलर्जी वाले लोगों को समय-समय पर चादर, तकिये के कवर और पर्दे आदि बदलते रहने चाहिए।\n\nHome Remedies:\nधूल (Dust), गंदगी (Dirt), मौसम में परिवर्तन (Climate change), सीलन, आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिनसे व्यक्ति को एलर्जी (Allergy) हो सकती है। पर्यावरण में मौजूद चीजों के लिए अलग-अलग संवेदनशीलता होती है जिसके चलते हमारा शरीर प्रतिक्रिया करता है। ऐसे में विजातीय पदार्थों की शरीर में अस्वीकारता एलर्जी है।\nकुछ लोगों को खाने की चीजों से एलर्जी हो सकती है। अधिक छींकें आना, सांस लेते समय आवाज होना, शरीर में किसी तरह की सूजन, खुजली, चक्कर आना, जी घबराना, पेट में मरोड़ होना आदि एलर्जी के कुछ लक्षण हैं।", + "Disease: एलर्जी (Allergy)\nआइए आपको बताते हैं एलर्जी से बचने के कुछ घरेलू उपाए (Home remedies of Allergy):\n1.शहद (Honey)- शहद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। रोजाना दो चम्मच शहद का इस्तेमाल शरीर को काफी लाभ पहुंचाता है। एक गिलास गुनगुने पानी में शहद मिला कर पीने से या दूध में शहद मिला कर पीने से काफी लाभ पहुंचता है।\n2. सेब (Apple)- रोजाना एक सेब खाने से इम्यून सिस्टम (immune system) बेहतर होता है और आप एलर्जी से दूर रहते हैं। सेब का जूस भी पीया जा सकता है।\n3.हल्दी (Turmeric)- एलर्जी से बचाने में हल्दी भी काफी प्रभावशाली है। हल्दी में ताकतवर एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो एलर्जी से लड़ने में मदद करते हैं। एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी मिलाकर पीने से काफी लाभ पहुंचता है।\n4. लहसून (Garlic)- लहसून भी एक एंटी एलर्जी खाद्य पदार्थ है जिसे अपनी डाइट में शामिल करना आवश्यक है। यह एक एंटी बॉयोटिक, एंटी ऑक्सीडेंट और इम्यूनिटी बढ़ाने वाला खाद्य पदार्थ है। लहसून को सब्जी में डालकर या सुबह खाली पेट एक दो कली पानी के साथ निगलने से काफी फायदा होता है।\n5.नींबू (Lemon)- नींबू में उच्च मात्रा में विटामिन सी और एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है। नींबू इम्यून सिस्टम बढ़ाता है और एलर्जी से दूर रखने में काफी फायदेमंद साबित होता है।\n6. अदरक (Ginger)- अदरक के सेवन से सांस की बीमारी में आराम मिलता है। ऐसे में यह अस्थमा से संबंधित एलर्जी में काफी आराम पहुंचाता है। रोजाना अदरक का सेवन करने से एलर्जी से राहत पाई जा सकती है। डॉक्टर की सलाह पर अदरक के सप्लीमेंट भी लिए जा सकते हैं।\n7. ग्रीन टी (Green tea)- ग्रीन टी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। इसमें मौजूद थियानीन भी एलर्जी से बचाने में मदद करता है। यदि किसी को ग्रीन टी पसंद न हो तो ब्लैक टी भी पी जा सकती है।\n8. बादाम (Almond)- बादाम में विटामिन बी, ई, मैग्नीशियम, जिंक, सेलेनियम (selenium) तथा अन्य स्वास्थ्यवर्धक वसा पाई जाती है। जिस कारण यह तनाव से तो राहत देते ही हैं साथ ही एलर्जी से बचाने में भी मदद करते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता को तेज कर शरीर और दिमाग को मजबूती देते हैं। बादाम को भून कर या कच्चा भी खाया जा सकता है। यदि ऐसे खाना संभव न हो तो बादाम का पाउडर बनाकर, दूध के साथ खाया जा सकता है।\n\n\n", + "Disease: मोतियाबिंद- केटेरेक्ट (Cataract)\n\nDescription: \nकेटेरेक्ट या मोतियाबिंद (Cataract)\nमोतियाबिंद आंख के लेंस में उभरा सफेद रंग का धब्बा है, जो कि आंख की दृष्टि को प्रभावित करता है। मोतियाबिंद होने से व्यक्ति को कोई भी वस्तु धुंधली नजर आती है। मोतियाबिंद ज्यादातर बुजुर्गों को होता है। मोतियाबिंद केवल एक आंख या दोनों आंखों में भी हो सकता है, यहां तक कि यह एक आंख से दूसरी आंख में भी फैल सकता है।\n\nSymptoms: \n- आंखों के लेंस पर सफेद परत का जमना\n- एक आंख से दो चीजें नजर आना\n- कई दफा हल्की रोशनी भी बहुत तेज प्रतीत होना\n- किसी भी वस्तु का रंग हल्का नजर आना\n- कोई भी वस्तु धुंधली नजर आना\n- चश्मे का नंबर बार-बार बदलना\n- तेज रोशनी से परेशानी होना\n- रात की लाइट में छल्ले नुमा आकृति नजर आना\n- रात को गाड़ी चलाने में दिक्कत होना\n- शाम होत��� ही आंखों की रोशनी और भी कमजोर होना\n\nReasons: \nआंख के अंदर का लेंस कैमरे की तरह काम करता है। यही रेटिना पर लाइट को फोकस करता है जिससे चीजें साफ नजर आती हैं। लेंस पानी और प्रोटीन से मिलकर बनता है। प्रोटीन इस तरह से लेंस के साथ जुड़ी रहती है कि यह लेंस को साफ रखती है जिससे कि रोशनी आर-पार जा सके।\nउम्र बढ़ने के साथ कई बार कुछ प्रोटीन एक जगह इकट्ठी हो जाती है और लेंस के एक हिस्से पर जमा हो जाती है। ऐसे में मोतियाबिंद आंख के लेंस में अत्यधिक प्रोटीन के बनने के कारण होता है जो लेंस को धुंधला बना देता है। यह लेंस के जरिए रोशनी को पूरी तरह जाने नहीं देता जिससे आंख से साफ दिखाई नहीं देता। ऐसे में सभी नए लेंस सेल्स, लेंस के बाहर की ओर जमा हो जाते हैं जबकि सभी पुराने लेंस सेल्स, लेंस के बीचों बीच एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं, जिसे मोतियाबिंद या केटेरेक्ट कहते हैं।\nमोतियाबिंद होने के अन्य कारण (other reason & causes of cataract)\n- आंखों में किसी तरह का अन्य रोग होना, जैसा ग्लूकोमा आदि\n- जन्मजात आंख में मोतियाबिंद होना\n- डायबिटीज होना\n- शरीर में किसी परेशानी, जैसे अस्थमा के लिए स्टेरॉइड लेना\n- अचानक से तेज रोशनी के संपर्क में आने से या लगातार तेज रोशनी में रहने से\n- धूम्रपान या शराब आदि का ज्यादा सेवन करने से\n\nTreatments:\nमोतियाबिंद के उपाय (tips to prevent cataract)\n- धूप या तेज रोशनी से खुद को बचाएं, आंखों पर चश्मा और सिर पर टोपी पहन के रहें\n- किसी भी तरह का कोई नशा न करें\n- पौष्टिक खाना खाएं\n- समय-समय पर आंखों की जांच करवाएं\n- तनाव से दूर रहें\n- डायबिटीज नियंत्रण में रखें\n\nHome Remedies:\nजब आंखों की बात हो तो समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि यदि आंखों की रोशनी एक बार चली गई तो दोबारा नहीं पाई जा सकती। मोतियाबिंद (Cataract) भी ऐसी ही गंभीर समस्या है, जिसमें आंखों के लेंस पर एक धब्बा (spot on the eye lens) आ जाता है। जिससे आप जो भी चीज देखते हैं वह आपको धुंधली नजर आती है और वहां आपको धब्बा जैसा नजर आता है।\nयूं तो मोतियाबिंद को सर्जरी के द्वारा हटाया जा सकता है लेकिन कुछ घरेलू नुस्खों की मदद से भी मोतियाबिंद का इलाज संभव है। यदि शुरूआत में सचेत होकर यह अपनाए जाएं तो संभव है आपको सर्जरी या ऑपरेशन न करवाना पड़े।\nमोतियाबिंद के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies for Cataract)\nलहसुन (Garlic)\nलहसुन के असंख्य स्वास्थ्य लाभ हैं और यह आंखों के लिए भी समान रूप से लाभकारी है। लहसुन की दो से तीन कलियां (2 to 3 clove) रोजाना खाने से आंखों से एकदम साफ दिखाई देने लगेगा और कुछ ही दिनों में धब्बे की शिकायत दूर हो जाएगी।\nपालक (Spinach)\nपालक खाने से मोतियाबिंद काफी हद तक ठीक हो जाता है। पालक में बीटा कैरोटीन (Beta Carotene) ओर एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidents) गुण होते हैं। पालक को रोजाना खाने से आंखों का मोतियाबिंद कुछ दिन में ही खत्म हो जाता है और आंखें पहले जैसी हो जाती हैं।\nदूध और बादाम (Milk and Almond)\nमोतियाबिंद से परेशान लोगों की आंखें ज्यादातर लाल रहती हैं और समस्या से निपटना और भी मुश्किल होता है। ऐसे में दूध और बादाम आंखों को लाभ देते हैं। उपचार के लिए बादाम को रात भर दूध में भिगाकर छोड़ दें। इस दूध को सुबह छानकर इसकी बूंदे आंखों में डालें और बादाम को चबा कर खा लें।\nग्रीन टी (Green Tea)", + "Disease: मोतियाबिंद- केटेरेक्ट (Cataract)\nग्रीन टी से आंखों की रोशनी तेज हो सकती है। ग्रीन टी सामान्य आंखों की समस्या में भी लाभकारी है। रोजाना तीन से चार बार ग्रीन टी पीने आंखों को स्वास्थ्य लाभ होता है। ग्रीन टी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट (Antioxident) आंखों को नई ताजगी देते हैं।\nकच्चा पपीता (Raw Papaya)\nकच्चे पपीते में पपेन (Papain) नाम का एंजाइम होता है जो कि प्रोटीन (Protien) के पाचन में सहायक होता है। मोतियाबिंद से परेशान लोगों को प्रोटीन को पचाने में दिक्कत आती है, ऐसे में कच्चा पपीता मोतियाबिंद से ग्रसित लोगों को लाभ देता है। कच्चा पपीता रोजाना इस्तेमाल करने से आंखों के लेंस नए जैसे चमकने लगते हैं।\nविटामिन सी (Vitamin C)\nमोतियाबिंद के इलाज में विटामिन सी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विटामिन सी के सेवन से मोतियाबिंद संरचनाओं को रोका जा सकता है। आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों को इस्तेमाल करें, जिनमें विटामिन सी ज्यादा से ज्यादा हो। इसके अलावा विटामिन सी सप्लीमेंट (Vitamin C Suppliment) के रूप में भी लिया जा सकता है।\nकच्ची सब्जियां (Raw Vegetables)\nकच्ची सब्जियां आंखों के लिए चमत्कार का काम कर सकती है। कच्ची सब्जियों में पोषक तत्व और विटामिन ए (Vitamin A) की उच्च मात्रा होती है जो कि आंखों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। अपने दैनिक आहार में कच्ची सब्जियों को इस्तेमाल करने से मोतियाबिंद के साथ ही आंखों की अन्य सामान्य समस्याओं से भी निपटा जा सकता है। कच्ची सब्जियों को सलाद के रूप में जितना संभव हो खाएं।\nजामुन (Bilberrys)\nजामुन से मोतियाबिंद पूरी तरह नहीं हटता लेकिन दृष्टि की अस्पष्टता को जामुन खाने से ठीक किया जा सकता है। जामुन में एंथोसायनोसाइड्स (Anthocyanosides) तथा फ्लेवनाइड्स (Flavonoids) काफी अधिक होते हैं जो कि रेटिना (Retina) और आंखों के लैंस (Eye Lens) की रक्षा करते हैं।\n\n\n", + "Disease: सर्दी और कफ (Cough And Cold)\n\nDescription: \nसर्दी और कफ (Cough and Cold)\nनाक बह रही है, या बंद है जिससे कि सांस लेने में तकलीफ हो रही है, गले में दर्द महसूस हो रहा है या गले में चुभन और छिला (scratchy throat) जैसे महसूस हो रहा है और खांसी के साथ बलगम (muscus) परेशान कर रहा है तो समझ लीजिए आप सर्दी- जुकाम और कफ से परेशान हैं।\n\nSymptoms: \n- आंखों से खूब पानी आना और जलन होना\n- आवाज भारी होना\n- खाने में स्वाद और खुशबू महसूस न होना\n- गला छिला हुआ या दर्द महसूस होना\n- छींक आना\n- नाक का बंद होना\n- नाक से खूब पानी गिरना\n- नाक से गले की ओर बलगम का गिरना\n- मांसपेशियों में दर्द या खिंचाव होना\n- सिर भारी महसूस होना या हल्का दर्द होना\n\nReasons: \nकारण- (Cause of Cough and Cold)\nसर्दी हिनोवायरस (rhinovirus) से फैलती है जो कि 10 से 40 प्रतिशत तक सर्दी को शरीर में प्रवेश कराता है। वहीं कोरोनावायरस (coronavirus) लगभग 20 प्रतिशत सर्दी के लिए जिम्मेदार होता है। इनके अलावा रेसपीरेटरी सिंसीटायल वायरस (respiratory syncytial virus) और पैराइंफ्लूएंजा वायरस (parainfluenza virus) 10 फीसदी तक सर्दी के लिए जिम्मेदार होते हैं।\nसर्दी, संक्रमण से भी फैलती है। एक संक्रमित व्यक्ति या उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए सामान के संपर्क में आने से दूसरे को भी सर्दी की समस्या हो सकती है। यह वायरस शरीर के अंदर पहुंचकर व्यक्ति की रोग क्षमता को प्रभावित करते हैं और काफी मात्रा में बलगम बनाना शुरू कर देते हैं, जिससे गला और नाक पूरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। इतना ही नहीं संक्रमित व्यक्ति के छींकने (sneezing), उससे हाथ मिलाने से भी सर्दी के बैक्टीरिया दूसरे व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं।\nसर्दी और कफ के लिए कई अन्य कारण (Other causes of Cough and Cold)\n- कमरे में सीलन या घुटन हो\n- तेज धूप से आने के बाद तुरंत ठंडा पानी पीना\n- शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना\n- बहुत तेज परफ्यूम या तेल का इस्तेमाल\n- ऑफिस या घर के बाहर बिना हाथ साफ किए खाना-पीना\n\nTreatments:\nसर्दी से राहत के लिए टिप्स (Tips to prevent cough and cold)\n- आराम करें, खूब पेय पदार्थ लें और स्वास्थ्यवर्धक खाना खाएं।\n- यदि बुखार या शरीर में दर्द हो तो पैरासिटामॉल ली जा सकती है।\n- नाक पर बाम या बाजार में मौजूद स्प्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे ���ंद नाक खुलेगी और राहत मिलेगी।\n- गरम पानी में नमक डाल कर गरारे करते रहें।\n- खाने-पीने से पहले अपने हाथ अच्छी तरह धोएं।\n- संक्रमिक व्यक्ति के संपर्क में न आएं, जैसे कि हाथ मिलाने की जगह नमस्ते की जा सकती है।\n- यदि आप खुद संक्रमित हैं तो भीड़ वाली जगहों पर जाने से बचें और अपनी चीजें जैसे रूमाल आदि दूसरों से दूर रखें।\n- ठंडी और बाहर की चीजें खाने से परहेज करें।\n\nHome Remedies:\nमौसम में परिवर्तन, सर्द-गर्म होने या प्रदूषण और एलर्जी (Allergy) या संक्रमण (Infection) के कारण सर्दी-खांसी की समस्या हो जाती है। कई बार संक्रमण भी इसका कारण होता है।\nआइए जानते हैं, सर्दी खांसी से बचाव के घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Cough and Cold):\n1. हल्दी (Turmeric)- आधा कप गर्म पानी को उबाल लें फिर उसमें एक चम्मच काली मिर्च पाउडर (black pepper powder), एक चम्मच हल्दी पाउडर और एक चम्मच शहद मिलाएं। अब इस मिश्रण को दो से तीन मिनट तक उबाल लें और नियमित तौर पर काढ़े की तरह पीएं।\n2. अदरक (Ginger)- अदरक को घिसकर या छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर एक कप पानी में डालकर उबाल लें। दिन भर में तीन से चार बार इस घोल को पीएं। शहद और नींबू को अदरक के रस में मिलाकर पीने से भी कफ की शिकायत दूर होती है।\n3. नींबू (Lemon)- एक चम्मच शहद में दो चम्मच नींबू का रस मिलाकर गर्म कर लें। दिन भर में कई बार इस घोल को दवा की तरह लेते रहें।\n4. लहसुन (Garlic)- लौंग के तेल और शहद में लहसुन की दो से तीन कली को पीस कर मिला लें। दिन भर में कई बार थोड़ी थोड़ी मात्रा में इसका सेवन करते रहें।\n5. प्याज (Onion)- एक चम्मच शहद में आधा चम्मच प्याज का रस लें और इसको मिलाकर दिन भर में कम से कम दो बार अवश्य सेवन करें। कफ और गले की खराश से राहत मिलेगी।", + "Disease: सर्दी और कफ (Cough And Cold)\n6. गर्म तरल पदार्थ पीएं (Drink warm liquids)- गर्म पानी पीएं ये गले की सूजन (throat sweeling) के लिए फायदेमंद है। आप चाहें तो कोई अन्य गरम पदार्थ भी पी सकते हैं।\n7. शहद (Honey)- शहद गले को आराम पहुंचाने के लिए एक पारंपरिक उपाय है। एक गिलास गर्म पानी में शहद और नींबू का रस मिलाकर दिन में तीन बार पीने से खाँसी से राहत मिलती है।\n8. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)- सेब का सिरका हर तरह की खाँसी के लिए अच्छा है। 2 बड़ा चम्मच सिरका 10 तोला पानी में मिलाकर गरम करें। इसमें एक चम्मच शहद डालकर पीएं। खांसी में राहत पाने का कारगर उपाय है।\n9. तुलसी के पत्ते और शहद (Honey and basil leaves)- धुले हुए तुलसी के कुछ पत्तों को कूट कर उसका रस निकालें और उसमे श���द मिलाएं। अब इसे चम्मच में गरम करके दिन में 3-4 बार लें, इस घरेलू उपाय से खांसी में जल्दी आराम मिलता है।\n\n\n", + "Disease: टिटनस (Tetanus)\n\nDescription: \nटिटनस (Tetanus)\nमनुष्यों के घाव (Wound) में संक्रमण होने से टिटनस होता है जिसका कारण क्लोस्ट्रीडियम टिटानी बैक्टीरिया (Clostridium Tetani Bacteria) है। यही जीवाणु घाव या चोट में विष पैदा करता है जिससे टिटनस हो जाता है। धीरे-धीरे यही जहर पूरे शरीर में फैलने लगता है जिससे स्थिति घातक हो जाती है। टिटनस के कारण कई बार व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। टिटनस में शरीर की मांसपेशियों में ऐंठन महसूस होती है और रूक रूक कर दर्द होता है। हालांकि किसी चोट के लगने के बाद यदि तुरंत टिटनस का टीका लगवाया जाए तो इससे होने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है।\n\nSymptoms: \n- उच्च रक्तचाप\n- गर्दन में ऐंठन होना\n- चिड़चिड़ापन\n- चेहरे की मांसपेशियों का जकड़ जाना\n- जबड़े का बंद हो जाना\n- निगलने में दिक्कत होना\n- पसीना खूब आना\n- मांसपेशियों में ऐंठन और अकड़न महसूस होना\n- सांस लेने में तकलीफ होना\n- हृदय गति का तेज होना\n\nReasons: \nटिटनस का कारण (Cause of Tetanus)\nक्लोस्ट्रीडियम टिटानी (Clostridium Tetani)छड़ के आकर का जीवाणु है जो दुनिया भर में मिट्टी में पाया जाता है। क्लोस्ट्रीडियम टिटानी टिटनस रोग के लिए जिम्मेदार जीवाणु है। यह बैक्टीरिया दो रूपों में पाया जाता है, पहला डोरमंट या निष्क्रिय रूप में दूसरा सक्रिय रूप में जो जीवाणुओं की संख्या को और भी बढ़ा देता है। किसी भी तरह की चोट में टिटनस हो सकती है।\n- घाव से\n- सर्जरी में\n- प्रसव के दौरान\n- कोई फोड़ा होने पर\n- सुई या इंजेक्शन से नशा करने वालों को\n- किसी पुराने जंग लगे लोहे से चोट लगने से\n\nTreatments:\nटिटनस से बचने के लिए टिप्स (Tips to Prevent Tetanus)\n- कोई भी ऐसा घाव जिससे त्वचा फट गई हो, उसे तुरंत पानी और साबुन से साफ किया जाना चाहिए।\n- घाव को कभी खुला न छोड़ें। खुले घाव के संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।\n- यदि घाव से खून बह रहा हो तो तो उस पर सूती और सूखा कपड़ा बांधें।\n- रक्त को रोकने के लिए घाव के ऊपर दबाव डालें, जिससे रक्त बहना रूक जाए।\n- घायल व्यक्ति को तुरंत टिटनस का टीका लगवाना चाहिए।\nटिटनस के अन्य उपचार (Treatment of Tetanus)\n- घाव को गरम पानी से धोएं और कोई एंटीसेप्टिक क्रीम या पाउडर लगाएं। \n- तारपीन के तेल से शरीर की मालिश करें, इसमें पैर, जबड़े और गर्दन पर हल्के हाथ से दबाव डालते हुए मालिश करें। \n- घाव के ऊपर तेल को गरम करके उसमें हल्दी मिलाकर लगाएं\n- मोमबत्ती के मोम को पिघलाकर भी घाव पर लगाया जा सकता है\n- कटे स्थान पर नीम का तेल लगाने से भी टिटनस का डर नहीं रहता\n\n\n", + "Disease: मोच (Sprains)\n\nDescription: \nमोच (Sprains)\nशरीर के जोड़ के लिगामेंट (ligament) या स्नायु जब किसी चोट के कारण जरूरत से ज्यादा खिंच जाते हैं तो इस अवस्था को मोच (Sprains or Moch) कहा जाता है। ज्यादा खिंचाव के कारण पेशियों के फाइबर फट जाते हैं और लिगामेंट में घाव हो जाता है। लिगामेंट एक हड्डी को दूसरी हड्डी से जोड़ने (connect) का कार्य करते हैं।\n\nSymptoms: \n- चोट वाली जगह पर असहनीय दर्द\n- चोट वाली जगह पर सुन्नपन होना\n- प्रभावित स्थान को मोड़ने या चलाने में परेशानी होना\n- प्रभावित स्थान पर नीला या काला धब्बा आना\n- प्रभावित स्थान पर सूजन आना\n- बिना सहारे के चलने फिरने में दिक्कत होना\n\nReasons: \nमोच के कारण- (Causes of Sprains)\nमोच शरीर के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग कारणों से आ सकती है। मोच सामान्य या क्रोनिक भी हो सकती है।\n1. एंकल में मोच (Ankle Sprains)- ऊंची-नीची जगह पर चलने या दौड़ने से एंकल में मोच आ सकती है। कई बार हाई हील पहनने से पैर अचानक से मुड़ता है, यह भी पैर में मोच का कारण हो सकता है।\n2. घुटने में मोच (Knee Sprains)- भागते- भागते अचानक गिर जाने या कोई भारी वस्तु उठाकर चलने से घुटनों में मोच आ सकती है। कई बार चलते चलते अचानक घुटना मुड़ जाता है। यह भी घुटने में मोच का कारण हो सकता है।\n3. कलाई में मोच (Wrist Sprains)- गिरने के दौरान हाथ के मुड़ने, किसी के द्वारा हाथ को गलत तरीके से खींचने, खेल के दौरान आदि स्थितियों में कलाई में मोच आ सकती है।\n4. कमर में मोच (Waist Sprains)- कई बार सीढ़ियां चढ़ने उतरने में दिक्कत होने या, किसी ऊंची जगह से कमर के बल गिरने से या जरूरत से ज्यादा भारी चीज को झुककर उठाने से कमर में मोच आ सकती है।\n5. अंगूठे में मोच (Thumb Sprains)- कई तरह के खेल खेलने या कहीं अंगूठा दब जाने के कारण चोट लगने से अंगूठे में मोच आ सकती है।\n6. गर्दन में मोच (Neck Sprains)- अचानक से गर्दन में झटका लगने, ज्यादा ऊंचा तकिया लगाने, किसी प्रकार से गर्दन में चोट लगने की स्थिति में गर्दन में मोच आ सकती है।\nअन्य कारण (other causes & reason of sprains)\n- कई बार व्यायाम करने से पहले वार्मअप न होना और अचानक से कठिन व्यायाम शुरू कर देना भी मोच आने का कारण हो सकता है।\n- पैर में प्रॉपर फुटवियर न होने से भी पैर के मुड़ने या चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है जिससे मोच की संभावना रहती है।\n\nTreatments:\nमोच ���े निजात के लिए उपाय (Treatment of Sprain Pain)\n- मोच से निजात के लिए प्रभावित स्थान पर चने बांध दें। इन चनों को बार- बार भिगाते रहें। जैसे जैसे चने फूलेंगे, मोच ठीक होती जाएगी।\n- मोच वाले स्थान पर एरंड के पत्तों को हल्का सा सेंक कर उस पर सरसों का तेल लगाकर, प्रभावित स्थान पर बांध दें।\n- तिल के तेल में अफीम मिलाकर मोच वाले स्थान पर बांध दें।\n- मोच वाले स्थान पर हल्दी, चूना और शहद को मिलाकर लगाने से चोट ठीक हो जाती है।\n- मोच से निजात के लिए तेजपत्ता और लौंग को पीसकर लेप लगाएं।\n- सरसों के तेल में अजवायन और लहसुन को गरम करके, इस तेल से मोच वाले स्थान की मालिश करें।\n- पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर उसे हल्का गरम करें और मोच वाले स्थान पर बांधें ।\n- तुलसी पत्तों के रस में सरसों का तेल मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। तुरंत आराम मिलेगा।\n- अखरोट के तेल से मालिश करने पर भी चोट में आराम मिलता है।\n- नमक को गरम करके, किसी मोटे कपड़े में बांधकर, चोट वाले स्थान पर बांध दें। आराम मिलेगा।\n- नमक और हल्दी को मिलाकर चोट वाले स्थान पर लगाने से भी आराम मिलेगा।\n- पान के पत्ते या आम के पत्ते पर तेल लगाकर, उस पर नमक लगाएं और गरम करके चोट वाले स्थान पर बांध दें। ऐसा करने से भी मोच ठीक हो जाएगी।\n- मोच और सूजन में एलोवेरा लगाने से भी आराम मिलता है।\n\nHome Remedies:", + "Disease: मोच (Sprains)\nऊंची एड़ी के जूते-चप्पल पहनने, पैर ऊंचे नीचे पड़ने, व्यायाम बहुत ज्यादा या गलत तरह से करने, बहुत ज्यादा चलने, गलत तरह से उठने बैठने आदि ऐसे कुछ कारण हैं, जिनसे शरीर में मोच (sprain) की स्थिति बन जाती है। कई दफा दर्द असहनीय भी हो सकता है और प्रभावित जगह पर लाल या नीला निशान और सूजन भी आ सकती है। यदि खिंचाव की परेशानी हो तो पैरों को ठण्ड से बचायें और ऐसे कपड़े का चुनाव करें जो ठण्ड के दिनों में आपके पैरों को हवा न लगने दें।\nआइए जानें मोच से राहत के घरेलू उपाय (Home remedies for sprain):\n1. गर्म और ठंडा सेंक (Hot and cold compress)- शरीर के दर्द वाले हिस्से पर क्रम से गर्म और ठंडे पानी का सेक करें, ये तनावग्रस्त मांसपेशियों को आराम पहुंचाएगा। इसे कई तरीके से कर सकते हैं जैसे कि तौलिये को गर्म पानी में डुबायें और तनावग्रस्त मांसपेशी पर लगा सकते हैं। तनावग्रस्त मांसपेशी में आराम के लिए गुनगुने पानी से नहाया जा सकता है या भाप ले सकते हैं। बर्फ लगाकर भी आराम पा सकते हैं।\n2. मांसपेशी को खींचना (Stretch your muscle)- दिन प्रतिदिन की सामान्य शारीरिक प्रक्रिया के लिये जाने से पहले, मांसपेशियों को खींचना महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए हल्की हल्की स्ट्रेचिंग करें। अगर आपको रात में सोते समय पैरों में खिंचाव होता है, तो अच्छा होगा कि आप मांसपेशियों को खींचने का अभ्यास करें।\n3. तरल पदार्थ लेते रहें (Take enough liquid)- तरल पदार्थ के साथ पानी को नियमित अंतराल पर लेकर शरीर में नमी बनायें रखें। 8 गिलास पानी पीने के साथ आपको फलों का जूस भी पीना चाहिये। पर्याप्त मात्रा में तरल लेना आपके मांसपेशियों में कम मरोड़ पैदा करेगा और आराम देगा।\n4. केला (Banana)- केले में पर्याप्त मात्रा में पोटैशियम होता है। यह शरीर के लिये बेहद अच्छा होता है। अगर नाश्ते या भोजन के बाद प्रतिदिन एक केला खाते हैं तो यह मांसपेशियों को मरोड़ से दूर रखेगा और खिंचाव से राहत देगा।\n5. गर्म पैड से सिकाई (Hot pad)- एक समय ऐसा था जब लोग गर्म पानी को पैड पर डालकर फिर इस्तेमाल करते थे और शरीर पर लगाकर सभी प्रकार के दर्द से दूर रहते थे। लेकिन अब बाज़ार में बिजली से चलने वाले गर्म पैड मौजूद हैं। इन पैड से सिकाई करने से मांसपेशियों का खिंचाव दूर होता है और दर्द से राहत मिलती है।\n6. मालिश (Massage)- प्रभावित हिस्से की मालिश करना भी बेहद राहत देता है। किसी भी तेल को थोड़ा गुनगुना करके, उसमें लहसुन की कुछ कलियां डालें। कुछ देर इस तेल को और गरम करें और गुनगुना रहने पर प्रभावित हिस्से की हल्के हाथों से मालिश करें। कुछ ही देर में पैरों में खिंचाव कम होगा और दर्द में भी आराम मिलेगा।\n\n\n", + "Disease: निम्न रक्तचाप या लो ब्लडप्रेशर (Low Blood Pressure)\n\nDescription: \nनिम्न रक्तचाप या लो ब्लडप्रेशर (Low Blood Pressure)\nलो ब्लडप्रेशर या निम्न रक्तचाप, ऑक्सीजन (oxygen) को दिमाग तक जाने से रोकता है। केवल ऑक्सीजन ही नही बल्कि अन्य पोषक तत्व भी दिमाग तक नहीं पहुंच पाते। ब्लडप्रेशर को स्वास्थ्य की भाषा में हाइपोटेंशन (hypotension) के नाम से जानते हैं।\nयूं तो लो ब्लडप्रेशर कोई बीमारी नहीं होती लेकिन यह शरीर में पनप रही अन्य गंभीर बीमारी का संकेत होती है। ऐसे में जब किसी के शरीर में रक्त-प्रवाह सामान्य से कम हो जाता है तो उसे निम्न रक्तचाप या लो ब्लड प्रेशर कहते है। नार्मल ब्लड प्रेशर 120/80 होता है। ऐसे में दिल, किडनी, फेफड़े और दिमाग आंशिक रूप से या पूरी तरह से काम करना भी बंद कर सकते हैं।\n\nSymptoms: \n- आंखों के आगे अंधेरा छाना\n- उल्��ी और डायरिया\n- गर्दन का अकड़ जाना\n- चक्कर आना\n- छाती में दर्द, सांस फूलना\n- हाथों और पैरों का ठंडा होना\n- हृदय में मिस्ड बीट्स महसूस की जाती है\n\nReasons: \nब्लड प्रेशर कम होने के कारण (causes of low blood pressure)\n1. दिल की बीमारी (heart disease)- ब्लडप्रेशर कम होना दिल की गंभीर बीमारी से जुड़ा होता है, दिल की बीमारी से हार्ट की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे हार्ट पर्याप्त खून को पम्प नहीं कर पाता और हमारा बीपी लो रहने लगता है। दिल के मरीजों और एनीमिया के रोगी लो बीपी को लेकर सावधान रहें।\n2. आर्थोस्टेटिक हाइपरटेंशन टाइप (arthostetic hypertension type)- इसमें मरीज को खड़े होने पर चक्कर आते हैं, क्योंकि उसका ब्लड प्रेशर एकदम से 20 पॉइंट नीचे आ जाता है। यह नर्वस सिस्टम पर आधारित होता है। लेकिन कई बार दवाओं के साइड इफेक्ट से या एलर्जी से भी हो सकती है।\n3. खून की कमी तथा अन्य का (less blood and other reason)- शरीर के अंदरूनी अंगों से खून बह जाने या खून की कमी से, खाने में पौष्टिकता की कमी या अनियमितता से, फेफड़ों के अटैक से, हार्ट का वॉल्व खराब हो जाने से, लो बीपी हो सकता है। अचानक सदमा लगने, कोई भयावह दृश्य देखने या खबर सुनने से भी लो बीपी हो सकता है।\nइसके अलावा (other reason & causes of low blood pressure)\n- गर्भावस्था, हार्मोन असंतुलन जैसे कि थायरॉइड की सक्रियता कम हो जाना\n- ब्लड शुगर दवाओं के प्रभाव से\n- स्ट्रोक तथा लीवर संबंधी बीमारियां\n- कुछ आवश्यक विटामिन जैसे बी12 और आयरन की कमी\n\nTreatments:\nब्लडप्रेशर लो है तो क्या करें (some tips to prevent low blood pressure)\n- तुरंत बैठ या लेट जाएं, मुट्ठियां भींचें, बांधें, खोलें, पैर हिलायें।\n- नमक और चीनी वाला पानी या चाय पीएं। पैरों के नीचे दो तकिए लगाकर लेटें।\n- जो लोग पहले से हाई बीपी की दवा खा रहे हैं, वे दवा खाना बंद कर दें।\n- कम से कम आठ गिलास पानी और अन्य पेय रोज पीएं।\n- भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम कर दें।\n- इन सब के अलावा तुरन्त डॉक्टरी सलाह लें।\n\nHome Remedies:\n- निम्न रक्तचाप से पीड़ित लोग नमक ज्यादा खाएं\n- लगातार चक्कर आ रहे हों, तो पानी ज्यादा पीएं\n- एक कप शकरकंद का जूस दिन में दो बार पीएं\n- मिट्टी के बर्तन में रातभर किशमिश भिगाकर रखें। सुबह किशमिश चबाकर खाएं और पानी पी लें\n- सुबह खाली पेट तुलसी के पत्ते के रस में शहद मिलाकर खाएं\n- रात में बादाम भिगाकर रखें, सुबह इन बादाम के छिलके उतारकर पीस लें और दूध के साथ उबालें। इस दूध को गुनगुना पीएं।\n\n\n", + "Disease: सफेद बाल- ग्रे हेयर (Grey Hair)\n\nDescription: \nसफेद बाल- ग्रे हेयर (Grey hair)\nउम्र के साथ बालों का सफेद होना प्राकृतिक है लेकिन कई बार कम उम्र में ही बाल सफेद होने लगते हैं। ऐसा कई बार हार्मोनल गड़बड़ी, बदलती लाइफस्टाइल और प्रदूषण वाले माहौल के कारण भी हो सकता है। मौजूदा समय में टीनेज में ही बच्चों के बाल सफेद होने लगते हैं।\n\nSymptoms: \n- उम्र से पहले बाल सफेद हो जाना\n- बाल नाजुक होना\n- बाल पतले हो जाना\n- बालों का टेक्सचर ख़राब होना\n\nReasons: \nकारण- (Cause of Grey Hair)\nमेलानिन के आधार पर ही बालों का रंग काला, सफेद या भूरा होता है। जिनके बालों में मेलानिन की कमी होती है उनके बालों का रंग हल्का होता है जिनके बालों में मेलानिन ज्यादा होता है उनके बाल काले होते हैं। जिन लोगों के बाल सफेद हो जाते हैं उनके बालों में मेलानिन खत्म हो जाता है। मेलानिन पिगमेंट बालों के फॉलीकल में रहता है। कुछ मामलों में थॉइराइड, अनीमिया या आनुवांशिक कारणों से भी बाल सफेद हो सकते हैं।\nबाल सफ़ेद होने के अन्य कारण (Other Reasons & Causes of Gray Hair)\n- विटामिन बी, आयरन और कॉपर तथा आयोडीन जैसे तत्वों की कमी से बाल सफेद होते हैं। जिन लोगों के खाने में इन मिनरल की कमी होती है उनके बाल समय से पहले सफेद होने लगते हैं।\n- ऐसे व्यक्ति जो बहुत ज्यादा गुस्सैल होते हैं या बहुत जल्दी तनाव में आते उनके बाल भी जल्दी सफेद होने लगते हैं।\n- कुछ व्यक्तियों में उम्र से पहले बालों का सफेद होना आनुवांशिक होता है।\n- बहुत लंबे समय तक किसी बीमारी से पीड़ित रहने या जल्दी जल्दी बीमार पड़ने वाले लोगों के बाल भी उम्र से पहले सफेद होने लगते हैं।\n- बालों की देखभाल ठीक प्रकार से न की जाए या बालों की सफाई का ध्यान न रखा जाए तो भी बाल उम्र से पहले सफेद होने लगते हैं।\n- बहुत ज्यादा रसायन वाले शैंपू या बालों के उत्पाद जैसे कि हेयर कलर या जेल आदि इस्तेमाल करने वाले लोगों के बाल भी जल्दी सफेद होने लगते हैं।\n- बहुत ज्यादा प्रदूषण वाले माहौल या धूप में रहने से भी बालों का रंग उड़ने लगता है।\n\nTreatments:\nबालों को काला करने के लिए उपचार (Tips & Remedies to prevent gray hair)\n- कच्चे पपीते का पेस्ट सिर पर तकरीबन 10 मिनट लगाकर रखें। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में बालों का झड़ना रूकेगा साथ ही बाल काले भी होंगे। इतना ही नहीं बालों से डेंड्रफ भी खत्म होगा।\n- बाल धोने के लिए केमिकल शैंपू का इस्तेमाल बंद करें, इसकी जगह बेसन और दूध या दही का इस्तेमाल करें। ���सा करने से बालों का प्राकृतिक रंग बना रहेगा।\n- बाल धोने के लिए आंवला पाउडर और नींबू का इस्तेमाल करें। शिकाकाई और रीठा मिलाकर घर पर ही शैंपू भी बनाया जा सकता है।\n- सिर में लाल प्याज को पीसकर उसका रस लगाएं। ऐसा करने से भी सफेद बाल काले होने लगते हैं साथ ही बालों का झड़ना भी बंद हो जाता है।\n- दही में काली मिर्च और नींबू का रस मिलाकर सिर की त्वचा और बालों पर लगाएं। तकरीबन आधे घंटे बाद बाल धो दें, ऐसा करने से बाल काले होने लगेंगे।\n- देसी घी भी सफेद बालों को काला करने का सरल उपाय है। तेल की जगह देसी घी से बालों की मसाज करें।\n- आंवले का प्रयोग खाने में भी करें। आंवला खाने से भी बाल काले होते हैं।\n\nHome Remedies:\nआजकल उम्र से पहले ही बालों का पकना या सफेद होना आम समस्या बनती जा रही है। बालों की ठीक से देखभाल न हो पाने और प्रदूषण के कारण, हमारे बाल असमय ही सफेद हो जाते हैं। बालों को कलर करना इस समस्या का कोई उपचार नहीं है लेकिन कुछ घरेलू उपचार आजमाकर आप अपने बालों को सफेद होने से रोक सकते हैं।\nजानिए सफेद बालों को काला करने के घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Grey Hair)\n1. प्याज का रस (Onion juice)- कुछ दिनों तक, नहाने से 1/2 घंटा पहले रोजाना सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं। इससे बाल काले होने लगेंगे।\n2. कच्चा पपीता (Raw papaya)- सप्ताह में कम से कम 3 दिन दस मिनट तक कच्चे पपीते का पेस्ट सिर में लगाएं। इससे बाल नहीं झड़ेंगे और काले भी होने लगेंगे।", + "Disease: सफेद बाल- ग्रे हेयर (Grey Hair)\n3. नारियल तेल (Coconut oil)- भृंगराज और अश्वगंधा की जड़ें बालों के लिए वरदान मानी जाती हैं। इनका पेस्ट नारियल के तेल के साथ बालों की जड़ों में लगाएं और 1 घंटे बाद गुनगुने पानी से अच्छी तरह से बाल धो लें। इससे भी बाल काले होते हैं।\n4. नींबू का रस (Lemon jiuce)- नींबू के रस में आंवला पाउडर मिलाकर उसे सिर पर लगाने से भी सफेद बाल काले हो जाते हैं।\n5. देसी घी (Desi ghee)- प्रतिदिन शुद्ध घी से सिर की मालिश करने से भी सफेद बाल काले होते हैं।\n6. अदरक (Ginger)- अदरक को कद्दूकस कर शहद में मिला लें। इसे बालों पर कम से कम सप्ताह में दो बार नियमित रूप से लगाएं। बालों का सफ़ेद होना कम हो जाएगा।\n7. जैतून का तेल (Olive oil)- जैतून के तेल को हल्का गर्म करें। इसमें 4 ग्राम कपूर मिलाकर इस तेल से मालिश करें। इसकी मालिश से कुछ ही समय में रूसी खत्म हो जाएगी और बाल भी काले रहेंगे।\n8. आंवला (Aamla)- आंवले के पाउडर में नींबू का रस मिलाकर उसे नियमित रूप से लगाएं। शैंपू के बाद आंवला पाउडर पानी में घोलकर लगाने से भी बालों की कंडीशनिंग होती है, और बाल भी काले होते हैं। आंवला किसी ना किसी रुप मे सेवन भी अवश्य करते रहें।\n9. तिल का तेल (Sesame oil)- सर्दियों में तिल अधिक से अधिक खाएं। तिल का तेल भी बालों को काला करने में मदद करता है।\n10. काली मिर्च (Black pepper)- आधा कप दही में चुटकी भर काली मिर्च और चम्मच भर नींबू रस मिलाकर बालों में लगाए। 15 मिनट बाद बाल धो लें। सफेद बाल फिर से काले होने लगेंगे।\n11. मेंहदी (Henna)- लोहे की कड़ाही में एक कटोरी मेहंदी पाउडर, दो बड़े चम्मच चाय का पानी, दो चम्मच आंवला पाउडर, एक चम्मच नींबू का रस, दो चम्मच दही, शिकाकाई व रीठा पाउडर, एक अंडा (अगर आप लेना चाहें तो), आधा चम्मच नारियल तेल व थोड़ा-सा कत्था डालकर रात को भिगो दें। इसे सुबह बालों में लगाएं, फिर दो घंटे बाद धो लें। इससे बाल बिना किसी नुकसान के काले हो जाएँगे। ऐसा माह में कम से कम एक बार अवश्य करें।\n\n\n", + "Disease: हड्डी फ्रैक्चर या हड्डी का खिसकना (Bone Fracture Or Dislocation)\n\nDescription: \nहड्डी फ्रैक्चर या हड्डी का खिसकना (Bone fracture or dislocation)\nफ्रैक्चर (Fracture)- हड्डी का टूटना ही हड्डी का फ्रैक्चर कहलाता है। हड्डी कई कारणों से टूट सकती है, कहीं गिरने से, टक्कर लगने से, झटका लगने से या अचानक से दबाव पड़ने पर।\nहड्डी का खिसकना (Dislocation of bone) - दो हड्डियां जब जुड़े हुए स्थान से खिसक जाती हैं तो इसे डिस्लोकेशन या हड्डी का खिसकना कहते हैं। दो हड्डियां एक जोड़ पर जाकर मिलती हैं, लेकिन इस जोड़ पर चोट लगने के कारण इसी जोड़ से हड्डियां खिसक जाती हैं। हड्डियों के खिसकने पर भी बहुत दर्द होता है और संबंधित स्थान पर सूजन आ जाती है।\n\nSymptoms: \n- असहनीय तरह से दर्द होना\n- आस-पास की तंत्रिकाओं में क्षति के कारण अकड़न\n- फ्रैक्चर की जगह पर सूजन आ जाना\n- फ्रैक्चर के आस-पास के उतकों में अस्थिरता\n- फ्रैक्चर वाले स्थान का पूरी तरह से काम बंद कर देना\n- बेहोश होना\n\nReasons: \nकारण- (Causes of bone frtacture or dislocation)\nफ्रैक्चर के कई कारण हो सकते हैं। हड्डियों के कमजोर होने या हड्डियों से संबंधित कैंसर, सिस्ट, ऑस्टियोपोरोसिस आदि होने से। फ्रैक्चर के बाद हड्डी में दर्द के भी कई कारण हो सकते हैं-\n- हड्डियों के आस-पास के नर्व एडिंग्स, जो हड्डी के टूटने पर सक्रिय होकर दिमाग को दर्द का संकेत देते हैं।\n- हड्डियां टूटने से रक्तस्त्राव का होना और सूजन आना, जिससे दर्द होता है।\n- फ्��ैक्चर होने पर मांसपेशियां सिकुड़ कर हड्डी को बचाने की कोशिश करती हैं, यह भी दर्द का कारण होता है।\n- ऐसी कोई दुर्घटना होने पर जिससे हड्डियां प्रभावित हों।\n- हड्डियों का फ्रैक्चर व्यक्ति की उम्र पर भी निर्भर करता है क्योंकि ज्यादा उम्र में फ्रैक्चर के चांसेस बढ़ जाते हैं।\nकुछ स्थितियों में असहनीय दर्द भी हो सकता है जैसे-\n- संक्रमण होने पर\n- गलत तरीके से प्लास्टर लगाने पर, बहुत ढीला या बहुत टाइट\n\nTreatments:\nउपचार- (Tips to prevent bone fracture or dislocation)\n- फ्रैक्चर वाली जगह की बर्फ से सिकाई करें। सूजन कम होगी और दर्द से आराम मिलेगा।\n- पीड़ित व्यक्ति को पूरी तरह आराम करना चाहिए। संभव हो तो संबंधित जगह को हिलाने-डुलाने से बचें।\n- गर्म सिकाई करने से भी आराम मिलता है।\n- यदि हाथ या पैर की हड्डी टूटी हो तो उसे ऊंचाई पर करके रखें।\n- फ्रैक्चर वाले स्थान के आस-पास की जगह पर मालिश करें।\n- आधा अनानास रोज खाएं।\n- रेड मीट खाने से बचें।\n- प्रिजरवेटिव खाना न खाएं।\nसावधानियाँ- (Precautions)\n- कार में बैठकर हमेशा सीट बेल्ट पहनें।\n- कोई खेल खेलते समय या साइकिल और मोटरसाइकिल चलाते समय, संबंधित सेफ्टी उपकरण जरूर पहनें।\n- यदि किसी को ऑस्टीपोरोसिस है, तो नियमित व्यायाम करें और हड्डियों को मजबूत करने वाली डाइट लें।\n\n\n", + "Disease: चिकन पॉक्स- चेचक (Chickenpox)\n\nDescription: \nचिकन पॉक्स- चेचक (Chickenpox)\nचेचक एक वायरल संक्रमण (viral infection) है जिससे शरीर पर छाले की तरह दाने बनते हैं और उनमें खुजली (itching) होती है। चेचक ऐसे लोगों को ज्यादा होता है जो बीमार न पड़ते हों या जिन्होंने चेचक से बचने के लिए टीकाकरण न करवाया हो। पहले के समय में युवा होने तक हर कोई चेचक रोग से एक न एक बार जरूर प्रभावित होता था लेकिन आज के समय में इस तरह के रोगों में कमी आई है। ज्यादातर लोगों के लिए, चेचक एक हल्की बीमारी है। फिर भी, यह टीका लगाया जाना बेहतर है। चेचक के टीके चेचक और उसकी संभावित जटिलताओं को रोकने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है।\n\nSymptoms: \n- थकान (कमजोरी) महसूस होना\n- बुखार, सिरदर्द\n- भूख में कमी\n- शरीर पर लाल-गुलाबी, छोटे दानों का उभरना\n\nReasons: \nकिन लोगों को होता है अधिक खतरा? (Risk Factors of Chicken Pox)\nचेचक अत्यधिक संक्रमित होती है, और यह तेजी से फैल सकती है। वायरस के दाने के साथ सीधे संपर्क में आने से या खांसने या छींकने से हवा में बैक्टीरिया फैलने से दूसरों को हो सकती है। चेचक (chechak) का खतरा तब और अधिक होता है जब: \n- किसी को कभी चेचक न हुई हो।\n- चेचक के लिए टीकाकरण न करवाया हो।\n- बच्चे जो स्कूल या हॉस्टल में संक्रमण से प्रभावित हुए हों।\n\nTreatments:\nउपचार (Treatments of Chicken Pox)\n- एक चम्मच बेकिंग सोडा (baking soda) को एक गिलास पानी में घोलकर, इस पानी को रूई की सहायता से शरीर पर लगाएं। चेचक से निजात मिलेगी।\n- चेचक के दौरान होने वाली खुजली से बचने के लिए ओटमील (oatmeal) को पानी में डालकर नहाएं।\n- चेचक (chechak) से होने वाली खुजली से बचने के लिए कैलामाइन लोशन (calamine lotion) को दानों के ऊपर लगाएं।\n- दिन में दो से तीन बार प्रभावित स्थान पर शहद लगाएं।\n- चेचक को जल्दी ठीक करने के लिए गाजर और हरे धनिया का सूप बनाकर पीएं।\n- चंदन के तेल में रूई भिगाकर, प्रभावित स्थान पर लगाएं।\n- हरी मटर को उबालकर उसका पेस्ट बनाकर, दानों पर लगाएं, आराम मिलेगा।\n- एलोवेरा का ताजा रस निकालकर दानों पर लगाएं।\nटिप्स (Tips for Chicken Pox)\n- यदि चेचक के साथ बुखार भी है तो खूब पेय पदार्थ पीएं। पानी, जूस और सूप समय समय पर लेते रहें। यदि बच्चा संक्रमित मां का दूध पीता हो, तो मां को दूध नहीं पिलाना चाहिए।\n- दानों को न खुजलाएं और हाथों के नाखून छोटे रखें। रात में सोते समय खुजलाने से बचने के लिए हाथों पर ग्लव्स (gloves) पहनें।\n- खुजली से बचने के लिए शरीर को ठंडा रखें। हल्के कपड़े पहनें और गरम पानी से नहाने से बचें।\n- इस बात का भी ध्यान रखें कि संक्रमण घर के दूसरों सदस्यों तक न फैले। संक्रमित व्यक्ति के कपड़े, बिस्तर आदि दूर रखें और उन्हें घर के अन्य सदस्यों के कपड़ों से अलग ही धोएं।\n\nHome Remedies:\nशरीर में तेजी से खुजली होना, लाल दाने निकल आना चिकन पॉक्स या चेचक (Chicken pox) के प्रमुख लक्षण हैं। 1 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक के बच्चों में चिकन पॉक्स का खतरा ज्यादा होता है। खान-पान में हुई अनियमितता चिकन पॉक्स के फैलने का प्रमुख कारण होती है। इस दौरान नाखून से चकत्तों को हटाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से यह फैलता है।\nचेचक (Chechak) के समय खान-पान का उचित ध्यान रखना चाहिए। मसालेदार और ऑयली खाना खाने से बचें। चिकनपॉक्स के किसी मरीज को कभी एस्प्रिन नहीं देनी चाहिए। इससे उसकी हालत खराब हो सकती है। चिकन पॉक्स होने पर बाहर और भीड़ वाली जगह पर जाने से परहेज करें। हो सके तो इस दौरान लोगों से दूर रहें।\nजानिए चिकन पॉक्स से बचाव के घरेलू नुस्खे (Home Remedies for Chicken pox)\nनिम्न उपचारों को अपनाकर इस बीमारी से राहत पाई जा स���ती है:\n1. जई का आटा (Oat Flour)- चिकन पॉक्स होने पर शरीर में बहुत तेज खुजली होती है। खुजली से बचने के लिए जई के आटे को पानी में मिलाकर स्नान करना चाहिए। 2 लीटर पानी में 2 कप जई का आटा मिलाकर लगभग 15 मिनट तक उबालें, पके आटे को एक कॉटन के बैग में अच्छी तरह से बांधकर बॉथ टब में डालकर नहाएं।", + "Disease: चिकन पॉक्स- चेचक (Chickenpox)\n2. भूरा सिरका (Brown Vinegar)- आधा कप भूरे सिरके को पानी में डालकर नहाने से शरीर में हो रही खुजली से निजात पायी जा सकती है। इससे दानों की सूजन कम होती है और दाने सूखने भी लगते हैं।\n3. नींबू का रस (Lemon Juice)- नींबू का रस पीने से चिकन पॉक्स में राहत मिलती है। उपचार के लिए समय समय पर एक गिलास साफ पानी में नींबू निचोड़कर पीते रहें।\n4. नीम की पत्तियां (Margosa Leaves)- नीम की पत्तियों को गर्म पानी में डालकर नहाने से खुजली समाप्त होती है। नीम प्राकृतिक रूप से एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है। ऐसे में चिकन पॉक्स ठीक करने में बेहद फायदेमंद है।\n5. बेकिंग सोडा (Baking Soda)- आधा चम्मच बेकिंग सोडा को एक गिलास गुनगुने पानी में मिलाएं और इस लेप को पूरे शरीर पर लगाकर सूखने दें। इससे चिकनपॉक्स जल्द ठीक हो जाता है।\n6. सेब का सिरका (Apple Cider Vinegar)- आधा कप सेब के सिरके को हल्के गर्म पानी में मिलाकर नहाने से राहत मिलती है। इस पानी में तकरीबन 20 मिनट तक जरूर बैठें।\n7. विटामिन ई तेल (Vitamin E Oil)- विटामिन-ई युक्त तेल को शरीर पर लगाने से चिकन पॉक्स के दौरान होने वाली खुजली से राहत मिलती है।\n8. गाजर (Carrot)- उबले गाजर और धनिया खाने से चिकन पॉक्स से आई कमजोरी कम होती है। गाजर और धनिया का सूप बनाकर पीने से राहत मिलती है।\n9. हर्बल चाय (Herbal Tea)- तुलसी, गेंदा और कैमोमाइल को मिलाकर चाय बनाइए फिर उसमें शहद या नींबू मिलाकर पीजिए। इस चाय को दिन में 3-4 बार पीने से राहत मिलती है।\n10. हरी मटर (Green Pea)- हरी मटर को पानी में पकाकर इसके पानी को शरीर में लगाइए, इससे चिकन पॉक्स के लाल चकत्ते समाप्त होते हैं।\n11. अदरक (Ginger)- बाथ टब में ठंडा पानी लें और उसमें अदरक डालकर तीस मिनट तक छोड़ दें। उसके बाद इस पानी में बैठ जाएं। इससे चिकनपॉक्स के दौरान होने वाली खुजली में आराम मिलता है।\n\n\n", + "Disease: हैजा (Cholera)\n\nDescription: \nहैजा (Cholera)\nहैजा एक संक्रामक बीमारी (infectious disease) है, जो आंतों को प्रभावित करती है और जिसमें पानी की तरह पतले दस्त लग जाते हैं। हैजा का इलाज समय रहते न किया जाए तो व्यक्ति में पानी की कमी (dehydration) ह�� जाती है, जिससे व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। हैजा दूषित पानी पीने या दूषित खाना खाने के कारण फैलता है। ऐसा पानी या खाना जिसमें वाइब्रियो कोलेरी बैक्टीरिया (vibrio cholerae becteria) मौजूद हो, हैजा का कारण बनता है।\nहैजा (Haija) ऐसी जगह पर ज्यादा फैलता है जहां, साफ सफाई का अभाव हो, सीवरयुक्त पानी की सप्लाई हो, साग-सब्जी सीवर के पानी में उगाई जा रही हों या किसी का घर नाले आदि के पास स्थित हो। हैजा, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, किसी में भी हो सकता है। गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों में भी इस रोग के होने की आशंका ज्यादा रहती है क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। हैजा में व्यक्ति के शरीर से पानी के साथ कई जरूरी लवण, सोडियम और पोटेशियम आदि भी निकल जाते हैं, जिससे व्यक्ति के शरीर का रक्त अम्लीय हो जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।\n\nSymptoms: \n- दस्त एकदम पतले और चावल के पानी जैसे होना\n- दस्त के साथ उल्टियां होना\n- प्रभावित व्यक्ति को अत्यधिक प्यास लगना\n- प्रभावित व्यक्ति को पेशाब कम आना\n- शरीर की मांस पेशियों में ऐंठन होना\n\nReasons: \nहैजा का कारण (Causes of Cholera in Hindi)\n1- दूषित पानी, भोजन, फल या दूध आदि का प्रयोग करने से।\n2- रोगी व्यक्ति के संपर्क में रहने से, मसलन, उसके साथ खाने, उठने-बैठने, उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए कपड़े पहनने, उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए किसी भी सामान को इस्तेमाल करने से।\n3- मक्खियां भी हैजा (Haija) फैलने का बड़ा कारण हैं। खुले में की गई शौच या गंदगी पर बैठकर मक्खियां बैक्टीरिया लेकर दूसरी जगहों पर फैला देती हैं, जिससे हैजा फैलता है।\n4- खाने को बिना ढके रखना, और उसे खाना।\n5- पानी को बिना ढके रखना।\n6- कच्चा या अधपका भोजन, खासकर मांस खाना।\n\nTreatments:\nउपचार (Treatment of Cholera)\nहैजा का इलाज करने से पहले रोगी को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना हाहिए। हैजा अकसर साफ-सफाई की कमी के कारण भी फैलता है। हैजा होने पर निम्न उपाय अपनाने चाहिए: \n- दूषित भोजन, पानी या किसी अन्य खाद्य पदार्थ का इस्तेमाल न करें\n- बासी भोजन न करें\n- प्रत्येक खाद्य पदार्थ और पानी को हमेशा ढक कर रखें\n- शरीर में पानी की कमी न होने दें।\n- बीमारी हो रही हो तो नींबू की शिकंजी, दही, छाछ, पानी तथा ओआरएस आदि पीते रहें\n- यदि व्यक्ति के दस्त और उल्टी न रूक रहे हों, तो उसे तुरंत अस्पताल ले जाएं\n- प्रत्येक व्यक्ति को हैजा (Haija) से संबंधित टीका जरूर लगवाना चाहिए\n- रोगी के इस��तेमाल से संबंधित हर चीज को दूसरे लोगों से अलग रखें\n- पानी में फिनाइल डालकर फर्श को साफ करें, ऐसा करने से कीटाणु मर जाते हैं। \n\nHome Remedies:\nपेय पदार्थ की मात्रा बढ़ायें। पानी, नींबू पानी, छाछ आदि पीते रहें।\nघर पर ओआरएस तैयार करें, इसके लिए चार कप पानी में छह छोटे चम्मच चीनी और आधी छोटी चम्मच नमक मिलाएं और जितना ज्यादा पी सकें, पीएं।\nदही में केला मिलाकर खाएं।\nअदरक को कद्दूकस करके शहद के साथ मिलाकर खाएं। यदि शौच में खून के धब्बे आ रहे हों तो अदरक न खाएं।\nएक गिलास पानी में शहद, नींबू और नमक मिलाकर पियें।\n10 से 20 मिलीग्राम जिंक की जरूरत रोज होती है, ऐसे में जिंक के सप्लीमेंट लें।\nप्याज और काली मिर्च को पीसकर पेस्ट बनाएं। इसे दिन में तीन बार एक हफ्ते के लिए खाएं।\nलौंग डालकर पानी को उबालें और छानकर, इस पानी को पीएं।\nदही में मेथी पाउडर और जीरा पाउडर डालकर खाएं।\nनींबू के रस में कच्ची हल्दी की जड़ें 2 घंटे के लिए भिगा कर रखें और बाद में पीसकर एक कंटेनर में रख लें। एक कप पानी में इस पेस्ट की कुछ मात्रा को पानी और शहद मिलाकर पीएं।\n\n\n", + "Disease: जर्मन मीजल्स या रूबेला (German Measles)\n\nDescription: \nजर्मन मीजल्स या रूबेला (German measles)\nनाक, सांस की नली और फेफड़ों से संबंधित संक्रमण को रूबेला कहते हैं। यह एक तरह का खसरा है जिसे रूबियोला या जर्मन मीजल्स के नाम से भी जाना जाता है। यह बेहद संक्रमित होता है और तेजी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाता है। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से यह तेजी से दूसरे व्यक्ति को भी संकमित कर देता है।\n\nSymptoms: \n- गाल के अंदर नीले या भूरे धब्बे नजर आना\n- जलन के साथ लाल आंखें\n- नाक का बंद होना\n- निरंतर खांसी बने रहना,\n- मांसपेशियों में ऐंठन और अकड़न महसूस होना\n- सिर दर्द होना,\n- शरीर पर लाल-गुलाबी, छोटे दानों का उभरना\n- बुखार\n\nReasons: \nकारण और जटिलताएं- (Cause and Complications of German Measles)\nरूबेला का कारण, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना ही है। संकमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से रोग के जीवाणु हवा में तैरने लगते हैं और इसके संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं। छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं या ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसकी इम्यूनिटी कम हो, रूबेला का शिकार हो सकता है। रूबेला से पीड़ित व्यक्ति में कई जटिलताएं भी हो सकती हैं, खासकर गर्भवती महिला के शिशु में-\n- मोतियाबिंद\n- बहरापन\n- शरीर के कई अंगों में डिफेक्ट\n- मानसिक रूप से कमजोरी\n- सामान्य शारीरिक विकास न होना\n- उंगलियों और घुटनों में अर्थराइटिस के लक्षण आना\n\nTreatments:\nटिप्स (Tips to Prevent German Measles)\n- शरीर को पूरी तरह से आराम दें।\n- दोस्तों, सहकर्मियों, खासकर गर्भवती महिलाओं को अपनी बीमारी के बारे में बताएं और खुद से दूर रहने की सलाह दें।\n- ऐसे लोगों से भी दूर रहें जिनकी इम्यूनिटी कमजोर हो। \n- संक्रमित व्यक्ति अपने इस्तेमाल की सभी चीजें दूसरे लोगों से दूर रखे।\n- दूसरे लोगों को संक्रमित व्यक्ति के संपर्क से बचना चाहिए। साथ ही रोगी को खुद भी इस संबंध में सावधानी रखनी चाहिए।\nउपचार (Treatment of German measles)\nपानी में नींबू डालकर पीएं। \nनारियल का पानी पीएं। \nलिकोरेसी की जड़ के पाउडर में शहद मिलाकर रोगी को चटाएं। \nनीम की पत्तियों को डालकर पानी गरम करें, इस पानी से संक्रमित व्यक्ति को स्नान कराएं। \nलहसुन की कलियों को पीसकर उसमें शहद मिलाकर, रोगी को चटाएं। \nआंवला पाउडर को पानी के साथ मिलाकर, इस पानी से शरीर पोंछे। \nजौ के पानी में बादाम के तेल की कुछ बूंदे डालकर पीएं। \nध्यान रखने योग्य बातें (Precautions for german measles)\n- रोगी को एकांत कमरे में रखें, जहां घर के अन्य सदस्य कम जाते हों।\n- रोगी को गरम पानी पीने को देते रहें। खासकर सुबह खाली पेट जरूर गरम पानी पीने को दें।\n- रोगी को समय-समय पर तरह तरह के जूस पीने को दें।\n- इम्यूनिटी बढ़ाने वाला खाना, फल और सब्जियां खाने को दें।\n- रोगी को सूरज की रोशनी से बचा के रखें।\n- दूध या दूध से बने अन्य खाद्य पदार्थ रोगी को न दें।\n- रोगी का कमरा हमेशा साफ और हवादार रखें।\n\n\n", + "Disease: इन्फ्लूएंजा (Influenza)\n\nDescription: \nइन्फ्लूएंजा (Influenza)\nइन्फ्लूएंजा को साधारण भाषा में फ्लू (flu) के नाम से जाना जाता है, जिसमें श्वसन तंत्र में संक्रमण (infection in respiratory system) हो जाता है। इस तरह का फ्लू अधिकतर सर्दियों के मौसम में वायरल बीमारी के रूप में होता है। यह उन लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता किसी बीमारी के कारण कम हुई हो।\n\nSymptoms: \n- असामान्य थकान महसूस होन।\n- कफ\n- चक्कर आना\n- छींक आना\n- ठंड के साथ बुखार आना,\n- त्वचा का नीला पड़ना\n- नाक बहना होना\n- पेट या छाती पर दबाव महसूस होना और दर्द होना\n- मरीज पर बेहोशी हावी हो\n- मांसपेशियों में दर्द\n- सांस फूलना\n- सांस लेने में कठिनाई\n- सिरदर्द होना\n- उल्टी\n\nReasons: \nकारण (Reasons of Influenza)\nइन्फ्लूएंजा नाम के वायरस से ही यह रोग फैलता है। फ्लू का वायरस नाक, आंख और मुंह की मस्कस मेंब्रेन के द्वारा शरीर में प्रवेश करता है। हर बार जब भी इनमें से किसी भी अंग को हाथ लगाया जाता हैं, व्यक्ति खुद को खुद ही फ्लू के जीवाणु से संक्रमित करता है।\nफ्लू तीन प्रकार का होता है, ए, बी और सी। टाइप ए और बी वार्षिक इन्फ्लूएंजा का कारण होते हैं जिससे लगभग 20 फीसदी लोग प्रभावित होते हैं। टाइप ए में एच1एन1, एच2एन2 और एच3एन3 शामिल हैं। टाइप ए के इंफ्लूएंजा में परिवर्तन होता है जिससे प्रभावित व्यक्ति को पर्याप्त इम्यूनिटी नहीं मिल पाती। टाइप सी भी फ्लू के लक्षण दर्शाता है लेकिन इस तरह का फ्लू कम होता है। हालांकि तीनों तरह का फ्लू एक ही तरह से फैलता है और इनके लक्षण भी एक जैसे ही होते हैं।\nजटिलताएं- (Complications during influenza)\n- युवा, बच्चों तथा 65 की उम्र से अधिक के बुजुर्गों में जटिलता हो सकती है।\n- गर्भवती महिलाओं को भी फ्लू का खतरा ज्यादा रहता है।\n- इंफ्लूएंजा से निमोनिया, कान में संक्रमण, साइनस संक्रमण और ब्रोंकाइटिस का खतरा बढ़ जाता है।\n- यदि उच्च श्रेणी का फ्लू हो तो, एंटीवायरल दवाएं उपयुक्त रहती हैं, अन्यथा व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।\n\nTreatments:\nउपचार (Treatment of Influenza) \n- गर्म पानी में नींबू डालकर पीएं\n- ठंडा और बासी खाना न खाएं\n- लोगों से हाथ न मिलाएं\n- पानी से भीगने के बाद शरीर को अच्छी तरह सुखाएं\n- प्रतिदिन व्यायाम करें\n- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें\n- गर्भवती महिलाएं और बच्चों को पीने का पानी उबालकर दें\n- अश्वगंधा और कालमेघ जैसी जड़ी बूटियां शरीर का तापमान कम करने में मदद करती हैं\n- पानी में अजवायन डालकर उबाल लें। पानी तक तक उबालें जब तक आधा न रह जाए, इस पानी को समस समय पर पीते रहें।\nटिप्स- (Tips to Prevent Influenza)\n- शरीर को पूरी तरह आराम दें\n- नाक को समय-समय पर साफ करते रहें\n- गर्म पानी की बोतल या हीटिंग पैड से सिकाई करें\n- बिना हाथ धोए कभी खाना न खाएं\n- ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ लें, सूप, नींबू पानी आदि पीते रहें\n\n\n", + "Disease: मेनिनजाइटिस (Meningitis)\n\nDescription: \nमेनिनजाइटिस (Meningitis)\nमेनिनजाइटिस को दिमागी बुखार (Dimagi Bukhar) भी कहते हैं। यह आमतौर पर वायरस, बैक्टीरिया, कवक, परजीवी, और कुछ जीवों के संक्रमण के कारण होता है। शारीरिक दोष या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली को आवर्तक बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस से जोड़ा जा सकता है।\nयह एक तरह का इंफेक्शन होता है जो मष्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की रक्षा करने वाले मेंब्रेन में सूजन पैदा कर देता है। अधिकांश मामलों में इसका कारण वायरस होता है। हालांकि, दिमागी बुखार के कुछ गैर-संक्रामक कारण भी मौजूद हैं।\n\nSymptoms: \n- छोटे बच्चों में, निम्न लक्षणों पर गौर करना चाहिए- (symptoms in toddlers) - बहुत तेज या कराह कर रोना - तेज या असामान्य सांसे - पीला या दानों वाला चेहरा - लाल या बैंगनी रंग के धब्बे\n- बड़े बच्चों में, निम्न लक्षणों को देखना चाहिए- (symptoms in younger children) - गर्दन में अकड़न - पीठ और जोड़ों में गंभीर दर्द - बहुत तेज सिर दर्द - चमकदार रोशनी से चिढ़ होना - बहुत ठंडे हाथ और पैर - कांपना - तेजी से साँस लेना\n- मांसपेशियों में दर्द\n- हाथों और पैरों का ठंडा होना\n- बुखार\n- सिरदर्द\n- उल्टी\n\nReasons: \nदिमागी बुखार के कारण (Causes of Meningitis)\nमेनिनजाइटिस में बैक्टीरिया ब्ल्डस्ट्रीम में प्रवेश करके दिमाग और स्पाइन कॉर्ड में चला जाता है। कई बार जुकाम या साइनस की समस्या होने से भी यह बैक्टीरिया नाक और मुंह के द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और दिमाग में सूजन पैदा कर देते हैं। दिमागी बुखार (Dimagi Bukhar) का एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज किया जा सकता है। मेनिनजाइटिस को जांचने के लिए ग्लास टेस्ट भी किया जा सकता है।\nग्लास टेस्ट- यदि कांच के गिलास के किनारे को शरीर के ऊपर हुए धब्बों पर दबाया जाए तो यह फेड नहीं होते। यह मेनिनगोकोक्कल सेप्टीकामिया (meningococcal septicaemia) का लक्षण होता है। इस अवस्था से पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर गुलाबी रंग के दाने हो जाते हैं जो बाद में बैंगनी रंग के बड़े दानों में तब्दील हो जाते हैं।\n\nTreatments:\nउपचार (Treatment of Meningitis or Dimagi Bukhar) \n- शरीर को पूरी तरह आराम दें। \n- रोगी को अंधेरे और शांत कमरे में रखें। \n- लिक्विड फूड न लें। ओआरएस का घोल गरम पानी में लें। \n- रोगी को अनार का जूस दें और लहसुन का सेवन भी करवायें। \n- शरीर के तापमान को कम करने के लिए बर्फ के टुकड़ों को कपड़े में लपेटकर सिकाई करें। \n- यदि रोगी को उल्टी हो रही हों, तो उसे एक तरफ करवट लेकर लिटायें जिससे उल्टी की महक उसे न आए।\n\n\n", + "Disease: हार्ट ब्लॉकेज (Heart Blockage)\n\nDescription: \nहार्ट ब्लॉकेज (Heart blockage)\nहार्ट ब्लॉकेज में मनुष्य की धड़कन सुचारू रूप से काम करना बंद कर देती हैं। इस दौरान धड़कन रूक रूक कर चलती है। कुछ लोगों मे यह समस्या जन्म के साथ से ही शुरू हो जाती है जबकि कुछ लोगों में बड़े होने पर समस्या विकसित होती है। जन्मजात ���्लॉकेज की समस्या को कोनगेनिटल हार्ट ब्लॉकेज (congenital heart blockage) जबकि बाद में हुई समस्या को एक्वायर्ड हार्ट ब्लॉकेज (acquired heart blockage) कहते हैं। आधुनिक रहन-सहन और खाने-पीने की आदतों के चलते अधिकांश लोगों में हार्ट ब्लॉकेज की समस्या आम होती जा रही है। हार्ट ब्लॉकेज को जांचने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (electro cardiogram) टेस्ट किया जाता है।\n\nSymptoms: \n- छाती में दर्द, सांस फूलना\n- जल्दी थक जाना\n- सिरदर्द होना\n- चक्कर आना\n- बेहोश होना\n\nReasons: \nब्लॉकेज के कारण- (Cause of Heart Blockage)\nहार्ट में ब्लॉकेज या रूकावट प्लॉक के कारण होती है। प्लॉक्स, कोलेस्ट्रॉल, फैट, फाइबर टिश्यू और श्वेत रक्त कणिकाओं का मिश्रण होता है, जो धीरे धीरे नसों की दीवारों पर चिपक जाता है। प्लॉक का जमाव गाढ़ेपन और उसके तोड़े जाने की प्रवृत्ति को लेकर अलग-अलग तरह के होते हैं। अगर यह गाढ़ापन हार्ड होगा, तो ऐसे प्लॉक को स्टेबल कहा जाता है और यदि यह मुलायम होगा तो इसे तोड़े जाने के अनुकूल माना जाता है, और इसे अनस्टेबल प्लॉक कहा जाता है।\nस्टेबल प्लॉक (Stable Plaque):- स्टेबल प्लॉक से रूकावट की मात्रा से कोई फर्क नहीं पड़ता, न ही इससे गंभीर हार्ट अटैक होता है। इस तरह का प्लॉक धीरे धीरे बढ़ता है, ऐसे में रक्त प्रवाह को नई आर्टरीज (artries) का रास्ता ढूंढने का मौका मिल जाता है, जिसे कोलेटरल वेसेल (collateral vessal) कहते हैं। ये वेसेल ब्लॉक हो चुकी आर्टरी को बाईपास कर देती हैं और दिल की मांसपेशियों तक आवश्यक रक्त और ऑक्सीजन पहुंचाती हैं।\nअनस्टेबल प्लॉक (Unstable Plaque):- अस्थाई प्लॉक में, प्लॉक के टूटने पर, एक खतरनाक थक्का बन जाता है, और कोलेटरल को विकसित होने का पूरा समय नहीं मिल पाता है। व्यक्ति की मांसपेशियां (muscle) गंभीर रूप से डैमेज हो जाती हैं और वह कई बार सडन कार्डिएक डेथ (sudden cardiac death) का शिकार हो जाता है।\n\nTreatments:\nहार्ट ब्लॉकेज से बचने के लिए सामान्य टिप्स- (Tips to Prevent Heart Blockage)\n- धूम्रपान न करें, यहां तक कि कोई दूसरा धूम्रपान कर रहा हो, तो भी खुद को बचायें।\n- हृदय को स्वस्थ रखने के लिए दिनचर्या में व्यायाम को शामिल करना बेहद जरूरी है।\n- ऐसा भोजन करें, जिससे हृदय को लाभ हो।\n- हृदय को स्वस्थ रखने के लिए शरीर का वजन नियंत्रित रखें।\n- रोज आधा घंटा पैदल चलें।\n- लिफ्ट की जगह, सीढ़ियों का इस्तेमाल करें।\n\nHome Remedies:\nहार्ट ब्लॉकेज के घरेलू उपचार- (home remedies for heart blockage)\nएक कप दूध में लहसुन की तीन से चार कली डालकर उबालें। इस दू�� को रोज पीएं।\nएक गिलास दूध में हल्दी डालकर उबालें और गुनगुना रहने पर शहद डालकर पीएं।\nएक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस, काली मिर्च और शहद डालकर पीएं।\nदो से तीन कप अदरक की चाय रोजाना पीएं। इसके लिए पानी में अदरक डालकर उबालें और शहद मिलाकर पीएं।\nमेथी दाने को रात भर पानी में भिगाकर, सुबह मेथी चबाकर खायें और बचा हुआ पानी पी जाएं।\nखाने में या सलाद में अलसी के बीजों का इस्तेमाल करें।\nखाने में सामान्य चावल की जगह लाल यीस्ट चावल का इस्तेमाल करें।\n\n\n", + "Disease: कान में संक्रमण (Ear Infection)\n\nDescription: \nकान में संक्रमण (Ear Infection ) कान शरीर के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील अंगों में से एक हैं। शरीर का यह एक ऐसा हिस्सा है जिसका ध्यान इंसान सबसे कम रखता है। कान में संक्रमण अकसर बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण (Bacterial Viral Infection) के कारण होता है जो कि मध्य कान को प्रभावित करता है जिसमें छोटी हड्डियों की पहाड़ी बनी होती है। इसी में कान के परदे के पीछे हवा से भरी जगह होती है।\n\nSymptoms: \n- कान में दर्द होना\n- चक्कर आना\n- सिर दर्द\n- बुखार\n- सुनाई कम देता है\n\nReasons: \nकान में संक्रमण कई जोखिमों को पैदा करता है। संक्रमण अगर ज्यादा अंदर नहीं गया हो तो कुछ मिनट के उपचार और प्रक्रियाओं के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन यदि यह आंतरिक स्थान तक पहुंच गया है तब ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है। कान में संक्रमण होने के कारण पीड़ित को निम्न परेशानियां हो सकती है:\n* सरदर्द: कान का दर्द अकसर सर में तनाव पैदा करता है।\n* बुखार: कान में दर्द के कारण तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है।\n* चक्कर आना: कान का दर्द कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं।\n* सुनने की क्षमता: यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।\n\nTreatments:\nउपचार (Treatment of Ear Infection in Hindi)\nकान के संक्रमण से बचने के लिए सबसे जरूरी है साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना। इसके अतिरिक्त कुछ निम्न बातें पर अमल कर भी कानों के संक्रमण से बचा जा सकता है। \nवैक्स की सफाई (Cleaning of the wax)- कान में अतिरिक्त वैक्स कान में बैक्टीरिया को बढ़ाकर, कान में संक्रमण पैदा करती है। कान की वैक्स को चिकित्सकों द्वारा सूक्ष्म उपकरणों से साफ कराया जा सकता है। अमूमन लोग ईयर बड से भी कान की सफाई कर लेते हैं लेकिन यदि वेक्स ज्यादा है तो उसे ईयर बड से साफ नहीं किया जा सकता।\nइयर ड्रॉप्स क�� प्रयोग (Use of Ear Drops)- कई दफा कान की दवा डालने से भी कान के संक्रमण से निजात मिल जाती है। चिकित्सक कान दर्द के लिए इयर ड्रॉप देते हैं जिससे कान के दर्द के साथ ही वैक्स भी निकल जाती है।\nटिप्स- (Tips to Prevent Ear Infection)\n- सर्दी जुकाम में अच्छी तरह से हाथ धोने के बाद ही खाना-पीना खाएं। \n- सर्दी जुकाम में बाहर जाने से बचें। भीड़ वाली जगहों पर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।\n- धूम्रपान से बचें।\n- बच्चों में टीकाकरण समय से करवाएं। उन्हें न्यूमोकोकल टीके जरूर लगवाएं।\n\nHome Remedies:\nघरेलू उपाय- (Home Remedies)\n1- कान में दर्द हो तो गैंदे के फूल को पीसकर उसका रस डालने से आराम होता है।\n2- नमक को गरम करके उसे कपड़े में बांध कर कान की सिकाई करने से भी कान के दर्द से आराम मिलता है।\n3- खाना बनाने वाले तेल में लहसुन डालकर तेल गरम करें। इस तेल की कुछ बूंदे तीन से चार बार कान में डालें।\n4- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर कान के आस पास मलने से भी आराम होता है। ध्यान रहे रस को कान के अंदर नहीं डालना है।\n5- सेब के सिरके में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रूई को उसमें भिगाएं। इस रूई को कान के पीछे कुछ देर लगाकर रखें।\n6- ऑलिव ऑयल को गरम करके, गुनगुने तेल की कुछ बूंदे कान में डालें।\n7- गर्म पानी की बोतल से कान की सिकाई करें।\n8- प्याज को गरम करके उसे मिक्सी में पीसकर रस निकाल लें। प्याज के रस की कुछ बूंदे कान में डालें।\n\n\n", + "Disease: डायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic Retinopathy)\n\nDescription: \nडायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic retinopathy)\nडायबिटिक रेटिनोपैथी एक बीमारी है, जो मधुमेह (diabeties) से पीड़ित व्यक्ति की रेटिना (आँख का पर्दा जहां तस्वीर बनती है) को प्रभावित करती है। यह रेटिना को रक्त पहुंचाने वाली महीन नलिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है, अगर इसका समय पर इलाज़ न कराया जाए तो पीड़ित व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो सकता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी दुनिया में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है, जिसके मामले हर साल बढ़ते जा रहे हैं।\n\nSymptoms: \n- आंखों का बार-बार संक्रमित होना\n- चश्मे का नंबर बार-बार बदलना\n- रेटिना से खून आना\n- सफेद मोतियाबिंद या काला मोतियाबिंद\n- सिरदर्द रहना या एकाएक आंखों की रोशनी कम हो जाना\n- सुबह उठने के बाद कम दिखाई देना\n\nReasons: \nडायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण (Causes of Diabetic Retinopathy)\nमधुमेह (Diabetes), यदि बहुत लंबे समय तक रह जाए तो यह शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करता है और यह प्रभावित अंग आंखें भी ���ो सकती हैं। डायबिटीज़ रक्त वाहिकाओं की दीवार को प्रभावित करता है, जिससे रेटिना (जिसपर छवि बनती है) तक ऑक्सीजन ले जाने वाली नाड़ियां कमज़ोर हो जाती हैं। डायबिटीज़ के मरीज़ों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती, तो वह डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या से ग्रस्त हो सकते हैं। इस समस्या का पता तब चलता है जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।\nअंधेपन का एक प्रमुख कारण है ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ भी है। डायबिटिक रेटिनोपैथी के दो मुख्य चरण होते हैं। शुरूआती चरण को नान प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (एनपीडीआर) कहते हैं। इस चरण में रेटिना क्षेत्र की नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। सामान्यत बीमारी का यह शुरूआती चरण होता है, जिसमें लक्षणों का पता नहीं चलता है।\nकुछ मामलों में क्षतिग्रस्त रक्त नलिकाओं के फटने से रेटिना के मध्य भाग में रक्त फ़ैल जाता है। इस स्थिति को डायबिटिक मैक्युलोपैथी कहते हैं, इससे दृष्टि प्रभावित होती है और धुंधला दिखने लगता है। इसके उन्नत और विकसित चरण को प्रोलीफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (पीडीआर) कहते हैं। यह डायबिटिक रेटिनोपैथी की सबसे सबसे गंभीर चरण है। इस चरण में रेटिना क्षेत्र में कमज़ोर अवांछनीय रक्त नलिकाएं तेज़ी से पनपने लगती हैं जो रेटिना की ऑक्सीजन आपूर्ति में बाधा पैदा कर उसे क्षतिग्रस्त करती हैं। इस कारण रेटिनल डिटेचमेंट या ग्लूकोमा भी हो सकता है। करीब 20 फीसदी मधुमेह पीड़ितों में पीडीआर की वजह से गंभीर दृष्टि दोष हो सकता है जो अंधेपन का कारण बनाता है।\n\nTreatments:\nसुरक्षा के लिए कुछ टिप्स (Tips to prevent diabetic retinopathy)\n- समय- समय पर आंखों की जांच करायें, यह जांच बच्चों में भी आवश्यक है।\n- रक्त में कॉलेस्ट्रोल और शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखें।\n- अगर आपको आंखों में दर्द, अंधेरा छाने जैसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत चिकित्सक से मिलें।\n- डायबिटीज़ के मरीज़ को साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच करानी चाहिए।\n- डायबिटीज़ होने के दस साल बाद हर तीन महीने पर आंखों की जांच करायें।\n- गर्भवती महिला अगर डायबिटिक है तो चिकित्सक से संपर्क करें।\nसामान्य उपचार (Treatment for diabetic retinopathy)\n- विटामिन ए युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक करें\n- पालक को अपने भोजन में शामिल करें\n- काले अंगूर के बीजों का रस पीएं\n- सलाद ज्यादा से ज्यादा खाएं\n\n\n", + "Disease: ग्लूकोमा (Glaucoma)\n\nDescription: \nग्लूकोमा (Glaucoma)\nग्लूकोमा, काला मोतिया या कांच बिंदु रोग, तंत्र में गंभीर एवं निरंतर क्षति करते हुए धीरे-धीरे दृष्टि को समाप्त ही कर देता है। किसी वस्तु से प्रकाश की किरणें आंखों तक पहुंचती हैं, व उसकी छवि दृष्टि पटल (Retina) पर बनाती है। रेटिना से यह सूचना विद्युत तरंगों द्वारा मस्तिष्क तक नेत्र तंतुओं द्वारा पहुंचाई जाती है। आंख में एक तरल पदार्थ भरा होता है यह तरल पदार्थ आंख के गोले को चिकना किए रहता है यदि इस तरल पदार्थ का रिसाव रुक जाए तो आंख के अंदर का दाब बढ़ जाता है। ग्लूकोमा में अंतर नेत्र पर दाब, प्रभावित आंखों की दाब सहने की क्षमता से अधिक हो जाता है, इसके परिणामस्वरूप नेत्र तंतु को क्षति पहुंचती है, जिससे दृष्टि चली जाती है।\nकिसी वस्तु को देखते समय ग्लूकोमा से ग्रसित व्यक्ति को केवल वस्तु का केंद्र दिखाई देता है। समय के साथ स्थिति बद से बदतर होती जाती है। सामान्यत: लोग इस पर बहुत कम ही ध्यान देते हैं, लेकिन जब ध्यान देते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। सामान्य तौर पर यह रोग बिना किसी लक्षण के विकसित होता है व दोनों आंखों को एक साथ प्रभावित करता है। हालांकि यह रोग 40 वर्ष से अधिक आयु के व्यस्कों के बीच पाया जाता है, फिर भी कुछ मामलों में यह नवजात शिशुओं को भी प्रभावित कर सकता है। मधुमेह, आनुवांशिकता, उच्च रक्तचाप व हृदय रोग इस रोग के प्रमुख कारणों में से हैं। विश्व स्तर पर काला मोतिया लगभग छह करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और भारत में यह अंधत्व का दूसरा सबसे कारण है।\n\nSymptoms: \n- टयूबलाइट या बल्ब की रोशनी चारों ओर से धुंधली दिखने लगती है, आंखों में तेज दर्द भी होने लगता है।\n- धुंधलापन, कई रोगियों को रात में दिखना भी बंद हो जाता है\n- मितली या उलटी होना\n- सिरदर्द\n\nReasons: \nग्लूकोमा के कारण (Causes of Glaucoma)\nमानव आंख में स्थित कार्निया के पीछे आंखों को सही आकार और पोषण देने वाला तरल पदार्थ (Aqueous Humor Fluid) होता है, लेंस के चारों ओर स्थित सीलियरी उत्तक इस तरल पदार्थ को लगातार बनाते रहते हैं यह तरल पदार्थ पुतलियों के द्वारा आंखों के भीतरी हिस्से में जाता है इस तरह से आंखों में इस तरल पदार्थ का बनना और बहना लगातार होता रहता है।\nस्वस्थ आंखों के लिए यह आवश्यक है आंखों के भीतरी हिस्से में कितना दबाव रहे यह तरल पदार्थ की मात्र पर निर्भर रहता है। ग्लूकोमा रोगियों की आंखों में इस तरल पदार्�� का दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है कभी-कभी आंखों की बहाव नलिकाओं का मार्ग रूक जाता है, लेकिन सीलियरी ऊतक इसे लगातार बनाते ही जाते हैं, ऐसे में जब आंखों में दृष्टि-तंतु के ऊपर तरल का दबाव अचानक बढ़ जाता है तो ग्लूकोमा हो जाता है। यदि आंखों में तरल का इतना ही दबाव लंबे समय तक बना रहता है तो इससे आंखों के तंतु भी नष्ट हो सकते हैं। समय रहते यदि इस बीमारी का इलाज नहीं कराया जाता है तो इससे दृष्टि पूरी तरह जा सकती है।\n\nTreatments:\nसामान्य उपचार (Treatment and tips to prevent Glaucoma)\n- खाने में पालक ज्यादा खाएं\n- विटामिन ए आंखों के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। ऐसे खाद्य पदार्थ खाएं जिनसे विटामिन ए की पूर्ति हो।\n- सौंफ भी स्वस्थ आंखों के लिए अच्छा घरेलू नुस्खा है।\n\n\n", + "Disease: बवासीर (Piles)\n\nDescription: \nबवासीर (Piles) एक असाध्य रोग है। इसे हेमोरहोयड्स (Haemorrhoids), पाइल्स या मूलव्याधि भी कहते हैं। बवासीर को आयुर्वेद में अर्श यानि दीर्घकालीन प्राणघातक बीमारी कहा जाता है। बवासीर में आंत के अंतिम हिस्से या मलाशय (गुदा) की भीतरी दीवार में रक्त की धमनी और शिराओं में सूजन हो जाती है और वो तनकर फैल जाती है। मल त्याग के वक्त जोर लगाने या दवाब देने से या कब्ज के कड़े मल से रगड़ खाने से रक्त की नसों में दरार पड़ जाती है और नतीजा उसमें से खून का स्राव होने लगता है।\n\nSymptoms: \n- खुजली मलाशय में अटकने की अनुभूति\n- खूनी बवासीर में गुदाद्वार के अंदर सूजन होती है\n- खूनी बवासीर में मस्से खूनी सुर्ख होते है और उनसे खून गिरता है\n- दर्द एवं रक्तस्राव\n- बवासीर में जलन तथा दर्द होने लगता है\n- बादी बवासीर में मस्से काले रंग के होते हैं\n- बाहरी बवासीर में गुदाद्वार के बाहर की ओर के मस्से मोटे-मोटे दानों जैसे हो जाते हैं\n- मनोविकार\n- मलावरोध\n- मस्सों में खाज और सूजन होती है।\n\nReasons: \nबवासीर के कारण (Causes of Piles)\nखूनी हो या बादी दोनों ही बवासीर (Piles) के लिए जो कारक जिम्मेवार होते हैं वो लगभग एक ही हैं। बवासीर के कुछ अहम कारण निम्न हैं: \nकब्ज (Constipation)\nबवासीर की सबसे बड़ी वजह पेट में कब्ज बनना है। कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता। मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक शौचालय में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती है। मल के दबाव से वहां की धमनियां चपटी हो जाती हैं और झिल्लियां फैल जाती हैं। जिसके कारण व्यक्ति को बवासीर (Haemorrhoids) हो जाती है।\nतला-भुना हुआ भोजन (Fried and roasted food)\nज्यादा मिर्च- मसाले, तली हुई और चटपटी चीजें खाने, मांस, अंडा, रबड़ी, मिठाई, मलाई जैसे देर से पचने वाले भोजन करने से भी बवासीर रोग होता है। आवश्यकता से अधिक भोजन करना भी बवासीर का प्रमुख कारण है।\nगर्म पानी (Hot water)\nशौच करने के बाद मलद्वार को गर्म पानी से धोने से भी बवासीर रोग हो सकता है।\nदवाइयां (Medications)\nदवाइयों का अधिक सेवन करने के कारण भी बवासीर (Bawasir) रोग हो सकता है। खासकर डिस्पेपसिया और किसी जुलाब की गोली का अधिक दिनों तक इस्तेमाल करने से।\nनींद में कमी (Insomania)\nनींद पूरी नहीं होने के कारण पेट में खाना सही तरह से पच नहीं पाता और नतीजा कब्ज हो जाता है। कब्ज से बवासीर की शिकायत हो जाती है।\nआनुवांशिकता (Heridetry)\nबवासीर (Bawasir) की बीमारी आनुवांशिक है। अगर परिवार में आपके दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता किसी को भी बवासीर थी या है तो आपको भी यह बीमारी हो सकती है। यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी होता रहता है।\nअन्य वजहें (Other Causes of Piles)\n- गर्भावस्था मे भ्रूण का दबाब पड़ना।\n- शराब और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से भी बवासीर होता है।\n- बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रुकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।\n\nTreatments:\nदेखभाल और उपचार (Treatments and Tips to Prevent Piles )\n- सबसे पहले कब्ज को दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना आवश्यक है। इसके लिये तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात में सेवन करें। बादी बवासीर (Haemorrhoids) के मरीज तली हुई चीज़ें, मिर्च-मसालों युक्त भोजन न करें।\n- रात में सोते समय एक गिलास पानी में इसबगोल की भूसी के दो चम्मच डालकर पीने से भी लाभ होता है।\n- गुदा के भीतर रात में सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व मलहम लगाना भी मल निकास को सुगम करता है।\n- गुदा के बाहर लटके और सूजे हुए मस्सों पर ग्लिसरीन और मैग्नेशियम सल्फेट के मिश्रण का लेप लगाकर पट्टी बांधने से भी काफी आराम मिलता है और फायदा होता है।\n- मस्सों को हटाने के लिए भी कई विधियां उपलब्ध है। मस्सों में इंजेक्शन द्वारा ऐसी दवा का प्रवेश किया जाता है जिससे मस्से सूख जाते हैं।\n- मस्सों पर एक विशेष उपकरण द्वारा रबर के छल्ले चढ़ा दिए जाते हैं, जो मस्सों का रक्त प्रवाह रोककर उन्हें सुखाकर निकाल देते हैं।\n- एक अन्य उपकरण द्वारा मस्सों को बर्फ़ में प���िवर्तित कर नष्ट किया जाता है।", + "Disease: बवासीर (Piles)\n- सर्जरी द्वारा भी मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है।\n- बवासीर (Piles) के मरीज को सबसे पहले 2 दिन तक रसाहार चीज़ों का सेवन करके उपवास रखना चाहिए। इसके बाद 2 सप्ताह तक बिना पके हुआ भोजन का सेवन करके उपवास रखना चाहिए।\n- मस्सों की सूजन बढ़ गई हो या फिर मस्सों से ख़ून अधिक निकल रहा है तो मिट्टी की पट्टी को बर्फ़ से ठंडा करके फिर इसको मस्सों पर 10 मिनट तक रखकर इस पर गर्म सेंक देना चाहिए।\n- बवासीर रोग को ठीक करने के लिए कुछ उपयोगी आसन है जैसे- नाड़ीशोधन, कपालभाति, भुजांगासन, प्राणायाम, पवनमुक्तासन, शलभासन, सुप्तवज्रासन, धनुरासन, शवासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, हलासन, चक्रासन आदि।\n\nHome Remedies:\nबवासीर के लिए घरेलू उपाय Home Remedies for Piles\nमूली का नियमित सेवन बवासीर को ठीक कर देता है।\nरात को सोते समय केले खाने चाहिए इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।\nपालक, बथुआ, पत्ता गोभी, चौलाई, सोया, काली जीरी के पत्ते का साग खाना चाहिए।\nरोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम के समय 2 भिगोई हुई अंजीर खानी चाहिए और इसका पानी पीना चाहिए।\nत्रिफला का चूर्ण लेना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से बवासीर रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।\n2 चम्मच तिल चबाकर ठंडे पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से बवासीर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।\nरोगी व्यक्ति को अपने भोजन में चुकन्दर, फूल गोभी और हरी सब्जियों का बहुत अधिक उपयोग करना चाहिए।\nहरी सब्जियों में परवल, पपीता, भिंडी, केला का फूल, मूली, गाजर, शलजम, करेला, तुरई खाना चाहिए।\nगुड़ में बेलगिरी मिलाकर खाने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और बवासीर रोग ठीक हो जाता है।\nपका पपीता, पका बेल, सेब, नाशपाती, अंगूर, तरबूज, मौसमी फल, किशमिश, छुआरा, मुनक्कात, अंजीर, नारियल, संतरा, आम, अनार खाना बवासीर में फायदेमंद होता है।\nमस्सों पर सरसों का तेल लगाना चाहिए, फिर इसके बाद अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए और इसके बाद एनिमा लेना चाहिए तथा मस्सों पर मिट्टी का गोला रखना चाहिए।\nरात को 100 ग्राम किशमिश पानी में भिगो दें और इसे सुबह के समय में इसे उसी पानी में इसे मसल दें। इस पानी को रोजाना सेवन करने से कुछ ही दिनों में बवासीर रोग ठीक हो जाता है।\nनींबू को चीरकर उस पर चार ग्राम कत्था पीसकर बुरक दें और उसे रात में छत पर रख दें। सुबह दोनों टुकड़ों को चूस लें, यह खूनी बवासीर की उत्तम दवा है।\nचोकर समेत आटे की रोटी, गेहूं का दलिया, हाथ कुटा- पुराना चावल, सोठी चावल का भात, चना और उसका सत्तू, मूंग, कुलथी, मोठ की दाल, छाछ का नियमित सेवन करना चाहिए।\n\n\n", + "Disease: आंखों का इंफेक्शन (Eye Infection)\n\nDescription: \nआंखों का इंफेक्शन (Eye Infection)\nआंखों में इंफेक्शन हानिकारक सूक्ष्म जीवाणु बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। ये हानिकारक सूक्ष्म जीवाणु मानसून के महीने में सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। ये आंखों की ऊपरी भाग, पुतली, कॉर्निया और पलकों पर आक्रमण करते हैं जिससे आंखों में सूजन, जलन होती है। आंख जरुरत से ज्यादा लाल हो जाती है और आंखों से जरुरत से ज्यादा पानी का डिस्चार्ज होने लगता है।\n\nSymptoms: \n- आंखों से पानी निकलना\n- आंखों से मवाद निकलना\n- धुंधला विजन\n- आंखों का सूख जाना\n- पलकों पर सूजन\n- आंखों में खूजलाहट\n- आंखों में दर्द और जलन\n- आंखे लाल होना\n\nReasons: \nआंखों के इंफेक्शन के कारण (Causes and Reasons of Eye Infection)\nआंखों के इंफेक्शन से सबसे ज्यादा आंखों की पलकें प्रभावित होती है। पलकों के अंदरुनी हिस्से में सूजन होने से आंखों की सुंदरता तो खत्म होती ही है, समय पर इलाज नहीं कराने से घाव होने का भी खतरा रहता है। इंफेक्शन जब आंखों के अंदर आंसू की ग्रंथि को प्रभावित करता है तो सूजन से आंसू की ग्रंथि बंद हो जाती है और यह काफी दर्द करने लगता है। सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति तब होती है जब इंफेक्शन कॉर्निया को प्रभावित करती है। इसमें कॉर्नियल अल्सर का खतरा रहता है और आंखों की रोशनी तक चली जाती है।\nकंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis)- कंजेक्टिवाइटिस आंखों का सबसे कॉमन इंफेक्शन है जिसे पिंक आई भी कहते हैं। यह एक वायरल इंफेक्शन है जो काफी तेजी से फैलता है। अगर मां को इसका इंफेक्शन है तो नवजात को भी यह इंफेक्शन हो सकता है।\nवाइरल केराटिटीस (viral keratitis)- पिंक आई की तरह यह भी एक क़ॉमन आई इंफेक्शन है जो हर्पिस के वायरस (Herpes simplex virus) के कारण होता है। यह भी काफी तेजी से फैलता है।\nफंगल केराटिटीस (Fungal keratitis)- यह एक फंगल इंफेक्शन है जो आंखों में कांटेक्ट लैंस लगाने से हो सकता है। 2006 में यह इंफेक्शन उस समय चर्चा में आया था जब एक खास तरह के कांटेक्ट लैंस सोल्यूशन के इस्तेमाल से काफी लोग इस इंफेक्शन के शिकार हो गए थे। वैसे आंखों में फंगल इंफेक्शन किसी भी तरह के चोट से या फिर ऑर्गेनिक मैटर के जाने से होता है।\nट्राकोमा (Trachoma)- यह इ���फेक्शन काफी गंभीर होता है और गन्दी जगह में तेजी से फैलता है। गंदगी पर पनपने वाले मक्खियों और कीड़ों के आंख में घुसने से यह इंफेक्शन होता है। ट्राकोमा आंखों के नीचे वाले पलक को संक्रमित करता है, अगर यह लंबे समय तक रहा तो कॉर्निया तक में घाव होने तक का खतरा रहता है जिससे मरीज हमेशा के लिए अंधा हो सकता है।\nइंडोफ्थेलामिटीस (Endophthalmitis)- जब आंखों का इंफेक्शन आंख के अंदर काफी गहरे तक असर डाल देता है तो उसे इंडोफ्थेलामिटीस कहते हैं। यह वायरल और बैक्टेरियल दोनों तरह के संक्रमण से होता है। आंखों में गहरी चोट लगने से भी इसका खतरा रहता है।\n\nTreatments:\nदेखभाल और इलाज (Care and Treatment of Eye Infection) \nआंखों के इंफेक्शन का इलाज अब काफी सरल और आसान हो गया है। एंटीबायोटिक आई ड्रॉप, मलहम और सेंक से कई तरह के संक्रमण का सही तरीके से इलाज हो जाता है। कई तरह के वायरल इंफेक्शन कुछ दिनों तक रहने के बाद खुद ही ठीक हो जाता है तो गंभीर इंफेक्शन होने पर डॉक्टर को दिखाना जरूरी होता है।\nआंखों की देखभाल के सामान्य उपचार- (Tips to Prevent Eye infection)\n-त्रिफला जल से आंखों को धोते रहें, काफी काम करेगा।\n-इमली के बीज को चंदन की तरह पीसकर आंखों की पलकों पर लेप लगाने से काफी राहत मिलती है।\n-सुबह उठते ही मुंह में ठंडा पानी भरकर मुंह फुलाकर ठंडे जल से आंखों पर छींटे मारें। ऐसा दिन में तीन बार करें। यह आंखों के इंफेक्शन के लिए काफी असरदार है।\n-सफेद प्याज के रस में शहद और कर्पूर मिलाकर शीशी में रख लें और इसे रात में सोते समय आंखों में डालें। आंखों के सभी तरह के इंफेक्शन में यह काफी कारगर इलाज है।\n-दो रत्ती फिटकरी को बारीक पीसकर गुलाब जल में घोलकर रख लें। इस नेचुरल आई ड्रॉप की दो-दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालें। यह सभी तरह के इंफेक्शन में कारगर होता है। आंख का सूजन, लाली को कम करता है और आंखों में कीच और मवाद का आना बंद हो जाता है।", + "Disease: आंखों का इंफेक्शन (Eye Infection)\nअन्य टिप्स- (Other Tips to prevent Eye Infection)\n-जिसकी आंखे लाल हैं उनके सामने जाने से बचें। अगर उनके सामने गए हैं तो आंखों में आंख डाल कर बात नहीं करें। उनसे मिलने के बाद तुरंत आँखों साबुन से हाथ धोएं और फिर आँखों को ठंडे पानी से धोएं।\n-कंजेक्टिवाइटिस (conjunctivitis) के समय स्कूल, ऑफिस और सार्वजनिक जगहों पर एंटी वाइरल स्प्रे का छिड़काव बार-बार करते रहना चाहिए।\n-अगर आप कांटेक्ट लैंस लगाते हैं तो अपने आंखों क��� छूने से पहले हाथों को अच्छे तरह से साफ कर लें।\n-पीड़ित व्यक्ति से दूर रहें और उसका तौलिया, रुमाल, बेड, तकिया को हमेशा एंटी-सेप्टिक लिक्विड से साफ-सुथरा रखें।\n\nHome Remedies:\nआँख में होने वाला इंफेक्शन, गंदे हाथों से आँख को मसलने से, प्रदूषण से, किसी दूसरे के द्वारा इस्तेमाल किए गए काजल लगाने या चश्मा पहनने से तथा आंखों की अच्छी प्रकार सफाई न करने से होता है।\nजानिए आई इंफेक्शन से निजात पाने के घरेलू उपाय (Home remedies for eye infection):\n1. गर्म पानी (Hot Water)- हल्के गर्म पानी के इस्तेमाल से आँख को धोएं, इससे आँखों के ऊपर जमने वाली गंदगी हट जाती है। इसके बाद रुई की मदद से आँखों को पोछें।\n2. गुलाब जल (Rose Water)- गुलाब जल से आँख को धोने से आँखों का इंफेक्शन कम हो जाता है। दो बूंद गुलाब जल आँखों में डालें। इस उपाय को रोजाना दिन में दो बार करें।\n3. पालक और गाजर का रस (Spinach & Carrot Juice)- पालक और गाजर का रस आँखों के संक्रमण के लिए काफी लाभदायक होता है क्योंकि इनमे पाए जाने वाले विटामिन आँखों के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। पालक के 4 या 5 पत्तों को पीसकर उसका रस निचोड़ लें। 2 गाजर को भी पीसकर रस निकाल लें। एक गिलास में आधा कप पानी लें और उसमें गाजर और पालक के रस को मिला कर पीएं। ऐसा रोजाना करने से आंख का संक्रमण कम होने लगता है।\n4. आंवले का रस (Aamla juice)- आँखों में संक्रमण होने पर आंवले का रस पीने से बहुत लाभ मिलता है। 3 से 4 आंवले के फल को पीस कर उसका रस निकाल लें। एक गिलास पानी में उस रस को मिला कर पीएं। आंवले के रस को सुबह खाली पेट और रात में सोने से पहले दिन में दो बार इस्तेमाल करें। कुछ ही दिनों में आंखों का इंफेक्शन दूर हो जाएगा।\n5. शहद और पानी (Honey and Water)- शहद से आँखों को धोना चाहिए। इससे आंखों को बेहद लाभ पहुंचता है। एक गिलास पानी में 2 चम्मच मधुरस को मिलाकर खुली आँखों में छपके मारें। ऐसा करने से आंखों का संक्रमण दूर होगा और आंखों की गंदगी भी साफ होगी।\n6. हल्दी और गर्म पानी (Turmeric and Water)- गर्म पानी में हल्दी को मिलाकर रुई से आँखों को पोंछना चाहिए। हल्दी प्राकृतिक रूप से एंटी बैक्टीरियल और एंटी सेप्टिक गुणों से भरपूर होती है। यह आंखों की सफाई भी करती है और संक्रमण से भी दूर रखती है।\n7. आलू (Potato)- आलू में प्रचुर मात्रा में स्टार्च होता है, जिसके इस्तेमाल से आँखों के संक्रमण को ठीक किया जा सकता है। आलू को पतले- पतले टुकड़ों में काट लें। रात में सोने से ���हले उस कटे हुए आलू को 15 मिनट तक अपनी आँखों के ऊपर लगा कर रखें और बाद उसे उतार दें।\n\n\n", + "Disease: पीलिया (Jaundice)\n\nDescription: \nपीलिया (Jaundice)\nपीलिया एक ऐसा रोग है जो एक विशेष प्रकार के वायरस और किसी कारणवश शरीर में पित्त यानि रक्त में बिलीरुबिन (Bilirubin Disorder) की मात्रा बढ़ जाने से होता है। इसमें मरीज को पीला पेशाब होता है। उसके नाखून, त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ जाता है और मरीज को काफी कमजोरी, कब्ज, जी मिचलाना, सिरदर्द, भूख न लगना आदि शिकायत होने लगती है।\nयह बहुत ही सूक्ष्‍म विषाणु (Virus) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं, लेकिन जब यह गंभीर हो जाता है तो मरीज की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं। जिन वायरस से यह होता है उसके आधार पर मुख्‍यतः पीलिया तीन प्रकार का होता है (Types of Jaundice) वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नॉन ए व नॉन बी। शरीर में एसिडिटी के बढ़ जाने, काफी दिनों तक मलेरिया रहने, पित्त नली में पथरी अटकने, ज्यादा शराब पीने, अधिक नमक और तीखे पदार्थों के सेवन से और खून में रक्तकणों की कमी होने से भी पीलिया (Piliya) रोग होता है।\n\nSymptoms: \n- आंख के सफेद भाग का पीला हो जाना\n- आमाशय में सूजन होना\n- जी मिचलाना\n- त्वचा का रंग पीला हो जाना\n- दाहिनी पसलियों के नीचे भारीपन आना और दर्द होना\n- पित्त के कारण मल का रंग फीका या सफेद हो जाना\n- पेट में दर्द होना\n- भूख नहीं लगना\n- वजन लगातार कम होना\n- शाम में थका-थका महसूस करना और 102 डिग्री के आसपास बुखार रहना\n\nReasons: \nपीलिया रोग के कारण (Causes and Reasons of Jaundice)\nजब शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं 120 दिन के साइकिल में एक नेचुरल प्रक्रिया के तहत टूटती है तो वेस्ट बाइ प्रोडक्ट के रुप में बिलीरुबिन (Bilirubin Disorder) का उत्पादन होता है। बिलीरुबिन के जरिए शरीर की सारी गंदगी लिवर से छन कर बाहर निकलती है। यह गंदगी पेशाब और मल के जरिए बाहर निकलती है। अगर लिवर में संक्रमण है या फिर रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा 2.5 से ज्यादा हो जाती है तो लिवर के गंदगी साफ करने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है और इसी परिस्थिति में पीलिया की बीमारी हो जाती है।\nपीलिया रोग के अन्य कारण (Other Reasons & Causes of Jaundice)\nअगर किसी संक्रमण से लाल रक्त कोशिका अपनी सामान्य प्रक्रिया से पहले ही टूटने लगती है तो रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ने लगती है। इस परिस्थिति को प्री हेपटिक जॉन्डिस कहते हैं। मलेरिया, स्किल सेल एनीमिया, थेलीसीमिया में और कई आनुवांशिक कारणों से भी रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा अचानक बढ़ने लगती है जिससे पीलिया (Piliya) रोग होता है।\nअगर किसी कारण से लिवर को नुकसान पहुंचा है तो लिवर से बिलीरुबिन बनने की क्षमता ही कम हो जाती है। इसे इंट्रा-हेपाटिक जॉन्डिस भी कहा जाता है। वायरल हैपेटाइटिस (Viral Hepatitis), लीवर का अल्कोहलिक होना (Alcohol), तेज बुखार (Fever), लीवर कैंसर (Liver Cancer), गलत दवाओं के सेवन और पैरासिटामोल (Medicine Side effects) के ज्यादा सेवन से भी इंट्रा-हेपाटिक जॉन्डिस होते हैं। मोटापा में लीवर साइरोसिस होने का खतरा रहता है। जिससे इंट्रा-हेपाटिक जॉन्डिस की संभावना रहती है।\nगॉल ब्लाडर में पत्थर, पैनक्रियाज का सही ढंग से काम नहीं करना, पैनक्रियाज कैंसर या फिर गॉल ब्लाडर के कैंसर में भी लिवर द्वारा बाइ प्रोडक्ट बिलीरुबिन को शरीर से निकालने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। नतीजा रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा काफी बढ़ जाती है और गंभीर पीलिया रोग हो जाता है।\n\nTreatments:\nदेखभाल और इलाज (Care and Treatment for Jaundice)\n- डिहाइड्रेशन होने पर आई वी फ्लूयड्स (IV fluids in case of dehydration)\n- एंटी बायोटिक्स (antibiotics)\n- एंटी वायरल दवा (antiviral medicines)\n- ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusions)\n- स्टेरॉयड्स (steroids)\n- कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और नवजात के लिए फोटोथेरेपी (chemotherapy/radiation therapy & phototherapy for newborns)\n- दूध व पानी उबाल कर पीएं।\n- ताजा व साफ और गर्म भोजन करें।\n- स्‍वच्‍छ शौचालय का ही प्रयोग करें।\n- सीरिंज को 20 मिनट तक उबाल कर ही लगवाएं।\n- पीने के लिए हमेशा स्वच्छ और बैक्टीरिया रहित पानी का ही इस्तेमाल करें।", + "Disease: पीलिया (Jaundice)\n- खाना बनाने, परोसने, खाने से पहले व बाद में और शौच जाने के बाद में हाथ साबुन से अच्‍छी तरह धोना चाहिए।\n- भोजन जालीदार अलमारी या ढक्‍कन से ढक कर रखना चाहिए, ताकि मक्खियों व धूल से बचाया जा सकें।\n- रोगी बच्‍चों को डॉक्‍टर जब तक यह न बता दें कि ये रोग मुक्‍त हो चूके है स्‍कूल या बाहर नहीं जाने दे।\n- रक्‍त देने वाले व्‍यक्तियों की पूरी तरह जांच करने के बाद ही रक्त लें। अगर रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा ज्यादा होगी तो आपको भी पीलिया हो सकता है।\n\nHome Remedies:\nपीलिया रोग सूक्ष्म विषाणु के कारण होता है। इस रोग के होने पर व्यक्ति के नाखुन और आंखें पीली दिखाई देती हैं। चिकित्सा की भाषा में पीलिया को वायरल हैपेटाइटिस (Viral Hepatitis) कहते हैं। पीलिया रोग साफ-सफाई के अभाव में या दूषित पानी और भोजन के सेवन के कारण होता है।\nपीलिया रोग के होने पर व्यक्ति को भूख न लगना, बुखार रहना, जी मिचलाना, सिर में दर्द होना, पेशाब का पीला आना तथा कमजोरी व थकान लगना, जैसे लक्षण नजर आते हैं। पीलिया होने पर व्यक्ति का लीवर प्रभावित होता है। यदि समय रहते पीलिया रोग का उपचार न किया जाए तो व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।\nजानें पीलिया से बचाव के घरेलू उपचार (Home Remedies for Jaundice)\n1. टमाटर का रस (Tomato juice)- पीलिया होने पर एक गिलास टमाटर के रस में एक चुटकी नमक और काली मिर्च मिलाकर सुबह खाली पेट पीएं। आराम मिलेगा।\n2. मूली की पत्ती (Radish leaves)- मूली की पत्तियों को पीसकर, उसका रस निकालें। लगभग आधा लीटर मूली की पत्तियों का रस रोजाना पीएं। दस दिन के भीतर रोगी को पीलिया से आराम मिलेगा।\n3. पपीते की पत्ती (Papaya leaves)- एक चम्मच पपीते की पत्ती के पेस्ट में एक चम्मच शहद मिलाकर, रोजाना तकरीबन दो हफ्तों तक खाएं। पीलिया के उपचार के लिए यह बेहद फायदेमंद घरेलू नुस्खा है।\n4. गन्ना (Sugarcane)- गन्ना, पाचन क्रिया को दुरूस्त करता है साथ ही लीवर को भी बेहतर तरीके से कार्य करने में मदद करता है। उपचार के लिए एक गिलास गन्ने के रस में नींबू का रस मिलाकर रोजाना दो बार पीएं।\n5. तुलसी की पत्ती (Basil leaves)- तुलसी की दस से पन्द्रह पत्ती का पेस्ट बनाकर, गाजर के रस में मिला लें। इस रस को रोजाना, दो से तीन हफ्तों तक पीएं। पीलिया रोग से राहत मिलेगी।\n6. जौ (Barley)- एक कप जौ को तीन लीटर पानी में अच्छी तरह उबाल लें और तीन घंटे तक ढक कर रख दें। इस पानी को दिन में कई बार पीएं।\n7. नींबू (Lemon)- नींबू लीवर को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। एक गिलास पानी में दो नींबू निचोड़ें और पीएं।\n8. बादाम (Almond)- बादाम की 8 गिरी, 2 खजूर और 5 इलायची को पानी में रातभर भिगाकर रखें। सुबह सबके छिलके उतारकर, पीसकर, पेस्ट तैयार करें। इसमें थोड़ा सा मक्खन और चीनी मिलकर खाएं।\n9. हल्दी (Turmeric)- एक गिलास गुनगुना पानी लें और उसमें हल्दी मिलायें, इस पानी को दिन भर में तीन से चार बार पीएं। पीलिया के उपचार के लिए बेहद प्रभावी उपाय है।\n10. छाछ (Buttermilk)- पीलिया होने पर छाछ बेहद लाभकारी है। दही को मथकर छाछ तैयार करें और इसमें काली मिर्च और भुना जीरा मिलाकर पीएं।\n11. केला (Banana)- पके हुए केले को कुचलकर, उसमें शहद मिलायें। इस तरह के केले को दिन में दो बार खाएं।\n12. गाजर का रस (Carrot juice)- गाजर का ताजा रस निकालकर पीएं, पीलिया में राहत मिलेगी।\n13. बेल की पत्ती (Wood apple leaves)- बेल की पत्ती को पीसकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को पानी में मिलाकर रोजाना पीएं। पीलिया के उपचार के लिए बेहद प्रभावी उपाय है।\n14. कैमोमाइल चाय (Chamomile tea)- कैमोमाइल पीलिया रोग में बेहद लाभकारी है। कैमोमाइल की पत्तियों की चाय बनाकर पीने से पीलिया रोग जल्दी ठीक होता है। इस चाय को पीलिया ठीक होने के बाद भी पीना जारी रख सकते हैं।\n15. आंवला (Gooseberry)- आंवला विटामिन सी से भरपूर होता है। पीलिया रोग में आंवले का सेवन करने से बेहद लाभ होता है। आंवले के सेवन से लीवर भी मजबूत होता है।\n\n\n", + "Disease: दूरदर्शिता या दूरदृष्टि दोष (Hyper Myopia)\n\nDescription: \nदूरदर्शिता या दूरदृष्टि दोष (Hyper Myopia)\nदूरदर्शिता या दूरदृष्टि दोष, में कोई भी व्यक्ति दूर की चीज़ों को आसानी से और साफ़ देख सकते हैं जबकि इसमें करीब की चीज़े धुंधली (blurr) दिखाई देती हैं। दूरदृष्टि दोष को स्वास्थ्य की भाषा में हाइपरोपिया (hyperopia) कहते हैं। दूरदृष्टि दोष कितना गंभीर है यह आपके देखने की क्षमता पर निर्भर करता है।\nदेखने के लिए आँख के दो भाग जिम्मेदार होते हैं, कॉर्निया और लेंस। कॉर्निया आँख के सामने का पारदर्शी हिस्सा होता है जबकि लेंस आँख के अंदर बना होता है जो कि चीज़ों को देखने पर उनके शेप में भी बदलाव करता है। कॉर्निया और लेंस दोनों एक साथ कार्य करते हैं और आने वाली रोशनी को मिलाते हैं और इसे रेटिना पर फोकस करते हैं। रेटिना, आई बॉल यानी आँख के गोले के पीछे होता है। जब आँख में प्रकाश प्रवेश करता है तो उस पर ठीक से फोकस नहीं हो पाता, यही दूर दृष्टि दोष होता है। यदि आँख का गोला सामान्य से छोटा हो तब भी दूर दृष्टि दोष हो सकता है। दूर दृष्टि दोष बहुत आम समस्या है जिसे आसानी से ठीक भी किया जा सकता है।\n\nSymptoms: \n- असामान्य थकान महसूस होन।\n- आँख के चारों और जलन या दर्द\n- तनावग्रस्त होना\n- धुंधला दिखना (आँख के एकदम पास का)\n- पढ़ने लिखने में दिक्कत होना\n\nReasons: \nदूरदर्शिता या दूरदृष्टि दोष के कारण (Causes & Reasons of Hyper Myopia)\nदूरदर्शिता या दूरदृष्टि दोष में दूर की चीजें साफ और पास की चीजें धुंधली नजर आती हैं। आंख के विश्राम की स्थिति में, प्रकाश की समांतर किरणें दृष्टिपटल की संवेदनशील परत से कुछ पीछे फोकस होती हैं। इसी कारण व्यक्ति को पास की चीजें देखने में परेशानी होती है। इसके अलावा यदि माता पिता को दूर दृष्��ि दोष है तो यह बच्चों को भी प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ भी यह समस्या शुरू हो सकती है। दूरदर्शिता को दूर करने के लिए सबसे आसान तरीका चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस होता है। लेंस के प्रयोग से आँखों में प्रवेश करने वाली रोशनी पर बेहतर तरह से केंद्रित कर पाते हैं।\n\nTreatments:\nदूरदर्शिता या दूरदृष्टि की रोकथाम के लिए टिप्स (Treatment & Tips to Prevent Hyper Myopia)\n- लेट कर नहीं पढ़ना चाहिए।\n- पढ़ने लिखने के दौरान बेहतर रोशनी होनी चाहिए।\n- हरी सब्जियां और फलों का प्रयोग खाने में जरूर करें।\n- टीवी या कंप्यूटर पर लगातार काम ना करें, लगातार ना देखें।\n- टीवी या कंप्यूटर पर कार्य करते वक़्त भी कमरे में पर्याप्त रोशनी होना जरुरी है।\n\nHome Remedies:\nदूरदर्शिता या दूरदृष्टि दोष के घरेलू उपाय- (Home Remedies for Hyper Myopia)\nआँखों की रौशनी तेज हो इसके लिए विटामिन से पूर्ण भोजन करें।\nदूध और दही जैसे खाद्य पदार्थ जरूर खाएं।\nअंडा भी आँखों के लिए बेहद फायदेमंद है।\nसौंफ, मिश्री और बादाम को बराबर मात्रा में मिलाकर पाउडर बनाएं और सुबह- शाम खाएं।\nबादाम और गौंद से बने लड्डू भी आँखों के लिए फायदेमंद हैं।\nआँखों की रोशनी तेज करने के लिए सलाद (salad) जरूर खाएं।\nआँखों के व्यायाम (Eye exsercise) जरूर करें।\n\n\n", + "Disease: मुंह के छाले (Mouth Ulcer)\n\nDescription: \nमुंह के छाले (Mouth Ulcer)\nमाउथ अल्सर को मुंह में छाला आना कहते हैं। मुंह के अंदर जो नर्म और मुलायम ऊतक होते हैं, जिसे म्यूकस मेंब्रेन (mucous membrane) कहते हैं, उसी में छाले पड़ते हैं। यह अकसर खाने के दौरान या काफी गर्म खाने से गाल के चमड़े के कटने से होता है।\nमुंह में अगर छाले हो जाएं तो कुछ भी खाने में काफी परेशानी होती है। खाना तो दूर पानी पीना भी मुश्किल हो जाता है। छाले होने पर मुंह में तेज जलन और दर्द होता है। कुछ लोगों को तो भोजन नली तक में छाले हो जाते हैं। मुंह में छाला (Muh ke Chhale) आना एक नार्मल बीमारी है, जो कुछ दिनों बाद अपने आप ठीक हो जाती है। कुछ लोगों को छाले बार-बार आते हैं। ऐसे लोगों को अपनी पूरी डॉक्टरी जांच करानी चाहिए, ताकि सही इलाज किया जा सके। मुंह में छाले होने के कई कारण होते हैं। कई बार पेट की गर्मी से भी छाले हो जाते हैं।\n\nSymptoms: \n- चबाने और ब्रश करने में परेशानी\n- भूख में कमी\n- मसालेदार, खट्टा और नमकीन चीज खाने पर तेज जलन\n- मुंह के अंदर सफेद और लाल गोल-गोल छाले\n\nReasons: \nमुंह में छालों के कारण (Causes of Mouth Ulcer)\nकब्ज (Constipation)\nलंबे स���य तक कब्ज रहने से मुंह में छाले आ जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार मुंह में छाले पेट की खराबी तथा पेट की गर्मी की वजह से होते हैं। कब्ज इसकी मूल वजह है।\nगाल या जीभ का कटना (Injury in Cheek and Tounge)\nकई बार कोई चीज खाते समय दांतों के बीच जीभ या गाल का हिस्सा आ जाता है, जिसकी वजह से छाले हो जाते हैं। ऐसे छाले मुंह की लार से अपने-आप ठीक हो जाते हैं।\nदवाओं के साइड इफेक्ट (Medicine Side Effects)\nदवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से भी मुंह में छाले होते हैं। लंबे समय तक एंटीबॉयोटिक दवाओं सेवन करने से मुंह में छाले आने की संभावना ज्यादा होती है। ज्यादा एंटीबॉयोटिक के सेवन से हमारी आंतों में लाभदायक कीटाणुओं की संख्या घट जाती है, नतीजा मुंह में छाले हो जाते हैं।\nदांतों की गलत संरचना (Wrong Structure of Teeth)\nदांतों की गलत संरचना की वजह से भी मुंह में छाले होते हैं। यदि दांत आड़े-तिरछे, नुकीले या आधे टूटे हुए हैं और इसकी वजह से वे जीभ या मुंह में चुभते हैं या उनसे लगातार रगड़ लगती रहती है, तो वहां छाले हो जाते हैं।\n\nTreatments:\nइलाज और देखभाल (Treatment of Mouth Ulcer)\n- जब तक छाले खत्म नहीं हो मसालेदार और खट्टा खाना बंद कर दें।\n- खूब पानी पीएं।\n- गुनगुने नमक-पानी से कुल्ला करें।\n- मुंह को हमेशा साफ रखें।\n- दर्द होने पर पेन किलर दवा ले सकते हैं।\n- छाले वाले जगह पर एंटी-सेप्टिक जेल लगाएं।\n- मेडीकेडेट माउथ वाश से मुंह साफ करें, कुल्ला करें।\n- सुबह सुबह गाय के दूध से बने दही के साथ एक केला खाने से आराम मिलता है।\n- खूब टमाटर खाएं। टमाटर का रस एक ग्लास पानी में मिलाकर कुल्ला करने से छाले मिट जाते हैं।\n- यदि छाले सामान्य हैं, तो विटामिन 'बी' कॉम्प्लेक्स तथा फोलिक एसिड की गोलियां 2-3 दिन तक लेने से छाले ठीक हो जाते हैं।\n- छाले पर बोरो ग्लिसरीन भी लगाई जा सकती है या पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से कुल्ला करने पर छाले खत्म होते हैं।\n\nHome Remedies:\nमुंह के अंदर की सतह के किसी भी तरह से कटने या उसके ऊपर कोई फोड़ा निकलने से अल्सर या छाला हो जाता है। मुंह का अल्सर होने पर व्यक्ति का मुंह तथा जीभ प्रभावित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को कुछ भी खाने या पीने में परेशानी होती है।\nजानिए मुंह के छालों से बचाव के घरेलू नुस्खे (Home remedies for mouth ulcer):\n1. नारियल का दूध (Coconut milk)- नारियल का दूध मुंह के अल्सर में दर्द से राहत देता है साथ ही जलन को दूर करता है। उपचार के लिए एक चम्मच नारियल के दूध में थोड़ा सा शहद मिल��कर अल्सर के ऊपर लगाएं। इस उपाय को दिन में तीन से चार बार करें। इसके अलावा नारियल के दूध से कुल्ला करने पर भी आराम मिलता है।\n2. धनिया के बीज (Coriander seed)- धनिया के बीज भी मुंह के अल्सर से राहत देते हैं। अल्सर से होने वाली जलन को भी दूर करते हैं। उपचार के लिए पानी में धनिया के बीज डालकर उबालें और इस पानी को छानकर अलग रखें। इस पानी को मुंह में घुमा घुमा कर कुल्ला करें। इस उपाय को भी दिन भर में तीन से चार बार करें।", + "Disease: मुंह के छाले (Mouth Ulcer)\n3. बेकिंग सोडा (Baking soda)- बेकिंग सोडा या सोडियम बाई कार्बोनेट भी मुंह के अल्सर से निजात दिला सकता है। एसिडिक खाने- पीने से होने वाले अल्सर में यह बेहद लाभकारी है। उपचार के लिए एक छोटी चम्मच बेकिंग पाउडर में पानी मिलाकर पेस्ट तैयार करें और प्रभावित स्थान पर लगाएं।\n4. शहद (Honey)- मुंह के अल्सर से राहत देने में शहद भी बेहद प्रभावी है। शहद में एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी माइक्रोबल गुण होते हैं। उपचार के लिए रूई के फाहे को शहद में डुबाकर, प्रभावित स्थान पर लगाएं। इसी तरह ग्लिसरीन और विटामिन ई तेल को भी लगाया जा सकता है।\n5. एलोवेरा (Aloevera)- एलोवेरा का रस, प्रभावित स्थान पर लगाने से अल्सर से होने वाले दर्द से राहत मिलती है। एलोवेरा प्राकृतिक एंटीसेप्टिक की तरह कार्य करता है जिससे छाले जल्दी ठीक होते हैं।\n6. धनिया पत्ती (Coriander leaves)- धनिया पत्ती को कच्चा चबाने से मुंह के अल्सर से राहत मिलती है। धनिया पत्ती में फ़ॉलिक एसिड के साथ विटामिन बी 1, बी 2, बी 6 और विटामिन सी पाया जाता है। धनिया पत्ती को डंडी के साथ लगभग 10 मिनट तक चबाना चाहिए। इसके प्रयोग से मुंह से आने वाली दुर्गंध से भी राहत मिलती है।\n7. तुलसी (Basil)- तुलसी में एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल गुण पाए जाते हैं। उपचार के लिए 5 से 6 तुलसी की पत्तियों को धोकर अच्छी प्रकार चबाकर खाएं और उसके बाद थोड़ा पानी पी लें। इस उपाय को दिन में दो बार, सुबह और शाम करें।\n8. बर्फ (Ice)- बर्फ, अल्सर के कारण मुंह में होने वाले दर्द से राहत देती है। बर्फ को प्रभावित स्थान पर लगाने से, संबंधित जगह थोड़ी देर के लिए सुन्न पड़ जाती है जिससे अल्सर से होने वाली जलन और दर्द से राहत मिलती है।\n\n\n", + "Disease: अल्सर (Ulcer)\n\nDescription: \nअल्सर (Ulcer)\nपेट या छोटी आंतों में होने वाले अल्सर को पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer) के रूप में जाना जाता है। पेट के पेप्टिक अल्सर को गैस्ट्रिक अल्सर भी ��हते हैं। अल्सर आहार और तनाव या फिर पेट में अम्ल (acid) की अतिरिक्त मात्रा जमा होने से होता है। आमाशय का अल्सर पेट के अल्सर से ज्यादा कॉमन बीमारी है। पेप्टिक अल्सर आमाशय और पेट के बीच की पतली सुरक्षा दीवार में घाव के बाद छेद हो जाने से होता है। लंबे समय तक एंटीबायोटिक्स, दर्द और स्टेरॉयड की दवा खाने के अलावा शराब के सेवन से पेट और आमाशय का अल्सर होता है। पेट में एसिड और एंजाइम के बनने से छोटी आंत के उपर आमाशय के पास छेद या घाव हो जाता है जिसे अल्सर कहते हैं।\nअधिकांशतः यह हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (helicobacter pylori) नाम के एक जीवाणु के संक्रमण से होता है। कुछ लोगों में अल्सर के लक्षण आसानी से जबकि दूसरों में ये जल्दी नहीं दिखाई पड़ते हैं। कभी-कभी अल्सर उन्हें भी हो जाता है, जिन्होंने इसके किसी भी लक्षण का अनुभव नहीं किया है।\n\nSymptoms: \n- अगर पेट का दर्द अल्सर के कारण हो रहा है, तो रात में और जब भी आप भूखे हों, यह अचानक तीव्र हो सकता है।\n- खाना खाने के दो घंटे बाद भूख महसूस करना।\n- गैस और डकार में वृद्धि।\n- थकावट का अहसास होना।\n- पेट भरा हुआ महसूस होना, और ढेर सारा तरल पदार्थ पी पाने में असमर्थता।\n- भूख में कमी।\n- वजन घटना।\n- सीने की हड्डियों और पेट की नाभि के बीच किसी भी स्थान पर दर्द।\n- हल्की मतली (nausea), जो सुबह जागने पर सबसे आम होती है।\n\nReasons: \nअल्सर के कारण (Causes of Ulcers)\nकोई भी एक खास कारण नहीं होता है जो अल्सर के लिए उत्तरदायी होता है। बहुत सारे कारण के प्रभाव से अल्सर पैदा होता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि पेट और आमाशय के बाच एंजाइम और पाचक रस के असंतुलन से जो एसिड बनता है उसी से अल्सर बनता है।\nआम तौर पर अधिकांश अल्सर H. Pylori बैक्टेरिया के संक्रमण से ही होता है। यह बैक्टेरिया पेट और छोटी आंत के बीच जो सुरक्षा दीवार होती है, वहीं रहता है। आमतौर पर यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। लेकिन इसके संक्रमण से कभी-कभी पेट के अंदरुनी सतह और आंत में सूजन हो जाती है जो बाद में अल्सर का रुप धारण कर लेता है।\nपेन किलर्स और एंटी इंफ्लामेट्री दवा के लगातार सेवन से छोटी आंत और पेट के बीच की सुरक्षा दीवार में सूजन और छेद हो जाता है जिससे अल्सर होने की संभावना रहती है।\nऔर भी हैं कई वजह (Other Reason for Ulcer)\nशराब और धूम्रपान का ज्यादा सेवन\nकिसी गंभीर बीमारी की वजह से\nरेडिएशन थेरेपी की वजह से\nकिसे हो सकता है अल्सर (Whom May be More Prone to Ulcer)\nपेट के अल्सर क�� ढेर सारे कारण होने पर भी जिन लोगों में इसके विकसित होने का अधिक खतरा होता है, वे हैं:\nएच पाइलोरी बैक्टीरिया से संक्रमित लोग।\nनियमित रूप से ड्रग्स या सुई से दवाओं का सेवन करने वाले लोग।\nअल्सर के पारिवारिक इतिहास वाले लोग।\nनियमित रूप से शराब पीने वाले लोग।\nलीवर, गुर्दे, या फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों वाले लोग।\n50 साल से अधिक उम्र के लोग।\n\nTreatments:\nदेखभाल और इलाज (Treatment for Ulcer)\n- पोहा और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लीजिए, 20 ग्राम चूर्ण को 2 लीटर पानी में सुबह घोलकर रखिए, इसे रात तक पूरा पी जाएं। अल्‍सर में आराम मिलेगा।\n- पत्ता गोभी और गाजर को बराबर मात्रा में लेकर जूस बना लीजिए, इस जूस को सुबह-शाम एक-एक कप पीने से पेप्टिक अल्सर के मरीजों को आराम मिलता है।\n- अल्‍सर के मरीजों के लिए गाय के दूध से बने घी का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है।\n- अल्‍सर के मरीजों को बादाम का सेवन करना चाहिए, बादाम पीसकर इसका दूध बना लीजिए, इसे सुबह-शाम पीने से अल्‍सर ठीक हो जाता है।\n- सहजन के पत्‍ते को पीसकर दही के साथ पेस्ट बनाकर लें। इस पेस्‍ट का सेवन दिन में एक बार करने से अल्‍सर में फायदा होता है।\n\nHome Remedies:", + "Disease: अल्सर (Ulcer)\nअल्सर (ulcer) शरीर की ऊपरी त्वचा या म्यूकस झिल्ली पर उभरा हुआ घाव होता है। अल्सर ज्यादातर हेलिकोबैक्टर पायलोरी (Helicobacter pylori) नाम के जीवाणु द्वारा होता है। पेट की आंत (Intestine) में कई प्रकार के द्रव्य निकलते हैं जो भोजन को पचाने में सहायक होते हैं लेकिन जब यह द्रव्य ज्यादा मात्रा में निकलते हैं तो पेट व आंत की कोमल त्वचा को जलाने लगते हैं। इसके कारण पेट में घाव बन जाता है।\nजानिए अल्सर से बचाव के घरेलू उपाय (Home remedies for ulcer):\n1.पोहा (Bitten rice)- पोहा अल्सर के उपचार में बेहद फायदेमंद है। पोहा और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर पाउडर बना लें। इस पाउडर की 20 ग्राम मात्रा को 2 लीटर पानी में घोलकर रख दीजिए। दोपहर से रात तक इस पानी को पूरा खत्म करें। अल्सर से राहत मिलेगी।\n2. पत्ता गोभी और गाजर (Cabbage and carrot)- पत्ता गोभी में लेक्टिक एसिड होता है जिससे एमीनो एसिड बनता है जो पेट में रक्त का प्रवाह बढ़ाता है। इसके साथ ही पत्ता गोभी में विटामिन सी (vitamin c) भी उच्च मात्रा में होता है। पत्ता गोभी और गाजर को बराबर मात्रा में मिलाकर जूस तैयार करें और सुबह शाम एक-एक कप पीएं।\n3. नारियल (Coconut)- नारियल में एंटीबैक्टीरियल गुण पाये जाते हैं, जो कि अल्सर पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मार देते हैं। नारियल के दूध और पानी में भी एंटी- अल्सर गुण पाये जाते हैं। अल्सर के उपचार के लिए रोजाना नारियल पानी पीएं। नारियल के तेल का सेवन भी अल्सर से बचाता है।\n4. गाय का दूध (Cow milk)- हल्दी में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं, गाय के दूध में हल्दी मिलाकर पीने से भी अल्सर रोगियों को लाभ मिलता है।\n5. बादाम (Almond)- अल्सर रोगियों को बादाम पीसकर, खाने से लाभ होता है। बादाम को पीसकर उसका दूध जैसा बनाकर पीएं।\n6. सहजन (Drum stick)- सहजन की फली भी स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद है। इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं जो रोगों से लड़ने में सहायक होते हैं। सहजन की फली को पीसकर, दही के साथ मिलाकर खाने से अल्सर रोग में आराम मिलता है।\n7. शहद (Honey)- कच्चा शहद भी पेट के अल्सर में बेहद लाभकारी है। शहद में ग्लूकोज पैरॉक्साइड (glucose peroxide) पाया जाता है, जो पेट में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म कर देता है। इसके साथ ही शहद के सेवन से पेट की जलन से भी आराम मिलता है।\n8. केला (Banana)- केला में एंटीबैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। केला खाने से एसिडिटी से भी राहत मिलती है। कच्चा और पका दोनों ही तरह का केला खाने से अल्सर रोगियों को बेहद आराम मिलता है। कच्चे केले की सब्जी बनाकर उसमें एक चुटकी हींग मिलाकर खाएं।\n9. लहसुन (Garlic)- लहसुन पेट के अल्सर में बेहद लाभकारी है। उपचार के लिए दो से तीन लहसुन की कलियों को कुचलकर, पानी के साथ खाएं।\n10. बेलफल (Wood apple)- पेट के अल्सर में बेलफल और उसकी पत्तियों का सेवन भी बेहद लाभदायक है। पत्तियों में मौजूद टेनिन्स पेट को, किसी भी तरह के नुकसान से बचाता है। बेलफल का रस भी पेट की जलन और दर्द को दूर कर, अल्सर से बचाता है।\n\n\n", + "Disease: डायरिया (Diarrhea)\n\nDescription: \nडायरिया (Diarrhea)\nलगातार लूज मोशन यानि पतला दस्त आना, उल्टी होना डायरिया कहलाता है। डायरिया वायरल, बैक्टेरियल संक्रमण के कारण तो होता ही है लेकिन सबसे कॉमन कारण है खान-पान में गड़बड़ी, प्रदूषित पानी और आंत की गड़बड़ी। दिन में अगर तीन से अधिक बार पानी के साथ पतला दस्त हो रहा हो तो यह डायरिया का लक्षण है।\nडायरिया में शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिसे डिहाइड्रेशन कहते हैं जो काफी गंभीर होता है। इससे शरीर कमजोर हो जाता है, शरीर में संक्रमण फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है। समय पर इलाज नहीं होने पर मरीज की जान भी जा सकती है।\nआम तौर पर डायरिया 3 से 7 दिनों तक परेशान करता है। डायरिया वैसे तो कभी भी हो सकता है, लेकिन बरसात में वायरल डायरिया ज्यादा परेशान करता है। इसकी वजह गंदा पानी और खाना-पीना है। डायरिया अचानक हो जाता है और कोर्स पूरा होने के बाद ही खत्म होता है। पेट में ज्यादा एसीडिटी बनने से भी डायरिया होती है। यह सभी उम्र के लोगों को परेशान करता है। एक्यूट डायरिया (Acute Diarhea) वयस्कों को साल भर में एक बार और बड़े बच्चों को दो बार होता है। इस बीमारी में सबसे ज्यादा खतरा डिहाइड्रेशन से होता है, जिसमें शरीर से सारा पानी और खत्म हो जाता है। आंत में पानी जाने से पहले ही वो पास हो जाता है।\n\nSymptoms: \n- आंतों में सूजन से हुआ डायरिया\n- पतला दस्त या लूज मोशन (पानी की तरह) अगर दो हफ्ते तक रहे।\n- दस्त के साथ खून, आंव और पोटा आता है। इससे शरीर काफी कमजोर हो जाता है।\n- उल्टी, मितली आने के साथ पतला दस्त आता है। यह पेट और आंत में एसिडिटी बनने से होता है।\n\nReasons: \nडायरिया के कारण (Causes & Reasons of Diarrhea)\nवायरल डायरिया (Viral Diarrhea)\nवायरल इंफेक्शन से सबसे ज्यादा डायरिया होता है। इसके लक्षण कभी सामान्य तो कभी काफी गंभीर हो जाते हैं। पतला दस्त, लूज मोशन, पेट में मरोड़ आना और बुखार इसके सामान्य लक्षण हैं। वायरल डायरिया 3 से 7 दिन तक रहता है।\nवायरल डायरिया निम्न वायरल संक्रमण के कारण होते हैं\nरोटावायरस (Rotavirus)- नवजात बच्चों में रोटावायरस वायरल संक्रमण से वायरल डायरिया का खतरा रहता है। इससे बचने के लिए बच्चों को एंटी रोटावायरस इंजेक्शन भी लगाया जाता है।\nनोरोवायरस (Norovirus)- यह वायरल डायरिया वयस्कों और स्कूल जाते बच्चों को सबसे ज्यादा परेशान करता है। नर्सिंग होम, डे केयर सेंटर और रेस्टोरेंट में इसके संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।\nएडेनोवायरस(Adenovirus)- यह वायरल संक्रमण हर उम्र के लोगों को होता है।\nबैक्टीरियल संक्रमण से डायरिया (Bacterial infections)\nबैक्टीरियल संक्रमण से हुआ डायरिया काफी सीरियस होता है। बैक्टीरियल संक्रमण प्रदूषित पानी, भोजन, फूड प्वाइजनिंग से होती है। बैक्टीरियल संक्रमण से हुई डायरिया में लगातार उल्टी आना, लगातार लूज मोशन होते रहना, दस्त के साथ सिर्फ पानी आने की शिकायत से मरीज की हालत काफी गंभीर हो जाती है। बैक्टीरियल संक्रमण से पेट में गैस भी बन जाती है। गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण में कभी-कभी दस्त के साथ खून, पोटा और आंव भी आती है।\nऔर भी हैं कई वजह (Some more causes)\nआंतों में सूजन के बाद भी डायरिया होता है\nई-कोलाई के संक्रमण से भी डायरिया होता है\nअल्कोहल सेवन के साइड इफेक्ट में भी डायरिया होता है\nडायबिटीज के मरीज को भी डायरिया की शिकायत रहती है\nरेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी में भी डायरिया की शिकायत होती है\nकिसी खास एंटीबायोटिक्स के सेवन से भी डायरिया होता है, खासकर वैसे एंटी बायोटिक्स जो आंत पर प्रभाव डालते हैं\nपरजीवी जो प्रदूषित पानी और खाने के जरिए हमारे पेट में जाता है, वो हमारे पाचन तंत्र को बिगाड़ देता है और जिससे डायरिया की शिकायत होती है\nकैंसर की दवा, वजन घटाने की दवा, ब्लड प्रेशर की दवा के साइड इफेक्ट की वजह से भी डायरिया होता है\nएलर्जी से भी डायरिया होती है, खासकर वैसे चीज खाने से मसलन- आर्टिफिशियल स्वीटनर या दूध में लैक्टोज की मात्रा रहने से डायरिया हो सकता है।\n\nTreatments:\nइलाज और देखभाल (Treatment and Care for Diarrhea)\n- डायरिया होने पर तेल-मसालों वाले खाने से परहेज करना चाहिए।", + "Disease: डायरिया (Diarrhea)\n- डायरिया में दूध या दूध से बने पदार्थ नहीं खाना चाहिए, मरीज की हालत और बिगड़ जाती है।\n- केले, चावल, सेब का मुरब्बा और टोस्ट का मिश्रण जिसे ब्राट कहते हैं, इसके सेवन से डायरिया में राहत मिलती है।\n- कच्चा केला और चावल आंतों की गति को नियंत्रित करने और दस्त रोकने में सहायता करते हैं।\n- पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लें लेकिन अगर फिर भी डायरिया बढ़ रहा हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। \n\nHome Remedies:\nजब व्यक्ति की पाचन क्रिया (Digestive System) सुचारू रूप से कार्य करना बंद कर देती है, तब उसे उल्टी और पतले दस्त होने लगते हैं। यही स्थिति डायरिया कहलाती है। डायरिया, बैक्टीरियल तथा वायरल इंफेक्शन (Bacterial and Viral Infection) के कारण होता है, जो दूषित भोजन या खाने के द्वारा व्यक्ति के शरीर में पहुंच कर, पाचन क्रिया को प्रभावित करते हैं।\nडायरिया कै दौरान व्यक्ति के पेट में दर्द होता है, पेट में ऐंठन, जी मिचलाना आदि समस्याएं भी हो सकती हैं। डायरिया के दौरान व्यक्ति को डी-हाइड्रेशन (Dehydration) हो सकता है, जिससे स्थिति और भी बिगड़ सकती है। डायरिया के लक्षण व्यक्ति में दो से चार दिन में उभरते हैं।\nजानिए डायरिया से बचाव के लिए कुछ घरेलू उपचार (Home Remedies of Diarrhea)\nनीचे दिये गए उपचारों के द्वारा डायरिया बीमारी में राहत पाई जा सकती है:\n1. दही (Yogurt)- दही में मौजूद बैक्टीरिया, शरीर में मौजूद विषैले बैक्टीरिया का नाश कर, डायरिया से बचाते हैं। डायरिया के उपचार के लिए दो कटोरी दही खाने से ही बेहद आराम मिलता है। सादे चावल में दही मिलाकर भी खाई जा सकती है।\n2. अदरक (Ginger)- अदरक का प्रयोग फूड पॉइजनिंग (food poisoning) होने पर भी किया जाता है, ऐसे में डायरिया से राहत देने में भी अदरक काफी प्रभावशाली है। अदरक के प्रयोग से पेट की ऐंठन (stomach cramps) और दर्द से भी राहत मिलती है। उपचार के लिए अदरक को कद्दूकस करके, उसमें शहद (honey) मिलाकर खाएं। इसके तुंरत बाद पानी न पीएं। अदरक की चाय (बिना दूध की) भी काफी आराम देती है।\n3. मेथी दाना (Methidana)- डायरिया के इलाज के लिए मेथी दाना बेहद फायदेमंद बताया गया है। एक छोटी चम्मच मेथी दाना को चबाकर, एक बड़ी चम्मच दही खाने से डायरिया से निजात मिलती है। इसके अलावा एक चम्मच मेथी दाना और जीरा (cumin) को भून कर पाउडर बना लें और दो बड़ी चम्मच दही में मिलाकर खाएं। इस मिश्रण को दिन भर में तीन बार खाने से बेहद आराम मिलता है।\n4. सेब का सिरका (Apple cider vinegar)- सेब का सिरका भी डायरिया में बेहद फायदेमंद है। सेब के सिरके का एसिडिक गुण, डायरिया के बैक्टीरिया को खत्म कर देता है। उपचार के लिए एक गिलास पानी में एक चम्मच सिरका मिलाएं और पी लें। इस मिश्रण को एक दिन में दो से तीन बार तब तक पीएं जब तक डायरिया ठीक न हो जाए।\n5. केला (Banana)- केले में काफी मात्रा में पैक्टिन तत्व (pectin content) और पौटेशियम होता है, इसलिए डायरिया में केला खाने की सलाह दी जाती है। डायरिया होने पर दो से तीन पके हुए केला रोज खाएं।\n6. कैमोमाइल चाय (Chamomile tea)- कैमोमाइल डायरिया के उपचार में बेहद फायदेमंद है। डायरिया के उपचार के लिए कैमोमाइल की चाय बनाकर पीएं।\n7. सफेद चावल (White rice)- सादा, सफेद गीले चावल भी डायरिया के दौरान खाने की सलाह दी जाती है। इस तरह के चावल सुपाच्य होते हैं। इस तरह के चावल खाने से दस्त कम आते हैं। सादा चावल को थोड़ा गीला करके खाएं। स्वाद के लिए चावल में दही मिलाकर खा सकते हैं।\n8. गाजर का सूप (Carrot soup)- गाजर का सूप भी डायरिया में बेहद फायदेमंद है। डायरिया के दौरान शरीर में हुई पोषक तत्वों (nutrients) की कमी को पूरा करने के साथ ही गाजर का सूप इम्यूनिटी (immunity) को मजबूत करता है। सूप बनाने के लिए, गाजर को काट कर उबाल लें और जब गाजर उबलकर पानी में घुल जाए तब, पानी को छान कर अलग करा लें। इसमें स्वादानुसार नमक, भुना जीरा और कालीमिर्च पाउडर मिलाए��।\n\n\n", + "Disease: सुस्ती (Lethargy)\n\nDescription: \nसुस्ती (Lethargy)\nकई बार शरीर में स्फूर्ति (energy) नहीं रहती। शरीर एकदम थका हुआ महसूस करता है, और बहुत कमजोरी महसूस होती है। कई बार आलस इतना होता है कि हमेशा नींद आती रहती है। इसी अवस्था को लिथारजी या सुस्ती कहते हैं। तनावपूर्ण माहौल या पोषण की कमी के कारण शरीर कमजोर होने लगता है। कई बार रात में अच्छी नींद न सोने पर भी अगले दिन थका हुआ महसूस करते हैं। लेकिन ज्यादा सुस्ती शरीर के लिए बेहद हानिकारक भी है। कई बार यह सुस्ती मौत की वजह भी हो सकती है, क्योंकि ज्यादा सुस्ती से ब्रेन के सेल्स भी सुस्त होने लगते हैं और धीरे धीरे कार्य करना बंद कर देते हैं। पूरे शरीर की स्वभाविक प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है, जो कई समस्याओं का कारण हो सकती है। ऐसे में शरीर को एक्टिव बनाये रखना बेहद जरूरी होता है।\n\nSymptoms: \n- एकांत अच्छा लगना\n- कमजोरी महसूस होना (Weakness in Body)\n- किसी काम में मन न लगना\n- छोटे से छोटा काम करने में चिड़चिड़ाना\n- हर समय नींद और आलस आना\n- हर समय लेटे रहने का मन होना\n- मन में हमेशा नकारात्मक विचार आना\n\nReasons: \nसुस्ती के कारण (Causes of Lethargy)\nसुस्ती का अनुभव सभी को होता है, लेकिन थोड़ा आराम करने या रात की नींद के बाद, अगली सुबह तक सुस्ती दूर हो जाती है। यदि इसके बाद भी सुस्ती बनी रहे तो यह बीमारी का संकेत हो सकता है। किसी भी व्यक्ति की सुस्ती का असर न केवल उसके शारीरिक बल्कि मानसिक व सामाजिक स्तर पर भी पड़ता है। सुस्ती, व्यस्त दिनचर्या, खराब जीवन शैली, बीमारियां, अनियमित व असंतुलित खान-पान व अन्य कारणों से हो सकती है। आमतौर पर अच्छी नींद लेने और और दिनचर्या में बदलाव से इस समस्या को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है लेकिन कई बार चिकित्सक की सलाह लेनी ही पड़ती है।\nइस समस्या के अन्य कारण (Reasons of Lethargy)\nकमजोरी की वजह से।\nज्यादा तनावग्रस्त रहने से।\nनींद पूरी न होने की वजह से।\nशरीर में विटामिन की कमी से।\nशरीर में खून की कमी की वजह से।\n\nTreatments:\nसुस्ती से बचने के उपाय (Tips to Prevent from Lethargy)\n- रोज योग और व्यायाम करें।\n- सुबह की ताजी हवा में टहलें।\n- तनावमुक्त रहने का प्रयास करें।\n- खाने में विटामिन की मात्रा बढ़ाएं।\n- कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें।\n- आंवले का मुरब्बा भी शरीर को स्फूर्ति देता है।\n- हल्का संगीत, हल्की आवाज में सुनें। इससे भी मानसिक सुस्ती दूर होती है।\n- कई बार सुगंधित तेलों की मालिश से भी शरीर की स���स्ती और सुस्ती मिटाई जा सकती है।\n- संतुलित और पौष्टिक भोजन करें, जिसमें हरी सब्जियां, दालें, दही और मौसमी फल शामिल हों।\n- अपनी उंगलियों के पोरों से चेहरे की मसाज करें। ऐसा करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा, जिससे व्यक्ति एक्टिव महसूस करेगा।\n\nHome Remedies:\nभागदौड़ भरी आधुनिक जिंदगी और कई तरह के तनाव, न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी व्यक्ति को थका देते हैं। थकावट हर किसी को होती है परन्तु कई लोगों को पूरे शरीर में दर्द की शिकायत रहती है। दर्द को कम करने के लिए लोग अकसर पेनकिलर ले लेते हैं। ये दवाएं तुंरत आराम देती हैं परन्तु लम्बे समय तक इसका प्रयोग नुकसान पहुंचा सकता है।\nआइए जानें थकावट से बचाव के लिए घरेलू नुस्खे (Home remedies for lethargy)\n1. ग्रीन टी (Green tea)- थकावट को दूर करने के लिए एक कप ग्रीन टी पीना बेहद प्रभावी है। नियमित रूप से ग्रीन टी पीने से वजन भी कंट्रोल में रहता है। मांसपेशियों में दर्द (muscle pain) होने पर आप ग्रीन टी बेहद लाभकारी है।\n2. अदरक की चाय (Ginger tea)- अदरक की चाय कुदरती पेनकिलर के रूप में कार्य करती है। यह व्यक्ति को तरोताजा भी महसूस कराती है। तुलसी के काढ़े में अदरक मिलाकर भी पीया जा सकता है।\n3. सौंफ (Saunf)- किसी पकवान में स्वाद बढ़ाने के साथ ही सौंफ सांस में ताजग़ी लाने में भी बेहद प्रभावकारी है। सौंफ का प्रयोग रसोई में ज़रूर होता है। सौंफ खाने से पेट साफ़ रहता है और आप खुद को तरोताजा महसूस करते है।\n4. अजवायन (Ajwain)- अजवायन के पत्ते भी दर्द निवारक दवा की तरह काम करते हैं। यह शरीर के टूटे-फुटे की अंग की मरम्मत करने और जोड़ों के दर्द में बहुत लाभप्रद होते हैं।", + "Disease: सुस्ती (Lethargy)\n5. कद्दू के बीज (Pumpkin seed)- कद्दू के बीज में मैग्नीशियम होता है, जो आलस व थकावट से लड़ने में मदद करता है। आधे घंटे की एक्सरसाइज में अगर आप थका हुआ महसूस करती हैं तो इसका मतलब है कि आपमें मैग्नीशियम की कमी है। व्यायाम के दौरान शरीर में ऑक्सीजन के निर्माण के लिए मैग्नीशियम जरूरी है। इसकी कमी की वजह से थकावट जल्दी होती है।\n6. अखरोट (Wallnut)- अखरोट में ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड न केवल थकान और आलस से राहत देता है, बल्कि यह अवसाद से भी बचाता है। इसलिए अखरोट खाने से आपकी झपकियों की समस्या दूर होगी।\n7. अनाज (Whole grain)- अनाज में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इसलिए आलस और थकान मिटाने में यह मददगार साबित होता है। अनाज में कॉम��प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट (complex carbohydrate) होते हैं। ये थकान से लड़ने में मददगार होते हैं।\n8. लाल मिर्च (Red chilly)- लाल मिर्च में विटामिन सी पाया जाता है, जो थकान दूर करता है। लाल मिर्च से दिमाग एक्टिव रहता है और हम हमेशा तरोताजा महसूस करते हैं।\n9. दही (Curd)- दही में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया पाचन तंत्र (immune system) को मजबूत रखते हैं। 4 सप्ताह तक दिन में दो बार यदि दही खाया जाए तो शारीरिक और मानसिक सेहत के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है और थकान कम होती है।\n\n\n", + "Disease: मस्तिष्क का दौरा (Cerebral Stroke)\n\nDescription: \nहमारे शरीर में मस्तिष्क और नाड़ियों को प्राणवायु (Oxygen) और पोषक तत्वों की निरंतर आपूर्ति रक्त वाहिकाओं से रक्त के द्वारा की जाती है। जब भी इन रक्तवाहिकाओं में किसी कारण क्षति पहुँचती है या अवरोध निर्माण होता है तब मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को रक्त की आपूर्ति बंद हो जाती है। जिस तरह ह्रदय को रक्त की आपूर्ति न होने पर हृदयघात आ जाता है, उसी प्रकार मस्तिष्क के कुछ हिस्से को 3 से 4 मिनट से ज्यादा रक्त न मिलने पर प्राणवायु और पोषक तत्वों के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसे ही मस्तिष्क का दौरा भी कहते हैं।\n\nSymptoms: \n- कमजोरी महसूस होना (Weakness in Body)\n- दिशा और निर्देश समझने में परेशानी\n- सिरदर्द होना\n- भ्रम की स्थिति\n- बोलने में तकलीफ होना\n- जी मिचलाना और उलटी होना\n- शरीर के एक ही तरफ के चेहरे, हाथ या टांग में सुन्नपन\n- धीरे या अस्पष्ट बोलना\n- अचानक लड़खड़ाना, चक्कर आना, शरीर का संतुलन बिगड़ना\n- एक या दोनों आँखों से देखने में कठिनाई\n\nReasons: \nमस्तिष्क के दौरे के कारण (Causes & Reasons of Cerebral Stroke)\nमस्तिष्क का दौरा होने के मुख्यत: 2 कारण होते हैं, जो निम्न हैं:\n1. अरक्तता मस्तिष्क का दौरा (Ischemic stroke)- दौरा पड़ने का सबसे आम कारण है। यह दिमाग के किसी रक्तवाहिनी के संकीर्ण होने या अवरोधर निर्माण होने के कारण होता है। यह भी दो प्रकार का होता है-\n1.1. थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक (Thrombotic stroke)- इस प्रकार के मस्तिष्क के दौरे में मस्तिष्क की रक्त वाहिनी में खून के जम जाने के कारण या थक्के के कारण अवरोध हो जाता है। जिन रोगियों में खून के अंदर कोलेस्ट्रॉल का प्रमाण ज्यादा होता है, ऐसे रोगियों की रक्तवाहिनी में भीतरी स्तर पर वसा जमा हो जाती है जिसे प्लाक कहते है। इस पर खून का थक्का जमा हो जाने पर धीरे-धीरे पूरी रक्तवाहिनी में अवरोध होने लगता है और मस्तिष्क के उस हिस्से को रक्त न मि��ने पर थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक पड़ जाता है।\n1.2. इंबोलिक स्ट्रोक (Embolic stroke)- इस प्रकार के मस्तिष्क के दौरे में रक्त का थक्का या इंजेक्शन या सलाइन द्वारा गलती से रक्त वाहिनी में प्रवेश किया हुआ हवा का छोटा बुलबुला मस्तिष्क के किसी छोटी रक्तवाहिनी में फसने के कारण रक्तवाहिनी में अवरोध निर्माण हो जाता है और मस्तिष्क के उस हिस्से को रक्त न मिलने पर इंबोलिक स्ट्रोक पड़ जाता है।\n2. रक्तस्त्राव मस्तिष्क का दौरा (Hemorrhagic stroke)- मस्तिष्क की किसी रक्तवाहिनी में रक्तस्त्राव होने के कारण होने वाले इस प्रकार के मस्तिष्क के दौरे बेहद गंभीर होते है। उच्च रक्तचाप, रक्त वाहिनी की जन्मजात विकृति या रक्त वाहिनी में फुलाव के कारण मस्तिष्क में रक्तस्त्राव हो सकता है। इसके दो प्रकार हैं-\n2.1. इंट्रा- क्रानियल हैमरेज (Intra-cranial hemorrhage)- इस प्रकार में मस्तिष्क के किसी रक्तवाहिनी में रक्तस्त्राव होने के कारण मस्तिष्क के उस हिस्से को रक्त की आपूर्ति में कमी आने के कारण ब्रेन सेल्स् को क्षति पहुँचती है। इस प्रकार के मस्तिष्क के दौरे का प्रमुख कारण उच्च रक्तदाब है। लगातार कई समय तक उच्च रक्तचाप के कारन रक्तवाहिनी कमजोर और कड़ी हो जाती है और परिणामत: फट जाती है।\n2.2. सब- आर्कनोइड हैमरेज (Sub-archnoid hemorrhage)- इस प्रकार में मस्तिष्क और कपाल के बीच के स्तर में किसी रक्तवाहिनी में रक्तस्त्राव होने के कारण सब आर्कनोइड स्पेस में रक्त एकत्रित हो जाता है। इसका प्रमुख कारण रक्त वाहिनी की जन्मजात विकृति या रक्त वाहिनी में फुलाव होता है। इस प्रकार में रोगी को तेज सरदर्द का अनुभव होता है।\n2.3. ट्रांसेंट इश्चेमिक अटैक (Transient ischemic attack)- एक तीसरे प्रकार का भी मस्तिष्क का अस्थाई दौरा होता है जिसमे स्ट्रोक के लक्षण कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटो तक ही रहते हैं और बाद में ठीक हो जाते हैं। इसे ट्रांसेंट इश्चेमिक अटैक (Transient ischemic attack) या टीआईए (TIA) कहा जाता है। यह इस बात की चेतावनी देता है कि आपको कोई समस्या है और इसका इलाज न कराने पर निकट भविष्य में आपको स्ट्रोक पड़ सकता है।\n\nTreatments:\nमस्तिष्क का दौरे से बचने के लिए उपाय (Treatments & Tips to Prevents Cerebral Stroke)\n- शराब और धूम्रपान बंद करें।", + "Disease: मस्तिष्क का दौरा (Cerebral Stroke)\n- फल, सब्जियां इत्यादि आहार लेना चाहिए।\n- तनाव से दूर रहें। नियमित व्यायाम और योग करें।\n- अगर आप मोटापे के शिकार है तो अपना वजन नियंत्रित रखें।\n- अगर बार-बार सि���दर्द की परेशानी होती है तो चिकित्सक से इसकी जाँच कराएं।\n- अगर आप उच्च रक्तचाप (Hypertension), मधुमेह (Diabetes), ह्रदय रोग (Heart disease) से पीड़ित हैं तो नियमित डॉक्टर से जाँच कराते रहें।\n\n\n", + "Disease: मायोपिया (Myopia)\n\nDescription: \nआजकल अधिकाश लोगों की आंखों में रिफ्रैक्टिव (Refractive) विकार यानि किरणों के वक्र की समस्या के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। इसमें निकट दृष्टि दोष यानि मायोपिया (Myopia) से सबसे ज्यादा लोग प्रभावित हैं। चिकित्सकों के अनुसार, बचपन में देखने की क्षमता का विकास और किशोरावस्था में आंख की लंबाई बढ़ती है लेकिन निकट दृष्टि दोष होने की वजह से यह कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में आंख में जानेवाला प्रकाश रेटिना पर केंद्रित नहीं होता। इसी वजह से तस्वीर धुंधली दिखाई देती है लेकिन इस दोष को कॉन्टेक्ट लेंस या सर्जरी से ठीक कराया जा सकता है।\n\nSymptoms: \n- चक्कर आना\n- बच्चों को स्कूल में ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ न दिखना\n- टेलीविजन धुंधला दिखना\n- आंखों का भैंगा होना\n- दूरी पर लिखे अक्षर न पढ़ पाना\n- सिर में दर्द रहना\n\nReasons: \nमायोपिया के कारण- (Causes & Reasons of Myopia)\nऐसे लोग जो निकट दृष्टि दोष की समस्या से परेशान हैं यानि कि जिन्हें थोड़ी दूर की चीजें भी साफ दिखाई नहीं देतीं, उसे रिफरेक्टिव एरर (Refractive error) कहते हैं। मायोपिया से ग्रस्त लोगों में आईबॉल बहुत लंबी हो जाती है या फिर कॉर्निया (Cornia) बहुत ज्यादा कर्वी हो जाता है जिससे आंख में पहुंचने वाला प्रकाश ठीक तरह से फोकस नहीं कर पाता। ऐसे में किसी भी चीज की तस्वीर, रेटिना पर न बनकर, उसके सामने बन जाती है जिससे चीजें धुंधली दिखाई देती हैं। यह समस्या उम्र के साथ बढ़ती जाती है। मायोपिया की समस्या से जूझ रहे लोग चश्मा या कांटेक्ट लैंस के जरिये समस्या से निजात पा सकते हैं लेकिन समस्या ज्यादा हो तो ऑपरेशन द्वारा मायोपिया का इलाज संभव है।\nइसके अलावा निम्न कारण भी हैं: (Other Reasons & Causes of Myopia)\nडायबिटीज (Daibetes) से ग्रसित होने पर।\nआनुवांशिकी (Genetic Disorder) कारणों से भी ऐसा हो सकता है।\nलंबे समय तक एक ही लैंस का प्रयोग करना। (Use of lenses)\nकिसी भी चीज को बहुत पास से घूरकर कार्य करना।\nकम रोशनी में कोई कार्य करना, जैसे पढ़ना या टीवी देखना।\n\nTreatments:\nमायोपिया से बचाव के लिए सामान्य उपचार (Treatment & tips for Myopia)\n- ब्रीथिंग व्यायाम करें।\n- त्रिफला चूरन रोजाना लें।\n- लंबे समय तक टेलीविजन देखने या पढ़ने से बचें।\n- जहां काम करें, वहां पर्���ाप्त रोशनी होनी चाहिए।\n- आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आंवला का प्रयोग करें।\n- मुंह में पानी भर कर आंखों को ताजे पानी से धोएं।\n- प्रदूषण या धूप में निकलने से पहले आंखों पर चश्मा पहनें।\n- लिकरेसी की जड़ का पाउडर और शहद मिलाकर दूध के साथ लें।\n- नारियल, मिश्री, सौंफ और बादाम को मिलाकर मिक्सर तैयार करें और पाउडर बनायें। दिन में दो बार खाएं।\n\n\n", + "Disease: खर्राटे लेना (Snoring)\n\nDescription: \nसोते वक्त सांस के साथ तेज आवाज और वाइब्रेशन (Sound & Vibration) आना खर्राटे (Snoring) कहलाता है। खर्राटे लेना साधारण-सी परेशानी है, लेकिन जब यह बीमारी का रूप ले लेती है तो गंभीर समस्या बन जाती है। सांस लेने में बार-बार रुकावट होने पर शरीर में ऑक्सिजन का लेवल कम हो जाता है, जिससे बीपी बढ़ जाता है। शरीर में ऑक्सिजन कम होते ही दिल को ऑक्सिजन के लिए ज्यादा प्रेशर लगाना पड़ता है। जब यह समस्या बढ़ जाती है तो हार्ट अटैक भी हो सकता है।\n\nSymptoms: \n- सुबह उठने पर गले और नाक का सूखा होना\n- दिन के समय भी नींद महसूस होना\n- छोटे छोटे कामों के बाद भी थकान महसूस होना और आलस आना\n- गले और नाक से तेज आवाज निकलना\n- सोते वक्त मुंह खुल जाना और हवा निकलना\n\nReasons: \nखर्राटे या स्नोरिंग के कारण- (Causes & Reasons of Snoring)\nज्यादातर लोगों को लगता है कि खर्राटे आने की वजह ज्यादा थकान है इसलिए वे इसे अनदेखा कर देते हैं। इससे समस्या गंभीर हो जाती है। दरअसल, सोते समय सांस में रुकावट खर्राटे आने की मुख्य वजह है। गले के पिछले हिस्से के संकरे हो जाने पर ऑक्सिजन संकरी जगह से होती हुई जाती है, जिससे आसपास के टिशू वाइब्रेट (Tissue Vibrate) होते हैं। इसी से खर्राटे आते हैं।\nकई बार लोग पीठ के बल सोते हैं, जिससे जीभ पीछे की तरफ हो जाती है। तालू के पीछे यूव्यल (तालू के पीछे थोड़ा-सा लटका हुआ मांस) पर जाकर लग जाती है, जिससे सांस लेने और छोड़ने में रुकावट आने लग जाती है। इससे सांस के साथ आवाज और वाइब्रेशन होने लगता है। नीचे वाले जबड़े का छोटा होना भी खर्राटे आने का एक कारण है। जब व्यक्ति का जबड़ा सामान्य से छोटा होता है तो लेटने पर उसकी जीभ पीछे की तरफ हो जाती है और सांस की नली को ब्लॉक कर देती है। ऐसे में सांस लेने और छोडऩे के लिए प्रेशर लगाना पड़ता है, जिस कारण वाइब्रेशन होता है। नाक की हड्डी टेढ़ी होना (Crooked Nose Bone) और उसमें मांस बढ़ा (Meat soar) होना। इसमें भी सांस लेने के लिए प्रेशर लगाना पड़ता है।\n\nTreatments:\nखर्राटे या स्नोर��ंग से बचाव के लिए उपाय- (Tips & Treatments to Prevent Snoring)\n- सोने की पोजीशन बदलें।\n- नशे वाले पदार्थों से दूर रहें।\n- तकिये के कवर बदलते रहें।\n- रात के समय हल्का खाना खाएं।\n- गले की रेग्युलर एक्सरसाइज करें।\n- खूब पानी पीएं और शरीर को हाइड्रेट रखें।\n- नाक की हड्डी में समस्या हो या फिर मांस बढ़ा हो तो डॉक्टर से समय रहते मिलें।\n- कई बार प्रेग्नेंसी में वजन बढऩे या सोने की स्थिति सही न होने पर भी खर्राटे आते हैं। ऐसे में करवट लेकर सोना चाहिए।\n- पीठ के बल सोने की बजाय करवट लेकर सोएं। इससे सांस की नली में रुकावट नहीं होती। सोते समय सिर को थोड़ा ऊंचा करके सोएं। इससे आपकी जीभ और सांस की नली में रुकावट नहीं आएगी।\n- अगर खर्राटे आने का कारण ज्यादा वजन है तो समय रहते वजन कंट्रोल करें। जिम जॉइन करें। नियमित योग और एक्सरसाइज करने से वजन को कंट्रोल किया जा सकता है।\n\n\n", + "Disease: सनबर्न (Sunburn)\n\nDescription: \nसनबर्न या धूप से झुलसना (Sunburn)\nधूप के कारण त्वचा का प्रभावित होना आम बात है। कोई भी व्यक्ति यदि धूप में ज्यादा देर रहता है तो सूर्य की किरणों उसकी त्वचा (Skin) को नुकसान (Damage) पहुंचा सकती हैं। यदि तेज धूप की वजह से त्वचा ज्यादा जल या झुलस जाए तो यह स्थिति सनबर्न (Sunburn) कहलाती है।\n\nSymptoms: \n- प्रभावित हिस्सा छूने पर गर्म लगता है।\n- प्रभवित हिस्सा गहरा लाल, काला या गहरा भूरा नजर आता है।\n- धूप से आने के बाद तुरंत त्वचा के फर्क को देखा जा सकता है।\n- प्रभावित हिस्से पर जलन और दर्द महसूस हो सकता है।\n- त्वचा पर परमानेंट फर्क आया है इसका पता 24 घंटे के अंदर देखा जा सकता है।\n- त्वचा रूखी तथा बेजान नजर आती है।\n- छोटे छोटे छाले या पानी वाले दाने भी हो सकते हैं।\n- प्रभावित जगह पर सूजन भी आ सकती है।\n- बुखार के साथ उल्टी भी लग सकती है।\n\nReasons: \nसनबर्न या धूप से झुलसने के कारण (Causes & Reasons of sunburn)\nसूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों के सीधे तौर पर संपर्क में आने पर सनबर्न होता है। शरीर प्राकृतिक रूप से मैलेनिन (Natural melanin) का निर्माण करके खुद को सूरज की किरणों के प्रकोप से बचाता है। मैलेनिन एक रंजक यानि पिगमेंट (Pigment) होता है जो त्वचा के रंग के लिए जिम्मेदार होता है। काले या सांवले लोगों की त्वचा गोरे रंग के लोगों की अपेक्षा कम डैमेज होती है क्योंकि सांवली त्वचा में पिगमेंट ज्यादा बनता है। गोरे (Fair) लोगों में पिगमेंट कम होता है इसलिए उनकी त्वचा सूर्य के संपर्क में आने पर जल्दी क्षतिग्रस्त होती है। इसके अलावा मैदानी इलाकों (Grounded Area) में रहने वाले लोगों की अपेक्षा पहाड़ी इलाकों (Hill Tract) में रहने वाले लोगों की त्वचा भी जल्दी क्षतिग्रस्त (Damage) होती है क्योंकि वहां सूरज मैदान की अपेक्षा नजदीक और तेज होता है।\n\nTreatments:\nधूप से झुलसने या सनबर्न से बचाव केर लिए उपाय (Tips & Treatment for Sunburn)\n- पूरी बाहों के कपड़े पहनें।\n- खीरे, टमाटर और आलू का रस लगाएं।\n- सनबर्न वाले हिस्से पर ठंडी पट्टियां रखें।\n- हर चार घंटे पर सनस्क्रीन लगाएं।\n- धूप में जाने से आधा घंटा पहले सनस्क्रीन का प्रयोग करें।\n- कोशिश करें कि सुबह 10 से शाम 4 के बीच धूप में न जाएं।\n- धूप से झुलसी त्वचा पर एलोवेरा भी बेहद फायदा पहुंचाता है।\n- कॉटन का कपड़ा ठंडे दूध में भिगाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं।\n- प्रभावित हिस्से पर ठंडी दही लगाने से भी बहुत आराम मिलता है।\n- धूप में निकलने से पहले खुद को अच्छी तरह से ढककर निकलें, मसलन आंखों पर चश्मा, सिर पर स्कार्फ या कैप पहनें।\n\n\n", + "Disease: गलसुआ (Mumps)\n\nDescription: \nगलसुआ (Mumps)\nगलसुआ (Mumps) एक वायरल संक्रमण (Viral Infection) है। यह हालाँकि शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकता है लेकिन, मुख्य रूप से लार ग्रंथियों को प्रभावित करता है जो कान और जबड़े के बीच में प्रत्येक गाल के पीछे स्थित होती हैं। गलसुआ लार ग्रंथियों (Salivary Glands) की सूजन (Swelling) और दर्द (Pain) का कारण बनता है। यह रोग मुख्य रूप से 5 से 15 वर्ष की उम्र में अधिक देखने को मिलता है। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में (Specially in girl) यह रोग जल्दी होता है।\nएंटीबायोटिक दवाओं से गलसुआ का इलाज संभव नहीं है, यह दो हफ्तों में यह अपनेआप ही समाप्त हो जाता है। दर्द निवारक दवा जैसे इबूप्रोफेन या पेरासिटामोल का उपयोग किया जा सकता है और सूजे हुए भाग पर ठंडा पैक लगाने से भी मदद मिलती है। एक साधारण से परीक्षण से गलसुआ की पुष्टि हो सकती है क्योंकि कानों के एकदम सामने जबड़े में सूजन दिखाई देती है। कल्चर या रक्त परीक्षण (Blood test) द्वारा भी निदान की पुष्टि हो सकती है। रक्त में एंटीबॉडी की उपस्थिति आसानी से वायरल संक्रमण की पुष्टि कर देता है।\n\nSymptoms: \n- कान में दर्द होना\n- पेट में दर्द होना\n- भूख न लगना\n- चबाने और निगलने में दर्द होना\n- बुखार\n- सिरदर्द\n- गालों में सूजन दिखाई देना\n- कमज़ोरी\n\nReasons: \nगलसुआ के कारण (Reasons & Causes of Mumps)\nगलसुआ या मम्पस पेरोटिड ग्रंथियों में वायरल संक्रमण (Viral Infection) से होने के कारण होने वाली बीमारी है। यह ग्रंथियां लार बनाती हैं जो चेहरे के दोनों तरफ जबड़े की हड्डी के नीचे स्थित होती है। यह संक्रमित लार (Infected Saliva), छींकने या खांसने (Sneezing or Coughing) तथा संक्रमित व्यक्ति (Infected Person) के साथ बर्तन साझा करने आदि से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है।\nमम्पस के वायरस से संक्रमित मरीज, पेरोटिड ग्रंथि में सूजन शुरू होने के 7 दिन पहले और 7 दिन बाद तक संक्रमण फैला सकता है। लक्षणों की शुरुआत आमतौर पर वायरस से संपर्क के बाद 14-18 दिनों में होती है। ऐसा कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति केवल एक बार ही गलसुआ से पीड़ित होता है, लेकिन कुछ लोग दोबारा भी संक्रमित हो सकते हैं। मम्पस, खाना और पानी शेयर करने से भी फैल सकता है। यूं तो यह रोग बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है लेकिन इसके लक्षण किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं। यह बहुत गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन कई बार समस्या बढ़ भी जाती है।\n\nTreatments:\nसामान्य उपचार\n\nHome Remedies:\nजानें गलसुआ या मम्पस के घरेलू उपचार (Home Remedies for Mumps)\nफलों का रस न पीएं।\nपर्याप्त मात्रा में पानी पीएं।\nएमएमआर के टीके लगवायें।\nतीखा या अम्लीय खाने से बचें।\nसूजे हुए हिस्से पर ठंडी या गर्म पट्टी का सेक करें।\nकाली मिर्च का लेप प्रभावित स्थान पर लगाने से आराम मिलता है।\nएलोवेरा को छीलकर उस पर हल्दी डालकर प्रभावित स्थान पर लगाएं।\nअदरक को पीसकर प्रभावित स्थान पर लगाने से भी मम्पस में आराम मिलता है।\nपीपल के पत्ते को सेक कर उस पर घी या तेल लगाकर, प्रभावित स्थान पर बांधें।\nमेथी के पाउडर में जौ का आटा मिलाकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है।\nबरगद के पेड़ की पत्तियों को भी तेल लगाकर गर्म करके प्रभावित स्थान पर लगाने से आराम मिलता है।\n\n\n", + "Disease: काली खांसी (Whooping Cough)\n\nDescription: \nकाली खांसी (Whooping Cough)\nव्हूपिंग कफ या काली खांसी (Whooping cough) गंभीर किस्म की खांसी होती है, जो ज्यादातर 5 से 15 वर्ष आयु तक के बच्चों को होती है। इसे कुकुर खांसी भी कहा जाता है। यह खांसी बच्चों में होने वाली एक संक्रामक तथा खतरनाक बीमारी है। यह मुख्यत: श्वसन तंत्र (Respiratory System) को प्रभावित करती है। भारत जैसे विकासशील देश में प्रत्येक एक लाख की आबादी पर 578 बच्चे प्रत्येक वर्ष इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। यह रोग लड़कों की तुलना में लड़कियों को ज्यादा होता है। 6 महीने से कम उम्र के बच्चों में इस बीमारी से मृत्यु दर अधि�� होती है। हालांकि यह बीमारी साल के किसी भी महीने में हो सकती है किंतु सर्दी के मौसम में काली (कुकुर) खांसी होने की बहुत अधिक संभावना रहती है।\nबार-बार खांसी होने और उल्टी होने से बच्चे शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाते हैं। कुछ भी खाते-पीते समय खांसी का दौरा प्रारंभ हो जाता है। लगातार खांसी का दौरा चलने पर उल्टी होती है। बार-बार उल्टी होने पर खाया हुआ भोजन पेट से बाहर निकल जाता है। कई बार औषधि खिलाते समय भी खांसी शुरू हो जाती है और उल्टी होने जाने के कारण औषधि भी निकल जाती है। खांसी के रोगी बच्चे को बिस्तर पर जाने के बाद थोड़ी देर बाद खांसी का प्रकोप अधिक होता है। बच्चे के जोर-जोर से बोलने और चिल्लाने पर खांसी का दौरा प्रारंभ हो जाता है।\n\nSymptoms: \n- घबराहट होना\n- खांसते- खांसते आंख से पानी आना\n- सांस बंद होने का एहसास होना\n- बुखार या जुकाम होना\n- गले की नसों का फूल जाना\n- चेहरे का पीला पड़ जाना\n- खांसते खांसते गले का रूंध जाना\n- हवा ज्यादा लेने की छटपटाना\n- सांस लेने में घुर घुर की आवाज आना\n\nReasons: \nकाली खांसी के कारण- (Cause & Reason of Whooping Cough)\nकाली खांसी (Whooping cough) हिमोफाइलस परटुसिस (Haemophilus Pertussis) जीवाणुओं के संक्रमण से होती है। रोग के जीवाणु रोगी बच्चे की नाक और मुंह में छिपे रहते हैं। जब रोगी बच्चे जोर से खांसते और छींकते हैं तो रोग के सूक्ष्म जीवाणु वायु में फैलकर दूसरे स्वस्थ बच्चे तक पहुंच जाते हैं। रोगी बच्चे से बातचीत करने, उसके साथ उठने-बैठने से यह रोग दूसरे बच्चों में भी फैल जाता है।\nघर में किसी एक व्यक्ति को काली खांसी हो जाने पर धीरे-धीरे पूरे घर में खांसी फैल जाती है। छोटे बच्चों में काली खांसी की उत्पत्ति सर्दी-जुकाम के कारण होती है। अधिक सर्दी लगने, पानी में अधिक भीगने व सर्दी के दिनों में नंगे पांव घूमने से सर्दी-जुकाम होता है। ऐसे में कुछ बच्चे मूंगफली, अखरोट व अन्य कोई मेवा और घी, तेल मक्खन से बनी चीजें खाकर ठंड़ा पानी पीते हैं तो उन्हें खांसी हो जाती है जो सर्दी के प्रकोप से काली (कुकुर) खांसी में परिवर्तित हो जाती है।\nकुछ बच्चों को काली खांसी का रोग एलर्जी के कारण होता है। एलर्जिक वस्तु के संपर्क में आने पर सांस लेने में परेशानी होती है। गले में जलन व खुजली होती है। गले में सूजन होने से खांसी का प्रकोप बढ़ने के कारण रोगी को बहुत पीड़ा होती है। खांसते हुए रोगी का मुंह लाल पड़ जाता है। मुंह से लार गिरने लगती है। आंखों में से आंसू बहने लगते हैं। रोगी बच्चे भयभीत होकर रोने लगते हैं। अन्त में उल्टी होने पर खांसी का प्रकोप कुछ कम हो जाता है।\n\nTreatments:\nसामान्य उपचार\n\nHome Remedies:\nजानें काली खांसी से बचाव के घरेलू उपाय (Home Remedies for Whooping Cough)\n1. सुहागा, कलमीशोरा, फिटकरी, काला नमक और यवक्षार को पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। इसे तवे पर भूनकर 2-2 ग्राम की मात्रा में शहद को मिलाकर बच्चों को चटाने से कालीखांसी दूर हो जाती है। इसके अलावा तवे पर भुना हुआ सुहागा व वंशलोचन को मिलाकर शहद के साथ रोगी बच्चे को चटाने से भी कालीखांसी दूर होती है।\n2. पीपल, काकड़ासिंगी, अतीस और बहेड़ा सभी औषधियों को 20-20 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक कूट-पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। इसमें 10 ग्राम नौसादर, 10 ग्राम भुना हुआ सुहागा मिलाकर पीस लें। इसके 3 ग्राम चूर्ण को दिन में 2-3 बार चाटने से काली खांसी दूर हो जाती है।", + "Disease: काली खांसी (Whooping Cough)\n3. अड़ूसा के सूखे पत्तों को मिट्टी के बर्तन में रखकर, आग पर गर्म करके उसकी राख को तैयार कर लें। उस राख को 24 से 36 ग्राम तक की मात्रा में लेकर शहद के साथ रोगी को चटाने से कालीखांसी दूर हो जाती है।\n4. मूली का 50 मिलीलीटर रस और गन्ने का रस मिलाकर दिन में 2 बार पिलाने से कुकर खांसी में लाभ मिलता है।\n5. 3 मिलीलीटर नारियल का तेल हल्का गर्म करके बच्चे को पिलाने से खांसी का प्रकोप कम हो जाता है। नारियल की जटा की भस्म करके लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शहद में मिलाकर या पानी से खाएं। इससे 2-3 बार में ही खांसी का वेग व खांसी खत्म हो जाती है।\n6. अदरक के रस को शहद में मिलाकर 2-3 बार चाटने से काली खांसी का असर खत्म हो जाता है।\n7. 3 बादाम रात को पानी में डालकर रख दें। सुबह उठकर बादाम के छिलके उतारकर लहसुन की एक कली और मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें। इस मिश्रण को बच्चों को खिलाने से काली खांसी दूर हो जाती है।\n8. बच्चों को कुकर खांसी होने पर लहसुन की माला पहनाते हैं जिससे इसकी गंध खांसने के साथ-साथ अन्दर चली जाती है और इसी का रस आधा चम्मच शहद के साथ भी पिलाएं। इससे काली खांसी दूर हो जाती है। दस बूंद या एक चम्मच लहसुन का रस (उम्र के अनुसार) शहद मिलाकर प्रतिदिन दो-तीन बार सेवन करने से खूब लाभ मिलता है।\n9. तवे को आग पर रखकर लौंग को भून लें, फिर उस लौंग को पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से काली खांसी ठीक हो जाती है। बच्चों को काली खांसी मे�� एक चौथाई ग्राम से कम गोलोचन को सुबह-शाम शहद के साथ चटाने से लाभ मिलता है।\n10. तुलसी के पत्तों के 3 ग्राम रस में शहद मिलाकर चाटने से कालीखांसी में बहुत अधिक लाभ मिलता है।\n11. तुलसी के पत्ते और कालीमिर्च समान मात्रा में पीस लें। इसकी मूंग के बराबर की गोलियां बना लें। एक-एक गोली को चार बार देना चाहिए। इससे काली खांसी नष्ट हो जाती है।\n12. काली खांसी होने पर बच्चों को बिस्तर पर सुलाने से पहले उसके सीने और कमर पर कपूर को तेल में मिलाकर मालिश करें, काली खांसी बन्द हो जाएगी।\n13. हल्दी की 3-4 गांठों को तोड़कर तवे पर भूनें और पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3-3 ग्राम सुबह-शाम पानी से लेने से कालीखांसी में आराम आता है।\n\n\n", + "Disease: प्रोस्टेट डिस्ऑर्डर (Prostate Disorder)\n\nDescription: \nप्रोस्टेट डिस्ऑर्डर (Prostate Disorder)\nप्रोस्टेट ग्लैंड ज्यादा बढ़ जाने पर प्रोस्टेट डिस्ऑर्डर (Prostate Disorder) कहलाता है। लगभग तीस फीसदी पुरुष 40 की उम्र में और पचास फीसदी से भी ज्यादा पुरुष 60 की उम्र में प्रोस्टेट की समस्या से परेशान होते हैं। प्रोस्टेट ग्लैंड को पुरुषों का दूसरा दिल भी माना जाता है। पौरूष ग्रंथि शरीर में कुछ बेहद जरूरी क्रिया करती है। जैसे यूरीन के बहाव को कंट्रोल करना और प्रजनन के लिए सीमेन बनाना। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, यह ग्रंथि बढ़ने लगती है। इस ग्रंथि का अपने आप में बढ़ना ही हानिकारक होता है और इसे बीपीएच (Benign Prostatic Hyperplasia) कहते हैं।\nप्रोस्टेट ग्रंथि के ज्यादा बढ़ जाने से मूत्र उत्सर्जन की परेशानी हो जाती है। ग्रंथि के आकार में वृद्धि हो जाने पर मूत्र नलिका अवरुद्ध हो जाती है और यही पेशाब रुकने का कारण बनती है। प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार में वृद्धि होने का कारण स्पष्ट नहीं है। बढ़ती उम्र के साथ पुरुषों के शरीर में होने वाला हार्मोन का परिवर्तन एक कारण हो सकता है।\n\nSymptoms: \n- रात को कई बार पेशाब के लिये उठना।\n- मूत्र की कुछ मात्रा मूत्राषय में शेष रह जाती है, इस शेष रहे मूत्र में रोगाणु पनपते हैं।\n- पेशाब करने में कठिनाई महसूस होना।\n- पेशाब करने के बाद भी मूत्र की बूंदे टपकती रहती हैं, यानि मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहता।\n- ऐसा महसूस होता है कि पेशाब आ रहा है लेकिन बाथरूम में जाने पर बूंद-बूंद या रुक-रुक कर पेशाब होता है।\n- पेशाब में जलन महसूस होती है।\n- अंडकोषों में दर्द उठता रहता है।\n- जल्दी जल्दी पेशाब होना।\n- पेशाब की धार चालू होन��� में विलंब होना।\n\nTreatments:\nप्रोस्टेट उपचार (Treatment & Tips to Prevent Prostate Disorder)\nप्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि होने पर मरीज़ को चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है। मूत्र थैली के लगातार भरे रहने से गुर्दों पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे इनके खराब होने का ख़तरा पैदा हो जाता है। रोग की प्रारंभिक अवस्था में दवाओं द्वारा ग्रंथि की वृद्धि को कम करने का प्रयास किया जाता है। कुछ मरीज़ों को दवाइयों से कोई लाभ नहीं होता, ऐसी स्थिति में शल्यक्रिया करके रोगी के शरीर से प्रोस्टेट ग्रंथि निकाल दी जाती है। चिकित्सा की आधुनिक पद्धति से कम से कम चीर-फाड़ व रक्त-स्राव द्वारा प्रोस्टेट ग्रंथि की बीमारी का इलाज संभव है। ऐसी ही एक आधुनिक तकनीक है लेज़र किरणों से प्रोस्टेक्टॉमी।\nलेजर प्रोस्टेक्टॉमी (Laser Prostatectomy)\nइसमें लेजर किरणों के माध्यम से प्रोस्टेट ग्रंथि के उस हिस्से को काटकर अलग कर दिया जाता है जिससे मूत्र नलिका का मार्ग अवरूद्ध हो रहा था। लेज़र प्रोस्टेक्टॉमी में एक फाइबर ऑप्टिक टेलीस्कोप दूरबीन को मरीज़ के मूत्रद्वार से मूत्राशय की ओर भेजा जाता है। यहां प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़े हुए हिस्से को काटकर निकाल दिया जाता है और प्रोस्टेट के टुकड़े को मूत्राशय में धकेल दिया जाता है। मूत्रमार्ग में नली डाल दी जाती है जिससे मूत्र उत्सर्जन निर्बाधित रूप से होता रहता है। मूत्राशय में धकेले गए ग्रंथि के बचे हुए हिस्सों को वहां से निकाल दिया जाता है।\nप्रोस्टेट के न टुकड़ों को पैथोलॉजी (Pathology) जांच के लिए भेजा जाता है जहां ग्रंथि के आकार में वृद्धि के कारणों की जांच की जाती है। प्रोस्टेट ग्रंथि के लेज़र सर्जरी से निकालने के बाद पेशाब करने की बढ़ी आवृत्ति, तीव्र इच्छा व मूत्राशय पूर्णत: खाली न होने जैसी शिकायतें दूर हो जाती हैं और मूत्र का प्रवाह भी ठीक हो जाता है।\nप्रोस्टेट ग्रंथि को हटाने से क्या समस्या आ सकती है? (Problems to Remove Prostate Gland)\nप्रोस्टेट ग्रंथि के स्राव से शुक्राणुओं को पोषण और सुरक्षा मिलती है। शल्यक्रिया द्वारा ग्रंथि को निकाल दिए जाने पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पडता क्योंकि प्रोस्टेट के अलावा सेमाइनल वेसिकल्स (Seminal vesicles) भी इस कार्य को करती है।\n\nHome Remedies:\nजानें प्रोस्टेट डिस्ऑर्डर के घरेलू उपचार (Home Remedies of Prostate Disorder)\n3 से 4 लीटर पानी रोजाना पीएं।\nभोजन में विटामिन सी की मात्रा ज्यादा लें।\nचर्बीयुक्त और वसाय���क्त भोजन का प्रयोग बंद कर दें।", + "Disease: प्रोस्टेट डिस्ऑर्डर (Prostate Disorder)\nरोजाना सोयाबीन खाएं इससे टेटोस्टरोन का लेवल कम हो जाता है।\nअलसी को मिक्सी में पीसकर पाउडर बना लें और प्रतिदिन 20 ग्राम पानी के साथ लें।\nचाय और कॉफी का सेवन न करें, इससे मूत्राशय ग्रीवा कठोर होती है जिससे पेशाब करने में दिक्कत होती है।\nसीताफल के बीज कच्चा या भून कर या फिर दूसरे बीजों के साथ मिलाकर खा सकते हैं। इसे अपने हर दिन के खाने में शामिल किया जा सकता है। इसे सलाद में मिलाकर भी खाया जा सकता है। पोहा में मिलाकर या सूप में डालकर भी खा सकते है।\nकच्चे सीताफल के बीज में काफी मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जैसे आयरन, फॉस्फोरस, ट्रिप्टोफैन, कॉपर, मैग्नीशियम, मैग्नीज, विटामिन के, प्रोटीन, जरूरी फैटी एसिड और फाइटोस्टेरोल। ये बीज जिंक के बेहतरीन स्रोतों में से एक माने जाते हैं। हर दिन 60 मिलीग्राम जिंक का सेवन प्रोस्टेट से जूझ रहे मरीजों में बेहद फायदा पहुंचाता है और उनके स्वास्थ्य में भी सुधार करता है। इन बीजों में बीटा-स्टिोसटेरोल भी होता है जो टेस्टोस्टेरोन को डिहाइड्रोटेस्टेरोन में बदलने नहीं देता। जिससे इस ग्रंथि के बढ़ने की संभावना न के बराबर हो जाती है।\n\n\n", + "Disease: एड्स (AIDS)\n\nDescription: \nएड्स या एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंशी सिंड्रोम (Acquired Immune Deficiency Syndrome) दुनिया की सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारियों में से एक है। यह एचआईवी वायरस के कारण फैलने वाला रोग है। दुनियाभर में एड्स के सर्वाधिक मामले असुरक्षित यौन संबंधों के कारण होते हैं।\n\nSymptoms: \n- अकारण वजन घटते जाना।\n- गले या बगल में सूजन भरी गिल्टियों का हो जाना।\n- त्‍वचा पर दर्द भरे और खुजली वाले चकते हो जाना।\n- बिना किसी वजह के लगातार डायरिया बने रहना।\n- बिना किसी वजह के लगातार थकान बने रहना और तेजी से वजन गिरना।\n- मुंह में घाव हो जाना।\n- मुंह में सफेद छाले जैसे निशान होना।\n- याद्दाश्त में कमी, डिप्रेशन या अन्य दिमागी बीमारी\n- लंबे समय तक बुखार रहना\n\nReasons: \nएड्स के कारक (Causes of Aids in Hindi)\nदुनियाभर में एड्स की फैलने की सबसे बड़ी वजह (Causes of Aids) असुरक्षित यौन संबंधों को माना जाता है। लेकिन कई अन्य कारण भी है जो एड्स के लिए जिम्मेवार माने जाते हैं:\nअसुरक्षित सेक्स (Unsafe Sex):- एक से अधिक साथियों के साथ यौन संबंध बनाने से एचआईवी एड्स फैल सकता है। यह समलैंगिक संबंधों में भी हो सकता ह���।\nसंक्रमित रोगी द्वारा (From HIV+ Victim):- एचआईवी पॉजिटिव पुरुष या महिला के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने के कारण भी यह फैलता है।\nसंक्रमित खून चढ़ाने (Through Blood Transfusion):- बिना जांच किया हुआ रक्‍त ग्रहण करने के कारण भी एचआईवी से पीड़ित होने का खतरा रहता है। यह एड्स को फैलाने की दूसरी सबसे बड़ी वजह मानी जाती है।\nसंक्रमित सुई के इस्तेमाल से (Through Infected Needles):- ड्रग्स की समस्या ना सिर्फ नशे तक सीमित है बल्कि अगर एक ही इंजेक्शन से कई लोग ड्रग्स लें तो यह एड्स का कारण बन सकता है। सिर्फ ड्रग्स ही नहीं दवाई लेने के दौरान भी संक्रमित सुई का इस्तेमाल हानिकारक होता है।\nसंक्रमित ब्लेड से (Through Infected Blood):- साथ ही नाई के यहां बिना स्टरलाइज्ड (रोगाणु-मुक्त) उस्तरा या पुराना इन्फेक्टेड ब्लेड (Infected Blade) इस्तेमाल करने से भी यह फैल सकता है।\nसंक्रमित माता से (HIV Positive Mother):- एचआईवी संक्रमित माता के द्वारा यह बच्चे में खून या प्रसव के समय और दूध पिलाने के दौरान पहुंच जाता है।\n\nTreatments:\nएड्स से बचाव (Tips to prevent AIDS in Hindi)\nसुरक्षित सेक्स (Use Safety):- एड्स, एचआईवी संक्रमण और अन्य सेक्स संक्रमित बीमारियां रोकने के लिए हमेशा संबंध बनाते समय कंडोम आदि का प्रयोग करना चाहिए। अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहना चाहिए और एक से अधिक व्‍यक्ति से यौनसंबंध बनाने से बचना चाहिए।\nइस्तेमाल की गई सुइयों का प्रयोग ना करें (Use Disposable Syringe):- सुई लगवाते समय हमेशा यह ध्यान रखें कि डिस्पोजेबल सीरिंज या सुइयों का ही इस्तेमाल हो।\nखून के लेन-देन से पहले जांच (Test Before Blood Transfusion):- खून लेने या देने से पहले उसकी जांच अवश्य कर लें। यदि आप एच.आई.वी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो रक्तदान ना करें।\nगर्भवती महिलाएं ध्यान रखें (Tips for HIV+ Pregnant):- गर्भवती महिलाओं को अपना एचआईवी टेस्ट जरूर कराना चाहिए। अगर जांच पॉजिटिव है तो बच्चा हो जाने के बाद एचआईवी से ग्रस्त मां को बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाना चाहिए। इस केस में बोतल से दूध पिलाना बेहतर माना जाता है।\nशक होने पर एच.आई.वी टेस्ट (HIV AIDS Test):- यदि आप को एच.आई.वी एड्स होने का संदेह हो तो तुरंत अपना एच.आई.वी परीक्षण कराना चाहिए।\nएचआईवी एड्स की दवाइयां (HIV AIDS Drugs):- एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को इलाज के दौरान एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं।\n\n\n", + "Disease: जीका वायरस (Zika Virus)\n\nDescription: \nइबोला वायरस के बाद दुनियाभर में आतंक फैलानी वाली नई बीमारी है जीका। जीका वायरस लोग��ं के लिए इतना खतरनाक है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जीका वायरस पर ग्‍लोबल इमरजेंसी घोषित की है। जीका वायरस ब्राजील समेत कई अन्य अमेरिकी देशों में फैला हुआ है और इन्हीं देशों के आने वाले लोगों के द्वारा इसके विश्व के अन्य देशों में फैलने के आसार हैं। आइये जानें जीका वायरस और इसके संक्रमण के विषय में पूर्ण जानकारी (Zika Virus Information in Hindi)।\n\nSymptoms: \n- आँखें लाल होना\n- जोड़ों में दर्द\n- बुखार\n- उल्टी\n- कमज़ोरी\n\nTreatments:\nजीका वायरस का इलाज (Treatment of Zika Virus in Hindi)\n* सीडीसी के अनुसार जीका इंफेक्शन से लड़ने के लिए अभी किसी इंजेक्शन या दवाई को इजाद नहीं किया गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति को पूरी तरह से आराम करना चाहिए, खूब सारा पानी पीना चाहिए, बुखार की सामान्य दवाई लेनी चाहिए। \n* जीका वायरस से संक्रमित होने पर खुद को मच्छर के काटने से बचाना चाहिए अन्यथा यह वायरस मच्छरों द्वारा अन्य लोगों में पहुंच सकता है। पीड़ित रोगी का मच्छरों से बचाव बहुत जरूरी है। \nनोट: बुखार आने पर एस्प्रिन (Aspirin), ब्रूफेन जैसी दवाइयां बिलकुल नहीं लेनी चाहिए। \nगर्भवती महिलाओं के लिए खास निर्देश (Tips For Pregnant Women)\nसीडीसी के द्वारा अन्य देशों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं को यह सुझाव दिया गया है कि वह अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका या जीका प्रभावित अन्य देशों में ना जाएं। जीका वायरस से प्रभावित जगहों पर रहने वाली गर्भवती महिलाओं को निम्न बातों का ख्याल रखना चाहिए: \n* खुद को मच्छरों के काटने से बचाना चाहिए। \n* रात को सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए और मच्छरों के काटने से बचने वाली क्रीम लगानी चाहिए। \n* अगर मच्छरों के काटने पर सिरदर्द, हल्‍का बुखार, लाल आंखें, जोड़ों में दर्द जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। \n* अगर गर्भवती नहीं हैं तो कुछ दिनों के लिए प्रेगनेंसी के प्लान को टाल देना चाहिए। \nगर्भवती महिलाओं को मच्छरों से बचने की पूरी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि जीका वायरस के कारण उनके गर्भ में पल रहे बच्चों के मस्तिष्क को सबसे अधिक नुकसान होता है। \n\n\n\n\n\n\n\n\n\n\n" +] \ No newline at end of file